न्यूनतम मजदूरी कानून का क्या उद्देश्य था? - nyoonatam majadooree kaanoon ka kya uddeshy tha?

इसे सुनेंरोकेंन्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (Minimum Wages Act, 1948) भारत की संसद द्वारा पारित एक श्रम कानून है जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण करता है। यह अधिनियम सरकार को विनिर्दिष्ट रोजगारों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए प्राधिकृत करता है।

भुगतान मजदूरी अधिनियम के अनुसार मजदूरी राशि में कौन सी राशि शामिल है?

इसे सुनेंरोकें[(6) यह अधिनियम किसी मजदूरी-कालावधि के संबंध में नियोजित किसी व्यक्ति को संदेय मजदूरी को लागू होता है यदि उस मजदूरी-कालावधि के लिए ऐसी मजदूरी छह हजार पांच सौ रुपए प्रतिमास से या ऐसी अन्य उच्चतर धनराशि से अधिक नहीं है, जो केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा प्रकाशित उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आंकड़ों …

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअसंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करनेके उद्देश्य से तथा उनके हितों की रक्षा के लिए यह कानून बनाया गया। जिसमें मजदूरी की न्यूनतम दरों का निर्धारण करना, समय पर मजदूरी का भुगतान करना तथा समयोपरि भत्ता इत्यादि की उचित दरें तय कर भुगतान कराना इस कानून का उद्देश्य रहा है।

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वेतन भुगतान अधिनियम कब लागू हुआ?

इसे सुनेंरोकें8 1982 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 ारा (15-10-1982 से) “िकसी औ ोिगक स्थापन के िकसी वगर्या समूह म” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 9 1957 के अिधिनयम सं० 68 की धारा 2 ारा (1-4-1958 से) “अिधिनयम” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 10 1982 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 ारा (15-10-1982 से) परन् तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।

सरकारी मजदूरी कितनी है?

इसे सुनेंरोकेंमासिक मजदूरी में अकुशल को 5850 रुपए, अर्द्ध कुशल को 6240, कुशल को 8060 व अति कुशल को 9360 के अलावा परिवर्तनशील महंगाई भत्ता देना है। विभिन्न नियोजनों में कार्यरत अकुशल मजदूरों को 210 रुपए, अर्द्ध कुशल को 220, कुशल को 290 और अति कुशल को 335 रुपए के अतिरिक्त महंगाई भत्ता देना है।

Answer: सामान्यत: न्यूनतम मजदूरी का आशय उस मजदूरी से है, जिससे कम मजदूरी एक श्रमिक को नहीं मिलनी चाहिए। अधिनियम का उद्देश्य यह है किसी भी श्रमिक को एक निश्चित सीमा से कम मजदूरी नहीं मिलनी चाहिए। न्यूनतम मजदूरी ऐसी होनी चाहिये जिसमें श्रमिकों के जीवन निर्वाह को अनिवार्य आवश्यक वस्तुएँ, जैसे— भोजन, कपड़ा, मकान आदि की पूर्ति हो सके। चूँकि इन वस्तुओं के मूल्य भिन्न—भिन्न स्थानों पर भिन्न—भिन्न हो सकते हैं, अत: भिन्न—भिन्न परिस्थितियों में न्यूनतम मजदूरी की दरें भी भिन्न—भिन्न हो सकती हैं। जैसे कि हाइड्रो (इन्जीनियर्स) प्राइवेट लिमिटेड बनाम दी वर्कमैन के मामले में यह निर्णित किया गया है कि देश के एक भाग से दूसरे भाग में एक उद्योग से दूसरे उद्योग में अधिभावी भिन्न और विभेदित दशाओं के कारण समस्त देश में समस्त उद्योगों के लिए एकरूप न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करना सम्भव नहीं होगा। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का निम्नलिखित अवलोकन उल्लेखनीय है—

न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण करने में आवश्यक वस्तुओं के प्रचलित मूल्य की अवधारणा को ध्यान में नहीं रखा जावेगा जबकि श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी निश्चित करनी हो। इस मजदूरी के निर्धारण में मजदूरों के निर्धारण में मजदूरों या कर्मकारों की क्षमता की वृद्धि को ध्यान में रखना होगा और प्रचलित मजदूरी की लागत को ध्यान में रखा जावेगा और आवश्यक वस्तुओं के मूल्य मापक को ध्यान में रखा जावेगा। न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण करते समय आसमान को छूने वाली कीमतों को ध्यान में रखा जावेगा जिससे वास्तविक न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा सके।

