गांव क्या है इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए? - gaanv kya hai isakee visheshataon ka varnan keejie?

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गांव का जो वातावरण होता है वह खेती और पशुपालन से जुड़ा होता है इसके अलावा वहां पर चारों और आपको हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है और गांव जो है उनके जो लोग होते हैं उनके बीच में एकता पाई जाती है विश्वास ही नहीं होता बल्कि निस्वार्थ भाव से एक दूसरे का सहयोग करते हैं उनमें एक अपनापन का भाव होता है अगर कोई गांव में समस्या आ जाती है तो सभी लोग एकजुट होकर के उस समस्या का समाधान करते हैं किसी भी प्रकार की गांव में समस्या आने पर वहां के लोग उस समस्या को अपनी समस्या बना लेते हैं उस समय समस्या के समाधान में जुड़ जाते हैं इसके अलावा गांव में प्रदूषण है ना के बराबर होता है वहां का जो वातावरण है वह अच्छा होता है और वहां की जो हवा है वह भी प्रदूषण रहित है इसके अलावा गांव में जो मिलने वाली सरकारी वस्तुएं है या फिर फल सब्जियां है वह हमें शुद्ध मिल जाती है धन्यवाद

gaon ka jo vatavaran hota hai vaah kheti aur pashupalan se juda hota hai iske alava wahan par charo aur aapko hariyali hi hariyali dikhai deti hai aur gaon jo hai unke jo log hote hain unke beech mein ekta payi jaati hai vishwas hi nahi hota balki niswarth bhav se ek dusre ka sahyog karte hain unmen ek apnapan ka bhav hota hai agar koi gaon mein samasya aa jaati hai toh sabhi log ekjut hokar ke us samasya ka samadhan karte hain kisi bhi prakar ki gaon mein samasya aane par wahan ke log us samasya ko apni samasya bana lete hain us samay samasya ke samadhan mein jud jaate hain iske alava gaon mein pradushan hai na ke barabar hota hai wahan ka jo vatavaran hai vaah accha hota hai aur wahan ki jo hawa hai vaah bhi pradushan rahit hai iske alava gaon mein jo milne wali sarkari vastuyen hai ya phir fal sabjiyan hai vaah hamein shudh mil jaati hai dhanyavad

गांव की परिभाषा -इरावती कर्वे के अनुसार, “एक आकस्मिक अवलोकनकर्ता के लिए एक क्षेत्रीय निवास गांव कहलाते हैं जहां अधिकांश रूप से खेती हो और इन खेतों का वितरण हो गया हो और कई रूपों में विभिन्नता आ गई हो और अब भी वे गांव कहलाते हैं। जो गांवों में रहते हैं अथवा उनके पड़ोसी हों वे अपने उद्देश्यात्मक सीमा व विषयात्मक विचार रखते हैं।”

सिम्स के अनुसार, “गांव वह नाम है जो प्राचीन कृषकों की स्थापना को साधारणतः दर्शाता है। इन्होंने पुरातन संस्कृति के सामाजिक संगठन को ग्राम बताया है। इनके अनुसार मानवोदय से ही संगठन का कोई न कोई रूप हमें अवश्य दिखाई देता है। लेकिन इन संगठनों को एक स्थायी ढांचे के रूप में लाने वाले ग्राम ही हैं जिसका आधार सिम्स के अनुसार कृषि है।”

श्री देसाई के अनुसार, “गांव ग्रामीण समाज की इकाई है, यह वह रंगमंच है जहां ग्रामीण जीवन का एक प्रमुख भाग स्वयं प्रकट होता है और कार्य करता है।

” प्रो. रवीन्द्रनाथ मुकर्जी के अनुसार, “गांव वह समुदाय है, जहां अपेक्षाकृत अधिक समानता, अनौपचारिकता, प्राथमिक समूहों को प्रधानता, जनसंख्या का कम घनत्व होता है।”

