Show जैसे-जैसे कंप्यूटर तकनीक का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे कंप्यूटर से संबंधित कई समस्याएं भी सिर उठाती जा रही हैं। ऐसी ही एक समस्या है, कंप्यूटर वायरस। इंटरनेट के कारण तो यह समस्या और अधिक विकराल होती जा रही है। सबसे पहला कंप्यूटर वायरस, ब्रेन (BRAIN) था जिसकी खोज डेलवेयर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान में लगभग 30 हजार वायरस सक्रिय हैं जिस कारण हमारे कंप्यूटर डेटा पर खतरे की तलवार लटकी हुई है। शुरुआत में किसी वायरस को फैलने में महीनों लग जाते थे लेकिन जब से इंटरनेट को लोकप्रियता मिली है, तब से वायरस, रातों रात दुनियाभर के कंप्यूटरों पर हमला कर देते हैं। ये कंप्यूटर वायरस वास्तव में मानवनिर्मित डिजिटल परजीवी हैं जो किसी दूसरे कंप्यूटर के डेटा को संक्रमित कर देते हैं। यदि कोई जाना-पहचाना वायरस किसी प्रोग्राम में छिपा हो तो उसे मात्र 10 मिनट में खोज कर नष्ट किया जा सकता है लेकिन किसी अपरिचित व नए वायरस को ढूंढना कभी-कभी काफी कठिन हो जाता है। जैसे-जैसे कंप्यूटर वायरसों का खतरा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे वायरस विरोधी उद्योग (एंटी वायरस इंडस्ट्री) भी फैलता जा रहा है। इस व्यवसाय में तेजी का आलम यह है कि जैसे ही हम कोई एंटी वायरस फ्लॉपी या सीडी खरीदते हैं, वैसे ही वह पुरानी हो जाती है और हमें नए एंटी-वायरस की जरूरत महसूस होने लगती है। जितनी तेजी से कंप्यूटर तकनीक बदल रही है उतनी ही तेजी से कंप्यूटर वायरसों में तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है और वायरस लगातार अधिक आक्रामक व अधिक घातक होते जा रहे हैं। सबसे पहला कंप्यूटर-वायरस सी-ब्रेन (C Brain) को माना जाता है जो 1980 के दशक में प्रकाश में आया था। 1992-93 के आसपास कंप्यूटर वायरसों ने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया तो लोग इसके बारे में सचेत हुए। जैसे-जैसे वायरसों का खतरा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही वायरस विरोधी उद्योग भी विकसित हो रहा है। यह उद्योग कुछ विशेष प्रोग्रामों पर आधारित होता है। कुछ प्रमुख वायरस विनाशक उत्पाद हैं :
जैसे-जैसे इंटरनेट का प्रयोग बढ़ा, वैसे-वैसे वायरसों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट के कारण सबसे ज्यादा ‘मेकर’ वायरस फैला जो डेटा फाइलों को अपना निशाना बनाता है। HEURISTIC SCANNING नामक वायरस विरोधी उत्पादन, नए वायरसों को खोजने के काम में बेहद उपयोगी है। कंप्यूटर वायरस की संख्यावर्तमान में दुनियाभर के कंप्यूटरों में 20 हजार से 40 हजार तक वायरस हैं और रोजाना 15 से भी अधिक नए वायरसों का जन्म हो जाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पुराने वायरस धीरे-धीरे चलन से बाहर हो जाते हैं और रिसर्च लैब में केवल नए वायरस ही रह जाते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक माह में लगभग 200 से 300 वायरस ही सक्रिय रहते हैं। समय के साथ-साथ वायरसों के प्रकार में तो बदलाव आता ही है साथ ही उनकी तीव्रता भी बढ़ जाती है। पहले जिस प्रोग्राम को हम कंप्यूटर वायरस कहते थे उसे अब ‘कंप्यूटर इंफेक्शन’ कहा जाता है। कैसे काम करता है कंप्यूटर वायरसवायरस एक छोटा सा प्रोग्राम होता है जिसमें कॉपी करने की क्षमता होती है। पहले यह हार्ड ड्राइव, फ्लॉपी की प्रोग्राम फाइलों और बूट सेक्टर में स्वयं प्रवेश कर जाता है। बूट सेक्टर वायरस आमतौर पर ऑपरेटिंग सिस्टम और हार्ड ड्राइव की फाइलों को संक्रमित (प्रभावित) करता है। फाइल और प्रोग्राम वायरस .EXE और .COM फाइलों को प्रभावित करता है। एक संक्रमित (प्रभावित) प्रोग्राम द्वारा वायरस उत्प्रेरित होता है। संशोधित प्रोग्रामों की तुलना करके नए वायरसों की पहचान आसानी से की जा सकती है। ऐसा करके किसी बड़े नुकसान से बचा जा सकता है। मैक्रो वायरस की खोज अगस्त, 1995 में हुई थी। ये मैक्रो वायरस, टेक्सट वाले डाक्यूमेंटों और एक्सेल स्प्रेडशीटों को संक्रमित करते हैं। आजकल कंप्यूटरों पर वायरसो का हमला बहुत अधिक बढ़ गया है। ‘कंप्यूटर प्रोटेक्शन एसोशिएसन’ के मुताबिक कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाला हर तीसवां व्यक्ति आज कंप्यूटर वायरस से परेशान है। वायरसों के कारण हमारे कंप्यूटर का डेटा नष्ट हो जाता है। कई बार तो यह डेटा पुन: प्राप्त किया जा सकता है तो अक्सर इसे दुबारा प्राप्त करना संभव ही नहीं रहता। यदि खराब हुए डेटा को पुन: प्राप्त कर भी लिया जाए तो भी इसमें समय और पैसे की भारी हानि होती है। कंप्यूटर वायरस से बचने के उपायवायरसों के कारण हमें काफी असुविधा होती है लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरत कर हम वायरसों के हमले से अपने कंप्यूटरों को आसानी से बचा सकते हैं। इन उपाय अपना कर वायरसों के संक्रमण से बचा जा सकता है :
वायरस इंफेक्शन से बचने का सबसे सरल उपाय, एंटी वायरस सॉफ्टवेयर का उपयोग ही है। जब भी आप पर्सनल कंप्यूटर पर काम करना शुरू करते हैं तो एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर, क्षणभर में वायरस की खोज कर उसे नष्ट कर देता है। आजकल उपलब्ध माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और एक्सेल के नवीनतम संस्करणों में तो मैक्रा वायरस सुरक्षा पहले से ही लगी आती है। वायरसों से बचने के लिए जरूरी है कि आप जब भी कोई अटैचमेंट फाइल प्राप्त करें तो सबसे पहले उसे स्कैन कर लें ताकि यदि कोई वायरस हो तो उसे नष्ट किया जा सके। यह भी जरूरी है कि सदैव ई-मेल प्रोग्राम के नवीनतम संस्करणों का ही प्रयोग किया जाए। 1. मैक्रो वायरसशुरुआत में हम सामान्य वायरसों से ही परेशान थे लेकिन फिर धीरे-धीरे मैक्रो वायरसों ने हमारे कंप्यूटरों पर हमला बोल दिया। हाल ही में भारत में ये मैक्रो-वायरस देखे गए थे :
