छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम, 1908, एक भूमि अधिकार कानून है जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित झारखंड की आदिवासी आबादी के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। सीएनटी अधिनियम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह सामुदायिक स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए गैर-आदिवासियों को भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाता है। उत्तरी छोटा नागपुर, दक्षिण छोटा नागपुर और पलामू संभाग के क्षेत्र सीएनटी अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में
शामिल हैं। 1908 का छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम बिरसा आंदोलन की प्रतिक्रिया के रूप में आया। जॉन हॉफमैन, एक मिशनरी सामाजिक कार्यकर्ता, अधिनियम के खाका के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। सीएनटी अधिनियम को संविधान की 9वीं अनुसूची में सूचीबद्ध किया गया है। इसलिए, यह न्यायिक समीक्षा से परे है। पिछली बार 1955 में CNT अधिनियम में संशोधन किया गया था और इसमें कुल 26 बार संशोधन किया गया है। दुर्भाग्य से इसकी उपस्थिति ने आदिवासी भूमि क्षेत्रों के उल्लंघन को नहीं रोका है। 2016 में, झारखंड
भर में लंबित भूमि बहाली के मामलों की संख्या 20,000 थी। आदिवासी भूमि की बिक्री और खरीद सीएनटी अधिनियम के प्रावधानों 46 और 49 द्वारा नियंत्रित होती है। सीएनटी अधिनियम की धारा 46 (ए) आदिवासी भूमि को किसी अन्य आदिवासी सदस्य को हस्तांतरित करने की अनुमति देती है जो पुलिस के क्षेत्र में निवासी
है। उपायुक्त (डीसी) की अनुमति से स्थित होल्डिंग का स्टेशन किया जा सकता है। सीएनटी अधिनियम की धारा 49 (बी) अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को उपायुक्त (डीसी) की अनुमति से जिला क्षेत्र के भीतर समुदाय के सदस्यों को अपनी भूमि हस्तांतरित करने की अनुमति देती है। आदिवासियों से गैर-आदिवासियों को भूमि के हस्तांतरण की अनुमति केवल उद्योग या कृषि के लिए धारा 49 के तहत दी जाती है। ऐसे भूमि हस्तांतरण की अनुमति उपायुक्त के बजाय राजस्व विभाग द्वारा दी जाती है। ऐसे प्रतिबंध और
प्रक्रियाएं हैं जो लागू हैं जो सीएनटी अधिनियम के इस खंड में निर्दिष्ट हैं। यदि भूमि का उपयोग औद्योगिक या सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे स्कूलों और अस्पतालों के लिए नहीं किया जाता है, तो सरकार भूमि हस्तांतरण को सीएनटी अधिनियम के अनुसार वापस ले सकती है। सीएनटी अधिनियम को 1962 में बिहार सरकार द्वारा संशोधित किया गया था। इस सीएनटी अधिनियम संशोधन में "आर्थिक रूप से कमजोर जातियां
(ईडब्ल्यूसी)" शामिल हैं जो सीएनटी अधिनियम के प्रावधानों में एससी और ओबीसी श्रेणी से संबंधित हैं। मूल सीएनटी अधिनियम में, केवल अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की भूमि अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आती थी, और भूमि हस्तांतरण की शक्ति सही मालिक के पास निहित थी। उन पिछड़े वर्गों की सूची जिनकी भूमि संशोधन अधिसूचित होने के बाद सीएनटी अधिनियम के तहत प्रतिबंधित थी। style="font-weight:400;">हाल ही में जनवरी 2012 में, झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि सीएनटी अधिनियम
के प्रावधान जनजातियों और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू होते हैं और वह झारखंड सरकार को अपनी वास्तविक भावना से कार्रवाई का पालन करना होगा। न्यायालय द्वारा ऐसा कहने का कारण यह था कि आदिवासियों के संबंध में सीएनटी अधिनियम का पालन किया गया था लेकिन एससी/बीसी के प्रावधानों को शायद ही कभी लागू किया गया था। छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम-सीएनटी अधिनियम आदिवासी लोगों को उनकी भूमि पर अधिकार
देने और उनके भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। हालांकि, सीएनटी अधिनियम के प्रावधानों का सरकार द्वारा क्रियान्वयन सही नहीं रहा है। आदिवासी भूमि के कृषि या उद्योगों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने के कई मामले वर्तमान में मौजूद हैं। जनहित को देखते हुए जनजातीय भूमि के अधिग्रहण की राज्य की शक्ति के कारण जनजातीय भूमि के बड़े हिस्से को भी अलग कर दिया गया है। Was this article useful? 😃 (2) 😐 (0) 😔 (2) Recent Podcasts
(1908 का बंगाल अधिनियम सं. VI) (11 नवम्बर, 1908) (15 नवम्बर, 2014 तक यथा उपांतरित) कुल अध्याय 19, कुल धारा 271 1. इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 है। 2. इसका प्रसार
उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर, पलामू तथा कोल्हान प्रमंडलों पर है, जिनमें वे क्षेत्र या उन क्षेत्रों के भाग भी शामिल होंगे जिनमें बिहार-उड़ीसा नगरपालिका अधिनियम (बिहार एण्ड उड़ीसा म्युनिसिपल ऐक्ट), 1922 (बिहार-उड़ीसा अधिनियम VII, 1922) के अधीन कोई नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र समिति गठित हो अथवा जो किसी छावनी के भीतर पड़ते हों। 1. अनुसूची ‘क’ में विनिर्दिष्ट अधिनियमों और
अधिसूचना को, एतद्द्वारा छोटानागपुर प्रमंडल में निरसित किया जाता है। 2. अनुसूची ‘ख’ में विनिर्दिष्ट अधिनियमों को एतद्द्वारा धनबाद जिले में तथा सिंहभूम जिले के पटमदा, इचागढ़ और चांडिल थानाओं में निरसित किया जाता है। इस अधिनियम में, जब तक कोई बात विषय या संदर्भ के विरूद्ध न हो – 1. ‘कृषि-वर्ष‘ से अभिप्रेत है वह वर्ष जो किसी स्थानीय क्षेत्र में कृषि प्रयोजनों के लिए
प्रचलित हो, और ऐसा वर्ष क्रमशः उस तारीख से प्रारंभ और उस तारीख को समाप्त समझा जायेगा, जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निर्देशित करे। आयुक्त या न्यायिक आयुक्त के कृत्यों का निर्वहन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त कोई अन्य व्यक्ति भी है। 2. ‘उप कलेक्टर’ के अंतर्गत वह सहायक कलेक्टर और अवर उपकलेक्टर भी आता है जो राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन उप कलेक्टर के किन्हीं कृत्यों के
निर्वहन के लिए विशेष रूप से सशक्त हो; 3. इस अधिनियम के किसी उपबंध में ‘उपायुक्त’ के अंतर्गत निम्नलिखित भी है- . (क) कोई राजस्व अधिकारी या उप-कलेक्टर, जो उक्त उपबंध के अधीन उपायुक्त के किसी कृत्य का निर्वहन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त हो, और (ख) कोई उप-कलेक्टर जिसे उपायुक्त, साधारण या विशेष आदेश द्वारा उस उपबंध के अधीन अपने किसी कृत्य का अंतरण कर सकेगा। 4.
‘वन-उपज’ के अंतर्गत निम्नलिखित हैं, चाहे वे वन से लिये गये हों या नहीं – (क) लकड़ी, काठकोयला (चारकोल), कूचुक (रबर), कत्था, लकड़ी, तेलधूना (रेजिनी प्राकृतिक वार्निश, छाल, लाह, महुआ, फूल तथा हरीतकी (माइरो-बालन)। (ख) वृक्ष तथा पत्ते, फूल तथा फल और वृक्षों के अन्यान्य सभी भाग या उपज जो इसमें इसके पूर्व उल्लिखित नहीं हैं। (ग) पौधे (जिनके अंतर्गत घास, लता, वल्लरी, सरकंडा और काई आती है)। जो वृक्ष न हों
और ऐसे पौधों के सभी भाग या उपज; (घ) जंगली जानवर तथा चमड़े, हाथी दांत, सींग, हड्डियाँ, रेशम, कोया, मधु और मोम तथा पशुओं के सभी अंग या उन से होनेवाले उत्पादन, तथा (ङ) पीट (Peat), तलमृदा (Surface Soil), चट्टान, तथा खनिज [जिनके अंतर्गत लौह पत्थर (Iron Stone) कोयला, चिकनी मिट्टी, बालू, चूना पत्थर भी आते हैं], जब ये किसी व्यक्ति द्वारा अपने निजी उपयोग के लिए लिये जाएँ। 12.
‘जोत’ से अभिप्रेत है किसी रैयत द्वारा धारित एक या अनेक भूखंड जो पृथक् काश्तकारी की विषयवस्तु हो। 13. ‘कोड़कर’ से अभिप्रेत है वह भूमि चाहे वह जिस किसी नाम से स्थानीय रूप में ज्ञात हो, जैसे बहवाला, खंडवत, जलसासन या अरियत जिसे मुख्यतः धान की खेती के लिए कृत्रिम रूप से चौरस किया गया हो या पुश्ता बनाया गया हो और जो (क) पहले जंगल, बंजर या अनजुती थी, या जुती अधित्यका थी, अथवा जो पहले तो जुती
थी, किन्तु अब प्रतिरोपित धान की खेती के लिए अयोग्य हो गयी हो, तथा (ख) भू-स्वामी से भिन्न किसी कृषक द्वारा या (भू-स्वामी से भिन्न) किसी हितपूर्वाधिकारी द्वारा खेती के लिए तैयार की गयी हो, 14. ‘भू-स्वामी’ से अभिप्रेत है वह व्यक्ति, जिसके तुरंत अधीन काश्तकार भूमि धारण करता है और इसके अंतर्गत सरकार भी आती है। 15. ‘जंगल संपत्ति’ के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती
है। 16. ‘मुंडारी खूटकट्टीदार काश्तकारी’ से अभिप्रेत है मुंडारी खूटकट्टीदार का हित। 17. लगान के प्रसंग में व्यवहृत ‘भुगतान करना’ ‘भुगतेय‘ और ‘भुगतान से परिदान करना’ ‘परिदेय‘ और ‘परिदान’ आता है। 18. ‘स्थायी भूधृत्ति’ से अभिप्रेत है वह भूधृत्ति जो वंशगत है और जो सीमित काल के लिए धारित नहीं है। 19. ‘स्थावर
शर्त’ से अभिप्रेत है लगान से भिन्न भूमि के अधिभोग से अनुलग्न शर्त या सेवाएं और इसके अंतर्गत काश्तकार द्वारा भू-स्वामी को संदेय रकमत तथा प्रत्येक महतूत मांगन और मदद तथा इस प्रकार की प्रत्येक अन्य मांग आती है. चाहे उसका जो भी अभिधान हो और चाहे वह नियमित रूप से आवर्ती हो या सविरामी हो। 20. ‘विहित्त‘ से अभिप्रेत है राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बने नियम द्वारा विहित्त। 21.
