जीवन में हास्य विनोद परम आवश्यक क्यों है? - jeevan mein haasy vinod param aavashyak kyon hai?

जीवन में हास्य विनोद परम आवश्यक क्यों है? - jeevan mein haasy vinod param aavashyak kyon hai?

जीवन में हास्य-विनोद का महत्व पर निबंध 

मानव की प्रकृतिप्रदत्त विभूतियों में एक बड़ी ही मोहक विभूति है-हास्य-विनोद । जिंदगी केवल कराहों का सिलसिला, आहों का जलजला और दर्द की दास्तान बनकर रह जाए, यदि उसमें हास्य-विनोद न हो। हास्य लाख दुःखों की एक दवा है, स्वास्थ्य का एक अनोखा मंत्र है। चिंताओं के पुलिंदे को थोड़ी देर के लिए अलग करने में हास्य और विनोद बड़े ही सहायक हैं। कविता केवल हृदय का उद्गार है, विनोद रोम-रोम का उद्गार है। विनोद एक प्रकार की पृष्टई है, जिससे शरीर और मस्तिष्क को नई शक्ति मिलती है, स्रस्त-त्रस्त शिराओं में मकरध्वज की ऊष्मा आ जाती है। गाँधीजी ने कहा है कि यदि मुझमें विनोद का भाव न होता, तो मैंने बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती। संतों ने ठीक ही कहा है कि यदि दुःख में सुख की अनुभूति चाहते हो, तो हँसमुख बनो। 

वह मनुष्य बड़ा ही भाग्यशाली है, जिसे विधाता से हास्य और विनोद का बहुमूल्य वरदान मिला है। फोटोग्राफर फोटो खींचने के समय चाहता है कि आप एक क्षण के लिए मुस्कराएँ, किंतु विधाता-फोटोग्राफर तो चाहता है कि आप जीवनभर मुस्कराते रहें। जिस मुख पर हास्य की दुग्धधवल, चाँदनी छिटकनी चाहिए, उसे क्या अधिकार है कि वह अपनी अयस्कांतीय आकृति को अवसाद की काली रेखाओं से अमावस की काली रजनी बना डाले? सुप्रसिद्ध जापानी कवि नागूची ने भगवान से वरदान माँगा. है-“जब जीवन के किनारे की हरियाली सूख गई हो, चिड़ियों की चहक मूक हो गई हो, सूर्य को ग्रहण लग गया हो, मेरे मित्र एवं साथी मुझे काँटों में अकेला छोड़कर कतरा गए हों और आकाश का सारा क्रोध मेरे भाग्य पर बरसनेवाला हो, तब हे भगवान, तुम मुझपर इतनी कृपा करना कि मेरे ओठों पर हँसी की एक उजली लकीर खिंच जाए।” 

हास्य और उल्लास का ही नाम जवानी है। उसे हम कभी युवा नहीं कहेंगे, जिसके चेहरे पर हर वक्त बारह बजा रहता हो, मुहर्रमी गम छाया रहता हो। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि हँसी की पृष्ठभूमि पर ही जवानी के फूल खिलते हैं। जिंदगी हास्य और विनोद के बिना अपनी जिंदादिली खो देती है। 

हँसमुख व्यक्ति वह फव्वारा है, जिसके शीतल छींटे मन को प्रफुल्लित करते रहते, हैं। बैयक्तिक जीवन की सफलता के अनेक रहस्यों में एक रहस्य हँसमख आकति का होना भी है। किसी साक्षात्कार में वह व्यक्ति आसानी से चुन लिया जाता है, जिसके होठों पर मुस्कान की दुधिया रेखाएँ अठखेलियाँ करती हैं। पाश्चात्य देशों में बिना मस्कराहट के अभिवादन अशिष्टता की निशानी मानी जाती है। हँसमुख व्यक्ति को देखकर यह धारणा बनती है कि उसके मन में कोई गाँठ नहीं, कोई उलझन नहीं विहँसता हआ चेहरा ऐसा दर्पण है, जिसपर मन की स्वच्छ भावनाएँ प्रतिबिंबित होती हैं। ऐसे व्यक्ति के मित्र भी आसानी से बन जाते हैं और लोग उनकी संगति से दूर रहना नहीं चाहते। एक विक्रेता की मोहक मुस्कान वह काम कर जाती है, जो किसी जेबकतरे की कैंची नहीं कर पाती। एक हँसमुख डॉक्टर को देखकर ही आधी बीमारी भाग जाती है। एक सहजप्रसन्न शिक्षक की कक्षा में कभी उदासी की घटा नहीं छाती। एक हँसमुख-विनोदप्रिय नेता के पीछे अनुगामियों की कतार जुट जाती है। 

