क्या सिन्धु सभ्यता को जल संस्कृति कहा जा सकता है? - kya sindhu sabhyata ko jal sanskrti kaha ja sakata hai?

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  • क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा शहरों की जल निकास प्रणाली बेहतर नगर योजना  की ओर संकेत करती है। अपने उत्तर के कारण बताइये।

    11 May, 2020

    उत्तर :

    जल प्रबंधन एवं अपशिष्ट प्रबंधन में सिंधु सभ्यता अपनी समकालीन कांस्ययुगीन सभ्यताओं से कहीं अधिक आगे थी। सिंधु सभ्यता के नगरों में नियोजित जल निकास प्रणाली आधुनिक नगर योजना से साम्य रखती है।

    • हड़प्पा नगरों में घरों, नालियों एवं सड़कों का एक साथ नियोजित रूप से निर्माण कराया गया।
    • सड़कों तथा नालियों को लगभग एक ग्रिड पद्धति में बनाया गया, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
    • प्रत्येक घर में स्नानागार की उपस्थिति थी। घरों की नालियों को गली की नालियों से जोड़ा गया, जो बाद में बड़े नालों में मिल जाती थी।
    • इन नगरों में पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया तथा फिर अगल-बगल अधिवासों का निर्माण किया गया।
    • इनमें ढकी हुई नालियों का निर्माण किया गया। ढकी नालियों के कारण साफ-सफाई के लिये इन नालियों में मैनहोल का निर्माण किया गया।
    • जल निकास में अपशिष्ट फिल्ट्रेशन की भी व्यवस्था थी। घरों की नालियाँ पहले घर में मलकुंड में खाली हेाती थी, जिसमें ठोस अपशिष्ट पदार्थ जमा हो जाते थे और गंदा पानी गली की नालियों में बह जाता था।
    • नालियों के निर्माण में पकी ईंटों का प्रयोग नगर-नियोजन की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।

    उपर्युक्त सभी जल निकास की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं के कारण कहा जा सकता है कि हड़प्पा नगरों में जल निकास प्रणाली बेहतर नगर-योजना की ओर संकेत करती है। जल प्रबंधन एवं साफ-सफाई में यह अपने समय से काफी आगे दिखाई देती है।

    इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं |

    पाठ संदर्भ :

    ‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)

     

    इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

    सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में उससे कोई भी धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कथा समूह में चर्चा करें।

    इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे इतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

    ‘टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।’ – इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

    यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झांक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

    पुरातन के किन चिन्हों के आधार पर हम कह सकते हैं कि – ”सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

    सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा क्यों कहा गया?

    ‘सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी?”

    अथवा

    ‘सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी”-अतीत में दबे पाँव के आधार पर उत्तर दीजिए।

    उत्तर –
    पुरातत्ववेत्ताओं ने जो भी खुदाई की और खोज की। उसमें उन्हें मिट्टी के बर्तन, सिक्के, मूर्तियाँ, पत्थर और लकड़ी के उपकरण मिले। इन चित्रों के फलस्वरूप यही बात सामने आई कि लोग समय के अनुरूप इन वस्तुओं का उपभोग करते थे। दूसरा उनकी नगर योजना भी उनकी समझ का पुख्ता प्रमाण है। आज की नगर योजना भी उनकी योजना के समकक्ष नहीं ठहरती। जो कुछ उन्होंने नगरों, गलियों, सड़कों को साफ़-सुथरा रखने की विधि अपनाई, वह उनकी समझ को ही दर्शाती है।

    प्रश्न 4:
    ‘यह सच है कि यहाँ किसी अगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झाँक रह हैं।” इस कथन के पीछ लखक का क्या आशय हैं?

    अथवा

    मुअनजो-दड़ो की सभ्यता पूर्ण विकसित सभ्यता थी, कैसे? पाठ के आधार पर उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।

    उत्तर –
    लेखक कहता है कि मुअनजो-दड़ो में सिंधु-सभ्यता के अवशेष बिखरे पड़े हैं। यहाँ के मकानों की सीढ़ियाँ उस कालखंड तथा उससे पूर्व का अहसास कराती हैं जब यह सभ्यता अपने चरम पर रही होगी। इतिहास बताता है कि यहाँ कभी पूरी आबादी रहती थी। यह सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है। यहाँ के अधूरे पायदानों पर खड़े होकर हम गर्व महसूस कर सकते हैं कि जिस समय दुनिया में ज्ञान रूपी सूर्योदय नहीं हुआ था, उस समय हमारे पास एक सुसंस्कृत व विकसित सभ्यता थी। इसमें महानगर भी थे। इनको विकसित होने में भी काफी समय लगा होगा। यह हमारे इतिहास को आँखों के सामने प्रत्यक्ष कर देता है। उस समय का ज्ञान, उनके द्वारा स्थापित मानदंड आज भी हमारे लिए अनुकरणीय हैं। तत्कालीन नगर-योजना को आज की नगरीय संस्कृति में प्रयोग किया जाता है।

