भारतीय परिप्रेक्ष्य में मुद्रा शास्त्र के महत्व का अध्ययन कई रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियां सामने लाता है। लगभग 31 इंडो ग्रीक राजा और रानी (Indo Greek Kings and Queens) केवल सिक्कों के आधार पर जाने जाते हैं। कुषाण सभ्यता का ज्यादातर इतिहास उनके समय के सिक्के की बदौलत जाना गया। उज्जैन के साका साम्राज्य के राजनैतिक जीवन का बहुत कुछ विवरण सिक्कों के जरिए ही हम तक पहुंचा। प्रारंभिक भारतीय सिक्कों पर ग्रीक और रोमन प्रभाव देखने को मिलते हैं। Show मुद्रा शास्त्र: एक पड़ताल मुग़लिया शासन से पहले का भारत का कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता। इसलिए उपलब्ध सामग्री और तथ्यों के आधार पर इतिहास के निर्माण का प्रयास किया गया। इसमें दो प्रकार की श्रेणियां थी- हिंदू लेखकों द्वारा स्तुति गान और विदेशी यात्रियों और इतिहासकारों द्वारा लिखे गए संस्मरण। दूसरी श्रेणी का काम ज्यादा महत्वपूर्ण था और वह शिलालेखों और मुद्रा शास्त्र पर आधारित था। भारत प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, और इसके कम से कम 5,000 सालों का इतिहास टुकड़ों में उपलब्ध है। 1000 ई.पू. के आसपास लिखी गई किताबों में मुद्रा, विनिमय और प्रारंभिक या मूल वित्तीय व्यवस्था का जिक्र मिलता है, जिसका मतलब यह हुआ कि भारत उन प्राचीन देशों में से एक था जिसमें धातु आधारित वित्तीय व्यवस्था प्रचलित थी। 300 ई.पू. और इसके पास अपना अर्थशास्त्र था जिसे महान चिंतक (Thinker) कौटिल्य (चाणक्य) ने लिखा था। 12 वीं सदी में कल्हण (Kalhan/Kalhana) द्वारा इसका प्रयोग इतिहास लेखन के लिए किया गया। संस्कृत में लिखी कल्हण की प्रसिद्ध कृति है- ’रजतरंगिणी’। जिसका शाब्दिक अर्थ है राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है- राजाओं का इतिहास। इसका रचनाकाल सन 1147 ई. - 1149 ई. बताया जाता है। एक पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम ‘कश्यपमेरु’ था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र के नाम पर था। सोने, तांबे आदि जैसी धातुओं से बनाये गए प्राचीन सिक्के के भी मिलते हैं। भारत के प्राचीनतम सिक्कों पर कुछ चिन्ह खुदे हुए हैं, लेकिन बाद के सिक्कों पर राजाओं, देवताओं या तारीखों का अंकन मिलता है। भारतीय सिक्कों पर विदेशी प्रभाव सिक्कों में सुधार तांबे के सिक्के मौर्य शासन के दौरान विदेशी प्रभाव के कारण बहुत अधिक प्रचलन में थे। अलग-अलग राज्यों के सिक्के अपने निर्माण, बनावट, वजन, धातु के प्रकार और प्रतीकों में एक दूसरे से भिन्न थे। धीरे-धीरे यह सिक्के एक समान हो गए, समान वजन और बनावट के। यह सब विदेशी प्रभाव से हुआ। डाई स्ट्राइकिंग (Die-Striking) तकनीक जिसके बारे में भारत में कोई जानकारी नहीं थी, इंडो- बैक्ट्रियन ने इसकी शुरुआत की। भारतीय सिक्कों को एक नया रूप इंडो बैक्ट्रियन काल ने दिया। सिक्कों का आकार, एक समान मोटा पन इत्यादि में सुधार हुआ। इसी काल में सोने के सिक्कों का भी चलन शुरू हुआ। पश्चिमी सभ्यता का सिक्कों पर सांस्कृतिक और व्यापारिक प्रभाव रोमन प्रभाव हाल ही में एक सोने की अंगूठी का पता चला जिसके बारे में कहा जाता है कि वह गुजरात से आई। अंगूठी पर एक सुन्दर आकृति उकेरी हुई है जिसकी पहचान लूसीयस वेरस (Lucius Verus) के रूप में की गई। इस तस्वीर के साथ ब्राह्मी लिपि में नाम लिखा हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि