ऊष्मीय ऊर्जा का आधुनिक तथा अंतर्राष्ट्रीय मात्रक क्या है? - ooshmeey oorja ka aadhunik tatha antarraashtreey maatrak kya hai?

ऊष्मा

ऊष्मीय ऊर्जा का आधुनिक तथा अंतर्राष्ट्रीय मात्रक क्या है? - ooshmeey oorja ka aadhunik tatha antarraashtreey maatrak kya hai?

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इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं। ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या ठंढे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं। .

109 संबंधों: ऊन, ऊष्मा चालन, ऊष्मा चालकता, ऊष्मा धारिता, ऊष्मा पम्प, ऊष्मा रोधन, ऊष्मा इंजन, ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक, ऊष्मा अन्तरण, ऊष्मागतिक चक्र, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया, ऊष्मीय दक्षता, ऊष्मीय संतुलन, चूल्हा, टेफ्लान, एल्युमिनियम, एसी/एसी परिवर्तक, झाग, डीज़ल इंजन, तरंग, तापमान, तापयुग्म, तापोपचार, तापीय प्रतिरोध, ताम्र ह्रास, थॉमस ऐल्वा एडीसन, दहन, दहन ऊष्मा, द्रुतशीतक, धातु, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र, नाभिकीय अभियांत्रिकी, पुनर्योजी ब्रेक, प्रतिरोधक, प्रवर्धक, प्रकाश संसूचक, प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त, प्रेरण तापन, प्लूटोनियम, पृथ्वी का वायुमण्डल, पॉलीविनाइल क्लोराइड, पोषक तत्व, फ़ूर्ये श्रेणी, बैण्ड विस्तारण, भाप, भौतिक शास्त्र, भौतिक विज्ञानी, भौतिकी की शब्दावली, भूसंचलन, ..., मिस्र के पिरामिड, मोमबत्ती, रासायनिक ऊर्जा, रासायनिक संदीप्ति, रैखिक शक्ति आपूर्ति, लाल, शक्ति गुणांक, संवहन, स्पार्क प्लग, सौर शक्ति, सूक्ष्मतरंग चूल्हा, सेंकना, हाईपोथर्मिया, हाइपरसॉनिक उड़ान, हेनरी कैवेंडिश, हीरा, जलना (चिकित्सा), जैव ईंधन, जैवनिस्यंदन, जेम्स प्रेस्कॉट जूल, ईन्धन, वर्ग माध्य मूल, वस्त्र निपीडक, वायु प्रदूषण, वाष्प शीतक, वाष्पखनिजन, विद्युत, विद्युत ऊर्जा, विद्युत चाप भट्ठी, विद्युत्-तापन, विद्युत्‌ भट्ठी, विभिन्न प्रकार के संतुलन, विशिष्ट ऊष्मा धारिता, विहिमीकरण, विकिरक, विकृतीकरण (जैवरसायन), वैज्ञानिक यन्त्र, खनिजों का बनना, खाड़ी युद्ध, गुप्त ऊष्मा, गैस स्टोव, गैसों का अणुगति सिद्धान्त, आर्क वेल्डन, आग, आंशिक अवकल समीकरण, आइएसओ ३१, इलेक्ट्रॉन, कायान्तरण (भूविज्ञान), कुंडली लपेटने की प्रौद्योगिकी, कैलोरी, कैलोरीमिति, केल्विन, कोयला, अतिताप, अपशिष्ट प्रबंधन, अमीटर, अर्धचालक युक्ति, अंतरिक्ष शटल, उत्तरजीविता कौशल। सूचकांक विस्तार (59 अधिक) »

ऊन

ऊन के लम्बे एवं छोटे रेशे ऊन मूलतः रेशेदार (तंतुमय) प्रोटीन है जो विशेष प्रकार की त्वचा की कोशिकाओं से निकलता है। ऊन पालतू भेड़ों से प्राप्त किया जाता है, किन्तु बकरी, याक आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। कपास के बाद ऊन का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशे उष्मा के कुचालक होते हैं। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इन रेशों की सतह असमान, एक दूसरे पर चढ़ी हुई कोशिकाओं से निर्मित दिखाई देती है। विभिन्न नस्ल की भेड़ों में इन कोशिकाओं का आकार और स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। महीन ऊन में कोशिकाओं के किनारे, मोटे ऊन के रेशों की अपेक्षा, अधिक निकट होते हैं। गर्मी और नमी के प्रभाव से ये रेशे आपस में गुँथ जाते हैं। इनकी चमक कोशिकायुक्त स्केलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे रेशे में चमक अधिक होती है। रेशें की भीतरी परत (मेडुल्ला) को महीन किस्मों में तो नहीं, किंतु मोटी किस्मों में देखा जा सकता है। मेडुल्ला में ही ऊन का रंगवाला अंश (पिगमेंट) होता है। मेडुल्ला की अधिक मोटाई रेशे की संकुचन शक्ति को कम करती है। कपास के रेशे से इसकी यह शक्ति एक चौथाई अधिक है। .

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ऊष्मा चालन

किसी पिण्ड के अन्दर सूक्ष्म विसरण तथा कणों के टक्कर के द्वारा जो ऊष्मा का अन्तरण होता है उसे ऊष्मा चालन (Thermal conduction) कहते हैं। यहाँ 'कण' से आशय अणु, परमाणु, इलेक्ट्रान और फोटॉन से है। चालन द्वारा ऊष्मा अन्तरण ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा - सभी प्रावस्थाओं में होती है। .

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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ऊष्मा धारिता

किसी पदार्थ के द्रव्यमान का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की ऊष्मा धारिता (Heat capacity) कहते हैं। इस भौतिक राशि का एस आई मात्रक जूल प्रति केल्विन (J/K) है। ऊष्मा धारिता की विमा है। सूत्र के रूप में, जहाँ, C पदार्थ की ऊष्मा-धारिता है। .

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ऊष्मा पम्प

ऊष्मा-पम्प के वाष्प-संपीडन प्रशीतन चक्र का सरलीकृत चित्र: 1) संघनित्र (condenser), 2) प्रसरण वाल्व (expansion valve), 3) वाष्पित्र (evaporator), 4) संपीडक (compressor). ऊष्मा पम्प या 'हीट पम्प' ऐसी युक्ति है जो किसी ऊष्मास्रोत से लेकर ऊष्मानिमज्जक (हीटसिंक) को ताप प्रवणता (temperature gradient) के उल्टी दिशा में ऊष्मा स्थानान्तरित करती है। अर्थात् ऊष्मापम्प सहज ऊष्मा-प्रवाह के विपरीत दिशा में ऊष्मा प्रवाहित कराते हैं। कम्प्रेसर से चलने वाले वातानुकूलन और फ्रीजर ऊष्मा-पम्प के आम उदाहरण हैं। किन्तु विशेष रूप से घरों/कक्षों की हवा को गर्म/ठण्डा करने में प्रयुक्त युक्तियों को ही 'ऊष्मा पम्प' कहा जाता है। श्रेणी:ऊष्मा पम्प.

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ऊष्मा रोधन

ठण्ड से बचने के लिये (अर्थात, ऊष्मा रोधकता को बढ़ाने के लिये) जन्तु अपने रोंओं या परों को कड़ा (सीधा) कर लेते हैं। दो वस्तुओं के बीच में ऊष्मा के प्रवाह में अवरोध को ऊष्मा अवरोधन (Thermal insulation) कहते हैं। ऊष्मा के रोधन के लिये विशेष रूप से अभिकल्पित प्रक्रमों, विशेष आकर तथा उपयुक्त पदार्थों का चुनाव बहुत जरूरी है। दो अलग-अलग ताप वाली वस्तुओं के सीधे सम्पर्क में आने पर उनके बीच ऊष्मा का अन्तरण अवश्य होगा। किन्तु इन दोनों वस्तुओं के बीच ऊष्मारोधी पदार्थ प्रविष्ट करा देने से ऊष्मा का प्रवाह पहले से कम होगा। कितना कम होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि ऊष्मारोधी पदार्थ की मोटाई कितनी है, उसकी ऊष्मा चालकता कितनी कम है आदि। इसी प्रकार विकिरण द्वारा ऊष्मा के प्रवाह को कम करने के लिये कुछ अन्य तरीके अपनाए जाते हैं। किसी पदार्थ की ऊष्मा चालकता जितनी कम होती है, वह उतना ही अच्छा ऊष्मारोधी होता है। ऊष्मा इंजीनियरी के क्षेत्र में ऊष्मारोधी पदार्थ के अन्य गुण हैं, घनत्व तथा विशिष्ट ऊष्मा। .

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ऊष्मा इंजन

एक ऊष्मा इंजन का चित्र: यह इंजन TH ताप वाले गरम स्रोत से QH ऊर्जा लेती है और इसमें से W ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा के रूप में बदलकर शेष QC ऊष्मा को TC ताप वाले सिंक को स्थानातरित कर देती है। जो इंजन है ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं उन्हें ऊष्मा इंजन (थर्मल इंजन) कहते हैं। ये इंजन ऊष्मा के उच्च ताप से निम्न ताप पर प्रवाहित होने के गुण का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसके विपरीत वे इंजन जो यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से ऊष्मा को अधिक ताप से कम ताप पर ले जाते हैं उन्हें 'ऊष्मा पम्प' या 'प्रशीतक' (रेफ्रिजिरेटर) कहते हैं। उच्च ताप से निम्न ताप पर ऊष्मा किसी तरल के सहारे स्थानान्तरित होती है। ऊष्मा मशीनें प्रायः किसी ऊष्मा चक्र में काम करती हैं। इसीलिए इन्हें सम्बन्धित ऊष्मागतिकीय चक्र (थर्मोडाइनेमिक सायकिल) के नाम से जाता जाता है। उदाहरण के लिए कर्ना चक्र पर काम करने वाला ऊष्मा इंजन 'कर्ना इंजन' कहलाता है। ऊष्मा इंजन अन्य इंजनों से इस मामले में भिन्न हैं कि इनकी अधिकतम दक्षता कर्ना के प्रमेय से निर्धारित होती है जो अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। किन्तु फिर भी ऊष्मा इंजन सर्वाधिक प्रचलित इंजन है क्योंकि लगभग सभी प्रकार की उर्जाओं को ऊष्मा में बहुत आसानी से बदला जा सकता है और ऊष्मा इंजन द्वारा इस ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में। ऊष्मा इंजन और ऊर्जा का संतुलन .

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ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक

ऊष्मा के यांत्रिक तुल्यांक के मापन के लिए जूल द्वारा प्रयुक्त उपकरण ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक (तुल्यांक .

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ऊष्मा अन्तरण

पानी गरम करना ऊष्मा के अन्तरण का सबसे सामान्य उदाहरण है। किसी अधिक गर्म पिण्ड से किसी अधिक ठंडे पिंड में ऊष्मा के पारगमन को ऊष्मा अन्तरण (हीट ट्रान्सफर) कहते हैं। जब किसी वस्तु का तापमान उसके परिवेश या अन्य वस्तु की अपेक्षा भिन्न होता है तो ताप ऊर्जा का संचार जिसे ताप का बहाव या ताप का विनिमय भी कहते हैं, इस तरह से होता है कि वह वस्तु और उसका परिवेश ऊष्म-साम्यता ग्रहण कर लेते हैं; इसका मतलब है कि दोनों का तापमान समान हो जाता है। ऊष्मप्रवैगिकी के द्वितीय नियम या क्लॉज़ियस के कथन के अनुसार ऊष्मा का संचार हमेशा अधिक गर्म वस्तु से अधिक ठंडी वस्तु की ओर होता है। जहां कहीं भी पास-पास स्थित वस्तुओं में तापमान की भिन्नता होती है, उनके बीच ऊष्मा के संचार को कभी रोका नहीं जा सकता; इसे केवल कम किया जा सकता है। .

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ऊष्मागतिक चक्र

एक ऊष्मागतिक चक्र का P-V आरेख एक आदर्श ऊष्मागतिक चक्र का P-V आरेख ऊष्मागतिक चक्र (thermodynamic cycle) कई ऊष्मागतिक प्रक्रमों से मिलकर बनता है। प्रत्येक ऊष्मागतिक प्रक्रम में निकाय के दाब, ताप, तथा अन्य प्रावस्था चर (स्टॅट वैरिएबुल्स) बदलते हुए ऊष्मा और कार्य का विनिमय हो सकता है। इन सारे परिवर्तनों के होते हुए निकार अपनी प्रारम्भिक अवस्था (स्टेट) में आता है और यही चक्र बार-बार होता रहता है। ऊष्मा इंजन तथा ऊष्मा पम्प में तरह-तरह के ऊष्मागतिक चक्र अपनाये जाते हैं। कुछ प्रमुख ऊष्मागतिक चक्र निम्नलिखित हैं-.

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ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम

उष्मागतिकी के शून्यवें सिद्धांत में ताप की भावना का समावेश होता है। यांत्रिकी में, विद्युत् या चुंबक विज्ञान में अथवा पारमाण्वीय विज्ञान में, ताप की भावना की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत द्वारा ऊष्मा की भावना का समावेश होता है। जूल के प्रयोग द्वारा यह सिद्ध होता है कि किसी भी पिंड को (चाहे वह ठोस हो या द्रव या गैस) यदि स्थिरोष्म दीवारों से घेरकर रखें तो उस पिंड को एक निश्चित प्रारंभिक अवस्था से एक निश्चित अंतिम अवस्था तक पहुँचाने के लिए हमें सर्वदा एक निश्चित मात्रा में कार्य करना पड़ता है। कार्य की मात्रा पिंड की प्रारंभिक तथा अंतिम अवस्थाओं पर ही निर्भर रहती है, इस बात पर नहीं कि यह कार्य कैसे किया जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में दाब तथा आयतन के मान p0 तथा V0 हैं तो कार्य की मात्रा अंतिम अवस्था की दाब तथा आयतन पर निर्भर रहती है, अर्थात् कार्य की मात्रा p तथा V का एक फलन है। यदि कार्य की मात्रा का W हैं तो हम लिख सकते हैं कि W .

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ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया

किसी ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया का ऊर्जा-प्रोफाइल वह रासायनिक अभिक्रिया उष्माक्षेपी (exothermic reaction) कहलाती है जिसमें उष्मा के रूप में उर्जा प्राप्त होती है। इसके विपरीत रासायनिक अभिक्रिया उष्माशोषी कहलाती है। रासायनिक अभिक्रिया के रूप में व्यक्त करने पर - उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन का जलना एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। .