स्वत्वधारी से अभिप्रेत है वह व्यक्ति जो किसी संपदा या संपदा खण्ड को न्यास के रूप में या स्वयं अपने ही फायदे के लिए स्वाधिकृत किए हो। 22. ‘रजिस्ट्रीकत‘ से अभिप्रेत है दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत। 23. ‘लगान‘ से अभिप्रेत है रैयत द्वारा अपने भू-स्वामी को, रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग मद्दे, धन या वस्तु रूप
में जो कुछ भी विधितः संदेय है और इसके अंतर्गत (व्यक्तिगत सेवा से भिन्न) ऐसे सभी बकाये आते हैं जो तत्समय प्रवृत्त किसीअधिनियमिति के अधीन उसी प्रकार वसूलीय हो मानों वे लगान हों। 24. ‘पुर्नग्राह्य भूधृत्ति’ से अभिप्रेत है वह भूधृत्ति जो इस शर्त के अध्यधीन धारित हो कि वह – (क) मूल अनुदानग्रहीता के निकाय की नर-परंपरा में नर-वारिस के न होने पर, अथवा (ख) इस खंड के उप-खंड ‘क’ में निर्दिष्ट से भिन्न किसी निश्चित
आकस्मिकता के घटित होने पर। अनुदाता की संपदा में व्यपगत हो जायेगी और उसके या उसके हक-उत्तराधिकारी द्वारा पुर्नग्राह्य होगी। 25. इस अधिनियम के किसी उपबंध में ‘राजस्व पदाधिकारी’ से अभिप्रेत है ऐसा अधिकारी जिसे राज्य सरकार उस उपबंध के अधीन राजस्व पदाधिकारी के किन्हीं कृत्यों के निर्वहन के लिए नियुक्त करे। 26. ‘काश्तकार‘ से अभिप्रेत है वह व्यक्ति, जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन
भूमि धारण करता हो और जो, अथवा यदि कोई विशेष संविदा न हो तो, उस भूमि के लगान का भुगतान उसी व्यक्ति को करने का दायी हो। 27. ‘भूधृत्ति‘ से अभिप्रेत है भू-धारक का हित और इसके अंतर्गत उप-भूधृत्ति आती है, किन्तु मुंडारी खुंटकट्टीदारी काश्तकारी नहीं आती है। 28. ‘ग्राम‘ से अभिप्रेत है – (क) किसी ऐसे स्थानीय क्षेत्र में, जिसमें तत्समय
प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन सर्वेक्षण किया जा चुका हो और अधिकार-अभिलेख तैयार किया जा चुका हो, वह क्षेत्र जो ऐसे सर्वेक्षण तथा अभिलेख तैयार करने के लिए अंतिम रूप से अंगीकृत ग्राम-मैप सक्षम अधिकारिता के न्यायालय के विनिश्चयों, यदि कोई हो, द्वारा बाद में यथोपांतरित एक ही बाहरी सीमा के भीतर सम्मिलित है। (ख) जहां ऐसी किसी अधिनियमिति के अधीन सर्वेक्षण नहीं किया गया हो तथा अधिकार-अभिलेख तैयार नहीं किया गया हो, वहां ऐसा क्षेत्र जिसे
उपायुक्त, आयुक्त की मंजूरी से, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा ग्राम के रूप में गठित घोषित करे। 29. ‘ग्राम मुखिया‘ से अभिप्रेत है किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया, चाहे वह मानकी या प्रधान या मांझी या अन्य नाम से ज्ञात हो अथवा ठीकेदार या इजारादार जैसे गोलमोल अभिधान में ज्ञात हो। स्पष्टीकरण- परिभाषा में ‘ग्राम‘ के अंतर्गत ग्राम का एक भाग भी आता है, और 30. ‘स्थायी
बंदोबस्त’ से अभिप्रेत है 1793 वर्ष में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त और सिंहभूम जिले के सरायकेला और खरसावां अनुमंडल के भीतर समाविष्ट क्षेत्र के संबंध से अभिप्रेत है किसी भी ऐसी विधि के अधीन जो सरायकेला और खरसावां (विधि) अधिनियम, 1951 के प्रारंभ के ठीक पूर्व उक्त क्षेत्रों में प्रवृत्त थी, तैयारी किया गया और अंतिम रूप से प्रकाशित अधिकार-अभिलेख। 1. भू-धारक, जिसमें उप-भू धारक भी सम्मिलित हैं। 2. रैयत, यथा (क) अधिभोगी रैयत, अर्थात् ऐसे रैयत, जिन्हें अपने रैयत द्वारा धारित भूमि में अधिभोगाधिकार हो। (ख) अनधिभोगी रैयत, अर्थात् ऐसे रैयत, जिन्हें ऐसा अधिभोगाधिकार न हो. तथा (ग) ऐसे रैयत, जिन्हें खुंट की अधिकार प्राप्त हो। 3. दर रैयत, अर्थात् ऐसा
काश्तकार, जो चाहे अव्यवहित रूप से या व्यवहित रूप से रैयत के अधीन धारण करता हो, तथा 4. मुंडारी खुंट कट्टीदार ‘भू-धारक’ से प्राथमिक तौर पर अभिप्रेत है वह व्यक्ति जिसने स्वत्वधारी से या किसी अन्य भू-धारक से लगान तहसील करने या उसपर काश्तकारों को स्थापित कर खेती में लाने के प्रयोजनार्थ भूमि धारण करने का अधिकार अर्जित
किया हो, और इसमें- (क) उन व्यक्तियों के हित-उत्तराधिकारी, जिन्होंने ऐसा अधिकार अर्जित किया हो, तथा (ख) छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869 (1869 का बंगाल अधिनियम, संख्या-II) के अधीन तैयार एवं संपुष्ट रजिस्टर में प्रविष्ट भू-धारक शामिल हैं, किंतु इसमें मुंडारी खुंट कट्टीदार शामिल नहीं हैं। 1. “रैयत‘ से प्राथमिक तौर पर ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसने
स्वयं या अपने परिवार के सदस्यों द्वारा या भाड़े के सेवकों द्वारा या भागीदारों की सहायता से खेती करने प्रयोजनार्थ भमि धारण करने का अधिकार अर्जित किया हो, और इसके अंतर्गत उन व्यक्तियों क हित-उत्तराधिकारी भी आते हैं, जिन्होंने ऐसा अधिकार अर्जित किया हो, किन्तु मुंडारी खुट कट्टीदार नहीं आते हैं। 2. किसी व्यक्ति को तब तक रैयत नहीं समझा जायेगा जब तक कि वह या तो अव्यवहित रूप से स्वत्वधारी के अधीन या अव्यवहित रूप से भू-धारक के अधीन या अव्यवहित रूप से मुंडारी खुंट कट्टीदार के अधीन भूमि धारण न करता हो। 3. यह अवधारित करते समय कि कोई काश्तकार भू-धारक है या रैयत, न्यायालय निम्नलिखित पर ध्यान देगा (क) स्थानीय रूढ़ि तथा (ख) वह प्रयोजन जिसके लिए काश्तकारी का अधिकार मूलतः अर्जित किया गया था। धारा-7 : खुंट कट्टी अधिकारयुक्त रैयत का अर्थ-1. ‘खुंट कट्टी अधिकारयुक्त रैयत‘ से अभिप्रेत है वह रैयत जिसे उस भूमि पर, जो ग्राम के मूल प्रवर्तक या उसकी नरपरंपरा के वंशजों द्वारा जंगल से कृषि योग्य बनायी गयी है, अधिभोग या अस्तित्वयुक्त हक रखता हो, अथवा यदि वह रैयत किसी ऐसे परिवार का सदस्य हो जिसने ग्राम का प्रवर्तन किया है, तो उसकी नरपरंपरा के वंशज अथवा ऐसे परिवार के किसी सदस्य की नरपरंपरा का कोई वंशज। परंतु किसी भी रैयत को किसी भूमि में खुंटकट्टी अधिकार का होना तब तक नहीं समया जायेगा, जब तक कि उसने और उसके सभी हक पूर्वाधिकारियों ने उस भूमि को ग्राम के मूल प्रवर्तकों से विरासत में धारित किया हो या हक अभिप्राप्त किया हो। 2. इस अधिनियम की किसी बात से किसी ऐसे व्यक्ति के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा जिसने इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व खुंट कट्टीदार काश्तकारी में विधिपूर्ण हक अर्जित किया हो। धारा-8 : मुंडारी खुंट कट्टीदार का अर्थ-मुंडारी खुंट कट्टीदार से अभिप्रेत है वह मुंडारी जिसने स्वयं अपने परिवार के नर सदस्यों द्वारा जंगल भूमि के उपर्युक्त प्रभागों को जोत में लाने के प्रयोजनार्थ उस भूमि को धारित करने का अधिकार अर्जित किया हो, और उसके अंतर्गत निम्नलिखित भी आते हैं (क) ऐसे किसी मुंडारी की नरपरंपरा का नर वारिस, जब उनका ऐसी भूमि पर कब्जा हो या उस पर कोई अस्तित्वयुक्त हक हो, तथा (ख) ऐसी भूमि के किसी ऐसे प्रभाग के विषय में, जो ऐसे मुंडारी या उसकी नरपरंपरा के वंशजों के कब्जे में लगातार रहा हो, के वंशज। अध्याय-3 : भू-धारकधारा-9 : भू-धारक लगान वृद्धि के लिए कब दायी न होगा-
धारा-9 (क) : भू-धारक या ग्राम मुखिया के लगान की वृद्धि.- 1. जहां काश्तकारी के जारी रहने के दौरान ग्राम मुखिया या भू-धारक का जाने के दायित्व के अधीन हो तो ऐसी वृद्धि केवल उपायुक्त के पास दिए गए आवेदन पर पारित आदेश सेअथवा अध्याय 12 या अध्याय 15 के अधीन राजस्व अधिकारी के ही की जायेगी। 2. पक्षकारों के बीच किसी विधिमान्य संविदा के अध्यधीन उत्तरोत्तर या अन्यथा, वृद्धि का आदेश, सामीप्य में इस प्रकार की काश्तकारियाँ धारित करने वाले व्यक्तियों द्वारा देय रूढिक दर पर या, जहां ऐसी कोई रूढ़िक दर विद्यमान न हो वहां उस दर पर, जो उचित और साम्यिक हो, दिया जा सकेगा। उचित और साम्यिक लगान क्या होगा यह अवधारित करते समय काश्तकारी की उत्पत्ति और इतिवृति पर भी ध्यान दिया जायेगा। 3. जब किसी भू-धारक या ग्राम मुखिया का लगान बढ़ा दिया जाए तब राजस्व अधिकारी के अध्याय 12 या 15 के अधीन पारित आदेश के सिवाय, उसे 15 वर्षों की कालावधि तक पुनः बढ़ाया न जायेगा। 4. इस धारा की कोई बात किसी अस्थायी भू-धारक पर या किसी ऐसे भू-धारक पर लाग न होगी जिसकी भूधुत्ति का लगान उस संविदा में, जिसके द्वारा भूधृत्ति सृजित की गयी हो, अभिव्यक्त सिद्धांत के अनुसार फेर बदल के अध्यधीन हो। धारा-10 : कतिपय भुईहरों का लगान वृद्धि के लिए दायी न होगा –ऐसा कोई भुईहर, जिसकी भूमि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1869 (1869 का बंगाल अधिनियम, सं. II) के अधीन तैयार एवं पुष्ट किसी रजिस्टर में प्रविष्ट हो, अपनी भूधृत्ति के लगान में वृद्धि का दायी न होगा। धारा-11 : भूधृत्तियों के कतिपय अंतरणों का रजिस्ट्रीकरण-1. जब किसी भूधृत्ति या उसके किसी भाग का अंतरण उत्तराधिकार, विरासत, विक्रय, दान या विनिमय द्वारा किया जाए तो अंतरिती या उसका हक- उत्तराधिकारी अंतरण को उस भू-स्वामी के कार्यालय में रजिस्ट्रीकृत करायेगा जिसे भूधृत्ति या उसके प्रभाग का लगान भुगतेय हो। 2. भू-स्वामी, तत्प्रतिकूल पर्याप्त कारणों के अभाव में, ऐसे सभी अंतरणों का रजिस्ट्रीकरण होने देगा। 3. जब कभी भू-स्वामी के कार्यालय में ऐसा कोई अंतरण रजिस्ट्रीकृत किया जाय तो वह निम्नलिखित रकम की एक रजिस्ट्रीकरण फीस उद्गृहीत करने का हकदार होगा : (क) जब भू-धृत्ति या उसके प्रभाग की बाबत लगान भुगतेय हो तो उसके वार्षिक लगान के दो प्रतिशत की फीस; परंतु यह है कि ऐसी कोई फीस एक रुपया से कम या एक सा रुपए से अधिक न होगी, तथा। (ख) जब भू-धृत्ति या उसके प्रभाग की बाबत लगान भुगतेय न हो तो दो रुपए की फीस धारा-12: भूधृत्ति के अंतरण का रजिस्ट्रीकरण अनुज्ञात करने से भू-स्वामी द्वारा इन्कार करने पर प्रक्रिया-यदि कोई भू-स्वामी धारा 11 में यथा उल्लिखित ऐसा कोई रजिस्ट्रीकरण करने से इंकार कर तो अंतरिती या उसका हक-उत्तराधिकारी उपायुक्त के पास आवेदन कर सकेगा और, तदुपरात उपायुक्त, भू-स्वामी पर तामील की जानेवाली सूचना जारी करने के पश्चात ऐसी जांच करगा जैसा वह आवश्यक समझे और यदि ऐसे इन्कार के लिए पर्याप्त आधार दर्शित न किये गय हों तो आदेश पारित करेगा जिसमें यह घोषित रहेगा कि अंतरण रजिस्ट्रीकृत समझा जाए। धारा-13 : भूधृत्ति का विभाजन या लगान का वितरण-1. किसी भूधत्ति या उसके भाग का विभाजन अथवा किसी भधत्ति या उसके भाग की बावत देय लगान वितरण, भू-स्वामी पर आबद्ध कर होगा यदि अंतरण ऐसे विभाजन या वितरण की एक सूचना जो विहित विशिष्टियों से युक्त हो, रजिस्ट्रीकृत डाक से भू-स्वामी के पास भेज दें। परंतु भू-स्वामी, यदि वह उक्त विभाजन या लगान के वितरण पर आपत्ति करे तो सूचना की तारीख से विहित कालावधि के भीतर उपायुक्त के पास उचित विभाजन या लगान के वितरण के लिए आवेदन कर सकेगा। 2. उप-धारा (1) के परंतुक के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर उपायुक्त, भू-स्वामी सहित पक्षकारों को उस तारीख की सूचना विहित रीति से देगा जिस तारीख को वह आवेदन की सुनवाई करना चाहता हो, और पक्षकारों की सुनवाई तथा ऐसी जांच जो वह उचित समझे, कर लेने के बाद उपायुक्त ऐसी रीति से भूधृति को विभाजित या लगान को वितरित करेगा जिसे वह उचित और साम्यिक् समझे। 3. उप-धारा (2) के अधीन उपायुक्त का आदेश ऐसी तारीख से प्रभावी होगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट हो। धारा-14. पुनर्ग्रहणीय भूधत्ति के पुनर्ग्रहण पर विल्लंगमों में (इनकम्ब्रांसेज) का वातिलीकरण-1. किसी पुनर्ग्रहणीय भूधृत्ति के पुनर्ग्रहण पर अनुदाता या उसके हित उत्तराधिकारी की सम्मति या अनुज्ञा के बिना अथवा उसमें ही अपने हित को परिसीमित करते हुए प्राप्तकर्ता या उसके किसी उत्तराधिकारी द्वारा सृजित प्रत्येक धारणाधिकार, उप-काश्तकारी, सुखाचार या अन्य अधिकार या हित, निम्नलिखित के सिवाय वातिलीकृत किया गया समझा जायेगा : (क) किसी छावनी के भीतर किसी भूमि में सरकार का कोई अधिकार; (ख) इस अधिनियम द्वारा या किसी स्थानीय रूढ़ि या प्रथा द्वारा प्रदत्त रैयत या कृषक का उसकी भूमि या जोत में कोई अधिकार। (ग) किसी पवित्र उद्यान दखलकृत भूमि धारण करने का अधिकार, (घ) कोई भी मुंडारी खुंटकट्टीदारी काश्तकारी। (घ.