UPSC में वैकल्पिक विषय कौन कौन से होते हैं? - upsch mein vaikalpik vishay kaun kaun se hote hain?

सिविल सेवा परीक्षा में वैकल्पिक विषय के माध्यम से यूपीएससी छात्रों के एक विषय की गहनता की परख करता है | इसीलिए सूची में 24 विषय सम्मलित किये गए है और छात्रों को अपने वर्ग के अनुसार विषय चुनने की पूर्ण आजादी है | यूपीएससी प्रधान परीक्षा में छात्रों को ऑप्शनल विषय के लिए एक 24 विषयों की सूची प्रदान करता है | निश्चित तौर पर ही इस पेपर में प्राप्त अंको को मेरिट लिस्ट का आधार में सहायक बनाया जाता है |

UPSC में वैकल्पिक विषय कौन कौन से होते हैं? - upsch mein vaikalpik vishay kaun kaun se hote hain?

लोक सेवा आयोग में मुख्य परीक्षा के दौरान सभी शिक्षार्थियों को एक ऑप्शनल या वैकल्पिक (Optional) विषय का भी चुनाव करना होता है | इस विषय का चुनाव करते समय आप अपने उस विषय को प्राथमिकता दे जिसके बारे में सबसे ज्यादा जानकारी रखते है या आप उस विषय का अनुभव के तौर पर आपने अपने जीवन में ईस्तमाल किया हो |

UPSC Optional Subject Syllabus in Hindi

वैकल्पिक विषय का चुनाव ज्यादातर छात्र अपने ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री के आधार पर करते है | अगर आप अपने उन विषयों के बारे में सही प्रकार से जानकारी रखते है तथा अपनी बातो को अपने विषय के अनुसार सही प्रकार से व्यक्त कर सकते है तो जरूर आपको भी वही विषय का चुनाव करना चाहिए | हमने यूपीएससी परीक्षा में चुनाव के रूप में उपलब्ध वैकल्पिक विषय के सिलेबस हिंदी भाषा में उपलब्ध कराए है | आपको आयोग द्वारा उपलब्ध सभी वैकल्पिक विषय का परीक्षा सिलेबस एक ही पेज पर दिया जा रहा है| कृपया कर सभी सिविल सर्विस छात्रों की मदद के लिए आगे भी ज्यादा से ज्यादा रूप में शेयर करे |

सिविल सेवा परीक्षा में ऑप्शनल विषय का बहुत महत्व है और छात्र को अपनी रूचि अनुसार विषय का चुनाव करना अनिवार्य होता है | आईएएस परीक्षा में आप दिए गए वैकल्पिक विषयों के बारे में विस्तार से जानेगे | हमने यूपीएससी मुख्य परीक्षा में चुने जाने वाले सभी ऑप्शनल विषयों की सूची उपलब्ध करायी है व साथ ही हर एक विषय का सिलेबस सरल हिंदी भाषा में भी उपलब्ध कराया है | सभी विषयों का सिलेबस जिसमे पेपर 1 और पेपर 2 प्रधान परीक्षा में पूछे जाते है, हमने विस्तार से दिया है और पूर्ण रूप से यूपीएससी ऑफिसियल पोर्टल (upsc.gov.in) के माध्यम से प्रकाशित किया है | आप हमारी टीम द्वारा किये गए कार्य से पूर्ण रूप से संतुष्ट होंगे, ऐसी हमारी आशा है |

UPSC Optional subject is a mandatory choice paper which is consisted of 2 papers: Paper 1 and Paper 2. Civil services aspirants must choose one subject from available list of optional subjects. Be careful while choosing optional subject because bad choice can ruin the performance and marks metrics in Mains Examination of Civil Services.  It is advised that follow the guidelines and recommendations of your mentor, as here on iaspcsportal.com we don’t act like a mentor.

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List of Civil Services Optional Subjects (Hindi)

विषय (वैकल्पिक) | Optional Subjects सिलेबस
कृषि विज्ञान (Agriculture Science) Download
पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान (Animal Husbandry and Veterinary Science) Download
नृविज्ञान (Anthropology) Download
वनस्पति विज्ञान (Botany) Download
रसायन विज्ञान (Chemistry) Download
सिविल इंजीनियरी (Civil Engineering) Download
वाणिज्य शास्त्र तथा लेखा विधि (Commerce & Accountancy) Download
अर्थशास्त्र (Economics) Download
विद्युत इंजीनियरी (Electrical Engineering) Download
भूगोल (Geography) Download
भू-विज्ञान (Geology) Download
इतिहास (History) Download
विधि (Law) Download
प्रबंधन (Management) Download
गणित (Mathematics) Download
यांत्रिकी इंजीनियरी (Mechanical Engineering) Download
चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) Download
दर्शनशास्त्र (Philosophy) Download
भौतिकी (Physics) Download
राजनीति विज्ञान तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Political Science & International Relations) Download
मनोविज्ञान (Psychology) Download
लोक प्रशासन (Public Administration) Download
समाज शास्त्र (Sociology) Download
सांख्यिकी (Statistics) Download
प्राणि विज्ञान (Zoology) Download

मुख्य परीक्षा

वैकल्पिक विषय कैसे चुनें?

