छत्तीसगढ़ भारती कक्षा सातवीं पाठ 1 कुछ और भी दूँ Show ( 01) मन समर्पित ,तन समर्पित , और यह जीवन समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती ,तुझे कुछ और भी दूँ।। संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक कक्षा 7वीं छत्तीसगढ़ भारती के पाठ 1 से लिया गया है जिसके कवि श्री रामावतार त्यागी जी है। प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि अपने मातृभूमि के प्रति सबकुछ न्यौछावर करने को कहता है। भावार्थ– कवि कहता है कि है मातृभूमि मैं अपना तन मन एवम जीवन तेरी रक्षा के लिये समर्पित करने के पश्चात भी चाहता हु की तुझ पर कुछ और न्यौछावर करू भाव यह है कि कवि के पास उसके प्राणों से भी बढ़कर यदि कोई चीज है तो उसको भी वह मातृभूमि पर अर्पित कर देना चाहता है । ( 02) माँ तुम्हारा ऋण बहुत है,मैं अंकिचन, किंतु इतना कर रहा ,फिर भी निवेदन थाल में लाऊ सजाकर भाल जब, कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण, गान अर्पित ,प्राण अर्पित , रक्त का कण- कण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती ,तुझे कुछ और भी दूँ। संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक कक्षा 7वीं छत्तीसगढ़ भारती के पाठ 1 से लिया गया है जिसके कवि श्री रामावतार त्यागी जी है। प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहता है कि धरती माँ के ऋण से कभी मुक्त नही हो सकते। भावार्थ– कवि कहता है कि हे माँ तुम्हारा देश का मुझ पर बहुत बड़ा ऋण है उस उपकार के सम्मुख में बहुत ही तुच्छ या छोटा हूँ किंतु तुझसे इतनी विनती और करना चाहता हु की जब मैं थाल में रखकर अपना मस्तक लॉउ तो मेरी इस तुच्छ भेंट को मुझ पर एक बार पुनः दया करते हुए स्वीकार कर लेना है मातृभूमि तुझ पर मेरे गीत मेरे प्राण और मेरे रक्त की एक बूंदे न्यौछावर है इनके अलावा भी यदि कोई मेरी बहुमूल्य चीज बची है तो उसको भी मैं अपने देश पर न्यौछावर करना चाहता हूँ। ( 03) भांज दो तलवार को लाओ न देरी , बांध दो कसकर ,कमर पर ढाल मेरी , भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी , शीश पर आशीष की छाया घनेरी, स्वप्न अर्पित ,प्रश्न अर्पित , आयु का क्षण क्षण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती ,तुझे कुछ और भी दूँ। संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक कक्षा 7वीं छत्तीसगढ़ भारती के पाठ 1 से लिया गया है जिसके कवि श्री रामावतार त्यागी जी है। प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि देश रक्षा के लिये आशीर्वाद माँगने को कहता है। भावार्थ –कवि कहता है कि अब विलंब न करो मुझे पैनी तलवार लाकर दे दो और मेरी कमर में कसकर ढाल बांध दो, मेरे मस्तक पर भारत माता की चरण रज को लगा दो मेरे सिर पर भारत माता के आशीर्वाद की बहुत गहरी छाया है मेरे स्वपन मेरे प्रश्न की और मेरी आयु का एक एक पल भारत माता के चरणों में अर्पित है इसके अलावा भी यदि कुछ प्रिय चीज शेष रह गया हो तो उसको भी मैं देश पर न्यौछावर करना चाहता हूँ। (04) तोड़ता हु मोह का बंधन ,क्षमा दो, गाँव मेरे ,द्वार- घर - आँगन क्षमा दो, आज सीधे हाथ में तलवार दे दो, और बांये हाथ में ध्वज को थमा दो। ये सुमन लो,यह चमन लो, नीड़ का तृण तृण समर्पित , चाहता हूँ देश की धरती ,तुझे कुछ और भी दूँ ।। संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक कक्षा 7वीं छत्तीसगढ़ भारती के पाठ 1 से लिया गया है जिसके कवि श्री रामावतार त्यागी जी है। प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि देश रक्षा में जाने वाले युवा अपने घर आंगन से क्षमा मांगते हुए पारिवारिक मोह को छोड़ने को कहता है। भावार्थ–कवि कहता है कि आज मैं माया मोह के बंधन से छोड़ना चाहता हु मैं अपने गांव घर द्वार एवं आंगन को देश के लिए त्यागते हुए इनसे छमा प्रार्थी भी हु परन्तु देश हित इन सबसे सर्वोपरि है आज मेरे दाएं हाथ मे तलवार एवम बाए हाथ मे तिरंगा थमा दे दीजिए मैं तिरंगे की रक्षा में न्यौछावर हो जाना चाहता