मैं नीर भरी दुःख की बदली में कौन सा रस है? - main neer bharee duhkh kee badalee mein kaun sa ras hai?

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 पद्य खण्ड Chapter 5 मै नीर भरी दुःख की बदली Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 5 मै नीर भरी दुःख की बदली

Bihar Board Class 9 Hindi मै नीर भरी दुःख की बदली Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
महादेवी अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’ क्यों कहती हैं?
उत्तर-
महादेवी वर्मा का जीवन सदैव वेदनामय रहा है। उनकी वेदना में ही विश्व की वेदना सन्निहित है। विश्व के जन जीवन की पीड़ा यातना, कष्ट, दुख आदि का संबंध महादेवी जी की व्यक्तिगत पीड़ा से है। कवयित्री ने अपने काव्य प्रतिभा द्वारा अपनी असहय वेदना और पीड़ा को मूर्त रूप दिया है। महादेवी जी की पीडा वेदना सार्वजनीन पीडा है वेदना है। इसी कारण वे अपने व्यक्तिगत जीवन की पीड़ा को नीर से भरी हुई बदली से तुलना करते हुए अन्तर्मन की भावना को व्यक्त किया है। ‘बदली’ यहाँ प्रतीक प्रयोग है। बदली जिस प्रकार जल कण के घनीभूत होने से अपने यथार्थ रूप को पाती है ठीक उसी प्रकार महादेवी जी का भी जीवन घनीभूत पीड़ाओं से व्यथित है। यह पीड़ा लौकिक भी है और अलौकिक भी। महादेवी रहस्यवादी कवियित्री हैं, इसी कारण उनपर भारतीय संतों एवं दार्शनिकों का भी प्रभाव है। इसी से प्रभावित होकर प्रकृति को माध्यम बनाकर महादेवी जी अपने हृदय के संवेदनशील उद्गारों को शब्द-बद्ध किया है।

उन्होंने प्रकृति के माध्यम से विभिन्न रूपों द्वारा अपने मन की घनीभूत वेदना को मूर्त रूप में चित्रण किया है। यह महादेवी जी की सांसारिक पीड़ा तो है ही, आध्यात्मिक पीड़ा भी है। महादेवी जी अंत:करण से ब्रह्म के प्रति भी समर्पित भाव से अपनी मुक्ति के लिए काव्य-सृजन द्वारा निवेदन प्रस्तुत करती हैं।

महादेवी जी ने अपनी प्रेम साधना की सफलता के लिए प्रकृति के व्यापक क्षेत्र को चुना। महादेवी जी के काव्य और जीवन में वेदनाधिक्य है। महादेवी जी अपने व्यथित हृदय की पीड़ा को सुनाने के लिए प्रकृति को ही सहृदय और उपयुक्त पात्र माना है।

मैं नीर भरी दुःख की बदली में कौन सा रस है? - main neer bharee duhkh kee badalee mein kaun sa ras hai?

प्रश्न 2.
निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें:
(क) मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का. भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव-जीवन अंकुर बन निकली।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘यामा’ काव्य कृति से संकलित की गई हैं। ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य पाठ का शीर्षक है। उपरोक्त पंक्तियों में महादेवी जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन की वेदना, पीड़ा एवं नए जीवन के अंकुरण की कामना व्यक्त की है। कवयित्री का कहना है कि क्षितिज के भृकुटी पर जो धूमिल घिरा हुआ है वह अविरल चिंता रूपी भार से व्यथित है। यानि चिंता की रेखाएँ सदैव उभरी हुई दिखाई पड़ती हैं। इस क्षितिज-भृकुटी की चिंता की समानता महादेवी जी की मन-मस्तिष्क की चिंता से की गई है। इसमें चिंता के अविरल और व्यापक रूप का वर्णन किया गया है।