गाँव से आपका अभिप्राय

गाँव एक समुदाय हैं जिसमें वो समस्त विशेषताएँ पाई जाती हैं जो समुदाय होने के लिए •आवश्यक है। वे विशेषताएं इस प्रकार हैं। निश्चित भू-भाग, मानव-समूह, सामुदायिक भावना तथा सामान्य जीवन। इस दृष्टि से गाँव या ग्राम का तात्पर्य उस समुदाय से है जिसमें सामुदायिक भावना से ओत-प्रोत एक मानव-समूह एक निश्चित भू-भाग में रहकर एक सामान्य जीवन व्यतीत करता है। किन्तु समुदाय के ये तत्व तो अन्य प्रकार के समुदायों जैसे नगर, प्रदेश, राष्ट्र आदि में भी पाए जाते हैं फिर गाँव व ग्राम के वे कौन से विशिष्ट तत्व या विशेषताएँ हैं जिनके कारण उसे हम ग्रामीण समुदाय कहकर पुकारते हैं और अन्य समुदायों विशेष रूप से नगर समुदाय से पृथक करते हैं। इन सब तत्वों व विशेषताओं को लेकर ही वास्तव में ग्रामीण समुदाय व गाँव का निर्माण होता है। अतः हम संक्षेप में कह सकते हैं कि गाँव व ग्रामीण समुदाय का तात्पर्य उस समुदाय से है जिसमें कृषि ही मुख्य व्यवसाय, जनसंख्या का कम घनत्व, प्राथमिक समूहों की प्रधानता, अनौपचारिकता और कुछ सापेक्षिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक समानता हो।

ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्रायः गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्रायः बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएँ (शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि की) होती हैं।

[1] 2001 की भारतीय जनगणना के अनुसार 74% भारतीय गाँवों में रहते हैं।[2] 236,004 भारतीय गाँवों में न्यूनतम 500 के लगभग की आबादी है, जबकि 3,976 गाँवों में 10,000 की आबादी है।

gramin samuday athva gram ka arth paribhasha visheshta;गाँव सीमित व निश्चित भौगोलिक क्षेत्र मे सीमित संख्या मे, सामान्यतया पाँच हजार से कम,लोगो की बहुत कुछ ऐसी स्थायी बसाहट को कहा जाता है। जिसमे लोगो की जीविका का प्रमुख आधार कृषि होती है। लोगो के बीच  घनिष्ठ प्राथमिक संबंध होते है और उनका जीवन परम्पराओं से बहुत अधिक प्रभावित होता है तथा जहाँ परिवर्तन कम और धीमा होता है।

ध्यान दे; ग्रामीण समुदाय का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं ग्राम के अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं के बाद इस लेख मे नीचे दी गई है। हालांकि ग्राम और ग्रामीण समुदाय की परिभाषा और विशेषताएं बहुत कुछ हद तक सामान ही है, लेकिन फिर भी हमने आपके बेहतर अनुभव के लिए इन दोनों की परिभाषा और विशेषताएं अलग-अलग इस लेख मे लिखी है। यदि आप चाहें तो ग्राम को छोड़कर सीधे नीचे जाकर ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं पढ़ सकते है।

गाँव शब्द का प्रयोग आदिकाल से ही किया जा रहा है। तब गाँव का प्रयोग सामाजिक सम्बन्धों को स्थायित्व प्रदान करने वाले संगठन के रूप मे किया जाता था। समाजशास्त्रियों ने गाँव को ग्रामीण समुदाय के रूप मे ही परिभाषित किया है।

 ग्राम अथवा गाँव की परिभाषा 

मेरिल एवं एलड्रीज के अनुसार " ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत संस्थाओं और ऐसे व्यक्तियों का संकलन होता है, जो छोटे से केन्द्र के चारो ओर संगठित होते है तथा सामान्य प्रकृतिक हितो मे भाग लेते है।

सैण्डरसन के अनुसार ," एक ग्रामीण समुदाय वह स्थानीय क्षेत्र है, जिसमे वहां निवास करने वाले लोगो की सामाजिक अन्तः क्रिया और उनकी संस्थायें सम्मिलित है, जिनमे वह खेतो के चारो ओर बिखरी झोपड़ियों या ग्रामों मे रहते है और जो उनकी सामान्य गतिविधियों का केन्द्र है।"

डाॅ. देसाई ," गाँव ग्राम्य समाज की इकाई है। यह रंगशाली के समाज है, जहाँ ग्राम जीवन अपने को प्रकट करता है और कार्य करता है।

पाटिल के अनुसार ", ग्रामीण क्षेत्र मे सामान्य ग्राम स्थान पर समीपस्थ गृहों मे करने वाले परिवारों के समूह को सामान्यतः ग्राम की अभिव्यक्ति के रूप मे समझा जा सकता है।" 