न्यूनतम मजदूरी के सम्बन्ध में फेयर वेजेज कमेटी ने निम्न विचार व्यक्त किया है—

“न्यूनतम मजदूरी में श्रमिक को उतना ही नहीं मिलना चाहिये जो उसके जीवित रहने के लिए ही आवश्यक हो वरन् इतनी मजदूरी मिलनी चाहिए जिससे कि उसकी क्षमता बनी रहे। इस उद्देश्य हेतु उसे इतना मिलना चाहिए जिसमें कि शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि की आवश्यकताओं को भी पूरा किया जा सके।"

मैसर्स हिन्दुस्तान हॉजरा इण्डस्ट्री बनाम एम. ए. लाला और अन्य के वाद में यह अभिमत निर्धारित किया गया है कि न्यूनतम मजदूरी निर्धारण में औद्योगिक न्यायाधिकरण श्रमिक के दृष्टिकोण से स्थिति पर विचार करेगा। नियोजन के भुगतान करने की सामर्थ्य अप्रासंगिक होगी।" उसमें आगे कहा गया है कि—

“यथोचित मजदूरी के निर्धारण में आर्थिक स्थिति की वास्तविकता को ध्यान में रखा जायेगा जिसके अन्तर्गत श्रमिक के यथोचित परिवार की आवश्यकताओं पर भी ध्यान रखा जायेगा।"

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 43 में भी यह उपबन्धित किया गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी मजदूरी दी जानी चाहिए जो कार्यानुसार हो और उसकी कार्यक्षमता कायम रखने में सहायक हों।"

इस प्रकार सामान्य अर्थ में न्यूनतम मजदूरी का अर्थ प्राय: उस मजदूरी से जिसमें कम मजदूरी किसी को नहीं मिलनी चाहिए। न्यूनतम जीवन—स्तर या भरण—पोषण के लिए आवश्यक मजदूरी कहा जा सकता है।

न्यूनतम मजदूरी की दरों का निर्धारण (Fixing of minimum rates of wages)— न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 3 (1) उपबन्ध करती है कि (1) उपयुक्त सरकार इस अधिनियम में उल्लिखित विधि के अनुसार उन नियोजित व्यक्तियों को देय न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करेंगे, जो इस अधिनियम की अनुसूची के भाग 1 व 2 में निर्दिष्ट नियोजन में नियोजित थे।

उपयुक्त सरकार इस प्रकार निर्धारित किये हुए मजदूरी की दरों पर समय—समय पर विचार कर सकती है। परन्तु यह पुनः विचार पाँच साल या इसके कम समय के मध्यान्तर में होना चाहिए इससे अधिक के मध्यान्तर पर नहीं ।

जब तक न्यूनतम मजदूरी की दरें पुनः विचार न हों तब तक यहीं दरें लागू रहेंगी जो पुनः विचार के पूर्व प्रचलित थीं।

उपयुक्त सरकार (appropriate government) को यह पूर्ण अधिकार है कि यह ऐसी श्रेणी के उपयुक्त संस्थाओं में जहाँ एक हजार कर्मचारी से कम कर्मचारी काम कर रहे हों वहाँ न्यूनतम मजदूरी की दरों का निर्धारण न करे। परन्तु यदि उपयुक्त सरकार किसी समय ऐसी जाँच के पश्चात् जिसे वह इस निमित्त करे या कराये इस नतीजे पर पहुँचती है कि ऐसे संस्थान में एक हजार से अधिक व्यक्ति काम पर लगे हैं तो ऐसे संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारित कर सकेगी।

उपयुक्त सरकार निर्धारित कर सकती है—

(अ) समयानुसार कार्य की न्यूनतम मजदूरी दर जिसे आगे चलकर 'न्यूनतम समय दर' कहा गया है।