घ.) छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869 (1869 का बंगाल अधिनियम सं. II) में यथापरिभाषित कोई भुईहरी भूधृत्ति; (ड) किसी ग्राम मुखिया का उसके कार्यालय या भूमि में कोई अधिकार, तथा (च) कोई आवश्यक सुखाचार। उप-धारा (1) के खंड (क) की कोई बात पुनर्ग्रहणीय भूधृत्ति के किसी प्राप्तिकर्ता या उसके किसी उत्तराधिकारी को खनिजों पर ऐसा कोई अधिकार प्रदत्त नहीं करेगा जो उसे अन्यथा प्राप्त न हो। धारा-15 : भू-स्वामी के अधिकारों की व्यावृत्ति-धारा 11 के अधीन किसी अंतरण का मात्र रजिस्ट्रीकरण या तद्धीन रजिस्ट्रीकरण फीस की मात्र प्राप्ति अथवा धारा 12 के अधीन उपायुक्त द्वारा आदेश के पारित किये जाने में धारा 14 के अर्थ के अंतर्गत अंतरण करने की सम्मति या अनुज्ञा अंतहित नहीं समझी जायेगी और भू-स्वामी ऐसे किसी अंतरण के बंधेजों और शर्तों से आबद्ध न होगा। अध्याय-4 : अधिभोगी रैयत (सामान्य)धारा-16 : विद्यमान अधिभोगाधिकार( Occupancy rights) का बना रहना-1. ऐसे प्रत्येक रैयत को, जिसे इस अधिनियम के प्रारंभ होने के तुरंत पूर्व किसी अधिनियमिति के प्रवर्तन द्वारा या स्थानीय रूढि या प्रथा द्वारा या अन्यथा किसी भूमि में अधिभोगाधिक हो, उस भूमि में इस तथ्य के होने पर भी अधिभोगाधिकार होगा कि उसने उस भूमि पर बारह वर्ष की कालावधि के लिए न तो खेती की है और न उसे धारित ही किया है। 2. किसी ऐसे क्षेत्रों या क्षेत्र के भाग, जो बिहार-उड़ीसा नगरपालिका अधिनियम, 1922 (1922 का बिहार-उड़ीसा अधिनियम, संख्या-VII) के उपबंधों के अधीन एक नगरपालिका के रूप में गठित किया गया हो अथवा जो किसी छावनी में हो, धारा 1 की उप-धारा (2) के अधीन अधिसूचना द्वारा, अपवर्जन से ऐसे क्षेत्र के विषय में तत्पर्व अर्जित, उपगत या प्रोद्भूत अधिकार, बाध्यता या दायित्व पर प्रभाव न पड़ेगा। धारा-17 : बंदोबस्त रैयत की परिभाषा-1. ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् किसी ग्राम में स्थित भूमि को पूर्णत: या अंशतः पट्टे पर या अन्यथा रैयत के रूप में लगातार बारह वर्षों की कालावधि तक धारित किया हो, उस कालावधि के अवसान पर उस ग्राम का बंदोबस्त रैयत हुआ समझा जायेगा। 2. इस धारा के प्रयोजनार्थ इस बात के होने पर भी कि किसी व्यक्ति द्वारा धारित विशिष्ट भूमि भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न-भिन्न थी, यह समझा जायेगा कि उसने उस ग्राम में लगातार भूमि धारित की है। 3. इस धारा के प्रयोजनार्थ किसी व्यक्ति द्वारा कोई भूमि रैयत के रूप में धारित समझी जायेगी, यदि जिस व्यक्ति का वह व्यक्ति वारिस हो वह उसे रैयत के रूप में धारित करता हो। 4. दो या अधिक सह-अंशधारी द्वारा रैयत जोत के रूप में धारित भूमि इस धारा के प्रयोजनार्थ ऐसे प्रत्येक सह-अंशधारी द्वारा रैयत के रूप में धारित समझी जायेगी। 5. कोई व्यक्ति किसी ग्राम का बंदोबस्त रैयत तब तक बना रहेगा जब तक कि वह उस ग्राम में रैयत के रूप में कोई भूमि धारित करता हो और तत्पश्चात् तीन वर्षों तक। 6. यदि कोई रैयत धारा 71 के अधीन या वाद के जरिए- भमि का कब्जा वापस ले तो उसे इस बात के होते हुए कि वह तीन वर्षों से अधिक काल तक बेकब्जा रहा, बंदोबस्त रैयत समझा जायेगा। 7. यदि किसी वाद या कार्यवाही में यह साबित या स्वीकत कर दिया जाए कि किसी व्यक्ति ने एक रैयत के रूप में भूमि धारण किया है तो इस धारा के प्रयोजनार्थ जबतक कि प्रतिकूल दशा साबित या स्वीकृत न कर दी जाए, उसके और उसके उस भू-स्वामी क बीच, जिसके अधीन वह भूमि धारण करता हो, यह उपधारित किया जायेगा कि उसन उस भूमि या उसके कुछ भाग को लगातार बारह वर्षों तक रैयत के रूप में धारित किया है। धारा-18 : कतिपय दशाओं में भुईहरों तथा मुंडारी खुंटकट्टीदारों का बंदोबस्त रेयत होना-इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ निम्नलिखित व्यक्ति वर्गों को अपने ग्रामों की उस भूमि (जो उनकी अपनी भुईहरी या मुंडारी छूटकट्टीदारी भूमि तथा धारा 118 में यथापरिभाषित भू-स्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि से भिन्न हो) के संबंध में जिस पर वे रैयत के रूप में खेती करते हों, बंदोबस्त रैयत समझा जायेगा और धारा 17 की उप-धारा (3) से लेकर (6) तक के उपबंध ऐसे व्यक्तियों पर उसी प्रकार लागू होंगे मानों वे रैयत हों,जैसे- (क) जहां किसी ग्राम में मंझिहस या बेचखेता के रूप में ज्ञात भूमि से भिन्न कोई भूमि छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869 (1869 का अधिनियम II) के अधीन तैयार और पुष्ट रजिस्टर में प्रविष्ट हो, वहां किसी भुईहरी परिवार के ऐसे सभी सदस्य जो उस ग्राम में भूमि धारण करते हों, और बारह वर्षों तक लगातार भूमि धारित करते आये हों, तथा (ख) जहां किसी ग्राम में ऐसी भूमि हो, जो मुंडारी खुंटकट्टीदारी काश्तकारी का भाग न हो और इस अधिनियम या इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अंतिम रूप से यथाप्रकाशित किसी अधिकार-अभिलेख में मुंडारी बँटकट्टीदारी काश्तकारी या मुंडारी खुंटकट्टीदार की प्रविष्टि कर दी गयी हो तो ऐसे ग्राम के मुंडारी खुंटकट्टीदारी काश्तकारी परिवार के ऐसे सभी पुरुष सदस्य जो उस ग्राम में भूमि धारित करते हों, और लगातार बारह वर्षों तक भूमि धारित करते रहे हों। धारा-19 : बंदोबस्त रैयतों का अधिभोगाधिकार-ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को, जो धारा 17 या धारा 18 के अर्थ के अंतर्गत किसी ग्राम का बंदोबस्त रैयत की, धारा 43 के उपबंधों के अधीन रहते हुए उस ग्राम में उसके द्वारा तत्समय रैयत के रूप में धारित सभी भूमि में अधिभोगाधिकार होगा। धारा-20 : भू-स्वामी द्वारा अधिभोगाधिकार के अर्जन का प्रभाव-1. जब किसी अधिभोग जोत का अव्यवहित भू-स्वामी स्वत्वधारी या स्थायी भू-धारक हो और जोत में भू-स्वामी तथा रैयत का संपूर्ण हित अंतरण उत्तराधिकार द्वारा या अन्यथा उसी व्यक्ति में संयोजित हो गया हो तो ऐसा व्यक्ति, यथास्थिति, स्वत्वधारी या स्थायी भू-धारक के रूप में भूमि धारित करेगा और वह उसका धारण किसी भी प्रकार किसी अधीनस्थ अधिकार में नहीं करेगा, किंतु इस उप-धारा की कोई बात किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव न डालेगी। 2. यदि भूमि में अधिभोगाधिकार किसी ऐसे व्यक्ति को अंतरित किया जाए जो भूमि में स्वत्वधारी या स्थायी भू धारक के रूप में संयुक्त रूप से हितबद्ध हो, तो ऐसा व्यक्ति भूमि को, यथास्थिति, स्वत्वाधारी या स्थायी भू धारक के रूप में धारित करेगा और किसी भी प्रकार किसी अधीनस्थ अधिकार में धारित नहीं करेगा। ऐसा अंतरिती अपने सह-अंशधारियों को भूमि के उपभोग और अधिभोग के लिए उचित एवं साम्यिक राशि का भुगतान करेगा और यदि वह भूमि किसी अन्य व्यक्ति को शिकमी पट्टे पर दे तो उस अन्य व्यक्ति को उसकी बाबत, यथास्थिति, भू-धारक या रैयत समझा जाएगा। 3. किसी संपदा भूधृत्ति, ग्राम या भूमि में अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से अस्थायी भू-धारक, इजारादार, या लगान-कृषक के रूप में या सकब्जा बंधकदार के रूप में हितबद्ध व्यक्ति, अपने पट्टे या बंधक की कालावधि के दौरान, अपने पट्टे या बंधक में समाविष्ट किसी भूमि को ऐसे पट्टेदार या बंधकदार से भिन्न किसी अन्य हैसियत में, खरीद द्वारा या अन्यथा भूधारण करने का अधिकार अर्जित नहीं करेगा, पट्टे या बंधक के दौरान ऐसी भूमि में उसके द्वारा अर्जित प्रत्येक हित में ऐसे पट्टे या बंधक की समाप्ति पर विद्यमान न रह जाएगा. परंतु यदि उसने भूमि या बंदोबस्त किसी ऐसे व्यक्ति के साथ भू-धारक या रैयत के रूप में किया हो जो अपने पट्टे या बंधक के बंधेजों द्वारा ऐसा करने से प्रतिसिद्ध न हो तो पटटे के ऐसे पर्यवसान मात्र से उस अन्य व्यक्ति का अधिकार प्रभावित न होगा। किन्त वह अन्य व्यक्ति उसके बारे में, यथास्थिति, भू धारक या रैयत समझा जाएगा। 4. यह किसी भू-खंड में निम्नलिखित द्वारा अधिभोगाधिकार का अर्जन प्रतिषिद्ध नहीं करेगी और न यह समझा जाएगा कि इसने कभी प्रतिषिद्ध किया है : (क) किसी ग्राम मुखिया द्वारा, यदि उसे किसी स्थानीय रूढ़ि या प्रथा द्वारा जिस वर्ग का वह भू-खंड हो उसे वर्ग की भूमि में अधिभोगाधिकार अर्जित करने का अधिकार हो अथवा (ख) किसी स्थानीय भ-धारक द्वारा. जो ऐसा होने के पूर्व, स्वयं ग्राम का आवासी, खेतिहर था और ऐसा भूखंड उसके द्वारा कारोबार के रूप में संपरिवर्तित कर दिया गया हो या उसके द्वारा उत्तराधिकार या विरासत में अर्जित किया गया हो। धारा-21 : भूमि के उपयोग के संबंध में अधिभोगी रैयत के अधिकार-1. जब किसी रैयत को किसी भूमि के बारे में अधिभोगाधिकार हो तब वह उस भूमि का उपयोग- (क) स्थानीय रूढ़ि या प्रथा द्वारा प्राधिकृत किसी रीति से, अथवा (ख) किसी स्थानीय रूढ़ि या प्रथा पर ध्यान दिये बिना ऐसी किसी रीति से, जो भूमि का मूल्य तात्विक रूप में हासिल नहीं करती हो या इसे काश्तकारी के प्रयोजनार्थ अनुपयुक्त नहीं करती हो। 2. अधिकार-अभिलेख की किसी प्रविष्टि में या किसी स्थानीय रूढ़ि या प्रथा में अंतर्विष्ट किसी बात के प्रतिकूल होने पर भी, निम्नलिखित से यह समझा जायेगा कि इससे भूमि का मूल्य तात्विक रूप से हृसित होता है या इसे काश्तकारी के प्रयोजनार्थ अनुपयुक्त करते हैं (क) रैयत या उसके परिवार के घरेलू या कृषि प्रयोजनाओं के लिए ईंट और खपड़ों का विनिर्माण (ख) रैयत तथा उसके परिवार के पीने, घरेलू, कृषि या मत्स्य पालन के प्रयोजनों के लिए जलापर्ति उपबंधित करने के आशय से तालाबों का उत्खनन या कुएं की खुदाई तथा बाप और आहरों का निर्माण; तथा। (ग) रैयत तथा उसके परिवार के घरेलू या कृषि प्रयोजनों के लिए अथवा व्यापार या कुटार उद्योग के प्रयोजनार्थ भवन उत्थापन। 3. यदि कोई अधिभोगी रैयत, जो धारा-61 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किसी भी रीति से अपनी जोत के लगान की भुगतान करता हो, ऐसी जोत पर उपधारा-(2) के खंड (ख) में उल्लिखित किसी भी प्रयोजन के लिए तालाब उत्खनित करें तो इस तालाब उत्पादों में भू-स्वामी का हिस्सा बीस में नौ तथा रैयत का हिस्सा बीस में ग्यारह होगा। धारा-22 : अधिभागी रयत का विनिर्दिष्ट आधारों के सिवाय बेदखली से सरक्षण-अधिभोगी रैयत निम्नलिखित आधारों पर पारित बेदखली की डिक्री के निष्पादन के सिवाय, अपने भू-स्वामी द्वारा अपनी जोत से बेदखल न किया जायेगा- (क) उसने अपनी जोत में समाविष्ट भूमि का उपयोग ऐसी रीति से किया है जो धारा 21 या 21-क द्वारा प्राधिकृत नहीं है, अथवा (ख) उसने इस अधिनियम से संगत उन शर्तों को भंग किया है जिनके भंग पर वह अपने और अपने भू-स्वामी के बीच संविदा के बंधेजों के अधीन बेदखली का दायी है। धारा-23 : मृत्यु हो जाने पर अधिभोगाधिकार का न्यायगत होना-यदि कोई रैयत अधिभोगाधिकार के बारे में निर्वसीयत मर जाए तो यह किसी प्रतिकल स्थानीय रूढ़ि के अध्यधीन, उसी रीति से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होगा जिस रीति से अन्य स्थावर संपत्ति प्राप्त होती है। परंतु ऐसी किसी दशा में, जिसमें उस विरासत विधि के अधीन, जिसके अधीन रैयत हो. उसकी अन्य संपत्ति यदि सरकार के पास चली जाए तो उसका अधिभोगाधिकार निर्वापित हो जायेगा। धारा-24 : लगान भुगतान के लिए अधिभोगी रैयत की बाध्यता-अधिभोगी रैयत अपनी जोत के लिए उचित एवं साम्यिक दर से लगान का भुगतान करेगा। धारा-25 अधिभोगी रैयत का लगान उचित और साम्यिक है, यह उपधारणा-किसी अधिभोगी रैयत द्वारा तत्समय देय लगान, जब तक कि प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, उचित और साम्यिक. उपधारित किया जायेगा। धारा-26 : इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व वर्धित लगान की पुष्टि-जब किसी ऐसे अधिभोगी रैयत जिसका लगान वृद्धि का दायी हो, का लगान इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व छोटानागपुर भू-स्वामी एवं काश्तकार प्रक्रिया अधिनियम, 1879 (1879 का बंगाल अधिनियम सं. I) की धारा 24 के अधीन, बढ़ा दिया गया हो तो ऐसा वर्धित लगान विधिपूर्वक देय