होम्योपैथिक दवा कैसे असर करती है - homyopaithik dava kaise asar karatee hai

होम -> समाज

 

खानाखराब बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 12 अप्रिल, 2017 02:28 PM

"सिमिलया सिमिलिबस क्युरेंटर" - सैमुएल हैनिमन, 1796

"लोहा लोहे को काटता है" - ठाकुर बलदेव सिंह, शोले, 1975

रामगढ़ के ठाकुर बलदेव सिंह की सैमुएल हैनिमन की थ्योरी में यकीन तो था, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है उन्हें उस चिकित्सा प्रणाली में भी विश्वास था, जिसे हैनिमन ने दुनिया को दिया. आइए हम एक गैर-चिकित्सा-प्रणाली बनाते हैं, क्योंकि होम्योपैथी एक आस्था-पद्धति है. एक सिद्धांत पर विश्वास कि समान, समान को ठीक करता है. आस्था के रूप में दुनिया में सभी जगह इसकी पहुंच है. एक यकीन ये भी है कि होम्योपैथी बेहद कम खतरनाक हैं, और कभी कभार मौत का कारण बन सकती है.

विश्व होम्योपैथी दिवस जर्मन फिजीशियन हैनिमन के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है, जिनके इरादे तो नेक थे, जैसे उनके अनुयाइयों के हैं... लेकिन इसका मतलब ये नहीं होम्योपैथी कोई चिकित्सा प्रणाली है. साथ ही, एक अच्छा दिन जब लोगों को सचेत किया जा सके कि होम्योपैथी तभी तक अच्छी है जब तक कि आपको कोई गंभीर बीमारी नहीं है. सबसे अच्छी बात ये है कि होम्योपैथिक औषधियों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. उन छोटी छोटी प्यारी सी शीशियों में कुछ भी हानिकारक नहीं होता. आलोचकों का कहना है कि उन दवाओं का कोई साइड-इफेक्ट नहीं है क्योंकि पहली बार में उसका कोई प्रभाव ही नहीं होता. मैं नहीं मानता. इसका एक असर होता हैः आस्था का असर.

मैं ऐसा कुछ नहीं लिखने जा रहा कि होम्योपैथी को अस्वीकार किया जा सके, क्योंकि सैकड़ों प्रयोगों और हजारों शोधपत्रों ने इस काम को तकरीबन अंजाम तक पहुंचा दिया है. नतीजा यही है कि कि यह हानिरहित है. यह नुकसान तभी करती है जब रोग के सही निदान के बगैर मरीज होम्योपैथिक इलाज जारी रखता है और तब तक स्थिति गंभीर हो जाती है. यह हानिकारक तब होती है जब इस सदी में भी सरकारें इसे मान्यता देकर देश की स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली में शुमार किए हुए हैं.

संपूर्ण उपचार के नाम पर, भारत सरकार ने भी यही किया है. तकदीर का खेल देखिए कि एक प्रशिक्षित चिकित्सक डॉ. हर्षवर्धन की जगह एक होम्योपैथी के प्रेमी को जेपी नड्डा को बिठा दिया गया. ऐसे होम्योपैथिक कॉलेजों की बाढ़ आ गई है जो खूब होम्योपैथिक डिग्रियां बांट रहे हैं. बड़े ताज्जुब की बात है कि देख रेख के लिए बाकायदा एक सरकारी विभाग भी है. आयुष (AYUSH) में 'एच' होम्योपैथी का प्रतिनिधित्व करता है. इसे उपचार के प्राचीन तरीकों आयुर्वेद और यूनानी दवाओं के साथ लाकर रख दिया गया है.