दीर्घायु होने का सर्वोत्तम साधन है हँसमुख स्वभाव। हँसमुख आकृति मानो ऐसा आईना है, जिसमें परमात्मा की प्रसन्नता हर क्षण दिखाई पड़ती रहती है। मानसोपचारशास्त्री तो हास्यविनोद द्वारा अनके रोगों की चिकित्सा भी किया करते हैं। स्पार्टा में हास्यदेव की मूर्ति पाचनशक्ति बढ़ानेवाली मानी गई है। 

सामाजिक जीवन में भी हास्य-विनोद की बड़ी उपयोगिता है। हँसी के एक झोंके से मन का मैल धुल जाता है, कटुता स्पिरिट की बूंद की तरह उड़ जाती है। कहा गया है-भाषा और भाषण का भूषण है विनोद । जिस व्यक्ति के भाषण में हास्य-विनोद का पुट होता है, उससे लोग सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। अतः, हास्य-विनोद केवल उदासी ही नहीं मिटाती, वरन् इससे शत्रु भी मित्र बन जाते हैं, पाश्चात्य देशों में ‘अप्रिल फूल’ तथा भारतवर्ष में ‘होली’ के पर्व ऐसे ही हैं, जिनमें वर्षभर की तिक्तता हास्यप्रेम की रंगीन पिचकारी से दूर हो जाती है। 

कहा जाता है-Face is the index of mind-मुखाकृति व्यक्तिमानस की सूचिका है। इसलिए, हास्य-विनोद केवल स्वस्थ्य शरीर का ही लक्षण नहीं, स्वस्थ मन का भी सूचक है। इसलिए आप देखेंगे कि संसार के प्रायः सभी महापुरुष अतिशय विनोदप्रिय रहे हैं। अपने जीवन के तनाव को उन्होंने हास्य-विनोद से ही कम किया है, हास्य-विनोद 

की बूटी से ही उन्होंने कड़वे जमाने के पत्थर को भी पचा डाला है। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, रवींद्रनाथ ठाकुर, शरतचंद्र आदि के व्यस्त जीवन को उनके हास्य की टिकिया ताजगी देती रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति लिंकन तो अपनी मेज पर हर समय हास्यरस की कोई-न-कोई पुस्तक रखा करते थे और थकान की घड़ियों में उससे नई स्फूर्ति प्राप्त किया करते थे। महापुरुषों ने हास्य का सहारा लेकर गहन-से-गहन बातों को किस प्रकार सरल बनाया है, इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। 

महान साहित्यकारों ने अपने गहन-गंभीर साहित्य में हास्य-विनोद की अवतारणा कर उसके आकर्षण को और भी बहुगुणित कर दिया है। कालिदास, शूद्रक, शेक्सपियर आदि महान नाटककारों ने अपने नाटकों में विदूषक का प्रयोग इसी उद्देश्य से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने ‘रामचरितमानस’ में विश्वसुंदरी की कामना करनेवाले बंदरमुँहे नारद द्वारा शिष्ट हास्य की अवतारणा कर सोने में सुगंध ला दी है। हार्डी के करुणाबोझिल उपन्यासों में गँवारों की बातचीत कितना मानसिक तनाव कम करती है, यह पाठक ही जानते हैं। 