सिम्स ", ग्राम वह नाम है, जो कि प्रचीन कृषको की स्थापना को साधारणतः दर्शाता है।

सुमित्रानंदन पंत ने ग्राम की परिभाषा निम्न शब्दों मे की है--

" यहाँ नही है चलह-पहल वैभव विस्मित जीवन की,

यहाँ डोलती वायु म्लान सौरभ मर्मर ले बन की,

आता मौन प्रभाव अकेला सन्धा भरी उदासी,

यहाँ घूमती दोपहरी मे स्वप्नों की छाया सी।

यहाँ नही विद्युत दीपों का दिवस निशा मे निर्मित, 

अंधियाली ही रहती गहरी अंधियाली भय कल्पित।"

कुछ विद्वान गाँव को सामाजिक जीवन की आत्मनिर्भर इकाई के रूप मे देखते है, किन्तु  यह स्थिति आजादी के पहले या किसी हद तक आजादी के समय तक थी। 

मैटकाफ ने भारतीय गाँव को एक आत्मसम्पन्न गणराज्य के रूप मे चित्रित किया। उनका कहना था भारत मे कई विदेशी आक्रांता, शासक आये, कई गये लेकिन ग्राम गणराज्य एवं पंचायत के माध्यम से भारत ने अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं को बनाये रखा। करीब साढ़े पाँच दशक पहले एम.एन. श्रीनिवास ने मैसूर के रामपुरा गाँव का अध्ययन किया। उनका कहना था कि ग्राम आज भी अधिकांशतः आत्मसम्पन्न है। वे ग्राम को परस्पर निर्भर समूहो की आत्मसम्पन्न इकाई के रूप मे देखते है। वैसे आमतौर पर समाजशास्त्री अब गाँव को एक आत्मनिर्भर आत्मसम्पन्न इकाई के रूप मे स्वीकार नही करते।

ग्राम अथवा गाँव की विशेषताएं (gramin samuday ki visheshta)

ग्राम या गाँव की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. ग्राम अथवा गाँव एक निश्चित स्थान पर बसे होते है। इसका क्षेत्र निश्चित व सीमित होता है। 

Exam मे अगर गांव की विशेषताओं की जगह पर ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं आये तो आप इसे इस तरह लिख सकते है-- "ग्रामीण समुदाय के लोग एक निश्चित स्थान पर बसे होते है। इनका क्षेत्र निश्चित या सीमित होता है।" इस तरह आप अन्य विशेषताओं मे बदलाव कर सकते है। इसके अलावा  हमने नीचे अलग से विस्तार से ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं भी बताई है, आप उन्हें भी पढ़ सकते है।

2. गांव का प्रकृति के साथ निकट व घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। कुछ गाँव, जो नगर, कस्बे या बाजार के समीप होते है, के अलावा शेष अधिकांश गाँव या तो प्रकृति की गोद मे बसे होते है या प्रकृति से उनका नजदीकी रिश्ता होता है।

3. गाँव का आकार सीमित होता है। गांव की आबादी आमतौर पर पाँच हजार से कम होती है। वैसे कतिपय देशो मे दस दस हजार तक की आबादी की बसाहट को भी गाँव माना जाता है। आबादी के साथ गाँव की जनसंख्या का घनत्व भी कम होता है।

4. गाँव के लोगो मे व्यावसायिक भिन्नता कम होती है। गांव के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि है। आमतौर पर लोग कृषि कार्य करते है। यदि कुछ लोग कोई अन्य धन्धा भी करते है तो यह भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से संबंधित होता है।

5. ग्राम या गाँव की एक मुख्य विशेषता यह है की गाँव मे विभिन्न समूह एक दूसरे के कार्यो पर निर्भर करते है। कार्य के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच सहयोगपूर्ण संबंध होता है। गाँवो के समूहो के बीच श्रम का विभाजन और सहयोग जजमानी व्यवस्था के माध्यम से संचालित होता है।

6. भारतीय गाँवों मे श्रम विभाजन का स्वरूप सामान्यतया परंपरात्मक होता है। इसमे विशेषीकरण का अभाव पाया जाता है। गाँवो मे भूमि अधिकांशतः ऊँची जातियों और कहीं-कहीं उच्च मध्यम जातियों के पास होती है। तलाब एवं कुएँ भी अधिकतर उन्ही के पास होते है। हालांकि वर्तमान मे सरकारी नल और टीबेल की व्यवस्था होने से कुएं और तलाब का अब बहुत की ही कम उपयोग होता है। 