(ब) ठेके पर कार्य के लिए मजदूरी की निम्नलिखित दर अर्थात् ठेके की निम्नतम दर ।

(स) गारण्टी समय दर तथा

(द) अतिसमय (overtime) काम की दर

(3) न्यूनतम मजदूरी की दरों का निर्धारण और संशोधन इस धारा के अन्तर्गत होता है।

भिन्न—भिन्न न्यूनतम मजदूरी की दरें निम्नलिखित के सम्बन्ध में निर्धारित की जा सकती हैं—

(1) भिन्न—भिन्न अनुसूचित नियोजनों के लिए (scheduled employments)

(2) एक ही अनुसूचित सेवा योजन (scheduled employment ) के विभिन्न वर्गों के लिए।

(3) वयस्कों, किशोरों, बालकों तथा काम सीखने वालों के लिए।

(4) विभिन्न स्थानों के लिए।

न्यूनतम मजदूरी की दरें निम्नलिखित में से किसी भी मजदूरी अवधियों (wageperiods) के लिए निर्धारित की जा सकती हैं—

(1) घण्टे के आधार पर

(2) दिन के आधार पर

(3) माह के आधार पर

(4) अन्य मजदूरी अवधि के आधार पर निर्धारित की जायेगी। जहाँ कि ऐसी दरें दैनिक हिसाब या मासिक हिसाब से निश्चित की गई है वहाँ अवधि की गणना करने का भी निर्देशन किया जायेगा।

जहाँ मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 4 के अन्तर्गत मजदूरी की अवधियाँ निर्धारित की जा चुकी हैं वहाँ न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण तद्नुसार होगा।

मजदूरी की न्यूनतम दरें (Minimum rates of wages)— मजदूरी की दरों में निम्नलिखित सम्मिलित होगी—

(1) मजदूरी की आधारभूत दर तथा विशेष भत्ता जिसकी दर का समायोजन उपयुक्त सरकार द्वारा निर्धारित समय के पश्चात् निर्धारित रीति से किया जायेगा। विशेष भत्ते की दरें, निर्वाह व्यय वेशनांक (cost of living index) के आधार पर बदलती रहेगी।

(2) मजदूरी की आधारभूत दर, जिसमें निर्वाह—व्यय भत्ता मिला हो या न मिला हो और रियायत का नकद मूल्य जो आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति (Supply) से सम्बन्धित हो, जहाँ इस प्रकार का अधिकार है; अथवा

(3) मूल दर, निर्वाह—व्यय भत्ता तथा रियायत का नकद मूल्य, यदि कोई भी हो तो सब मिलाकर भत्ता दर।

निर्वाह व्यय भत्ते व आवश्यक वस्तुओं की रियायती बिक्री को नकद मूल्य की गणना समक्ष प्राधिकारी द्वारा उपयुक्त सरकार के निर्देश के अधीन निर्धारित मध्यान्तरों में की जायेगी। [धारा (4)]

इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यूनतम दर के लिए कोई मौलिक सिद्धान्त होना चाहिए, जिसे न्यूनतम दर और उससे सम्युक्त अन्य बातों के निर्धारण का आधार बताया जा सके। काम के घण्टे, कार्य—भार उस क्षेत्र में सामान्य रूप से अन्य उद्योगों से प्रचलित मजदूरी—दर, कर्मकार की आवश्यकता तथा नियोजक के वित्तीय स्त्रोत और अन्य बातों को ध्यान में रखकर करती न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जानी चाहिए।

न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण व संशोधन की कार्यविधि—

(1) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम की धारा 5 उपबन्धित करती है कि किसी अनुसूचित नियोजक लेखे मजदूरी की न्यूनतम दरें इस अधिनियम के अधीन प्रथम बार नियत करने में या ऐसे नियत की गई मजदूरी की न्यूनतम दरों को पुनरीक्षित करने में समुचित सरकार या तो

(क) यथास्थिति ऐसे नियत करने या पुनरीक्षण के बारे में जाँच करने और अपने परामर्श देने के लिए इतनी समितियाँ और उपसमितियाँ जितनी कि वह आवश्यक समझे नियत करेगी, या

