नव प्रकार्यवाद समाज के सिद्धांत के एक बाद ओर हाल के विचार हैं, जो इस परिप्रेक्ष्य के संस्थापकों के कुछ बुनियादी विचारों को बनाए रखते हें। यह प्रकार्यवाद की मोजूदा धारणा की सीमाएं पाता है ओर प्रकार्यवाद के पहले के बुनियादी विचारों का सुधार करता है। Show प्रकार्यवाद के जनकहेबर्ट स्पेंसरहेबर्ट स्पेंसर (1820.1903) एक र्बिटिश समाजशास्त्री हें, जिन्हें आमतौर पर समाजशास्त्र के कुछ इतिहासकारों द्वारा ऑगस्ट कॉम्टे के जैविक और विकासवादी दृष्टिकोण के एक निरंतरता के रूप में माना जाता है। लेकिन उनका सामान्य झुकाव कॉम्टे से काफी अलग है। वह खुद दावा करते हैं कि ‘‘कॉम्टे ने ‘मानवीय अवधारणाओं की प्रगति’ का सुसंगत विवरण देने की कोशिश की, जबकि मेरा उद्देश्य बाहरी दुनिया की प्रगति का एक सुसंगत विवरण देना है ... आवश्यक और वास्तविक चीजों का वर्णन करने के लिए ... घटना की उत्पत्ति की व्याख्या जो प्रकृति का गठन करती हे ”(कोसर 1996)। जैविक ओर सामाजिक दोनों समूह के आकार में प्रगतिशील वृद्धि के अनुसार स्पेंसर द्वारा विशेषता बताई गई है।सामाजिक समूह, जैविक की तरह, अपेक्षाकृत समरूप अवस्थाओं से विकसित होते हें, जिसमें एक भाग दूसरे से अलग.अलग अवस्थाओं में मिलते.जुलते हैं ... एक बार जब अंग विपरीत हो जाते हैं, तो वे परस्पर एक दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं (पूर्वोक्त)। इस प्रकार, बढ ़ते विभेदन के साथ निर्भरता बढ़ती हे और इसलिए एकीकरण होता हे। बड़े पैमाने पर समाजशास्त्रियों ने हर्बर्ट स्पेंसर को एक उद्विकासीय समाजशास्त्री माना है, लेकिन बढ ़ते विभेदन के साथ अंगों के बारे में उनका मूल विचार अन्योन्याश्रित हो गया हे ओर एकीकरण के लिए काम करने या परिणामस्वरूप होने वाले जीवों के ‘‘संरचनात्मक प्रकार्यात्मक’’ तत्वों की उत्पत्ति को एक जीवित पूर्णत्व के रूप में समाज के सिद्धांत को दर्शाता है। इस तरह के लेखन के आधार पर यह कहा जाता है कि सामाजिक प्रकार्य की अवधारणा उन्नीसवीं सदी में सबसे स्पष्ट रूप से हेबर्ट स्पेंसर द्वारा तेयार की गई थी। सामाजिक संरचना ओर सामाजिक कार्य का यह विश्लेषण उनके द्वारा प्रसिद्ध पुस्तक, समाजशास्त्र के सिद्धान्त में उनके द्वारा प्रदान किया गया हे। इसमें समाजशास्त्र में सामाजिक कार्य को वर्गीकृत करने का पहला विचार शामिल हे (बॉटमोर 1975)। बाद में इसे उन्नीसवीं शताब्दी के अंत ओर बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अन्य समाजशास्त्रियों ओर सामाजिक मानवविज्ञानियों द्वारा व्यवस्थित, कठोर और स्पष्ट रूप से लिया गया। प्रकार्यवाद पर हर्बर्ट स्पेंसर के मुख्य विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता हेः
उन्होंने जॉन स्टुअर्ट मिल, हक्सले ओर अन्य जैसे मूल विचारकों का सम्मान हासिल किया। डेविड एमिल दुर्खीमडेविड एमिल दुर्खीम (1858.1917) एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री है जिसे आम तोर पर फ्रांसीसी समाजशास्त्र के जनक के रूप में माना जाता है ओर साथ ही साथ उनके प्रयासों से समाजशास्त्र एक अलग अनुशासन के रूप में माना जाता है। उन्होंने समाजशास्त्रीय सिद्धांत के साथ अनुभवजन्य अनुसंधान को मिलाकर एक कठोर पद्धति विकसित की। उनका काम इस बात पर केंद्रित था कि पारंपरिक ओर आधुनिक समाज कैसे विकसित ओर कार्य करते हैं। उनके कई लेखों से दुनिया भर के समाजशास्त्रियों के बीच चार पुस्तकें सबसे मूल्यवान हैं, जैसे कि द डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी, द रूल्स ऑफ सोशियोलॉजिकल मेथड, ले सुसाइड, ओर ऐलिमेंटरीुार्म आॅफ रिलिजियस लाइफ।एमिल दुर्खीम ने स्पष्ट रूप से समाजशास्त्र और इसकी कार्यप्रणाली के विषय को रेखांकित किया। उन्होंने हर्बर्ट स्पेंसर के योगदान से चुनिंदा विचारों को उधार लिया था। उन्होंने (सामाजिक) कार्यों की अवधारणा को स्पष्ट रूप से उन्नत किया ओर एक सुसंगत, स्पष्ट ओर न्यायपूर्ण सिद्धांत में कार्यात्मकता की स्थापना की। उन्होंने अपने प्रसिद्ध काम, ‘‘समाज में श्रम का विभाजन’’ में कार्यों की स्पष्ट.