गांधीवाद से आप क्या समझते हैं गांधीवाद की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए? - gaandheevaad se aap kya samajhate hain gaandheevaad kee pramukh visheshataon kee vivechana keejie?

राजनीति
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गांधीवाद से आप क्या समझते हैं गांधीवाद की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए? - gaandheevaad se aap kya samajhate hain gaandheevaad kee pramukh visheshataon kee vivechana keejie?

गाँधीवाद के पिता महात्मा गाँधी

गाँधीवाद महात्मा गाँधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गाँधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था।

सत्याग्रह[संपादित करें]

सत्य एवं आग्रह दोनो ही संस्कृत भाषा के शब्द हैं, जो भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान प्रचलित हुआ था, जिसका अर्थ होता है सत्य के प्रति सत्य के माध्यम से आग्रही होना।

सत्य[संपादित करें]

गाँधीवाद के बुनियादी तत्वों में से सत्य सर्वोपरि है;। वे मानते थे कि सत्य ही किसी भी राजनैतिक संस्था, सामाजिक संस्थान इत्यादि की धुरी होनी चाहिए। वे अपने किसी भी राजनैतिक निर्णय को लेने से पहले सच्चाई के सिद्धांतो का पालन अवश्य करते थे।

गाँधी जी का कहना था “मेरे पास दुनियावालों को सिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं है। सत्य एवं अहिंसा तो दुनिया में उतने ही पुराने हैं जितने हमारे पर्वत हैं।”[तथ्य वांछित]

सत्य, अहिंसा, मानवीय स्वतंत्रता, समानता एवं न्याय पर उनकी निष्ठा को उनकी निजी जिंदगी के उदाहरणों से बखूबी समझा जा सकता है।

कहा जाता है कि सत्य की व्याख्या अक्सर वस्तुनिष्ठ नहीं होती। गाँधीवाद के अनुसार सत्य के पालन को अक्षरशः नहीं बल्कि आत्मिक सत्य को मानने की सलाह दी गई है। यदि कोई ईमानदारीपूर्वक मानता है कि अहिंसा आवश्यक है तो उसे सत्य की रक्षा के रूप में भी इसे स्वीकार करना चाहिए। जब गाँधी जी प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान स्वदेश लौटे थे तो उन्होंने कहा था कि वे शायद युद्ध में ब्रिटिशों की ओर से भाग लेने में कोई बुराई नहीं मानते। गाँधी जी के अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होते हुए भारतीयों के लिए समान अधिकार की माँग करना और साम्राज्य की सुरक्षा में अपनी भागीदारी न निभाना उचित नहीं होता। वहीं दूसरी तरफ द्वतीय विश्वयुद्ध के समय जापान द्वारा भारत की सीमा के निकट पहुँच जाने पर गाँधी जी ने युद्ध में भाग लेने को उचित नहीं माना बल्कि वहाँ अहिंसा का सहारा लेने की वकालत की है।

अहिंसा[संपादित करें]

यह भी देखें: अहिंसा,

अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में भी किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी पीड़ा न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी का कोई नुकसान न करना।

ब्रम्हचर्य[संपादित करें]

यह भी देखें: ब्रम्हचर्य

खादी[संपादित करें]

उपवास व्यक्ति के अनुसार ही उत्तपन्न होता है|उपवास व्यक्ति मे शारीरिक अंगो मे तन्दुरस्ती लाता है|यह अनुकुल परिस्थितियो में करना लाभदायक होता हैं|

धर्म[संपादित करें]

यह भी देखें: भगवद गीता, धर्म, हिंदु धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म

गाँधीजी के अनुसार धर्म और राजनीति को अलग नही किया जा सकता है क्योंकि धर्म मनुष्य को सदाचारी बनने के लिए प्रेरित करता है । स्वधर्म सबका अपना अपना होता है पर धर्म मनुष्य को नैतिक बनाता है । सत्य बोलना, चोरी नहीं करना, परदु:खकातरता,दूसरों की सहायता करना आदी यही सभी धर्म सिखाते हैं । इन मूल्यों को अपनाने से ही राजनीति सेवा भाव से की जा सकेगी । गाँधीजी आडम्बर को धर्म नही मानते और जोर देकर कहते हैं कि मन्दिर मे बैठे भगवान मेरे राम नही है । स्वामी विवेकानंदजी के दरिद्र नारायण की संकल्पना को अपनाते हुए मानव सेवा को ही वो सच्चा धर्म मानते हैं । वास्तव मे उनका विश्वास है कि प्रत्येक प्राणी इश्वर की सन्तान हैं और ये सत्य है; सत्य ही ईश्वर है ।

