हमारे जीवन में हर पल कुछ ना कुछ ऐसा घटित होता रहता है। जिसे ज्योतिष के अनुसार एक संकेत के तौर पर देखा जा सकता है। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र और शकुन शास्त्र में कुछ पशु-पक्षियों का आपके जीवन में और आपके घर में आना शुभ माना जाता है। और वहीं दूसरी ओर कुछ पशु-पक्षियों का आपके जीवन और आपके घर में आना अशुभ संकेत माना जाता है। ऐसे ही गिलहरी बहुत ही चंचल जीव मानी जाती है। और गिलहरी अधिकतर घर में घूमती रहती है। खुले घरों में तो गिलहरी आपको घूमती हुई बहुत ही देखने को मिल जाती है। तो आइए आप भी जानें गिलहरी से जुड़े शुभ और अशुभ शकुन के बारे में जरुरी बातें। Show
गिलहरी का आपके घर में आना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि गिलहरी जब आपके घर में इधर-उधर फूदकती है। तो इसका मतलब सौभाग्य से होता है। अगर आपके घर में अभी तक बच्चे की किलकारियां नहीं गुंजी हैं तो गिलहरी आपके आंगन में आई है। तो आपको ये जल्दी ही खुशखबरी का संकेत देती है। और अगर वहीं आपके घर में गिलहरी या चिड़ियां अपना घोंसला बना लें तो उस घर में सुख, शांति के साथ ही धन की कोई कमी नहीं होती है। घर में चिड़िया का घोंसला बनाना भी शुभ शकुन माना जाता है। जिन घरों में चिड़ियाओं का घोंसला होता है वहां सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि गिलहरी अगर किसी के पैरों को छूकर भाग जाए और फिर दोबारा दिखाई ना दें तो यह बुरा संकेत माना जाता है। इसका सीधा मतलब होता है कि आपके जीवन में कोई कठिन समय आने वाला है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब त्रेता युग में भगवान राम का अवतार हुआ था। और उनकी धर्मपत्नी माता सीता का अपहरण लंकापति रावण ने कर लिया था। तो भगवान राम वानरों की मदद से लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर सेतु का निर्माण करवा रहे थे। और उस समय सारे वानर सेतु के निर्माण कार्य में लगे हुए थे। और भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ समुद्र के किनारे बैठकर यह सारा वाकया देख रहे थे। इसी दौरान भगवान श्रीराम ने देखा कि एक गिलहरी बार-बार रेत में लेटकर रेत के कण अपने शरीर पर चिपटा लेती है, और फिर सेतु पर जाकर अपने शरीर से सारे रेत के कण झाड़ देती है। इस प्रकार उसे ऐसा करते देखकर भगवान राम ने लक्ष्मण से पूछा कि ये गिलहरी क्या कर रही है। तो इस पर लक्ष्मण ने भगवान राम से कहा कि ये गिलहरी खेल का आनंद ले रही है। इस पर श्रीराम मुस्कुराये और उस गिलहरी को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम इस प्रकार क्या कर रही हो। इस सवाल को सुनकर गिलहरी ने भगवान राम से कहा कि इस सेतु को बनाने में मैं भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार योगदान दे रही हूं। हालांकि मुझे पता है कि मुझ जैसे छोटे प्राणी की कही गिनती भी नहीं है। परन्तु इस अधर्म और धर्म की लड़ाई में मैं भी अपना योगदान देना चाहती हूं। गिलहरी की इन बातों से प्रभावित होकर भगवान श्रीराम ने प्रेम पूर्वक उस गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरा। जिसके परिणाम स्वरूप गिलहरी की पीठ पर भगवान श्रीराम की अंगुलियों के निशान बन गए। और आज भी गिलहरी की पीठ पर काली-सफेद धारियां बनी होती हैं।
आइए देखते हैं सरल उपाय :- यह लेख संपूर्ण गिलहरी प्रजाति (स्कियुरिडे) के बारे में है। साधारणतया "गिलहरियों" के नाम से जानी जाने वाली प्रजाति के लिए वृक्षारोही गिलहरियाँ और अन्य अर्थों के लिए गिलहरी (स्पष्टतः) देखें.