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ऊष्मीय दक्षता

यांत्रिक आउटपुट सदा ही इनपुट ऊर्जा से कम होता है। ऊष्मीय ऊर्जा प्रयोग करने वाले उपकरणों (उदाहरण के लिये, अन्तर्दहन इंजन, वाष्प-टरबाईन, वाष्प-इंजन, धमन-भट्ठी, बॉयलर और रेफ्रिजिरेटर आदि) की दक्षता मापने के लिए ऊष्मीय दक्षता (थर्मल एफिसिएन्सी) का उपयोग किया जाता है। दूसरे शब्दो में कहा जा सकता है कि उपकरण में ऊर्जा का स्थानान्तरण कितनी अच्छी तरह से किया जा पा रहा है, इसकी माप उसकी दक्षता के द्वारा किया जाता है। सामान्यतः किसी भी निकाय के सन्दर्भ में, उपयोगी आउटपुट ऊर्जा और इनपुट ऊर्जा के अनुपात को ऊर्जा दक्षता कहते हैं। जब ऊष्मीय ऊर्जा की बात करते हैं तब किसी युक्ति को दी गयी ऊष्मीय ऊर्जा या उस युक्ति द्वारा खपत की गयी कुल ऊर्जा Q_ उसका इनपुट होता है जबकि वांछित आउटपुट, उस युक्ति द्वारा किया गया यांत्रिक कार्य W_, या Q_, या दोनों होते हैं। हम जानते हैं कि ऊर्जा वैसे ही नहीं मिलती, उसका कुछ न कुछ वित्तीय मूल्य होता है, अतः ऊष्मीय दक्षता की सामान्य परिभाषा निम्नलिखित है- ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार, आउटपुट ऊर्जा कभी भी इनपुट ऊर्जा से अधिक नहीं हो सकती। अतः सामान्य रूप से किसी उपकरण में ऊर्जा की खपत का अनुपात उसके द्वारा उत्पादित बल (कार्य) की तुलना में कितना है इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि किसी अंतर्दहन इंजन में ईंधन (पेट्रोल या डीजल) जलता है तो उससे न केवल जेनरेटर चल कर बिजली बनती है बल्कि इस प्रक्रिया में इंजन चलाने के लिए इंधन को जलाया जाता है जिससे इंजन चलेन के साथ जो गर्मी पैदा होती है वह भी उसके एक उत्पाद के रूप में उत्पन्न होती है, यह गर्मी जितनी अधिक होगी उतना ही बिजली बनाने की क्षमता को कम करेगी। .

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ऊष्मीय संतुलन

दो भौतिक तंत्र ऊष्मीय संतुलन (thermal equilibrium) में कहें जाते हैं जब उन दोनो के बीच ऊष्मा के लिए पारगम्य मार्ग हो (यानि जिसके द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा सहजता से आ-जा सके) लेकिन इसके बावजूद उनके बीच ऊष्मीय ऊर्जा का कोई औसत प्रवाह न हो। कोई भौतिक तंत्र स्वयं अपने भीतर ऊष्मीय संतुलन में तब कहा जाता है जब उसके सभी भागों में तापमान समान हो और समय के साथ परिवर्तित न हो रहा हो। .

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चूल्हा

इण्डोनेशिया का पारम्परिक चूल्हा। भारत में भी कुछ इसी प्रकार के चूल्हें ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उपयोग किये जाते हैं। गैस चूल्हा चूल्हा उष्मा का वह स्रोत है जिससे प्राप्त उष्मा का प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है। चूल्हे कई प्रकार के होते हैं जैसे, मिट्टी का चूल्हा, अंगीठी या सिगड़ी, गैस का चूल्हा और सूक्ष्मतरंग चूल्हा, सौर चूल्हा आदि और इनमे प्रयोग होने वाले ऊर्जा के स्रोत भी भिन्न हो सकते हैं, जैसे लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, द्रवित पेट्रोलियम गैस सौर ऊर्जा और बिजली आदि। OffeneHerdstelleMainfränkischesMuseumWürzburgL1050585 (3).jpg|जर्मनी के एक संग्रहालय में रखा हुआ खुला चूल्हा Noć muzeja 2015, Čakovec - stari štednjak iz 19.st.jpg|right|thumb|300px|बुडापेस्ट में निर्मित १९वीं शताब्दी का एक चूल्हा। इस चूल्हे को २०१५ में क्रोशिया में प्रदर्शित किया गया था। .

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टेफ्लान

टेफ्लॉन की पट्टी, फीता(टेप) आदि टेफ्लान का अणु टेफ्लॉन की परत चढ़ाया हुआ बरतन (पैन) टेफ्लान या पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन (Polytetrafluoroethylene (PTFE)) एक संश्लेषित फ्लूरोबहुलक है। यह अनेकों कार्यों के लिये उपयोगी है। 'टेफ्लोन' (Teflon) डूपॉण्ट (DuPont Co) द्वारा विकसित पीटीएफई का ब्राण्ड-नाम है। पीटीएफई बहुत ही कठोर पदार्थ है। इस पर ऊष्मा, अम्ल तथा क्षार का प्रभान नहीं पड़ता है। यह विद्युत धारा का कुचालक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एल्युमिनियम

एलुमिनियम एक रासायनिक तत्व है जो धातुरूप में पाया जाता है। यह भूपर्पटी में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली धातु है। एलुमिनियम का एक प्रमुख अयस्क है - बॉक्साईट। यह मुख्य रूप से अलुमिनियम ऑक्साईड, आयरन आक्साईड तथा कुछ अन्य अशुद्धियों से मिलकर बना होता है। बेयर प्रक्रम द्वारा इन अशुद्धियों को दूर कर दिया जाता है जिससे सिर्फ़ अलुमिना (Al2O3) बच जाता है। एलुमिना से विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध एलुमिनियम प्राप्त होता है। एलुमिनियम धातु विद्युत तथा ऊष्मा का चालक तथा काफ़ी हल्की होती है। इसके कारण इसका उपयोग हवाई जहाज के पुर्जों को बनाने में किया जाता है। भारत में जम्मू कश्मीर, मुंबई, कोल्हापुर, जबलपुर, रांची, सोनभद्र, बालाघाट तथा कटनी में बॉक्साईट के विशाल भंडार पाए जाते है। उड़ीसा स्थित नाल्को (NALCO) दुनिया की सबसे सस्ती अलुमिनियम बनाने वाली कम्पनी है। .

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एसी/एसी परिवर्तक

प्रेरण मोटरों को अलग-अलग वेग से चलाने के लिए इसी तरह के विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें परिवर्ती आवृत्ति ड्राइव खते हैं। तीसरे तरह के एसी/एसी परिवर्तक, जो साइक्लो-कन्वर्टर कहलाते हैं, किसी आवृत्ति की एसी को लेकर उससे '''कम''' आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा देते हैं। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की ए.सी. लेकर उससे १६.६६७ हर्ट्ज की एसी पैदा करने वाले विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग कहीं-कहीं विद्युत कर्षण में होता है। साइक्लोकन्वर्टर के लिए कई तरह के परिपथ (टोपोलोजी) प्रयोग की जाती है, जैसे परम्परागत मैट्रिक्स कन्वर्टर, स्पार्स मैट्रिक्स कन्वर्टर आदि। .

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झाग

सागर का झाग, पास से देखने पर फेनित एल्युमिनियम झाग या फेन वह वस्तु होती है जो द्रव या ठोस में गैस के बुलबुलों को फँसाने से प्राप्त होती है। साबुन को पानी में मिलाने से बना झाग (फ़ोम) इसका सबसे आम उदाहरण है। पर यह शब्द इस जैसी अन्य घटनाओं के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे क्वांटम फेन। द्रव के बने फेन को कलिल (कोलाइड) का एक प्रकार भी माना जा सकता है। जब ऐसे द्रव को जमा दिया जाता है तो ठोस बनता है जो फेन का यथावत हिमीकृत रूप होता है। ऐसे ठोस फेन के उदाहरणों में फेनित अल्युमीनियम का नाम लिया जा सकता है (चित्र दाहिनी ओर दिया गया है)। ठोस में गैस के बुलबुलों से बने झाग के एक अन्य उदाहरण के रूप में खाने की वस्तु पाव (ब्रेड) बहुधा प्रयुक्त होती है। फ़ोम रासायनिक कारखानों का एक आम सह-उत्पाद है जो अक्सर अवांछित होता है। सिलिकोन तेल एक साधारण विफेनक है जो फेन को अवांछित तरल में बनने से रोकता है। 20 वीं सदी की शुरुआत से, विशेष रूप से निर्मित ठोस फेन, विभिन्न प्रकार के प्रयोग में आने शुरु हो गये थे। इन फेनों के कम घनत्व के कारण इन्हें उष्मा कुचालक और प्लवन उपकरणों बनाने में प्रयुक्त किया गया और इनके कम भार और संपीडकता के चलते यह पैकिंग और भराई पदार्थ के रूप में आदर्श बन गये। कुछ तरल फेन को, अग्नि रोधक फेन भी कहते हैं और इनका प्रयोग आग बुझाने, विशेष रूप से तेल की आग को बुझाने में किया जाता है। .

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डीज़ल इंजन

डीज़ल ईंजन एक अंतर्दहन इंजन है जो बन्द स्थान में वायु को संपीडित करने से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग करके ईंधन में ज्वलन (इग्नीशन) उत्पन्न करता है। इस प्रकार यह यह स्पार्क-ज्वलन इंजनों से भिन्न है क्योंकि उनमें वायु और ईंधन के मिश्रण को प्रज्वलित करने के लिए स्पार्क-प्लग का उपयोग किया जाता है। इसे संपीडन-ज्वलन इंजन (compression-ignition engine) भी कहते हैं। इससे प्राप्त यांत्रिक ऊर्जा (गतिज ऊर्जा) का उपयोग वाहन, जेनरेटर तथा अन्य कई कार्यों में लाया जाता है। इसकी ख़ोज 1892 में पेरिस में जन्मे जर्मन मूल के अभियंता रूडोल्फ़ डीज़ल ने की थी। अन्य रसायनों के अलावा यह नाइट्रोजन तथा कालिख के कण दहन के उत्पाद के रूप में छोड़ता है जो प्रदूषण का ख़तरा उत्पन्न करते हैं। इस इंजन में वायु को प्रथमतया दबाया जाता है जिसकी वजह से इसका तापमान बढ़ता है। इसके बाद इसमें जैसे ही डीज़ल उड़ेला जाता है यह गरमी की वजह से जलने लगता है जिसकी वजह से और गर्मी पैदा होती है और यह अपने ऊपर लगे पिस्टन को धकेलता है। इस कारण से गति प्राप्त होती है जिसको कई गियरों तथा रेलों के सहारे इच्छित काम करने में लगाया जाता है। जब तक ट्रकों, बसों और रेल इंजनों में डीज़ल का प्रयोग नहीं शुरू हुआ तब तक यह सर्वसाधरण के लिये अज्ञात ही था। इसके अन्य उपयोग भी इतने ही महत्वपूर्ण थे, पर ऐसे जान नहीं पड़ते थे। आज डीज़ल इंजन जहाजों, जनित्रों (generators), पंपो, संपीड़कों, चक्कियों, चट्टान दलित्रों, मिट्टी हटाने की मशीनों, ट्रैक्टरों आदि में काम आ रहा है। भिन्न भिन्न कार्यों के लिये डीज़ल इंजन का अकार तथा आकृति भित्र होती है। .

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तरंग

---- तरंग (Wave) का अर्थ होता है - 'लहर'। भौतिकी में तरंग का अभिप्राय अधिक व्यापक होता है जहां यह कई प्रकार के कंपन या दोलन को व्यक्त करता है। इसके अन्तर्गत यांत्रिक, विद्युतचुम्बकीय, ऊष्मीय इत्यादि कई प्रकार की तरंग-गति का अध्ययन किया जाता है। .

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तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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तापयुग्म

डिजिटल मल्टीमीटर से जुड़ा एक तापयुगम: कमरे का ताप सीधे डिग्री सेल्सियस में प्रदर्शित कर रहा है। दो भिन्न धातुओं के जोड़ (junction) को तापयुग्म (thermocouple) कहते हैं। यह जंक्शन जितना ही अधिक ताप पर होता है उन दो धातुओं के खुले सिरों के बीच उतना ही अधिक विभवान्तर प्राप्त होता है। यही इसके कार्य करने का आधारभूत सिद्धान्त है। तापमापन एवं ताप नियंत्रण के लिये इसका खूब प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग उष्मा को विद्युत उर्जा में बदलने के लिये भी किया जा सकता है। तापयुग्म बहुत सस्ते होते है। ये विस्तृत परास (रेंज) के ताप मापने के लिये उपयुक्त हैं। इनके द्वारा लगभग १ डिग्री सेल्सियस तक परिशुद्धता से ताप मापा जा सकता है। .

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तापोपचार

तापोपचार (Heat treatment) उन प्रक्रमों या विधियों को कहते हैं जो उष्मा के आदान-प्रदान के द्वारा पदार्थों के भौतिक गुणों को बदलने के लिये उपयोग किये जाते हैं। कभी-कभी इनकी सहायता से पदार्थ के रासायनिक गुण भी बदले जाते हैं। इनका धातुकर्म में बहुत उपयोग है। कांच आदि कुछ अन्य पदार्थों के उत्पादन में भी तापोपचार का प्रयोग होता है। तापोपचार द्वारा वांछित परिणाम पाने के लिये पदार्थ को प्राय: बहुत अधिक गरम करना या बहुत अधिक ठण्डा करना पड़ता है। एनिलिंग (annealing), केस कठोरीकरण (case hardening), प्रेसिपिटेशन सशक्तीकरण (precipitation strengthening), टेम्परिंग (tempering) तथा क्वेंचिंग (quenching) प्रमुख तापोपचार हैं। .

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तापीय प्रतिरोध

तापीय प्रतिरोध' (Thermal resistance) किसी वस्तु या पदार्थ का वह गुण है जो उसके द्वारा ऊष्मा के प्रवाह का विरोध करने की प्रवृत्ति का सूचक है। तापीय प्रतिरोध, तापीय चालकता का उल्टा है। इसको कई तरह से नापा जाता है-.

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ताम्र ह्रास

विद्युत इंजीनियरी में ताम्र ह्रास (Copper loss) उस शक्ति क्षय को कहते हैं जो ट्रांसफॉर्मर एवं अन्य विद्युत मशीनों के चालकों में धारा के बहने के कारण उष्मा के रूप में क्षय होती रहती है। यह अवांछनीय है। .

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थॉमस ऐल्वा एडीसन

थॉमस एल्वा एडिसन (११ फ़रवरी १८४७ - १८ अक्टूबर १९३१) महान अमरीकी आविष्कारक एवं व्यवसायी थे। एडिसन ने फोनोग्राफ एवं विद्युत बल्ब सहित अनेकों युक्तियाँ विकसित कीं जिनसे संसार भर में लोगों के जीवन में भारी बदलाव आये। "मेन्लो पार्क के जादूगर" के नाम से प्रख्यात, भारी मात्रा में उत्पादन के सिद्धान्त एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण-कार्य को आजमाने वाले वे पहले अनुसंधानकर्ता थे। इसलिये एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। अमेरिका में अकेले १०९३ पेटेन्ट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान आविष्कारकों में गिने जाते हैं। .

