Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 बड़े घर की बेटीRBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नRBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न Show प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. उसने अपमान करने वाले देवर को क्षमा करते हुए घर छोड़कर जाने से रोककर घर को बिखरने से बचा लिया। उसको यह विवेकपूर्ण एवं उदारतापूर्ण निर्णय ही उसे बड़प्पन प्रदान करता है। आनंदी के इस कृत्य के बारे में जिसने भी सुना, उसी ने उसकी उदारता की सराहना करते हुए उसे बड़े घर की बेटी कहा। अतः कहानी शीर्षक ‘बड़े घर की बेटी’ पूर्णरूपेण सार्थक है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नRBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आनंदी एक आदर्श नारी पात्र है जिसका चरित्र प्रेरणास्पद है। प्रश्न 7.
इस प्रकार श्रीकंठ का चरित्र अनेक गुणों से ग्रण्डित बताया गया है। प्रश्न 8. बड़े घर की बेटी लेखक परिचय मुंशी प्रेमचन्द का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव में सन् 1880 ई. में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। बनारस में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर वे अध्यापन कार्य करने लगे। आगे की पढ़ाई उन्होंने स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में ही की और डिप्टी इन्स्पेक्टर बने। बाद में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर सरकारी नौकरी छोड़ दी। प्रारम्भ में ये उर्दू में लिखने लगे। इनकी ‘सोजे वतन’ रचना को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात् वे प्रेमचन्द नाम से साहित्य रचना करने लगे। ‘हंस’ पत्रिका के संपादक के रूप में भी इन्होंने जन-जागरण का कार्य किया। प्रेमचन्द की रचनाएँ आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी धरातल पर आधारित हैं, जिनमें ग्रामीण जीवन को प्रभावी ढंग से उभारते हुए जीवन-संघर्ष की सशक्त अभिव्यक्ति की है। आपकी रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रही हैं। प्रेमचन्द ने हंस के अतिरिक्त मर्यादा, माधुरी तथा जागरण पत्रिकाओं का सम्पादन कार्य भी किया। इन्होंने कुछ समय फिल्मों में अभिनय भी किया। सन् 1936 में इनका निधन हो गया। रचनाएँ- पाठ-सार श्रीकण्ठ का परिचय–ठाकुर साहब के बड़े बेटे श्रीकण्ठ सिंह बी.ए. पास, परिश्रमी, आदर्शवादी और गाँव में सम्मानित, सरकारी दफ्तर में नौकर थे। अंग्रेजी डिग्रीधारी होकर भी अंग्रेजी प्रथाओं से प्रेम नहीं रखते थे। भारतीय सामाजिक परम्पराओं के पोषक और पक्षधर थे। संयुक्त परिवार के प्रबल समर्थक थे। श्रीकण्ठ अपने छोटे भाई से बहुत स्नेह रखते थे। लालबिहारी सिंह ठाकुर बेनीमाधव सिंह का छोटा बेटा लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। वह उजड्ड स्वभाव का युवक था परन्तु अपने बड़े भाई श्रीकण्ठ का वह बहुत सम्मान करता था। आनंदी-आनन्दी के पिता भूपसिंह एक छोटी रियासत के ताल्लुकेदार थे। उच्च कुल, विशाल भवन और सभी प्रकार के राजसी ठाठ मौजूद थे। उनकी सात बेटियों में आनंदी चौथी बेटी थी। उन्होंने श्रीकण्ठ को योग्य युवक मानकर आनन्दी का विवाह उससे कर दिया। देवर-भौजाई के बीच कलह की घटना–एक दिन लालबिहारी सिंह दोपहर के समय दो चिड़ियाँ लेकर आया और भाभी से उन्हें पकाने के लिए कहा। आनंदी भोजन बनाकर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी, अब पुनः मांस पकाने बैठी। घी के बर्तन में पाव भर के लगभग घी था जो उसने मांस में डाल दिया अत: दाल में ऊपर से डालने को घी नहीं बचा था। इसी बात को लेकर देवर-भौजाई में तकरार बढ़ गई। लालबिहारी सिंह ने आनंदी के पीहर को लेकर व्यंग्यक्ति की और आवेश में आकर उसने उस पर खड़ाऊ फेंकी, जिसे आनन्दी ने हाथ से रोका। इस घटना से आनंदी खून का चूंट पीकर रह गई और शनिवार को श्रीकण्ठ का घर आने का इन्तजार करने लगी। श्रीकण्ठ से आनंदी की शिकायत-शनिवार को जब श्रीकण्ठ घर आये तो लालबिहारी सिंह ने एकांत पाकर उससे आनंदी की शिकायत की। बेनीमाधाव ने भी साक्षी दी और कहा कि बहू-बेटियों को मर्दो के मुँह नहीं लगना चाहिए। श्रीकण्ठ जब आनन्दी के कक्ष में गये, तो उसने देवर के दुर्व्यवहार का पूरा विवरण सुनाया। इससे श्रीकण्ठ क्रोधावेश में आ गये। श्रीकण्ठ की पिता से बातचीत एवं नाराजगी–सुबह होते ही श्रीकण्ठ ने अपने पिता से जाकर कहा कि दादी अब इस घर में मेरा निर्वाह नहीं होगा। यहाँ घर में बड़ों का मान-सम्मान नहीं रह गया है। इस घर में अब या तो लालबिहारी रहेगा या वही रहेगा। इस बात को सुनकर लालबिहारी ने अपनी भाभी से कहा कि वह घर छोड़कर जा रहा है। आनंदी ने देखा कि घर बिखर रहा है, घर की मान-प्रतिष्ठा मिट्टी में मिलने वाली है, तो उसने तुरन्त अपना अपमान भूलकर लालबिहारी को जाने से रोक लिया। इस प्रकार एक बड़े घर की बेटी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए घर को बिखरने से बचा लिया। गाँव में जिसने भी यह वृत्तान्त सुना, उसी ने आनंदी के व्यवहार की सराहना करते हुए कहा कि बड़े घर की बेटी ऐसी ही होती है जो बिगड़ता हुआ काम बना लेती है। RBSE Solutions for Class 11 Hindi |