इतना ही नहीं, श्रेष्ठ कवियों ने हास्य-व्यंग्य द्वारा पाठकों की आँखों में उँगलियाँ डालकर उन्हें सचेत किया है, उन्हें दिग्भ्रांत होने से बचाया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र की मुकरियाँ इस विषय में सुंदर उदाहरण हैं। एक मुकरी देखें 

तीन बुलाए तेरह आवै, निज-निज विपदा रोई सुनावै॥ 

आँखों फूटी, भरा न पेट, क्या सखि साजन? नहिं ग्रैजुएट॥ 

इसी तरह, बेढब बनारसी की इस हास्य-व्यंग्य-भरी उक्तियों से यदि हमारे नवयुवक न चेतें, तो फिर आश्चर्य ही है। वे कहते हैं 

नजाकत औरतों-सी, बाल लंबे, साफ मूंछे हैं, 

नए फैशन के लोगों की अजब सूरत जनानी है। 

जनेऊ इनकी नेकटाई है, पाउडर इनका टीका है, 

नए बाबू की ह्विस्की आजकल गंगा का पानी है। 

इसीलिए, हास्यसम्राट श्री जे० पी० श्रीवास्तव ने हास्य के बारे में ठीक ही लिखा है- “बुराई-रूपी पापों के लिए इससे बढ़कर कोई दूसरा गंगाजल नहीं है । यह वह हथियार है, जो बड़े-बड़े का मिजाज चुटकियों में ठीक कर देता है। यह वह कोड़ा है, जो मनुष्य को सीधी राह से बहकने नहीं देता। मनुष्य ही नहीं, धर्म और समाज को भी सुधारनेवाला अगर कोई है, तो यही है।”

किंतु, यह ध्यान रखना चाहिए कि हास्य इतना अमर्यादित न हो जाए कि दूसरे की नींद हराम कर दे, ऐसा न हो जाए कि दूसरे के काम में रोड़े अटकाए। इसी प्रकार, विनोद की मात्रा का भी ध्यान रखना आवश्यक है। 

इसलिए, एक लेखक ने ठीक ही कहा है-विनोद चाहे कितना प्रिय और इष्ट क्यों न हो, तो भी उसके मूल्य या महत्त्व की निर्दिष्ट सीमा होनी चाहिए। यदि सद्गुणों के साथ विनोद का मेल होगा, तो मानो दूध में मिसरी पड़ जाएगी अथवा उनकी जोड़ी में वैसी ही उज्ज्वलता और परिदीप्ति आ जाएगी, जैसी स्फटिक पर सूर्य की किरणें पड़ने से आती हैं। अतः, मर्यादित हास्य और विनोद परमात्मा का एक अनोखा वरदान है-इसमें संदेह नहीं।

जीवन में हास्य विनोद का क्या महत्व है?

हर हाल में खुश रहने और हंसने-हंसाने वाले लोगों को सभी पसंद करते हैं और उनके नजदीक रहना चाहते हैं। हंसने की इसी कला के कारण इंसान स्वस्थ बना रहता है क्योंकि परेशानियों को कम समझना और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को जी भर के जीना ही अच्छी सेहत की निशानी है।

जीवन में हंसी का क्या महत्व है लिखिए?

तनाव को दूर करने में जो काम हंसी करती है वो कोई दवाई नहीं कर सकती. दरअसल, हंसने से आप लोगों के साथ ज्यादा सोशली एक्टिव हो जाते हैं, जिससे आपका तनाव खुद ही कम हो जाता है.

हास्य विनोद में किसका ध्यान रखना चाहिए?

जो संतुष्टि प्रधान काव्य है उसे हम परिहास की कोटि का मानते हैं और जो संशुद्धि प्रधान है उसे उपहास की कोटि का। अनेक रचनाओं में दोनों का मिश्रण भी हुआ करता है। परिहास और उपहास दोनों के लिए सामाजिकों की सुरुचि का ध्यान रखना आवश्यक है।