7. ग्रामीण समाज मे विवाह तुलनात्मक रूप से कम आयु मे होता है और परिवार का आकार तुलनात्मक रूप से बड़ा होता है। ग्राम समाज मे संयुक्त परिवार का चलन अधिक देखने को मिलता है।

8. ग्रामीण समाज मे लोगो के बीच प्राथमिक संबंध पाया जाता है। लोगो मे आमने-सामने का प्रत्यक्ष संबंध होता है और वे एक दूसरे को भली भांति जानते है।

9. ग्रामीण समाज मे आर्थिक, राजनैतिक और किचिंत शैक्षिक आधार पर वर्गभेद कम होता है। यद्यपि संस्कारजनित जातीय आधार पर भेद प्रखर होता है। 

10. ग्रामीण समाज मे महिलाओं की स्थिति तुलनात्मक रूप से पुरूषों से निम्न होती है।

11. ग्रामीण समाज मे तुलनात्मक रूप से स्थायित्व पाया जाता है। परिवर्तन होता है किन्तु उसका दायरा सीमित और गति धीमी होती है।

12. ग्रामीण समाज मे व्यावसायिक व सामाजिक गतिशीलता कम होती है।

13. ग्रामीण समाज मे अशिक्षा तुलनात्मक रूप से नगरो से अधिक होती है। अशिक्षा के कारण गाँवो मे अंधविश्वास अधिक पाया जाता है। ग्रामीण कमोवेश भाग्यवादी होते है।

14. ग्रामीण जीवन मे धर्म, संस्कृति व परम्पराओं का प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक देखने को मिलता है।

15. ग्रामीण क्षेत्रों मे जाति व्यवस्था का अत्यधिक प्रभाव पाया जाता है। व्यावसायिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों मे जातीय नियमो का कठोरता से पालन किया जाता है।

16. ग्रामीण समुदाय की एक विशेषता यह है कि समान व्यवसाय, समान, जीवन पद्धति, समान, रहन-सहन आदि के कारण ग्रामीण समुदाय मे सजातीयता के दर्शन होते है।

17. भारतीय ग्रामों की एक विशेषता ग्राम पंचायत है। यह स्वायत्त संस्था है, जो ब्रिटिश काल के पूर्व तक राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र न्यायिक इकाई थी। गांव के आंतरिक कार्यों का निष्पादन ग्राम पंचायतें ही करती है।

ग्रामीण समुदाय का अर्थ 

साधारण शब्दों मे यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण समुदाय लोगों का एक स्थायी समूह होता है। इस समूह के सदस्य एक निश्चित भू-भाग मे निवास करते है। ये कृषि के साथ-साथ पशु-पालन का कार्य भी करते है। साथ-साथ रहने के कारण इन लोगों मे 'हम की भावना' उत्पन्न हो जाती है। इनकी एक विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। इन व्यवस्थाओं के आधार पर ही ग्रामीण समुदाय को अन्य समुदायों से पृथक किया जा सकता है।

श्री पीक ने कहा है," ग्रामीण समुदाय परस्पर संबंधित या असंबंधित व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जो एक परिवार के आकार से बड़ा होता है और जिसके अंतर्गत आसपास बने मकान या खेत होते है और साथ ही साथ ऐसे अनेक चरागाह या बेकार जमीन होती है, जिस पर कि वहाँ के निवासी अपने पशुओं को चराते है। एक निश्चित सीमा तक यह गाँव या जमीन हमारी है, यह भावना भी वहाँ के लोगों मे स्पष्ट रूप पाई जाती है।"  इसी विचारधार के आधार पर श्री सिम्से का कथन है," गाँव नाम का प्रयोग सामान्यतः किसानों की बस्तियों के लिए किया जाता है।" 

ग्रामीण समुदाय की परिभाषा 

श्री आर. एन. मुकर्जी के अनुसार," गाँव वह समुदाय है, जहां एक सापेक्षिक समानता, औपचारिकता, प्राथमिक समूह की प्रधानता, जनसंख्या का कम घनत्व तथा कृषि ही मुख्य व्यवसाय हो।" 

मैरिल तथा एलरिज के अनुसार," ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत संस्थाओं तथा ऐसे व्यक्तियों का संकलन होता है, जो छोटे से केन्द्र के चारों ओर संगठित होते है तथा सामान्य प्राथमिक हितों मे भाग लेते है।" 