    प्रश्न 5:
    ‘टूटे-फूटे खडहर, सभ्यता और सस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।”-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर-
    जब कोई सभ्यता या संस्कृति काल के ग्रास में समा जाए तो पीछे टूटे-फूटे खंडहर छोड़ जाती है। इन्हीं टूटे-फूटे खंडहरों की खोज के आधार पर अमुक सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानने का प्रयास किया जाता है। सिंधु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता थी किंतु वह भी एक दिन समाप्त हो गई। अपने पीछे छोड़ गई टूटी-फूटी इमारतों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता कहते हैं कि वह एक सुसंस्कृत और विकसित संस्कृति थी, उस समय का समाज उसमें रहने वाले लोग कैसे थे इन सभी के बारे में खंडहरों के अध्ययन से ही जाना जा सकता है। कोई भी खंडहर और नगर में मिले अन्य अवशेषों और चीज़ों के आधार पर उस युग के लोगों के आचार-व्यवहार के बारे में पता चल जाता है। उस समय के लोगों का खान-पान भी यही वस्तुएँ बता देती हैं। इसलिए कहा गया है कि टूटे-फूटे खंडहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।

    प्रश्न 6:
    इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन हैं जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐस ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

    उत्तर-
    इस साल की गर्मियों की छुट्टयों में कक्षा के कुछ दोस्तों ने दिल्ली के लालकिले को देखने का कार्यक्रम बनाया। निर्धारित तिथि को हम छह दोस्त वहाँ गए। लालकिले को देखने के बाद मन में कल्पना हिलोरें मारने लगी। इसे देखकर मुगल सत्ता के मजबूत आधार का पता चलता है। इतने विशाल किले का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया जिस पर अत्यधिक धन खर्च हुआ। यह निर्माण उस समय के शांत शासन व समृद्ध के युग का परिचय कराता है। इसका निर्माण लाल पत्थरों से करवाया गया। किले के अंदर अनेक महल हैं। दीवान-ए-आम से लेकर दीवान-ए-खास तक को देखकर मुगल बादशाह के दरबार का दृश्य सामने आता है। यह किला मुगल प्रभुसत्ता का परिचायक था। आज भी इसका ऐतिहासिक महत्व है। यहाँ स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री तिरंगा झंडा फ़हराते हैं। यह मेरे जीवन के सुखद अनुभवों में से एक है।

    प्रश्न 7:
    नदी, कुएँ स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लखक पाठकों स प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-सस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तक दें।

    अथवा

    क्या सिंधु वाडी सभ्यता कां जल-संस्कृति कह सकते हैं? कारण सहित उतार दीजिए।

    उत्तर-
    यह बिलकुल सत्य है कि नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था सिंधु घाटी की विशेष पहचान रही है। लेखक अंत में पाठकों से यह प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं तो मैं यही कहूँगा/कहूँगी कि उस सभ्यता की नकल ही हमने की है। उस सभ्यता का कोई मुकाबला नहीं। आज चंडीगढ़, ब्रासीलिया और इसलामाबाद की नगर योजना पर सिंधु सभ्यता का प्रभाव दिखाई देता है लेकिन यह प्रभाव गहरा नहीं है। सिंधु घाटी के लोगों ने अपनी समझ और दूरदर्शिता का परिचय दिया है। जबकि इन शहरों में समझ तो दिखाई देता है लेकिन दूरदर्शिता नहीं। इसीलिए मैं सिंधु घाटी की सभ्यता को नव्य-संस्कृति के लिए एक आदर्श कहूँगा/कहूँगी।

    प्रश्न 8:
    सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई गई है। इस लेख में मुअनजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन सभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।

    अथवा

    “सिंधु मार्टा की सभ्यता लेवल अवशषां‘ के आधार पर बनाई गई एक धारणा जा “-इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रकट र्काजिए।

