क्या श्राद्ध में मंदिर जाना चाहिए? - kya shraaddh mein mandir jaana chaahie?

Pitru Paksha 2022 Shradh Karm Ke Niyam: पितरों का श्राद्ध करने में किन नियमों का ध्‍यान रखना चाहिए ताकि आपके द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म खाली न जाए और पितर भी आपसे प्रसन्‍न हों, इस बारे में आज हम आपको विस्‍तार से बताने जा रहे हैं। पितृपक्ष का आरंभ हो चुका है और आज तीसरा श्राद्ध है। ऐसी मान्‍यता है कि पितृपक्ष में पितृ गण देवलोक से पृथ्‍वी लोक पर आते हैं और अपनी संतानों को सुखी और संपन्‍न रहने का आशीर्वाद देकर पितर अमावस्‍या के दिन वापस देवलोक चले जाते हैं। पूर्णिमा से अमावस्‍या की अवधि को पितृपक्ष कहते हैं। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और तिथि के हिसाब से उनका श्राद्ध कर्म करते हैं। शास्‍त्रों में श्राद्ध कर्म को लेकर कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं क्‍या हैं ये नियम। पितृपक्ष गाय का दूध

श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

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पितृपक्ष में चांदी के बर्तन

शास्‍त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष में अपनी क्षमता के अनुसार चांदी के बर्तनों प्रयोग जरूर करना चाहिए। अगर आपके पास सभी बर्तन न हों तो कम से कम चांदी के गिलास में पानी जरूर देना चाहिए। ऐसी मान्‍यता है कि पितृपक्ष में चांदी के बर्तन में पानी देने से पितरों को अक्षय तृप्ति प्राप्‍त होती है। भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

पितृपक्ष में भोजन परोसने के नियम

पितृपक्ष (Pitru Paksha 2022) में ऐसी मान्‍यता है कि श्राद्ध कर्म के वक्‍त ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए गए पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षसों को जाता है।

मौन रहकर करें भोजन

शास्‍त्रों में उन ब्राह्मणों को लेकर भी यह नियम बताया गया है जो श्राद्ध कर्म का भोजन ग्रहण करते हैं। इसके अनुसार, ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें।

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पितृपक्ष में चतुर्दशी पर भी करें इनका श्राद्ध

जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। आपके द्वारा किए गए पिंडदान पर किसी और की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए।

दूसरे की भू‍मि पर न करें श्राद्ध

पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध सदैव अपने ही घर में या फिर अपनी ही भूमि में करना चाहिए। दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, तीर्थस्‍थान एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

पितृपक्ष में श्राद्ध में इनको भी जरूर बुलाएं

शास्‍त्रों में श्राद्ध कर्म को लेकर ये नियम भी बताए गए हैं कि जो लोग पूर्वजों के श्राद्ध में ब्राह्मणों के अलावा ए‍क ही शहर में रहने वाली अपनी बहन, दामाद और भांजे को नहीं बुलाता, उसके द्वारा किए गए श्राद्ध का अन्‍न पितर ग्रहण नहीं करते।

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याचक को भोजन करवाएं

पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय यदि कोई भिक्षुक आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

शाम के समय न करें श्राद्ध

शुक्लपक्ष में, रात्रि में और ऐसे दिन जब दो तिथियों का योग ए‍क ही में हो रहा हो, तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

पितृपक्ष में इन चीजों का जरूर करें प्रयोग

पितृपक्ष में श्राद्ध में ये चीजें होना जरूरी माना गया है, गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन न परोसें। सोना, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

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पितरों का पसंदीदा भोजन

पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि हैं। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसा भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें। तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता कौआ, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग जरूर निकालें। इसके बाद हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

पितृपक्ष में भोजन के नियम

पितृपक्ष में कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

भोजन के बाद ऐसे विदा करें

ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

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क्या पितृ पक्ष में मंदिर में पूजा करनी चाहिए?

धार्मिक मान्यता और पौराणिक शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में सभी प्रकार के मांगलिक व शुभ कार्य वर्जित होते हैं। शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा के साथ पूर्वजों की पूजा भी वर्जित मानी जाती है।

श्राद्ध में क्या करें क्या न करें?

-श्राद्ध में मसूर की दाल, मटर, राजमा, काला उड़द, सरसो और बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए. -श्राद्ध में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. -श्राद्ध में नहाते समय तेल, उबटन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. -श्राद्ध के समय कोई शुभ काम नहीं करना चाहिए.

पितृपक्ष में कौन कौन से काम वर्जित रहते हैं?

पितृपक्ष के समय में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. ... .
इस समय में अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान न करें. ... .
पितृपक्ष में स्नान के समय तेल, उबटन आदि का प्रयोग करना वर्जित है..
इस समय में आप कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण आदि न करें..

श्राद्ध में क्या निषेध है?

चना, मसूर, उड़द, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं । तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने के लिए दिया जाता है।