हम स्वतंत्रता की रक्षा कैसे कर सकते हैं? - ham svatantrata kee raksha kaise kar sakate hain?

हम स्वतंत्रता की रक्षा कैसे कर सकते हैं? - ham svatantrata kee raksha kaise kar sakate hain?

स्पेन से स्वतंत्रता प्राप्त करता हुआ चिली(१८१८)

स्वतंत्रता आधुनिक काल का प्रमुख राजनैतिक दर्शन है। यह उस दशा का बोध कराती है जिसमें कोई राष्ट्र, देश या राज्य द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने पर किसी दूसरे व्यक्ति/ समाज/ देश का किसी प्रकार का प्रतिबन्ध या मनाही नहीं होती। अर्थात स्वतंत्र देश/ राष्ट्र/ राज्य के सदस्य स्वशासन (सेल्फ-गवर्नमेन्ट) से शासित होते हैं। स्वतंत्रता का विलोम शब्द 'परतंत्रता' है

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • स्वाधीनता (liberty)
  • राजनैतिक स्वतंत्रता

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

स्वतंत्रता की परिभाषा और किसमें

स्वतंत्रता की रक्षा कैसे करे

स्वतंत्रता की रक्षा—कैसे?

इंडोनीशिया में रॆंगसडॆंगक्लॉक नामक छोटे-से नगर में सालों से अलग-अलग नृजातीय समूहों के लोग शांति से एकसाथ रहते थे। लेकिन, उनकी ऊपरी सहनशीलता जनवरी ३०, १९९७ को खत्म हो गयी। एक धार्मिक त्योहार के दिन, सुबह तीन बजे से थोड़ा पहले जब एक भक्‍तजन अपना नगाड़ा पीटने लगा तो हिंसा भड़क उठी। यह आवाज़ सुनकर दूसरे धर्म का एक आदमी अपने इस पड़ोसी को बुरा-भला कहने लगा। गाली-गलौज शुरू हो गयी और पत्थर चलने लगे। दिन निकला और ज्यों-ज्यों दूसरे मैदान में कूदे त्यों-त्यों दंगा बढ़ता गया। दिन ढलते-ढलते, दो बौद्ध मंदिर और मसीहीजगत के चार गिरजे तहस-नहस हो चुके थे। इंटरनैशनल हॆरल्ड ट्रिब्यून अखबार ने यह शीर्षक देकर इस घटना को रिपोर्ट किया, “असहनशीलता की चिंगारी ने कौमी दंगों की आग भड़कायी।”

अनेक देशों में कानून ने नृजातीय अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित रखे हैं लेकिन वे लोग अकसर असहनशीलता का शिकार बनते हैं। साफ है कि कानून द्वारा स्वतंत्रता की गारंटी असहनशीलता को जड़ से नहीं निकालती। असहनशीलता सतह के नीचे दबी हो तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह है ही नहीं। यदि भविष्य में कभी परिस्थितियाँ बदल जाएँ और पक्षपात का माहौल बन जाए तो दबी हुई असहनशीलता आसानी से सामने आ सकती है। यदि लोगों को सीधे-सीधे नहीं सताया जाता तो भी उनसे दुश्‍मनी रखी जा सकती है या उनके विचारों का गला घोंटा जा सकता है। इसे कैसे रोका जा सकता है?

असहनशीलता की जड़ों तक पहुँचना

हम स्वाभाविक रूप से उस चीज़ को ठुकराने या उस पर संदेह करने के लिए प्रवृत्त होते हैं जो फर्क या अजीब होती है, खासकर उन विचारों को जो हमारे अपने विचारों से फर्क होते हैं। क्या इसका यह अर्थ है कि सहनशीलता संभव नहीं? संयुक्‍त राष्ट्र का प्रकाशन धर्म या विश्‍वास पर आधारित सभी किस्म की असहनशीलता और भेदभाव को दूर करना (अंग्रेज़ी) अज्ञानता और समझ की कमी को “धर्म और विश्‍वास के मामले में असहनशीलता और भेदभाव के सबसे महत्त्वपूर्ण मूल कारणों में” गिनता है। लेकिन, असहनशीलता की जड़, अज्ञानता से लड़ा जा सकता है। कैसे? संतुलित शिक्षा के द्वारा। “शिक्षा भेदभाव और असहनशीलता से लड़ने का मुख्य हथियार हो सकती है,” संयुक्‍त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग की एक रिपोर्ट बताती है।

इस शिक्षा का लक्ष्य क्या होना चाहिए? यूनॆस्को कुरियर पत्रिका सुझाती है कि यह प्रोत्साहन देने के बजाय कि धार्मिक आंदोलनों को ठुकराया जाए, “सहनशीलता बढ़ानेवाली शिक्षा को उन प्रभावों को दूर करने का लक्ष्य रखना चाहिए जो डर जगाते हैं और लोगों को अलग करते हैं। शिक्षा को युवाओं की मदद करनी चाहिए कि स्वतंत्र परख-शक्‍ति, विवेचनात्मक सोच-विचार और नीतिपरक तर्क-शक्‍ति जैसी क्षमताएँ विकसित करें।”