महादेवी जी के हृदय रूपी क्षितिज में अनेक विषाद घिरे हुए हैं और कवयित्री के मानस पटल पर चिंता की रेखाएँ उभर आई हैं। जिस प्रकार, धूल के कण पर जल की वारिश होते ही उसमें छिपा बीज (जीवन) नव अंकुर रूप लेकर प्रगट हो जाता है। यहाँ कवयित्री के कहने का भाव यह है कि विषाद युक्त इस संसार में जब प्रकृति की कृपा होती है तब रजकण में छिपे हुए बीज भी नवजीवन को प्राप्त होते हैं। ये पंक्तियाँ रहस्यवादी भाव को अपने में समेटे हुए है। इस नश्वर संसार में सुख-दुख के बीच सारा जन-जीवन पीड़ित है। चिंताओं के मार से व्यथित है। लेकिन कवयित्री की दृष्टि में प्रकृति ही संतुलन रखने में समर्थ है। उपरोक्त पंक्तियों में अविरल चिंता खुद महादेवी जी का है। महादेवी जी कहती हैं कि मैं इस संसार में सदैव भार बनी रहीं। लेकिन प्रकृति ने ही इस वेदना को नए जीवन के नवांकुर के रूप में परिवर्तित कर सुखद क्षण प्रदान किया।

यहाँ प्रकृति के गुणों का भी चर्चा हुई है। जड़-चेतन, विश्व-वेदना, व्यक्तिगत वेदना, विश्व की चिंता ये सारी बातें महादेवी की जीवन वेदना से संपृक्त हैं। इस प्रकार महादेवी ने नवांकुर की सुखद कामना की है। विषाद युक्त वेदना से पीड़ित इस नश्वर संसार में प्रकृति का ही सहारा है। उसी का संबल है। इस प्रकार ब्रह्म और जीव के अटूट संबंधों को व्याख्यायित करते हुए महादेवी जी ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, वेदना, चिंता को सार्वजनीन स्वरूप प्रदान करते हुए कविता को विस्तृत भाव भूमि प्रदान की है।
नव सृजन की परिकलपना भी कवयित्री के मन में है।

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(ख) सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिरहन हो अंत खिली!
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने विषय में कहते हुए भावोद्गार को प्रकट किया कि इस जग में मेरे आने की याद में सुख की अनुभूति हुई है। लेकिन उस सुख में भी एक सिहरन थी क्योंकि महादेवी जी कन्या रूप में अवतरित हुई थीं। इन पंक्तियों में महादेवी जी ने अपने बारे में लिखा है कि उनके जन्म लेने पर जग में सुख की चर्चा तो हुई लेकिन उसमें भीतर ही भीतर एक विषाद भाव भी छिपा हुआ था।

इन पंक्तियों के द्वारा अपने होने के प्रति यानि स्वयं के अस्तित्व पर ध्यान आकृष्ट करते हुए कवयित्री ने जग के सुख-दुख की भी परिकल्पना की है। इन पंक्तियों में महादेवी जी की स्मृति तो जग खुशी-खुशी याद रखा किंतु अन्त:करण में यह सिहरन सुख का होते हुए कष्टप्रद था। रहस्यवादी भावनाओं के माध्यम से राग, सुख, सिहरन, जीवन, आगम और अंत पर महादेवी जी ने प्रकाश डाला है। इस भौतिक जगत में जीवन की गति यही है। सुख में भी दुख की छाया परिव्याप्त है। इस प्रकार आंतरिक मन में एक भय है, सिहरन है उसके अंत का कामना कवयित्री करती हैं। प्रकारान्तर से प्रकृति द्वारा जीवन और जगत के बीच हर्ष-विषाद का सूक्ष्म चित्रण करते हुए कवयित्री ने अपने व्यक्तिगत पीड़ा को भी व्यक्त किया है।

प्रश्न 3.
‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में महादेवी जी ने विश्व वेदना की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। इस विश्व में सभी जन आहत हैं। वे रो रहे हैं, तड़प रहे हैं लेकिन इस तडपन या रुदन में भी हँसी छिपी हई है। कहने का अर्थ यह है कि यह विश्व जनजीवन के करुण क्रंदन से परिव्याप्त है। इससे निजात पाने के लिए प्रकृति ही संबल है। यहाँ कवयित्री ने स्वयं अपने हृदय में परिव्याप्त विकल वेदना को समग्र विश्व की वेदना का रूप देकर चित्रित किया है।

