UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 19 Human Resources : Quality and Quantity (मानवीय संसाधन : गुणवत्ता एवं मात्रा) Show विस्तृत उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1 जनसंख्या की वृद्धि Growth of Population सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत की जनसंख्या का अनुमान मोरलैण्ड के अनुसार केवल 10 करोड़ होने का था। सन् 1750 में यह 13 करोड़ हो गयी। फिण्डले शिराज के अनुसार, जनसंख्या वृद्धि की गति 2% प्रति दशाब्दी थी। सन् 1847 और 1850 के बीच भारत की अनुमानित जनसंख्या लगभग 15 करोड़ थी लेकिन ये अनुमान विश्वसनीय नहीं माने जाते हैं। सन् 1881 में पहली बार भारत में जनगणना की गयी जिसके अनुसार जनसंख्या 25 करोड़ थी। तत्पश्चात् प्रति दशाब्दी में जनगणना होती रही है। वर्ष 1991 में कुल जनसंख्या 84.63 करोड़ थी जो 1921 की तुलना में लगभग 3.4 गुना अधिक हो गयी थी। वर्ष 1891 से 1921 तक के तीस वर्षों में केवल 1.20 करोड़ की वृद्धि हुई, अर्थात् प्रतिवर्ष 4 लाख की दर से किन्तु वर्ष 1921 के उपरान्त जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई, अतः वर्ष 1951 को Great Divide की संज्ञा दी गयी है क्योंकि जहाँ वर्ष 1921 से 1951 के मध्य यह वृद्धि 11 करोड़ रही, वहीं स्वतन्त्रता के पश्चात् वर्ष 1951 से होने वाली वृद्धि दर ने पूर्व सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया। वर्ष 1951 और वर्ष 1961 के बीच 7.8 करोड़ की वृद्धि हुई। वर्ष 1961 से 1971 के बीच वृद्धि की मात्रा 10.8 करोड़ एवं 1971 से 1981 के मध्य 13.7 करोड़ एवं वर्ष 1981-91 के बीच यह वृद्धि 16.66 करोड़ हुई जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। सन् 2001 में देश की जनसंख्या 102.7 करोड़ हो गयी। इस प्रकार सन् 1991-2001 में दशकीय वृद्धि 21.34% रही। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का औसत घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, परन्तु विभिन्न क्षेत्रों में इसमें भारी भिन्नता । पायी जाती है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121.02 करोड़ हो गयी है तथा औसत जनघनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। एक ओर बिहार राज्य में जनसंख्या का घनत्व 1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में मात्र 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं। जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक भारत में जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं – (2) स्वास्थ्यप्रद जलवायु – अनुकूल जलवायु मानव को क्षेत्र विशेष में रहने को आकर्षित करती है। भाबर, तराई, गंगा का निम्न डेल्टा आदि क्षेत्रों में दलदल व वनों की अधिकता तथा आर्द्र जलवायु के कारण विषैले कीड़े-मकोड़े तथा जंगली जीवों एवं बीमारी के कारण बहुत कम घने बसे हैं, जबकि भारत के मैदानी क्षेत्रों में अच्छी जलवायु के कारण सर्वत्र अधिक जनसंख्या पायी जाती है। (3) तापमान – अधिक ऊँचे तापमान जनसंख्या के जमाव में बाधा डालते हैं, जबकि सामान्य तापमान इसको आकर्षित करते हैं। बहुत ही नीचे तापमान, जैसे ऊँचे हिमालय प्रदेश शीत के कारण जनसंख्या से शून्य होते हैं, किन्तु निचले पहाड़ी ढाल ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भागों की अपेक्षा ठण्डे रहते हैं। अत: शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि की ग्रीष्म ऋतु में जनसंख्या बढ़ जाती है, किन्तु शीत ऋतु में ठण्ड के कारण फिर से घट जाती है। (4) वर्षा की मात्रा (जल उपलब्धता) – भारत जैसे कृषिप्रधान देश में जनसंख्या का वितरण एवं घनत्वं वर्षा की मात्रा अथवा जल उपलब्धता से विशेष रूप से प्रभावित है। 100 सेमी वर्षा रेखा के पश्चिमी भाग, वर्षा की कमी के कारण कम घने हैं, जबकि इसके पूर्वी भागों में घनत्व अधिक पाया जाता है। कम वर्षा वाले भागों में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में सिंचित क्षेत्रों के कारण जनसंख्या अधिक पायी जाती है। इसके विपरीत, असम तथा हिमाचल प्रदेश में जल का निकास ठीक न होने से अधिक वर्षा होने पर भी जनसंख्या कम पायी जाती है। (5) उपजाऊ भूमि – भारत में सबसे अधिक जनसंख्या उपजाऊ