    उत्तर-
    सिंधु धारी सभ्यता के विषय में जानकारी उष्ण, अनजौ–दहो व अन्य क्षेत्रों की खुदाई से मिले अवशेषों से मिलती है। यहाँ नगर–योजना, मकान, खेती, कला, दुजा आदि के अवशेष मिले हैँ। इनके आधार पर ही एक धारणा बनाई गई है कि यह सभ्यता अत्यंत विकसित थी। अनुमान लगाए गए कि यहाँ की नगर–योजना आज की शहरी योजना से अधिक विकसित थी, यहाँ पर मरुभूमि नहीं थी, कृषि उन्नत दशा में थी, पशुपालन व व्यापार भी विकसित था। समाज के दो वर्ग “उच्च वर्ग‘ व “निग्न वर्म‘ को परिकल्पना की गई आदि। वस्तुत: ये सब अनुमान हैं। मुअनजोट्वेदड्रो के बारे में बनी अवधारणा के विषय में मेरा मत निम्नलिखित है –

    1. इस क्षेत्र से जो लिपि मिली है, वह चित्रलिपि है। हरने आज तक पढा नहीं जा सका है। अता यह लिपि अपने में रहस्य छिपाए हुए है।
    2. लिपि पढे न जने पर अवशेष ही किसी सभ्यता व संस्कृति के बारे में बताते हैं। इतनी पुरानी सभ्यता के तमाम चिहून सुरक्षित नहीं रह सकते। इस क्षेत्र की जलवायु व मजबूत निर्माण–लली के कारण काफी अवशेष ठीक दशा में मिले हैं। उन्हें के आधार पर कर्ण सभ्यता व संस्कृति को परिकल्पना की गई है।

      अन्य हल प्रश्न

    I. बोधात्मक प्रशन

    प्रश्न 1:
    अजायबघर में रखे सिंधु-सभ्यता के पुरातत्व के अवशेषों से किसका महत्व सिद्ध होता हैं-कला का या ताकत का?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में सिंधु-सभ्यता के पुरातत्व के अवशेष रखे गए हैं। यहाँ पर काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, चौपड़ की गोटियाँ, मिट्टी की बैलगाड़ी, पत्थर के औजार, मिट्टी के कंगन आदि रखे गए हैं। यहाँ की चीजों को देखने से पता चलता है कि यहाँ औजार तो हैं, पर हथियार नहीं। समूची सिंधु-सभ्यता में हथियार उस तरह के नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। यहाँ पर प्रभुत्व या दिखावे के तेवर नदारद हैं। इससे यह पता चलता है कि इस सभ्यता में कला का महत्व अधिक था, न कि ताकत का।

    प्रश्न 2:
    मुअनजो-दड़ो की बड़ी बस्ती पर टिप्पणी कीजिए।

    उत्तर –
    लेखक ने बताया कि बड़ी बस्ती में घरों की दीवारें ऊँची व मोटी हैं। मोटी दीवार का अर्थ यह है कि उस मंजिल भी होगी। कुछ दीवारों में छेद हैं जो संकेत देते हैं कि दूसरी मंजिल उठाने के लिए शायद यह जगह हो। सभी घर एक ही आकार की पक्की ईटों से बने हैं। यहाँ पत्थरों का प्रयोग मामूली है। कहीं-कहीं को अनगढ़ पत्थरों से ढँका गया है।

    प्रश्न 3:
    पुरातत्ववेत्ताओं ने किस भवन को ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ कहा है और क्यों?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो के महाकुंड के उत्तर-पूर्व में एक लंबी इमारत के अवशेष हैं। इसके बीचोंबीच खुला बड़ा दालान है। इसमें तीन तरफ़ बरामदे हैं। कभी इनके साथ छोटे-छोटे कमरे रहे होंगे। पुरातत्व के जानकार कहते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में ज्ञानशालाएँ सटी हुई होती थीं। इस नजरिए से इसे ‘कॉलेज ऑफ़ प्रीस्ट्स’ माना जा सकता है।

    प्रश्न 4:
    मुअनजो-दड़ो और चडीगढ़ के नगरशिल्प में क्या समानता पाई जाती हैं?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो और चंडीगढ़ के नगरशिल्प में महत्वपूर्ण समानता है। दोनों नगरों में सड़कों के दोनों ओर घर हैं, परंतु किसी भी घर का दरवाजा सड़क पर नहीं । सभी के दरवाजे अंदर गलियों में हैं। दोनों नगरों में घर जाने के लिए मुख्य सड़क से सेक्टर में जाना पड़ता है, फिर घर की गली में प्रवेश करके घर में पहुँच सकते हैं।