बूनर के शब्दों मे," एक ग्रामीण समुदाय व्यक्तियों का एक सामाजिक समूह है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र मे निवास करते है तथा जीवन के सामान्य ढंग को अपनाते है।" 

बोगार्डस के अनुसार," ग्रामीण समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसमे कुछ अंशो तक हम की भावना पाई जाती है तथा जो एक निश्चित क्षेत्र मे निवास करता है।" 

मैकाइवर तथा पेज के अनुसार," जहाँ कहीं एक बड़े या छोटे समूह के सदस्य, साथ-साथ रहते हुए उद्देश्य विशेष से भाग न लेकर सामान्य जीवन, भौगोलिक दशा मे भाग लेते है, उस समूह को ग्रामीण समुदाय कहते है।" 

ऑगबर्न तथा निमकाॅफ के अनुसार," किसी सीमित क्षेत्र के अंतर्गत रहने वाले सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण संगठन को ग्रामीण समुदाय कहते है।" 

इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समुदाय मे निश्चित भौगोलिक क्षेत्र रहता है जिसमें व्यक्ति निवास करते है तथा उनका मुख्य पेशा कृषि होता है, उनका सामान्य जीवन होता है व ग्राम समुदाय में सामुदायिक भावना पायी जाती है।

ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं

भारतीय ग्रामीण समुदाय मे वे सब विशेषताएं पायी जाती है, जिनके आधार पर किसी समुदाय को ग्रामीण समुदाय की संज्ञा दी जा सकती है। 

भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं निम्न प्रकार है--

1. कृषि मुख्य व्यवसाय 

ग्रामीण क्षेत्रों मे कृषि को एकमात्र व्यवसाय तो नही कहा जा सकता किन्तु यह वहाँ का एक प्रमुख व्यवसाय जरूर है। कृषि करना ग्रामीण भारत का व्यवसाय नही अपितु जीवन है। उनके जीवन की समस्त क्रियायें इस एकमात्र कार्य से संबंधित रहती है। 

2. धर्म का महत्व 

भारतीय ग्रामीण समुदाय के व्यक्ति धर्म के प्रति विश्वास रखने वाले होते है, जैसे-- पुण्य के कार्य करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और पापमयी वृत्ति रखने या पाप के कार्य करने से नरक मिलता है। स्वर्ग तथा नरक की भावना व्यक्ति को पाप से दूर रखती है और धर्मपरायणता की ओर खींचती है। यही नही, ग्रामीण समाज के व्यक्तियों के दैनिक जीवन के विभिन्न कार्य भी धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं से निर्देशित होते है। विवाह, जन्म, मृत्यु इत्यादि अवसरों पर धार्मिक संस्कार संपन्न होते है। 

3. जातीयता का प्रभाव

ग्रामीण समुदाय मे जातीयता की भावना अत्यंत प्रबल होती है। ग्रामीण सामाजिक संगठन का आधार ही जातीयता है। जाति के आधार पर ही ग्रामों मे जातीय पंचायतें बनी होती है और पंचायतों द्वारा ही ग्रामीण समुदायों की स्थापना की जाती है। जाति-जनित छूआछूत, संकीर्णता तथा अस्पृश्यता आदि बातें समाज मे पायी जाती है।

4. प्रकृति से घनिष्ठ संबंध 

ग्रामीण समुदाय का प्रकृति से अति निकट का और घनिष्ठ संबंध होता है। प्राकृतिक परिस्थितियां ही ग्रामीण जनता को प्रभावित करती है। इसी कारण ग्रामीण जनता प्राकृतिक शक्ति की उपासना करती है।

5. सामाजिक गतिशीलता 

ग्रामीण समुदाय में सामाजिक गतिशीलता का अभाव होता है। गतिशीलता से अभिक्रिया है एक स्थिति या एक स्थान से दूसरी स्थिति में या दूसरे स्थान पर आना जाना।

6. सामाजिक अंतः क्रिया की अधिकता

प्राथमिक संबंध एवं समूह होने के कारण ग्रामीण जनता अपने सीमित क्षेत्र में बंधी रहती है। फलस्वरुप बहारी सामाजिक अंतः क्रिया अधिक मात्रा में देखी जा सकती है।

