Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 पद्य खण्ड Chapter 5 मै नीर भरी दुःख की बदली Text Book Questions and Answers, Summary, Notes. Show
BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 5 मै नीर भरी दुःख की बदलीBihar Board Class 9 Hindi मै नीर भरी दुःख की बदली Text Book Questions and Answersप्रश्न 1. उन्होंने प्रकृति के माध्यम से विभिन्न रूपों द्वारा अपने मन की घनीभूत वेदना को मूर्त रूप में चित्रण किया है। यह महादेवी जी की सांसारिक पीड़ा तो है ही, आध्यात्मिक पीड़ा भी है। महादेवी जी अंत:करण से ब्रह्म के प्रति भी समर्पित भाव से अपनी मुक्ति के लिए काव्य-सृजन द्वारा निवेदन प्रस्तुत करती हैं। महादेवी जी ने अपनी प्रेम साधना की सफलता के लिए प्रकृति के व्यापक क्षेत्र को चुना। महादेवी जी के काव्य और जीवन में वेदनाधिक्य है। महादेवी जी अपने व्यथित हृदय की पीड़ा को सुनाने के लिए प्रकृति को ही सहृदय और उपयुक्त पात्र माना है। प्रश्न 2. महादेवी जी के हृदय रूपी क्षितिज में अनेक विषाद घिरे हुए हैं और कवयित्री के मानस पटल पर चिंता की रेखाएँ उभर आई हैं। जिस प्रकार, धूल के कण पर जल की वारिश होते ही उसमें छिपा बीज (जीवन) नव अंकुर रूप लेकर प्रगट हो जाता है। यहाँ कवयित्री के कहने का भाव यह है कि विषाद युक्त इस संसार में जब प्रकृति की कृपा होती है तब रजकण में छिपे हुए बीज भी नवजीवन को प्राप्त होते हैं। ये पंक्तियाँ रहस्यवादी भाव को अपने में समेटे हुए है। इस नश्वर संसार में सुख-दुख के बीच सारा जन-जीवन पीड़ित है। चिंताओं के मार से व्यथित है। लेकिन कवयित्री की दृष्टि में प्रकृति ही संतुलन रखने में समर्थ है। उपरोक्त पंक्तियों में अविरल चिंता खुद महादेवी जी का है। महादेवी जी कहती हैं कि मैं इस संसार में सदैव भार बनी रहीं। लेकिन प्रकृति ने ही इस वेदना को नए जीवन के नवांकुर के रूप में परिवर्तित कर सुखद क्षण प्रदान किया। यहाँ प्रकृति के गुणों का भी चर्चा हुई है। जड़-चेतन, विश्व-वेदना, व्यक्तिगत वेदना, विश्व की चिंता ये सारी बातें महादेवी की जीवन वेदना से संपृक्त हैं। इस प्रकार महादेवी ने नवांकुर की सुखद कामना की है। विषाद युक्त वेदना से पीड़ित इस नश्वर संसार में प्रकृति का ही सहारा है। उसी का संबल है। इस प्रकार ब्रह्म और जीव के अटूट संबंधों को व्याख्यायित करते हुए महादेवी जी ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, वेदना, चिंता को सार्वजनीन स्वरूप प्रदान करते हुए कविता को विस्तृत भाव भूमि प्रदान की है। (ख) सुधि मेरे आगम की जग में इन पंक्तियों के द्वारा अपने होने के प्रति यानि स्वयं के अस्तित्व पर ध्यान आकृष्ट करते हुए कवयित्री ने जग के सुख-दुख की भी परिकल्पना की है। इन पंक्तियों में महादेवी जी की स्मृति तो जग खुशी-खुशी याद रखा किंतु अन्त:करण में यह सिहरन सुख का होते हुए कष्टप्रद था। रहस्यवादी भावनाओं के माध्यम से राग, सुख, सिहरन, जीवन, आगम और अंत पर महादेवी जी ने प्रकाश डाला है। इस भौतिक जगत में जीवन की गति यही है। सुख में भी दुख की छाया परिव्याप्त है। इस प्रकार आंतरिक मन में एक भय है, सिहरन है उसके अंत का कामना कवयित्री करती हैं। प्रकारान्तर से प्रकृति द्वारा जीवन और जगत के बीच हर्ष-विषाद का सूक्ष्म चित्रण करते हुए कवयित्री ने अपने व्यक्तिगत