    प्रश्न 5:
    ‘मुअनजो-दड़ो में रँगरेज का कारखाना भी था।”-स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो में एक ऐसा भवन मिला है जिसकी जमीन में ईटों के गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। अनुमान है कि इनमें रँगाई के बड़े बर्तन रखे जाते थे। दो कतारों में सोलह छोटे एक-मंजिला मकान हैं। एक कतार मुख्य सड़क पर है, दूसरी पीछे की छोटी सड़क की तरफ़। सबमें दो-दो कमरे हैं। यहाँ सभी घरों में स्नानघर हैं। बाहर बस्ती में कुएँ सामूहिक प्रयोग के लिए हैं। शायद ये कर्मचारियों के लिए रहे होंगे।

    प्रश्न 6:
    मुअनजो-दड़ो को देखते-देखते लेखक को किसकी याद आ गई और क्यों?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो के वीरान शहर को देखते-देखते लेखक को जैसलमेर के गाँव कुलधरा की याद आ गई। यह पीले पत्थर के घरों वाला सुंदर गाँव है। यह गाँव काफी समय से वीरान है। कोई डेढ़ सौ साल पहले राजा से तकरार पर गाँव के स्वाभिमानी लोग रातों-रात अपना घर छोड़कर चले गए। उस सयम से मकान खंडहर हो गए, पर ढहे नहीं हैं। वे आज भी अपने निवासियों की प्रतीक्षा में खड़े लगते हैं।

    प्रश्न 7:
    मुअनजो-दड़ो की सभ्यता का अभी इतना प्रचार क्यों नहीं हुआ हैं?

    उत्तर –
    मुअनजो–दड्रॉ की सभ्यता के प्यार न होने के निम्नलिखित कारण है–

    1. इस सभ्यता में भव्यता का आख्या नहीं है।
    2. यह सभ्यता पिछली शताब्दी में ही दुनिया के सामने आई है।
    3. इसकी लिपि अभी तक मही नहीं जा सकी है। अता बहुत सारे रहस्यों पर से परदा नहीं उठा है।

    प्रश्न 8:
    सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़ शहर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना दशकों को अभिभूत क्यों करती है? स्पष्ट कीजिए।

    अथवा

    ‘मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना आज की सक्टर-माका कॉलोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा ज्यादा रचनात्मक है। ”-टिप्पणी कीजिए।

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना बेमिसाल है। यहाँ की सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी हैं। शहर से जुड़ी हर चीज अपने स्थान पर है। मुख्य सड़क की चौड़ाई तैतीस फुट है। सड़क के दोनों ओर घर हैं, परंतु घरों के दरवाजे गलियों में हैं। सड़क के दोनों तरफ ढँकी हुई नालियाँ हैं। गलियाँ छोटी हैं। शहर से पानी के लिए कुंओं का प्रबंध भी है। आज की सेक्टर-माक कालोनियों में जीवन की गतिशीलता नहीं होती। नया नियोजन शहर की विकसित नहीं होने देता। मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना दर्शकों को अभिभूत करती है।

    प्रश्न 9:
    ‘अतीत में दबे पाँव’ के लखक ने मुअनजो-दड़ो की सभ्यता को किस आधार पर ‘लो-प्रोफाइल सभ्यता’ कहा है?

    अथवा

    मुअनजो-दड़ो की सभ्यता को ‘लों-प्रोफाइल सभ्यता’ क्यों कहा जाता हैं?

    उत्तर –
    लेखक ने मुअनजो-दड़ो की सभ्यता को ‘लो-प्रोफ़ाइल सभ्यता’ कहा है। इसके निम्नलिखित आधार हैं –

    1. यांत्रिक प्रतिकने वाले मल, धर्मक ताकता दिवाने वाले पूना स्ल मूर्तयों व पििमई नहीं मिले हैं।
    2. यहाँ से मिली राजा की मूर्ति पर जो मुकुट है, उसका आकार बहुत छोटा है।
    3. यहाँ से मिली नावें बहुत छोटे आकार की हैं।

    प्रश्न 10:
    ‘मुअनजो-दड़ो’ में बड़े घरों में भी छोटे-छोटे कमरे होने का क्या कारण हो सकता हैं?

    उत्तर –
    ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। पुलड मेंबे-बंधों मेंभ छटे छटेकर पाएगएहैं.य हैन कवियहै इसाकेनितिकणह सकते हैं

    1. शहर की आबादी काफी अधिक रही होगी।
    2. ग्रेगरी पोसेल का मानना है कि निचली मंजिल में नौकर-चाकर रहते होंगे।

    प्रश्न 11:
    “मुअनजो-दड़ो में प्राप्त वस्तुओं में औजार तो हैं, पर हथियार नहीं।” इससे सिंधु-सभ्यता के बारे में आपकी क्या धारणा बनती हैं?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो में अनेक वस्तुओं के अवशेष मिले हैं, परंतु उसमें किसी प्रकार के हथियार नहीं मिले। इससे यह धारणा बनती है कि इस सभ्यता में राजतंत्र या धर्मतंत्र नहीं था। यह समाज-अनुशासित सभ्यता थी जो यहाँ की नगर-योजना, वास्तु-शिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक एकरूपता को कायम रखे हुए थी।

    प्रश्न 12:
    कैसे कहा जा सकता है कि मुअनजो-दड़ो शहर ताम्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्कृष्ट था?