7. भाग्यवादिता 

ग्रामीण समुदाय के लोग देवी देवताओं में विश्वास रखते हैं और भाग्यवादी होते हैं। ग्रामीण समुदाय के लोगों का कहना है कि सभी आपत्तियां, विपत्तियां, बीमारियां एवं समस्याएं केवल उसी समय आती हैं जब उनका भाग्य खोटा हो या देवता नाराज हो। इस विचार से युक्त होने के कारण ग्रामीण लोग अपने शरीर पर आए कष्टों को जैविक प्रकोप समझकर सहन करते हैं तथा उनका उपचार बहुत ही कम करते हैं। भाग्य भरोसे ही कष्ट से मुक्ति पाने की प्रतीक्षा करना ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं है। ग्रामीण समुदाय में भाग्यवादिता अधिक प्रबल होने का मुख्य कारण यहां कृषि का प्रकृति पर निर्भर होना है बाढ़, सूखा इत्यादि से यहां का जीवन नियंत्रित होता है।

7. एकान्तता 

ग्रामीण समाज का ढांचा इस प्रकार का है कि उस पर किसी अन्य भारी संस्कृति का प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए ग्रामीण जीवन में एकांतता का तत्व प्रमुख रूप से देखने को मिलता है। इसी तत्व के कारण भारत ग्रामीण समुदायों का देश होने के कारण विश्व के अन्य देशों की संस्कृति से अधिक प्रभावित नहीं हुआ। ग्रामीण समुदाय में सांस्कृतिक सात्मीकरण इत्यादि प्रक्रियाएं अधिक प्रबल नही होती।

8. सामुदायिक स्वच्छता का अभाव 

कृषि ही मुख्य व्यवसाय होने के कारण ग्रामीण समाज के निवासियों का ध्यान स्वच्छता की ओर कम जाता है। यह अपने बच्चों की सफाई का ध्यान भी नहीं रख पाते। ऐसी दशा में ग्रामीण समाज के व्यक्ति गंदे रहते हैं। यह समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है इसका मुख्य कारण शिक्षा का अभाव भी है।

9. अपराधों की कमी 

ग्रामीण समाज के व्यक्ति सादा जीवन व्यतीत करते हैं और शुद्ध विचार रखती है। कृषि से उत्पन्न खाद्यन्न ही उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। उनमें भौतिकवादी विचारधारा भी अधिक प्रबल नहीं होती इसलिए ग्रामीण समाज में नगरीय समाज की अपेक्षा अपराधों की संख्या भी कम होती है। परंतु आधुनिक युग में भारतीय ग्रामीण समाज में अनेक गंभीर समस्याएं उठ खड़ी हुई है तथा इन समस्याओं से उत्पीड़ित होकर अनेक ग्रामीण युवक भी अपराधों की ओर प्रवृत्त हो रहे है।

10. परम्पराओं तथा आदर्शों का महत्व

ग्रामीण सामाजिक जीवन का सामाजिक नियंत्रण परंपराओं और आदर्शों द्वारा किया जाता है। प्राचीन परंपराओं तथा आदर्शों की मान्यता ग्रामीण समाज की प्रमुख विशेषता है। प्राचीन संस्कृति का स्थान ग्रामीण समुदाय ही है क्योंकि वहां पर वैज्ञानिक आविष्कारों, औद्योगिकरण पश्चिमीकरण तथा नगरीकरण इत्यादि बातों का अभी भी पूरी तरह से प्रभाव नहीं पड़ा है। इसलिए ग्रामीण समुदाय में प्राथमिक नियंत्रण अधिक प्रबल होता है।

11. पारिवारिकता की भावना 

ग्रामीण समाज में परिवार की प्रतिष्ठा का विशेष रुप से ध्यान रखा जाता है। ऐसा कोई भी कार्य परिवार का सदस्य नहीं कर सकता जिससे परिवार को कलंक लगे। परिवारिकता की भावना ग्रामीण समुदाय की मुख्य विशेषता है।

12. निम्न जीवन स्तर 

ग्रामीण समाज में लघु उद्योगों का अभाव होने के कारण यहां के लोग निर्धनता एवं बेकारी के शिकार हो जाते हैं। इसलिए उनका जीवन स्तर निम्न रहता है। वे लोग सामाजिक उत्सवों एवं त्यौहारों के अवसर पर पैसा भी अधिक खर्च कर देते हैं। चाहे इसके लिए उन्हें ऋण ही क्यों न लेना पड़े। फलस्वरूप उनकी दरिद्रता सदैव उन्हें घेरे रहती है। इसी से इनका सामान्य जीवन स्तर प्रायः निम्न ही बना रहता है।