पीड़ा को भी व्यक्त किया है। प्रश्न 3. महादेवी जी का सारा जीवन वेदनाधिक्य से भरा हुआ है। जड़-चेतन की महत्ता की ओर भी कवयित्री ने हमारा ध्यान खींचा है। जिस प्रकार दीपक जलते हैं और विश्व को आलोकित करते हैं किन्त दीपक का स्वयं का जलना कितना चिंतनीय हैं इस पीड़ा को तो दीपक ही जान सकता है। इस प्रकार महादेवी जी की पीड़ा सर्वव्यापी है। विश्वजनीन है। उनकी व्यक्तिगत वेदना जन वेदना का रूप धारण करते हुए समग्र विश्व की वेदना का स्वरूप ले लेती है। क्रंदन में भी एक आनंद है, पीड़ा भी है लेकिन उस पीड़ा में जीनेवाले को जिस यथार्थ का दर्शन होता है वह दूसरा क्या जाने? इस प्रकार महादेवी की परिकल्पना विराट है। वह विराट सत्ता के साथ स्वयं को जोड़ते हुए अपनी पीड़ा को भी विराट स्वरूप प्रदान करती हैं। इस प्रकार महादेवी जी ने उक्त पंक्तियों में क्रंदन से आहत विश्व का चित्रण करते हुए उसमें छिपे हुए सूक्ष्म भाव तत्व की ओर हमारा ध्यान खींचा है। प्रश्न 4. कहने का भाव यह है कि अपने को ब्रह्म से जोड़ने की लालसा ही कवयित्री की आंतरिक आकांक्षा है। वही एक पथ है जो मलिन नहीं है वह राग, द्वेष, रूप-रंग, गंधहीन है। ईश्वर की आराधना, पूजा में ही प्रकृति का जुड़ाव है। महादेवी जी प्रकृति प्रेमी कवयित्री हैं। इसी कारण उन्होंने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से इस भौतिक जगत को बुराइयों से स्वयं को मुक्त रखते हुए सत्कर्मों की ओर ध्यान खींचा है। इसमें महादेवी जी की निर्मल हृदय का भावोद्गार है जो अत्यंत ही सराहनीय और – वंदनीय है। कवयित्री को भौतिक आशा-आकांक्षा अपने पाश में बाँधने में असमर्थ है वह चिरंतन सत्य मार्ग का अनुसरण करना चाहती है। इन पंक्तियों में लौकिक एवं अलौकिक दोनों जगत की चर्चा है। निर्मलता, स्वच्छता और राग-द्वेष रहित जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की गई है। इस प्रकार महादेवी जी के चिंतन का धरातल ऊँचा और पवित्र है। उसमें सांसारिकता का लेशमात्र भी जगह नहीं है। इसमें निर्मल साधना एवं कर्मनिष्ठता पर चिंतन किया गया है। प्रश्न 5. उपरोक्त पंक्तियों में महादेवी जी ने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देते हुए लिखा है कि इस विस्तृत जग में मेरा कोई नहीं है। मेरा इतिहास यही है कि मैं कल थी और आज नहीं हूँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने भौतिक जगत की नश्वरता पर ध्यान आकृष्ट किया है। उनका कहना है कि इस नश्वर संसार के किसी भी कोने में मेरा अपना कोई नहीं है। मेरा अस्तित्व कल था लेकिन आज नहीं है। कहने का सूक्ष्म भाव यह है कि मानव इस धराधाम पर आकर अपनी यशस्वी कृर्तियों के बल पर ही अमर बन सकता है। इतिहास रच सकता है। इन पंक्तियों में भौतिक और आध्यात्मिक जगत का यथार्थता का चित्रण करते हुए महादेवी जी ने अपना मंतव्य प्रकट किया है। इस प्रकार कर्म की ही प्रधानता है। नाम की नहीं। इन पंक्तियों में महादेवी जी ने जीवन के यथार्थ पर प्रकाश डाला है। इस नश्वर जगत में सुर्कीर्तियों का ही इतिहास रहा है। नाम का नहीं। यह जगत कर्म प्रधान है। नाम प्रधान नहीं। इतिहास भी उसी को याद करता है जो कर्मवीर होते हैं। प्रश्न 6. नयनों में दीपक से जलते यहाँ प्रतीक प्रयोग है महादेवी के नयनों में ही दीपक जल रहा है। कहने का भाव यह है कि अपने