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महादेवी जी का सारा जीवन वेदनाधिक्य से भरा हुआ है। जड़-चेतन की महत्ता की ओर भी कवयित्री ने हमारा ध्यान खींचा है। जिस प्रकार दीपक जलते हैं और विश्व को आलोकित करते हैं किन्त दीपक का स्वयं का जलना कितना चिंतनीय हैं इस पीड़ा को तो दीपक ही जान सकता है। इस प्रकार महादेवी जी की पीड़ा सर्वव्यापी है। विश्वजनीन है। उनकी व्यक्तिगत वेदना जन वेदना का रूप धारण करते हुए समग्र विश्व की वेदना का स्वरूप ले लेती है। क्रंदन में भी एक आनंद है, पीड़ा भी है लेकिन उस पीड़ा में जीनेवाले को जिस यथार्थ का दर्शन होता है वह दूसरा क्या जाने? इस प्रकार महादेवी की परिकल्पना विराट है। वह विराट सत्ता के साथ स्वयं को जोड़ते हुए अपनी पीड़ा को भी विराट स्वरूप प्रदान करती हैं। इस प्रकार महादेवी जी ने उक्त पंक्तियों में क्रंदन से आहत विश्व का चित्रण करते हुए उसमें छिपे हुए सूक्ष्म भाव तत्व की ओर हमारा ध्यान खींचा है।

प्रश्न 4.
कवयित्री किसे मलिन नहीं करने की बात करती है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि महादेवी द्वारा रचित काव्य पाठ ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ से ली गई हैं।
इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने पवित्र मन के भाव को व्यक्त किया है। उन्होंने स्वयं के बारे में कहा है कि मैं जिस पथ पर चली, उसे मलिन नहीं होने दिया। यानि यहाँ कवयित्री की आंतरिक भावना से जुड़ा हुई ये पंक्तियाँ हैं। कवयित्री की यह इच्छा है, आकांक्षा है कि वह जिस राह पर चले वह स्वच्छ पर सुंदर हो। वह पथ भी चिन्ह रहित हो।

कहने का भाव यह है कि अपने को ब्रह्म से जोड़ने की लालसा ही कवयित्री की आंतरिक आकांक्षा है। वही एक पथ है जो मलिन नहीं है वह राग, द्वेष, रूप-रंग, गंधहीन है। ईश्वर की आराधना, पूजा में ही प्रकृति का जुड़ाव है। महादेवी जी प्रकृति प्रेमी कवयित्री हैं। इसी कारण उन्होंने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से इस भौतिक जगत को बुराइयों से स्वयं को मुक्त रखते हुए सत्कर्मों की ओर ध्यान खींचा है। इसमें महादेवी जी की निर्मल हृदय का भावोद्गार है जो अत्यंत ही सराहनीय और – वंदनीय है। कवयित्री को भौतिक आशा-आकांक्षा अपने पाश में बाँधने में असमर्थ है वह चिरंतन सत्य मार्ग का अनुसरण करना चाहती है।

इन पंक्तियों में लौकिक एवं अलौकिक दोनों जगत की चर्चा है। निर्मलता, स्वच्छता और राग-द्वेष रहित जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की गई है। इस प्रकार महादेवी जी के चिंतन का धरातल ऊँचा और पवित्र है। उसमें सांसारिकता का लेशमात्र भी जगह नहीं है। इसमें निर्मल साधना एवं कर्मनिष्ठता पर चिंतन किया गया है।

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प्रश्न 5.
सप्रसंग व्याख्या करें:
“विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही।
उमड़ी कल थी मिट आज चली।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाट्य पुस्तक महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग स्वयं महादेवी जी के जीवन से जुड़ा हुआ है।

उपरोक्त पंक्तियों में महादेवी जी ने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देते हुए लिखा है कि इस विस्तृत जग में मेरा कोई नहीं है। मेरा इतिहास यही है कि मैं कल थी और आज नहीं हूँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने भौतिक जगत की नश्वरता पर ध्यान आकृष्ट किया है। उनका कहना है कि इस नश्वर संसार के किसी भी कोने में मेरा अपना कोई नहीं है। मेरा अस्तित्व कल था लेकिन आज नहीं है। कहने का सूक्ष्म भाव यह है कि मानव इस धराधाम पर आकर अपनी यशस्वी कृर्तियों के बल पर ही अमर बन सकता है। इतिहास रच सकता है। इन पंक्तियों में भौतिक और आध्यात्मिक जगत का यथार्थता का चित्रण करते हुए महादेवी जी ने अपना मंतव्य प्रकट किया है। इस प्रकार कर्म की ही प्रधानता है। नाम की नहीं।