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो की खुदाई के समय यहाँ नगर-योजना, मकान, खेती, कला, औजार आदि के अवशेष मिले हैं। इनके आधार पर ही एक धारणा बनाई गई कि यह सभ्यता अत्यंत विकसित थी। अनुमान लगाए गए कि यहाँ की नगर-योजना आज की शहरी योजना से अधिक विकसित थी, यहाँ पर मरुभूमि नहीं थी, कृषि उन्नत दशा में थी, पशुपालन व व्यापार भी विकसित था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मुअनजो-दड़ो शहर ताम्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्कृष्ट था।

    प्रश्न 13:
    महाकुंड में अशुद्ध जल को रोकने की क्या व्यवस्था थी? ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

    उत्तर –
    महाकुंड में जल का रिसाव रोकने तथा अशुद्ध जल से बचाव के लिए कुंड के तल व दीवारों पर चूने व चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया था। जल के लिए एक तरफ कुआँ है। कुंड से जल को बाहर बहाने के लिए नालियाँ हैं। ये पक्की ईटों से बनी हैं तथा ईटों से ढकी भी हैं। जल-निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त इससे पहले के इतिहास में नहीं मिलता।

    II. निबंधात्मक प्रश्न

    प्रश्न 1:
    ‘सिंधु-सभ्यता में खेती का उन्नत रूप भी देखने को मिलता है’ स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर –
    सिंधु-सभ्यता की खोज की शुरुआत में यह माना जा रहा था कि इस घाटी के लोग अन्न नहीं उपजाते थे। वे अनाज संबंधी जरूरतें आयात से पूरा करते थे, परंतु नयी खोजों से पता चला है कि यहाँ उन्नत खेती होती थी।
    अब कुछ विद्वान इसे मूलत: खेतिहर व पशुपालक सभ्यता मानते हैं। खेती में ताँबे व पत्थर के उपकरण प्रयोग में लाए जाते थे। यहाँ रबी की फसल में गेहूँ, कपास, जौ, सरसों व चने की खेती होती थी। इनके सबूत भी मिले हैं। कुछ दिनों का विवार है कि यह ज्वार, बाजा और साग को उज भी हती थी। लोग खज्र खल्वे और अंगूर उगाते थे।

    प्रश्न 2:
    लेखक ने मुअनजो-दड़ों शहर के टूटने या उजड़ने के बारे में क्या कल्पना की हैं?

    उत्तर –
    लेखक का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता में कहीं भी नहरों के प्रमाण नहीं मिले हैं। लोग कुंओं के जल का प्रयोग करते थे। वर्षा भी पर्याप्त होती थी क्योंकि यहाँ खेती के भी खूब प्रमाण मिले हैं। लेखक का अनुमान है कि धीरे-धीरे वर्षा कम होने लगी होगी तथा यहाँ रेगिस्तान बनना प्रारंभ हुआ होगा। इसके साथ ही भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से जल की कमी होनी शुरू हो गई होगी। सिंधु-सभ्यता में जल का प्रबंधन व उपयोग बहुत समझदारी से किया जाता था। जल की निकासी, सामूहिक स्नानागार आदि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ के लोग जल का प्रचुर मात्रा में उपयोग करते रहे होंगे। प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण जल की कमी हो गई और सिंधु घाटी सभ्यता उजड़ गई।

    प्रश्न 3:
    सिंधु-सभ्यता में नगर-नियोजन से भी कहीं ज्यादा सौंदर्य-बोध के दर्शन होते हैं। ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ में दिए गए तथ्यों के आधार पर जानकारी दीजिए।

    उत्तर –
    यह कहा जा सकता है कि खुदाई में प्राप्त धातु और पत्थर की मूर्तियों, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुंदर मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास और आभूषण आदि उस समय के लोगों के सौंदर्य-बोध के परिचायक हैं। इन सबसे कहीं ज्यादा सौंदर्य-बोध कराती है वहाँ की सुघड़ लिपि। यदि गहराई से सोचें तो वहाँ की प्रत्येक सुघड़ योजना भी तो सौंदर्य-बोध का ही एक प्रमाण प्रस्तुत करती है। ढँकी हुई पक्की नालियाँ बनाने के पीछे गंदगी से बचाव का जो उद्देश्य था वह भी तो मूल रूप से स्वच्छता और सौंदर्य का ही बोध कराता है। आवास की सुंदर व्यवस्था हो या अन्न भंडारण, सभी के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से सौंदर्य-बोध काम कर रहा है। अत: यह स्पष्ट है कि सिंधु-सभ्यता में किसी भी अन्य व्यवस्था से ऊपर सौंदर्य-बोध ही था।

