मित्र Show इसका अर्थ यह है कि:- Rahim ke dohe Explanation Class 91.रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। शब्दार्थ:- अर्थ: रहीम जी कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे को कभी भी झटके से तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि जब वह एक बार टूट जाता है। तो उसे दोबारा जोड़ने पर उसमें गांठ ही पड़ती जाती है। अर्थात प्रेम रूपी बंधन उस नाजुक धागे के समान है। जिसमें जरा सा तनाव (आपसी टकराव) पड़ने पर वह टूट जाता है और एक बार टूट जाने पर दोबारा उसे जोड़ने पर उसमें गांठ ही पड़ती है। जिससे कि वह रिश्ता फिर पहले जैसा नहीं रहता। 2.रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। शब्दार्थ:- अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि अपने मन की बिथा या दर्द को अपने मन तक ही सीमित रखना चाहिए। किसी दूसरे को नहीं बताना चाहिए। क्योंकि जब किसी दूसरे को उसके बारे में पता चलता है। तो वें उस दुख को बांटने के बजाय उसका मजाक ही उड़ाते हैं। 3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। शब्दार्थ: एकै = एक। साधे = साथ। मूलहिं = जड़ में। सींचिबो = सिंचाई करना। अघाय = तृप्त। अर्थ: इस श्लोक के माध्यम से कबीर जी कहते हैं कि एक बार में कोई एक ही कार्य करना चाहिए। एक से अधिक कार्यों को एक बार में करने से कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं होता अर्थात उन में से कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होगा। इसीलिए बुद्धिमान मनुष्य को एक बार में एक ही कार्य को करना चाहिए। क्योंकि बाकी भी उसी तरह बारी-बारी सिद्ध हो जाएंगे। जैसे जड़ में पानी डालने से ही किसी पौधे में फूल और फल आते हैं ना कि प्रत्येक फूल और फल में पानी देने से। 4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। शब्दार्थ: अर्थ: जब राम जी को वनवास मिला था तो वह चित्रकूट में रहने गए थे जो कि एक घनघोर वन में बहुत ही बीहड़ इलाका था। और श्री राम जी जैसे राजा के रहने योग्य नहीं था। लेकिन मजबूरी में उन्हें उस स्थान पर रहना पड़ा जहां पर अनेक बाधाए थी। इस श्लोक में रहीम जी यह कहना चाहते हैं। कि मनुष्य को हर समय विपदाओं के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि भविष्य में हमारा सामना किसी भी विपदा से हो सकता है। 5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे
आहिं। शब्दार्थ: अर्थ: रहीम जी कहते हैं की दोहों को उनके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि उनका आकार तो छोटा हो सकता है परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कहने में समर्थ होते हैं। जैसे कोई नट अपने बड़े शरीर को कुंडली मार कर सिमटा लेने के बाद छोटा दिखाई देता है। जिससे कि उसके सही आकार का अंदाजा नहीं लग पाता। वैसे ही किसी को उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि आकार से किसी की भी प्रतिभा का सही अंदाजा नहीं लगता है। 6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय। शब्दार्थ: अर्थ: रहीम जी कहते हैं ,एक कीचड़ का पानी जिसे हम गंदा समझते हैं उसमें पानी की मात्रा कम होने पर भी अनगिनत सूक्ष्मजीव अपनी प्यास बुझाते हैं। इसलिए यह कीचड़ का पानी धन्य है। लेकिन इसके विपरीत वह विशाल सागर का जल जिसकी मात्रा बहुत अधिक है। फिर भी वह जल खराब (व्यर्थ) है क्योंकि उस जल से किसी की कोई सहायता नहीं होती और ना किसी जीव की प्यास बुझ पाती है क्योंकि वह बड़ा होने के कारण उसका जल पीने योग्य नहीं। अतः कहने का मतलब यह है कि बड़ा होने से कोई लाभ नहीं अगर आप किसी की मदद नहीं कर सकते। 7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत। शब्दार्थ: नाद = आवाज़, संगीत की ध्वनि अर्थ: रहीम जी कहते हैं की जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत से खुश होकर उसके प्रति अपना शरीर तक न्यौछावर कर देता है। ठीक इसी प्रकार कुछ लोग दूसरे के प्रेम में इतना रम जाते हैं कि अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पशुओं से भी बदतर होते हैं जो दूसरों से तो बहुत कुछ ले लेते हैं लेकिन बदले में कुछ भी देने को तैयार नहीं होते हैं। यहां कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आपको कोई कुछ दे रहा है तो आप का भी फर्ज बनता है कि आप उसे बदले में कुछ ना कुछ दें। 