हु कवि कहता है कि मेरी सब सुविधा के प्रतीक वस्तु और साधन स्वरूप बगिया एवम घर का एक एक तिनका हमारी मातृ भूमि पर न्यौछावर है इसके अलावा और कुछ भी यदि है तो उसको भी मातृ भूमि पर मैं न्यौछावर करना चाहता हूँ। अभ्यास प्रश्न 1. कवि देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर क्यों करना चाहता है ? उत्तर– कवि राष्ट्रीय भावना से ओत- प्रोत होकर अपने देश के लिए कुछ करने की चाहत के फलस्वरूप अपना सर्वस्व न्यौछावर करना चाहता है| कवि के मन मे देश प्रेम की भावना कूट -कूट कर भरी है। प्रश्न 2. माँ के किस ऋण की बात कवि कहते है? उत्तर– कवि मातृभूमि से उसके द्वारा प्रदत्त विभिन्न प्रकार के संसाधनों जो मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है जिसके बिना मानव का जीवन संभव नही है जैसे जल ,धन -धान्य ,फल -फूल खनिज पदार्थ आदि इस धरती पर भरे पड़े है जिसे मातृभूमि हमे प्रदान करती है उन्ही ऋण अर्थात उपकारों की बात कवि कहते है। प्रशन 3. कुछ और देने की चाहत कवि को क्यों है? उत्तर– कुछ और देने की चाहत कवि को इसलिए है क्योंकि कवि मातृभूमि के सामने स्वयं तो तुच्छ मानते हैं और भारत माता के चरणों में अपने प्राणों के अतिरिक्त कोई प्रिय चीज शेष रह गया हो तो उसको भी मातृभूमि पर न्यौछावर करना चाहता है। प्रश्न 4. कवि स्वयं को अकिंचन क्यों कह रहे हैं ? उत्तर– मातृभूमि में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संपदा भरी पड़ी है कवि कि यह भावना है कि हे मातृभूमि तुम्हारा मुझ पर बहुत बड़ा ऋण है उस ऋण में सम्मुख मैं बहुत ही तुच्छ अंकीचक हूं अर्थात मातृभूमि के पुकारो को चुकाना मेरे सामर्थ्य से बाहर है। प्रश्न 5. क्या स्वीकार करने का आग्रह कवि राष्ट्र माँ से कर रहे हैं? उत्तर – जब मैं थाल में रखकर अपना मस्तक लाऊं तो मेरी इस तुच्छ भेंट को मुझ पर एक बार पुनः दया करते हुए स्वीकार करने का आग्रह कवि राष्ट्र माँ से कह रहे हैं। प्रश्न 6. चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ पंक्तियों के माध्यम से कवि किन भावों को व्यक्त करना चाहते हैं? उत्तर– चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ पंक्तियों के माध्यम से कभी यह भाव व्यक्त करना चाहते हैं कि अपनी महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण वस्तु मातृभूमि में न्यौछावर कर ना अपना सबसे बड़ा सौभाग्य समझते हैं कवि की इन पंक्तियों के माध्यम से यह भावना है कि कोई भी चीज देखना रह जाएं मातृभूमि में समर्पण में। पाठ से आगे प्रश्न 1. स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित वायु का क्षण क्षण समर्पित इस कविता को पढ़ने के बाद आपको क्या महसूस होता हैं ? यह कविता पाठ की अन्य कविताएं जैसी है या उससे अलग है अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर – स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित वायु का क्षण क्षण समर्पित इस कविता को पढ़ने के बाद इसमें देश प्रेम की भावना जागृत होती है और ऐसा महसूस होता है कि मैं भी अपने देश के लिए कुछ करूं मेरा स्वप्ना और मेरी आयु का एक-एक पल भारत माता के चरणों में अर्पित है या पांच अन्य कविताओं से अलग है क्योंकि यहां कवि समस्त देशवासियों को यह संदेश देना चाहता है कि देश की रक्षा सर्वोपरि है अतएव प्रत्येक देशवासी का यह प्रथम धर्म (कर्तव्य )है कि इसकी रक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर सब कुछ न्योछावर करने के लिए सदैव तैयार रहें। प्रश्न 2. इस कविता में कवि राष्ट्र के प्रति अपना सबकुछ अर्पित करने की बात करता है क्या आपको लगता है कि हमारे आसपास के लोग इसके लिए तैयार हैं? लिखिए। उत्तर– इस कविता में कवि राष्ट्र के प्रति अपना सबकुछ अर्पित करने की बात करता है हां हमें लगता है कि हमारे आसपास के लोग इसके लिए तैयार हैं जब बात देशहित की आती है तो समाज के सभी वर्गों के लोग अपना व्यक्तिगत स्वार्थ भूल कर जाति धर्म से अरे देश हित में अपना सबकुछ अर्पित करने को तैयार हो जाते हैं। प्रश्न 3. अपनी माँ और राष्ट्रमाता में आपको क्या फर्क लगता है? अगर हम सब अपनी माँ के सम्मान के प्रति उत्तरदायी हैं तो स्वाभाविक रूप में राष्ट्रीय माता के प्रति भी हम समर्पित होंगे ।