मैं उन्हें दवा इसलिए मानता हूं, क्योंकि उन दोनों पद्धतियों में जड़ी-बूटी और रसायनों से बनी दवाएं दी जाती हैं, जिनमें ज्यादातर के प्रभाव साबित हो चुके हैं. दूसरों में ऐसा कुछ भी नहीं है. लेकिन मरीज दवा की कुछ मात्रा जरूर लेता है. होम्योपैथी में तो कुछ भी नहीं, नगण्य, ऐसा कुछ बिलकुल नहीं दिया जाता, क्योंकि पौधों के अर्क से जो सॉल्युशन बनता है उसमें अर्क बचता भी नहीं.

यह जादू-मंतर, झाड़-फूंक और बाबाओं के इलाज के तरीकों के तौर पर तो अच्छा है जो हर परिस्थिति में सटीक काम करता है. ऐसे मुल्क में जहां हर किसी को दूर तक इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है वे अपना काम करते हैं. इसमें सरकार की इस मंशा पर भी शक ही पैदा होता है कि होम्योपैथी को वित्तीय संसाधन देने के पीछे मकसद अंधविश्वास जैसी चीजों को खत्म करना है. मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र में अंधविश्वास के खिलाफ एक कानून है, लेकिन यह होम्योपैथी पर लागू नहीं होता.

मैं बताना चाहूंगा कि कभी कभार मैं भी होम्योपैथिक दवाएं लेता हूं. जब मैं लिख रखा हूं, डॉ. रेकवेग की 16 नंबर की दवा मेरे दराज में रखी हुई है. हर कुछ घंटे बाद मैं इसकी 15 बूंद पानी के साथ लेता हूं. मैं बेहतर महसूस करता हूं. मेरा हालत की हालत में सुधार होता है. हो सकता है यह आर-16 की वजह से हो. संभव है इसमें दवाओं की कुछ मात्रा हो, जैसा मूल अर्कों में होता है, आयुर्वेद की तरह. इस दवा में दवा के निशान हैं. होम्योपैथ की ज्यादातर दवाओं से इतर जिनमें दवा होने का कोई प्रमाण नहीं होता. सहज तौर पर कहूं, मैं प्लेसिबो (जिसे दवा के रूप में दिया जाए, लेकिन उसमें दवा न हो) का प्रभाव देख पा रहा हूं. मैं उस दवा के साइड इफेक्ड से रोग मुक्त हो रहा हूं, जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है.

मैं ऐसे माहौल में पला-बढ़ा हूं जहां होम्योपैथी ही इलाज की प्रमुख चिकित्सा प्रणाली रही. मेरे घर में मैटेरिया मेडिका पवित्र ग्रंथों में शुमार रहा. डॉ हैनिमैन, शुल्ज, श्वाबे अक्सर चर्चाओं का हिस्सा हुआ करते थे. मेरे गांव का डॉक्टर पुरानी बीमारियों के लिए "दुनिया भर में मशहूर" था. दूरदराज के उस गांव की धूल भरी सड़कों पर अक्सर मैं पश्चिम बंगाल की नंबर प्लेट वाली अंबेसडर कारें आते जाते देखा करता था. इनमें कलकत्ता के अमीर लोग "डॉक्टर साब" से मिलने, हां, सिर्फ "इलाज" के लिए आया करते थे. गंजेपन से पीड़ित विवाह-योग्य लड़कियां, पेट की बीमारियों से परेशान मोटे लोग, नक्स वोमिका, रस टॉक्स और भी न जाने क्या क्या.

उनके पास हर मर्ज की दवा थी, लेकिन मरीज को पहले लक्षण बताने पड़ते थे, जिनका परेशानियों से कोई संबंध नहीं होता था. मैं इसी माहौल में बड़ा हुआ. और फिर मेरी समझ बढ़ी. विज्ञान ने मेरी आंखें खोल दी, लेकिन विश्वास मजबूत था. मैंने बीच का रास्ता अख्तियार किया, लेकिन होम्योपैथी को छोड़ा नहीं. इसके साथ ही आधुनिक चिकित्सा पद्धति जिसे होम्योपैथवाले एलोपैथी कहा करते हैं, उसके बारे में भी जानता, समझता रहा, दवाएं भी लेता रहा. जिंदगी खुशगवार रही, और मैं अपने अनुभवों से सीखता रहा. होम्योपैथी के प्रभाव के बारे में जो मेरा अनुसंधान रहा उसके मुख्य बिंदु यहां हैं - 