    प्रश्न 4:
    ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

    उत्तर –
    ‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक के वे अनुभव हैं, जो उन्हें सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों को देखते समय हुए थे। इस पाठ में अतीत अर्थात भूतकाल में बसे सुंदर सुनियोजित नगर में प्रवेश करके लेखक वहाँ की एक-एक चीज से अपना परिचय बढ़ाता है। उस सभ्यता के अतीत में झाँककर वहाँ के निवासियों और क्रियाकलापों को अनुभव करता है। वहाँ की एक-एक स्थूल चीज से मुखातिब होता हुआ लेखक चकित रह जाता है। वे लोग कैसे रहते थे? यह अनुमान आश्चर्यजनक है। वहाँ की सड़कें, नालियाँ, स्तूप, सभागार, अन्न भंडार, विशाल स्नानागार, कुएँ, कुंड और अनुष्ठान गृह आदि के अतिरिक्त मकानों की सुव्यवस्था देखकर लेखक महसूस करता है कि जैसे अब भी वे लोग वहाँ हैं। उसे सड़क पर जाती हुई बैलगाड़ी से रुनझुन की ध्वनि सुनाई देती है। किसी खंडहर में प्रवेश करते हुए उसे अतीत के निवासियों की उपस्थिति महसूस होती है। रसोईघर की खिड़की से झाँकने पर उसे वहाँ पक रहे भोजन की गंध भी आती है। यदि इन लोगों की सभ्यता नष्ट न हुई होती तो उनके पाँव प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ रहे होते और आज भारतीय उपमहाद्वीप महाशक्ति बन चुका होता। मगर दुर्भाग्य से ये प्रगति की ओर बढ़ रहे पाँव अतीत में ही दबकर रह गए। इसलिए ‘अतीत में दबे पाँव’ शीर्षक पूर्णत: सार्थक और सटीक है।

    प्रश्न 5:
    ‘मुअनजो-दड़ो के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु-सभ्यता की विशेषताएँ लिखिए।

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु-सभ्यता की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं –

    1. सिंधु-सभ्यता में सुनियोजित ढंग से नगर बसाए गए थे।
    2. नगरों में निकासी की उत्कृष्ट प्रणाली थी।
    3. मुख्य सड़कें चौड़ी तथा गलियाँ अपेक्षाकृत सँकरी होती थीं।
    4. मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क पर नहीं खुलते थे।
    5. कृषि भी व्यवसाय था।
    6. यातायात के साधन के रूप में बैलगाड़ियाँ तथा नावें थीं।
    7. हर जगह एक ही आकार की पक्की ईटों का प्रयोग किया गया है।
    8. हर नगर में अन्न भंडारगृह, स्नानगृह आदि थे।
    9. गहने, मुद्रा आदि से संपन्नता का पता चलता है।

    प्रश्न 6:
    ‘पुरातत्व के निष्प्राण चिहनों के आधार पर युग-विशेष के आबाद घरों लोगों और उनकी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों का पुख़्ता अनुमान किया जा सकता है।” अतीत में दबे पाँव ‘ पाठ के आधार पर टिप्पणी कीजिए।

    अथवा

    ‘अतीत में दबे पाँव” के आधार पर उस युग की सभ्यता और सस्कृति के विषय में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

    उत्तर –
    यह बात सही है कि पुरातत्व के निष्प्राण चिहनों के आधार पर युग-विशेष के आबाद घरों, लोगों और उनकी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों का पुख्ता अनुमान किया जा सकता है। मुअनजो-दड़ो में सड़कें, मकान, स्नानागार, कोठार, कुएँ आदि के अवशेष पाए गए हैं। ये बताते हैं कि ये बस्तियाँ सुनियोजित तरीके से बसाई गई थीं। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों व उन पर की गई कलाकारी से उस समय के विश्वासों का पता चलता है। आभूषण, सुंदर लिपि, आकृतियाँ आदि तत्कालीन समाज के सौंदर्य-बोध को व्यक्त करते हैं। सिंधु-सभ्यता से किसी प्रकार का कोई हथियार नहीं मिला। इससे पता चलता है कि यहाँ राजतंत्र या धर्मतंत्र न होकर अनुशासन तंत्र था।