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दहन

आक्सीजन की उपस्थिति में लकड़ी का दहन किसी जलने वाले पदार्थ के वायु या आक्सीकारक द्वारा जल जाने की क्रिया को दहन या जलना (Combustion) कहते हैं। दहन एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (exothermic reaction) है। इस क्रिया में आँखों से ज्वाला दिख भी सकती है और नहीं भी। इस प्रक्रिया में ऊष्मा तथा अन्य विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे प्रकाश) भी उत्पन्न होते हैं। आम दहन के उत्पाद गैसों के द्वारा प्रदूषण भी फैलता है। विज्ञान के इतिहास में अग्नि वा ज्वाला सबंधी सिद्धांतों का विशेष महत्व रहा है। उदाहरण के लिए किसी हाइड्रोकार्बन के दहन का सामान्य रासायनिक समीकरण निम्नलिखित है- मिथेन के लिए इस समीकरण का स्वरूप निम्नवत हो जाएगा- .

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दहन ऊष्मा

किसी तत्त्व या यौगिक की १ ग्राम-अणु मात्रा को ऑक्सीजन में स्थिर आयतन पर पूर्णतया जलाने से जितनी उष्मा निकलती है, उसे उस तत्व या यौगिक की दहन-उष्मा (Heat of combustion) कहते हैं। दहन ऊष्मा का मान निम्नलिखित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है-.

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द्रुतशीतक

एक द्रुतशीतक (चिलर) संपीडन द्रुतशीतक के प्रमुख अवयव A: गरम क्षेत्र (बाहर), B: ठण्डा कमरा, I: ऊष्मारोधी (इन्सुलेटर), 1: संघनित्र 2, 3. वाष्पित्र (evaporator) 4. संपीडक (कम्प्रेशर) प्रशीतन का कार्ना चक्र द्रुतशीतक (chiller) वह यन्त्र है जो वाष्प-संपीडन या शोषण प्रशीतन चक्र का उपयोग करके किसी द्रव से ऊष्मा निकालती है। इस रीति से ठण्डा किया गया यह द्रव जब किसी ऊष्मा विनिमायक से होकर ले जाया जाता है जिससे हवा या कोई उपकरण आदि ठण्डा किये जाते हैं। श्रेणी:शीतलन.

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र

दाबित भारी जल रिएक्टर का योजनामूलक चित्र खौलता जल रिएक्टर का योजनामूलक चित्र नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र (nuclear power plant (NPP)) वे ताप ऊर्जा संयंत्र (thermal power station) होते हैं जिनमें ऊष्मा एक या कई नाभिकीय भट्ठियों से प्राप्त होती है। नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र प्रायः आधार लोड संयंत्र (base load stations) के रूप में काम करते हैं क्योंकि ये नियत शक्ति देने के लिये सबसे अधिक उपयुक्त हैं। .

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नाभिकीय अभियांत्रिकी

नाभिकीय ऊर्जा संयन्त्र B-61 bomb नाभिकीय अभियांत्रिकी (Nuclear engineering), इंजिनियरी की वह शाखा है जो नाभिक के विखण्डन (fission) एवं संलयन (fusion) के उपयोगों से सम्बन्धित है। नाभिकीय विखण्दन के अन्तर्गत परमाणु रिएक्टर, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र, तथा/या परमाणु हथियार आदि आते हैं। इसी के अन्तर्गत आयनकारी विकिरण के चिकित्सीय एवं अन्य उपयोग, नाभिकीय सुरक्षा, ऊष्मा का संचरण, नाभिकीय ईंधन, रेडियोसक्रिय कचरे का निपटान (radioactive waste disposal), तथा नाभिकीय प्रचुरोद्भवन से संबन्धित खतरे आते हैं। .

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पुनर्योजी ब्रेक

पुनर्योजी ब्रेक (Regenerative braking) किसी वाहन की गति को कम करने का ऐसा साधन है जो उस वाहन की चाल को तो कम कर देता है किन्तु इस कार्य में वाहन की गतिज ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में नष्ट करने के बजाय उसे कहीं भण्डारित कर लिया जाता है, जो आगे चलकर काम आ जाती है। अस्थायी/स्थायी रूप से भण्डारित करने के लिए बैटरी, गतिपालक चक्र, दाबित गैस, सुपर संधारित्र आदि का उपयोग किया जाता है। पुनर्योजी ब्रेक, उस वाहन की सकल ऊर्जा दक्षता को बढ़ा देता है। इसके अलावा, इस प्रकार से ब्रेक करना वाली प्रणाली का जीवनकाल भी अधिक होगा क्योंकि वहाँ कोई घिसने वाला अवयव नहीं होता। श्रेणी:ऊर्जा.

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प्रतिरोधक

नियत मान वाले कुछ प्रतिरोधक प्रतिरोधक (resistor) दो सिरों वाला वैद्युत अवयव है जिसके सिरों के बीच विभवान्तर उससे बहने वाली तात्कालिक धारा के समानुपाती (या लगभग समानुपाती) होता है। ये विभिन्न आकार-प्रकार के होते हैं। इनसे होकर धारा बहने पर इनके अन्दर उष्मा उत्पन्न होती है। कुछ प्रतिरोधक ओम के नियम का पालन करते हैं जिसका अर्थ है कि -; V .

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प्रवर्धक

एक सामान्य प्रवर्धक बक्सा जिसमें इनपुट और आउटपुट के लिए बाहर पिन दिए होते हैं। प्रवर्धक और रिपीटर जो संकेत की शक्ति को बढ़ाकर उन्हें 'उपयोग के लायक' बनाते हैं। प्रवर्धक या एम्प्लिफायर (amplifier) ऐसी युक्ति है जो किसी विद्युत संकेत का मान (अम्प्लीच्यूड) बदल दे (प्रायः संकेत का मान बड़ा करने की आवश्यकता अधिक पड़ती है।) विद्युत संकेत विभवान्तर (वोल्टेज) या धारा (करेंट) के रूप में हो सकते है। आजकल सामान्य प्रचलन में प्रवर्धक से आशय किसी 'इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक' से ही होता है। .

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प्रकाश संसूचक

चित्र:Photomultiplier 6363 04.jpg|फोटोमल्टिप्लायर चित्र:Photomultiplier 6363 02.jpg|फोटोमल्टीप्लायर चित्र:Ccd-sensor.jpg|CCD-सेन्सर चित्र:Photodiode-closeup.jpg|फोटोडायोड चित्र:fototransb.jpg|फोटोट्रान्जिस्टर् चित्र:Fotocelda.jpg|फोटोरेजिस्टर प्रकाश संसूचक (Photosensors या photodetectors) एक युक्ति है जो प्रकाश या किसी अन्य विद्युतचुम्बकीय ऊर्जा (जैसे, ऊष्मा, एक्स-किरण आदि) की उपस्थिति/अनुपस्थिति की सूचना बताती है। .

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प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त

तरंग सिद्धान्त के प्रतिपादन के बाद के कुछ वर्षो में कुछ बातें ऐसी भी मालूम हुई जो प्रकाश के तरंगमय स्वरूप के सर्वथा प्रतिकूल हैं। इनकी व्याख्या तरंगसिद्धांत के द्वारा हो ही नहीं सकती। इनके लिये प्लांक (Planck) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेना पड़ता है। क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1900 ई. में ऊष्मा विकिरण के संबंध में हुआ था। प्रकाश विद्युत (Photo electricity) की घटना का, जिसमें कुछ धातुओं पर प्रकाश के पड़ने से इलैक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं और तत्वों के रेखामय स्पेक्ट्रम (Line spectrum) की घटना का, जिसमें परमाणु में से एकवर्ण प्रकाश निकलता है, स्पष्टतया संकेत किसी नवीन प्रकार के कणिकासिद्धांत की ओर है। आइन्स्टाइन ने इन कणिकाओं का नाम फ़ोटान (Photon) रख दिया है। ये कणिकाएँ द्रव्य की नहीं हैं, पुंजित ऊर्जा की हैं। प्रत्येक फ़ोटोन में ऊर्जा E का परिमाण प्रकाश तरंग की आवृत्ति n का अनुपाती होता है, E .

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प्रेरण तापन

प्रेरण द्वारा तापित एक वस्तु विद्युत चालक पदार्थों को विद्युतचुम्बकीय प्रेरण द्वारा उत्पन्न भँवर धाराओं द्वारा उत्पन्न ऊष्मा से गरम करने को प्रेरण तापन (Induction heating) या 'प्रेरणीय तापन' कहते हैं। किसी वस्तु को गरम करने के लिए प्रयुक्त प्रेरण तापक वस्तुतः एक विद्युतचुम्बक होता है जिससे उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है। गरम करने के लिए आवश्यक ऊष्मा चुम्बकीय हिस्टेरिसिस का उपयोग करके भी पैदा की जा सकती है। प्रेरण तापन के लिए जो आवृत्ति उपयोग में लायी जाती है वह गरम की जाने वाली वस्तु के आकार, उसके पदार्थ का प्रकार, कपुलिंग आदि कई बातों पर निर्भर करती है। (१ किलोहर्ट्स से लेकर हजारो किलोहर्ट्ज तक हो सकती है) श्रेणी:तापन श्रेणी:विद्युत गतिकी.

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प्लूटोनियम

प्लूटोनियम एक दुर्लभ ट्रांसयूरेनिक रेडियोधर्मी तत्त्व है। इसका रासायनिक प्रतीक Pu और परमाणु भार ९४ होता है। प्लूटोनियम के छः अपरूप होते हैं। यह एक ऐक्टिनाइड तत्त्व है जो दिखने में रुपहले श्वेत (सिल्वर व्हाइट) रंग का होता है। प्लूटोनियम-२३८ का अर्धायु काल ८७.७४ वर्ष होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १० दिसम्बर २००९ प्लूटोनियम-२३९, प्लूटोनियम का एक महत्वपूर्ण समस्थानिक है जिसकी अर्धायु काल २४,१०० वर्ष होता है। प्लूटोनियम-२४४, प्लूटोनियम का सर्वाधिक स्थाई समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल ८ करोड़ वर्ष होता है। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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पॉलीविनाइल क्लोराइड

पॉलीविनाइल क्लोराइड का अणुसूत्र पॉली विनाइल क्लोराइड का अणुपॉली विनाइल क्लोराइड (PVC) एक अक्रिस्टलीय तापसुघट्टय (अमॉर्फस प्लास्टिक) पदार्थ है। कठोर पदार्थ है। ऊष्मा तथा रासायनिक पदार्थों का इस पर प्रभाव नहीं पड़ता है। पॉलीएथिलीन और पॉलीप्रोपीलीन के बाद यह तीसरा सर्वाधिक उत्पादित प्लास्टिक है। निर्माण कार्यों में पीवीसी का उपयोग होता है। पीवीसी से पाइप, केबल इंसुलेशन, फर्श पर बिछाने की चादर, दरवाजे आदि बनाए जाते हैं। पॉलीविनाइल क्लोराइड का निर्माण मोनोमर विनाइल क्लोराइड के बहुलीकरण द्वारा किया जाता है। शुद्ध पीवीसी मूलतः सफेद, कठोर और भंगुर ठोस होता है जिसमें सुघट्यकारी (प्लास्टिसाइजर) मिलाकर उसे नरम व लचीला बनाया जाता है। सुघट्यकारी के रूप में थैलेट्स (phthalates) का प्रयोग सबसे अधिक होता है। नरम पॉलीविनाइल क्लोराइड का उपयोग वस्त्र तथा गद्दे आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। .

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पोषक तत्व

सागर में पोषण चक्रएक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है।Whitney, Elanor and Sharon Rolfes.

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फ़ूर्ये श्रेणी

फूर्ये श्रेणी के आरम्भिक एक, दो, तीन या चार पदों द्वारा वर्ग तरंग फलन (square wave function) का सन्निकटीकरण (approximation)। अधिक पद जोड़ने पर प्राप्त ग्राफ, वर्ग-तरंग के ग्राफ के अधिकाधिक निकट दिखने लगता है। गणित में फूर्ये श्रेणी (Fourier series) एक ऐसी अनन्त श्रेणी है जो f आवृत्ति वाले किसी आवर्ती फलन (periodic function) को f, 2f, 3f, आदि आवृत्तियों वाले ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रस्तुत करती है। इसका प्रयोगे सबसे पहले जोसेफ फ़ूर्ये (१७६८ - १८३०) ने धातु की प्लेटों में उष्मा प्रवाह एवं तापमान की गणना के लिये किया था। किन्तु बाद में इसका उपयोग अनेकानेक क्षेत्रों में हुआ और यह विश्लेषण का एक क्रान्तिकारी औजार साबित हुआ। इसकी सहायता से कठिन से कठिन फलन भी ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रकट किये जाते हैं जिससे इनसे सम्बन्धित गणितीय विश्लेषण अत्यन्त सरल हो जाते हैं। .

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बैण्ड विस्तारण

जब किसी पदार्थ को विद्युत् या ऊष्मा शक्ति देकर उत्तेजित किया जाता है तब उससे विभिन्न वर्ण की रश्मियाँ (radiations) निकलने लगती हैं। स्पेक्ट्रोग्राफ की सहायता से इनका स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जा सकता है। यदि पदार्थ को इतनी ऊर्जा दी जाए कि उसके अणु उत्तेजित हो जाएँ, किंतु वे टूटकर परमाणुओं में परिवर्तित न हों, तो उनसे उत्सर्जित रश्मियों के स्पेक्ट्रम में विभिन्न वर्ण की छोटी-छोटी पट्टियाँ, या बैंड, पाए जाते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम को बैंड स्पेक्ट्रम (Band Spectrum) कहते हैं। यदि पदार्थ को बहुत अधिक ऊर्जा दी जाए तो अणु टूट जाते हैं और पदार्थ के परमाणु उत्तेजित हो जाते हैं। उत्तेजित परमाणुओं से जो स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है, उसमें विभिन्न वर्ण की रेखाएँ पाई जाती हैं। यह स्पेक्ट्रम बैंड स्पेक्ट्रम से सर्वथा भिन्न होता है। .

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भाप

सौ डिग्री सेंट्रिग्रेड से अधिक गरम किसी वस्तु पर जल डालने से अचानक भाप पैदा होता है। पानी की गैसीय अवस्था या जलवाष्प को भाप (steam) कहते हैं। शुष्क भाप अदृश्य होती है, परंतु जब भाप में जल की छोटी-छोटी बूँदें मिली होती हैं तब उसका रंग सफेद होता है, जैसा रेल के इंजन से निकलती भाप में स्पष्ट दिखाई देता है। जब भाप में जल की बूँदे उपस्थित होती हैं, तो इसे 'आर्द्र भाप' (wet steam) कहते हैं। यदि जल की बूँदों का सर्वथा अभाव हो तो यह 'शुष्क भाप' (dry steam) कहलाती है। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भूसंचलन

धरती के कुछ भाग दूसरे भागों के सापेक्ष धीमी किन्तु लगातार विस्थापित हो रहे हैं। इन्हें ही भूसंचलन (Earth's movements) कहते हैं। ये संचलन, धरती को अपरूपित (deform) करते हैं। भूसंचलन के निम्नलिखित कारक हैं-.