विचार कर लिखिए। उत्तर– जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थ आत्मा और राष्ट्र माता को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं जिस प्रकार हम अपने मां के सम्मान के प्रति उत्तरदाई हैं तो स्वाभाविक रूप से राष्ट्र माता के प्रति उतने ही समर्पित होंगे जब हमारी मां पर कोई परेशानी विपत्ति आती है तो हम उनका सामना करते हैं उसी प्रकार हमारी मातृभूमि पर कोई आंच आए तो हम भारत माता की रक्षा के लिए अपना तन मन धन सर्वस्व न्यछावर करने के लिए तत्पर हो जाएंगे और अपने जीवन का एक-एक क्षण श्रम बलिदान के लिए मात्री भूमि पर समर्पित रहूंगा। प्रश्न 4. राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण मैं बाधक तत्व आपको क्या लगते हैं? साथियों के साथ विचार कर अपनी समझ को लिखिए। उत्तर– राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण में बाधक तत्व धार्मिक कारण सांप्रदायिकता की भावना क्षेत्रीयता की भावना अलगाववाद राजनीतिक कारण जातिगत विद्वेष स्वार्थ की भावना सामाजिक विद्वेष आदि हैं। भाषा से प्रश्न 1. इस कविता में बहुत से तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे-ऋण, अंकिचन ,भाल,अर्पण,चरण, ध्वज, सुमन,नीड़, तृण इन शब्दों का छत्तीसगढ़ी भाषा में क्या प्रयोग प्रचलित है उन्हें खोज कर वाक्य प्रयोग कीजिए। उत्तर– ऋण – करजा अंकिचन – छोटे भाल – माथा अर्पण – अरपन चरण – गोंड़ ध्वज – धजा सुमन – फूल नीड़ – चिरई झाला तृण – घास वाक्य प्रयोग– 1. आजकल बर बिहाव करे बर भी करजा लेहे बर परथे। 2.धरती माता के उपकार के आघु हमन बहुत छोटे हन। 3. मोर बहिनी के माथा हर चौड़ा हे। 4. हमन पूजा के समय भगवान ल फूल-पान अरपन करथन। 5. बाहर ले घर आए के बाद गोड़ - हाथ धोना चाहिए। 6.भारत के तिरंगा धजा के सदा मान- सम्मान ल बनाये रखबो। 7. गोंदा के फूल ह हर राजकीय फूल ए। 8. हर आमा के पेड़ म चिरई अपन झाला बनाए हे। 9. खेत म जागे घास के निंदाई होथे। प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के सही रूप को छाँटकर लिखिये उत्तर– 1. न्यौछावर/ न्योछावर न्यौछावर 2. आशीश/ आशीष आशीष 3. अकिंचन/ अकिंचन अकिंचन 4. सवीकार/ स्वीकार स्वीकार 5. स्वाभाविक/स्वभाविक स्वाभाविक 6. आसय / आशय आशय 7. अनुप्रास / अनुप्रास अनुप्रास 8. कृतज्ञ/ कृतग्य कृतज्ञ कवि देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर क्यों करना चाहते थे?Answer: कवि मातृभूमि के लिए तन-मन-प्राण सब कुछ समर्पित करना चाहता है। वह अपने मस्तक, गीत तथा रक्त का एक-एक कण भी अपने देश की धरती के लिए अर्पित कर देना चाहता है। ... कवि अपने गाँव, द्वार-घर-आँगन आदि सभी के प्रति अपने लगाव को छोड़कर मातृभूमि के लिए सर्वस्व प्रदान करना चाहता है।
1 कवि देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर क्यों करना चाहते हैं ?`?Answer: देशभक्त नेताओं ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपनी हर खुशी को त्याग दिया तथा अपना सर्वस्व देश के प्रति समर्पित कर दिया।
कवि ने देश की धरती से क्या निवेदन किया है?Explanation: कवि अपने देश की धरती की रक्षा करने के लिए शस्त्र धारण करना चाहता है। ... कवि मातृभूमि के लिए अपना तन, मन, जीवन, अपने गान, प्राण, रक्त का प्रत्येक कण, अपने स्वपन, प्रश्न, आयु का प्रत्येक क्षण, सुमन, चमन और अपने नीड़ का प्रत्येक तृण भी अर्पित करना चाहता है। अर्थात वह सर्वस्व अर्पित करना चाहता है।
चाहता हूँ कविता में कवि धरती माता से क्या निवेदन कर रहा है?कवि स्वयं को अपनी मातृभूमि पर समर्पित करना चाहता है, इसलिए वह मोह का बंधन तोड़ देना चाहता है। 4. कवि मातृभूमि से निवेदन कर रहा है कि जब वह अपना मस्तक उसकी सेवा में समर्पित करे तो वह उसे स्वीकार कर ले।
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