    प्रश्न 7:
    ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।

    उत्तर –
    यह पाठ ‘यात्रा-वृत्तांत’ और ‘रिपोर्ट’ का मिला-जुला रूप है। यह पाठ विश्व-फलक पर घटित सभ्यता की सबसे प्राचीन घटना को उतने ही सुनियोजित ढंग से पुनर्जीवित करता है, जितने सुनियोजित ढंग से उसके दो महान नगर-मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा-बसे थे। लेखक ने टीलों, स्नानागारों, मृद्-भांडों, कुंओं-तालाबों, मकानों व मार्गों से प्राप्त पुरातत्वों में मानव-संस्कृति की उस समझदार-भावात्मक घटना को बड़े इत्मीनान से खोज-खोज कर हमें दिखाया है जिससे हम इतिहास की सपाट वर्णनात्मकता से ग्रस्त होने की जगह इतिहास-बोध से तर होते हैं। सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़े शहर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना दर्शकों को अभिभूत करती है। वह आज की सेक्टर-माका कॉलोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा ज्यादा रचनात्मक थी क्योंकि उसकी बसावट शहर के खुद विकसित होने का अवकाश भी छोड़कर चलती थी। पुरातत्व के निष्प्राण पड़े चिहनों से एक जमाने में आबाद घरों, लोगों और उनकी सामाजिक-धार्मिक-राजनीतिक व आर्थिक गतिविधियों का पुख्ता अनुमान किया जा सकता है। वह सभ्यता ताकत के बल पर शासित होने की जगह आपसी समझ से अनुशासित थी। उसमें भव्यता थी, पर आडंबर नहीं था। उसकी खूबी उसका सौंदर्य-बोध था जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाजपोषित था। अतीत की ऐसी कहानियों के स्मारक चिहनों को आधुनिक व्यवस्था के विकास-अभियानों की भेंट चढ़ाते जाना भी लेखक को कचोटता है।

    प्रश्न 8:
    पर्यटक मुअनजो-दड़ों में क्या-क्या देख सकते हैं? ‘अतीत के दबे पाँव’ पाठ के आधार पर किन्हीं तीन दृश्यों का परिचय दीजिए।

    उत्तर –
    मुअनजो-दड़ो में पर्यटक निम्नलिखित स्थान देख सकते हैं

    बौदध स्तूप – मुअनजो-दड़ो के सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। 1992 ई. में राखलदास बनर्जी ने इसी बौद्ध स्तूप की खुदाई करते हुए सिंधु-सभ्यता के बारे में जाना। इस चबूतरे को विद्वान ‘गढ़’ कहते हैं।
    विशाल स्नानागार व कुंड – यहाँ सामूहिक स्नानागार के लिए एक विशाल कुंड पाया गया है। एक पंक्ति में आठ स्नानघर हैं जिनमें किसी के भी दरवाजे एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते। कुंड के तल और दीवारों की ईटों के बीच चूने और चिराड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ जिससे कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आए।
    अजायबघर – मुअनजो-दड़ो में अजायबघर बनाया गया है जो छोटा है। यहाँ पर काला पड़ गया गेहूँ, मुहरें, चौपड़ की गोटियाँ, माप-तौल के पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी आदि रखे गए हैं। यहाँ औजार तो हैं, परंतु हथियार नहीं।

    III. मूल्यपरक प्रश्न

    प्रश्न 1:
    निम्नलिखित गदयांशों तथा इन पर आधारित मूल्यपरक प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए –

    (अ) अभी भी मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा प्राचीन भारत के ही नहीं, दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। ये सिंधु घाटी सभ्यता के परवर्ती यानी परिपक्व दौर के शहर हैं। खुदाई में और शहर भी मिले हैं। लेकिन मुअनजो-द. डो ताम्र काल के शहरों में सबसे बड़ा है। वह सबसे उत्कृष्ट भी है। व्यापक खुदाई यहीं पर संभव हुई। बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले। सभ्यता का अध्ययन संभव हुआ। उधर सैकड़ों मील दूर हड़प्पा के ज्यादातर साक्ष्य रेल लाइन बिछने के दौरान ‘विकास की भेंट चढ़ गए।’
    मुअनजो-दड़ो के बारे में धारणा है कि अपने दौर में वह घाटी की सभ्यता का केंद्र रहा होगा। यानी एक तरह की राजधानी। माना जाता है यह शहर दो सौ हेक्टर क्षेत्र में फैला था। आबादी कोई पचासी हजार थी। जाहिर है, पाँच हजार साल पहले यह आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लाँघता होगा।