समतल मैदानों, नदियों की घाटियों, तटीय मैदानों या डेल्टाओं में निवास करती है, क्योंकि इन क्षेत्रों की उपजाऊ भूमि उन्हें पर्याप्त (6) यातायात के साधन – यातायात के साधन मानव-जीवन में उपयोगी पदार्थों की आपूर्ति करते हैं। व्यापार, उद्योग, कृषि आदि सभी यातायात साधनों से प्रभावित होते हैं। पर्वतीय वनों से ढके हुए तथा मरुस्थलीय प्रदेशों में, जहाँ परिवहन के साधनों का विकास नहीं हो पाया है, अपेक्षाकृत कम जनसंख्या निवास करती है। गंगा-यमुना के विशाल मैदानों में रेलों एवं सड़कों का जाल बिछा होने के कारण जनसंख्या का जमघट पाया जाता है। (7) उद्योग-धन्धे – उद्योग-धन्धे जनसंख्या के वितरण को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। मानव प्राचीन काल से ही जीवन-यापन के विविध साधनों की ओर आकर्षित होता रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों में लोग रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से दूर-दूर से आकर बस जाते हैं। फलतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या को अत्यधिक केन्द्रीकरण हो जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्य उद्योग-धन्धों के कारण ही घने बसे हुए हैं। (8) खनिज पदार्थ – जिन राज्यों में कोयला, लौह-अयस्क, ताँबा, सोना, खनिज तेल आदि उपयोगी एवं बहुमूल्य खनिज पदार्थ निकाले जाते हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। भारत में छोटा नागपुर का पठार, बिहार, ओडिशा तथा तमिलनाडु राज्यों में जैसे-जैसे खनिज पदार्थों का खनन होता गया वैसे-वैसे जनसंख्या के घनत्व में निरन्तर वृद्धि होती गयी। इसी प्रकार असम और गुजरात के खनिज तेल क्षेत्रों में भी धीरे-धीरे जनसंख्या घनत्व में वृद्धि हो रही है। (9) शान्ति एवं सुरक्षा – मानव स्वभाव से उन्हीं क्षेत्रों में बसना चाहता है जहाँ उसे चोर-डाकुओं का भय नहीं रहता तथा उसे अपनी जान-माल को सुरक्षित रखने में कोई कठिनाई नहीं होती। चम्बल घाटी में डाकुओं के भय से लोग अन्य स्थानों पर बस गये हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में पड़ोसी देशों द्वारा सदैव घुसपैठ करते रहने के कारण शान्ति एवं सुरक्षा भंग होती रहती है; अत: इन क्षेत्रों में सामान्यतः जनसंख्या कम पायी जाती है अथवा अस्थायी रूप से निवास करती है; जैसे-जम्मू-कश्मीर राज्यों में द्रास एवं कारगिल क्षेत्र। उपर्युक्त कारणों के आधार पर भारत में औद्योगिक केन्द्रों, पत्तनों के समीप, नदियों की घाटियों, समतल मैदानों एवं खनन क्षेत्रों के समीप जहाँ जीवन-यापन एवं आवागमन के साधनों की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जनसंख्या अधिक निवास करती है। इसके विपरीत पहाड़ी, पठारी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों, जहाँ प्रतिकूल जलवायु एवं जल का अभाव पाया जाता है, जनसंख्या कम निवास करती है। भारत के कृषि-क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व सघन पाया जाता है। यह कृषि-क्षेत्र पंजाब के सिंचित क्षेत्र से आरम्भ होकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल होते हुए पूर्वी घाट के ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु राज्यों से पश्चिमी घाट, केरल, गोआ, महाराष्ट्र एवं गुजरात तक विस्तृत है। भारत में जनसंख्या का वितरण भारत में जनसंख्या का वितरण असमान है। सम्पूर्ण देश में