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मिस्र के पिरामिड

गीज़ा, मिस्र के एक पिरामिड समूह का दृश्य मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था। भारत की तरह ही मिस्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीज़ा में तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका। यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी परिशुद्धता से बनाया गया है कि वर्तमान तकनीक ऐसी कृति को दोहरा नहीं सकती। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे। म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों में पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। .

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मोमबत्ती

एक मोमबत्ती मोमबत्ती एक बत्ती मोम में है। वह रोशनी या ऊष्मा बनती है। .

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रासायनिक ऊर्जा

रासायनिक ऊर्जा एक प्रकार की ऊर्जा है। ऊर्जा का यह रूप पदार्थों के मध्य संचित रहता है। यह अणुओं के मध्य परमाणु के स्थिति के कारण तथा विभिन्न छोटे कणों के आपसी स्थिति के कारण उत्पन्न होता है। यदि किसी तंत्र में रासायनिक ऊर्जा का परिमाण घट जाता है तो इसका अर्थ है कि उसमें होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया से कुछ रासायनिक उर्जा आस-पास के वातारण में उष्मा के रूप में मुक्त हुई है। यदि किसी तंत्र में रासायनिक ऊर्जा का परिमाण बढ़ जाता है तो इसका अर्थ है कि उसमें होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया में कुछ रासायनिक उर्जा आस-पास के वातारण से उष्मा के रूप में अवशोषित हुई है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है। श्रेणी:ऊर्जा.

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रासायनिक संदीप्ति

एक रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अत्यधिक संदीप्ति प्राप्त हुई है रासायनिक अभिक्रिया के अंतर्गत ऊष्मा के साथ-साथ दीप्ति का निकलना रासायनिक संदीप्ति (Chemiluminescence) कहलाता है। इसे रासायनिक उत्पत्ति (origin) का ठंडा प्रकाश भी कह सकते हैं। इसमें सब प्रकार के विकिरण दृश्यमान - अवरक्त तथा पराबैंगनी - संम्मिलित हैं। रासायनिक संदीप्ति अधिकांश ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं में उत्पन्न होती है। अमोनियम डाइक्रोमेट के गरम करने पर यह संदीप्ति देखी जा सकती है। गंधकवाले यौगिकों तथा फॉर्मेल्डिहाइड, एक्रोलीन, ग्लूकोज़ आदि पदार्थो का ऑक्सीकरण करने पर भी यह संदीप्ति उत्पन्न होती है। रासायनिक संदीप्ति में उत्पन्न प्रकाश उन अणुओं के ऑक्सीकरण के स्थानांतरण के कारण होता है, जो ऑक्सीकृत नहीं होते हैं। रासायनिक संदीप्ति साधारण प्रकाश अभिक्रियाओं में उत्पन्न होती है। अमोनियम डाइक्रोमेट के गरम करने पर यह संदीप्ति देखी जा सकती है। गंधकवाले यौगिकों तथा फॉर्मेल्डिहाइड, एक्रोलीन, ग्लूकोज़ आदि पदार्थों का ऑक्सीकरण करने पर भी यह संदीप्ति उत्पन्न होती है। रासायनिक संदीप्ति में उत्पन्न प्रकाया उन अणुओं के ऑक्सीकरण के स्थानांतरण के कारण होता है, जो ऑक्सीकृत नहीं होते हैं। रासायनिक संदीप्ति साधारण प्रकाश अभिक्रियाओं (photoreaction) की उल्टी होती है। रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप प्रकाश अभिक्रिया में तो प्रकाश का अवशोषण होता है, पर रासायनिक संदीप्ति में प्रकाश निकलता है। अँधे में श्वेत फॉस्फ़ोरस के चमकने का कारण रासायनिक संदीप्ति ही है। सिलोक्लीन (Siloxen) भी इसी के उदाहरण हैं। श्रेणी:संदीप्ति श्रेणी:स्पेक्ट्रमिकी.

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रैखिक शक्ति आपूर्ति

बीजेटी और आप-एम्प की सहायता से 'रैखिक शक्ति आपूर्ति' का स्कीमैटिक रैखिक शक्ति आपूर्ति (लिनियर पॉवर सप्लाई) वह शक्ति आपूर्ति है जिसमें आउटपुट को नियंत्रित करने वाली मुख्य शक्ति-युक्ति 'लिनियर रेंज' में काम करती है न कि 'स्विच मोड' या आन-आफ मोड में नहीं। उदाहरण के लिये १५ वोल्ट आउटपुट वाला 7815 वोल्टेज नियंत्रक आईसी एक रैखिक शक्ति आपूर्ति है। इसी तरह 7812, 7805, 7915, 7912 आदि भी लिनियर पॉवर सप्लाई ही हैं। .

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लाल

लाल वर्ण को रक्त वर्ण भी कहा जाता है, कारण इसका रक्त के रंग का होना। लाल वर्ण प्रकाश की सर्वाधिक लम्बी तरंग दैर्घ्य वाली रोशनी या प्रकाश किरण को कहते हैं, जो कि मानवीय आँख द्वारा दृश्य हो। इसका तरंग दैर्घ्य लगभग625–740 nm तक होता है। इससे लम्बी तरंग को अधोरक्त कहते हैं, जो कि मानवीय चक्षु द्वारा दृश्य नहीं है। लाल रंग प्रकाश का संयोजी प्राथमिक रंग है, जो कि क्याना रंग का सम्पूरक है। लाल रंग सब्ट्रेक्टिव प्राथमिक रंग भी है RYB वर्ण व्योम में, परंतु CMYK वर्ण व्योम में नहीं। मानवीय रंग मनोविज्ञान में, लाल रंग जुडा़ है ऊष्मा, ऊर्जा एवं रक्त से, साथ ही वे भावनाएं जो कि रक्त से जुडी़ हैं। जैसे कि क्रोध, आवेश, प्रेम। .

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शक्ति गुणांक

एसी विद्युत शक्ति पर काम कर रहे किसी उद्भार (लोड) द्वारा लिये गये वास्तविक शक्ति (Real power) तथा आभासी शक्ति (Apparent power) के अनुपात को शक्ति गुणक या शक्ति गुणांक (Power factor) कहते हैं। शक्ति गुणांक का संख्यात्मक मान शून्य और १ के बीच में होता है। शक्ति गुणक .

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संवहन

वायु की धारा का संवहन लाल रंग के क्षेत्र गरम हैं और नीला रंग के ठन्डे हैं - देखा जा सकता है के संवहन में कैसे गरम क्षेत्रों से अणुओं की गरम फुहारें उठकर ठन्डे क्षेत्रों में जा रहीं हैं संवहन (अंग्रेज़ी:Convection) ऊष्मा के स्थानान्तरण या संचरण की एक विधि है किसी तरल पदार्थ (गैस, द्रव या प्लाज्मा) में अणुओं के समग्र स्थानान्तरण द्वारा ऊष्मा का लेन-देन होता है। ठोसों में संवहन सम्भव नही है किन्तु तरल पदार्थों में संवहन ऊष्मा के अन्तरण की एक मुख्य विधि है। संवहन द्वारा द्रव्यमान का भी स्थानान्तरण होता है। संवहन द्वारा द्रव्यमान के इस स्थानान्तरण के कारण ऊष्मा का स्थानान्तरण (ट्रांस्फर) होता है। अणुओं की इस प्रकार की गति को संवहन धारा कहते हैं। .

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स्पार्क प्लग

सिंगल-ग्राउंड इलेक्ट्रोड वाला स्पार्क प्लग. स्पार्क प्लग (आजकल बहुत कम प्रयुक्त, ब्रिटिश अंग्रेज़ी में: स्पार्किंग प्लग भी) एक विद्युतीय उपकरण है जिसे किसी आंतरिक दहन इंजन के सिलेंडर हेड पर लगाया जाता है और जो संपीडित ईंधन, जैसे एयरोसोल, पेट्रोल, इथेनॉल और तरलीकृत पेट्रोलियम को एक विद्युतीय चिंगारी के माध्यम से सुलगाता है। स्पार्क प्लग में एक विद्युत-रोधित केंद्रीय इलेक्ट्रोड होता है जो बाहर की तरफ एक अत्यंत विद्युत-रोधित तार द्वारा एक प्रज्वलन कुंडली या चुंबकीय सर्किट से जुड़ा होता है, जिससे वह प्लग के आधार में स्थापित एक टर्मिनल के साथ सिलेंडर के अन्दर एक चिंगारी उत्पन्न करता है। (दाएं तरफ चित्र देखें) एटीएन लेनोइर ने पहले से ही 1860 में अपने प्रथम आंतरिक दहन इंजन में एक विद्युत् स्पार्क प्लग का प्रयोग किया था और स्पार्क प्लग के आविष्कार का श्रेय आम तौर पर उन्हें दिया जाता है। स्पार्क प्लग के लिए आरंभिक पेटेंट में शामिल है निकोला टेस्ला द्वारा (में एक प्रज्वलन समय प्रणाली के लिए, 1898), फ्रेडरिक रिचर्ड सिम्स (जीबी 24859/1898, 1898) और रॉबर्ट बॉश (जीबी 26907/1898)। लेकिन 1902 में रॉबर्ट बॉश के इंजीनियर गोटलोब होनोल्ड द्वारा चुंबक आधारित प्रज्वलन प्रणाली के एक हिस्से के रूप में व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य प्रथम उच्च वोल्टेज स्पार्क प्लग के आविष्कार ने ही आंतरिक दहन इंजन के विकास को संभव बनाया। निर्माण में किये गए बाद के सुधारों का श्रेय एल्बर्ट चैंपियन, सर ओलिवर जोसेफ लॉज के पुत्र लॉज बंधुओं को भी दिया जा सकता है जिन्होंने अपने पिता की योजनाओं को विकसित और निर्मित किया, और साथ में गिनीज ब्रुइंग परिवार के केनेल्म ली गिनीज का नाम भी लिया जाता है जिन्होंने KLG ब्रांड विकसित किया। पश्चाग्र आंतरिक दहन इंजन को दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है, स्पार्क प्रज्वलन इंजन जिसे दहन शुरू करने के लिए स्पार्क प्लग की आवश्यकता होती है और संपीड़न प्रज्वलन इंजन (डीजल इंजन) जो हवा को संपीड़ित करता है और फिर डीजल ईंधन को गर्म संपीड़ित वायु मिश्रण में डालता है जहां वह स्वचालित रूप से सुलग जाती है। कम्प्रेशन-प्रज्वलन इंजनों में ठंडी शुरुआत वाली विशेषताओं के सुधार के लिए ग्लो प्लग का उपयोग हो सकता है। स्पार्क प्लग का उपयोग अन्य अनुप्रयोगों में भी किया जा सकता है जैसे कि भट्ठी में, जहां एक दहनशील मिश्रण को प्रज्वलित किया जाना चाहिए। इस मामले में, उन्हें कभी-कभी फ्लेम इग्नाइटर्स भी कहा जाता है। .

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सौर शक्ति

यह लेख सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए विद्युत के उत्पादन के बारे में है। सौर ऊर्जा के अन्य उपयोगों के लिये सौर ऊर्जा देखें। ---- सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त शक्ति को कहते हैं। इस ऊर्जा को ऊष्मा या विद्युत में बदल कर अन्य प्रयोगों में लाया जाता है। उस रूप को ही सौर ऊर्जा कहते हैं। घरों, कारों और वायुयानों में सौर ऊर्जा का प्रयोग होता है। ऊर्जा का यह रूप साफ और प्रदूषण रहित होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १२ जनवरी २०१० सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर उसे प्रयोग करने के लिए सोलर पैनलों की आवश्यकता होती है। सोलर पैनलों में सोलर सेल होते हैं जो सूर्य की ऊर्जा को प्रयोग करने लायक बनाते हैं। यह कई तरह के होते हैं। जैसे पानी गर्म करने वाले सोलर पैनल बिजली पहुंचाने वाले सोलर पैनलों से भिन्न होते हैं। .

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सूक्ष्मतरंग चूल्हा

एक सूक्ष्मतरंग चूल्हा मैग्नेट्रॉन का विद्युत परिपथ: इसके लिये उच्च वोल्टता (४०००-५००० वोल्ट) की आवश्यकता होती है।) सूक्ष्मतरंग चूल्हा, या माइक्रोवेव चूल्हा एक रसोईघर उपकरण है जो कि खाना पकाने और खाने को गर्म करने के काम आता है। इस कार्य के लिये यह चूल्हा द्विविद्युतीय (dielectric) उष्मा का प्रयोग करता है। यह खाने के भीतर उपस्थित पानी और अन्य ध्रुवीय अणुओं को सूक्ष्मतरंग विकिरण का उपयोग करके गर्म करता है। यह गर्मी पूरे भोजन मे काफी हद तक समान रूप से फैलती है (मोटी वस्तुओं को छोड़कर)। यह सुविधा किसी भी अन्य उष्मीय तकनीक में उपलब्ध नहीं होती है। मैग्नेट्रॉन इसका मुख्य अवयव है जो सूक्ष्मतरंगे पैदा करता है। सूक्ष्मतरंग चूल्हा खाने को जल्दी, कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से गर्म करता है, लेकिन एक पारंपरिक तंदूर की तरह भोजन को भूनता या सेंकता नहीं है इस कारण यह कुछ खाद्य पदार्थों को पकाने या कुछ प्रभावों को प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। सूक्ष्मतरंग चूल्हे मे खाना पकाना कई सुरक्षा मुद्दों से जुडा़ है, जैसे चूल्हे के बाहर सूक्ष्मतरंग विकिरण का रिसाव और आग का खतरा क्योंकि यह उच्च तापमान का प्रयोग करता है। एक प्रमुख दृष्टिकोण है कि यह भोजन, की गुणवत्ता को घटाता है शायद इसका कारण इसके साथ जुडा़ शब्द विकिरण है लेकिन वास्तव मे इसमे पका खाना उतना ही सुरक्षित होता है जितना किसी अन्य स्रोत से पका खाना। सूक्ष्मतरंग चूल्हे ने भोजन तैयार करने मे क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है और आज यह हर घर की आवश्यकता बन गये हैं। .