हजारों की संख्या में आज कंप्यूटर वायरस सक्रिय हैं। कंप्यूटर को खराब करने वाले वायरस, वम्र्स और ट्रोजन्स की संख्या आज दस लाख को भी पार कर गई है। ‘सिमैंटेक’ द्वारा सन् 2008 में जारी अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट ‘इंटरनेट सुरक्षा को खतरे’ में कहा गया है कि अधिकतर वायरस (प्रोग्राम) पिछले 12 महीनों के भीतर ही तैयार किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, साइबर अपराधी, एंटी-वायरस प्रोग्राम को निष्क्रिय करने और अपने आपराधिक इरादों को अंजाम देने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। अधिकांश वायरस, उन कंप्यूटरों को निशाना बना रहे हैं जिनमें ‘विन्डोज’ सॉफ्टवेयर लगे हैं। ये वायरस, मौजूदा वायरसों के ही संशोधित रूप हैं और ये हाईटेक अपराधियों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं। अब अपराधी किसी कंप्यूटर-तंत्र तक पहुंचने के लिए ‘ट्रोजन्स’ का भी इस्तेमाल कर रहे हैं और ट्रोजन्स के माध्यम से ही वे कई प्रोग्राम डाउनलोड कर रहे हैं अथवा उन्हें इंस्टाल कर रहे हैं। वायरसों के हमले से बचने के लिए ‘एंटी-वायरस’ काफी लाभदायक होते हैं। एंटी-वायरस, एक कंप्यूटर प्रोग्राम होता है जो कंप्यूटर को वायरस से ग्रसित होने से रोकता है। ये एंटी-वायरस न केवल वायरस अपितु वाम्र्स, ट्रोजन होर्सेज और रूटकिट्स आदि से भी कंप्यूटर का बचाव करते हैं। एंटी-वायरस सबसे पहले कंप्यूटर फाइल्स को स्कैन करता है ताकि किसी वायरस की उपस्थिति का पता लगाया जा सके। याद रखें कि जब भी आप कोई मेजर सॉफ्टवेयर, इंस्टाल कर रहे हों तो वायरस-सुरक्षा को निष्क्रिय कर दें। ऐसा न करने पर हो सकता है कि आपके द्वारा इंस्टाल किया जाने वाला सॉफ्टवेयर ठीक से इंस्टाल ही न हो। तकनीक और प्रौद्योगिकी ने एंटी-वायरसों में कई उपयोगी विशेषताएं दे दी हैं जैसे मल्टीपल वायरस स्कैन, एडवांस स्कैन शैडयूलिंग स्पेसिफिक लोकेशन और रीयल-टाइम स्कैनिंग। एंटी वायरस में उपस्थित रीयल-टाइल स्कैनिंग, नामक विशेषता के कारण ये एंटी-वायरस, एक निश्चित समयान्तराल के बाद कंप्यूटर को स्कैन करते रहते हैं ताकि किसी वायरस के कंप्यूटर में प्रवेश करते ही उसका पता लगा कर उसे नष्ट किया जा सके। एंटी-वायरस के संदर्भ में ये सावधानियां बरतने की जरूरत होती है :
अपने कंप्यूटर तंत्र को सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य स्कैन करें। एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर को ‘गूगल-सर्च’ ही सहायता से भी डाउनलोड किया जा सकता है। कुछ प्रमुख एंटी-वायरस प्रोग्राम हैं :
वायरस के अलावा कंप्यूटर प्रयोगकर्ता ‘स्पैम मेल’ से भी काफी परेशान रहते हैं। आपके कंप्यूटर पर आने
वाले हजारों की संख्या में अवांछनीय ई-मेल ही स्पैम कहलाते हैं। वेबसाइट्स पर पोस्ट किए गए ई-मेल के पते और ‘न्यूज ग्रुप्स’, स्पैम को आकर्षित करते हैं। इंटरनेट के लिए मुसीबत बन चुके स्पैम को फिल्टर करने के लिए कंप्यूटर विशेषज्ञ लगातार शोध कर रहे हैं। स्पैम से बचने के लिए जरूरी है कि कभी भी किसी स्पैम-मेल का जवाब न दें अन्यथा आपके ई-मेल खाते में स्पैम-मेल की बमबारी प्रारंभ हो जाएगी। यही नहीं वे दूसरे स्पैमर्स को भी आपका ई-मेल पता बांट देंगे। स्पैम-मेल से बचने के लिए जरूरी है कि अपने ब्राउजर में
सिक्योरिटी-सेटिंग ठीक प्रकार से करें। स्पैम-मेल के साथ वायरस भी हो सकते हैं इसलिए इन्हें हटा देना (डिलीट कर देना) ही सबसे अच्छा उपाय है। |