गिलहरी की कई प्रजातियों में कालेपन की प्रावस्था पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के बड़े हिस्से में शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक आसानी से देखी जा सकने वाली गिलहरियाँ पूर्वी ग्रे गिलहरियों का कालापन लिया हुआ एक रूप है। गिलहरियाँ छोटे व मध्यम आकार के कृन्तक प्राणियों की विशाल परिवार की सदस्य है जिन्हें स्कियुरिडे कहा जाता है। इस परिवार में वृक्षारोही गिलहरियाँ, भू गिलहरियाँ, चिम्पुंक, मार्मोट (जिसमे वुड्चक भी शामिल हैं), उड़न गिलहरी और प्रेइरी श्वान भी शामिल हैं। यह अमेरिका, यूरेशिया और अफ्रीका की मूल निवासी है और आस्ट्रेलिया में इन्हें दूसरी जगहों से लाया गया है। लगभग चालीस मिलियन साल पहले गिलहरियों को पहली बार, इयोसीन में साक्ष्यांकित किया गया था और यह जीवित प्रजातियों में से पर्वतीय ऊदबिलाव और डोरमाइस से निकट रूप से सम्बद्ध हैं। व्युत्पत्ति[संपादित करें]शब्द स्कुँरिल पहली बार सन १३२७ में साक्ष्यांकित किया गया था, यह एंग्लो-नॉर्मन शब्द एस्कुइरेल से लिया गया है, जो कि प्राचीन फ्रेंच शब्द एस्कुरेल से लिया गया था और जिसमे कि लातिन शब्द स्कियुरस की भी झलक है यह शब्द भी ग्रीक भाषा से लिया गया था। यह शब्द स्वयं भी ग्रीक शब्द σκιουρος, स्किउरोस से आता है, जिसका अर्थ होता है छायादार या घनी पूंछ, जो कि इसके कई सदस्यों के घने उपांग की ओर संकेत करता है। मूल प्राचीन अंग्रेजी शब्द प्रतिस्थापित होने के पहले तक, ācweorna मात्र मध्ययुगीन अंग्रेजी (जैसे अक्वेरना) तक ही चलन में रह सका। प्राचीन अंग्रेजी शब्द साधारण जर्मनीय मूल का है, जो कि जर्मन शब्दों Eichhorn /Eichhörnchen और नार्वेइयन शब्द ekorn से सजातीय है। विशेषताएँ[संपादित करें]विशाल पूर्वी गिलहरी की खोपड़ी (जाति रैतुफा) पूर्ववर्ती जाइगोमेटिक क्षेत्र के उत्तम स्कियुरोमार्फास आकार पर ध्यान दें आमतौर पर गिलहरियाँ छोटी जंतु होती हैं, जिनका आकार अफ्रिकीय छोटी गिलहरी की 7–10 से॰मी॰ (0.23–0.33 फीट)लम्बाई और वज़न मात्र 10 ग्राम (0.35 औंस) से लेकर अल्पाइन मार्मोट तक होता है, जिनकी 53–73 से॰मी॰ (1.74–2.40 फीट) लम्बाई और वज़न 5 से 8 कि॰ग्राम (180 से 280 औंस) से होता है। आमतौर पर गिलहरियों का शरीर छरहरा, पूंछ बालों से युक्त और आँखें बड़ी होती हैं। उनके रोयें मुलायम व चिकने होते हैं, हालाँकि कुछ प्रजातियों में यह रोयें अन्य प्रजातियों की तुलना में काफी घने होते हैं। इनका रंग अलग-अलग हो सकता है, जो कि अलग-अलग प्रजातियों और एक ही प्रजाति के मध्य भिन्न भी हो सकता है। पिछले अंग आम तौर पर आगे के अंगों लम्बे होते हैं और उनके एक पैर में चार या पाँच उंगलियाँ होती है। उनके पैरों के पंजे में एक अंगूठा होता है, हालाँकि यह ख़राब रूप से विकसित होता है पैरों के नीचे अन्दर[1] की तरफ मांसल गद्दियाँ होती हैं। गिलहरी उष्णकटिबंधीय वर्षायुक्त वनों से लेकर अर्धशुष्क रेगिस्तान तक में रह सकती हैं और यह सिर्फ उच्च ध्रुवीय क्षेत्रों व् अतिशुष्क स्थानों पर रहने से बचती हैं। वे मुख्य रूप से शाकाहारी होती हैं और बादाम और बीजों पर जीवित रहती हैं, इनमे से कई कीड़ों को खाती हैं और कुछ तो छोटे रीढ़धारियों