प्रियतम की प्रेम साधना में महादेवी जी की आँखों में अनवरत आशा का दीप जल रहा है। उसकी उन्हें प्रतीक्षा है उसके लिए तड़पन है, बेचैनी है पीड़ा है। इस प्रकार महादेवी जी की प्रेम-साधना को दीपक के सदृश चित्रित किया गया है। यहाँ दीपक का जलना, नयनों के दीपक से जलने के साथ तुलना की गई है। आँखों में भी मिलने की लालसा है। जलने की अनवरत क्रिया चल रही है। इस प्रकार तुलनात्मक चित्रण द्वारा कवियित्री अपने भावों को मूर्त रूप देने में सफल रही है। इसमें वेदना, आशा, मिलन की आकांक्षा का संकेत मिलता है। महादेवी जी की ये पंक्तियाँ रहस्यवादी है। इसमें प्रभु मिलन के लिए पीड़ा है, बेचैनी है। व्यग्रता है। यही कारण है कि नयनों में दीपक की भाँति ही दीपक जल रहा है। उसे प्रभु के आगमन एवं मिलन की उत्कट प्रतीक्षा है। इन पंक्तियों में सूक्ष्म भाव निहित है। प्रश्न 7. मेरे पग ऐसे चल रहे हैं जैसे मन में संगीत की लहरें उठ रहीं हों और श्वास में मधुरता का अहसास हो। कवियित्री का मानना है कि कन्या के जन्म होते ही हमेशा से जग की मुख पर चिंता की रेखाएँ उभर आती हैं। अर्थात् कन्या का जन्म लेना ही चिंता का विषय रहता है। धूल के कण पर जल की बारिश होते ही उसमें छिपा बीज (जीवन) नया रूप धारण कर धरा पर अवतरित हो जाता है। ठीक उसी प्रकार महादेवी जी का भी जीवन है। कवियित्री की कल्पना या आकांक्षा यह है कि वह जिस पथ पर चल रही हैं वह सुंदर और स्वच्छ हो, मलिन नहीं हो। वह पथ चिन्ह रहित भी हो। यह कविता रहस्यवादी भावों से भरी हुई है जिसमें महादेवी के व्यक्तिगत वेदना, पीड़ा का चित्रण तो है ही साथ ही विश्व के विराट स्वरूप की नश्वरता, क्षणभंगुरता की ओर भी ध्यान खींचा गया है। प्रश्न 8. प्रश्न 9. अपनी कविता में महादेवी जी ने क्रंदन में आहत विश्व हँमा, पलकों में निर्झरिणी मचली द्वारा आँस की महत्ता को प्रतिष्ठा दी है। जब व्यक्ति अत्यधिक । पीड़ित होता है। असह्य कप्ट से पीड़ित होता है तो उसकं आँखों सं बरबस आँसू बह चलते हैं आँसू व्यक्ति की आंतरिक पीड़ा को प्रकट करने में महत्वपूर्ण साधन है। इस प्रकार रज-कण पर जल-कणा हो बरसी में भी हृदय की वेदना को आँसू रूप में व्यक्त करते हुए कविता के सृजन में सफलता प्राप्त की है। प्रश्न 10. नयनों में दीपक से जलते पंक्तियों में जलन एवं तड़पन के साथ पिघलते आँसू के ज्वालामय रूप का चित्र खींचा गया है। इसमें हृदय की जलन भी है, तड़पन भी है। उसी जलन की पीड़ा से पीड़ित मन जब विकल-व्यथित हो जाता है तब पलकों से आँसू की नदी बहने लगते है। रज-कण पर जल-कण हो बरसी यानि बारिश के रूप में आँसू को चित्रित किया गया है। इस प्रकार कवयित्री का दुख विश्वव्यापी रूप को अख्तियार कर लिया है। कवयित्री का इस नश्वर संसार में आना भी सिहरन यानि चिंता का कारण बन गया है। परिचय इतना इतिहास यही उमड़ा कल था मिट आज चली यानि अस्तित्व के मिटने का गम भी दुख का चित्रित रूप है। इस संसार में अपना कोई नहीं होना यानि अकेलापन भी दुख का ही चित्रित रूप है। इस प्रकार आँसू और दुःख को कई रूपों में चित्रित करते हुए कवयित्री ने अपने हृदयोद्गार को प्रकट किया है। नीचे लिख्ने पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखें। 