इन पंक्तियों में महादेवी जी ने जीवन के यथार्थ पर प्रकाश डाला है। इस नश्वर जगत में सुर्कीर्तियों का ही इतिहास रहा है। नाम का नहीं। यह जगत कर्म प्रधान है। नाम प्रधान नहीं। इतिहास भी उसी को याद करता है जो कर्मवीर होते हैं।

प्रश्न 6.
‘नयनों में दीपक से जलते में ‘दीपक’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक से महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मैं नीर भरी दुख की बदली, काव्य-पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में ‘दीपक’ का प्रयोग स्वयं महादेवी जी के लिए हुआ है। जिस प्रकार दीपक सदैव जलता रहता है लेकिन दीपक के जलने की पीड़ा से वेदना से दुनिया वाकिफ नहीं होती और उसी तरह महादेवी जी की वेदना है, पीड़ा है। महादेवी जी जीवन भर दीपक की तरह जलती रही लेकिन उस भाव को दुनिया ने नहीं पकड़ा।

नयनों में दीपक से जलते यहाँ प्रतीक प्रयोग है महादेवी के नयनों में ही दीपक जल रहा है। कहने का भाव यह है कि अपने प्रियतम की प्रेम साधना में महादेवी जी की आँखों में अनवरत आशा का दीप जल रहा है। उसकी उन्हें प्रतीक्षा है उसके लिए तड़पन है, बेचैनी है पीड़ा है। इस प्रकार महादेवी जी की प्रेम-साधना को दीपक के सदृश चित्रित किया गया है। यहाँ दीपक का जलना, नयनों के दीपक से जलने के साथ तुलना की गई है। आँखों में भी मिलने की लालसा है। जलने की अनवरत क्रिया चल रही है। इस प्रकार तुलनात्मक चित्रण द्वारा कवियित्री अपने भावों को मूर्त रूप देने में सफल रही है। इसमें वेदना, आशा, मिलन की आकांक्षा का संकेत मिलता है। महादेवी जी की ये पंक्तियाँ रहस्यवादी है। इसमें प्रभु मिलन के लिए पीड़ा है, बेचैनी है। व्यग्रता है। यही कारण है कि नयनों में दीपक की भाँति ही दीपक जल रहा है। उसे प्रभु के आगमन एवं मिलन की उत्कट प्रतीक्षा है। इन पंक्तियों में सूक्ष्म भाव निहित है।

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प्रश्न 7.
कविता के अनुसार कवियित्री अपना परिचय किस रूप में दे रही हैं?
उत्तर-
‘मैं नीर भरी दुख की बदली ‘काव्य में महादेवी जी ने अपने पूरे जीवन की वेदना, पीड़ा को अभिव्यक्ति देकर एक नयी भावभूमि की स्थापना की है। महादेवी जी का जीवन मेघ से भरी हुई बदली के समान है। जिस प्रकार जल-कण से संघन होकर बादल वेदना से जम गया है ठीक उसी प्रकार महादेवी जी का भी जीवन है। उसके सिहरन है तो कभी निष्क्रियता भी झलकता है। महादेवी ने अपने जीवन की तुलना बादल से प्रतीक रूप में की है। वह कहती है कि बादल को देखकर मन प्रसन्न हो उठता है। मिलकर रोने से मन हल्का हो जाता है। ठीक उसी प्रकार आँख में जलते दीपक के समान पलकों से आँसू भरने के बूंद के रूप में निकलता है।

मेरे पग ऐसे चल रहे हैं जैसे मन में संगीत की लहरें उठ रहीं हों और श्वास में मधुरता का अहसास हो।
आकाश की नवरंगी घटाओं में ऐसा लगता है जैसे छाया में मलय बयार की खुशबू आ रही है।

कवियित्री का मानना है कि कन्या के जन्म होते ही हमेशा से जग की मुख पर चिंता की रेखाएँ उभर आती हैं। अर्थात् कन्या का जन्म लेना ही चिंता का विषय रहता है।