को भी. जैसा कि उनकी आँखों को देखकर पता चलता है, इनकी दृष्टि बहुत अच्छी होती है, जो कि वृक्षों पर रहने वाली प्रजातियों के लिए बहुत ज़रूरी है। चढ़ने और मजबूत पकड़ के लिए इनके पञ्जे भी बहुउपयोगी होते हैं[2]. इनमे से कई को अपने ह्रदय व् अंगों पर स्थित लोम के कारण स्पर्श का भी बहुत अच्छा इन्द्रियबोध होता है[1]. इनके दांत मूल कृन्तक बनावट के अनुसार होते हैं, जिसमे कुतरने के लिए बड़े दांत होते हैं जो कि जीवन पर्यंत विकसित होते रहते हैं और भोजन को अच्छी तरह से पीसने के लिए पीछे की तरफ कुछ अंतर, या दंतावाकाश पर चौघढ़ होता है। स्क्युरिड्स के लिए आदर्श दन्त माला साँचा:Dentition2होती है। व्यवहार[संपादित करें]गिलहरी वर्ष में एक या दो बार प्रजनन करती है और 3 से 6 हफ़्तों के बाद कई बच्चों को जन्म देती है, वह कितने बच्चों को जन्म देगी यह उनकी प्रजाति पर निर्भर करता है। उसके पैदा किये बच्चे नंगे, दन्तरहित, असहाय व अंधे होते हैं। लगभग सभी प्रजातियों में, केवल मादा ही बच्चों कि देखभाल करती है, जिन्हें 6 या 10 हफ़्तों का होने पर दूध पिलाया जाता है और पहले वर्ष के अंत तक वह भी यौन रूप से वयस्क हो जाते हैं। भूमि पर रहने वाली प्रजातियाँ आम तौर पर सामाजिक होती हैं, जो प्रायः सुविकसित स्थानों पर रहती हैं, किन्तु वृक्षों पर रहने वाली प्रजातियाँ एकांकी होती हैं।[1] उड़न गिलाहरियों के नवजात शिशुओं व उन उड़न गिलहरियों को छोड़कर जो कि अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं और जो गर्मियों के दौरान दिनचर के रूप में रह रही थी के अतिरिक्त सभी भूमि व् वृक्षों पर रहने वाली गिलहरियाँ विशिष्ट रूप से दिनचर होती हैं, जबकि उड़न गिलहरियाँ रात्रिचर होती हैं।[3] आहार[संपादित करें]खरगोश व् हिरन कि तरह, गिलहरियाँ सैल्लुलोस को पचा नहीं पाती और उन्हें प्रोटीन, कार्बोहाईद्रेट व् वसा के आधिक्य वाले भोजन पर निर्भर रहना पड़ता है। समशीतोष्ण क्षेत्रों में, गर्मियों का शुरूआती समय गिलहरियों के लिए सर्वाधिक कठिन होता है क्यूंकि उस समय बोये गए बादामों के अंकुर फूटते हैं और वह गिलहरियों के खाने के लिए उपलब्ध नहीं होते, इसके अतिरिक्त इस समय भोजन का कोई अन्य स्रोत भी उपलब्ध नहीं होता। इस दौरान गिलहरी मुख्य रूप से पेड़ों की कलियों पर निर्भर रहती हैं। गिलहरियों के आहार में मुख्यतः अनेकों प्रकार के पौधीय भोजन होते हैं जिसमे कि बादाम, बीज, शंकुल, फल, कवक व् हरी सब्जियां शामिल हैं। हालाँकि कुछ गिलहरियाँ मांस भी खाती है, विशेषकर तब जब कि वह अत्यधिक भूखी होती हैं[4]. गिलहरियाँ कीड़े, अंडे, छोटी चिड़िया, युवा साँपों व् छोटे क्रिन्तकों को खाने के लिए भी जानी जाती हैं। वास्तव में तो कुछ ध्रुवीय प्रजातियाँ पूर्ण रूप से कीड़ों के आहार पर ही निर्भर रहती हैं। भूमि पर रहने वाली गिलहरियों की कई प्रजातियों के द्वारा परभक्षी व्यवहार भी जानकारी में आया है, विशेषकर वह भू गिलहरियाँ जिनके शरीर पर तेरह धारियां पाई जाती हैं[5]. उदाहरण के लिए, बैले ने एक तेरह धारियों वाली भू गिलहरी को एक छोटे चूजे का शिकार करते देखा[6]. विसट्रेंड ने इसी प्रजाति की एक गिलहरी को तुरंत मारा गया सांप खाते हुए देखा[7]. व्हिटेकर ने 