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सेंकना

सेंकना भोजन पकाने की एक तकनीक है जिसमे भोजन को शुष्क उष्मा के संवहन द्वारा पकाया जाता है। आमतौर पर भोजन एक तंदूर में सेंका जाता है पर सिंकाई गर्म राख, तवे पर या गर्म पत्थर पर भी हो सकती है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से रोटी, केक, पेस्ट्री, पाई, टार्ट और कुकीज़ बनाने में किया जाता है। एक आम घरेलू ओवन आमतौर पर दो ताप एलिमेंट से युक्त होता है: एक का प्रयोग सेंकने के लिये जिसमे संवहन विधि का इस्तेमाल होता है जबकि दूसरा एलिमेंट विकिरण द्वारा भोजन को पकाता है और इसे भूनना कहते हैं। मांस को आमतौर पर भून कर पकाया जाता है। सिंकाई की प्रक्रिया में किसी भी वसा उत्पाद का प्रयोग नहीं होता और वसामुक्त स्वादिष्ट भोजन इस प्रक्रिया द्वारा पकाया जा सकता है।.

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हाईपोथर्मिया

अल्पताप (हाइपोथर्मिया) शरीर की वह स्थिति होती है जिसमें तापमान, सामान्य से कम हो जाता है। इसमें शरीर का तापमान ३५° सेल्सियस (९५ डिग्री फैरेनहाइट) से कम हो जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव। दैनिक महामेधा। २८ दिसम्बर २००९ शरीर के सुचारू रूप से चलने हेतु कई रासायनिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। आवश्यक तापमान बनाए रखने के लिए मानव मस्तिष्क कई तरीके से कार्य करता है। जब ये कार्यशैली बिगड़ जाती है तब ऊष्मा के उत्पादन के स्थान पर ऊष्मा का ह्रास तेजी से होने लगता है। कई बार रोग के कारण शरीर का तापमान प्रभावित होता है। ऐसे में शरीर का कोर तापमान किसी भी वातावरण में बिगड़ सकता है। इसे सेंकेडरी हाइपोथर्मिया कहा जाता है। इसके प्रमुख कारणों में ठंड लगना है।। रांची एक्स्प्रेस पहली स्थिति में शरीर का तापमान सामान्य तापमान से १-२° कम हो जाता है। इस स्थिति में रोगी के हाथ सही तरीके से काम नहीं करते। सबसे ज्यादा समस्या रोगी के पेट में होती है और वह थकान महसूस करता है। शरीर का तापमान, सामान्य से २-४° कम हो जाता है। इस स्थिति में कंपकंपाहट तेज हो जाती है। रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं। रोगी पीला पड़ जाता है और उंगलियां, होंठ और कान नीले पड़ जाते हैं। जब शरीर का तापमान ३२° सेल्सियस से भी कम हो जाता है तो कंपकपाहट खत्म हो जाती है। इस दौरान बोलने में परेशानी, सोचने में परेशानी और एमनीशिया की स्थिति होती है। साथ ही कोशिकीय उपापचय दर कम हो जाता है। ३०° से कम तापमान होने पर त्वचा नीली पड़ जाती है। इसके साथ ही चलना असंभव हो जाता है। शरीर के कई अंग अकार्यशील हो जाते हैं। मानव इतिहास में कई युद्धों की सफलता और विफलता के पीछे हाइपोथर्मिया रहा है। दोनों ही विश्व युद्धों में हाइपोथर्मिया के कारण कई लोगों की जानें गईं। २१८ ई.पू.

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हाइपरसॉनिक उड़ान

अतिपराध्वनिक उड़ान (हाइपरसॉनिक उड़ान) वह उड़ान है जो धरती के वातावरण से होकर (90 किलोमीटर से कम ऊँचाई पर) 5 मैक से अधिक वेग से भरी जाती है। इतनी अधिक गति के कारण वायु काफी सीमा तक वियोजित होने लगती है और अत्यधिक ऊष्मा पैदा होती है। .

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हेनरी कैवेंडिश

हेनरी कैवेंडिश (10 अक्टूबर 1731 - 24 फ़रवरी 1810) एक ब्रिटिश प्राकृतिक दार्शनिक, वैज्ञानिक, और एक महत्वपूर्ण प्रायोगिक और सैद्धांतिक रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी था। कैवेंडिश उसकी हाइड्रोजन की खोज या जिन्हें वह "ज्वलनशील हवा" कहा करते थे के लिए विख्यात है।Cavendish, Henry (1766).

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हीरा

कोहिनूर की काँच प्रति कोहिनूर की एक और प्रति हीरों की आकृतियां हीरा एक पारदर्शी रत्न है। यह रासायनिक रूप से कार्बन का शुद्धतम रूप है। हीरा में प्रत्येक कार्बन परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ सह-संयोजी बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। कार्बन परमाणुओं के बाहरी कक्ष में उपस्थित सभी चारों इलेक्ट्रान सह-संयोजी बन्ध में भाग ले लेते हैं तथा एक भी इलेक्ट्रान संवतंत्र नहीं होता है। इसलिए हीरा ऊष्मा तथा विद्युत का कुचालन होता है। हीरा में सभी कार्बन परमाणु बहुत ही शक्तिशाली सह-संयोजी बन्ध द्वारा जुड़े होते हैं, इसलिए यह बहुत कठोर होता है। हीरा प्राक्रतिक पदार्थो में सबसे कठोर पदा‍र्थ है इसकी कठोरता के कारण इसका प्रयोग कई उद्योगो तथा आभूषणों में किया जाता है। हीरे केवल सफ़ेद ही नहीं होते अशुद्धियों के कारण इसका शेड नीला, लाल, संतरा, पीला, हरा व काला होता है। हरा हीरा सबसे दुर्लभ है। हीरे को यदि ओवन में ७६३ डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाये, तो यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड बना लेता है तथा बिल्कूल ही राख नहीं बचती है। इससे यह प्रमाणित होता है कि हीरा कार्बन का शुद्ध रूप है। हीरा रासायनिक तौर पर बहुत निष्क्रिय होता है एव सभी घोलकों में अघुलनशील होता है। इसका आपेक्षिक घनत्व ३.५१ होता है। बहुत अधिक चमक होने के कारण हीरा को जवाहरात के रूप में उपयोग किया जाता है। हीरा उष्मीय किरणों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होता है, इसलिए अतिशुद्ध थर्मामीटर बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। काले हीरे का उपयोग काँच काटने, दूसरे हीरे के काटने, हीरे पर पालिश करने तथा चट्टानों में छेद करने के लिए किया जाता है। .

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जलना (चिकित्सा)

हाथ में द्वितीय श्रेणी (2a) का दाह शरीर के किसी एक या अनेक अंगों का जलना एक प्रकार की दुर्घटना है जो उष्मा, विद्युत, रसायन, प्रकाश, विकिरण या घर्षण आदि से हो सकती है। बहुत ठण्डी चीजों के सम्पर्क में आने से भी शरीर "जल" सकता है जिसे "शीत-जलन" (कोल्ड बर्न) कहते हैं। विश्व में प्रति वर्ष सहस्त्रों व्यक्ति दाह से मरते हैं और इससे बहुत अधिक संख्या में अपंग होकर समाज के भार बन जाते हैं। दाह रोग प्राय: असाध्य नहीं होता। .

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जैव ईंधन

गन्ने की खोई और पत्तियों का उपयोग ईंधन के रूप में करके बिजली उत्पादन किया जाता है। रतनज्योत (जत्रोफा) के फल जिनसे बायोडीजल बनता है फसलों, पेडों, पौधों, गोबर, मानव-मल आदि जैविक वस्तुओं (बायोमास) में निहित उर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। इनका प्रयोग करके उष्मा, विद्युत या गतिज ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। धरातल पर विद्यमान सम्पूर्ण वनस्पति और जन्तु पदार्थ को 'बायोमास' कहते हैं। जैव ईंधन का प्रयोग सरल है। यह प्राकृतिक तौर से नष्ट होने वाला तथा सल्फर तथा गंध से पूर्णतया मुक्त है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा सौर उर्जा को जैव ऊर्जा में बदलते हैं। यह जैव ऊर्जा, विभिन्न प्रक्रियायों से गुज़रते हुए विविध ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन करती है। उदाहरण के लिए पशुओं को चारा, जिसके बदले हमें गोबर प्राप्त होता है, कृषि अवशेष के द्वारा खाना पकाना आदि। यद्यपि कोयला एवं पेट्रोलियम भी पेड-पौधों के परिवर्तित रूप हैं, किन्तु इन्हे जैव-ऊर्जा के स्रोत की तरह नहीं माना जाता है क्योंकि ये प्रक्रिया हजारों वर्ष पहले हुई होगी। .

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जैवनिस्यंदन

जैवनिस्यन्दन (बायोफिल्ट्रेशन) एक नवीन तकनीक है, जिसके द्वरा दुर्गन्धपूर्ण गैस और कम सान्द्र वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स) को समाप्त किया जाता है। किसी भी वस्तु में दुर्गन्घ उसमे पलने वाले कीटाणुओं के उपस्थिति से होता है। इन कीटाणुओं को बायोफिल्ट्रेशन द्वारा समाप्त किया जा सकता है। .

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जेम्स प्रेस्कॉट जूल

जूल का ऊष्मा-उपकरण जेम्स प्रेस्कॉट जूल (अंग्रेजी: James Prescott Joule, जन्म: 24 दिसम्बर 1818 - मृत्यु: 11 अक्टूबर 1889) सैल्फोर्ड, लंकाशायर में जन्मे एक अंग्रेज भौतिकविज्ञानी और शराब निर्माता थे। .

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ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

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वर्ग माध्य मूल

गणित में वर्ग माध्य मूल (root mean square / RMS or rms), किसी चर राशि के परिमाण (magnitude) को व्यक्त करने का एक प्रकार का सांख्यिकीय तरीका है। इसे द्विघाती माध्य (quadratic mean) भी कहते हैं। यह उस स्थिति में विशेष रूप से उपयोगी है जब चर राशि धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मान ग्रहण कर रही हो। जैसे ज्यावक्रीय (sinusoids) का आरएमएस एक उपयोगी राशि है। 'वर्ग माध्य मूल' का शाब्दिक अर्थ है - दिये हुए आंकड़ों के "वर्गों के माध्य का वर्गमूल (root)".

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वस्त्र निपीडक

विविध प्रकार के प्रेस वस्त्र निपीडक या वस्त्र प्रेस (clothes iron) हाथ से पकड़कर युक्ति है जिसे गरम करके वस्त्रों की सलवटें हटाने के काम में लिया जाता है। यह कई आकार-प्रकार की होती है और ऊष्मा के स्रोत के आधार पर भी कई प्रकार की होती है। वर्तमान समय में प्रायः विद्युत से चलने वाली प्रेस ही अधिक प्रचलन में है। .

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वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वायु प्रदूषण के कारण मौतें और श्वास रोग.

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वाष्प शीतक

वाष्प शीतक, जो विश्व के शुष्क भागों में कम खर्चीली ठन्डक प्रदान करने के लिये प्रयुक्त होता है। वाष्प शीतक (अंग्रेजी: Evaporative cooler) एक युक्ति है जो जल के वाष्पन का उपयोग करके हवा को ठण्डा करती है। इसको 'डेजर्ट कूलर' भी कहते हैं। इस शीतक की क्रियाविधि आमतौर से उपयोग आने वाले वातानुकूलन यंत्रों से भिन्न होती है जो वाष्प-संपीडन (vapor-compression) या शोषण प्रशीलन चक्रों के प्रयोग पर आधारित होती हैं। जल के वाष्पन की तापीय धारिता बहुत अधिक होती है और वाष्प शीतक इसी का सदुपयोग करता है। जब जल (द्रव) को वाष्प में बदलते हैं तो यह आसपास की शुष्क हवा से ऊष्मा का शोषण करती है जिससे हवा ठण्डी हो जाती है। इस क्रिया में प्रशीतन (refrigeration) की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ठण्डा करने के अलावा यह हवा में आर्द्रता की मात्रा को भी बढ़ाता है जो अति शुष्क क्षेत्रों में अतिरिक्त आराम देती है। वाष्प शीतक में बन्द-चक्र प्रशीतन नहीं होता बल्कि इसमें जल का लगातार ह्रास होता है। एयर वाशर और वेट-कूलिंग टॉवर भी इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं। .

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वाष्पखनिजन

रॉबर्ट बन्सेन - वाष्पखनिजन सम्पादन पद गढ़ना करनेवाले शैलविज्ञान में वाष्पखनिजन (Pneumatolysis) का अर्थ है आग्नेय मैग्मा से वाष्पउन्मुक्ति तथा शैलसमूहों पर उसके प्रभाव। Pneumatolysis is the alteration of rock or mineral crystallization effected by gaseous emanations from solidifying magma.

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विद्युत

वायुमण्डलीय विद्युत विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है। विद्युत से अनेक जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है। विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति ही विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता है तो इसे विद्युत चुम्बकत्व कहते हैं। विद्युत को अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है किन्तु सरल शब्दों में कहा जाये तो विद्युत आवेश की उपस्थिति तथा बहाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न उस सामान्य अवस्था को विद्युत कहते हैं जिसमें अनेकों कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है। विद्युत चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है। किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। .

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विद्युत ऊर्जा

विद्युत शक्ति एक प्रणाली के भीतर पारम्परिक आवेशित कणों के बीच कूलम्ब बल से जुडी़ स्थितिज ऊर्जा होती है। यहाँ अपरिमित स्थित कणों के बीच सन्दर्भित विभवीय ऊर्जा शून्य होती है। इसकी परिभाषा है: कार्य की मात्रा, जो आवेशित भार रहित कणों पर लगायी जाये, जिससे वे अपरिमित दूरी से किसी निश्चित दूरी तक लाये जा सकें। .

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विद्युत चाप भट्ठी

विद्युत चाप भट्ठी का योजना-आरेख विद्युत चाप भट्ठी (Electric arc furnace) में विद्युत्‌ चाप द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग किया जाता है। चाप दो इलेक्ट्रोडों के बीच उत्पन्न की जाती है, अथवा इलेक्ट्रोड एवं धान (charge) के बीच। इन भट्ठियों में प्रतिरोध भट्ठियों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा उत्पन्न जा सकती है। ये भट्ठियाँ मुख्यतया लौहिक धातुओं, अथवा उनकी मिश्रधातुओं को पिघलाने के लिए काम में आती हैं। इनका संभरण (supply) कम वोल्टता तथा अधिक धारा का होता है। अत:, इसे सामान्य संभरण से विशेष परिणामित्र (transformer) द्वारा प्राप्त किया जाता है। इलेक्ट्रोड, सामान्यत:, कार्बन के होते हैं, परंतु बहुत सी भट्ठियों में उपयुक्त धातु के भी बने होते हैं, जो चाप उत्पन्न होने पर धीरे धीरे स्वयं भी उपयुक्त हो जाते हैं। धारा प्रवाहित होने पर चाप द्वारा, इलेक्ट्रोड के सिरे धीरे-धीरे क्षत हो जाते हैं। इस प्रकार चाप की लंबाई बढ़ जाती है और चाप बुझ भी जा सकती हैं। अत:, इन भट्ठियों में एलेक्ट्रोडों को धीरे धीरे आगे बढ़ाने की व्यवस्था भी करती है। .