8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। शब्दार्थ: अर्थ: रहीम जी कहते हैं कि जब एक बार कोई बात बिगड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद भी हालात या रिश्तों को पहले जैसी स्थिति में लाना मुश्किल होता है। उन बातों की कड़वाहट से रिश्तो में पहले जैसी मिठास नहीं रहती है। ठीक वैसे ही जैसे जब दूध फट जाए तो उसे मथने से मक्खन नहीं निकलता। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें कोई भी बात बोलने से पहले सौ बार सोचना चाहिए क्योंकि अगर कोई बात बिगड़ जाए तो उसे सुलझाना बहुत कठिन हो जाता है। 9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। शब्दार्थ: अर्थ: रहीम जी कहते हैं कि हमें किसी को उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए और छोटे आकार के कारण किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जहा छोटी चीज की जरूरत होती है वहां बड़ी चीज किसी काम नहीं आती। जैसे जहां सोने की जरूरत होती है वहां तलवार का कोई काम नहीं होता। इसलिए किसी भी चीज को कम नहीं आंकना चाहिए क्योंकि हर चीज का अपनी-अपनी जगह महत्व होता है। 10. रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय। शब्दार्थ: अर्थ: रहीम जी कहते हैं जिसके पास अपना धन नहीं है। उसकी विपत्ति में कोई भी सहायता नहीं करता। जैसे यदि तालाब सूख जाता है तो उसे सूर्य जैसे प्रतापी भी नहीं बचा पाता। अर्थात मेहनत से कमाया हुआ धन ही मुसीबत से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत के समय सभी दूरी बनाए रखते हैं और कोई भी साथ नहीं देता है। 11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून। शब्दार्थ: अर्थ: इस दोहे में पानी को तीन अर्थों का प्रयोग किया गया है। पहला अर्थ मनुष्य के लिए है इसका मतलब है विनम्रता। दूसरा अर्थ चमक के लिए है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ चूने से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम जी का कहना है की जिस: 1. मनुष्य में विनम्रता नहीं है। उनका कोई महत्व नहीं रह जाता है। कवि परिचय इस पाठ के कवि है रहीम। रहीम का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुरहाम खानखाना था। रहीम अरबी, फारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। इनका नातिपरक उक्तियों पर संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। रहीम मध्ययुगीन दरबारा संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय श्रृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज्यादा प्रचलित है, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है। रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतिया ‘रहीम ग्रथावली’ में समाहित हैं। प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाजिमी है, जिनका इनमें चित्रण है। More
रहीम के दोहे प्रश्न और उत्तर फटे दूध से क्या नहीं निकल सकता?रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।। इस दोहे का अर्थ यह है कि हमें समाज में और घर-परिवार में अच्छी तरह सोच-समझकर ही सभी से व्यवहार करना चाहिए। जिस प्रकार फटे हुए दूध से माखन नहीं निकाला जा सकता, ठीक उसी प्रकार बात बिगड़ने पर पुन: सुधारी नहीं जा सकती है।
फटे दूध का उदाहरण देकर क्या बताया गया है?हालांकि फटे दूध से हम पनीर और स्वादिष्ठ सब्जी बना सकते हैं. आमतौर पर फटे दूध का पानी लोग फेंक देते हैं.
माखन किसका प्रतीक है रहीम के दोहे?रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. अर्थ: मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा. 6. मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय.
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