  • 23 Nov 2018
  • 34 min read

संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी.) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिये अभ्यर्थियों को इसके प्रत्येक चरण (प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार) के लिये अलग-अलग रणनीति बनानी पड़ती है। साथ ही, उन्हें एक व्यापक रणनीति ऐसी भी बनानी होती है जो इन सारी रणनीतियों के बीच समुचित समन्वय स्थापित कर सके। नए अभ्यर्थियों (विशेषकर हिंदी माध्यम) को यह सवाल हमेशा परेशान करता रहता है कि आखिर सटीक रणनीति का मतलब क्या है? उन्हें ऐसा क्या करना चाहिये कि उनकी रणनीति परीक्षा के सभी स्तरों पर उचित साबित हो। अगर आप इस कठिन परीक्षा के क्षेत्र में उतर गए हैं तो इसके विभिन्न पहलुओं को पूरी गहराई से समझ लें। इस परीक्षा की तैयारी के दौरान आपके द्वारा लिया जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय मुख्य परीक्षा के एक विशेष पक्ष से संबंधित है और वह यह है कि उम्मीदवार को वैकल्पिक विषय का चयन किन कसौटियों के आधार पर करना चाहिये? यह इस परीक्षा की तैयारी के दौरान लिया जाने वाला सबसे कठिन निर्णय होता है और यह निर्णय इतना महत्त्वपूर्ण है कि प्रायः इसी से आपकी सफलता या विफलता तय हो जाती है। अत: यह ज़रूरी है कि भावुकता पर आधारित निर्णय न लेते हुए आप वैकल्पिक विषय के रणनीतिक महत्त्व को समझें।

वैकल्पिक विषय का महत्त्व 

  • यह कहना पूर्णत: सही नहीं है कि सामान्य अध्ययन 1000 अंकों का है और वैकल्पिक विषय सिर्फ 500 अंकों का, इसलिये अभ्यर्थियों को सामान्य अध्ययन पर ज़्यादा बल देना चाहिये। ऐसा कहने वाले  शायद वैकल्पिक विषय के रणनीतिक महत्त्व को नहीं समझते। 
  • इस परीक्षा में यह बात बिल्कुल मायने नहीं रखती कि किसी अभ्यर्थी को कितने अंक हासिल हुए हैं। महत्त्व सिर्फ इस बात का है कि किसी उम्मीदवार को अन्य प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में कितने कम या अधिक अंक प्राप्त हुए हैं। 
  • विगत कुछ वर्षों के परीक्षा परिणामों पर नज़र डालें तो आप पाएंगे कि हिंदी माध्यम के लगभग सभी गंभीर अभ्यर्थियों को सामान्य अध्ययन में 325-350 अंक प्राप्त हुए (2014 की सिविल सेवा परिक्षा में निशांत जैन ने एक अपवाद के रूप में 378 अंक प्राप्त किये थे)। इसके विपरीत, अंग्रेज़ी माध्यम के गंभीर अभ्यर्थियों को इसमें औसत रूप से 20-30 अंक अधिक हासिल हुए, जबकि वैकल्पिक विषय में लगभग सभी गंभीर अभ्यर्थियों को 270-325 अंक हासिल हुए। इस औसत से वैकल्पिक विषय का महत्त्व अपने आप स्पष्ट हो जाता है। ध्यान रहे कि ये लाभ आपको तभी मिल सकता है जब आपने वैकल्पिक विषय का चयन बहुत सोच-समझकर  किया हो। 
  • भले ही वैकल्पिक विषय सिर्फ 500 अंकों का होता हो किंतु गलत वैकल्पिक विषय चुनने से आप लगभग 100 अंकों की नकारात्मक स्थिति में जा सकते हैं। इतना नुकसान तो अभ्यर्थी को 1000 अंकों के सामान्य अध्ययन में भी नहीं उठाना पड़ता।   
  • इस स्थिति को देखते हुए हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों के लिये समुचित रणनीति यही बनती है कि अगर सामान्य अध्ययन में उन्हें कुछ तुलनात्मक नुकसान होता है तो उन्हें अन्य क्षेत्रों में इस नुकसान की भरपाई या उससे ज़्यादा लाभ हासिल करने की कोशिश करनी चाहिये।  
  • ऐसे क्षेत्र दो ही हैं- निबंध और वैकल्पिक विषय। निबंध का हल हमारी इच्छा पर निर्भर नहीं होता, वह सभी के लिये अनिवार्य है। किसी भी माध्यम के उम्मीदवारों को समान विषयों पर ही निबंध लिखना होता है। किंतु वैकल्पिक विषय का चयन हमें करना होता है और अगर हमारा चयन गलत हो जाता है तो पूरी संभावना बनती है कि सिर्फ एक गलत निर्णय के कारण हमारी सारी तैयारी व्यर्थ हो जाए।
  • हिंदी माध्यम के उम्मीदवार उन्हीं विषयों या प्रश्नपत्रों में अच्छे अंक (यानी अंग्रेज़ी माध्यम के गंभीर उम्मीदवारों के बराबर या उनसे अधिक अंक) ला सकते हैं जिनमें तकनीकी शब्दावली का प्रयोग कम या नहीं होता हो, अद्यतन (Updated) जानकारियों की अधिक अपेक्षा न रहती हो और जिन विषयों पर पुस्तकें और परीक्षक हिंदी में सहजता से उपलब्ध हों।

विषय का चयन क्यों कठिन है?