(ख) शासकीय गजट में अधिसूचना द्वारा अपने प्रस्तावों को उन व्यक्तियों को जानकारी हेतु प्रकाशित करेगी जो उससे प्रभावित होते हों और एक तिथि निर्दिष्ट करेगी जब उक्त प्रस्तावों पर विचार किया जायेगा। यह तिथि अधिसूचना जारी करने में से दो माह पूर्व नहीं होगी।

(2) उपधारणा (1) के खण्ड (क) के अन्तर्गत नियुक्त समितियाँ या उपसमितियों की सलाह पर विचार करने के पश्चात् एवं उसी धारा के वाक्य (ख) के अधीन अधिसूचना में निर्दिष्ट विधि के पूर्ण समस्त प्रतिवादों की प्राप्ति के पश्चात् उपयुक्त सरकार शासकीय गजट में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक अनुसूचित रोजगार के सम्बन्ध में मजदूरी की न्यूनतम दरों का निर्धारण अथवा संशोधन कर सकती है। यह अधिसूचना जब तक कोई विपरीत व्यवस्था न हो उसके जारी करने के तीन माह पश्चात् समाप्त होने पर लागू होगी।

किन्तु यदि उपयुक्त सरकार उपधारा (1) के वाक्य (ख) के निर्धारित रीति में न्यूनतम दरों में संशोधन करना चाहती है तो उसे सलाहकार बोर्ड का परामर्श भी लेना पड़ेगा।

त्रुटियों में सुधार (Correctionof errors)— धारा 10 के अनुसार उपयुक्त सरकार को यह अधिकार है कि राजकीय गजट में विज्ञप्ति प्रकाशित करके लिपिकीय या अंकीय भूलों को या किसी आकस्मिक चूक या कार्यलोप (omission) में हुई त्रुटियों को किसी समय सुधार सकती है।

न्यूनतम मजदूरी का भुगतान (Payment of minimum wages)— (1) धारा 11 के अनुसार, नियोक्ता, उन कर्मचारियों को जो अनुसूचियों में उनके अधीन कार्य कर रहे हैं, न्यूनतम नकद रूप में देगा।

जहाँ कहीं यह प्रथा रही है कि मजदूरी पूर्णरूप से या आंशिक रूप से माल के रूप में दी जाती हो तो उपयुक्त सरकार, तुष्टि के बाद सरकारी गजट में अधिसूचना प्रकाशित करके इस प्रकार के भुगतान को अधिकृत कर सकती हैं।

यदि उपयुक्त सरकार की राय में रियायती दरों पर श्रमिकों को आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करने की व्यवस्था करना उचित हो तो वह सरकारी गजट में विज्ञप्ति प्रकाशित करके रियायती दरों पर आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था का आदेश दे सकती है।

समान रूप में दिये गये वेतन को निर्धारित ढंग में आँका जायेगा।

धारा 12 के अनुसार यदि किसी अनुसूचित नियोजन के सम्बन्ध में धारा 5 के अन्तर्गत यदि कोई अधिसूचना प्रकाशित की गई है तो नियोक्ता उसमें कार्य करने वाले अपने अधीन प्रत्येक कर्मकार को विज्ञप्ति के अन्तर्गत उस वर्ग के कर्मचारियों के लिए निर्धारित मजदूरी की दरों से कम मजदूरी नहीं देगा तथा निर्धारित अवधि के भीतर व निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत कटौतियों को छोड़कर, उक्त मजदूरी में से कोई अन्य कटौती नहीं करेगा।

इस धारा के अन्तर्गत किसी भी बात का मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

साधारण कार्य—दिवस के लिये घण्टों का निर्धारण (Fixing hours for a normal working day etc.)— धारा (1) में उपबन्धित है कि किसी अनुसूचित नियोजन के सम्बन्ध में जिसके लिये इस अधिनियम के अधीन मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत हैं उस सम्बन्ध में समुचित सरकार निम्नलिखित उपबन्ध कर सकती है—

(क) काम के उन घण्टों की संख्या नियत कर करती है जो कि एक असामान्य काम करने का दिन गठित करते हों, इसमें एक या अधिक उल्लिखित अन्तराल सम्मिलित होंगे।

(ख) प्रति 7 दिन में एक विश्राम के दिन की व्यवस्था कर सकती है जो कि समस्त श्रमिकों या श्रमिकों के वर्ग के लिए होगी। ऐसे विश्राम के दिनों के लिए पारिश्रमिक के भुगतान की व्यवस्था की जायेगी।