साफ है कि समाचार-माध्यम “विवेचनात्मक सोच-विचार और नीतिपरक तर्क-शक्‍ति” को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन मन को ढालने और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए समाचार-माध्यमों की शक्‍ति को पहचानते हैं। लेकिन कुछ समाचार-माध्यम असहनशीलता को बढ़ावा देते हैं। यदि वे सहनशीलता को बढ़ावा देना चाहते हैं तो ज़िम्मेदार, प्रमाणिक पत्रकारिता की ज़रूरत है। कभी-कभी पत्रकारों को लोगों की आम धारणा के विरुद्ध जाना पड़ सकता है। उन्हें प्रमाणिक विश्‍लेषण और निष्पक्ष विचारों को सामने रखना चाहिए। लेकिन क्या यह काफी है?

असहनशीलता से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका

सहनशीलता का यह अर्थ नहीं कि सभी के विचार एकसमान हों। लोग शायद एक दूसरे से असहमत हों। कुछ लोगों को लग सकता है कि दूसरे व्यक्‍ति के विश्‍वास एकदम गलत हैं। वे शायद खुलेआम भी अपने मतभेदों के बारे में बात करें। लेकिन जब तक कि वे पूर्वधारणा जगाने के लिए झूठ नहीं फैलाते, वह असहनशीलता नहीं कहलाती। असहनशीलता तब दिखती है जब एक समूह को सताया जाता है, खास कानूनों के द्वारा निशाना बनाया जाता है, उसकी उपेक्षा की जाती है, उस पर प्रतिबंध लगाया जाता है या किसी दूसरी तरह उसे अपने विश्‍वासों पर चलने से रोका जाता है। असहनशीलता का सबसे भयानक रूप सामने आता है जब कुछ लोग हत्या करते हैं और दूसरों को अपने विश्‍वासों के लिए मरना पड़ता है।

असहनशीलता से कैसे लड़ा जा सकता है? सबके सामने उसका परदाफाश किया जा सकता है, जैसे प्रेरित पौलुस ने अपने समय के धार्मिक नेताओं की असहनशीलता का परदाफाश किया। (प्रेरितों २४:१०-१३) लेकिन जब संभव हो तो असहनशीलता से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका होता है सकारात्मक काम करना—सहनशीलता को बढ़ावा देना, अर्थात लोगों को शिक्षा देना ताकि वे दूसरों को ज़्यादा अच्छी तरह समझ सकें। असहनशीलता को दूर करने के बारे में संयुक्‍त राष्ट्र की रिपोर्ट जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, यह कहती है: “क्योंकि धर्म या विश्‍वास पर आधारित सभी किस्म की असहनशीलता और भेदभाव की शुरूआत मनुष्य के मन में होती है, तो पहले मनुष्य के मन को ही सिखाना ज़रूरी है।” ऐसी शिक्षा व्यक्‍तियों को अपने खुद के विश्‍वासों को जाँचने के लिए भी प्रेरित कर सकती है।

संयुक्‍त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के महानिदेशक, फेडेरीको मायोर ने लिखा: “सहनशीलता उस व्यक्‍ति का गुण है जिसमें विश्‍वास है।” रेफॉर्म पत्रिका में लिखते हुए डॉमिनिकन पादरी क्लोड जॆफरे ने कहा: “सच्ची सहनशीलता दृढ़ विश्‍वास पर आधारित है।” अति संभव है कि जो व्यक्‍ति अपने विश्‍वासों से संतुष्ट है वह दूसरों के विश्‍वासों से खतरा नहीं महसूस करेगा।

यहोवा के साक्षियों ने पाया है कि सहनशीलता बढ़ाने का एक बढ़िया तरीका है दूसरों के साथ अलग-अलग विश्‍वासों के बारे में बात करना। साक्षी यीशु की इस भविष्यवाणी को गंभीरता से लेते हैं कि “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो,” और वे सार्वजनिक रूप से सुसमाचार सुनाने की अपनी सेवकाई के लिए मशहूर हैं। (मत्ती २४:१४) इस काम में उन्हें अनेक धर्मों के लोगों—साथ ही नास्तिकों—से उनके विश्‍वास जानने का अवसर मिलता है। बदले में, साक्षी अपने विश्‍वास उनको बताने के लिए तैयार रहते हैं जो सुनना चाहते हैं। इस तरह वे ज्ञान और समझ के फैलाव को बढ़ावा देते हैं। ऐसे ज्ञान और समझ से सहनशीलता का फलना-फूलना आसान बन जाता है।