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विद्युत्-तापन

३० किलोवाट का विद्युत-तापक जिस किसी प्रक्रिया में विद्युत ऊर्जा, ऊष्मा में बदली जाती है उसे विद्युत्-तापन (Electric heating) कहते हैं। कमरे का तापन, खाना बनाना, पानी गरम करना तथा अनेकों औद्योगिक प्रक्रम आदि कार्य विद्युत तापन द्वारा किये जा सकते हैं। विद्युत तापक (इलेक्ट्रिक हीटर) वह युक्ति है जिससे विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में बदला जाता है। सभी प्रकार के वैद्युत तापकों में ऊष्मा पैदा करने का कार्य विद्युत प्रतिरोध द्वारा किया जाता है जो जूल तापन द्वारा ऊष्मा प्रदान करता है। किसी प्रतिरोध R से होकर I धारा प्रवाहित होती है तो उसमें प्रति सेकेण्ड I2R जूल ऊष्मा उत्पन्न होती है। आधुनिक विद्युत तापन की अधिकांश युक्तियों में तापक के रूप में नाइक्रोम तार का उपयोग किया जाता है। श्रेणी:तापन.

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विद्युत्‌ भट्ठी

विद्युत्‌ भट्ठियाँ (Electric Furnace) सामान्यत: धातु खनिजों और धातुओं को पिघलाने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं। विद्युत्‌ ऊर्जा से उत्पन्न हुई ऊष्मा विद्युतधारा के वर्ग के अनुपात में होती है। विद्युत्‌ भट्ठियाँ कोयले की भट्ठियों से अधिक ऊष्मा उत्पन्न कर सकती हैं और आकार में भी छोटी होती हैं। ये हानिकारक धुएँ अथवा गैसें नहीं उत्पन्न करतीं, परंतु इनका मुख्य लाभ इनमें सरलता से ऊष्मा नियंत्रण करने का है। धारा का परिवर्तन कर ऊष्मा का नियंत्रण बहुत सरलता से किया जाता है। इनका दूरस्थ नियंत्रण (remote control) और स्वत: चालन (automatic action) भी किया जा सकता है। इन कारणों से विद्युत्‌ भट्ठियाँ सामान्य उपयोग में आ गई हैं। विद्युत्‌ भट्ठियों के बहुत से परिष्कृत रूप अब सामान्य हो गए हैं और ज्यों ज्यों विद्युत्‌ शक्ति संभरण आर्थिक दृष्टिकोण से सस्ता होता जाता है, विद्युत्‌ भट्ठियों का प्रयोग निरंतर बढ़ता ही जाता है। .

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विभिन्न प्रकार के संतुलन

तुला के दोनों पलड़ों का द्रव्यमान समान हो, तथा दोनो पलड़े अवलम्ब से समान दूरी पर टंगे हों तो वह '''संतुलित''' कहलाता है। संतुलन शब्द का प्रयोग अनेकोंक्षेत्रों में होता है। यहाँ पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त 'संतुलन' (तथा 'साम्य' एवं 'साम्यावस्था') की सूची दी गई है- .

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विशिष्ट ऊष्मा धारिता

यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। .

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विहिमीकरण

फ्रीजर का विहिमीकरण विहिमीकरण (Defrosting या thawing) वह प्रक्रिया है जो रेफ्रिजरेटर और फ्रीजर पर नियमित नतराल पर करनी पड़ती है ताकि उनके कार्य करने की दक्षता अच्छी बनी रहे। जब फ्रिज का दरवाजा खोला और बन्द किया जाता है तब उसके अन्दर नयी हवा चली जाती है जो अपने साथ जलवाष्प भी ले जाती है। यह जलवाष्प ठण्डा करने वाले अवयवों (जैसे इवैपोरेशन क्वायल) पर बर्फ के रूप में जम जाती है। यह बर्फ ऊष्मा का कुचालक होती है इसलिये फ्रिज के अन्दर से ऊष्मा को खींचकर बाहर फेंकने में कठिनाई पैदा करती है। इससे अधिक बिजली खर्च होती है क्योंकि ठण्डा करने वाली कम्प्रेशर अपेक्षाकृत अधिक देर तक चलती रहती है। विहिमीकरण करने के लिये निम्नलिखित कार्य करना पड़ता है-.

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विकिरक

जल-वायु संवहन शीतलन पर आधारित स्वचालित गाड़ी का विकिरक विकिरक या रेडियेटर (Radiators) एक माध्यम से दूसरे माध्यम में उष्मीय उर्जा का विनिमय करने वाली युक्ति है। इसकी सहायता से किसी चीज को गरम या ठण्डा किया जा सकता है। इनका उपयोग वाहनों, घरों, एवं विद्युतीय (एलेक्ट्रानिक) उपकरणों आदि के तापमान को सुरक्षित सीमा में बनाये रखने के लिये किया जाता है। श्रेणी:उष्मा bg:Радиатор da:Radiator de:Radiator fi:Lämpöpatteri he:מקרן nl:Radiator pl:Radiator ru:Радиатор sk:Radiátor sl:Radiator sv:Radiator.

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विकृतीकरण (जैवरसायन)

विकृतीकरण (Denaturation) एक प्रक्रिया है जिसमें प्रोटीन या न्युक्लिक अम्ल अपनी मूल अवस्था में उपस्थित चतुष्क संरचना (quaternary structure), तृतीयक संरचना एवं द्वितीयक संरचना को छोड़कर एक नयी संरचना प्राप्त करता है। विकृतिकरण के लिये कोई वाह्य स्ट्रेस या वाह्य यौगिक (जैसे सान्द्र अम्ल या क्षार, सान्द्र अकार्बनिक लवण, कार्बनिक विलायक (अल्कोहॉल या क्लोरोफॉर्म) या विकिरण या ऊष्मा का उपयोग किया जाता है। श्रेणी:न्युक्लिक अम्ल श्रेणी:प्रोटीन.

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वैज्ञानिक यन्त्र

ऑल्टीमीटर - इससे विमानोँ की ऊँचाई नापी जाती हैं। अमीटर - इससे विद्युत धारा को नापा जाता हैं। एनिमोमीटर - इससे वायु की शक्ति तथा गति को नापा जाता हैं। आडियोमीटर - यह मनुष्य द्वारा ध्वनि के सुनने की क्षमता को मापने वाला यंत्र हैं। ओडियोफोन - इसे लोग सुनने में सहायता के लिए कान में लगाते हैं। बैरोग्राफ - यह वायुमण्डल के दाब में होने वाले परिवर्तन को नापता है और स्वतः ही इसका ग्राफ बना देता हैं। बाइनोकुलर्स - इससे दूर स्थित वस्तुयें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। कैलीपर्स - इससे गोल वस्तुओँ के भीतरी तथा बाहरी व्यास नापा जा सकता है। इससे मोटाई भी नापी जा सकती हैं। कैलोरीमीटर - इससे ऊष्मा की मात्रा मापी जाती हैं। कारडियोग्राम - इससे हृदय रोग से ग्रसित व्यक्ति की हृदय गति की जाँच की जाती हैं। सिनेमोटोग्राफ - इस यंत्र के द्वारा छोटी-छोटी फिल्म के चित्रोँ को बड़ा करके दिखाया जाता हैं। इसमें अनेक लैंसोँ को इस प्रकार लगाया जाता है कि चित्र गतिमय दिखाई देते हैं। दिक्सूचक सुई (कम्पास नीडिल) - इसके द्वारा किसी स्थान की दिशा ज्ञात की जाती हैं। एपीडायस्कोप - इस यंत्र के द्वारा अपारदर्शक चित्र पर्दे पर दिखाये जा सकते हैं। यूडिओमीटर - इसके द्वारा गैसोँ में रासायनिक क्रिया के कारण होने वाले आयतन के परिवर्तनोँ को नापा जाता हैं। फेदोमीटर - इससे समुद्र की गहराई नापी जाती हैं। ग्रामोफोन - इस उपकरण के द्वारा रिकॉर्ड पर अंकित ध्वनि तंरगोँ को पुनः उत्पादित किया जा सकता है और सुना जा सकता हैं। ग्रेवोमीटर - इससे पानी की सतह पर तेल की उपस्थिति ज्ञात की जाती हैं। आर्द्रतामापी (हाइग्रोमीटर) - इससे वायुमण्डल में व्याप्त आर्द्रता नापी जाती हैं। हाइड्रोफोन - इससे पानी में ध्वनि को अंकित किया जाता हैं। लैक्टोमीटर - इससे दूध की शुद्धता ज्ञात की जाती हैं। मैनोमीटर - इससे गैसोँ का दाब ज्ञात करते हैं। सूक्षमदर्शी (माइक्रोस्कोप) - बहुत ही सूक्ष्म वस्तुओँ को इस उपकरण द्वारा आवर्धन करके (Magnify) देखा जाता हैं। माइक्रोटोम - इसे किसी वस्तु को बहुत पतले-पतले भागोँ में काटने के काम में लाया जाता हैं। ओडोमीटर - इससे मोटर गाड़ी की गति को ज्ञात किया जाता हैं। पैराशूट - यह छाते के समान उपकरण है जिससे युद्ध या आपात स्थिति के समय वायुयान से नीचे कूदा जा सकता हैं। परिदर्शी (पेरिस्कोप) - इसके द्वारा जब पनडुब्बी पानी के अंदर होती है तो पानी की सतह का अवलोकन कर सकती है और इसमें बैठे लोग बिना किसी के जाने हुए बिना किसी बाधा के बाहरी हलचल ज्ञात कर सकते हैं। फोनोग्राफ - इससे ध्वनि की तरगोँ को पुनः ध्वनि में परिवर्तित किया जाता हैं। फोटो कैमरा - इससे फोटोग्राफ लेकर कैमीकल्स की सहायता से इसे डेवलप किया जाता है ताकि सही चित्र बनकर निकलें। पिपेट - इसकी सहायता से द्रव की मापी गई मात्रा दूसरे बर्तन में डाली जा सकती हैं। विभवमापी (पोटेन्शियोमीटर) - इससे किसी सेल के विद्युत वाहक बल तथा तार के दो सिरोँ के विभवान्तर की नाप होती हैं। पायरोमीटर - उच्च तापोँ को मापने का उपकरण हैं। रेडियेटर - यह कारोँ तथा गाड़ियोँ के इंजनो को ठण्डा करने वाला उपकरण हैं। वर्षामापी (रेन गेज) - इससे किसी विशेष स्थान पर हुई वर्षा की मात्रा नापी जाती हैं। रेडियोमीटर - इस यंत्र द्वारा विकीर्ण ऊर्जा की तीव्रता को नापा जाता हैं। शर्करामापी - यह यंत्र किसी घोल में शक्कर की मात्रा नापने के काम आता हैं। भूकम्पमापी (सिस्मोग्राफ) - इस यंत्र से पृथ्वी सतह पर आने वाले भूकम्प के झटकोँ का स्वतः ही ग्राफ चित्रित होता हैं। स्पेक्ट्रोमीटर - इस यंत्र के माध्यम से स्पेक्ट्रम की उत्पत्ति की जाती है जिससे कि विभिन्न किरणोँ के तरंग दैर्ध्य को नापा जा सकें। वेगमापी (स्पीडोमीटर) - इससे किसी मोटर गाड़ी की चालन गति ज्ञात की जाती हैं। स्फैरोमीटर - इससे धरातल की वक्रता नापी जाती हैं। स्फिग्मोमेनोमीटर - इससे धमनियोँ में बहने वाले रक्त का दाब नापा जाता हैं। स्फिग्मोफोन - इससे नाड़ी धड़कन को तेज ध्वनि में सुना जा सकता हैं। स्टीरियोस्कोप - यह एक प्रकार का उत्तम वाइनोकुलर है। इससे किसी द्विविमीय चित्र को भली-भांति देखा जा सकता हैं। स्टेथिस्कोप - इससे हृदय तथा फेफड़ोँ की आवाज को सुना जा सकता है और रोग के लक्षण ज्ञात किये जा सकते हैं। स्टोप वॉच - इससे किसी कार्य या क्रिया की समय अवधि (यदि वह 30 मिनट से अधिक नहीं है) सही रूप में नापी जा सकती हैं। स्ट्रोवोस्कोप - इससे उन वस्तुओँ को जो तेज गति से घूम रही है रूकी हुई अवस्था में उनकी जाँच की जाती हैं। टैकोमीटर - इससे वायुयानोँ तथा मोटर वोटोँ की गति नापी जाती हैं। टेलीफोन - इसके द्वारा दो व्यक्ति, जो एक दूसरे से दूर होते हैं, आपस में बातचीत कर सकते हैं। दूरदर्शी (टेलिस्कोप) - इसकी सहायता से दूर स्थित वस्तुयें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। टेलस्टार - 10 जुलाई 1962 को कैप कैनडी से छोड़ा गया यह अंतरिक्ष का संचार उपग्रह है इसके द्वारा एक देश के निवासी दूसरे देश के निवासियोँ से टेलिफोन द्वारा बातचीत कर सकते हैं इसके अतिरिक्त टेलिविजन संचार भी विभिन्न देशोँ में इसके द्वारा संभव हो सका हैं। थ्योडोलाइट - यह सर्वेक्षण करने का यंत्र है जो क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर कोणोँ को नापकर दूरी को ज्ञात कराता हैं। तापयुग्म (थर्मोकपल) - जब भिन्न-भिन्न धातुओँ के तारोँ को सिरोँ पर जोड़ा जाय और उनमें से एक ओर के सिरोँ को गर्म किया जाये तथा दूसरी ओर के सिरोँ को एक कम स्थिर ताप पर रखा जाये तो परिपथ में एक विधुत धारा बहने लगती हैं इस प्रकार भिन्न धातुओँ के जोड़े को थर्मोकपल कहते हैं। थर्मोस्टेट - इस यंत्र के द्वारा उष्मा अपूर्ति पर नियंन्नण करके किसी वस्तु या पदार्थ का तापमान किसी बिन्दु पर नियत कर दिया जाता हैं। विस्कोमीटर - इस यंत्र से द्रवोँ की श्यानता नापी जाती हैं। लाइफ बोट तथा लाइफ वेस्ट - जब कोई जहाज डूबता है तो इनको उपयोग में लाकर यात्रियोँ को बचाया जाता हैं। .