जनसंख्या का औसत घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। एक ओर कुछ क्षेत्रों में इस घनत्व में अधिकता है तो दूसरी ओर कुछ भागों में यह पर्याप्त अन्तर रखता है। सन् 1921 के बाद से अर्थात् 80 वर्षों में जनसंख्या का घनत्व तीन गुचे से भी अधिक हो गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद इसमें विशेष रूप से वृद्धि हुई है। देश में जहाँ एक ओर राजस्थान की शुष्क पेटी, असम की पहाड़ियों और दक्षिण के पठार पर अधिकांश भागों में जनसंख्या कम पायी जाती है, वहीं दूसरी ओर नदियों की घाटियों, समुद्रतटीय मैदानों, खनिज-प्राप्ति के क्षेत्रों तथा औद्योगिक केन्द्रों के निकटवर्ती भागों में आवश्यकता से अधिक जनसंख्या के जमाव पाये जाते हैं। भारत में जनसंख्या के वितरण को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है – भारत के राज्यों में जनसंख्या का
वितरण एवं घनत्व: 2011 गेहूँ एवं चावल विशाल मैदान की प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं। चावल उत्पादक क्षेत्रों में जनसंख्या भी अधिक मिलती है। चावल की कृषि उपजाऊ मिट्टी एवं अधिक वर्षा पर निर्भर करती है। इसी कारण भारत में जनसंख्या के क्षेत्र चावल उत्पादक क्षेत्र ही हैं। (2) मध्यम जनसंख्या के क्षेत्र – इसके अन्तर्गत उन राज्यों को सम्मिलित किया जा सकता है, जहाँ जन-घनत्व 200 से 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के मध्य पाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र, हरियाणा, गोआ, त्रिपुरा आदि राज्य मध्यम जनसंख्या रखने वाले हैं। देश के उन भागों में जहाँ मानवीय आवास के लिए भौगोलिक सुविधाएँ अपेक्षाकृत कुछ कम अनुकूल हैं, वहाँ मध्यम जनसंख्या के क्षेत्र ही विकसित हुए हैं। प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्रों में जहाँ चौड़ी नदी-घाटियाँ, सिंचाई की व्यवस्था, खनिजों की प्राप्ति एवं उद्योग-धन्धों का जमाव पाया जाता है, वहाँ पर जनसंख्या अधिक निवास करती है। पठार के पूर्वी क्षेत्रों में खनिजों की उपलब्धि के कारण बहुत-से उद्योगों का विकास हुआ है, वहाँ नवीन बस्तियों के उदय होने से अधिक जनसंख्या निवास करने लगी है। (3) कम जनसंख्या के क्षेत्र – इसमें वे राज्य
सम्मिलित हैं, जहाँ जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से कम पाया जाता है। इस श्रेणी के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड, मेघालय, सिक्किम, राजस्थान, अण्डमान-निकोबार द्वीप-समूह, जम्मू-कश्मीर तथा मिजोरम राज्य सम्मिलित किये जा सकते हैं। जनसंख्या का आन्तरिक स्थानान्तरण स्थानान्तरण से तात्पर्य मानव-समूह या व्यक्ति के भौगोलिक या स्थान सम्बन्धी स्थानान्तरण से है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, “प्रवसन एक प्रकार की भौगोलिक प्रवासित अथवा स्थानिक प्रवासित है, जो एक भौगोलिक इकाई और दूसरी भौगोलिक इकाई के बीच देखने को मिलती है, जिनमें रहने का मूल स्थान अथवा पहुँचने का स्थान दोनों भिन्न होते हैं।” स्थानान्तरण के प्रकार Types of Transfer (i) अन्तक्षेत्रीय स्थानान्तरण से तात्पर्य जनसंख्या के देश के किसी एक भाग से दूसरे भाग में जाने से होता है; जैसे-राजस्थान से मारवाड़ियों का व्यापार के सिलसिले में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल या भारत के अन्य राज्यों में। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक अथवा सामाजिक होता है। (2) अन्तर्राष्ट्रीय स्थानान्तरण के अन्तर्गत मानव समूह का प्रवास एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र को होता है। इस प्रकार चीनी लोग इण्डोनेशिया और वियतनाम में, भारतीय श्रीलंका, दक्षिणी-पूर्वी एशिया, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैण्ड में जाकर बसे हैं। प्रश्न 2 भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण भारत में सन् 1991 की जनगणना के अनुसार 84.63 करोड़ व्यक्ति निवास कर रहे थे। यह जनसंख्या सन् 2011 की जनगणनानुसार 121.02 करोड़ हो गयी है। देश में जनसंख्या वृद्धि की दर 1971 से 1981 के बीच 24.66% थी, जबकि सन् 1981 से 1991 के दशक में 23.87% थी। सन् 2001-2011 के बीच 17.64% जनसंख्या-वृद्धि अंकित की गयी है। पिछले 80 वर्षों के अन्तराल में जनसंख्या तीन गुनी से भी अधिक हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं –
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याएँ (1) प्रति व्यक्ति आय में कमी – भारत में आज भी 46% जनता गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन बसर कर रही है, अर्थात् जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी आ गयी है। इससे निर्धनता में वृद्धि हुई है। (2) जीवन-स्तर का निम्न होना – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में तो कमी हुई ही है, साथ ही जनता का जीवन-स्तर भी निम्न हो गया है। निर्धनता के कारण वे निम्न जीवन-स्तर बिताने के लिए बाध्य हो गये हैं। उनकी प्राथमिक आवश्यकताएँ; जैसे-भोजन, वस्त्र एवं आवास की भी पूर्ति नहीं हो पाती। देश के बहुत-से लोग आज भी गन्दी बस्तियों में नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। (3) बेरोजगारी की समस्या का होना – देश में तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी की समस्या उग्र रूप धारण करती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में देश में रोजगार साधनों की वृद्धि नहीं हो पाती है। फलस्वरूप देश के 7 करोड़ से अधिक नवयुवक रोजगार साधनों की तलाश में भटक रहे हैं। (4) आर्थिक विकास की गति का अवरुद्ध होना – भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-विकास की जो दिशा निर्धारित की गयी थी, उसको प्राप्त करना कठिन हो रहा है, क्योंकि अतिरिक्त जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा आदि के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, अर्थात् अतिरिक्त संसाधन जुटाने के कारण आर्थिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। (5) पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या-जनसंख्या – वृद्धि के कारण अतिरिक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए वनों का भारी विनाश किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। मानवोपयोगी सुविधाओं के अभाव के कारण भी प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। इस ओर तुरन्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है अन्यथा देशवासियों का जीवन दूभर हो जाएगा। (6) अपराधों एवं अनैतिक कार्यों में वृद्धि – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। बेरोजगार युवक एवं युवतियाँ पथ-भ्रष्ट हो गये हैं तथा उनका झुकाव अपराधों एवं अनैतिक कार्यों की ओर हो गया है। इसी कारण देश में आज अपराधों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। (7) जीवन-यापन सम्बन्धी साधनों की कमी – तीव्र जनसंख्या-वृद्धि से देश में आवास, मनोरंजन, शिक्षा, चिकित्सा आदि जीवनोपयोगी सुविधाओं की कमी हो गयी है। व्यक्ति जीवन-पर्यन्त इन्हीं साधनों की प्राप्ति में भटक रहा है। उसका जीवन अशान्त हो जाने के कारण वह व्याधियों से घिर गया है। (8) उत्पादक भूमि का ह्रास – तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में उत्पादक भूमि में कमी होती जा रही है, क्योंकि उनकी आवासीय समस्या के समाधान के लिए उत्पादक कृषि भूमि में आवासों का विकास किया जा रहा है। उनके लिए परिवहन, संचार, व्यापार, उद्योग आदि सुविधाओं के विस्तार के कारण उत्पादक भूमि का ह्रास होता जा रहा है। इस