  • कुछ लोगों का मानना है कि यू.पी.एस.सी. द्वारा निर्धारित सूची में से उम्मीदवार को अपनी रुचि के अनुसार कोई भी एक विषय चुन लेना चाहिये इसके लिये किसी अन्य पक्ष पर ध्यान देना आवश्यक नहीं है। विषय चयन का यह सबसे गलत तरीका है। 
  • अपनी रुचि या सुविधा से कोई भी विषय चुन लेने का तर्क वहाँ काम करता है जहाँ परीक्षा की प्रणाली सभी विषयों को बराबर स्तर पर रखती हो। 
  • सभी विषयों को बराबर स्तर पर रखने का एक ही उपाय है कि आयोग द्वारा विषयों के बीच स्केलिंग की व्यवस्था की जाए अर्थात सभी विषयों के प्राप्तांकों को एक ही स्तर पर लाने की प्रक्रिया अपनाई जाए। 
  • दुर्भाग्य की बात है कि यू.पी.एस.सी. सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में विभिन्न विषयों के बीच स्केलिंग नहीं करती है। वह एक हल्की-फुल्की सी प्रक्रिया अपनाने का दावा करती है जिसे मॉडरेशन कहा जाता है।
  • मॉडरेशन में मोटे तौर पर देख लिया जाता है कि विभिन्न विषयों या विभिन्न परीक्षकों के अंक स्तरों में बहुत अधिक अंतराल तो नहीं है, किंतु पूरी वस्तुनिष्ठता के साथ स्केलिंग जैसा समतलीकरण नहीं किया जाता। 
  • चूँकि यू.पी.एस.सी. स्केलिंग की व्यवस्था नहीं करती है, इसका स्वाभाविक परिणाम है कि सभी विषयों का परिणाम एक जैसा नहीं होता है। हर समय कुछ विषय सुपरहिट माने जाते हैं तो कुछ विषय एकदम फ्लॉप। उम्मीदवार भी एकाध साल की तैयारी के बाद समझ जाते हैं कि वैकल्पिक विषयों के बराबर होने की बात सिर्फ एक ढकोसला है। सच तो यह है कि कुछ विषय ही सफलता के राजमार्ग हैं, जबकि बाकी विषयों के माध्यम से विफलता लगभग तय हो जाती है।
  • यह स्थिति आज भी बदस्तूर जारी है और हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों के लिये तो यह ज़्यादा बड़ा खतरा बनकर उपस्थित होती है। अंग्रेज़ी माध्यम में कम से कम 8-10 विषय ऐसे हैं जिनमें अच्छे अंक लाए जा सकते हैं लेकिन हिंदी माध्यम के साथ ऐसी स्थिति नहीं  है।
  • हिंदी माध्यम के अधिकांश उम्मीदवार उन विषयों का चुनाव सफल उम्मीदवारों के अंक और रैंक देखकर कर लेते हैं किंतु उन्हें इस बात का आभास तक नहीं होता कि अच्छे अंक और अच्छे रैंक वाले वे सभी उम्मीदवार अंग्रेज़ी माध्यम के हैं। 
  • उन्हें यह समझने में लंबा समय लग जाता है कि एक विषय जो अंग्रेज़ी माध्यम में सफलता की गारंटी बना हुआ है, वही हिंदी माध्यम में विफलता की गारंटी भी बन सकता है। जब तक उन्हें यह बात समझ में आती है, तब तक उनके अधिकांश प्रयास खत्म हो चुके होते हैं।