धूल के कण पर जल की बारिश होते ही उसमें छिपा बीज (जीवन) नया रूप धारण कर धरा पर अवतरित हो जाता है। ठीक उसी प्रकार महादेवी जी का भी जीवन है।

कवियित्री की कल्पना या आकांक्षा यह है कि वह जिस पथ पर चल रही हैं वह सुंदर और स्वच्छ हो, मलिन नहीं हो। वह पथ चिन्ह रहित भी हो।
अंत में कवियित्री कहती है कि इस विस्तृत जग में मेरा कोई नहीं है। मेरा इतिहास यही है कि मैं कल थी और आज नहीं हूँ। इन पंक्तियों में कवियित्री ने जीवन को दार्शनिक स्वरूप देते हुए तुलनात्मक पक्षों पर चिंतन किया है। यह जगत नश्वर और विषाद से भरा हुआ है। इस संसार में अमर रहने के लिए यशकामी होना होगा। यानि सुकर्म ही इतिहास में स्थान सुरक्षित रखेगा।

यह कविता रहस्यवादी भावों से भरी हुई है जिसमें महादेवी के व्यक्तिगत वेदना, पीड़ा का चित्रण तो है ही साथ ही विश्व के विराट स्वरूप की नश्वरता, क्षणभंगुरता की ओर भी ध्यान खींचा गया है।

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प्रश्न 8.
‘मेरा न कभी अपना होना’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उपरोक्त पंक्तियों में महादेवी जी ने इस लौकिक जगत की नश्वरता के बारे में ध्यान आकष्ट करते हए अपने व्यक्तिगत जीवन पर भी प्रकाश डाला है। महादेवी जी सरल एवं निष्कपट भाव से कहती हैं कि इस विस्तत संसार में मेरा अपना कोई नहीं है। इस विराट जगत के किसी भी कोना में मेरा कुछ नही है और न मेरा अपना कोई है। कहने का सूक्ष्म भाव यह है कि यह संसार नश्वर है। माया बंधन से यक्त है। कोई भी किसी का नहीं है। सबको एक न एक दिन मर जाना है। यह जीवन नश्वर है अतः इसके लिए सबसे सरल मार्ग है-सुकर्म और सुपथगामी बनना। इसमें रहस्यवादी भाव भरा हआ है। महादेवी जी ने अपने जीवन की नश्वरता और क्षणभंगरता की ओर सबका ध्यान आकष्ट किया है। महादेवी जी ने अपने व्यक्तिगत जीवन-कर्म को विश्व के जीवन-धर्म से जोड़कर अपनी कविताओं में वर्णन किया है।

प्रश्न 9.
कवियित्री ने अपने जीवन में आँसू को अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन माना है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य पाठ में महादेवी जी ने अपनी भावनाओं को प्रबल रूप में प्रस्तुत करने के लिए आँसू को आधार बनाया है। आँसू महत्वपूर्ण साधन इसीलिए माना गया है क्योंकि आँसू जब बहता है तब यह साफ दृष्टिगत होता है कि भीतर कोई न कोई घनीभूत पीड़ा है वेदना है।

अपनी कविता में महादेवी जी ने क्रंदन में आहत विश्व हँमा, पलकों में निर्झरिणी मचली द्वारा आँस की महत्ता को प्रतिष्ठा दी है। जब व्यक्ति अत्यधिक । पीड़ित होता है। असह्य कप्ट से पीड़ित होता है तो उसकं आँखों सं बरबस आँसू बह चलते हैं आँसू व्यक्ति की आंतरिक पीड़ा को प्रकट करने में महत्वपूर्ण साधन है। इस प्रकार रज-कण पर जल-कणा हो बरसी में भी हृदय की वेदना को आँसू रूप में व्यक्त करते हुए कविता के सृजन में सफलता प्राप्त की है।

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प्रश्न 10.
इस कविता में ‘दख’ और ‘आँसू’ कहाँ-कहाँ, किन-किन रूपों में आते हैं? उनकी सार्थकता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य-पाठ में कवयित्री ने दु:ख और ‘आँसू’ के लिए कई काव्य पंक्तियों की रचना की हैं। उन्होंन ‘आँसू’ को कई रूपों में व्याख्यायित किया है। ‘स्पंदन में चिर निस्पंद’ में दुख की व्याख्या की है। ‘क्रदन में आहत विश्व’ पंक्ति में अपनी मनोव्यथा के साथ चिर विश्व व्यथा को वर्णन करते हुए ‘आँसू’ एवं दुख के विश्वजनीन रूप को प्रकट किया है। कवियित्री की व्यक्तिगत पीड़ा साव की पीड़ा है, वेदना है। ठीक उसी प्रकार कवियित्री के आँसू सकल जगत के आँसू हैं, उनका रूप विश्वव्यापी है।।