अपना इलाज स्वयं करो

कहीं थोड़ा सा कट जाय. यह अपने आप भर जाता है. बहुत सारी ऐसी छोटी-मोटी समस्याओं को शरीर खुद ही ठीक कर लेता है. हमारे पास प्रतिरोधक क्षमता होती है. इन सभी हालात में होम्योपैथी काफी असरदार है, क्योंकि हमारा शरीर खुद ही ठीक कर लेता है. यही प्लेसिबो की खूबसूरती है; यह हमारी प्रतिरोधक प्रणाली को चालू करता है - और श्रेय होम्योपैथी को मिलता है.

पुराने रोगों के इलाज की गारंटी

पुरानी बीमारियां घातक नहीं रह जातीं. मरीज उनके साथ जीना सीख लेता है. पुरानी बीमारियां कई बार स्थाई भी नहीं होतीं. होम्योपैथ में हरदम सुनने को मिलेगा - इसमें समय लगता है. और वक्त, जैसा वे कहते हैं, हर जख्म भर देता है.

मेरी बात सुनो, प्लीज!

ज्यादातर डॉक्टरों के पास मरीजों से बात करने की फुर्सत ही नहीं होती. जल्दबाजी में इलाज होता नहीं. होम्योपैथवाले इसी बात का फायदा उठाते हैं. बहुत सारे सवाल पूछेंगे, लक्षणों के बारे में खूब पूछताछ करेंगे. यही तो मरीज चाहता है. जिसे इलाज की जल्दबाजी न हो, परवाह किसे है. फौरी तौर पर मरीज को ये अच्छा लगता है. बाकी सब तो मिथ्या है.

मैं ठीक हो गया, होम्योपैथी का शुक्रिया

कोई बाबा किसी महिला के लिए बेटा या बेटी होने की भविष्यवाणी करता है. जिनके यहां बेटा पैदा हुआ वो जिंदगी भर के लिए बाबा के भक्त बन जाते हैं. जिस महिला को बेटा नहीं हुआ उसकी सास उस पर बेटे जन्म देने में अक्षम होने का तोहमत लगा देती है. ऐसे में सबसे अहम भक्त हो जाते हैं. वे दूसरी महिलाओं को बाबाजी का आशीर्वाद लेने की सलाह देंगे. भक्तों की तादाद बढ़ती जाती है.

एक बार विनाशकारी सुनामी के दौरान समुद्र ने कई लोगों को निगल लिया. चर्च में छिपा वो आदमी बच गया, जिसने खिड़की की छड़ पकड़ रखी थी. अगले ही दिन उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया. उसने खिड़की और मजबूत इमारत बनाने वाले मिस्त्री का धन्यवाद नहीं किया, क्योंकि उसका मानना था कि यीशु ने उसे बचा लिया. विश्वास का क्या असर होता है, इसकी ये मिसाल है. होम्योपैथी भी इसी तरह काम करती है.