विषय चयन की कसौटियाँ 

  • वैकल्पिक विषय के चयन के संबंध में प्रायः कई कसौटियाँ कही-सुनी जाती हैं। बेहतर होगा कि हम उन सभी पर विचार करें और फिर तय करें कि किस कसौटी का कितना महत्त्व है?
  • यहाँ हमारा सारा विवेचन हिंदी माध्यम के परिप्रेक्ष्य में होगा। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, अंग्रेज़ी माध्यम में किसी भी उम्मीदवार को यह समस्या कभी नहीं आती कि उसे उसके माध्यम का नुकसान झेलना पड़ेगा, किंतु हिंदी तथा अन्य माध्यमों के उम्मीदवारों को यह संकट झेलना पड़ सकता है। इसलिये हम केवल उन्हीं विषयों को चुनने का रास्ता निकालेंगे जो हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों को 270 से 325 के बीच अंक दिलाने में सक्षम हों। 
  • इसकी सामान्य कसौटी यही है कि जिन विषयों में करेंट अफेयर्स या तकनीकी शब्दावली की ज़्यादा भूमिका होती है, उनमें हिंदी माध्यम का उम्मीदवार नुकसान में रहता है क्योंकि हिंदी में उपलब्ध अख़बार या जर्नल ऐसे स्तर के नहीं होते कि वे अंग्रेज़ी अख़बारों या जर्नल्स की बराबरी कर सकें। 
  • इसी प्रकार, जो विषय मूलतः अंग्रेज़ी में विकसित हुए हैं और जिनके लिये समुचित शब्दावली अभी तक हिंदी में विकसित या प्रचलित नहीं हो सकी हैं, वे भी हिंदी माध्यम के लिये नुकसानदायक सिद्ध होते हैं क्योंकि अनुवाद की भाषा में वह प्रभाव पैदा नहीं हो पाता जो मूल भाषा में होता है।
  • यही कारण है कि हिंदी माध्यम में हिंदी साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र जैसे विषय अत्यंत उपयोगी हैं क्योंकि एक तो इनमें भाषा का फर्क नहीं पड़ता और दूसरे इनमें करेंट अफेयर्स की कोई भूमिका नहीं होती। इनके अलावा, भूगोल भी एक ऐसा विषय है जो प्रायः अच्छे परिणाम देता है क्योंकि इसमें भी करेंट अफेयर्स की भूमिका नहीं के बराबर होती है, भले ही उसके कुछ हिस्से में तकनीकी शब्दावली का दबाव रहता हो, किंतु जो विषय अत्यंत परिवर्तनशील या डायनमिक प्रकृति के हैं (जैसे लोक-प्रशासन, अर्थशास्त्र या समाजशास्त्र), उनमें हिंदी माध्यम के उम्मीदवार के लिये बराबरी के स्तर को छू पाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
  • ऐसा नहीं है कि इन विषयों में हिंदी माध्यम का कोई उम्मीदवार सफल ही नहीं होता। कुछ उम्मीदवार सफल भी होते हैं किंतु उनमें से अधिकांश की सफलता का राज केवल वैकल्पिक विषय में प्राप्त अंकों में निहित न होकर कहीं और छिपा होता है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि वैकल्पिक विषय ने राह अवरुद्ध करने की पूरी कोशिश की हो किंतु बाकी क्षेत्रों में असाधारण अंक आने के कारण कोई उम्मीदवार सफल हो गया हो और नए उम्मीदवारों में संदेश यही गया कि यह उम्मीदवार उस विषय के कारण सफल हुआ है। 
  • यह भी सही है कि इन विषयों में कभी-कभी कुछ उम्मीदवार काफी अच्छे अंक ले आते हैं, किंतु ऐसे उम्मीदवारों का अनुपात इतना कम है कि उनका अनुकरण करना अपने ऊपर प्रयोग करने के समान है।

विषय चयन का आधार

रोचकताः 

  • विषय चयन का सबसे महत्त्वपूर्ण आधार उम्मीदवार की उस विषय के प्रति गहरी रोचकता होनी चाहिये।
  • यह बात ठीक भी है क्योंकि अगर हमारी किसी विषय में रुचि होती है तो हम कम समय में अधिक पढ़ाई कर पाते हैं और हमारी समझ भी गहरी हो जाती है। 
  • रुचिकर विषय पढ़ते हुए हम थकान की बजाय ऊर्जा और उत्साह का अनुभव करते हैं जो सामान्य अध्ययन आदि की पढ़ाई में भी सहायक होता है।
  • अगर विषय हमारी रुचि के विरुद्ध हो तो उसे पढ़ना अपने आप में बोझ के समान हो जाता है। ऐसे बोझिल विषय के साथ इतनी गंभीर प्रतियोगिता में उतरना अत्यंत कठिन हो जाता है।
  • विषय रोचक है या नहीं, इसका निर्णय सामान्यत: व्यक्तिनिष्ठ ही माना जाएगा क्योंकि किसी व्यक्ति को कोई विषय पसंद आता है तो किसी को कोई और, तब भी यह ध्यान रखना चाहिये कि विषय की रोचकता काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर होती है कि उस विषय में कितनी रुचिकर पुस्तकें या कितने अच्छे अध्यापक उपलब्ध हैं?
  • कई बार ऐसा होता है कि कोई विषय अपनी मूल प्रकृति में रोचक है किंतु अध्यापक में संप्रेषण कौशल की कमी तथा पुस्तकों की भाषा की असहजता के कारण वह लोगों को अरुचिकर लगने लगा हो। 
  • एक समस्या यह भी है कि विषय रोचक है या नहीं, यह उसे पढ़कर ही जाना जा सकता है जबकि विषय चुनते हुए हमें उसे पढ़ने से पहले ही उसकी रोचकता के संबंध में फैसला करना पड़ता है।