नयनों में दीपक से जलते पंक्तियों में जलन एवं तड़पन के साथ पिघलते आँसू के ज्वालामय रूप का चित्र खींचा गया है। इसमें हृदय की जलन भी है, तड़पन भी है। उसी जलन की पीड़ा से पीड़ित मन जब विकल-व्यथित हो जाता है तब पलकों से आँसू की नदी बहने लगते है।
इस प्रकार कवयित्री ने अपनी कविता में स्पंदन में चिर निस्पंद जीवन की वेदना, विवशता, दुख की व्याख्या की है। क्रंदन में विश्व की विराटता का दर्शन कराया है। सारा विश्व चित्कार कर रहा है। आहत है, शोक संतप्त है। विरल व्यथित है। नयनों में दीपक जलने का अर्थ घनीभूत पीड़ा हृदय में अवस्थित है जो नयनों में जलन के रूप में दीपक की तरह चित्रित किया गया है। पलकों में उमड़े आँसू के सैलाव ने नदी का रूप धारण कर लिए है।

रज-कण पर जल-कण हो बरसी यानि बारिश के रूप में आँसू को चित्रित किया गया है। इस प्रकार कवयित्री का दुख विश्वव्यापी रूप को अख्तियार कर लिया है। कवयित्री का इस नश्वर संसार में आना भी सिहरन यानि चिंता का कारण बन गया है। परिचय इतना इतिहास यही उमड़ा कल था मिट आज चली यानि अस्तित्व के मिटने का गम भी दुख का चित्रित रूप है। इस संसार में अपना कोई नहीं होना यानि अकेलापन भी दुख का ही चित्रित रूप है। इस प्रकार आँसू और दुःख को कई रूपों में चित्रित करते हुए कवयित्री ने अपने हृदयोद्गार को प्रकट किया है।

नीचे लिख्ने पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखें।

1. मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय-बयार पली! :
मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
(ख) ‘मेरा पग-पग संगीत भरा’ से कवयित्री का क्या अर्थ है?
(ग) ‘श्वासों से स्वप्न-पराग झरा’ का अर्थ स्पष्ट करें।
(घ) “मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल’ से कवयित्री क्या कहना चाहती है?
(ङ) ‘नवजीवन अंकुर बन निकली’का तात्पर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवि-महादेवी वर्मा, कविमा-मैं नीर-भरी दुःख की बदली

(ख) इस कथन से कवयित्री के कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार जल से भरी बदली रह-रहकर मंद स्वर में गरजकर अपने सजग संगीत का परिचय देती है उसी तरह कवयित्री के जीवन का क्षण-क्षण भी प्रियतम के रहस्मय प्रेम के संगीत से भरा हुआ है।

(ग) यहाँ महादेवी वर्मा यह कहना चाहती है कि उसकी हर साँस से सपनों का पराग झरता रहता है, अर्थात् उसकी साँसों में सुखद कल्पनाओं और प्रेम की सुगंध विद्यमान रहती है। इस सुखद कल्पना और प्रेम के कारण महादेवी वर्मा का संपूर्ण जीवन सुगंध से, अर्थात् प्रेममय मधुर अनुभूति से भरा हुआ है।

(घ) कवयित्री अपनी तुलना नीर-भरी बदली से करती है। नीर-भरी बदली का जन्म क्षितिज के तल पर धुंधली लकीर के रूप में सर्वप्रथम होता है। उसका भी जन्म इस संसार के एक कोने में एक लघु अस्तित्व के रूप में हुआ है। नीर-भरी बदली धूलकणों पर बरसकर वहाँ नवांकुरों के रूप में नवजीवन का संचार करती है। उसी तरह जब महादेवी वर्मा की वेदना आँसुओं के रूप में बरस पड़ती है तब फिर से उसके नए जीवन में नई चेतना का नव संसार बस जाता है।

(ङ) इस प्रश्न के उत्तर के लिए ऊपर लिखित प्रश्नोत्तर ‘घ’ के अंतिम खंड को पढ़ें।

मैं नीर भरी दुःख की बदली में कौन सा रस है? - main neer bharee duhkh kee badalee mein kaun sa ras hai?

2. पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिन्ह दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन को अंत खिली!
विस्तृत नभ को कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
(ख) “पथ को न मलिन करता आना’, पद-चिन्ह दे जाता जाना’ पद्य-पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) कवयित्री ने इस पद्यांश में संसार से अपना कैसा संबंध बताया है? स्पष्ट करें।
(घ) कवयित्री के जीवन का परिचय और इतिहास क्या है?
(ङ) ‘उमड़ी कल थी मिट आज चली’ प्रध-पंक्ति में जीवन के किस
सत्य और दर्शन की व्याख्या की गई है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवयित्री-महादेवी वर्मा कविता-मैं नीर भरी दुख की बदली ।

(ख) कवयित्री अपनी तुलना नीर-भरी बदली से करती है। बदली कुछ देर के लिए आकाश में छाती है और फिर बरसकर अस्तित्वविहीन हो जाती है। वहाँ आकाश में उसके आने और फिर उसके वहाँ से चले जाने के इस आवागमन का कोई चिन्ह नहीं रह जाता है जिससे कि आकाश का पथ मलिन या गंदा हो जाए। इसी तरह महादेवी वर्मा के इस जीवन-तल पर जन्म और मृत्यु के रूप में आवागमन से उनके जीवन-पथ पर कोई अस्तित्व चिन्ह उसे गंदा करने के लिए नहीं रह जाता है

मैं नीर भरी दुःख की बदली में कौन सा रस है? - main neer bharee duhkh kee badalee mein kaun sa ras hai?

(ग) कवयित्री के अनुसार उसका इस संसार से एकदम वैसा ही अस्थायी संबंध है जिस प्रकार नीर-भरी बदली का आकाश से अस्थायी संबंध रहता है।
कवयित्री केवल अपने जीवनकाल तक ही अस्थायी रूप से इस संसार से जुड़ी हुई है। जन्म के रूप में आना और फिर मौत के रूप में चला जाना-इसी जन्म और मरण के बीच की लघु अवधि कवयित्री के संसार से अस्थायी संबंध की अस्थायी अवधि है।

(घ) कवयित्री के जीवन का परिचय और जीवन का इतिहास यही है कि उसने इस संसार में जन्म लिया और कुछ वर्षों के बाद यहाँ समय बिताकर यहाँ ये उसे चला जाना है। उसके जन्म और मरण के बीच की अवधि ही उसके जीवन का परिचय और इतिहास है।

(ङ) इस कथन के माध्यम से कवयित्री जीवन के इस शाश्वत सत्य और दर्शन का उद्घाटन करती है कि मानव का इस धरती से अस्थायी संबंधी है। यहाँ जो जन्मा है, उसे अवश्य ही मौत का वरण करना है। हमारा जीवन स्थायी और शाश्वत नहीं है जैसे नीर-भरी बदली का आकाश से स्थायी संबंध नहीं है। जो घटा घिरी उसे फिर अस्तित्वविहीन हो ही जाना है।

मैं नीर भरी दुख की बदली में कौन सा रस है?

Expert-Verified Answer. नीर भरी दुख की बदली में कौन सा अलंकार है​? रूपक अलंकार में जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में भिन्नता दर्शायी नहीं जाती वह एक समान होते है, तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।

नीर भरी दुःख की बदली कविता का मूल भाव क्या है?

Answer. Answer: यह कविता महादेवी वर्मा की कविता हैं जिसका अर्थ यह है कि एक लड़की माटी की गुड़िया के समान है जिसे अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर टूटने और बिखरने का डर है. उसकी जिंदगी में परेशानियों का सफर हमेशा चलता रहता है.

मैं नीर भरी दुख की बदली कविता में कवयित्री के नयनों में क्या जलता?

मैं नीर भरी दुख की बदली! नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली ! नभ के नव रंग, बुनते दुकूल, छाया में मलय-बयार पली !