समझा जायेगा (क) यदि यह इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व लगातार सात वर्षों तक वस्तुतः भुगताया जाता रहा हो, तथा (ख) यदि यह साबित न किया गया हो कि यह अनुचित और असाम्यिक है, परन्तु जहां किसी अधिभोगी रैयत द्वारा अपनी जीत के लिए विधिपूर्वक देय लगान, लगान के बाकाये के किसी वाद में विवाद्यक बनाया गया हो, और न्यायालय उस विवाद्यक पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच चुका हो, तो प्राप्त किया जानेवाला लगान जोत के लिए विधिपूर्वक देय लगान समझा जायेगा। धारा-27 : वे रीतियां जिनसे अधिभोगी रैयत का लगान बढ़ाया जा सकेगा-1. इस अधिनियम के प्रारंभ से और उसके पश्चात्- (क) ऐसे किसी क्षेत्र में जिसके लिए इस अधिनियम या इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अधिकार-अभिलेख तैयार और अंतिम रूप से प्रकाशित नहीं किया गया हो, या जिसके लिए इस अधिनियम या इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन ऐसे अभिलेख की तैयारी के लिए आदेश निर्गत नहीं हुआ हो तो किसी ऐसे अधिभोगी रैयत का, जिसका लगान वृद्धि का दायी हो, धन लगान केवल धारा 29 के अधीन उपायुक्त द्वारा पारित आदेश से ही बढ़ाया जा सकेगा तथा (ख) ऐसे किसी क्षेत्र में, जिसके लिए यथापूर्वोक्त अधिकार, अभिलेख तैयार और अंतिम रूप से प्रकाशित किया गया हो, अथवा जिसके लिए ऐसे अभिलेख की तैयारी के निमित यधापूर्वोक्त आदेश निर्गत किया जा चुका हो किसी अधिभोगी रैयत का, जिसका लगान बढ़ाए जाने का दायी हो, धन लगान केवल निम्नलिखित के द्वारा बढ़ाया जा सकेगा – (i) धारा-62, धारा-94 या धारा-99 में निर्दिष्ट दशाओं में धारा-29 के अधीन उपायुक्त द्वारा पारित आदेश से तथा (ii) अन्य दशाओं में अध्याय-12 के अधीन राजस्व अधिकारी के पारित आदेश से 2. इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् ऐसे लगान में, यथास्थिति खंड (क) या खंड (ख) में निर्दिष्ट से भिन्न किसी रीति से प्राइवेट संविदा के जरिए या अन्यथा की गई किसी वद्धि को किसी न्यायालय के किसी वाद या कार्यवाही में किसी कारण से मान्यता या प्रभाव नहीं दिया जाएगा। धारा-28 : वृद्धि के लिए उपायुक्त के पास दिये जाने वाले आवेदन पत्र की अंतर्वस्तु-1. किसी अधिभोग जोत के लगान की वृद्धि के लिए उपायुक्त के पास दिये गये प्रत्येक आवेदन में निम्नलिखित विनिर्दिष्ट रहेगा- (क) जोत गठित करनेवाले भू-खंडों के क्षेत्र, स्थिति, स्थानीय नाम, विशेषता और सीमा के विषय में वे सारी विशिष्टियां जो विहित की जाए; (ख) जोत गठित करनेवाली विभिन्न वर्गों की भूमि के लिए रैयत द्वारा देय लगान की दर (यदि कोई हो) और आवेदन करने की तारीख को जोत के लिए देय वार्षिक लगान। (ग) भूमि के तत्समान वर्गों के लिए ग्राम में सामान्यतः विद्यमान दरें (घ) वह तारीख जो यथासमय निकटतम अभिनिश्चित हो, जब लगान की सामान्यतः विद्यमान दरें ग्राम में अंतिम रूप से समायोजित की गई हो : (ङ) वे दरे जिनका आवेदक दावा करना चाहता हो (च) वे आधार जिन पर आवेदक यह समझता हो वह दावा की गई वृद्धि का हकदार है। 2. इस धारा के अधीन किए गए प्रत्येक आवेदन-पत्र पर 146 से 149 तक धाराएँ लागू होगी। धारा-29 : ऐसे आवेदन-पत्रों की प्राप्ति पर प्रक्रिया-1. जब ऐसा कोई आवेदन-पत्र प्राप्त किया जाए तो उपायुक्त (क) उसकी अंतर्वस्तु की सूचना तुरंत रैयत को देगा, और (ख) यदि उचित समझे तो भूमि को माप का आदेश दे सकेगा, तथा (ग) आवेदन में उपवर्णित सभी परिस्थितियों पर विचार कर लेने के तथा रैयत द्वारा प्रस्तुत किसी आक्षेप की सुनवाई कर लेने के पश्चात् आदेश द्वारा उस भूमि के लिए ऐसा वर्धित लगान नियत कर सकेगा या उसमें अन्यथा फेरफार कर सकेगा जैसा उसे उचित और युक्तियुक्त प्रतीत हो- परंतु ऐसी किसी वृद्धि का आदेश निम्नलिखित किसी एक या अधिक आधारों के सिवाय न दिया जायेगा, यथा- (i) यह कि रैयत द्वारा भुगताए जाने वाली लगान की दर उसी या उसके निकवर्ती ग्राम में समान गुणवाली और समान सुविधाओं से युक्त भूमि के लिए अधिभोगी रैयतों द्वारा करने के लिए कोई पर्याप्त कारण नहीं है। (ii) वर्तमान लगान के प्रचलन के दौरान मुख्य खाद्य फसलों के औसत स्थानीय मल्यों में काम हुई है। (iii) यह कि रैयत द्वारा धारित भूमि की उत्पादक शक्तियाँ वर्तमान लगान के प्रचलन के दौरान रैयत की ऐजेंसी या रैयत के खर्च से अन्यथा किए गए सुधारों से बढ गई है। परत यह और भी कि ऐसी किसी भी वृद्धि का आदेश न दिया जाएगा जो मामले की परिस्थिति में अनुचित या आसामयिक हो। धारा-30 : आनुक्रमिक वृद्धि निदेर्शित करने की शक्ति-जहाँ उपायुक्त का विचार हो कि धारा 29 के अधीन आदिष्ट पूर्ण वृद्धि के तुरंत प्रवर्तन से कठिनाई उपस्थित होने की संभावना है, तो वह यह निदेशित कर सकेगा कि वृद्धि आनुक्रमिक होगी अर्थात् लगान की वृद्धि पांच से अनधिक उतने वर्षों तक जब तक कि पूर्ण वृद्धि की सीमा न आ जाए, सोपानवत होगी। धारा-31 : जिस क्षेत्र के बारे में पूर्व में लगान दिया जाता हो उस क्षेत्र के अतिरिक्त धारित भूमि के बारे में वृद्धि का आवेदन1. जहां किसी अधिभोगी रैयत द्वारा, उस क्षेत्र के अतिरिक्त जिसके लिए उसके द्वारा पूर्व में लगान दिया जाता हो, भूमि धारित की जाती हो वहां अध्याय 12 के अधीन राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश अथवा भू-स्वामी द्वारा उपायुक्त के पास दिये गये आवेदन पर उसके द्वारा पारित आदेश के सिवाय, लगान में कोई वृद्धि नहीं की जायेगी। धारा-32 : ऐसे आवेदनों की प्राप्ति पर प्रक्रिया-1. जब ऐसा कोई आवेदन प्राप्त हो जाए तो उपायुक्त- (क) उसकी अंतर्वस्तु की सूचना तुरंत रैयत को देगा, और (ख) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन तैयार अधिकार-अभिलेख में काश्तकारी संबंधी प्रविष्टि (यदि कोई हो) का निर्देश करेगा, और (ग) यदि वह उपयुक्त समझे तो रैयत द्वारा धारित भूमि की माप करने का आदेश दे सकेगा, और (घ) आवेदन में उपवर्णित सभी परिस्थितियों पर विचार कर लेने तथा रैयत द्वारा प्रस्तुत किसी आक्षेप की सुनवाई कर लेने और आगे और भी ऐसी जांच जैसी उपायुक्त उचित समझ कर लेने के पश्चात् वृद्धि का चाहे वह क्रमिक हो या अन्यथा ऐसा आदेश देगा जैसा वह उचित और युक्तियुक्त समझे। धारा-33 : आवृत्ति-धारा 31 और 32 की कोई बात भू-स्वामी द्वारा निम्नलिखित की वसूली प्रतिषिद्ध नहीं करेगी। (क) किसी रैयत से भूमि के पथक खंड के लिए जो उसके साथ विधि द्वारा प्राधिकृत किसी रीति से बंदोबस्त किया गया हो, वर्धित लगान, (ख) कोरकर में संपरिवर्तित भूमि पर धारा-67 के अधीन निर्धारित लगान धारा-33क-लगान में कमी-उपायुक्त निम्नलिखित किसी भी आधार पर अधिभोग जोत के लगा में कमी कर सकेगा, यथा (क) यह कि जोत का लगानं धारा 29 के अधीन उस धारा की उप-धारा (1), के परंतक के खंड (1) तथा खंड (2) में विनिर्दिष्ट एक या दोनों ही आधारों पर 1 जनवरी, 1911 और 31 दिसंबर, 1936 के बीच किसी समय बढ़ा दिया गया है। (ख) यह कि जोत का लगान धारा 61 के अधीन 1 जनवरी, 1911 और 31 दिसंबर, 1936 के बीच किसी समय संराशिकृत कर दिया गया था। (ग) यह कि ऐसी जोत के किसी अंश की या पूरी जोत की मिट्टी रैयत के कसूर के बिना बालू का संचय, जलाप्लावन अथवा किसी अन्य विशिष्ट आकस्मिक या क्रमिक कारण से अस्थायी या स्थायी रूप से अपकृष्ट हो गयी है। (घ) यह कि ऐसी जोत का भू-स्वामी ऐसी सिंचाई के बारे में प्रबंध निष्पादित करने में असफल रहा है जिसे कायम रखने को वह आबद्ध है। (ड) यह कि वर्तमान लगान के जारी रहने के दौरान मुख्य खाद्य फसलों के औसत स्थानीय मूल्य में गिरावट आ गयी है, जो किसी अस्थायी कारण के चलते नहीं है। (च) यह कि रैयत द्वारा धारित भूमि का क्षेत्र उस क्षेत्र से कम है जिसके लिए उसके द्वारा पूर्व में लगान भुगतेय रहा हो। धारा-34 : लगान की कमी के लिए उपायुक्त के पास आवेदन-1. ऐसा कोई भी अधिभोगी रैयत जो अपने द्वारा पूर्व में दिये गये लगान को कम कराने का दावा करना चाहता हो, उपायुक्त के पास उस भूमि पर जिसके बारे में ऐसी कमी चाहता हो, लगान निर्धारण के लिए और (यदि आवश्यक हो तो) भूमि की माप कराने के लिए आवेदन दे सकेगा। परंतु यह कि धारा-33 क के खंड (क) या खंड (ख) के अधीन लगान में कमी करने के लिए कोई आवेदन तब तक ग्रहण नहीं किया जाएगा जब तक कि यह जिस तारीख को छोटानागपुर काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1938 की धारा-प्रवत्त हो उस तारीख से दो वर्षों की कालावधि के भीतर दाखिल न कर दिया जाए। धारा-35 : ऐसे आवेदन-पत्र की प्राप्ति पर प्रकिया-1. जब ऐसा कोई आवेदन प्राप्त हो जाए तो उपाय- (क) भू-स्वामी को उसकी अंतर्वस्तु की सूचना तुरंत देगा और (ख) यदि वह उपयुक्त समझे तो भूमि की माप का आदेश दे सकेगा, और (ग) आवेदन में दर्ज सभी परिस्थितियों पर विचार कर लेने पर और भ-स्वामी द्वारा प्रस्तुत किसी आक्षेप की सुनवाई कर लेने के पश्चात् आदेश द्वारा जोत के लिए ऐसा घटाया गया लगान नियत कर सकगा जा उसे उचित और युक्तियक्त प्रतीत हो। धारा-36 : जहाँ अधिकार-अभिलेख न हो वहाँ लगान में वृद्धि या कमी का वर्जन-1. जब धारा 27 के खंड (क) में निर्दिष्ट किसी क्षेत्र की अधिभोग जोत का लगान धारा 29 के अधीन उपायुक्त द्वारा पारित आदेश से बढ़ा दिया गया हो, तो ऐसा लगान पुनः निम्नलिखित के सिवाय 15 वर्षों की कालावधि तक बढ़ाया न जायेगा (क) भू-स्वामी द्वारा सुधार के आधार पर उपायुक्त के आदेश से; अथवा (ख) अध्याय 12 के अधीन राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश से। अध्याय-5 : खूटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयतधारा-37 : खूटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयतों की काश्तकारी की प्रसंगतियाँ-
(क) काश्तकारी के प्रारंभ के समय की गयी किसी लिखित संविदा के अध्यधीन बंटकरी अधिकार प्राप्त रैयत द्वारा, उस भूमि के लिए, जिसके बारे में उसे ऐसा अधिकार हो देय लगान नहीं बढ़ाया जायेगा यदि उसकी ऐसी भूमि की काश्तकारी इस अधिनियम के प्रारंभ से बीस वर्षों से भी अधिक पूर्व सृजित की गयी हो; और (ख) जब छूटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत द्वारा, किसी ऐसी भूमि के लिए जिसके बारे में उसे ऐसा अधिकार हो, देय लगान की वृद्धि के लिए कोई आदेश दिया जाए तो ऐसे आदेश द्वारा नियत वर्धित लगान उसी ग्राम में समरूप वर्णन की वैसी ही सविधाओं वाली भमि के लिए किसी अधिभोगी रैयत द्वारा सदेय लगान के आधे से अधिक न होगा। अध्याय-6 : अनधिभोगी रैयतधारा-38 : अनधिभोगी रैयत का प्रारंभिक लगान और पट्टा