अधिक अंकों की संभावनाः 

  • विषय ऐसा होना चाहिये जिसमें समान मेहनत के आधार पर अधिक अंकों की उम्मीद की जा सकती हो। 
  • यह ध्यान रखना चाहिये कि औसत अंकों का अनुमान करते हुए आप सिर्फ हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों के अंकों को ही आधार बनाएँ, अंग्रेज़ी माध्यम के अभ्यर्थियों के अंकों को नहीं।
  • कौन सा विषय अंकदायी है और कौन सा नहीं? इसके निर्धारण के लिये आप विगत 4-5 वर्षों के टॉपर्स के वैकल्पिक विषयों के अंक ढूँढ लें जो आपको विभिन्न पत्रिकाओं में छपे साक्षात्कारों या इंटरनेट पर मिल जाएंगे।  
  • आपको जिन विषयों में 4-5 उम्मीदवारों के अंक पता लग जाएँ, तो आप उनका औसत निकाल लीजिये और मान लीजिये कि उस विषय में गंभीर उम्मीदवारों को औसतन उतने ही अंक मिलते हैं। बस यह ज़रूर ध्यान रखियेगा कि जिन टॉपर्स के अंकों को आप आधार बनाएँ, उनका परीक्षा का माध्यम हिंदी रहा हो।

पाठ्यक्रम का छोटा आकारः 

  • कई उम्मीदवार विषय चयन में इस बात को अत्यधिक महत्त्व देते हैं कि किस विषय का पाठ्यक्रम अत्यंत छोटा है और कम से कम समय में पूरा किया जा सकता है।
  • कुछ विषय ऐसे हैं जिन्हें 3-4 महीनों में ठीक से पढ़ा जा सकता है (जैसे हिंदी साहित्य, संस्कृत साहित्य, मैथिली साहित्य, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, लोक प्रशासन आदि), जबकि कुछ विषयों में यह अवधि 5-7 महीने के आसपास की होती है (जैसे भूगोल, इतिहास तथा राजनीति विज्ञान)। 

बहु-उपयोगिताः 

  • विषय ऐसा होना चाहिये जो बहुउपयोगी हो अर्थात् सिर्फ वैकल्पिक विषय के स्तर पर सहायक होने की बजाय परीक्षार्थी को संपूर्ण परीक्षा में मदद करे। 
  • इस दृष्टि से वे विषय ज़्यादा अच्छे माने जाते हैं जो सामान्य अध्ययन में व्यापक भूमिका निभाते हैं, जैसे- भूगोल, इतिहास, राजनीति विज्ञान, लोक-प्रशासन तथा अर्थशास्त्र। कुछ हद तक इस सूची में समाजशास्त्र को भी शामिल किया जा सकता है।
  • दर्शनशास्त्र के समर्थक कह सकते हैं कि सामान्य अध्ययन के प्रश्नपत्र-4 (एथिक्स) में उनके विषय की प्रबल भूमिका है, पर सच यह है कि उस प्रश्नपत्र में ऐसे तकनीकी प्रश्न पूछे ही नहीं जाते कि दर्शनशास्त्र की पृष्ठभूमि होने से कोई विशेष बढ़त मिल जाती हो।
  • अगर कोई विषय निबंध या साक्षात्कार के लिये सहायक होता है तो उसे बेहतर माना जाता है। जो विषय सामान्य अध्ययन की दृष्टि से बेहतर माने गए हैं (जैसे भूगोल, इतिहास, राजनीति विज्ञान, लोक-प्रशासन तथा अर्थशास्त्र), वे निबंध में भी सहायक होते ही हैं। समाजशास्त्र भी निबंध की दृष्टि से सहायक विषय है। 
  • साहित्य और दर्शन जैसे विषय भी निबंध में काफी हद तक मददगार सिद्ध होते हैं, विशेषतः पहले निबंध में, जो किसी अमूर्त या कल्पना प्रधान विषय पर पूछा जाता है। 