139, तेरह धारियों वाली गिलहरियों के पेट का परीक्षण किया और चार नमूनों में उन्हें चिड़िया का मांस मिला जबकि एक में छोटी पूंछ के छछूंदर के अवशेष मिले[8], ब्रैडली को सफ़ेद पूंछ वाली मृग गिलहरी के पेट के परीक्षण के दौरान, लगभग 609 नमूनों में से 10 प्रतिशत में कुछ प्रकार के रीडधारी जंतुओं के अवशेष मिले, जिनमे मुख्यतः कृन्तक व् छिपकलियाँ थे[9]. मोर्गार्ट (1985) ने एक सफ़ेद पूंछ वाली मृग गिलहरी को एक छोटे रेशमी चूहे को पकड़ते और खाते देखा.[10] वर्गीकरण[संपादित करें]रातुफिने परिवार की विशाल ग्रिज्ज्लड गिलहरियाँ (रतुफा मेक्रोरा) प्टेरोमायिनी के दक्षिणी उड़न गिलहरियाँ (ग्लुकोमिस वोलान्स) कल्लोस्किउरीनी परिवार की प्रेवोस्ट्स गिलहरियाँ (केलोस्किउरियस प्रेवोस्ती) ज़ेरिनी परिवार की धारीरहित भू गिलहरियाँ (जेरस रुतिलस) मर्मोतिनी परिवार की अल्पाईन मर्मोट (मर्मोटा मर्मोटा) इस समय पाई जाने वाली जीवित गिलहरियों को 5 उप परिवारों में बांटा गया है, जिसमे लगभग 50 वर्ग व् 280 प्रजातियाँ हैं। गिलहरी का सर्वाधिक पूर्ण जीवाश्म, हेसपेरोपीट्स, चाडरोनियन (प्राचीन इयोसीन, लगभग 35-40 मिलियन वर्ष पूर्व) के समय का है और आधुनिक उड़न गिलहरियों के सामान है।[11] नवीनतम इयोसीन से मायोसीन के दौरान, अनेकों ऐसी गिलहरियाँ थी जिन्हें आज की किसी भी जीवित प्रजाति के वंश के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता. कम से कम इनमे से कुछ संभवतः प्राचीनतम, बेसेल,"प्रोटो- गिलहरियाँ" का ही एक प्रकार थी, (आशय यह है कि इसमें जीवित गिलहरियों की संपूर्ण श्रृंखला से स्वसमक्रितिकता का अभाव था). इस प्रकार के प्राचीन व् पैतृक वितरण व् भिन्नता से यही संकेत मिलता है कि एक समूह के रूप में गिलहरियों का आरम्भ उत्तरी अमेरिका से हुआ था।[12] कभी-कभी मिलने वाले इन अल्पज्ञात जीवाश्मों के अतिरिक्त, जीवित गिलहरियों का जातिवृत्त अत्यंत स्पष्ट व् सरल है। इनके तीन प्रमुख वंश हैं, जिनमे से एक में रातुफिने (विशाल पूर्वी गिलहरियाँ) शामिल हैं। इसमें वह कुछ गिलहरियाँ भी शामिल हैं, जो उष्णकटीबंधीय एशिया में पाई जाती हैं। उष्णकटीबंधीय दक्षिणी अमेरिका की नव उष्णकटीबंधीय छोटी गिलहरी स्किउरिलिअने परिवार की एकमात्र जीवित सदस्य है। तृतीय वंश अब तक का सबसे विशाल वंश है और अन्य सभी उप परिवारों को सम्मिलित करता है;इसका वितरण लगभग बहुदेशीय है। यह इस परिकल्पना का समर्थन करता है कि सभी जीवित व् जीवाश्मों के माध्यम से पाई गयी गिलहरियों के उभयनिष्ठ पूर्वज उत्तरी अमेरिका में ही रहते थे, क्यूंकि वही से सर्वाधिक वंश उद्भवित हुए दिखाई पड़ते हैं-यदि उदहारण के लिए यह मान ले कि गिलाहरियों का जन्म यूरेशिया से हुआ था तो उनके प्राचीन वंशों के सुराग अफ्रीका से मिलने चाहिए, लेकिन अफ़्रीकी गिलहरियों को देखने से यह प्रतीत होता है कि उनका उद्भव काफी आधुनिक है।