1. मेरा पग-पग संगीत भरा, (ख) इस कथन से कवयित्री के कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार जल से भरी बदली रह-रहकर मंद स्वर में गरजकर अपने सजग संगीत का परिचय देती है उसी तरह कवयित्री के जीवन का क्षण-क्षण भी प्रियतम के रहस्मय प्रेम के संगीत से भरा हुआ है। (ग) यहाँ महादेवी वर्मा यह कहना चाहती है कि उसकी हर साँस से सपनों का पराग झरता रहता है, अर्थात् उसकी साँसों में सुखद कल्पनाओं और प्रेम की सुगंध विद्यमान रहती है। इस सुखद कल्पना और प्रेम के कारण महादेवी वर्मा का संपूर्ण जीवन सुगंध से, अर्थात् प्रेममय मधुर अनुभूति से भरा हुआ है। (घ) कवयित्री अपनी तुलना नीर-भरी बदली से करती है। नीर-भरी बदली का जन्म क्षितिज के तल पर धुंधली लकीर के रूप में सर्वप्रथम होता है। उसका भी जन्म इस संसार के एक कोने में एक लघु अस्तित्व के रूप में हुआ है। नीर-भरी बदली धूलकणों पर बरसकर वहाँ नवांकुरों के रूप में नवजीवन का संचार करती है। उसी तरह जब महादेवी वर्मा की वेदना आँसुओं के रूप में बरस पड़ती है तब फिर से उसके नए जीवन में नई चेतना का नव संसार बस जाता है। (ङ) इस प्रश्न के उत्तर के लिए ऊपर लिखित प्रश्नोत्तर ‘घ’ के अंतिम खंड को पढ़ें। 2. पथ को न मलिन करता आना, (ख) कवयित्री अपनी तुलना नीर-भरी बदली से करती है। बदली कुछ देर के लिए आकाश में छाती है और फिर बरसकर अस्तित्वविहीन हो जाती है। वहाँ आकाश में उसके आने और फिर उसके वहाँ से चले जाने के इस आवागमन का कोई चिन्ह नहीं रह जाता है जिससे कि आकाश का पथ मलिन या गंदा हो जाए। इसी तरह महादेवी वर्मा के इस जीवन-तल पर जन्म और मृत्यु के रूप में आवागमन से उनके जीवन-पथ पर कोई अस्तित्व चिन्ह उसे गंदा करने के लिए नहीं रह जाता है (ग) कवयित्री के अनुसार उसका इस संसार से एकदम वैसा ही अस्थायी संबंध है जिस प्रकार नीर-भरी बदली का आकाश से अस्थायी संबंध रहता है। (घ) कवयित्री के जीवन का परिचय और जीवन का इतिहास यही है कि उसने इस संसार में जन्म लिया और कुछ वर्षों के बाद यहाँ समय बिताकर यहाँ ये उसे चला जाना है। उसके जन्म और मरण के बीच की अवधि ही उसके जीवन का परिचय और इतिहास है। (ङ) इस कथन के माध्यम से कवयित्री जीवन के इस शाश्वत सत्य और दर्शन का उद्घाटन करती है कि मानव का इस धरती से अस्थायी संबंधी है। यहाँ जो जन्मा है, उसे अवश्य ही मौत का वरण करना है। हमारा जीवन स्थायी और शाश्वत नहीं है जैसे नीर-भरी बदली का आकाश से स्थायी संबंध नहीं है। जो घटा घिरी उसे फिर अस्तित्वविहीन हो ही जाना है। मैं नीर भरी दुख की बदली में कौन सा रस है?Expert-Verified Answer. नीर भरी दुख की बदली में कौन सा अलंकार है? रूपक अलंकार में जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में भिन्नता दर्शायी नहीं जाती वह एक समान होते है, तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
नीर भरी दुःख की बदली कविता का मूल भाव क्या है?Answer. Answer: यह कविता महादेवी वर्मा की कविता हैं जिसका अर्थ यह है कि एक लड़की माटी की गुड़िया के समान है जिसे अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर टूटने और बिखरने का डर है. उसकी जिंदगी में परेशानियों का सफर हमेशा चलता रहता है.
मैं नीर भरी दुख की बदली कविता में कवयित्री के नयनों में क्या जलता?मैं नीर भरी दुख की बदली! नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली ! नभ के नव रंग, बुनते दुकूल, छाया में मलय-बयार पली !
|