अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण Show
अलंकार क्या हैकाव्य की शोभा बढ़ानेवाले उपकरणों को अलंकार करते हैं। जैसे अलंकरण धारण करने से शरीर की शोभा बढ़ जाती है, वैसे ही अलंकरण के प्रयोग से काव्य में चमक उत्पन्न हो
जाती है। संस्कृत आचार्य दंडी के अनुसार ‘अलंकार काव्य का शोभाकारक धर्म है’ और आचार्य वामन के अनुसार ‘अलंकार ही सौंदर्य है।’ रीतिकालीन आचार्य केशवदास के अनुसार- वहीं अभिनवगुप्त के अनुसार, “यदि शव को गहने पहना दिए जाएँ, या साधु सोने की छड़ी धारण कर ले तो वह सुंदर नहीं हो सकता। अथार्त अलंकार सौंदर्य की वृद्धि करता है, सुंदर की सृष्टि नहीं कर सकता।”[1]
अत: भले ही अलंकार को काव्य का आवश्यक अंग माना गया है, परंतु यह वर्णन शैली की विशेषता है। अलंकार के भेदकवि शब्द और अर्थ में विशेषता लाकर अपने काव्य को प्रभावकारी बनाते हैं। इसी आधार पर अलंकार के दो भेद किए गये हैं- क. शब्दालंकार, ख. अर्थालंकार। जब केवल शब्दों में चमत्कार पाया जाता है तब शब्दालंकार और जब अर्थ में चमत्कार होता है तब अर्थालंकार कहलाता है। इसके अतिरिक्त जहाँ शब्द और अर्थ दोनों में किसी प्रकार की विशेषता प्रतीत हो, वहाँ उभयालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के भेद‘शब्दालंकार 7 प्रकार के होते हैं। इनमें अनुप्रास, यमक, श्लेष तथा वक्रोक्ति मुख्य हैं।’[3] इनका परिचय यहाँ दिया जा रहा है- 1. अनुप्रास अलंकार‘जहाँ व्यंजन
वर्णों की आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।’ अर्थात जहाँ किसी पंक्ति के शब्दों में एक ही वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण- ‘तरनि-तनूजा तट तमाल-तरुवर बहु छाए।’इस पंक्ति में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है। अन्य उदाहरण- अनुप्रास के 5 भेद हैं- a. छेकानुप्रास, b. वृत्यानुप्रास, c. लाटानुप्रास, d. अन्त्यानुप्रास, e. श्रुत्यानुप्रास। इनमें 3 ही महत्वपूर्ण हैं- a. छेकानुप्रास b. वृत्यानुप्रास c. लाटानुप्रास 2. यमक अलंकार‘जहाँ पर एक ही शब्द की अनेक बार भिन्न अर्थों में आवृत्ति हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है।’ अर्थात जब किसी पंक्ति में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आये और हर बार उसका अर्थ भिन्न हो तब यमक अलंकार होता है। उदाहरण- यहाँ प्रथम ‘कुल’ शब्द का अर्थ समूह है। द्वितीय, तृतीय कुल-कुल शब्द पक्षियों के कुल-कुल कलरव के सूचक हैं। ‘कुल’ शब्द के भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है। अन्य उदाहरण 3. श्लेष अलंकार‘जहाँ किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।’ श्लेष का अर्थ ही होता है चिपका हुआ, यहाँ पर एक ही शब्द कई अर्थों को लिए हुए होता है। उदाहरण- इस उदाहरण में तीसरा ‘पानी’ शब्द श्लिष्ट है और इसके यहाँ तीन
अर्थ हैं- चमक (मोती के पक्ष में), प्रतिष्ठा (मनुष्य के पक्ष में), जल (चूने के पक्ष में), अतः इस दोहा में ‘श्लेष’ अलंकार है। अन्य उदाहरण- 4. वक्रोक्ति अलंकार‘जहाँ बात किसी एक आशय से कही जाय और सुनने वाला उससे भिन्न दूसरा अर्थ लगा दे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।’ अर्थात वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाल ले तो उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है। a. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार उदाहरण- कृष्ण ने राधा से अपना परिचय देते हुए कहा की मैं ‘घनश्याम’ हूँ। घनश्याम का एक अर्थ काले बादल भी होता है। राधा ने शरारत से कहा कि यदि घनश्याम हो तो यहाँ तुम्हारा क्या काम
है, कहीं जाकर बरसो। b. काकु वक्रोक्ति अलंकार उदाहरण- अर्थालंकार के भेदअर्थालंकारों की संख्या नियत नहीं है, महत्वपूर्ण अर्थालंकार निम्नलिखित हैं- 1. उपमा अलंकार‘दो वस्तुओं में जहाँ समानता (तुलना) का भाव व्यक्त किया जाता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।’ उदाहरण- यहाँ पर सीता के मुख की सुंदरता को बढ़ा कर बताने के लिए चंद्रमा का प्रयोग किया गया है। दोनों में सुंदरता के कारण
संबंध बताया गया है। इस संबंध की सूचना ‘समान’ शब्द से दी गई है। इस तरह उपमा के चार अंग होते हैं- क. उपमेय ख. उपमान ग. साधारण धर्म घ. वाचक उपमा अलंकार के भेद क. पूर्णोपम अलंकार उदाहरण- अन्य उदाहरण– ख. लुप्तोपमा अलंकार 2. रूपक अलंकारजहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप करते हुए दोनों में अभेद बताया जाय, वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। उपमेय और उपमान दोनों की एकरूपता प्रदर्शित करना ही इस अलंकार का प्रमुख धर्म है। जैसे- मुख-चंद्र, यहाँ आशय है- मुख ही चंद्रमा है। अन्य उदाहरण– 3. उत्प्रेक्षा अलंकार‘जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।’ प्रायः इसमें मनु, मानो, मानहु, जनु, जानो, जानहु, निश्चय, इव
आदि का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद क.
वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार ख. हेतूत्प्रेक्षा अलंकार ग. फलोत्प्रेक्षा अलंकार 4. प्रतीप अलंकारजहाँ उपमान को उपमेय के समान कहा जाय अथवा उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाय वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। नोट- प्रतीप अलंकार उपमा का विपरीत होता है। दरअसल प्रतीप का अर्थ ही होता है विपरीत या उल्टा।यदि कहा जाए कि, ‘कमल के समान नेत्र है।’, तो यह उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा। लेकिन यदि कहा जाए कि, ‘नेत्र के समान कमल है।’ तो यह प्रतीप अलंकार के अंतर्गत आएगा। 5. व्यतिरेक अलंकारजहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ (उत्कृष्ट) दिखाया जाए और साथ में उसका वजह (कारण) भी दिया
जाए, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। इस कविता में मुख की तुलना चंद्रमा से की गई है। मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चन्द्रमा में तो कलंक है, जबकि मुख निष्कलंक है। यहाँ पर मुख (उपमेय) को चंद्रमा से श्रेष्ठ (उत्कृष्ट) बताया गया है। 6. असंगति अलंकारजहाँ कारण कहीं हो और उसका प्रभाव (कार्य) कहीं और अथार्त कारण और कार्य में संगति न हो, वहाँ असंगति
अलंकार होता है। इस पंक्ति में घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं, परंतु पीड़ा राम को हो रही है, यहाँ कारण और कार्य में संगति नहीं बन पा रही है। 7. निदर्शना अलंकारजब उपमेय और उपमान के वाक्यों में भिन्नता होते हुए भी, एक दूसरे से ऐसा सम्बन्ध स्थापित हुआ हो की उनमें समानता दिखाई पड़े, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। 8. विभावना अलंकारजहाँ बिना कारण के ही कार्य हो रहा हो, वहां विभावना अलंकार होता है। निर्गुण ब्रह्म बिना पैरों के चलता है और बिना कानों के सुनता है, यहाँ पर कारण के अभाव में कार्य होने से यहाँ विभावना अलंकार है 9. दृष्टांत अलंकार‘जहाँ कोई बात पहले कहकर उससे मिलती-जुलती बात द्वारा दृष्टांत दिया जाय, लेकिन समानता किसी शब्द द्वारा प्रगट न हो, वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है। उपर्युक्त दोनों पंक्तियों में दो बातें हैं, दोनों का साधारण धर्म भिन्न-भिन्न है, अथार्त धर्म में समानता नहीं है फिर भी समानता प्रतीत होती है। इसलिए यहाँ दृष्टांत अलंकार है। 10. उदहारण अलंकार‘जहाँ किसी बात के समर्थन में उदाहरण किसी वाचक शब्द के साथ दिया जाय, वहाँ उदाहरण अलंकार होता है। उपर्युक्त पंक्तियों में छोटी नदी कम पानी में वैसे ही उफान मारने लगती है जैसे दुष्ट अल्प धन पा कर बौरा जाता है। यहाँ पर कवि ने उदहारण के द्वारा पहली अवधारणा की पुष्टि की है, इसलिए यहाँ उदहारण अलंकार है। 11. उल्लेख अलंकारजब किसी वस्तु को अनेक प्रकार से वर्णन (बताया) किया जाये, तब वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता है। उपर्युक्त पंक्तियों में रूप का किरण, सुमन में और प्राण का पवन, गगन में, कई रूपों में उल्लेख हुआ है। इसलिए यहाँ पर उल्लेख अलंकार है। 12. संदेह अलंकारजहाँ पर उपमेय में उपमान का संदेह हो, दूसरे शब्दों में
जहाँ पर किसी वस्तु को देखकर संशय बना रहे, निश्चय न हो वहाँ संदेह अलंकार होता है। जैसे- यह मुख है या चंद्र है। उपर्युक्त पंक्तियों में नारी और सारी के बीच संशय बना हुआ है कि कौन किसके बीच है, इसलिए यहाँ संदेह अलंकार है। 13. भ्रांतिमान अलंकारजब भ्रमवश किसी वस्तु को देखकर उसके समान किसी अन्य (दूसरी) वस्तु का भ्रम हो जाए, तब वहाँ भ्रांतिमान