सहनशीलता और उससे आगे

अनेक लोगों के नेक इरादों और कुछ लोगों के एकजुट प्रयासों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि आज धार्मिक असहनशीलता एक समस्या बनी हुई है। असली बदलाव के लिए और भी किसी चीज़ की ज़रूरत है। फ्राँसीसी अखबार ल माँड ड डेबा ने समस्या को विशिष्ट किया: “आधुनिक समाज अकसर भावात्मक और आध्यात्मिक खालीपन से पीड़ित रहता है। कानून उनसे सुरक्षा की गारंटी दे सकता है जो धार्मिक स्वतंत्रता को खतरे में डालते हैं। धार्मिक स्वतंत्रता कानून के समक्ष समानता की गारंटी दे सकती है और उसे यह गारंटी देनी भी चाहिए, कोई मनमाना भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।” लोकतंत्र और सहनशीलता (अंग्रेज़ी) पुस्तक स्वीकार करती है: “आपसी समझ और आदर को आचरण का अंतर्राष्ट्रीय स्तर बनाने के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना है।”

बाइबल प्रतिज्ञा करती है कि जल्द ही मानवजाति एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की शुद्ध उपासना में एक हो जाएगी। इस एकता के फलस्वरूप सच्ची विश्‍वव्यापी मित्रता या भाईचारा होगा, जहाँ दूसरों का आदर किया जाएगा। फिर मनुष्यों में अज्ञानता न रहेगी, क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य लोगों को यहोवा के मार्ग सिखाएगा और इस प्रकार उनकी बौद्धिक, भावात्मक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करेगा। (यशायाह ११:९; ३०:२१; ५४:१३) पूरी पृथ्वी पर असली समानता और स्वतंत्रता होगी। (२ कुरिन्थियों ३:१७) इसकी सही समझ पाने के द्वारा कि मनुष्यजाति के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य क्या हैं, आप अज्ञानता और असहनशीलता से लड़ सकते हैं।

[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]

धर्म को खतरा

हाल के सालों में फ्राँसीसी सरकार ने फ्रांस में यहोवा के साक्षियों को लाचार करने की कोशिश की है, उन्हें वे लाभ नहीं दिये गये जो दूसरे धर्मों को दिये जाते हैं। हाल ही में, साक्षियों के धार्मिक कार्यों के लिए उन्हें जो दान मिला उस पर भारी कर लगा दिया गया है। फ्राँसीसी अधिकारियों ने फ्रांस में २,००,००० मसीहियों और उनसे हमदर्दी रखनेवालों के इस समूह को लाचार करने के प्रत्यक्ष उद्देश्‍य से उन पर ५० मिलियन डॉलर का कर भार (कर और जुर्माना) लाद दिया है जो कि अन्याय है। यह धार्मिक पक्षपात का दुःसाहसी काम है जो स्वतंत्रता, भाईचारे और समानता के हर सिद्धांत के विरुद्ध है।

[पेज 10 पर तसवीर]

असहनशीलता अकसर हिंसा की ओर ले जाती है

[पेज 12 पर तसवीर]

यहोवा के साक्षियों के धार्मिक कार्यों के बावजूद कुछ फ्राँसीसी अधिकारी आरोप लगाते हैं कि उनका धर्म, धर्म नहीं!

स्वतंत्रता की रक्षा कैसे की जा सकती है इसके?

साररूप में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की इस आकांक्षा को दिखाता है कि वे अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करें तथा उनका अपनी इच्छाओं और गतिविधियों को आज़ादी से व्यक्त करने का अवसर बना रहे । न केवल व्यक्ति वरन् समाज भी अपनी स्वतंत्रता को महत्त्व देते हैं और चाहते हैं कि उनकी संस्कृति और भविष्य की रक्षा हो ।

स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?

यह शब्द अंग्रेजी के लिबर्टी (LIBERTY) शब्द से बना है। जिसकी हिन्दी रूपांतरण/ अर्थ है बंधनों का अभाव या मुक्ति या अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करना। संसद का इतिहास स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का इतिहास रहा है। स्वतंत्रता की परिभाषा :- स्वतंत्रता व्यक्ति की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का न्याय है।

स्वतंत्रता के लिए क्या जरूरी है?

स्वतंत्र समाज वह होता है, जिसमें व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबंधों के बीच करने में समर्थ हो। स्वतंत्रता को इसलिए बहुमूल्य माना जाता है, क्योंकि इससे हम निर्णय और चयन कर पाते हैं। स्वतंत्रता के कारण ही व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं। जो शासकों की ताकत का प्रतिनिधित्व करे।

स्वतंत्रता कितने प्रकार के होते हैं?

स्वतंत्रता के प्रकार (swatantrata ke prakar).
राजनीतिक स्वतंत्रता राज्य की राजनीतिक प्रक्रिया मे स्वतंत्रतापूर्वक सक्रिय भाग लेने की स्वतंत्रता राजनीतिक स्वतंत्रता कहलाती है। ... .
आर्थिक स्वतंत्रता ... .
प्राकृतिक स्वतंत्रता ... .
नागरिक स्वतंत्रता ... .
व्यक्तिगत स्वतंत्रता ... .
स्वाभाविक स्वतंत्रता ... .
सामाजिक स्वतंत्रता ... .
सांस्कृतिक स्वतंत्रता.