स्थिरताः 

  • इसका अर्थ है कि विषय की विषय-वस्तु अपनी प्रकृति में कितनी स्थिर है अर्थात् समय के साथ परिवर्तित होती है या नहीं होती है।
  • जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, हिंदी माध्यम या अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यमों में उन्हीं विषयों का परिणाम ज़्यादा अच्छा रहता है जिनमें परिवर्तनशीलता या गतिशीलता के तत्त्व कम या अनुपस्थित होते हैं। इस दृष्टि से हिंदी (या किसी भी भाषा का) साहित्य, इतिहास तथा दर्शनशास्त्र शानदार विषय हैं क्योंकि उनके उत्तर कभी नहीं बदलते। कबीर, अकबर या शंकराचार्य के संबंध में लिखते हुए आपको इस बात की परवाह करने की ज़रूरत नहीं है कि पिछले एक वर्ष में इस संबंध में कोई नया विकास तो नहीं हो गया है। भूगोल के संबंध में भी यह बात बहुत हद तक लागू होती है, क्योंकि उसके सैद्धांतिक पहलू बहुत कम परिवर्तित होते हैं| 
  • इन विषयों में ज़्यादा से ज़्यादा इतना ही होता है कि कभी-कभी इनमें कोई नई विचारधारा प्रभावी हो जाती है जिसे उम्मीदवार को पढ़ना होता है, किंतु ऐसे बदलाव 10-20 वर्षों में एकाध बार होते हैं और प्रायः उम्मीदवार को अपनी तैयारी के कालखंड में इस परिवर्तन का भागी नहीं बनना पड़ता है। अर्थात् एक बार की गई तैयारी ही वर्ष-प्रति-वर्ष बिना किसी बदलाव के उसका साथ देती है।
  • इसके विपरीत, जो विषय अपनी प्रकृति में अत्यंत परिवर्तनशील या डायनमिक हैं (जैसे- राजनीति विज्ञान, लोक-प्रशासन, समाजशास्त्र या अर्थशास्त्र), उनके उम्मीदवारों को लगातार इस बात के लिये  सचेत रहना पड़ता है कि किसी टॉपिक के संबंध में कोई नया अनुसंधान हुआ है या नहीं? विभिन्न अखबारों और जर्नलों में नई-नई केस स्टडीज़ छपती रहती हैं और ये विषय बदलते रहते हैं। 
  • इन डायनमिक विषयों में अच्छे अंक उन्हीं उम्मीदवारों को मिल पाते हैं जो इन अद्यतन जानकारियों को बिना किसी बिखराव के अपने उत्तरों में शामिल कर पाते हैं। 
  • यहाँ चुनौती इकहरी नहीं बल्कि दोहरी है। पहली चुनौती इस प्रकार की जानकारियों को इकट्ठा करने की है क्योंकि प्रायः ऐसी जानकारियाँ अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध होती हैं। दूसरी चुनौती यह है कि नई जानकारियों को पुरानी विषय-वस्तु के साथ इस तरह कैसे मिलाया जाए कि दोनों के बीच में कोई जोड़ नज़र न आए, दोनों मिलकर एक हो जाएँ।

पृष्ठभूमिः 

  • इसका तात्पर्य है कि उम्मीदवार जिस वैकल्पिक विषय को चुन रहा है, उसने उस विषय का अध्ययन स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर किया हुआ है या नहीं? 
  • उम्मीदवार के लिये उस विषय को तैयार करना ज़्यादा आसान होता है जिसमें उसने स्नातक या परवर्ती स्तर की पढ़ाई की है। 
  • इसके बावजूद यह जानना रोचक है कि अधिकांश सफल उम्मीदवार उन विषयों से सफल होते हैं जिनमें उनकी पृष्ठभूमि नहीं होती। 
  • अगर आप किसी भी वर्ष का परिणाम देखें तो पाएंगे कि सफल होने वाले उम्मीदवारों में इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों का अनुपात बहुत अधिक है लेकिन इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आए उम्मीदवारों में शायद एक-चौथाई भी ऐसे नहीं मिलेंगे जिन्होंने अपनी पृष्ठभूमि के विषय को ही वैकल्पिक विषय के रूप में चुना हो। यही प्रवृत्ति अन्य पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों में भी दिखती है।
  • इसका कारण यही है कि सिविल सेवा परीक्षा में सफलता की दृष्टि से सभी विषय बराबर स्तर का निष्पादन नहीं करते। 
  • कई बार उम्मीदवारों को यह समझ में आ जाता है कि वे अपने पृष्ठभूमि वाले विषय में उतने अंक हासिल नहीं कर पाएंगे जितने कि किसी दूसरे अंकदायी विषय में सिर्फ 3-4 महीने पढ़कर हासिल कर लेंगे। 
  • इसके बावजूद, यह तो मानना ही पड़ेगा कि अगर उम्मीदवार का वैकल्पिक विषय उसकी पृष्ठभूमि का ही विषय है तो उसके लिये तैयारी की प्रक्रिया काफी आसान हो जाती है।

अन्य कसौटियाँ:

  • उपरोक्त प्रमुख कसौटियों के अलावा कुछ उम्मीदवार कुछ अन्य कसौटियों की चर्चा भी करते हैं जैसे- 
    1. किसी विषय में पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हैं या नहीं? 
    2. उस विषय में इस परीक्षा की तैयारी के लिये उपयुक्त मार्गदर्शन मिल सकेगा या नहीं? 
    3. क्या उस विषय की तैयारी उम्मीदवार अपने स्तर पर कर सकता है या मार्गदर्शन की आवश्यकता अनिवार्यतः पड़ती है?