धारा- 39 : अनधिभोगी रैयत की अपनी जोत के अधिकार के भू-स्वामी द्वारा अर्जन का प्रभावकिसी अनधिभोगी रैयत की अपनी जोत के अधिकार की दशा में धारा 20 के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे किसी अधिभोगी रैयत पर लागू होते हैं। धारा-40 : अनधिभोगी रैयत के लगान की वृद्धि की शर्ते-किसी अनधिभोगी रैयत का लगान रजिस्ट्रीकत करार या धारा 42 के अधीन करार क सिवाय बढ़ाया न जायेगा। धारा-41. वे आधार, जिन पर अनधिभोगी रैयत बेदखल किया जा सकता है-किसी भी अनधिभोगी रैयत को, इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन निम्नालाखत किसी एक या अधिक आधारों पर ही बेदखल किया जा सकता है, अन्यथा नहीं, यथा (क) इस आधार पर कि वह ततीय कषि वर्ष के प्रारंभ के बाद नब्बे दिनों के भातर दो कृषि वर्षों के लिए लगान के बकायों का भुगतान करने में असफल रहा। (ख) इस आधार पर कि उसने अपनी जोत में समाविष्ट भूमि का उपयोग ऐसी रीति से किया है जो स्थानीय रूढ़ि या प्रथा द्वारा प्राधिकत नहीं है अथवा जो भूमि के मूल्य को तात्विक रूप से ह्रासित करती हो अथवा इसे काश्तकारी के प्रयोजनार्थ अनुपयुक्त बना देती हो (ग) इस आधार पर कि उसने इस अधिनियम से संगत किसी ऐसी शर्त को भंग किया है जिसके भंग करने पर वह, अपने और अपने भू-स्वामी के बीच की संविदा के निबंधनों के अधीन बेदखली के लिए दायी है। (घ) जहाँ वह किसी रजिस्ट्रीकृत पट्टे के अधीन अधिभोग में प्रविष्ट किया गया हो, वहाँ इस आधार पर कि पट्टे की अवधि का अवसान हो चुका है (ङ) इस आधार पर कि उसने धारा 42 के अधीन अवधारित उचित और साम्यिक लगान का भुगतान करने के लिए सहमत होने से इंकार कर दिया है, अथवा यह कि जिस अवधि के लिए वह ऐसे लगान पर धारित करने का हकदार है, उस अवधि का अवसान हो चुका है। धारा-42. उचित और साम्यिक लगान के भुगतान की सहमति देने से इन्कार करने पर बेदखली की शर्ते।(क) उचित और साम्यिक लगान के भुगतान की सहमति देने से इंकार करने के आधार पर बेदखली का वाद, किसी अनधिभोगी रैयत पर तब तक न लाया जायेगा जब तक कि भू-स्वामी ने रैयत को उस लगान के भुगतान के लिए जिसकी वह मांग करता हो, करार निविदत्त न किया हो और रैयत ने वाद संस्थित किये जाने के पूर्व छ: महीने के भीतर करार निष्पादित करने से इंकार न कर दिया हो। (ख) इस धारा के अधीन किसी रैयत को करार निविदत्त करने का इच्छुक भू-स्वामी, उसे रैयत पर तामील किये जाने के लिए उपायुक्त के कार्यालय में दाखिल करेगा। (ग) जब उप-धारा (2) के अधीन करार पेश किया जा चुका है तो उपायुक्त इसे धारा 264 के अधीन सूचना तामील के लिए विहित रीति से, रैयत पर तुरंत तामील करवा देगा। (घ) जब उप-धारा (3) के अधीन करार रैयत पर तामील कर दिया जाए तब करार इस धारा के प्रयोजनार्थ निविदत्त समझा जाएगा। (ङ) यदि वह रैयत, जिस पर उप-धारा (5) के अधीन करार तामील किया गया हो, इसे निष्पादित कर दे, और प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर इसे उपायुक्त के कार्यालय में दाखिल कर दे, तो यह ठीक आगामी कृषि वर्ष के प्रारंभ से प्रभावी होगा। (च) जब धारा (5) के अधीन रैयत द्वारा करार निष्पादित और दाखिल कर दिया जाए तो उपायुक्त इसके इस प्रकार निष्पादित और दाखिल किए जाने की सूचना तुरंत भू-स्वामी पर तामील करवा देगा। (छ) यदि रैयत करार निष्पादित न करे और उसे उप-धारा (5) के अधीन दाखिल कर दे तो इस धारा के प्रयोजनार्थ यह समझा जाएगा कि उसने इसे निष्पादित करने से इंकार कर दिया है। (ज) यदि रैयत इस धारा के अधीन उसे निविदत्त करार निष्पादित करने से इंकार कर दे और तदुपरांत भू-स्वामी उसे बेदखल करने के लिए वाद लाए तो उपायुक्त यह अवधारित करेगा कि जोत के लिए कितना लगान उचित और साम्यिक होगा। (झ) यदि रैयत इस प्रकार अवधारित लगान का भुगतान करने के लिए सहमत हो तो वह करार की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिए उसी लगान पर अपनी जोत के अधिभोग में बने रहने का हकदार होगा, किन्तु उस अवधि की समाप्ति पर, जब तक कि उसने अधिभोगाधिकार अर्जित न कर लिया हो धारा 41 के खंड (ङ) में उल्लिखित द्वितीय आधार पर बेदखल किए जाने का दायी होगा। (ञ) यदि रैयत इस प्रकार अवधारित लगान का भुगतान करने के लिए सहमत न हो तो उपायक्त बेदखली की डिक्री पारित कर देगा। (ट) कितना लगान उचित और साम्यिक होगा, यह अवधारित करते समय उपायक्त उसी ग्राम में और (यदि उपायुक्त उचित समझें तो) सटे हुए ग्रामों में अनधिमोगी रैयतों द्वारा समान वर्णन और समान फायदेवाली भूमि के लिए सामान्यतया भुगताए जाने वाले लगानों पर भी ध्यान देगा। अध्याय-7: भू-स्वामी की विशेषाधिकारधारा-43 : भू-स्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमियों तथा कतिपय अन्य भूमियों में अधिभोगाधिकार के अर्जन का तथा उन पर अध्याय 6 के लागू होने का वर्जनअध्याय 4 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, निम्नलिखित में अधिभोगाधिकार अर्जित न किया जायेगा और न अध्याय 6 (या धारा 64 से 66 तक) में अंतर्विष्ट कोई बात उन पर लागू ही होगी- (क) धारा 118 के खंड (क) में निर्दिष्ट भू-स्वामी की विशेषाधिकार युक्त भूमि, जब वह किसी अभिधारी द्वारा एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए रजिस्ट्रीकृत पट्टे पर अथवा एक वर्ष या उससे कम अवधि के लिए लिखित या मौखिक पट्टे पर धारित हो, (ख) धारा 118 के खंड (ख) में विनिर्दिष्ट भू-स्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि, अथवा (ग) भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 के अधीन किसी सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकार या रेलवे कंपनी के लिए अर्जित भूमि अथवा किसी छावनी के भीतर सरकार की भूमि, जब तक कि ऐसी भूमि उस सरकार या स्थानीय प्राधिकार या रेलवे कंपनी की संपत्ति रहे अथवा (घ) सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकार की या लोक स्वास्थ्य के उन्नयन या किसी क्षेत्र की जनता की कृषि, औद्योगिक, आर्थिक या सामान्य भलाई के लिए तत्समय प्रवृत्त किसा विधि के अधीन गठित निगम की ऐसी भूमि, जिसका उपयोग सड़क, नहर, तटबध, बाघ या जलाशय जैसे लोक कार्यों के लिए किया जाता हो. अथवा जिसकी अपक्षा उसका मरम्मत या अनुरक्षण के लिए हो जबतक ऐसी भमि का इस प्रकार उपयोग हाना जारा रहे या अपेक्षा बनी रहे। अध्याय-8 : जोतों और भूधत्तियों के पट्टे और अंतरणधारा-44 : रैयत का पट्टे का हकदार होना-
(क) उसकी जोत में समाविष्ट भूमि का परिमाण और सीमाएं और जहां क्षत्रा का समय सर्वेक्षण में संख्यांकित कर दिया गया हो, वहां प्रत्येक क्षेत्र का सख्याक (ख) ऐसी भूमि के लिए देय वार्षिक लगान की रकम (ग) वे किस्तें, जिनमें लगान दिया जानेवाला हो (घ) यदि लगान पूर्णतः या अंशतः वस्तुरूप में देय हो, तो परिदत्त की जानेवाली उपज का अनुपात या परिमाण तथा परिदान का समय और रीति; तथा (ङ) पट्टे की कोई विशेष शर्ते। धारा-45 : भू-स्वामी का प्रतिलेख वचनबंध के लिए हकदार होना-जब कभी कोई भू-स्वामी किसी काश्तकार को पट्टा दे या काश्तकार को कोई ऐसा पट्टा निविदत्त करे जो वह पाने का हकदार हो तो भू-स्वामी ऐसे काश्तकार के पट्टे की शर्तों के अनुरूप एक प्रतिलेख वचनबंध पाने का हकदार होगा। धारा-46 : रैयत द्वारा अपने अधिकारों के अंतरण पर प्रतिबंध-1. अपनी जोत या उसके किसी भाग में रैयत द्वारा अपने अधिकार का – (क) बंधक या पट्टे द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित ऐसी किसी भी कालावधि के लिए जो पांच वर्षों से अधिक हो या किसी भी बंधक दशा में अधिक हो सकती हो, अथवा (ख) विक्रय, दान या किसी अन्य संविदा या करार द्वारा, अंतरण किसी भी हद तक विधिमान्य न होगा। परंतु कोई रैयत अपनी जोत या उसके किसी भाग को, सात वर्षों से अनधिक किसी भी कालावधि के लिए अथवा यदि बंधकदार बिहार और सहकारी समितियाँ अधिनियम, 1935 के अधीन रजिस्ट्रीकृत का रजिस्ट्रीकृत समझी गई कोई समिति हो तो, 15 वर्षों से अनधिक किसी कालावधि के लिए भुगुतबंध बंधक कर सकेगा। धारा-47 : न्यायालय आदेश के अधीन रैयती अधिकार के विक्रय पर प्रतिबंध-किसी न्यायालय द्वारा किसी रैयत के उसकी जोत या उसके किसी भाग में अधिकार के विक्रय के लिए न तो कोई डिक्री या आदेश ही पारित किया जायेगा और न ऐसे किसी अधिकार का किसी डिक्री या आदेश निष्पादन में विक्रय ही किया जायेगा; परंतु (क) जोत की बाबत लगान के बकाये की वसूली के लिए किसी. सक्षम न्यायालय की डिक्री के निष्पादन में किसी जोत या उसके भाग का विक्रय किया जा सकेगा। (ख) राज्य सरकार द्वारा भूमि विकास उधार अधिनियम, 1883 (1883 का 19) या कृषक उधार अधिनियम, 1884 (1884 का 12) के अधीन या अन्यथा अनुदत्त किसी उधार की वसूली के लिए बिहार, उड़ीसा लोक माँग वसूली अधिनियम, 1914 (1914 का बिहार, उडीसा अधिनियम, संख्या 4) द्वारा उपबंधित प्रक्रिया के अधीन किसा जोत या उसके भाग का विक्रय किया जा सकेगा। (खख) कोई अधिभोगी-रैयत अपनी होल्डिंग या उसके किसी भाग में अपने अधिकार का अंतरण बिहार और उड़ीसा सहकारी समिति अधिनियम (बिहार एंड उड़ीसा को-ऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट, 1935) (बिहार और उड़ीसा अधिनियम सं. 6, 1935) के अधीन रजिस्ट्रीकृत या रजिस्ट्रीकृत समझी गई किसी समिति या बैंक को या स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया अथवा बैंककारी कंपनी (उपक्रमों का अर्जन और अंतरण) अधिनियम बैंकिंग कंपनी (एक्वीजीशन एंड ट्रांसफर ऑफ अंडरटेकिंग एक्ट, 1970) (1970 का अधिनियम संख्या 5) की प्रथम अनुसूची के स्तंभ 2 में विनिर्दिष्ट किसी बैंक द्वारा अथवा ऐसा कंपनी या निगम द्वारा जो राज्य या केन्द्रीय सरकार अथवा अंशत: राज्य सरकार औरअंशत: केन्द्रीय सरकार सरकार के स्वामित्व में हो या जिसमें राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार अथवा अंशत: राज्य सरकार और अंशतः केन्द्रीय सरकार शेयर पूंजी का कम-से-कम 51 प्रतिशत से अन्यून और जिसे कृषकों के लिए कृषि उधार का उपबंध करने की दृष्टि से स्थापित किया गया है, कर सकेगा। परंतु, कोई अधिभोगी-रैयत जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्ग का सदस्य नहीं है अपनी होल्डिंग या उसके किसी भाग में अपने अधिकार का अंतरण, विक्रय, विनिमय, दान, वसीयत, बंधक द्वारा अथवा अन्यथा किसी भी अन्य व्यक्ति को कर सकेगा। (ग) इस धारा की कोई बात 1 जनवरी, 1903 के पूर्व किसी जोत के विक्रय के लिए पारित डिक्री के निष्पादन अथवा रजिस्ट्रीकृत संविदा के बंधेज या शर्तों के निष्पादन के अधिकार पर प्रभाव नहीं डालेंगी। धारा-48 : भुईहारी भूधृत्ति के अंतरण पर प्रतिबंध-1. किसी भुईहरी कुटुंब का कोई सदस्य छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869 में यथापरिभाषित किसी ऐसी भुईहरी भूधृत्ति को, जो उसके द्वारा धारित हो, अथवा उसके किसी भी भाग को, उसी रीति से और उसी परिमाण तक अंतरित कर सकेगा जैसा धारा 46 की उप धारा (2) के खंड (क) और (ख) के अधीन कोई आदिवासी रैयत. अपनी जोत में अपने अधिकार को अंतरित कर सकता है। धारा-48 क : भुईहरी-भूधृत्ति के विक्रय पर प्रतिबंध1. किसी भुईहरी कुटुंब के सदस्य के, उसके भुईहरी- भूधृत्ति में अधिकार के विक्रय के लिए किसी न्यायालय द्वारा न तो कोई डिक्री या आदेश पारित किया जायेगा, और न ऐसे किसी अधिकार का ऐसी किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में विक्रय ही किया जायेगा। 2. भुईहरी कुटुंब के किसी सदस्य द्वारा धारित किसी भुईहरी-भूधृत्ति की बावत देय लगान के बकाये की डिक्री का निष्पादन, उस भूधृत्ति में समाविष्ट भूमि की उपज की कुर्की और विक्रय द्वारा अथवा निर्णित ऋणी की किसी अन्य जंगम संपत्ति के विक्रय द्वारा किया जा सकेगा अन्यथा नहीं। धारा-49 : कतिपय प्रयोजनों के लिए अधिभोग जोत या भुईहरी भूधृत्ति का अंतरण-1. धारा 46, 47 और 48 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी ऐसा कोई भी अधिभोगी रैयत या भुईहरी कुटुंब का कोई सदस्य, जो धारा 48 में निर्दिष्ट हो, किसी युक्तियुक्त और पर्याप्त प्रयोजनों के लिए अपनी जोत या भू-धृत्ति अथवा उसके किसी भाग को अंतरित कर सकेगा। धारा-50 : कतिपय प्रयोजनों के लिए भू-स्वामी द्वारा भूधृत्ति या जोत का अर्जन-1. धारा 46 और 47 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, उपायुक्त- (क) किसी जोत के भू-स्वामी के आवेदन करने पर और अपना यह समाधान हो जाने पर कि वह जोत या उसके किसी भी भाग को किसी ऐसे यक्तियक्त और पर्याप्त प्रयोजन के लिए अर्जित करने का इच्छुक है जिसका संबंध जोत या उस भूधृत्ति या संपदा के कल्याण से है जिसमें वह समाविष्ट है जैसे भूमि का किसी खैराती, धार्मिक अथवा शैक्षिक प्रयोजन के लिए अथवा विनिर्माण या सिंचाई के प्रयोजन के लिए अथवा ऐसे किसी प्रयोजन के लिए निर्माण स्थल के रूप में, अथवा ऐसे किसी प्रयोजन के लिए प्रयुक्त या अपेक्षित भूमि तक गम्य पथ के लिए और ऐसी जांच के पश्चात् जैसी उपायुक्त आवश्यक समझें भू-स्वामी द्वारा उसका अर्जन ऐसी शर्तों पर प्राधिकृत कर सकेगा जो वह उचित समझे और अभिधारी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह अपनी जोत या उसके भाग में अपने हित को प्रतिकर के साथ-साथ ऐसे बंधेजों पर, जो उपायुक्त अनुमोदित करे, भू-स्वामा स बचा (ख) किसी भूधृति या जोत के भू-स्वामी के आवेदन करने पर और अपना यह समाधान हो जाने पर कि वह उक्त भूधृति या जोत के भीतर खनन के प्रयोजन से अथवा किसी ऐसे अन्य प्रयोजन से जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा उसका सहायक प्रयोजन घोषित करे, अथवा ऐसे प्रयोजन के लिए प्रयुक्त या अपेक्षित भूमि पर पहुँच मार्ग के लिए, किसी भूमि का अर्जन करने का इच्छुक है और ऐसी जाँच के पश्चात् जो उपायुक्त आवश्यक समझे; भू-स्वामी द्वारा ऐसी भूमि या उसके भाग का अर्जन ऐसी शर्तों पर, जो उपायुक्त उचित समझे, प्राधिकृत कर सकेगा और उन सभी व्यक्तियों से जो, भूमि में उसके अधीन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित रखते हों, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वे अपने हित उक्त भू-स्वामी के हाथ ऐसे प्रत्येक धारक को उपायुक्त द्वारा अवधारित प्रतिकर का भुगतान करके बेच दें। धारा-51 : अंतरण की सूचना के बिना भूतपूर्व भू-स्वामी को दिये गए लगान के लिए अभिधारी भू-स्वामी के हित के अंतरिती के प्रति दायी नहीं होगा-1. अभिधारी, जब उसके भू-स्वामी का हित अंतरित कर दिया गया हो तब अंतरण के बाद देय और उस भू-स्वामी को, जिसका हित इस प्रकार अंतरित किया गया हो सद्भावपूर्वक भुगता दिये गये लगान के लिए अंतरिती के प्रति तब तक दायी नहीं होगा जब तक किं अंतरिती ने भुगतान के पूर्व अभिधारी पर अंतरण की सूचना तामील न कर दी हो। 