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खनिजों का बनना

खनिजों का बनना (formation) अनेक प्रकार से होता है। बनने में उष्मा, दाब तथा जल मुख्य रूप से भाग लेते हैं। निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों से खनिज बनते हैं: (१) मैग्मा का मणिभीकरण (Crystallization from magma) - पृथ्वी के आभ्यंतर में मैग्मा में अनेक तत्व आक्साइड एवं सिलिकेट के रूपों में विद्यमान हैं। जब मैग्मा ठंडा होता है तब अनेक यौगिक खनिज के रूप में मणिभ (क्रिस्टलीय) हो जाते है और इस प्रकार खनिज निक्षेपों (deposit) को जन्म देते हैं। इस प्रकार के मुख्य उदाहरण हीरा, क्रोमाइट तथा मोनेटाइट हैं। (२) ऊर्ध्वपातन (Sublimation)- पृथ्वी के आभ्यंतर में उष्मा की अधिकता के कारण अनेक वाष्पशील यौगिक गैस में परिवर्तित हो जाते हैं। जब यह गैस शीतल भागों में पहुँचती है तब द्रव दशा में गए बिना ही ठोस बन जाती है। इस प्रकार के खनिज ज्वालामुखी द्वारों के समीप, अथवा धरातल के समीप, शीतल आग्नेय पुंजों (igneous masses) में प्राप्त होते हैं। गंधक का बनना उर्ध्वपातन क्रिया द्वारा ही हुआ है। (३) आसवन (Distillation) - ऐसा समझा जाता है कि समुद्र की तलछटों (sediments) में अंतर्भूत (imebdded) छोटे जीवों के कायविच्छेदन के पश्चात्‌ तैल उत्पन्न होता है, जो आसुत होता है और इस प्रकार आसवन द्वारा निर्मित वाष्प पेट्रोलियम में परिवर्तित हो जाता है अथवा कभी-कभी प्राकृतिक गैसों को उत्पन्न करता है। (४) वाष्पायन एवं अतिसंतृप्तीकरण (Vaporisation and Supersaturation) - अनेक लवण जल में घुल जाते हैं और इस प्रकार लवण जल के झरनों तथा झीलों को जन्म देते हैं। लवण जल का वाष्पायन द्वारा लवणों का अवशोषण (precipitation) होता है। इस प्रकार लवण निक्षेप अस्तित्व में आते हैं। इसके अतिरिक्त कभी कभी वाष्पायन द्वारा संतृप्त स्थिति आ जाने पर घुले हुए पदार्थों मणिभ पृथक हो जाते हैं। (५) 'गैसों, द्रवों एवं ठोसों की पारस्परिक अभिक्रियाएँ - जब दो विभिन्न गैसें पृथ्वी के आभ्यंतर से निकलकर धरातल तक पहुँचती हैं तथा परस्पर अभिक्रिया करती हैं तो अनेक यौगिक उत्पन्न होते है उदाहरणार्थ: इसी प्रकार गैसें कुछ विलयनों पर अभिक्रिया करती हैं। फलस्वरूप कुछ खनिज अवक्षिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब हाइड्रोजन सल्फाइड गैस ताम्र-सल्फेट-विलयन से पारित होती है तब ताम्र सल्फाइड अवक्षिप्त हो जाता है। कभी ये गैसें ठोस पदार्थ से अभिक्रिया कर खनिजों को उत्पन्न करती हैं। यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनेक खनिज सिलिकेट, आक्साइड तथा सल्फाइड के रूप में इसी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं। किसी समय ऐसा होता है कि पृथ्वी के आभ्यंतर का उष्ण आग्नेय शिलाओं से पारित होता है एवं विशाल संख्या में अयस्क कार्यों (ore bodies) को अपने में विलीन कर लेता है। यह विलयन पृथ्वी तल के समीप पहुँच कर अनेक धातुओं को अवक्षिप्त कर देता है। स्वर्ण के अनेक निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए हैं। कुछ अवस्थाओं में इस प्रकार के विलयन पृथ्वीतल के समीप विभिन्न शिलाओं के संपर्क में आते हैं तथा एक एक करके कणों का प्रतिस्थापन (replacement) होता है, अर्थात्‌ जब शिला के एक कण का निष्कासन होता है तो उस निष्कासित कण के स्थान पर धात्विक विलयन के एक कण का प्रतिस्थापन हो जाता है। इस प्रकार शिलाओं के स्थान पर नितांत नवीन धातुएँ मिलती हैं, जिनका आकार और परिमाण प्राचीन प्रतिस्थापित शिलाओं का ही होता है। अनेक दिशाओं में यदि शिलाओं में कुछ विदार (cracks) या शून्य स्थान (void or void spaces) होते हैं तो पारच्यवित विलयन (percolating solution) उन शून्य स्थानों में खनिज निक्षेपों को जन्म देते हैं। यह क्रिया अत्यंत सामान्य है, जिसने अनेक धात्विक निक्षेपों को उत्पन्न किया है। (६) जीवाणुओं (bacteria) द्वारा अवक्षेपण - यह भली प्रकार से ज्ञात है कि कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं में विलयनों से खनिज अवक्षिप्त करने की क्षमता होती है। उदाहरणार्थ, कुछ जीवाणु लौह को अवक्षिप्त करते हैं। ये जीवाणु विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के निक्षेपों का निर्माण करते हैं। (७) कलिलीय निक्षेपण (Collodial Deposition) - वे खनिज, जो जल में अविलेय हैं, विशाल परिमाण में कलिलीय विलयनों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा जब इनसे कोई विद्युद्विश्लेष्य (electroyte) मिलता है तब ये विलयन अवक्षेप देते हैं। इस प्रकार कोई भी धातु अवक्षिप्त हो सकती है। कभी कभी अवक्षेपण के पश्चात्‌ अवक्षिप्त खनिज मणिभीय हो जाते हैं, किंतु अन्य दशाओं में ऐसा नहीं होता। (८) ऋतुक्षारण प्रक्रम (Weathering Process) - यह ऋतुक्षारण शिलाओं के अपक्षय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है उसी प्रकार जो विलयन बनते हैं उनमें लौह, मैंगनीज तथा दूसरे यौगिक हो सकते हैं। ये यौगिक, विलयनों द्वारा सागर में ले जाए जाते हैं और वहीं वे अवक्षिप्त हो जाते हैं। लौह तथा मैगनीज के निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए। ऋतुक्षारण या तो पूर्ववर्ती (pre-existing) शिलाओं से अथवा पूर्ववर्ती खनिज निक्षेपों से हो सकता है। कुछ दशाओं में किसी शिला में कुछ अधोवर्ग (low grade) के विकिरित खनिज (disseminated minerals) होते हैं। तलीय जल शिलाओं के साधारण अवयवों को विलीन कर लेता है और अवशिष्ट भाग को मूल विकीरित खनिजों से समृद्ध करता है। अनेक अयस्क निक्षेप, अवशिष्ट उत्पाद के रूप में पाए जाते हैं, जैसे बाक्साइट। कुछ शिलाएँ, जैसे ग्रैनाइट (कणाश्म), वियोजन (disintegration) के पश्चात्‌ काइनाइट जैसे खनिजों को उत्पन्न करती हैं। (९) उपरूपांतरण (Metamorphism)-कुछ निक्षेप पूर्ववर्ती तलछटों के उपरूपांतरणों द्वारा निर्मित होते हैं। उदाहरण के लिए, चूना पत्थर संगमरमर को तथा कुछ मृत्तिकाएँ और सिलिका निक्षेप सिलोमनाइट को उत्पन्न करते हैं। .

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खाड़ी युद्ध

कोई विवरण नहीं।

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गुप्त ऊष्मा

जब कोई पदार्थ एक भौतिक अवस्था (जैसे ठोस) से दूसरी भौतिक अवस्था (जैसे द्रव) में परिवर्तित होता है तो एक नियत ताप पर उसे कुछ उष्मा प्रदान करनी पड़ती है या वह एक नियत ताप पर उष्मा प्रदान करता है। किसी पदार्थ की गुप्त उष्मा (latent heat), उष्मा की वह मात्रा है जो उसके इकाई मात्रा द्वारा अवस्था परिवर्तन (change of state) के समय अवषोषित की जाती है या मुक्त की जाती है। इसके अलावा पदार्थ जब अपनी कला (फेज) बदलते हैं तब भी गुप्त उष्मा के बराबर उष्मा का अदान/प्रदान करना पड़ता है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् १७५० के आसपास जोसेफ ब्लैक ने किया था। आजकल इसके स्थान पर "इन्थाल्पी ऑफ ट्रान्सफार्मेशन" का प्रयोग किया जाता है। .

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गैस स्टोव

गैस स्टोव जलता हुआ द्रवीकृत प्राकृतिक गैस (LPG) स्टोव खाना पकाने के सन्दर्भ में, गैस स्टोव वह स्टोव है जिसमें ऊष्मा के लिये ज्वाला पैदा करने के लिये प्राकृतिक गैस, प्रोपेन, ब्यूटेन, द्रवीकृत पेट्रोल गैस या कोई अन्य ज्वलनशील गैस का प्रयोग किया जाता है। गैस के उपयोग के पहले खाना पकाने के लिये कोयला या लकड़ी आदि ठोस ईंधनों का ही प्रयोग किया जाता था। सबसे पहले १८२० के दशक में गैस स्टोव का उपयोग आरम्भ हुआ। श्रेणी:भोजन श्रेणी:घरेलू उपयोग की वस्तुएँ.

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गैसों का अणुगति सिद्धान्त

किसी आदर्श एक-परमाणवीय गैस का ताप उसके परमाणुओं की औसत गतिज उर्जा का परोक्ष मापन है। इस एनिमेशन में गैस के परमाणुओ, उनके बीच की दूरी एवं परमाणुओं के चाल को वास्तविक मान से कम या ज्यादा रखा गया है ताकि देखकर समझने में सुविधा हो। गैसों का अणुगति सिद्धान्त (kinetic theory of gases) गैसों के समष्टिगत (मैक्रोस्कोपिक) गुणों (दाब, ताप आदि) को समझने के लिये एक सरलीकृत मॉडल है। सार रूप में यह सिद्धान्त कहता है कि गैसों का दाब उनके अणुओं के बीच के स्थैतिक प्रतिकर्षण (static repulsion) के कारण नहीं है (जैसा कि न्यूटन का विचार था), बल्कि गतिशील अणुओं के आपसी टकराव (collision) का परिणाम है। .

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आर्क वेल्डन

गैस आर्क वेल्डन आर्क वेल्डन (Arc Welding) विधि में जोड़ी जानेवाली वस्तुओं की टक्करों को गलाने के लिए एक इलेक्ट्रोड तो वेल्डन की बत्ती के रूप में होता है और दूसरा उन जोड़नेवाले भागों के रूप में होता है तथा इन दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच में विद्युत् आर्क स्थापित कर, आवश्यक ऊष्मा प्राप्त कर ली जाती है। इस काम के लिए दिष्ट और प्रत्यावर्ती किसी भी धारा का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन दिष्ट धारा अधिक सुविधाजनक रहती है। .

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आग

जंगल की आग आग दहनशील पदार्थों का तीव्र ऑक्सीकरण है, जिससे उष्मा, प्रकाश और अन्य अनेक रासायनिक प्रतिकारक उत्पाद जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और जल.

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आंशिक अवकल समीकरण

गणित में आंशिक अवकल समीकरण वो अवकल समीकरणें होती हैं जिनमें बहुचर फलन और उनके आंशिक अवकल होते हैं। (यह साधारण अवकल समीकरणों से भिन्न है जिनमें एक ही चर और उसके अवकलों में बंटा हुआ होता है। आंशिक अवकल समीकरणों का उपयोग उन समस्याओं को हल करने में प्रयुक्त किया जाता है जो विभिन्न स्वतंत्र चरों की फलन होती हैं एवं जिन्हें साधारणतया हल कर सकते हैं अथवा हल करने के लिए अभिकलित्र प्रोग्राम बनाया जा सके। आंशिक अवकल समीकरणो का उपयोग विभिन्न दृष्टिगत घटनाओं यथा ध्वनि, ऊष्मा, स्थिरवैद्युतिकी, विद्युत-गतिकी, द्रव का प्रवाह, प्रत्यास्थता या प्रमात्रा यान्त्रिकी को समझने में किया जा सकता है। ये पृथक प्रतीत होने वाली प्रक्रियाओं को आंशिक अवकल समीकरणों के रूप में सूत्रित किया जा सकता है। .

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आइएसओ ३१

आइएसओ ३१ अन्तर्राष्ट्रीय मानक ISO 31 (भौतिक मात्रा और इकाइयाँ, अन्तर्राष्ट्रीय मानक संगठन, 1992) यह भौतिक इकाइयों के प्रयोग और मापन की इकाइयों की, एवं उनमें संलग्न सूत्रों की सर्वाधिक प्रशंसित शैली संदर्शिका है। यह वैज्ञानिक और शैक्षिक प्रलेखों में विश्वव्यापी प्रयुक्त होती है। अधिकतर देशों में गणित विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों एवं विश्वविद्यालयों में इसका पूर्ण पालन किया जाता है जो ISO 31 द्वारा मार्गदर्शित हैं। .

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इलेक्ट्रॉन

इलेक्ट्रॉन या विद्युदणु (प्राचीन यूनानी भाषा: ἤλεκτρον, लैटिन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश: Electron, जर्मन: Elektron) ऋणात्मक वैद्युत आवेश युक्त मूलभूत उपपरमाणविक कण है। यह परमाणु में नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान सबसे छोटे परमाणु (हाइड्रोजन) से भी हजारगुना कम होता है। परम्परागत रूप से इसके आवेश को ऋणात्मक माना जाता है और इसका मान -१ परमाणु इकाई (e) निर्धारित किया गया है। इस पर 1.6E-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.11E−31 किग्रा होता है जो प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग १८३७ वां भाग है। किसी उदासीन परमाणु में विद्युदणुओं की संख्या और प्रोटानों की संख्या समान होती है। इनकी आंतरिक संरचना ज्ञात नहीं है इसलिए इसे प्राय:मूलभूत कण माना जाता है। इनकी आंतरिक प्रचक्रण १/२ होती है, अतः यह फर्मीय होते हैं। इलेक्ट्रॉन का प्रतिकणपोजीट्रॉन कहलाता है। द्रव्यमान के अलावा पोजीट्रॉन के सारे गुण यथा आवेश इत्यादि इलेक्ट्रॉन के बिलकुल विपरीत होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन और पोजीट्रॉन की टक्कर होती है तो दोंनो पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं एवं दो फोटॉन उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रॉन, लेप्टॉन परिवार के प्रथम पीढी का सदस्य है, जो कि गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकत्व एवं दुर्बल प्रभाव सभी में भूमिका निभाता है। इलेक्ट्रॉन कण एवं तरंग दोनो तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है। बीटा-क्षय के रूप में यह कण जैसा व्यवहार करता है, जबकि यंग का डबल स्लिट प्रयोग (Young's double slit experiment) में इसका किरण जैसा व्यवहार सिद्ध हुआ। चूंकि इसका सांख्यिकीय व्यवहार फर्मिऑन होता है और यह पॉली एक्सक्ल्युसन सिध्दांत का पालन करता है। आइरिस भौतिकविद जॉर्ज जॉनस्टोन स्टोनी (George Johnstone Stoney) ने १८९४ में एलेक्ट्रों नाम का सुझाव दिया था। विद्युदणु की कण के रूप में पहचान १८९७ में जे जे थॉमसन (J J Thomson) और उनकी विलायती भौतिकविद दल ने की थी। कइ भौतिकीय घटनाएं जैसे-विध्युत, चुम्बकत्व, उष्मा चालकता में विद्युदणु की अहम भूमिका होती है। जब विद्युदणु त्वरित होता है तो यह फोटान के रूप मेंऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन करता है।प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के साथ मिलकर यह्परमाणु का निर्माण करता है।परमाणु के कुल द्रव्यमान में विद्युदणु का हिस्सा कम से कम् 0.0६ प्रतिशत होता है। विद्युदणु और प्रोटॉन के बीच लगने वाले कुलाम्ब बल (coulomb force) के कारण विद्युदणु परमाणु से बंधा होता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के विद्युदणुओं के आपसी आदान-प्रदान या साझेदारी के कारण रासायनिक बंध बनते हैं। ब्रह्माण्ड में अधिकतर विद्युदणुओं का निर्माण बिग-बैंग के दौरान हुआ है, इनका निर्माण रेडियोधर्मी समस्थानिक (radioactive isotope) से बीटा-क्षय और अंतरिक्षीय किरणो (cosmic ray) के वायुमंडल में प्रवेश के दौरान उच्च ऊर्जा टक्कर के कारण भी होता है।.