कसौटियों का तुलनात्मक महत्त्व 

  • सामान्यत: कोई भी विषय ऐसा नहीं है जो सभी कसौटियों पर खरा उतरे और न ही कोई विषय ऐसा है जो एक भी कसौटी पर खरा न उतरे। हर विषय कुछ कसौटियों पर शानदार प्रतीत होता है तो कुछ दूसरी कसौटियों पर कमज़ोर साबित होता है।
  • सही कसौटी तय करने का सीधा सा तरीका यही है कि हमें अपनी प्राथमिकताएँ ठीक से पता हों। अगर हमारी प्राथमिकता किसी भी तरह से इस परीक्षा में सफल होने की है तो हम इस बात पर ध्यान देंगे कि किस विषय में अधिकतम कितने अंक हासिल हो सकते हैं, और उसी विषय को चुनेंगे जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा अंक मिल सकें, चाहे उसे पढ़ने में समय कुछ ज़्यादा समय ही क्यों न लगे?
  • नए उम्मीदवारों को हमारा सुझाव यही है कि वे वैकल्पिक विषय चुनते समय सबसे पहले यही देखें कि उसमें कितने अंक हासिल हो सकते हैं ? 
  • दूसरे क्रम पर यह कसौटी रखें कि वह विषय सामान्य अध्ययन तथा निबंध आदि में कितनी मदद करता है? अगर दो विषय बराबर अंकदायी हैं और उनमें से एक सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम से जुड़ता है जबकि दूसरा नहीं, तो निस्संदेह उसी विषय को चुना जाना चाहिये जो सामान्य अध्ययन में सहायता करेगा।
  • तीसरी कसौटी यह होनी चाहिये कि विषय कितना रोचक है? अगर दो विषय बराबर अंकदायी हैं और दोनों सामान्य अध्ययन व निबंध में बराबर सहायता पहुँचाते हैं तो निस्संदेह उन दोनों में से उसी विषय को चुना जाना चाहिये जो उम्मीदवार को ज़्यादा रुचिकर लगता हो। 
  • अगर उम्मीदवार की रुचि किसी ऐसे विषय में हो जो सफलता की दृष्टि से बेहद नकारात्मक माना जाता है तो बेहतर यही होगा कि उम्मीदवार 3-4 महीनों के लिये कड़वी दवाई की तरह उपयोगी विषय का अध्ययन कर ले। सफलता मिलने के बाद वह जीवन भर अपनी रुचि के अनुकूल कार्य कर सकता है किंतु अगर सफलता नहीं मिली तो तय मानिये कि उसे अपने उसी प्रिय विषय से नफरत हो जाएगी।

विभिन्न विषयों का मूल्यांकन 

  • हमारे मूल्यांकन के अनुसार विभिन्न विषयों को निम्नलिखित सोपानक्रम में रखा जाना चाहिये-
    1. हिंदी साहित्य या किसी अन्य भाषा का साहित्य
    2. इतिहास 
    3. भूगोल
    4. दर्शनशास्त्र
  • इन विषयों के अलावा हमने किसी अन्य विषय को इस सूची में नहीं रखा है क्योंकि वे आमतौर पर इस पहली कसौटी पर ही खरे नहीं उतरते कि उनमें अभ्यर्थी को सफलता के लायक अंक मिल सकेंगे।
  • उपरोक्त चार विषयों के अतिरक्त किसी अन्य विषय को लेकर कोई अभ्यर्थी सामान्यत: तभी सफल हो पाता है जब वह बाकी प्रश्नपत्रों (सामान्य अध्ययन, निबंध तथा साक्षात्कार) में असाधारण अंक हासिल करे।  
  • हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों को हमारी स्पष्ट सलाह है कि वे इन चार विषयों के अलावा किसी भी अन्य विषय को लेने से बचें, चाहे उनकी उस विषय में पृष्ठभूमि ही क्यों न रही हो।

हिंदी साहित्य (वैकल्पिक विषय)

  • हिंदी साहित्य निस्संदेह हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों के लिये सर्वश्रेष्ठ विषय है। इसका प्रमाण यह है कि विगत कुछ वर्षों के सिविल सेवा परीक्षा परिणाम में हिंदी माध्यम के अधिकांश शुरुआती रैंक उन्हीं उम्मीदवारों के हैं जिनके पास यह विषय था।
  • 2014 के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन को इस विषय में 500 में से 313 अंक हासिल हुए थे, जो गणित के अलावा किसी भी अन्य विषय की तुलना में सर्वाधिक अंक हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि निशांत की अभूतपूर्व सफलता में हिंदी साहित्य की प्रबल भूमिका रही। हिंदी माध्यम से सफल हुए द्वितीय टॉपर सूरज सिंह का वैकल्पिक विषय भी हिंदी साहित्य ही था। पिछले वर्षों का परिणाम देखें तो आप पाएंगे कि लगभग हर वर्ष हिंदी माध्यम के टॉपर इसी विषय से होते हैं।

हिंदी साहित्य के लाभ: 

