हल्दीघाटी के युद्ध में जीत किसकी हुई? - haldeeghaatee ke yuddh mein jeet kisakee huee?

Battle Of Haldighati In Hindi: राजस्‍थान की एतिहासिक युद्ध हल्दीघाटी एक बार फिर से खबरों में है, अब इतिहास के पन्‍नों में यह बात पुरानी हो जाएगी कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था। अब तक इतिहास में यही पढ़ाया जाता रहा है, लेकिन भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने इसे बदलने का फैसला लिया है। राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित स्मारक से वह पत्थर हटाया जाएगा, जिसमें लिखा था कि महाराणा प्रताप की सेना को हल्दी घाटी की जंग से पीछे हटना पड़ा था। हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को मेवाड़ के राजपूत शासक महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया था। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने युद्ध से जुड़े कुछ शिलालेख हटा लिए हैं। अब एएसआई इस युद्ध पर नया इतिहास लिख रहा है, जिसके पूरा होने पर नए शिलालेख लगाएगा, जिसपर पूरा इतिहास लिखा होगा।हालांकि एएसआई के इस कार्रवाई पर नई बहस फिर जारी हो गई है महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़े गए इस युद्ध में जीत किसकी हुई थी।

शिलालेख में ऐसा क्या लिखा था
दरअसल, इन शिलालेखों पर लिखी जानकारी में अकबर के सामने मेवाड़ी सेना को कमजोर बताया गया है। साथ ही बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबों में हल्दीघाटी की लड़ाई की तारीख 18 जून 1576 है जबकि पट्टिकाओं पर यह 21 जून 1576 लिखी गई है। ऐसे में गलत तथ्यों को बुनियाद मानते हुए इन शिलालेखों को हटाया गया है। वैसे राजपूत व लोक संगठन लंबे समय से इसकी मांग भी कर रहे थे।
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हल्दी घाटी की कहानी क्‍या है
राजपूतों व मुगलों के बीच हल्दी घाटी में हुई जीत-हार के बारे में बताने से पहले आपको जानना जरूरी है कि यह लड़ाई 18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। हल्दीघाटी असल में एक दर्रा है, अरावली पर्वत श्रृंखला से गुजरने वाला दर्रा, जो राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर है, इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा। यह‍ राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। लड़ाई की शुरुआत उस वक्त से हुई जब अकबर राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करके अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहा था।

राजपूतों ने छोड़ साथ
दरअसलए हुआ ये था कि राजस्थान में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख राजाओं ने मुगल वंश को स्वीकार कर लिया था और मेवाड़ के राजघरानों ने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके थे, ऐसे में अकबर ने राज्य विस्तार के लिए अक्टूबर 1567 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी की। राजपूतों को मुगलों ने घेर लिया, इसके बाद उदय सिंह पद छोड़ने पर मजबूर हो गए और रक्षा की जिम्मेदारी मेड़ता के राजा जयमल को दी गई, जो युद्ध के दौरान मारे गए, फिर उदय सिंह 4 साल बाद अपनी मृत्यु तक अरावली के जंगलों में रहे।

महाराणा प्रताप ने संभाली कमान
उदय सिंह की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की कमान संभाली। फिर से अकबर ने कई बार बात की लेकिन प्रताप ने मुगलों की नहीं मानी और अकबर ने प्रताप से युद्ध का फैसला किया। इतिहासकार रिमा हूजा ने बताया कि हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूतों के संख्या बल का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन मेवाड़ की सेना, अकबर की सेना के सामने काफी छोटी थी। इसके बाद युद्ध में मेवाड़ की सेना को काफी नुकसान भी हुआ।
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महाराणा प्रताप का जीवन
चित्तौड़ का कुम्भलगढ़ किला, यहां कटारगढ़ के बादल महल में विक्रमी संवत 1596 के जेठ महीने के दिन महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख़ थी 6 मई 1540। महाराणा प्रताप उदय सिंह के सबसे बड़े बेटे थे, उनकी मां का नाम जैवंता बाई था। पहले बेटे के जन्म के बाद ही उदय सिंह और जैवंता बाई से विमुख हो गए। वे अपनी सबसे छोटी रानी धीरबाई भटियाणी को सबसे ज्यादा पसंद करते थे, लिहाजा आगे चलकर उन्होंने महाराणा प्रताप के बजाय धीरबाई के बेटे जगमाल सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हालांकि महाराणा प्रताप के कौशल को देखते हुए अधिकतर सिसोदिया सुल्तान उन्हें ही गद्दी के योग्य मानते थे। जब 28 फरवरी 1572 को उदय सिंह का निधन हो गया, तब राजवंशों की परंपरा के अनुसार राजा के सबसे बड़े बेटे सुरक्षा कारणों से अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग नहीं लेते थे। महाराणा प्रताप भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं गए, लेकिन उस अंतिम संस्कार से उदय सिंह का एक और पुत्र नदारद था।

धीरबाई का बेटा जगमाल सिंह ग्वालियर के राम सिंह और महाराणा प्रताप के नाना अखेराज सोनगरा को पता चला कि जगमाल महल में हैं और उनके अभिषेक की तैयारी चल रही है। दोनों राजमहल पहुंचे और जगमाल को गद्दी से हटा दिया। जिसके बाद महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कराया गया। महाराणा प्रताप के सत्ता संभालने के चार साल बाद मुगल और राजपूत आमने-सामने आए। अकबर दिल्ली से चलकर अजमेर आया, उसने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए मान सिंह के नेतृत्व में एक बड़ी सेना गोगुंदा की तरफ रवाना की। इस सेना ने राजसमंद के मोलेला में अपना डेरा डाला। दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ की सेना लोशिंग में डेरा डाले हुए थी।

किसकी हुई थी जीत
अब युद्ध में जीत किसकी हुई, इसके पीछे कई तथ्य हैं। वहीं, दोनों पक्षों का मानना है कि उनकी ही जीत हुई। इतिहासकारों के अनुसार कहा गया है कि मेवाड़ ने भी जीत का दावा किया था, क्योंकि कोई आत्मसमर्पण नहीं हुआ था, वहीं, मुगलों ने भी जीत का दावा किया क्योंकि वो अंत समय तक मैदान में थे। इसलिए ज्‍यादातर इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रताप की सेना हल्दीघाटी की लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटी और इसका मतलब है युद्ध प्रताप ने जीता था। इसके अलावा कई ऐसे इतिहासकार हैं, जो दोनों तरफ से अलग अलग तर्क रखते हैं, ऐसे में साफ तौर पर किसी की जीत बताना सही नहीं है और हर पक्ष अपनी जीत का गुणगान करता है।

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हल्दीघाटी के युद्ध में पराजय किसकी हुई थी?

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप का समर्थन करने वाले घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लडा गया था जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति का सहयोग मिला ।

महाराणा प्रताप की सेना कौन थी?

महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी

हल्दीघाटी का युद्ध कब तक चला?

जयपुर। हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था।

महाराणा प्रताप ने कितने युद्ध लड़े थे?

मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने कई प्रयास किए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अजमेर को अपना केंद्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। महाराणा प्रताप ने कई वर्षों तक मुगलों के सम्राट अकबर की सेना के साथ संघर्ष किया।