घनानंद प्रेम के पपीहे थे स्पष्ट कीजिए - ghanaanand prem ke papeehe the spasht keejie

घनानंद को प्रेम की पीर का कवि क्यों कहा जाता है?

तेरी मिलिवे को ब्रजमोहन, बहुत जतन हैं साधे।" इस प्रकार विरह की गहरी अनुभूति, वैयक्तिकता, एकनिष्ठता, तीव्र भावुकता व स्वानुभूति जैसे तत्त्व घनानंद को 'प्रेम की पीर' के कवि के रूप में स्थापित करते हैं।

घनानंद के प्रेम वर्णन की विशेषता क्या है?

उन्होंने प्रेम के संयोग पक्ष की अपेक्षा वियोग पक्ष का अधिक आतुरता, तल्लीनता एवं तीव्रता के साथ वर्णन किया है। सुजान का यह विरह घनानंद के लिए वरदान सिद्ध हुआ है और धनानंद ने भी अपनी विरहाकुलता का वर्णन करके सुजान एवं सुजान के प्रेम को अमर बना दिया है। इस प्रकार घनानंद का प्रेम स्थूल नहीं, अपितु सूक्ष्म है।

प्रेम का कौन सा स्वरूप घनानंद के काव्य में मिलता है?

घनानन्द की प्रेम-व्यंजना, विशुद्ध प्रेम के कवि हैं।, वियोग श्रृंगार के प्रधान कवि हैं।

घनानंद की प्रेम कसौटी क्या है?

घनानन्द भी ऐसे ही विरही कवि हैं, जिनके हृदय में अपनी प्रेयसी 'सुजान' की उत्कट विरह- भावना भरी हुई है। घनानन्द के विरह में हृदय की उद्दाम लालसा एवं उत्कंठा का प्राधान्य है, उसमें अनुभूति की तीव्रता है, अन्तःकरण की सात्विक वेदना का आधिक्य है और बाह्य आडम्बर लेशमात्र भी नहीं है ।