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कायान्तरण (भूविज्ञान)

भौमिकी के सन्दर्भ में, जब किसी शैल का भूवैज्ञानिक स्वरूप (टेक्चर), बिना पिघलकर मैग्मा बने ही, बदल जाय तो इसे कायान्तरण (Metamorphism) कहते हैं। अर्थात यह एक ठोस से दूसरे ठोस में परिवर्तन की प्रक्रिया है। यह परिवर्तन मुख्यतः ऊष्मा, दाब, तथा रासायनिक रूप से सक्रिय द्रवों के प्रवेश के कारण सम्भव होता है। .

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कुंडली लपेटने की प्रौद्योगिकी

किसी मोटर के स्टेटर की वाइंडिंग कुंडली लपेटने की प्रौद्योगिकी (Coil winding summarizes) से अभिप्राय उन सभी विधियों तथा सावधानियों से है जो किसी विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली (जैसे परिनालिका, ट्रांसफॉर्मर, प्रेरकत्व, मोटर की वाइंडिंग, रिले की वाइंडिंग आदि) को तैयार करते समय लेनी होती है। किसी भी विद्युत्-चुम्बकीय कुंडली से जो अपेक्षा की जाती है वह कार्य वह अपने छोटे-से-छोटे आकार में दे सके, कम से कम ऊष्मा पैदा करे, उसका तापमान एक सीमा से अधिक न बढ़े, उसके अन्दर विद्युत क्षेत्र E का मान एक सीमा के भीतर ही रहे ताकि 'वोल्टेज ब्रेकडाउन' न हो। अतः कुण्डली को लपेटने की डिजाइन इन सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिये। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि कुंडली लपेटने का कार्य आसानी से और कम समय में हो सके। कुंडली मजबूत भी होनी चाहिये ताकि उस पर लगने वाले विभिन्न बलों (विद्युतचुम्बकीय, अभिकेन्द्रीय बल आदि) के बावजूद वह अपने स्थान पर मजबूती से बनी रह सके। ट्रान्सफॉर्मर आदि की कुंडलियों की डिजाइन में लीकेज इंडक्टैंस का भी ध्यान रखना पड़ता है (प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच लीकेज इंडक्तैंस बहुत कम या बहुत अधिक न हो।) .

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कैलोरी

कैलोरी (Calorie) ऊर्जा की इकाई है। यह मापन की मीटरी पद्धति का अंग है और इसके संगत एस आई प्रणाली में अब जूल का प्रयोग किया जाता है किन्तु भोजन में निहित ऊर्जा तथा कुछ अन्य उपयोगों में अब भी कैलोरी का ही प्रयोग किया जाता है। १००० कैलोरी को १ किलोकैलोरी कहते हैं। सबसे पहले प्रोफेसर निकोलस क्लीमेण्ट ने १८२४ में कैलोरी को ऊर्जा की इकाई के रूप में परिभाषित किया। १८४२ और १८६७ के मध्य इस शब्द को अंग्रेजी एवं फ्रेंच शब्दकोशों में सम्मिलित किया गया। १ ग्राम जल का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये १ कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। १ कैलरी लगभग ४.२ जूल के बराबर होती है। .

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कैलोरीमिति

'''विश्व का सबसे पहला हिम-कैलोरीमापी''': इसे सन् 1782-83 में लैवाशिए और लाप्लास ने विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों में उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा के निर्धारण के लिये प्रयोग किया था। किसी रीति से उष्मा के मापन को उष्मामिति या 'कैलोरीमिति' (calorimetry) कहते हैं। किसी रासायनिक अभिक्रिया में या अवस्था परिवर्तन में या किसी भौतिक या रासायनिक परिवर्तन में या किसी जैविक प्रक्रम (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) जो ऊष्मा उत्पन्न होती है अवशोषित होती है उसकी मात्रा की माप करके पदार्थों अथवा प्रक्रमों की की विशिष्ट ऊष्मा, ऊष्मा धारिता, गुप्त ऊष्मा आदि का निर्धारण किया जा सकता है। ऊष्मामिति का आरम्भ जूल (Joule) के उस प्रयोग से आरम्भ हुआ जो 'कैलोरी के यांत्रिक तुल्यांक' के निर्धारण के लिये किया गया था। वास्तव में यह प्रयोग ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित था। कैलोरीमिति के लिये जो उपकरण उपयोग में लाये जाते हैं उन्हें 'कैलोरीमापी' (calorimeters) कहते हैं! कैलोरीमिति सिद्धांत(principle of calorimetry): जब दो भिन्न भिन्न तापों वाली वस्तुओं को परस्पर रखा जाता है, तो ऊष्मा का प्रवाह उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न ताप वाली वस्तु में होता है! .

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केल्विन

कैल्विन (चिन्ह: K) तापमान की मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहाँ, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन भी कहते हैं। (0 K) कैल्विन पैमाना और कैल्विन के नाम ब्रिटिश भौतिक शास्त्री और अभियाँत्रिक विलियम थामसन, प्रथम बैरन कैल्विन (1824–1907) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विशुद्ध तापमानमापक पैमाने की आअवश्यकत जतायी थी। .

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कोयला

कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का ३५% से ४०% भाग कोयलें से पाप्त होता हैं। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किया जाता है। ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद का नाम सर्वोपरि है। .

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अतिताप

अतिताप, तापमान नियंत्रण की विफलता के कारण शरीर का बढ़ा हुआ तापमान होता है। अतिताप तब होता है जब शरीर ताप को अपव्यय करने की अपनी क्षमता से अधिक ताप का उत्पादन करता है या अवशोषित करता है। जब शरीर की गर्मी काफी अधिक हो जाती है, तब आपातकालीन चिकित्सा की स्थिति हो जाती है और विकलांगता या मृत्यु से बचने के लिए तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। इसका सबसे सामान्य कारण ऊष्माघात और दवाओं की प्रतिकूल प्रतिक्रिया होती है। ऊष्माघात की तीव्र स्थिति अतिताप है जो अत्यधिक गर्मी या गर्मी और आर्द्रता में लम्बे समय तक रहने से होता है। शरीर का ताप-विनियमन तंत्र अंततः अभिभूत बन जाता है और ताप के साथ प्रभावी रूप से निपटने में असमर्थ हो जाता है जिसके कारण शरीर का तापमान अनियंत्रित स्थिति में पहुंच जाता है। अतिताप, कई दवाओं का एक अपेक्षाकृत दुर्लभ पक्ष प्रभाव है, विशेष रूप से वे दवाएं जो केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करती हैं। घातक अतिताप, सामान्य संज्ञाहरण के कुछ प्रकार की दुर्लभ जटिलता है। अतिताप को ड्रग्स या चिकित्सा उपकरणों के द्वारा कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। अतिताप चिकित्सा का इस्तेमाल कैंसर के कुछ प्रकार के इलाज के लिए किया जा सकता है और अन्य स्थितियों में रेडियोथेरेपी के साथ आमतौर पर संयोजन में होता है।, अमेरिका का राष्ट्रीय कैंसर संस्थान से.

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अपशिष्ट प्रबंधन

बर्कशायर, इंग्लैंड में पहियों वाला कचरे का डब्बा अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन (transport), संसाधन (processing), पुनर्चक्रण (recycling) या अपशिष्ट (waste) के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। यह शब्द आम तौर पर उस सामग्री को इंगित करता है जो मानव गतिविधियों से बनती हैं और ये इसलिए किया जाता है ताकि मानव पर उस के स्वस्थ, पर्यावरण (environment) या सौंदर्यशास्त्र.

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अमीटर

अमीटर जिस धारा को नापना है, उसे वहन करने वाला तारस्प्रिंग रोटर की गति का विरोध करते हुए बल लगाती है अमीटर, जिसका शून्य बीच में है। ऐमीटर या 'एम्मापी' (ammeter या AmpereMeter) किसी परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली विद्युत धारा को मापने वाला यन्त्र है। बहुत कम मात्रा वाली धाराओं को मापने के लिये प्रयुक्त युक्तियोंको "मिलिअमीटर" (milliameter) या "माइक्रोअमीटर" (microammeter) कहते हैं। अमीटर की सबसे पुरानी डिजाइन डी'अर्सोनल (D'Arsonval) का धारामापी या चलित कुण्डली धारामापी था। .

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अर्धचालक युक्ति

अर्धचालक युक्तियाँ (Semiconductor devices) उन एलेक्ट्रानिक अवयवों को कहते हैं जो अर्धचालक पदार्थों के गुण-धर्मों का उपयोग करके बनाये जाते हैं। सिलिकॉन, जर्मेनियम और गैलिअम आर्सेनाइड मुख्य अर्धचालक पदार्थ हैं। अधिकांश अनुप्रयोगों में अब उन सभी स्थानों पर अर्धचालक युक्तियाँ प्रयोग की जाने लगी हैं जहाँ पहले उष्मायनिक युक्तियाँ (निर्वात ट्यूब) प्रयोग की जाती थीं। अर्धचालक युक्तियाँ, ठोस अवस्था में एलेक्ट्रानिक संचलन पर आधारित हैं जबकि ट्यूब युक्तियाँ उच्चा निर्वात या गैसीय अवस्था में उष्मायनों के चालन पर आधारित थीं। निर्माण के आधार पर अर्धचालक युक्तियाँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं - अकेली युक्तियाँ और एकीकृत परिपथ (IC) .

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अंतरिक्ष शटल

अंतरिक्ष शटल संयुक्त राज्य अमरीका में नासा द्वारा मानव सहित या रहित उपग्रह यातायात प्रणाली को कहा जाता है। यह शटल पुन: प्रयोगनीय यान होता है और इसमें कंप्यूटर डाटा एकत्र करने और संचार के तमाम यंत्र लगे होते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव|२७ दिसम्बर २००९ इसमें सवार होकर ही वैज्ञानिक अंतरिक्ष में पहुंचते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों के खाने-पीने और यहां तक कि मनोरंजन के साजो-सामान और व्यायाम के उपकरण भी लगे होते हैं। अंतरिक्ष शटल को स्पेस क्राफ्ट भी कहा जाता है, किन्तु ये अंतरिक्ष यान से भिन्न होते हैं। इसे एक रॉकेट के साथ जोड़कर अंतरिक्ष में भेजा जाता है, लेकिन प्रायः यह सामान्य विमानों की तरह धरती पर लौट आता है। इसे अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए कई बार प्रयोग किया जा सकता है, तभी ये पुनःप्रयोगनीय होता है। इसे ले जाने वाले रॉकेट ही अंतरिक्ष यान होते हैं। आरंभिक एयरक्राफ्ट एक बार ही प्रयोग हो पाया करते थे। शटल के ऊपर एक विशेष प्रकार की तापरोधी चादर होती है। यह चादर पृथ्वी की कक्षा में उसे घर्षण से पैदा होने वाली ऊष्मा से बचाती है। इसलिए इस चादर को बचाकर रखा जाता है। यदि यह चादर न हो या किसी कारणवश टूट जाए, तो पूरा यान मिनटों में जलकर खाक हो जाता है। चंद्रमा पर कदम रखने वाले अभियान के अलावा, ग्रहों की जानकारी एकत्र करने के लिए जितने भी स्पेसक्राफ्ट भेजे जाते है, वे रोबोट क्राफ्ट होते है। कंप्यूटर और रोबोट के द्वारा धरती से इनका स्वचालित संचालन होता है। चूंकि इन्हें धरती पर वापस लाना कठिन होता है, इसलिए इनका संचालन स्वचालित रखा जाता है। चंद्रमा के अलावा अभी तक अन्य ग्रहों पर भेजे गये शटल इतने लंबे अंतराल के लिये जाते हैं, कि उनके वापस आने की संभावना बहुत कम या नहीं होती है। इस श्रेणी का शटल वॉयेजर १ एवं वॉयेजर २ रहे हैं। स्पेस शटल डिस्कवरी कई वैज्ञानिकों के साथ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत करने और अध्ययन के लिए अंतरिक्ष में गया था। .

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उत्तरजीविता कौशल

उत्तरजीविता कौशल या अतिजीविता कौशल (सर्वाइवल स्किल्स) वे तकनीकें हैं जिनका उपयोग एक व्यक्ति किसी खतरनाक स्थिति (उदाहरण प्राकृतिक आपदा) में अपने आप को या दूसरों को बचाने के लिए कर सकता है (बुशक्राफ्ट भी देखें).

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

उष्मा।

ऊष्मीय ऊर्जा का आधुनिक तथा अंतरराष्ट्रीय मात्रक क्या है?

ऊष्मा का एस आई मात्रक जूल है।

ऊष्मीय ऊर्जा का मात्रक क्या?

किसी पदार्थ के गर्म या ठंडे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल होता है पर इसे कैलोरी में भी व्यक्त करते हैं।

ऊष्मीय ऊर्जा क्या है उदाहरण सहित?

परिभाषा जब किसी वस्तु को इतने तापमान में गर्म किया जाता है या किसी वस्तु का तापमान इतना अधिक हो जाता है कि उससे गर्म निकलने लगे तो उसे ऊष्मा कहते हैं, और इस ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं।

* ऊष्मीय ऊर्जा का मात्रक क्या है ?* 1⃣ मीटर 2⃣ जूल 3⃣ न्यूटन 4⃣ सेल्सियस?

उष्मीय ऊर्जा का मात्रक जूल है ।