    प्रश्न:

    1. यदि मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा में भवन तो मिलते पर मुहरें खिलौने, मूर्तियाँ आदि न मिलतीं तो क्या होता? अपने विचार लिखिए।
    2. ‘हड़प्पा के अधिकतर साक्ष्य विकास की भेंट चढ़ गए।” -आपके विचार से विकास किस सीमा तक किया जाना चाहिए और क्यों?
    3. ‘पाँच हजार साल पहल यह आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लाँघता होगा।”-का अर्थ क्या है?
      आप अपनी धरोहरों और प्राचीन इमारतों को सुरक्षित रखने के लिए क्या-क्या करेंगे?

    उत्तर –

    1. यदि मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा की खुदाई में मुहरें, खिलौने, मूर्तियाँ आदि न मिलतीं तो भवन-निर्माण कला तथा घरों की व्यवस्था के अलावा मूर्तिकला, चित्रकला और अन्य शिल्पों की जानकारी न मिल पाती।
    2. मनुष्य के सभ्य होने का मापदंड विकास माना जाता है। मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने तथा सभ्यता की ओर कदम बढ़ाने के लिए संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग करता है जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित होता है। मेरे विचार से विकास उस सीमा तक किया जाना चाहिए, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष में कोई विनाश न हो।
    3. उक्त पंक्ति का अर्थ है-अत्यंत उन्नत रहा होगा। मैं अपनी धरोहरों और प्राचीन इमारतों को सुरक्षित रखने के लिए-

     

    1. आस-पास सफ़ाई रखेंगा।
    2. प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को नियंत्रित करूंगा।
    3. लोगों में जागरूकता फैलाऊँगा।
    4. सरकार का ध्यान इनकी ओर आकर्षित कराने का प्रयास करूंगा।

    (ब) नगर-नियोजन की मुअनजो-दड़ो अनूठी मिसाल है। इस कथन का मतलब आप बड़े चबूतरे से नीचे की तरफ़ देखते हुए सहज ही भाँप सकते हैं। इमारतें भले खंडहरों में बदल चुकी हों मगर ‘शहर’ की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की कमोबेश सारी सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी। आज वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आज की सेक्टर-माका कॉलोनियों में हमें आड़ा-सीधा ‘नियोजन’ बहुत मिलता है। लेकिन वह रहन-सहन को नीरस बनाता है। शहरों में नियोजन के नाम पर भी हमें अराजकता ज्यादा हाथ लगती है। ब्रासीलिया या चंडीगढ़ और इस्लामाबाद ‘ग्रिड” शैली के शहर हैं जो आधुनिक नगर-नियोजन के प्रतिमान ठहराए जाते हैं, लेकिन उनकी बसावट शहर के खुद विकसने का कितना अवकाश छोड़ती है इस पर बहुत शंका प्रकट की जाती है। मुअनजो-दड़ो की साक्षर सभ्यता एक सुसंस्कृत समाज की स्थापना थी, लेकिन उसमें नगर-नियोजन और वास्तु कला की आखिर कितनी भूमिका थी?

    क्या सिंधु सभ्यता को जल संस्कृति कह सकते है?

    यह पानी निकासी का सुव्यवस्थित बन्दोबस्त है। आज भी शहरों का नियोजन करते समय इन्हीं बातों का ध्यान रखा जाता है। आधुनिक वास्तुकार सिन्धु सभ्यता की इस व्यवस्था का महत्व स्वीकार करते हैं। इस तरह यह सभ्यता 'जल संस्कृति' का स्तर छू लेती है।

    क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल संस्कृति कह सकते हैं अतीत में दबे पाँव पाठ के आधार पर पक्ष या विपक्ष में लिखिए?

    सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो।

    सिंधु घाटी की सभ्यता को क्या कहा जाता है * भू संस्कृति ग्रामीण सभ्यता जल संस्कृति ग्रामीण संस्कृति?

    १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी मे फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरो के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।

    1 मोहनजोदड़ो की संस्कृति को जल संस्कृति क्यों कहा गया?

    इतिहासकारों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता पहली ऐसी ज्ञात संस्कृति है जिन्होंने कुएँ खोदकर भू-जल तक पहुँचने की क्षमता प्राप्त की थी। केवल मोहनजोदड़ो में ही लगभग सात सौ कुएँ थे। नदी, कुएँ, कुंड, स्नानागार और बेजोड़ जल-निकासी के कारण ही मोहनजोदड़ो को 'जल संस्कृति' का नाम दिया जाता है।