शायद अंगूठी के मिलने से इस तथ्य को मजबूती मिले कि किस काल में भारत में रोमन सिक्कों को एक फैशनेबल एक्सोटिका (Fashionable Exotica) के रूप में समझा जाता था। गुजरात की सांस्कृतिक विकास यात्रा का अहम पड़ाव है सिक्के। आखिरकार यह सिक्के उस समय के स्थानीय प्रसारण में जरूर इस्तेमाल हुए होंगे और उन्हें बनाते समय यह ध्यान रखना जरूरी रहा होगा कि आम लोगों की क्या उम्मीदें हैं या उनके यहां चलन में जो सिक्के हैं वह देखने में कैसे हैं। सशक्त प्रभाव इसमें अहम् ये है कि इस कदम से क्षत्रिय साम्राज्य को बहुत फायदे हुए हालांकि सातवाहन साम्राज्य अपनी प्रसिद्धि के मुकाबले एक छोटा साम्राज्य था लेकिन इन सिक्कों के जरिए इस साम्राज्य ने पूरे भारत में काफी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। वही ब्राह्मी लिपि का प्रयोग भी जानबूझकर व्यापारियों के हित के लिए किया गया था। ब्राह्मी लिपि इन सिक्कों पर इस्तेमाल तो हुई थी लेकिन इसमें भयंकर वर्तनी दोष, व्याकरण दोष, सिक्कों के सांचे भी गलत तरीके से प्रयुक्त हुए थे। यह कमी दर्शाती है कि सातवाहन वंश के सिक्कों के सांचे बनाने वाले भी ब्रह्मी लिपि से ठीक से वाकिफ नहीं थे। अगर सातवाहन वंश के शासक चाहते तो कुशल कारीगरों को रखकर इस त्रुटि को छपाई से पहले ही दूर कर लेते लेकिन ढील से स्पष्ट है कि खुद शासकों के लिए ब्रह्मी लिपि का कोई विशेष महत्व नहीं था, ब्रह्मी लिपि से उनका कोई लगाव नहीं था और वह भी कहीं ना कहीं बहती गंगा में हाथ ही धो रहे थे। इतिहास में सिक्के का क्या महत्व है?सिक्के किसी दौर के इतिहास लेखन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि सिक्के प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोत के रूप में जाने जाते हैं। आजकल की तरह, प्राचीन भारतीय मुद्रा कागज निर्मित नहीं थी बल्कि धातु के सिक्के के रूप में थी। प्राचीन सिक्के धातु से बनाए जाते थे। वे ताम्बे, चाँदी, सोने और सीसे से बनाए जाते थे।
सिक्के इतिहास के बारे में जानकारी कैसे प्रदान करते हैं?भारत में धातु के सिक्के सर्वप्रथम गौतमबुद्ध के समय में प्रचलन में आये, जिसका समय 500 ई० पू० के लगभग माना जाता है। बुद्ध के समय पाये गये सिक्के' आहत सिक्के' (Punch Marked) कहलाये। इन सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड़, हाथी, अर्द्धचंद्र आदि की आकृति बनी होती थी। ये सिक्के अधिकांशतः चाँदी के तथा कुछ ताँबे के बने होते थे।
आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन में अभिलेख सिक्के एवं स्मारकों का क्या महत्व है?जिस प्रकार अभिलेखों के माध्यम से प्राचीन भारतीय इतिहास के राजनीतिक पक्ष की जानकारी में सहायता मिली है, उसी प्रकार स्मारकों के द्वारा प्राचीन भारत के सांस्कृतिक व धार्मिक जीवन का ज्ञान प्राप्त होता है। इन स्मारकों में भवन, मूर्तियां, कलाकृतियां, स्तूप, मठ, विहार, चैत्य, मंदिर व चित्रकारी आदि को सम्मिलत किया जाता है।
सिक्के के बारे में आप क्या जानते हैं?वर्तमान में भारत में एक रूपए, दो रूपए पाँच रूपए और दस रुपये मूल्यवर्ग के जारी किए जाते हैं। 50 पैसे तक के सिक्कों को छोटे सिक्के और एक रूपए तथा उससे अधिक के सिक्कों को रुपया सिक्का कहा जाता है। सिक्का निर्माण अधिनियम, 1906 के अनुसार 1000 रूपए मूल्यवर्ग तक के सिक्के जारी किए जा सकते हैं।
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