2. जहां, उस भू-स्वामी को जिसका हित अंतरित किया गया हो, लगान का भुगतान करनेवाले एक से अधिक अभिधारी हों, वहां अंतरिती की ओर से अभिधारियों के नाम विहित रीति से प्रकाशित आम सूचना इस धारा के प्रयोजनार्थ पर्याप्त सूचना होगी। अध्याय-9 लगान के बारे में साधारण उपबंध और लगान की स्थिति के संबंध में उपधाराएँधारा-51 क:1. जहां किसी भू-धारक, ग्राम मुखिया या रैयत तथा उसके हितपूर्वाधिकारी ने भूमि का धारण ऐसे लगान या लगान की दर पर किया हो, जो स्थायी बंदोबस्त के समय से बदला नहीं गयी हो तो, लगान या लगान की दर, काश्तकारी के क्षेत्र में परिवर्तन के आधार के सिवाय, बढ़ायी नहीं जायेगी। 2. यदि इस अधिनियम के अधीन किसी वाद, आवेदन या कार्यवाही में यह साबित कर दिया जाए कि भू-धारक, ग्राम मुखिया या रैयत तथा उसके हितपूर्वाधिकारी ने भूमि का धारण ऐसे लगान या लगान की दर पर किया है, जो वाद आवेदन या कार्यवाही के संस्थित कि जाने के ठीक पहले बीस वर्ष के दौरान बदली नहीं गयी है, तो जब तक कि प्रतिकूल दर्शित न कर दिया जाये, तो यह माना जाएगा कि उन्होंने उसे स्थायी बंदोबस्त के समय से ही उक्त लगान या लगान की दर पर धारित किया है। धारा-52 : किस्त का प्रावधान-
धारा-53 : लगान भुगतान की रीतियाँ-1. अपने द्वारा धारित या जोती जानेवाली भूमि की बावत किसी अभिधारी द्वारा लगान का भुगतान या तो (क) लगान की प्राप्ति के लिए माल-कचहरी में या ऐसे अन्य स्थान में जहां ऐसी भमि का लगान प्रायः भुगतेय हो, देकर अथवा (ख) लगान की रकम भू-स्वामी या उसके अभिकर्ता को विहित प्रारूप में डाक मद्रा देश द्वारा सीधे या उपायुक्त के माध्यम से भेजकर किया जा सकेगा। धारा-54 : लगान तथा ब्याज के लिए रसीद-1. ऐसा प्रत्येक अभिधारी, जो अपने भू-स्वामी को, लगान या उस पर देय ब्याज, अथवा दोनों के मद्दे भुगतान करे, अपने भू-स्वामी या उसके अभिकर्ता से तुरंत विहित प्रारूप में एक हस्ताक्षरित रसीद निःशुल्क प्राप्त करने का हकदार होगा। 2. भू-स्वामी या उसका अभिकर्ता रसीद का विहित प्ररूप में एक प्रतिपर्ण तैयार कर रखेगा। 3. (क) यदि कोई भू-स्वामी या उसका अभिकर्ता, बिना किसी युक्तियुक्त कारण के ऐसी रसीद देने या ऐसा प्रतिपर्ण तैयार कर रखने में असफल रह जाए तो, यथास्थिति, ऐसा भू-स्वामी या उसका अभिकर्ता ऐसी प्रत्येक अंसफलता के लिए एक महीने तक के सादे कारावास या एक सौ रुपए तक के जुर्माने अथवा दोनों से दंडनीय होगा। (ख) खंड (क) के अधीन अपराध जमानतीय होगा और न्यायालय की इजाजत से शमनीय होगा और ऐसे अपराध के विचारण पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबंध लागू होंगे। 4. यदि, इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अधीन किसी वाद या अन्य कार्यवाही में न्यायालय या पीठासीन अधिकारी (जो उपायक्त न हो) यह पाए कि कोई भू-स्वामा या अभिकर्ता : (क) अभिधारी को विहित प्ररूप में रसीद परिदत्त करने में असफल रहा है, (ख) अभिधारी को यथापर्वोक्त रीति से परिदत्त रसीद का विहित प्ररूप में प्रतिपर्ण तैयार कर रखने में असफल रहा है, तो ऐसा न्यायालय या अधिकारी उपयुक्त को सुचित कर देगा जो अपराध का संज्ञान ले सकेगा और या तो मामले का विचारण स्वयं कर सकेगा या उसे अपने अधीनस्थ किसी सक्षम मजिस्ट्रेट के पास विचारण के लिए अंतरित कर सकेगा। धारा-55 : उपायुक्त के न्यायालय में लगान का निक्षेप-निम्नलिखित में से किसी दशा में, जैसे (क) जब कोई अभिधारी लगान मद्दे रकम दे या प्रेषित करे और मू-स्वामी या उसका अभिकर्ता उसे प्राप्त करने या उसके लिए रसीद देने से इकार करे अथवा (ख) जब कोई अभिधारी, जो मुद्रा लगान देने के लिए आबद्ध हो, इस कारण के पहले के किसी अवसर पर इसके निविदा (टेंडर) को स्वीकार करने से इंकार कर दिया गया था और उसकी रसीद रोक ली गयी थी यह विश्वास हो कि भू-स्वामी या उसका अभिकर्ता उसे प्राप्त करने और उसके लिए रसीद देने को रजामंद नहीं होगा; या (ग) जब लगान यह सह-अंशधारियों को संयुक्त रूप से देय हो, और अभिधारी धन के लिए सह-अशधारियों की संयुक्त रसीद अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो और उनकी ओर से कोई व्यक्ति लगान प्राप्त करने के लिए शक्तिप्रदत्त न हो (घ) जब अभिधारी को लगान प्राप्त करने के हकदार व्यक्ति के संबंध में कोई सद्भाविक संदेह हो; तो अभिधारी; चाहे उसके विरुद्ध कोई वाद संस्थित किया गया हो या नहीं, उस उपायुक्त के न्यायालय में जिसे ऐसे लगान के लिए वाद या आवेदन ग्रहण करने की अधिकारिता प्राप्त हो भू-स्वामी के जमा खाते में वह पूरी रकम जमा कर सकेगा जिसे वह अपने द्वारा देय समझता हो; और इस प्रकार जमा की गई राशि जहाँ तक अभिधारी और उसके माध्यम से या उसके अधीन दावा करने वाले सभी व्यक्तियों का संबंध है, सभी तरह अभिधारी द्वारा भू-स्वामी के खाते में तत्समय जमा की जा चुकी राशि का प्रभाव रखेगी और उस रूप में पूर्णतः प्रभावी होगी। धारा-56 : जमा की प्राप्ति और उसके भुगतान की प्रक्रिया-1. अभिधारी या उसके अभिकर्ता के लिखित आवेदन करने पर, और विहित प्रारूप में उसके द्वारा घोषणा करने पर, उपायुक्त ऐसी जमा प्राप्त कर लेगा और जमा की गयी रकम की एक रसीद दे देगा। 2. उपायुक्त, इस प्रकार जमा किसी मुद्रा की प्राप्ति के बाद यथाशीघ्र जिस भू-स्वामी के खाते में यह जमा की गई हो उस भू-स्वामी के नाम विहित प्रारूप में एक सूचना जारी करेगा। 3. यदि कोई व्यक्ति जो जमा मुद्रा को प्राप्त करने का हकदार होने का दावा करे हाजिर होकर उसका भुगतान प्राप्त करने के लिए आवेदन करे तो उपायुक्त यदि वह उसका हकदार प्रतीत हो तो, उसे इस रकम का भुगतान कर सकेगा, अथवा यदि उपायुक्त ठीक समझे तो किसी सिविल न्यायालय द्वारा कौन व्यक्ति इसका हकदार है इसकी घोषणा के विनिश्चय के लंबित रहने तक रकम को प्रति धारित रख सकेगा। धारा-57 : जमा के पूर्व देय लगान के लिए वाद या आवेदन की परिसीमा-उपायुक्त द्वारा जब भी कोई जमा प्राप्ति कर ली जाए तो जमा के पूर्व प्रोद्भूत किसी दय लगान के लिए जमा करनेवाले व्यक्ति या उसके प्रतिनिधि के विरूद्ध कोई वाद तब तक नहीं चलेगा और धारा 244 के अधीन प्रमाण-पत्र के लिए कोई आवेदन भी गृहीत नहा किया जायेगा, जब तक कि ऐसा वाद या आवेदन ऐसी जमा की बावत धारा 56 के अधीन जारी की गयी सूचना की तामील की तारीख से छह महीने के भीतर संस्थित किया अथवा दिया नहीं गया हो। धारा-58 : लगान का बकाया किसे समझा जायेगा; बकाये पर ब्याज-1. लगान की ऐसी कोई किस्त, जो, जिस दिन वह देय हो उस दिन सूर्यास्त के पूर्व भुगतायी न जाए अथवा, जहां राज्य सरकार ही भू-स्वामी है, वहां जिस कृषि वर्ष में यह भुगतय हुई उस कषि वर्ष के अंत में भुगतायी न जाए तो उसे लगान का बकाया समझा जायेगा और, उस पर प्रतिवर्ष अधिक-से-अधिक सवा छह प्रतिशत साधारण ब्याज लगेगा। परन्तु जहाँ कोई अभिधारी जिस कृषि वर्ष में प्रोद्भूत लगान देय हुआ हो उस कृषि वर्ष के अगले कृषि वर्ष के भीतर अपने संपूर्ण लगान का भुगतान कर दे वहाँ विधिपूर्वक संदेय वार्षिक लगान पर तीन प्रतिशत से अधिक ब्याज नहीं लगेगा। धारा-59 : भू-धारक की बेदखली और बकाये के कारण पट्टे का रद्द किया जाना-जब किसी भू-धारक के यहां, जिसका भूमि में स्थायी अथवा अंतरणीय हित न हो, लगान का कोई बकाया देय न्यायनिर्णीत हो तब ऐसे भू-धारक का पट्टा रद्द कर दिये जाने का और भू-धारक बेदखल कर दिये जाने का दायी होगा। परंतु ऐसा कोई भी रद्द किया जाना या बेदखली, इस अधिनियम के अधीन दी गयी डिक्री या आदेश के निष्पादन से अन्यथा नहीं की जायेगी। धारा-60 : लगान के बकाये का काश्तकारी पर प्रथम भार होना-
धारा-62 : कालावधि, जब तक रूपांतरित लगान अपरिवर्तित रहेगा-
1: पंद्रह वर्षों की कालावधि तक नहीं बढ़ाया जाएगा, सिवाय – (क) भू-स्वामी द्वारा की गई अभिवृद्धि, अथवा भू-धृति या जोत के क्षेत्र में परिवर्तन के आधार . पर उपायुक्त के आदेश से, अथवा (ख) अध्याय 12 के अधीन राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश से और 2. यह पंद्रह वर्षों की कालावधि तक नहीं घटाया जाएगा, सिवाय – (i) धारा 33-क के खंड (ग), (घ) और (च) में विनिर्दिष्ट किसी भी आधार पर अथवा (ii) अध्याय 12 के अधीन राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश से। धारा-63 : स्थानीय उपकर सहित लगान से अधिक उद्ग्रहण अथवा अवैध भूमि परक शर्तों के अनुपालन कराने के लिए भू-स्वामी पर शास्त-1. (क) यदि कोई भू-स्वामी या उसका अभिकर्ता, तत्समय प्रवृत्त किसी विशेष अधिनियमिति के अधीन के सिवाय उस भ-स्वामी के किसी काश्तकार से, उस काश्तकार द्वारा अपनी कश्तकारी के लिए विधिपूर्वक देय लगान तथा ऐसे लगान के बकाये पर देय ब्याज के अतिरिक्त कोई धनराशि या अन्य वस्तु उद्ग्रहीत करे अथवा किसी काश्तकार द्वारा कोई ऐसी भूमि संबंधी शर्त का अनुपालन कराये जिसका वह विधिपूर्वक हक़दार न हो तो यथास्थिति, ऐसा भु-स्वामी या अभिकर्ता छ: महीने तक के साद कारावास से, या पांच सौ रुपये तक के जुर्माने से या दोनों से ही दंडनीय होगा। अध्याय-9 (क) : बजर भूमि का बदोबस्त-धारा-63 (क) : बंजर भूमि का बंदोबस्त पट्टे के द्वारा किया जाने का प्रावधानराज्य सरकार की बंजर भूमि का बंदोबस्त विहित प्रारूप में पट्टे या अमलनामा द्वारा किया जायेगा। पट्टा या अमलनामा दो प्रतियों में तैयार किया जायेगा, जिनमें से एक प्रति संबद्ध रैयत को दी जायेगी और एक प्रति जिले के उपायुक्त को भेज दी जायेगी। धारा-63 (ख) : बंदोबस्त, जो अपास्त किए जाने के दायित्वाधीन हो –यथापूर्वोक्त रीति से बंदोबस्त किसी ऐसी भूमि की दशा में, जिस पर बंदोबस्त की तारीख । से पाँच वर्षों की कालावधि तक खेती न की गई हो; अथवा धारा 46 में अंतर्विष्ट उपबंधों के उल्लंघन में अन्य संक्रमण किया गया हो, जिले का उपायुक्त बंदोबस्त को अपास्त करने और धारा 63-क के उपबंध के अनुसार ऐसी भूमि को पुन:बंदोबस्त करने के लिए स्वतंत्र होगा। अध्याय-10. भू-स्वामी तथा काश्तकार के लिए प्रकीर्ण उपबंध-धारा-64 : उपायुक्त की अनुज्ञा से भूमि का कोड़कर में संपरिवर्तन-1. किसी अधिकार-अभिलेख अथवा किसी रूढ़ि या प्रथा में अंतर्विष्ट किसी बात के प्रतिकूल होने पर भी, किसी ग्राम या उससे लगे हुए ग्राम के निवासी प्रत्येक कृषक को या भूमिहीन श्रमिकों को उपायुक्त की पूर्व अनुज्ञा से भूमि की कोड़कर में संपरिवर्तित करने का अधिकार होगा। परंतु जहाँ कृषक छोटानागपुर काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1947 (1947 का बिहार अधिनियम, संख्या 25) के प्रारंभ की तारीख को ऐसी भूमि को अधिकार अभिलेख की किसी प्रविष्ट अधवा किसी स्थानीय रूढ़ि या प्रथा के आधार पर भू-स्वामी की | सम्मति के बिना कोरकर में संपरिवर्तित करने के लिए हकदार था वहाँ उसके द्वारा भूमि | को कोरकर में संपरिवर्तित करने के लिए उप-धारा (1) के अधीन उपायुक्त की अनुज्ञा अपेक्षित न होगी। 