अवधारणा की स्थापना की, जिसमें उन्होंने समाज में (या पूरे समाज के लिए) श्रम के विभाजन के कार्यों का अध्ययन किया। एक सामाजिक संस्था के रूप में श्रम विभाजन का अध्ययन करते हुए, वह सवाल पूछते हैं, ‘समाज में श्रम विभाजन का कार्य क्या है’? वह इस मुद्दे को समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकता के संदर्भ में संबोधित करते हैं। दुर्खीम के लिए, सामाजिक एकजुटता समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकता हे। ओद्योगिक समाज में श्रम का विभाजन (जैसा कि पश्चिमी यूरोप में था, उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द ्ध के दौरान) इस सामाजिक एकजुटता को आधार प्रदान करता हे। सरल समाजों की तुलना में ये तेजी से विभेदित समाज हैं। दुर्खीम एकजुटता को महत्त्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि समाज में एकजुटता बनाए रखने के बिना समाज टूट सकता है ओर कदाचित समाज ही न रहे। लेकिन कुछ सामाजिक चिंतक मानते हैं कि उनकी कार्यक्षमता विकासवादी सिद्धांत में निहित है, ओर इसमें कोई संदेह नहीं हे कि यह कुछ हद तक सही प्रतीत होता हे। लेकिन समाजशास्त्र को अपनी विषय वस्तु और पद्धति के साथ एक अलग अनुशासन के रूप में स्थापित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। इसी तरह, समाज को प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण से स्थापित करना भी उसकी उपलब्धि है। ब्रॉनिस्लाव मैलिनोवस्कीब्रॉनिस्लाव मैलिनोवस्की (1884.1942) एक र्बिटिश सामाजिक मानव विज्ञानी है जो अपने के सिद्धांत के लिए अच्छी तरह से जाने जाते हें। ऐसा कहा जाता हे कि वे एमिल दुर्खीम, सी.जी. सेलिगमैन और ई. वेस्टरमार्क से अकादमिक रूप से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कई सामाजिक नृविज्ञानियों को प्रभावित किया, और उनके प्रभाव में उन्होंने विशेष समाजों में वास्तविक व्यवहार के विस्त ृत ओर सावधानीपूर्वक वर्णन के लिए खुद को समर्पित किया। उनके प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण ने सामाजिक व्यवहार के सटीक अवलोकन ओर अभिलेखन (रिकॉर्डिंग) को शामिल करते हुए क्षेत्र कार्य पर जोर दिया। उन्होंने मुख्य रूप से ‘प्रतिभागी अवलोकन’ पद्धति का उपयोग करके अपने दृष्टिकोण को अपनाकर ट्रार्बिएंड आइलैंडर्स का अध्ययन किया।उनकी पुस्तक, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के अरगोनाट्सृ ट्रोब्रिएंड आइलैंडर्स पर उनके क्षेत्र कार्य का नतीजा है। इस शास्त्रीय पुस्तक के प्रकाशन ने उन्हें एक विश्व प्रसिद्ध मानवविज्ञानी के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। यह ट ªोब्रिएंडर्स की संस्कृति के इस विस्त ृत ओर सावधानीपूर्वक वर्णन से था कि वे उद्विकसवादी सिद्धांत (इवोल्यूशनरी थ्योरी) ओर पहले के समाजशास्त्रियों और मानवविज्ञानियों ओर उनके अद्वितीय प्रकार्यवाद के तुलनात्मक तरीके के खिलाफ दृढ़ता से सामने आए। संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम किसकी देन है?सरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural functionalism) या केवल प्रकार्यवाद समाजशास्त्र की प्रमुख अवधारणा है। प्रकार्यवादी सोच को विकसित करने वाले समाजशास्त्रियों में जिन दो विचारकों को महत्वपूर्ण माना जाता है उसमें दुर्खिम (1858-1917) तथा टालकाट पार्सन्स (1902-1979) प्रमुख रहे हैं।
संरचनात्मक प्रकार्यवाद के जनक कौन है?मनोविज्ञान में प्रकार्यवाद (functionalism) एक ऐसा स्कूल या सम्प्रदाय है जिसकी उत्पत्ति संरचनावाद के वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक उपागम के विरोध में हुआ। विलियम जेम्स (1842-1910) द्वारा प्रकार्यवाद की स्थापना अमेरिका के हारवर्ड विश्वविद्यालय में की गयी थी।
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम क्या है?आज समाजशास्त्रीय अध्ययनों में संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है। यह परिप्रेक्ष्य इस आधारभूत मान्यता पर आधारित है कि समाज या सामाजिक संरचना का प्रत्येक अंग व इकाई सम्पूर्ण समाज या संरचना को बनाए रखने के लिए निश्चित योगदान प्रदान करती है।
संरचनात्मक उपागम का अन्य नाम क्या है?Sanrachnatmak प्रकार्यात्मक Upagam Ke Praneta Kaun Hai
सरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural functionalism) या केवल प्रकार्यवाद समाजशास्त्र की प्रमुख अवधारणा है।
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