  • इसमें अंग्रेज़ी माध्यम से कोई प्रतिस्पर्द्धा ही नहीं है।
  • साहित्य के परीक्षकों में प्रायः अपने क्षेत्र के अभ्यर्थियों को अधिक अंक देने की प्रवृत्ति देखी जाती है जिसका लाभ सभी भाषाओं के साहित्यों को साफ तौर पर मिलता है।
  • इसमें किसी भी अन्य विषय की तुलना में अधिक अंक हासिल होते हैं। 
  • यह छोटा तथा सिर्फ तीन महीनों में तैयार हो जाने वाला विषय है और इसके उत्तरों में वर्ष-दर-वर्ष  कोई बदलाव करने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। 
  • इसके उत्तर पूरी तरह वस्तुनिष्ठ नहीं होते और उनमें उम्मीदवार की रचनात्मकता की संभावना बनी रहती है। अगर उम्मीदवार को कोई प्रश्न न आता हो तो भी वह अपनी कल्पना से उत्तर लिखकर ठीक-ठाक अंक हासिल कर सकता है। 
  • इन्हीं लाभों का परिणाम है कि हिंदी साहित्य के कमज़ोर उम्मीदवार भी उतने अंक हासिल कर लेते हैं जितने लोक-प्रशासन, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र जैसे विषयों के अच्छे उम्मीदवार भी नहीं कर पाते।
  • जिस प्रकार हिंदी साहित्य अत्यंत उपयोगी विषय है, उसी प्रकार संस्कृत, गुजराती, मराठी, पंजाबी और मैथिली आदि भाषाओं के साहित्य भी अत्यंत लाभकारी विषय हैं। उन्हें भी वे सभी फायदे हासिल हैं जो हिंदी साहित्य को है। अगर आप इनमें से किसी भाषा पर अच्छी पकड़ रखते हैं तो आपको बिना किसी द्वंद्व के उस विषय को चुन लेना चाहिये।

इतिहास तथा भूगोल (वैकल्पिक विषय) 

  • साहित्य के विषयों के तुरंत बाद हम इतिहास तथा भूगोल को स्थान देते हैं। 
  • इन विषयों का बड़ा लाभ यह है कि इनकी तैयारी से सामान्य अध्ययन का बड़ा हिस्सा अपने आप तैयार हो जाता है। 
  • इन दोनों विषयों की बड़ी भूमिका मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन में तो है ही, प्रारंभिक परीक्षा में तो इनके बिना सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 
  • इन विषयों में 5-7 महीनों का समय तो लगता है किंतु इनमें से लगभग 2-3 महीनों का समय सामान्य अध्ययन में बच भी जाता है। 

दर्शनशास्त्र (वैकल्पिक विषय) 

  • यह विषय छोटा, अवधारणात्मक तथा अंकदायी है। यदि आपकी पृष्ठभूमि इस विषय की है तो आपको इसे ज़रूर चुनना चाहिये। 
  • अगर आपकी पृष्ठभूमि इस विषय की नहीं है तो यह विषय तभी लिया जाना चाहिये जब आप सूक्ष्म अवधारणाओं को समझने में समस्या महसूस न करते हों।
  • इस विषय से सामान्य अध्ययन में तो मदद नहीं मिलती पर यदि  इस पर आपकी गहरी पकड़ है तो आप इसमें लगभग उतने ही अंक ला सकते हैं जितने हिंदी साहित्य या साहित्य के अन्य विषयों में मिलते हैं। 
  • इस विषय में अंकों की स्थिरता कम देखी जाती है अर्थात् अगर आपको इस वर्ष 270 अंक मिले हैं तो संभव है कि वैसी ही तैयारी से अगले वर्ष आपको सिर्फ 220 अंक मिलें। इसलिये यह विषय उन्हें ही लेना चाहिये जिनकी इसमें गहरी पकड़ हो और वे कठिन से कठिन प्रश्नों से भी आसानी से निपट सकें।

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UPSC में वैकल्पिक विषय कौन कौन से होते हैं? - upsch mein vaikalpik vishay kaun kaun se hote hain?

UPSC के लिए कौन सा वैकल्पिक विषय सबसे अच्छा है?

भूगोल IAS उम्मीदवारों के लिए सबसे लोकप्रिय वैकल्पिक विषयों में से एक है। जीएस 1 और सीएसई प्रारंभिक परीक्षा के साथ भूगोल वैकल्पिक पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण ओवरलैप इसकी लोकप्रियता के प्रमुख कारणों में से एक है।

यूपीएससी में सबसे अधिक स्कोरिंग वैकल्पिक विषय कौन सा है?

यदि हम तकनीकी रूप से समझें तो गणित सबसे अधिक स्कोरिंग विषय होगा, लेकिन कोई भी बिना किसी पूर्व अध्ययन पृष्ठभूमि के इसमें सफलता नही पा सकता।

यूपीएससी वैकल्पिक विषय कैसे चुनें?

वैकल्पिक विषय कैसा होना चाहिए:.
जिसके बारे में आप अधिक से अधिक परिचित हों।.
जो आपको अध्ययन के लिये उत्साहित करता हो।.
जिसमे अध्ययन स्तर का और अधिक अन्वेषण करने का अवसर हो।.
उस विषय की तैयारी के लिये कोचिंग संस्थान, अध्ययन सामग्री व आवश्यक पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हों।.

यूपीएससी में ऑप्शनल सब्जेक्ट क्या होता है?

लोकप्रिय ऑप्शनल उस श्रेणी में भूगोल, लोक प्रशासन, सामाजिक विज्ञान, इतिहास और मनोविज्ञान। लोक प्रशासन और भूगोल का सिलेबस बहुत ही सीमित होता है। इसे आप आसानी से 5 महीने में कवर कर सकते हैं। लोक प्रशासन के ज्यादातर टॉपिक का आप खुद अध्ययन कर सकते हैं।