2. भूमि को कोरकर में संपरिवर्तित करने की अनज्ञा का आवेदन प्राप्त कर लेने पर उपायुक्त भू-स्वामी पर विहित रोति से उस तारीख की सचना तामील कर देगा जिस तारीख का वह आवेदन की सुनवाई करने का आशय रखता हो और पक्षकारों की सुनवाई कर लन पर और ऐसी जाँच जैसे वह समुचित समझ कर लेने के बाद उपायुक्त या तो अनुज्ञा मजूर । कर देगा या नामंजूर कर देगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा। परंतु उपायुक्त इस धारा के अधीन दिए गए आवेदन को उसकी प्राप्ति की तारीख से तीन महीने के भीतर निपटा देगा। धारा-66 : कतिपय भूमि को कोरकर में संपरिवर्तित करने पर प्रतिषेध-धारा 64 की कोई बात किसी कृषक को किसी अन्य व्यक्ति के प्रत्यक्ष कब्जाधीन किसी बगीचे अथवा कृषित भूमि या वासभमि को कोरकर में संपरिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी। धारा-67 : कोरकर में अधिभोगाधिकार-ऐसे प्रत्येक रैयत को, जो ऐसी भूमि जोतता या धारित करता हो, जिसे उसने या उसके परिवार के किसी सदस्य ने कोरकर में संपरिवर्तित कर दिया हो, इस बात के होते हए भी कि उसने बारह वर्षों तक उस भूमि पर खेती नहीं की है अथवा उस भूमि को धारित नहीं किया है, उस भूमि पर अधिभोगाधिकार होगा। धारा-67 (क) : कोरकर में संपरिवर्तित भूमि के लगान का निर्धारण –यदि कोई रैयत धारा 64 के उपबंधों के अनुसार भूमि को कोरकर में संपरिवर्तित कर दे. तो ऐसी भूमि के लिए तब तक कोई लगान भुगतेय नहीं होगा जब तक कि जिस कृषि वर्ष में पहली फसल की कटाई की गई हो, उसके अंत के चार वर्षों की कालावधि समाप्त न हो चुकी हो। बेदखली का नियमधारा-68 : डिक्री या आदेश के निष्पादन के सिवाय काश्तकार को बेदखल नहीं किया जाना-किसी भी काश्तकार को किसी डिक्री या इस धारा के अधीन उपायुक्त के आदेश के निष्पादन के सिवाय उसकी काश्तकारी या उसके किसी प्रभाग से बेदखल नहीं किया जायेगा। धारा-70 : बेदखली की डिक्री या आदेश कब प्रभावी होगा-इस अधिनियम के अधीन पारित बेदखली की डिक्री या आदेश उस कृषि वर्ष के अंत से, जिसमें यह पारित किया गया हो, अथवा किसी ऐसी पूर्ववर्ती तारीख से (यदि कोई हो), अगर न्यायालय निर्देशित करे, प्रभावी होगा। धारा-71 : विधिविरूद्ध बेदखल किये गये काश्तकार को कब्जे में प्रतिस्थापित करने की शक्तियदि कोई काश्तकार धारा 68 के उल्लंघन में अपनी काश्तकारी या उसके किसी प्रभाग से बेदखल कर दिया जाए तो वह ऐसी बेदखली की तारीख से एक वर्ष (अथवा यदि वह अधिभोगी रैयत हो तो तीन वर्ष) की कालावधि के भीतर ऐसी काश्तकारी या प्रभाग के कब्जे में प्रतिस्थापित कर दिये जाने की प्रार्थना करते हुए उपायुक्त को आवदन पश कर सकेगा और उपायुक्त, यदि उचित समझे तो सरसरी जांच करने के बाद उस विहित रीति से कब्जे में प्रतिस्थापित कर देगा। धारा-72 : रैयत द्वारा भूमि का अभ्यर्पण-1. वह रैयत जो किसी नियत कालावधि के किसी पटटे या अन्य करार से आबद्ध न हो किसी कृषि वर्ष के अंत में उपायुक्त की लिखित पर्व मंजूरी से, अपनी जोत को अभ्यर्पित कर सकेगा। 2. किंतु अभ्यर्पण के बावजूद भी, रैयत जब तक कि उसने अपने भू-स्वामी, को अभ्यर्पण के पूर्व अपने इस आशय की सूचना कम-से-कम चार महीने पहले न दी हो तब, तक वह भ-स्वामी को अभ्यर्पण की तारीख के ठीक अगले कृषि वर्ष के लिए जोत की लगान की हानी के प्रति क्षतिपूर्ति के दायित्वाधीन होगा। धारा-73 : रैयत द्वारा भूमि का परित्याग-1. यदि कोई रैयत भू-स्वामी को सूचना दिये बिना अपने द्वारा धारित या जोती जानेवाली भूमि का परित्याग स्वेच्छा से कर दे और स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भूमि पर खेती करना और जब भी लगान भुगतेय हो तब उसका भुगतान करना रोक दे तो भू-स्वामी जिस कृषि वर्ष में रैयत इस प्रकार परित्याग करे और जोतना बंद कर दे उस कृषि वर्ष की समाप्ति के बाद, किसी भी समय जोत पर प्रवेश कर सकेगा, उसे किसी दूसरे रैयत को पट्टे पर दे सकेगा या उस पर स्वयं खेती कर सकेगा। 2. भू-स्वामी द्वारा इस धारा के अधीन प्रवेश करने के पूर्व वह कथित उपायुक्त को विहित रीति से एक सूचना देगा जिसमें यह कथित रहेगा कि उसने जोत को परित्यक्त मान लिया है और उस पर तद्नुसार प्रवेश करने ही वाला है और उपायुक्त इस तथ्य की एक सूचना विहित रीति से प्रकाशित कराएगा और यदि सूचना के प्रकाशन की तारीख से एक मास के भीतर उसके समक्ष कोई आक्षेप दाखिल किया जाए तो वह संक्षिप्त जाँच करेगा और यह विनिश्चित करेगा कि भू-स्वामी उप-धारा (1) के अधीन जोत पर प्रवेश करने के हकदार है या नहीं। भू-स्वामी जोत पर तब तक प्रदेश नहीं करेगा जब तक कि ऐसे आक्षेप का विनिश्चय उसके पक्ष में नहीं हो जाता अथवा यदि कोई आक्षेप न किया जाए तो जब तक सूचना के प्रकाशन की तारीख से एक मास की कालावधि बीत न जाए। 3. जब भू-स्वामी इस धारा के अधीन प्रवेश करे तब रैयत सूचना (नोटिस) के प्रकाशन की तारीख से, किसी समय, जो अधिभोगी रैयत की दशा में तीन वर्षों के बाद का या अनधिभोगी रैयत की दशा में एक वर्ष बाद का न हो, उपायुक्त के पास कब्जा वापस प्राप्त करने के लिए आवेदन करने का हकदार होगा और तदुपरांत उपायुक्त, अपना यह समाधान हो जाने पर कि रैयत ने जोत का परित्याग स्वेच्छा से नहीं किया है, उसे क्षतिग्रस्त व्यक्ति को प्रतिकर तथा लगान के बकाए के भुगतान के विषय में ऐसे बंधेजों (यदि कोई हो) पर, जो उपायुक्त उचित प्रतीत हो, विहित रीति से, कब्जा प्रत्यावर्तित कर सकेगा। धारा-74 : इस पट्टे का प्रभाव, जिससे यह तात्पर्यित हो कि अधिभोग आरंभ होने के बाद उसे अधिभोग में शामिल कर लिया गया है-जहां कोई भू-धारक, ग्राम-मुखिया या रैयत किसी भूधृत्ति या जोत के अधिभोग में रहा हो और कोई पट्टा निष्पादित किया जाए ताकि अधिभोग जारी रहे वहां उसे उस पट्टे के जरिये अधिभोग में शामिल नहीं समझा जायेगा, भले ही पट्टे में उसे अधिभोग में शामिल करना तात्पर्यित हो। धारा-75 : भूमि का माप-1. किसी संपदा, भूधत्ति या मुंडारी खूटकट्टीदार-काश्तकारी के प्रत्येक भू-स्वामी को, ऐसी संपदा, भूधृत्ति या काश्तकारी में समाविष्ट भूमि का सामान्य सर्वेक्षण या माप करने का अधिकार होगा, जब तक कि भूमि के अधिभोगियों के साथ अभिव्यक्त वचन-बंध द्वारा उसे ऐसा करने से अवरूद्ध न कर दिया जाए। 2. यदि किसी ऐसी भूमि की माप करने का आशय रखनेवाले भ-स्वामी का, जिसकी माप करने का अधिकार उसे हो, भूमि के अधिभोगी द्वारा विरोध किया जाए, अथवा यदि ऐसा कोई काश्तकार, जिसे अपने द्वारा धारित या कर्षित भूमि की, जो ऐसी माप के दायित्व के अधीन हो, आशयित माप की सूचना प्राप्त हो चुकी हो, हाजिर होने और उस भूमि को बताने से इंकार कर दे तो भू-स्वामी उपायुक्त के पास एक आवेदन पेश करेगा। 3. ऐसा आवेदन प्राप्त करने पर उपायुक्त ऐसा साक्ष्य ग्रहण करने और ऐसा जांच करने के पश्चात् जैसा वह आवश्यक समझे, माप को स्वीकार या अस्वीकार करने वाला और यदि मामले में ऐसा अपेक्षित हो तो किसी काश्तकार की हाजरी का या हाजरी माफ करने का आदेश पारित करेगा। 4. यदि कोई काश्तकार, उसकी हाजरी का आदेश जारी होने के पश्चात् हाजिर होने से इंकार कर दे या उसकी उपेक्षा करे तो जिस समय काश्तकार को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया हो उस समय भू-स्वामी के निर्देशाधीन तैयार भूमि की सीमाओं और माप के किसी नक्शे या अन्य अभिलेख को, जब तक कि तत्प्रतिकूल दर्शित न कर दिया जाए, सही माना जाएगा। अध्याय-11 : रूढ़ि और संविदा–धारा-76 : रूढ़ि की व्यावृति-इस अधिनियम की कोई बात ऐसी किसी रूढ़ि, प्रथा अथवा रूढ़िजन्य अधिकार को प्रभावित न करेगी जो उसके उपबंधों से असंगत न हो अथवा इसके द्वारा अभिव्यक्ततः या आवश्यक विवक्षा द्वारा उपांतरित या उन्मूलित न हो। धारा-78 : वासभूमि-जब कोई रैयत अपनी वासभूमि को अपनी जोत के भाग से अन्यथा, रैयत के रूप में धारित करे तो वासभूमि की अभिधृति की प्रसंगतियां स्थानीय रूढ़ि या प्रथा द्वारा और स्थानीय रूढ़ि या प्रथा के अध्यधीन रैयत द्वारा धारित भूमि पर इस अधिनियम के लागू होने योग्य उपबंधों द्वारा विनियमित होगी। धारा-79 : अधिनियम के अपवर्जन पर करार द्वारा प्रतिबंध-1. इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व या पश्चात् किसी भू-स्वामी और काश्तकार के बीच की किसी संविदा की कोई बात (क) भूमि में अधिभोगाधिकार के अर्जन को शाश्वत काल के लिए वर्जित नहीं करेगी, अथवा (ख) संविदा की तारीख को विद्यमान किसी अधिभोगाधिकार को नहीं हटायेगी, (ग) किसी भू-स्वामी को इस अधिनियम के उपबंधों से किसी काश्तकार को बेदखल करने का हकदार नहीं बनाएगी। धारा-79 (क) : करार द्वारा कुछेक प्रकार के लगान के भुगतान पर प्रतिबंध1. छोटानागपुर काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1938 के प्रारंभ होने के पूर्व या पश्चात् किसी भू-स्वामी और भू-धारक या रैयत के बीच अभिव्यक्त या विवक्षित किसी संविदा की कोई बात, भू-स्वामी को सामान्यतः दानाबंदी नामक पद्धति के अनुसार संपूर्ण फसल या उसके किसी भाग के प्राक्कलित मूल्य पर, अथवा भू-धारक या रैयत की भूधत्ति अथवा जोत के संपूर्ण या किसी भाग की प्राक्कलित उपज पर लगान का हकदार नहीं बनायेगी। अध्याय-12 अधिकार अभिलेख एवं लगान का निर्धारण-धारा-80 : सर्वेक्षण करने और अधिकार-अभिलेख तैयार करने का आदेश देने की शक्ति-1. राज्य सरकार किसी स्थानीय क्षेत्र, संपदा या भूधृत्ति अथवा उसके भाग की भूमि की बावत यह आदेश दे सकेगी कि किसी राजस्व अधिकारी द्वारा सर्वेक्षण किया जाए और अधिकार अभिलेख तैयार किया जाए। 2. उपधारा (1) के अधीन किसी आदेश की राजपत्र में अधिसूचना इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा कि आदेश सम्यक् रूप से किया गया है। 3. सर्वेक्षण किया जायेगा और अधिकार अभिलेख की तैयारी विहित रीति से की जायेगी। धारा-82 : जल के विषय पर सर्वेक्षण तथा अधिकार अभिलेख तैयार करने का आदेश देने की शक्ति-राज्य सरकार, भू-स्वामियों, काश्तकारों, स्वत्वधारियों या इनमें से किसी वर्ग के व्यक्तियों के बीच जल के उपयोग या बहाव के विषय में विद्यमान या संभावित विवादों को तय या उनका निवारण करने के प्रयोजनार्थ, यह निदेशित करनेवाला आदेश दे सकेगी कि किसी स्थानीय क्षेत्र संपदा या भूधृत्ति अथवा उसके किसी भाग में, निम्नलिखित के बारे में, प्रत्येक काश्तकार और भू-स्वामी के अधिकार और बाध्यताएँ अभिनिश्चित और अभिलिखित करने के लिए किसी राजस्व अधिकारी द्वारा सर्वेक्षण किया जाए और अधिकार अभिलेख तैयार किया जाए – (क) काश्तकार द्वारा कृषि-प्रयोजन के लिए जल के उपयोग के बारे में, चाहे वह जल किसी नदी, झील, तालाब या कुएँ से अथवा जलापूर्ति के किसी अन्य स्रोत से अभिप्राप्त किया जाता हो; और (ख) प्रत्येक काश्तकार द्वारा धारित भूमि पर खेती के लिए जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए साधित्रों की मरम्मत और अनुरक्षण के बारे में, चाहे ऐसे साधित्र ऐसी भूमि की सीमओं के भीतर स्थित हों या नहीं। धारा-83 : अधिकार अभिलेख का प्रारंभिक प्रकाशन, संशोधन और अंतिम प्रकाशन-1. जब इस अध्याय के अधीन अधिकार अभिलेख का प्रारूप तैयार कर लिया जाए, तो राजस्व अधिकारी प्रारूप को विहित रीति से और विहित कालावधि के लिए प्रकाशित करेगा, और प्रकाशन की कालावधि के दौरान उन किन्हीं भी आपत्तियों को प्राप्त करेगा और उन पर विचार करेगा जो उसकी किसी प्रविष्टि पर, अथवा किसी लोप पर की जाए। धारा-85 : उचित लगान का परिनिर्धारण-1. प्रत्येक क्षेत्र में, जिसकी बावत, धारा 80 के अधीन सर्वेक्षण किया जा रहा हो या किया जा चुका हो और अधिकार अभिलेख तैयार किया जा रहा हो या किया जा चुका हो राजस्व अधिकारी किसी काश्तकार द्वारा धारित किसी भी भूमि का परिनिर्धारित कर सकेगा। 