13. संयुक्त परिवार 

यद्यपि उद्योगीकरण के कारण एकांकी परिवार तथा धन का मूल्य बढ़ गया है। किंतु फिर भी ग्रामीण समाज में संयुक्त परिवार की व्यवस्था देखने को मिलती है। परिवार के सदस्य चाहे अपना भोजन अलग बनाएं किंतु सामूहिक खेती व्यवस्था, पूजा पाठ, उद्योग धंदे आज भी एक साथ देखने को मिलते हैं।

13. प्राथमिक जीवन 

ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के निकट संबंधी होते हैं या एक दूसरे के नाम व स्वभाव से परिचित होते हैं। ग्रामीण समाज के व्यक्ति एक दूसरे की शर्म करती है। इसलिए वहां के लोगों के संबंधों में प्राथमिकता पाई जाती है। संबंधों की यह प्राथमिकता ग्रामीण समुदाय में जनमत का निर्माण करने सहायक होती है।

14. अन्धविश्वासी 

भारतीय ग्रामीण अशिक्षित एवं अज्ञानी होने के कारण अंधविश्वासी एवं भाग्यवादी होती है। इस कारण देवताओं की अधिक पूजा होती है।

15. स्त्रियों की निम्न स्थिति 

ग्रामों में स्त्रियों की स्थिति निम्न होती है। वे घर का काम करती रहती है। अधिकांश महिलायें पर्दा करती है तथा अशिक्षित होती है। भारतीय ग्रामीण महिलायें आर्थिक, सामाजिक शैक्षणिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों मे पूर्ण रूप से पिछड़ी हुई है।

16. सादा एवं शुद्ध जीवन 

भारतीय ग्रामीण समुदाय के व्यक्तियों का जीवन अत्यंत सादा होता है। शुद्ध जल, शुद्ध भोजन तथा शुद्ध विचार उनके जीवन के प्रमुख तत्व है। ग्रामीण निवासियों मे बनावट तथा छल-कपट की कमी होती है। उनके आंतरिक तथा बाहरी व्यवहार मे प्रायः अंतर नही होता है। परन्तु आधुनिक युग मे ग्रामीण समुदाय का नगरीय समाज से निरन्तर संपर्क बढ़ता जा रहा है। इस संपर्क के परिणामस्वरूप ग्रामीण समुदाय मे भी कृत्रिमता आने लगी है।

16. सीमित जनसंख्या 

ग्रामीण समुदाय का मुख्य व्यवसाय कृषि है। इस कारण गांवों में अन्य व्यक्ति नहीं रहते केवल ग्रामीण समाज में उनकी संतानें ही निवास करती है। इसलिए गांव की जनसंख्या सीमित रहती है। इसलिए ग्रामीण समुदाय को एक सीमित जनसंख्या का मानव समूह कहा जाता है।

गांव क्या है इसकी विशेषताओं की विवेचना कीजिए?

भारतीय गाँवों की सर्वप्रमुख विशेषता है, संयुक्त परिवारों की प्रधानता। यहाँ पति-पत्नी व बच्चो के परिवार की तुलना में ऐसे परिवार अधिक पाये जाते हैं, जिनमें तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य एक स्थान पर रहते हैं। इनका भोजन, सम्पत्ति और पूजा-पाठ साथ-साथ होता है। ऐसे परिवारों का संचालन परिवार के वयोवृद्ध व्यक्ति द्वारा होता है।

गांव की परिभाषा क्या है?

ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्रायः गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्रायः बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं।

गांव का महत्व क्या है?

गाँव कच्चे माल के भी स्रोत है, उद्योगों के लिए कपास, जूट, तिलहन. गन्ना आदि गांव में ही पैदा होती है, पशुपालन का कार्य भी गांव में अधिक होता है। वही नगरों को दूध एवं घी प्रदान करते हैं। कृषि से ही विदेश में जाने वाला आधार माल प्राप्त होता है।

ग्रामीण समाज की विशेषता क्या है?

भारत के ग्रामवासी सादा जीवन व्यतीत करते है। उनके जीवन मे कृत्रिमता और आडम्बर नही है। उनमें ठगी, चतुरता और धोखेबाजी के स्थान पर सच्चाई, ईमानदारी और अपनत्व की भावना अधिक होती है। जहां नगरों की विशेषता सामाजिक विषमता है वही ग्रामीण समाज की विशेषता सामाजिक समरूपता का होना है।