बाल, मैं आता हूं

गंजेपन का इलाज करते करते एक आदमी ने देश में होम्योपैथी का बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया. मेरा दोस्त तेजी से झड़ रहे उसके बालों को लेकर काफी परेशान था. बाकी बचे बाल भी गायब न हो जाएं इसलिए उसने उस साम्राज्य के सामने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया. उसने अपनी हालत में तब तक उल्लेखनीय सुधार महसूस किया जब तक कि उसे इस बात का अहसास नहीं हुआ कि उसकी हालात में कुछ भी सुधार नहीं हुआ था. बहुत सारा वक्त और पैसा खर्च करने के बाद वो हल्का महसूस कर रहा था - और समझदार भी. अब वह हेयर ट्रांसप्लांट के बारे में सोच रहा है. होम्योपैथी, चिकित्सा प्रणालियों की देवता है. आप खुद पता लगा लें या फिर मैं आपको गंभीर रूप से बीमार ऐसे पांच लोगों से मिला सकता हूं जो निर्मल बाबा की सलाह पर हरी चटनी के साथ समोसे खाने से ठीक हो गए हैं. ठहाके लगाते हुए टीवी का स्विच ऑन कीजिए और कृतज्ञता के साथ बिलखते हुए एक आदमी को देखिए जो बता रहा होगा कि किस तरह उसकी बुजुर्ग मां का बीमार दिल काली गाय को बस जलेबी खिलाने से चंगा हो गया.

युवावस्था में मुझे करैत सांप ने काट लिया था. मैं कुछ समय के लिए बेहोश था, मुझे याद नहीं कि लोग कब मुझे उठा कर एक बरगद के पेड़ के नीचे लेटा दिये. जब मैं उठा तो हर कोई खुशी से झूम रहा था. पेड़ की देखरेख करने वाले ब्राह्मण ने पास के कुएं का पानी मेरे गले में डालकर मुझे ठीक किया था. लंबे अरसे तक मैंने उस पेड़ की पूजा की क्योंकि मेरी मां को लगता था कि उसी की वजह से मैं बच पाया.

तब जाकर मुझे पता चला कि सांप हमेशा आपके शरीर में विष नहीं छोड़ता. और अक्सर जब ऐसा करता है तो वो इतना नहीं होता कि मौत हो जाए, भले ही सांप कितना भी जहरीला क्यों न हो. सभी बीमारियां जानलेवा नहीं होतीं. खासतौर पर ऐसी बीमारियां होम्योपैथी से ठीक हो जाती है.

लेखक

होम्योपैथिक दवा कैसे असर करती है - homyopaithik dava kaise asar karatee hai

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

होम्योपैथिक की दवाई कितने दिन में असर करती है?

अगर आपको सर्दी, जुकाम या कफ है तो ऐसे में एलोपैथी इलाज 5 दिन चलता है। वहीं, होम्योपैथी में भी 5 दिन में इलाज पूरा होता है और इसके रिजल्ट भी अच्छे देखे जाते हैं।

क्या होम्योपैथी दवा पहले लक्षणों को बढ़ाती है?

क्या शुरू में होम्योपैथिक दवाएं लक्षणों को बढ़ाती हैं? सही होम्योपैथिक उपाय के साथ, रोगी को ठीक होने से पहले लक्षण कभी-कभी बढ़ सकते हैं। हालांकि, उपचार प्रक्रिया के दौरान, शरीर के रक्षा तंत्र के मजबूत होने के कारण कभी-कभी लक्षण अस्थायी रूप से बिगड़ सकते हैं।

होम्योपैथिक से इलाज संभव है क्या?

होम्योपैथिक दवाओं की मदद से सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि कई मानसिक बीमारियों का इलाज भी किया जा सकता है, जिनमें बाइपोलर डिसऑर्डर, ऑटिज्म और डिप्रेशन जैसी बड़ी बीमारियां भी शामिल हैं। साथ ही होम्योपैथी में कई मूड डिसऑर्डर भी ठीक किए जाते हैं।

होम्योपैथिक इलाज में क्या नहीं खाना चाहिए?

होम्योपैथिक दवा पर कौन से फ़ूड आइटम से बचना चाहिए?.
अल्कोहल पीना, तंबाकू चबाने और धूम्रपान करना जारी नहीं रखा जाना चाहिए जब आप होम्योपैथिक दवाएं ले रहे हों..
अधिकांश डॉक्टर मरीजों को कॉफी, लहसुन और मिंट के पत्तों को न लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि इनकी मजबूत गंध और स्वाद है..