2. उप-धारा (1) के अधीन लगान का परिनिर्धारण (क) किसी भू-स्वामी या काश्तकार का आवेदन पर, अथवा (ख) यदि राज्य सरकार निर्देश दे तो, बिना ऐसे आवेदन के ही किया जा सकेगा। धारा-86 : लगान निर्धारण के समय उठने वाले विवाधकों का विनिश्चय-जहां, धारा 85 के अधीन लगान परिनिर्धारण की किसी कार्यवाही में, निम्नलिखित में से कोई विवाद्यक उठे- (क) कि भूमि लगान भुगतान के दायित्वाधीन है। (ख) कि भूमि, यद्यपि अधिकार अभिलेख में लगानमुक्त रूप में धारित प्रविष्ट है, लगान के भुगतान के दायित्वाधीन है। (ग) कि भू-स्वामी और काश्तकार का संबंध विद्यमान है। (घ) कि भूमि गलत ढंग से किसी विशिष्ट संपदा या काश्तकारी के भाग रूप में अभिलिखित कर दी गई है, अथवा गलत ढंग से किसी संपदा या काश्तकारी की भूमि से लुप्त कर दी गई है या नहीं। (ङ) कि काश्तकार उस वर्ग से भिन्न किसी वर्ग का है जिस वर्ग का वह अधिकार अभिलेख में दिखलाया गया है। (च) कि काश्तकारी की विशेष शर्ते और प्रसंगतियाँ अभिलिखित नहीं की गई है अथवा गलत ढंग से अभिलिखित की गई हैं अथवा भूमि से आबद्ध कोई सुविधाधिकार अभिलिखित की गई हैं अथवा भूमि से आबद्ध कोई सुविधाधिकार अभिलिखित नहीं किया गया है अथवा गलत ढंग से अभिलिखित किया गया है तो राजस्व अधिकारी, तद्नुसार ऐसे विवाद्यक का विचारण और विनिश्चय करेगा और धारा 85 के अधीन लगान परिनिर्धारित कर देगा। धारा-87 : राजस्व अधिकारी के समक्ष वादों का संस्थित किया जाना-1. इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों में धारा 83 के उप-धारा (2) के अधीन अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के प्रमाण-पत्र की तारीख से तीन महीनों के भीतर किसी भी समय अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पूर्व धारा 85 के उपबंधों के अधीन परिनिर्धारित उचित लगान की प्रविष्टि के सिवाय. अभिलेख की किसी एसा प्रावाष्ट या उसकी किसी ऐसी लुप्ति के संबंध में. जिसे राजस्व अधिकारी ने की हो, किसी विवाद क विनिश्चय के लिये कोई वाद राजस्व अधिकारी के समक्ष संस्थित किया जा सकेगा, चाहे ऐसा विवाद- (क) भू-स्वामी और काश्तकार के बीच हो, अथवा (ख) एक ही या पड़ोसी संपदा के भू-स्वामियों के बीच हो, अथवा (ग) काश्तकार और काश्तकार के बीच हो, अथवा (च) भू-स्वामी और काश्तकार के संबंध की विद्यमानता के बारे में हो, अथवा (ङ) लगान-मुक्त धारित भमि उचित रूप से इस प्रकार धारित है या नहीं इसके बारे में हो, अथवा (ङ) वाद के पक्षकारों के बीच भूमि में हक या किसी हित संबंधी प्रश्न के बारे में हो, (च) किसी अन्य विषय के बारे में हो और राजस्व अधिकारी विवाद की सुनवाई कर विनिश्चय करेगा : परंतु राजस्व अधिकारी, ऐसे नियमों के अध्यधीन जो धारा 264 के अधीन इस निमित्त बनाए जाए, किसी विशिष्ट मामले या मामलों के वर्ग को विचारण के लिए किसी सक्षम न्यायालय को अंतरित कर सकेगा। परंतु यह और भी कि इस धारा के अधीन किसी वाद में राजस्व अधिकारी किसी ऐसे विवाद्यक का, जो इस अध्याय के अधीन लगान के परिनिर्धारण की कार्यवाहियों में, उन्हीं पक्षकारों के बीच या उन पक्षकारों के बीच जिनके अधीन वे या उनमें से कोई दावा करता हो, प्रत्यक्षतः और सारतः विवाद्य विषय रहे, विचारण नहीं करेगा, जहाँ ऐसे विवाद्यक अधि कार-अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के बाद संस्थित कार्यवाहियों में धारा 86 के अधीन किसी राजस्व अधिकारी द्वारा विचारित और विनिश्चित किया जा चुका हो या किया जा रहा हो। 2. उप-धारा (1) के अधीन पारित विनिश्चयों के विरुद्ध अपील विहित रीति से और विहित अधिकारी के पास की जा सकेगी और अपील पर ऐसे अधिकारी के किसी विनिश्चय पर उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील उसी प्रकार हो सकेगी मानो ऐसा विनिश्चय अध्याय – 16 के अधीन न्याय-आयुक्त द्वारा पारित अपीली डिक्री हो। धारा-89 : राजस्व अधिकारी द्वारा पुनःनिरीक्षण-1. राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेषतः सशक्त कोई राजस्व अधिकारी, आवेदन करने पर या स्वप्रेरणा से, अधिकार अभिलेख के प्रारूप में की गई किसी प्रविष्टि, अथवा धारा 83, धारा 85 या धारा 86 के अधीन दिये गये किसी आदेश या विनिश्चय से बारह महीनों के भीतर उसका पुनरीक्षण कर सकेगा, चाहे ऐसी प्रविष्टि या आदेश अथवा विनिश्चय उसी के द्वारा किया गया हो या किसी अन्य राजस्व अधिकारी द्वारा लेकिन ऐसा न कि धारा 87 के अधीन पारित किसी आदेश अथवा धारा 85 की उप-धारा (4) के अधीन अपील में पारित किसी आदेश पर उसका प्रभाव पड़ जाए। धारा-90 : अधिकार अभिलेख की भूलों की राजस्व अधिकारी द्वारा शुद्धि-अधिकार अभिलेख में, धारा 83 की उप-धारा (2) के अधीन इसके अंतिम प्रकाशन के प्रमाण-पत्र की तारीख से पांच वर्षों के भीतर किसी सद्भाविक या तात्विक गलती का पता लगने की दशा में, उपायुक्त या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त कोई राजस्व अधिकारी, स्वप्रेरणा से अथवा उक्त कालावधि के भीतर उसके पास किये गये आवेदन पर, विहित रीति से जांच कर लेने के पश्चात् लिखित आदेश द्वारा यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी गलती की शुद्धि आदेश में विनिर्दिष्ट रीति से की जायेगी। धारा-91 : अधिकार अभिलेख की तैयारी के लिए आदेश दिये जाने पर उपायुक्त या सिविल न्यायालय के समक्ष कतिपय कार्यवाहियों का रोका जाना-1. जब धारा 80 के अधीन अथवा इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अधिकार अभिलेख की तैयारी का निदेश देनेवाला कोई आदेश दिया गया हो, तो इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में अंतर्विष्ट किसी बात के होने पर भी, कोई उपायुक्त या सिविल न्यायालय. जब तक कि अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पश्चात छ: महीने न हो जाएं, ऐसा कोई वाद या आवेदन (जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का V) के अधीन कोई आवेदन न हो) ग्रहण नहीं करेगा (क) जिसमें जिस क्षेत्र में अधिकार-अभिलेख लागू हो उस क्षेत्र में धारा 81 के खंड (ढ) में निर्दिष्ट किसी अधिकार की विद्यमानता, अविद्यमानता, प्रकृति या विस्तार प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षतः विवादग्रस्त हो अथवा जो ऐसे अधिकार की बाबत किसी व्यक्ति द्वारा देय राशि के अवधारण, निर्धारण या परिवर्तन के लिए हो अथवा (ख) जो ऐसे क्षेत्र में किसी काश्तकार के लगान में परिवर्तन करने अथवा उसकी हैसियत अवधारित करने के लिए हो; परंतु यदि कोई व्यक्ति, जिस कालावधि में इस धारा द्वारा वाद या आवेदन प्रतिषिद्ध हो. उस कालावधि के दौरान बंजर भूमि या जंगल भूमि की बाबत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बर्बादी और नुकसान के किसी भी कार्य से अपने को व्यथित माने, तो वह उपायक्त के पास आवेदन कर सकेगा, जो ऐसी जाँच के पश्चात् जैसा वह उचित समझे, लिखित आदेश द्वारा ऐसी बर्बादी या नुकसान का जारी रहना प्रतिषिद्ध कर सकेगा। 2. ऐसे वाद या आवेदन के लिए उपबंधित परिसीमा-कालावधि की संगणना करने में उस कालावधि को अपवर्जित कर दिया जाएगा, जिसके दौरान वाद का संस्थित किया जाना अथवा आवेदन का दिया जाना उप-धारा (1) द्वारा विलम्बित हो गया हो। धारा-92 : अधिकार अभिलेख संबंधी विषयों में न्यायालयों की अधिकारिकता का वर्जन-
धारा-93 : अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन तक उपायुक्त या सिविल न्यायालय के समक्ष कतिपय कार्यवाहियों का रोक दिया जाना-1. जब इस अध्याय के अधीन किसी भूमि की बावत अधिकार अभिलेख तैयार कर अंतिम रूप से प्रकाशित कर दिया गया हो तो निम्नलिखित में से किसी विवाद्यक के विनिश्चय के लिए ऐसे अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के प्रमाण पत्र की तारीख से छः महीनों के भीतर ऐसी भूमि या उसके किसी काश्तकार को प्रभावित करने वाला कोई आवेदन या वाद उपायुक्त के समक्ष नहीं दिया जाएगा या किसी सिविल न्यायालय में कोई वाद दायर नहीं किया जाएगा – (क) क्या भू-स्वामी या काश्तकार का संबंध है। (ख) क्या भूमि किसी विशिष्ट संपदा या काश्तकारी का भाग है। (ग) क्या काश्तकारी की कोई विशेष शर्त या प्रसंगतियाँ हैं। (घ) क्या भूमि से संलग्न कोई सुखाचार है। 2. यदि ऐसे क्षेत्र में अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पूर्व, उपचार अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पूर्व, उप-धारा (1) में वर्णित कोई वाद जिसमें किसी भी विवाद्यक का विनिश्चय अंतर्ग्रस्त हो उपायुक्त के समक्ष या सिविल न्यायालय में दायर किया जाए, तो राजस्व अधिकारी धारा 87 के अधीन कोई वाद ग्रहण नहीं करेगा जिसमें उसी विवाद्यक का विनिश्चय अंतर्ग्रस्त हो। 3. जहाँ आवदेन करने या वाद संस्थित करने में उप-धारा (1) के चलते विलंब हुआ हो वहाँ ऐसे वाद या आवेदन के लिए जो परिसीमा उपबंधित है उसकी कालावधि की संगणना करते समय उसमें उल्लिखित छह महीने की कालावधि कर दी जाएगी। धारा-94 : जिस कालावधि के लिए अधिकार अभिलेख में लगान दर्ज किया गया हो उसका अपरिवर्तित रहना-1. जब किसी अधिभोग जोत का लगान उस अधिकार अभिलेख में प्रविष्ट हो जो इस अध्याय या इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन तैयार और अंतिम रूप से प्रकाशित कर दिया गया हो, अथवा इस अध्याय के अधीन घटा दिया गया हो, तो धारा 85, 87, 89 और 90 के उपबंधों के रहते हुए, ऐसा लगान, भू-स्वामी के सुधार के आधार के सिवाय, निम्न कालावधि तक बढ़ाया न जायेगा (क) अधिकार-अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पश्चात् पंद्रह वर्षों तक, यदि ऐसा प्रकाशन इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रश्चात् किया गया हो, अथवा (ख) अधिकार-अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पश्चात् सात वर्षों तक, यदि ऐसा कोई प्रकाशन इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व किया गया हो। धारा-95 : इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के खर्च-1. जब इस अध्याय के अधीन अधिकार अभिलेख की तैयारी निर्देशित की जाए या हाथ में ली जाए, तो किसी स्थानीय क्षेत्र, संपदा, भूधृत्ति या उसके किसी भाग में इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने में उपगत व्यय (जिसमें इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजनार्थ परिनिर्मित किये गये सीमा-चिन्हों और अन्य सर्वेक्षण चिन्हों के अनुरक्षण, मरम्मत या प्रत्यावर्तन में अधिकार अभिलेख की तैयारी के पूर्व या पश्चात् किसी समय, उपगत किये जा सकने वाले व्यय भी सम्मिलित हैं) अथवा उन व्ययों का वह भाग, जिसे राज्य सरकार निर्देशित करे, उस स्थानीय क्षेत्र, संपदा, भूधृत्ति या उसके भाग की भूमि के भू-स्वामियों, अभिधारियों और अधिभोगियों द्वारा ऐसे अनुपात में और उतनी किस्तों में (यदि कोई हो) चुकाया जायेगा जो राज्य सरकार, सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अवधारित करे। धारा-96 : करार अथवा समझौता को कार्यान्वित करने की राजस्व पदाधिकारी की शक्ति-इस अध्याय के अधीन अधिकार अभिलेख तैयार करने और विवादों का विनिश्चय करने में राजस्व पदाधिकारी किसी भू-स्वामी और उसके अभिधारी के बीच किये गये किसी वैध करार या समझौते को कार्यान्वित करेगा। धारा-97 : वह दिनांक जब से परिनिर्धारित लगान प्रभावी होगा-जब इस अध्याय के अधीन राजस्व अधिकारी द्वारा लगान परिनिर्धारित किया जाए, तब . वह लगान इसके अंतिम रूप से नियत करने के विनिश्चय की तारीख के बाद, अगले कृषि वर्ष के प्रारंभ से प्रभावी होगा। Balance will be updated soon(renaming part: section 98 to 271) 18/03/2021 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम क्या है?छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम, 1908, एक भूमि अधिकार कानून है जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित झारखंड की आदिवासी आबादी के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। सीएनटी अधिनियम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह सामुदायिक स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए गैर-आदिवासियों को भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम कब लागू किया गया था?(Chotanagpur Tenancy Act, 1908)
आदिवासियों के खिलाफ शोषण और भेदभाव के खिलाफ बिरसा मुंडा द्वारा किये गए संघर्ष के फलस्वरूप वर्ष 1908 में छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों के लिये पारित होने को प्रतिबंधित किया।
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