प्रकार, भारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण भयावह स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यदि समय रहते इस पर रोक न लगायी गयी तो इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। भारत सरकार इस दिशा में प्रयासरत है। जनसंख्या-वृद्धि निवारण हेतु उपाय पिछले 80 वर्षों में जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना अति आवश्यक है, क्योंकि देश को खाद्यान्न उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ पाया है, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या की इस वृद्धि को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं – (2) उत्पादन में वृद्धि करना – आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने से मानव की रुचि एवं भौतिक समृद्धि में वृद्धि होती है तथा उसके रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि होती है। भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि होने की अभी पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं तथा यदि देश में प्रति एकड़ उपज बढ़ा ली जाती है। तो उससे बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति की जा सकेगी। कृषि-क्षेत्र में विस्तार अभी भी किया जा सकता है। यदि राजस्थान में सिंचाई-सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाए तो कुछ क्षेत्रों में बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाये जा सकते हैं। अन्य राज्यों में गहन खेती द्वारा प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ाया। जा सकता है। देश में हरित क्रान्ति द्वारा खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के यथासम्भव प्रयास किये जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से देश में कृषि विश्वविद्यालयों तथा कृषि अनुसन्धान संस्थानों की स्थापना की गयी है। इनमें उन्नत किस्म के बीजों, खादों, सिंचाई, कीटनाशक औषधियों तथा वैज्ञानिक यन्त्रों का प्रयोग कर कृषि उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। फलों के उत्पादन में भी वृद्धि की जा रही है। दूध देने वाले पशुओं की नस्ल सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं जिससे देश में ‘श्वेत क्रान्ति’ ने जन्म लिया है। (3) औद्योगीकरण का विकास – पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों का विकास किया जा रहा है। इससे बढ़ती हुई जनसंख्या को आजीविका के साधन प्राप्त होंगे तथा आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। इसके साथ-साथ परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि कार्यों में भी विकास होगा। इससे बेरोजगारी की समस्या का निदान किया जा सकेगा तथा कुछ हद तक जनसंख्या समस्या का भी निदान हो सकेगा। (4) नगरीकरण में वृद्धि – विश्व के विकसित देशों में देखा गया है कि बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों में जनसंख्या वृद्धि की दर नीची होती है। टोकियो, न्यूयॉर्क, पेरिस, मॉस्को, मुम्बई आदि नगर इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इस कारण जापान ने इस समस्या के हल के लिए बड़े-बड़े नगरों का विकास कर लिया है तथा 80% से भी अधिक जनसंख्या नगरों में निवास कर रही है और जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आ गयी है, परन्तु सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अभी केवल 31.16% जनसंख्या ही नगरों में निवास करती है, जबकि लगभग 68.84% जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। अतः जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाने के लिए देश का नगरीकरण किया जाना अति आवश्यक है। (5) शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार – शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी का अधिकाधिक प्रयोग कर मानव का जीवन-स्तर उच्च हो सकता है। शिक्षित जनसंख्या की मनोवृत्ति जनसंख्या वृद्धि की ओर कम होगी। वे जनसंख्या वृद्धि के दोषों से परिचित होंगे। इससे देश आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में प्रगति कर सकेगा। (6) प्रवास – यूरोपीय देशों-ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, बेल्जियम आदि देशों ने अपनी तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का हल प्रवास द्वारा कर लिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील, अर्जेण्टाइन आदि देशों में यूरोपीय ग्रंवासी जा बसे थे, परन्तु इन नये बसे हुए देशों की सरकारों ने काली एवं पीली जातियों के आवास पर राजनीतिक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। यदि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिणी अफ्रीका अपनी श्वेत नीति को त्यागकर आवास का मार्ग खोल दें तो चीन, भारत एवं जापान की बढ़ती हुई जनसंख्या को इन देशों में सुगमता से भरण-पोषण प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार प्रवास जनसंख्या समस्या के समाधान का एक ऐसा कारगर उपाय है जिससे उपलब्ध संसाधनों एवं जनसंख्या के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। (7) परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण – जनसंख्या वृद्धि न होने का स्थायी समाधान तो परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण करना है। नसबन्दी, बन्ध्याकरण एवं गर्भ निरोधक गोलियों तथा औषधियों का प्रयोग इस दिशा में अधिक कारगर
है। इन विधियों के प्रचार-प्रसार द्वारा भी जन्म-दर पर नियन्त्रण पाया जा सकता है जिससे जनसंख्या वृद्धि को रोकने का स्थायी समाधान खोजा जा सकता है। इन योजनाओं को लागू करने के लिए नियम एवं कानून भी बनाये जा सकते हैं तथा उनका कड़ाई से पालन किया जाना अपेक्षित है। इस ओर लोगों को प्रोत्साहित किया जाना अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1 .
प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 (2) यातायात के साधन – यातायात के साधन मानव-जीवन में उपयोगी पदार्थों की आपूर्ति करते हैं। व्यापार, उद्योग, कृषि आदि सभी यातायात साधनों से प्रभावित होते हैं। पर्वतीय वनों से ढके हुए तथा मरुस्थलीय प्रदेशों में, जहाँ परिवहन के साधनों का विकास नहीं हो पाया है, अपेक्षाकृत कम जनसंख्या निवास करती है। गंगा-यमुना के विशाल मैदानों में रेल एवं सड़कों का जाल बिछा होने के कारण अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न
1 प्रश्न 2 प्रश्न 3
प्रश्न 4 प्रश्न 5
प्रश्न 6 प्रश्न 7
प्रश्न 8 बहुविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6. प्रश्न 7. कौन से कारक जनसंख्या की गुणवत्ता को बढ़ाता है?(ख) लोगों का स्वास्थ्य (ग) कौशल निर्माण (घ) इनमें सभी
निम्नलिखित में से कौन से कारक जनसंख्या की गुणवत्ता को बनाते हैं?किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि वहाँ के जन्मदर, मृत्युदर तथा प्रवास पर निर्भर करती है। जन्मदर को प्रति वर्ष प्रति हजार जनसंख्या पर जीवित बच्चों की संख्या से गणना की जाती है। इसी प्रकार मृत्यु दर को किसी क्षेत्र में प्रति हजार व्यक्तियों में से प्रति वर्ष मरने वाले व्यक्तियों की संख्या से गणना की जाती है।
जनसंख्या की गुणवत्ता क्या होती है?जनसंख्या (आबादी गुणवत्ता) की गुणवत्ता जनसंख्या अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है, आम तौर पर कुछ सामाजिक उत्पादक बलों, कुछ सामाजिक व्यवस्था, नैतिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक और श्रम कौशल के साथ लोगों के स्तर, और शारीरिक फिटनेस को दर्शाता है.
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