बाजार जाते समय मन खाली नहीं होना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य को ठीक तरह पता होना चाहिए कि उसको किस चीज की आवश्यकता है। बाजार से उपयोगी चीजें खरीदने में ही बाजार की सार्थकता है। इससे मनुष्य बाजार के आकर्षण में पड़कर अनावश्यक चीजें नहीं खरीदता । इस तरह वह फिजूलखर्ची से और बाजार के जादू की जकड़ से बचता है। इससे चीजों की अधि किता के कारण उत्पन्न असुविधा से भी उसकी रक्षा होती है। Show निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये: 1. लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि बाजा़र का जादू हमारे सिर चढ़कर बोलता है। बाजा़र का जादू औंखों की राह काम करता है। हम बाजार में चीजों के आकर्षण में खो जाते हैं और उन्हें खरीदने को विवश हो जाते हैं। 281 Views बाजा़र पर आधारित लेख नकली सामान पर नकेल ज़रूरी
का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा करें: 1. उत्पाद कंपनियाँ अपने नैतिक दायित्वों का निर्वाह इसलिए नहीं कर रही हैं क्योंकि उन पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। ये कंपनियाँ गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे रहीं बल्कि
अधिक माल बेचने की होड़ में नकली और घटिया सामान का उत्पादन कर रही हैं। इन उत्पाद कंपनियों का पूरा ध्यान विज्ञापन पर बेतहाशा पैसा खर्च करने पर रहता था ताकि उनका अधिक-से-अधिक माल बिक सके। बाजा़र दर्शन पाठ मे बाजा़र जाने या न जाने के संदर्भ मे मन में कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने
अनुभवों का वर्णन कीजिए। (ग) मन बंद हो, (घ) मन में नकार हो। (क) बाजा़र जाने के संदर्भ में एक स्थिति यह बताई गई हैं कि ही हम खाली मन और भरी जब बाजा़र जाते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि हम बाजार से अनाप-शनाप चीजें खरीद लाते हैं। हम तब तक चीजें खरीदते रहते हैं जब तक जेब में पैसा रहता है। बाजार का जादू हमारे सिर पर चढ़कर बोलता है। मेरा अपना अनुभव भी इसी प्रकार का है। मुझे एक लॉटरी से एक लाख रुपए मिले थे। मैं घोड़े पर सवार था। यार दोस्तों के साथ बाजार गया। वहाँ से एक फ्रिज एक बड़े आकार का टी. वी. तथा एक स्कूटर खरीद लाया। ये सभी चीजें घर पर पहले से ही मौजूद थीं पर बाजार में इनके नए मॉडल मुझे इतने आकर्षक लगे कि मैं इन्हें खरीदने का लोभ संवरण नहीं कर सका। घर आकर मालूम हुआ कि पैसा व्यर्थ ही खर्च हो गया। इसका अन्य काम में सदुपयोग किया जा सकता था। (ख) मन खाली न होने पर व्यक्ति अपनी इच्छित वस्तु ही खरीदता है और बाजार से लौट आता है। मैं बाजार से प्रतिदिन सब्जी खरीदने जाता हूँ और केवल सब्जियाँ ही खरीदकर घर लौट आता हूँ। बाजार की अन्य चीजों को मैं देखता तक नहीं। (ग) मन बंद होने की स्थिति में मैं कभी नही होता। मन को बंद करना अच्छी स्थिति नहीं है। मन भी किसी प्रयोजन से मिला है। (घ) मन मे नकार का भाव रखना भी उचित नहीं हैँ। हर वस्तु के प्रति नकारात्मक भाव रखना मुझे सही प्रतीत नहीं होता। 512 Views ‘बाजा़र दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते हैं? ‘बाजा़र दर्शन’ पाठ में निम्न प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है- - पर्चेजिंग पावर का प्रदर्शन करने वाले ग्राहक। - संयमी और बुद्धिमान ग्राहक। - बाजार का बाजा़रूपन बढ़ाने वाले ग्राहक। - आवश्यकतानुसार खरीदने वाले ग्राहक। में अपने आपको अंतिम श्रेणी का ग्राहक मानता हूँ। मैं अपने पैसे को न तो व्यर्थ की चीजें खरीदकर बहाता हूँ और जोड़ता चला जाता हूँ। जिस चीज की आवश्यकता होती है केवल उसी चीज को खरीदता हूँ। 