नेहरू का भारत[संपादित करें]

यह भी देखें: सर्वोदय

स्वतंत्रता[संपादित करें]

यह भी देखें: रंगभेद, तियननमेन चौक का प्रदर्शन १९८९, अफ्रीकी-अमरीकी नागरिक अधिकार आंदोलन

"बिना सत्य कुछ भी नहीं"[संपादित करें]

वर्तमान गांधीवादी[संपादित करें]

अन्ना हज़ारे, नरेश कादयान

आलोचना एवं विवाद[संपादित करें]

यह भी देखें: भारत विभाजन, महात्मा गाँधी की हत्या

विभाजन की अवधारणा[संपादित करें]

सैद्धांतिक रूप से गाँधीजी भारत के विभाजन के खिलाफ रहे क्योंकि इससे उनके धार्मिक एकता की भावना को चोट पहुँचती थी[1] उन्होंने भारत के विभाजन के बारे में ६ अक्टूबर १९४६ को अपने पत्र हरिजन में लिखा था:

[पाकिस्तान की माँग] जैसा कि मुस्लीम लीग द्वारा रखी गई है पूर्ण रूप से गैर-इस्लामी है एवं मुझे इसे पापपूर्ण कहते हुए भी कोई संकोच नहीं। इस्लाम पूरी मानवता के भाईचारे एवं एकता के पक्ष में रहा है इसलिए जो भारत के टुकडे करके दो आपस में लडने वाले समूह पैदा करना चाहते हैं वे सही मायनों में न सिर्फ भारत बल्कि इस्लाम के भी दुश्मन हैं। चाहे वे मेरे टुकडे टुकडे ही क्यों न कर दें लेकिन वे मुझे किसी गलत चीज को सही मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकते[...] हमें अपनी दृष्टि छोडने की बजाय सभी मुसलमान भाइयों का दिल प्यार से जीतना होगा[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • गांधीवादी अर्थशास्त्र
  • गांधीगिरी
  • आंबेडकरवाद

सन्दर्भ सूची[संपादित करें]

टीका-टिप्पणी[संपादित करें]

  1. रीप्रिंट द इसेंशियल गाँधी: एन एन्थॉलजी ऑफ हिज राइटिंग्स ओन हिज लाइफ, वर्क ऐंड आइडियाज Archived 2007-07-02 at the Wayback Machine., लुइस फिशर, संपा., २००२ (रिप्रिंट संस्करण) पृ. १०६–१०८.
  2. रीप्रिंट द इसेंशियल गाँधी: एन एंथॉलजी ऑफ हिज राइटिंग्स ओन हिज लाइफ, वर्क ऐंड आइडियाज Archived 2007-07-02 at the Wayback Machine.लुई फिशर, संपा., २००२ (रीप्रिंट संस्करण) पृ. ३०८–९.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • गांधीदर्शन संक्षेप में
  • गांधीजी के आदर्श
  • आधुनिक काल में गांधीवाद की प्रासंगिकता
  • गाँधीवादी संस्थाओं की बदहाली[मृत कड़ियाँ]

गांधीवाद से आप क्या समझते हैं गांधीवाद की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

गांधीवाद के प्रमुख सिद्धांत हिंसा जीवन की पवित्रता तथा एकता के विपरीत है। 2. साध्य तथा साधन की पवित्रता गांधीजी का मत है कि साध्य पवित्र है तो उसे पा्रप्त करने का साधन भी पवित्र होना चाहिए इसलिए गांधीजी ने साध्य (स्वतंत्रता) प्राप्त करने के लिये पवित्र साधन (सत्य और अहिंसा) को अपनाया।

गांधीवाद से आप क्या समझते हैं?

गाँधीवाद महात्मा गाँधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गाँधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था।

गांधीवाद क्या है गांधी जी के शिक्षा के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए?

गांधीजी शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य अन्तिम वास्तविकता का अनुभव एवं आत्मानुभूति का ज्ञान मानते हैं। इस उद्देश्य के अन्तर्गत समस्त उद्देश्य सन्निहित हो जाते हैं। गांधीजी का मत था कि मनुष्य के जीवन का लक्ष्य सत्य अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति है।

गांधीगिरी से आप क्या समझते हैं?

गांधीगिरी एक पुराना शब्द है जो गांधीवाद के मूल्यों की ओर इशारा करता है जिसमें सत्याग्रह एवं अहिंसा सबसे मुख्य है। इस शब्द को लोकप्रिय रूप तब मिला जब २००६ में हिंदी फिल्म लगे रहो मुन्नाभाई प्रदर्शित हुई।