(ग) विश्राम के किसी दिन काम करने के सम्बन्ध में एक ऐसी दर से भुगतान किया जायेगा जो अतिकाल (overtime) दर से किसी भी प्रकार कम न होगी।

(2) धारा 13 के अनुसार उपधारा (1) के प्रावधान निम्नलिखित श्रमिक वर्गों पर निर्धारित सीमा तक निर्धारित शर्तों के अधीन होंगे

(क) ऐसे कर्मचारी जो अत्यावश्यक काम में या किसी आपातिक काम में लगे हुए हैं जिसका कि पूर्वाभास नहीं हो सकता था या रोकना सम्भव नहीं था।

(ख) ऐसे कर्मचारी जो कि प्रारम्भिक या अनुपूरक कामों में लगे हए हों जिन्हें कि उस परिसर के साधारण कामों की सीमा के बाहर काम करना है जहाँ कि नियोजन स्थित है।

(ग) ऐसे कर्मचारी जिनका कि नियोजन अनिवार्यत: सअन्तकालिक (intermittent) है।

(घ) ऐसे कर्मचारी जो कि ऐसे कार्यों में लगे हैं, जो कि तकनीक कारणों से कर्त्तव्यकाल समाप्त होने से पहले पूरा करना है।

(ङ) ऐसे कर्मचारी जो कि ऐसे कार्य में लगे हैं, जिन्हें कि केवल ऐसे समय में पूरा किया जा सकता है जबकि प्राकृतिक शक्तियों के अनियन्त्रित कार्य घटित होते हैं।

कर्मचारी का नियोजन इस सूरत में सारत: सान्तरालिक है जिसमें कि उसका ऐसा होना समुचित सरकार ने इस आधार पर घोषित किया है कि कर्मचारी के कर्त्तव्य के दैनिक घण्टों के अन्तर्गत निष्क्रयता की ऐसी प्रसामान्यत: कालावधियाँ जिनके अन्तर्गत कर्मचारी कर्तव्य पर तो हैं, किन्तु उसे शारीरिक क्रियाशील या अविरत अवधान के संप्रदर्शन के लिए समाहूत नहीं किया जाता।

न्यूनतम मजदूरी कानून के क्या उद्देश्य थे?

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (Minimum Wages Act, 1948) भारत की संसद द्वारा पारित एक श्रम कानून है जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण करता है। यह अधिनियम सरकार को विनिर्दिष्ट रोजगारों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए प्राधिकृत करता है।

न्यूनतम मजदूरी कब और क्यों पारित हुआ?

इसे 1946 में पास कर दिया गया और 15.3.48 से इसे प्रभावी बनाया गया। अधिनियम में उन सभी रोजगारों की सूची शामिल है जिनके लिए उपयुक्त प्रशासनों द्वारा न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण किया जाना है। केन्द्रीय दायरे में 45 अनुसूचित रोजगार हैं जबकि राज्य के दायरे में ऐसे रोजगारों की संख्या लगभग 1679 है।

भारत में न्यूनतम मजदूरी क्या है?

श्रम मंत्री लोकनाथ शर्मा ने कहा कि अकुशल श्रमिकों का दैनिक वेतन 11 जुलाई, 2022 से पूर्वव्यापी प्रभाव से 300 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अर्धकुशल श्रमिकों का दैनिक वेतन 320 रुपये से बढ़ाकर 520 रुपये कर दिया गया है, जबकि कुशल श्रमिकों को 335 रुपये के बजाय अब 535 रुपये मिलेंगे।

न्यूनतम मजदूरी कब से लागू होगी?

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) ने बताया कि अकुशल श्रमिकों का वेतन 16,506 रुपये की जगह अब 16,792 रुपये होगा, अर्धकुशल श्रमिकों की तनख्वाह 18,187 रुपये के बजाय पर अब 18,499 रुपये होगी तथा कुशल श्रमिकों का वेतन 20,019 रुपये के बजाय 20,357 रुपये होगा. नई न्यूनतम वेतन 1 अक्टूबर, 2022 से लागू होगी.