212 Views आपने समाचार-पत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया। 1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु। 2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य। 3. विज्ञापन की भाषा। 1. इस विज्ञापन में जो बातें सम्मिलित की गई हैं वे दिल की बीमारी के कारण भी बताती हैं और उस ऑयल की विशेषता बताई जाती है। 2. इस विज्ञापन में एक पति, दो बच्चे और गृहिणी को पात्रों के रूप में दिखाकर एक छोटे परिवार की संकल्पना प्रस्तुत की जाती है। इन सभी की सेहत का प्रश्न है। ये पात्र सही प्रतीत होते हैं। 3. इस विज्ञापन की भाषा सीधे हृदय में उतरती है। स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। अच्छे माल के लिए ज्यादा कीमत देने को भी तैयार कर लिया जाता है। - मुझे विज्ञापन की भाषा सामान खरीदने के लिए प्रेरित करती है। 194 Views आप बाजा़र की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजा़र और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नज़र आती है?
हम बाजा़र की भिन्न भिन्न संस्कृति से भली- भांति परिचित हैं। मॉल की संस्कृति उच्च वर्ग से अधिक संबंधित है, जबकि सामान्य बाजार में सभी प्रकार के ग्राहक जाते हैं। इसमें मध्यवर्ग का ग्राहक अधिक होता है। ‘हाट’ की संस्कृति ग्रामीण एव निम्न मध्यवर्ग के लोगों के अधिक अनुकूल होती है। हमें पर्चेजिंग पावर मॉल संस्कृति में ज्यादा नजर आती है। यहाँ लोग अपनी जरूरतो के मुताबिक खरीददारी नहीं करते, अपितु पर्चेजिंग पावर के हिसाब से खरीददारी करते हैं। वे तब-तक अनाप-शनाप सामान खरीदते रहते हैं जब तक उनकी क्रयशक्ति बनी रहती रहती है। वे जेब में भरे रुपयों को ध्यान में रखकर खरीददारी करते हैं। 199 Views लेखक ने क्यों कहा कि मन खाली हो तब बाज़ार न जाओ?Explanation: लेखक की सलाह है कि जब मन खाली हो अर्थात् आपको अपनी जरूरतों का सही पता न हो तो उस समय बाजार नहीं जाना चाहिए। ... पैसे देकर चीजें बाजार से खरीदी जाती हैं। जितना ज्यादा पैसा उतनी ही ज्यादा चीजें यही पैसे की परचेज पावर है।
मनुष्य को बाजार कब नहीं जाना चाहिए और क्यों?मनुष्य को तब बाजार नहीं जाना चाहिए, जब उसका मन खाली हो। 'बाजार दर्शन' पाठ में लेखक कहता है कि मनुष्य को बाजार के मोह माया से बचने के लिए, बाजार के आकर्षण से बचने के लिए अपने मन को खाली लेकर बाजार नहीं जाना चाहिए। यदि उसका मन खाली होगा तो वह तरह-तरह की चीजों की तरफ आकर्षित होगा और उन्हें खरीदने के लिए लालायित होगा।
मन खाली होने का मतलब क्या है?मन खाली होने' का अर्थ है- निश्चित लक्ष्य न होना।
बाजार के जादू की तुलना किससे की गई है और क्यों?Explanation: बाजार की चमक-दमक व उसके आकर्षण में फँसकर व्यक्ति खरीददारी करता है तो यही बाजार का जादू है। बाजार का जादू मनुष्य पर तभी चलता है जब उसके पास धन होता है तथा वस्तुएँ खरीदने की निर्णय क्षमता नहीं होती। वह आराम वे अपनी शक्ति दिखाने के लिए निरर्थक चीजें खरीदता है।
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