अलंकार होता है। नायिका के पाँव में महावर लगाने के लिए नाइन आ बैठी। किन्तु उसकी एड़ी स्वाभाविक रूप से इतनी लाल थी कि वह बराबर उसे महावर लगी हुई जानकर माँज-माँजकर धोने लगी। इस भ्रम के कारण यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है। 14. विरोधाभाष अलंकार
15. अतिशयोक्ति अलंकारजब कोई बात बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कर (अतिरंजित रूप में) कही जाय, तो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। यहाँ पर लंका के जलने की बात अतिरंजित रूप में कही गई है इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है। अन्य उदाहरण– 16. अन्योक्ति अलंकार
उदाहरण– 17. समासोक्ति अलंकारजहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत का बोध (ज्ञान) होता है वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है।।। 18. विशेषोक्ति अलंकारजहाँ प्रबल कारण के होने पर भी कार्य सिद्ध न हो, वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है। उपरोक्त पंक्ति में प्यास बुझने का कारण पानी उपस्थित है फिर भी मझली की प्यास बुझती नहीं है। 19. दीपक अलंकारजहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों में एक ही धर्म (गुण) कहा जाय, स्थापित किया जाय, वहाँ दीपक
अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘मानुष’ प्रस्तुत है और ‘मोती’ तथा ‘चून’ अप्रस्तुत हैं। यहाँ पर तीनों का एक ही धर्म- पानी रखिये बताया गया है। अन्य उदाहरण– 20. मानवीकरण अलंकारजहाँ पर जड़ अथवा अचेतन तत्वों पर मानवीय भावों, सम्बन्धों और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य अथवा चेतन की तरह व्यवहार करते हुए दिखाया जाए, वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। उपरोक्त कविता में ऊषा को अम्बर रूपी पनघट पर गागर भरती हुई स्त्री के रूप में
चित्रित किया गया है। ऊषा के मानवीकरण व्यवहार करने की वजह से यहाँ मानवीकरण अलंकार है। [1] साहित्य का स्वरूप- डॉ. नित्यानंद तिवारी, एनसीईआरटी, नई दिल्ली- 2000, पृष्ठ- 49 [2] रस-छंद-अलंकार- राजेंद्र कुमार पांडेय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली-2012, पृष्ठ- 25 [3] रस छंद अलंकार- विश्वम्भर ‘मानव’, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद- 2005, पृष्ठ- 44 [4] साहित्य का स्वरूप- डॉ. नित्यानंद तिवारी, एनसीईआरटी, नई दिल्ली- 2000, पृष्ठ- 60 जहां शब्द की आवृत्ति हो किंतु अर्थ भिन्न हो कौन सा अलंकार है?अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहां कारण उत्पन्न होता है अर्थात् काव्य में जहां एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है। (जब किसी काव्य पंक्ति में कोई वर्ण की आवृत्ति होती है वहां अनुप्रास अलंकार होता है।)
जहाँ पदों की आवृत्ति हो पर उनका अर्थ भिन्न भिन्न हो वहाँ कौनसा अलंकार होता है *?जहाँ वृत्ति के अनुसार एक या अनेक वर्गों की अनेक बार आवृत्ति होती है, वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
जहाँ किसी वर्ण की आवृत्ति हो वहाँ पर कौन सा अलंकार होता है?जहाँ एक ही वर्ण की बार-बार आवृत्ति होती वहाँ अनुप्रास अलंकार होगा | जैसे चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में, अत: विकल्प 2 अनुप्रास सही है।
जहाँ एक शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते है उसे कौन सा अलंकार कहते हैं?यमक अलंकार क्या होता है :-
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है। जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।
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