[12] गिलहरियों के मुख्य समूह को तीन भागों में बांटा जा सकता है, जिसके द्वारा अन्य उप परिवार प्राप्त होंगे। स्किउरिने परिवार में उड़न गिलहरियाँ (पेट्रोमाइनी) और स्किउरीनी शामिल हैं, जिसमे कि अन्य के साथ साथ अमेरिकी वृक्षारोही गिलहरियाँ भी शामिल हैं; स्किउरीनी को प्रायः एक अलग परिवार के रूप में देखा जाता था लेकिन अब उन्हें स्किउरिने की ही एक जनजाति के रूप में देखा जाता है। दूसरी ओर ताड़ गिलहरियों (टेमियास्किउरुस) को सामान्य तौर पर प्रमुख भू गिलहरियों के वंश में सम्मिलित किया जाता है, लेकिन दिखने में वह उड़न गिलहरियों के सामान ही भिन्न होती हैं; इसलिए कभी कभी उन्हें भी एक अलग जनजाति, टेमियास्किउरीनी के रूप में भी देखा जाता है[13]. चाहे जो भी हो, मुख्य गिलहरी वंश का त्रिविभाजन जैवभौगोलिक व् पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यत सुविधाजनक है, तीन उप परिवारों में से दो लगभग एक ही आकार के हैं, जिनमे से प्रत्येक में लगभग 70-80 के आसपास प्रजातियाँ हैं; तीसरा परिवार अन्य दोनों परिवारों का दुगना है। स्किउरिने के अंतर्गत वृक्षीय (पेड़ पर रहने वाली) गिलहरियाँ आती हैं, जो कि अमेरिका और कुछ सीमा तक यूरेशिया से हैं। दूसरी ओर उष्णकटिबंधीय एशिया में केल्लोस्किउरिने सर्वाधिक भिन्न है और इसके अंतर्गत वृक्षीय गिलहरियाँ भी सम्मिलित हैं, लेकिन उनका गठन काफी भिन्न है और वो अधिक "सुन्दर" दिखती हैं, जोकि संभवतः उनके अत्यंत रंगीन र्रोयें के प्रभाव के कारण है। ज़ेरिने- जो कि सर्वाधिक विशाल उपपरिवार है- वह भू गिलहरियों से बना है जिसमे कि अन्य के साथ साथ विशाल मर्मोट व् प्रसिद्द प्रेयरी श्वान भी शामिल हैं और अफ्रीका की वृक्षारोही गिलहरियाँ भी; यह अन्य गिलहरियों की अपेक्षा अधिक मिलनसार होती हैं, जबकि अन्य गिलहरियाँ एक साथ पास-पास समूहों में नहीं रहती हैं[12].
सन्दर्भ[संपादित करें]
उद्धृत साहित्य[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
गिलहरी को खाना खिलाने से क्या होता है?इससे शुक्र की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। -गिलहरियों को बाजरा, बिस्कुट और रोटी खिलाएं। इससे जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। -कुंडली में राहु-केतु की महादशा हो तो पशुओं को चारा डालें।
सुबह सुबह गिलहरी देखने से क्या होता है?सुबह-सुबह आपको यदि गिलहरी दिख जाए, तो इसका अर्थ है कि आपका पूरा तदन अच्छा बीतने वाला है। यदि सुबह-सुबह गिलहरी आपको सपने में नजर आ जाए, तो इसका अर्थ है कि आपको जल्दी ही कहीं से धन प्राप्ती होने वाली है। गिलहरी सुबह-सुबह घर में प्रवेश करती हुई नजर आ जाए तो इसका अर्थ है कि आपको उस दिन कोई शुभ समाचार मिलने वाला है।
घर में गिलहरी आने का क्या मतलब होता है?गिलहरी का घर में आना शुभ माना जाता है। कहा जाता है की जब गिलहरी घर में इधर उधर फुदकती है तो इसका मतलब सौभाग्य से होता है। अगर आपके घर में अभी तक बच्चे की किलकारियां नहीं गूंजी हैं और गिलहरी आपके अंगने में आई है तो यह आपको जल्द ही खुशखबरी का संकेत देती है।
गिलहरी को क्या क्या खिलाना चाहिए?गिलहरियों के आहार में मुख्यतः अनेकों प्रकार के पौधीय भोजन होते हैं जिसमे कि बादाम, बीज, शंकुल, फल, कवक व् हरी सब्जियां शामिल हैं। हालाँकि कुछ गिलहरियाँ मांस भी खाती है, विशेषकर तब जब कि वह अत्यधिक भूखी होती हैं. गिलहरियाँ कीड़े, अंडे, छोटी चिड़िया, युवा साँपों व् छोटे क्रिन्तकों को खाने के लिए भी जानी जाती हैं।
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