काश्तकारी अधिनियम कब लागू किया गया? - kaashtakaaree adhiniyam kab laagoo kiya gaya?

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

काश्तकारी अधिनियम कब लागू किया गया? - kaashtakaaree adhiniyam kab laagoo kiya gaya?

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

  • Hindi News
  • National
  • राज्य में सीएनटी एक्ट संशोधन विवाद पर कार्मिक सचिव ने रखा सरकार का पक्ष, सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट म

राज्य में सीएनटी एक्ट संशोधन विवाद पर कार्मिक सचिव ने रखा सरकार का पक्ष, सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट में संशोधन से रैयतों को लाभ होना तय

फोटो कैप्शन : प्रेस कांफ्रेंस में कार्मिक सचिव निधि खरे और भवन निर्माण सचिव केके सोन।

रांची। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 एवं संथाल परगना अधिनियम 1949 में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन झारखण्ड की जनता के हित में है। यह समय की मांग है, अगर हमें छोटानागपुर और संथाल परगना की जनता को सशक्त बनाना है, उनका आर्थिक उन्नयन करना है, तो हमें इस संशोधन को सहर्ष स्वीकार करना होगा। ये बातें प्रधान सचिव कार्मिक एवं प्रशासनिक सह राज्य सरकार की प्रवक्ता निधि खरे ने, सूचना भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बुधवार को कही।

अपनी जमीन की सही उपयोग कर सकेंगे रैयत

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की धारा 21 एवं धारा 13 संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के तहत रैयत अपनी जमीन का उपयोग सिर्फ कृषि और कृषि से जुड़े कार्यों के लिए ही कर सकते है, यानी उन्हें अपनी ही जमीन का गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, ऐसे में अगर वे चाहे कि अपनी जमीन पर, मैरिज हॉल, होटल, ढाबा, दुकान या अपनी मर्जी का कोई और प्रतिष्ठान खोल सकें तो वे ऐसा नहीं कर सकते, ऐसे में उनका आर्थिक विकास कैसे होगा, वे सशक्त कैसे होंगे। ये सब को सोचना होगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उनके आर्थिक उन्नयन के लिए संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि वे अपनी जमीन का अपनी मर्जी से अपने हित में सही इस्तेमाल कर सकें, साथ ही अपना विकास भी कर सकें।

भ्रांतियां फैलायी जा रही है कि जमीन पर स्वामित्व खत्म होगा, यह गलत

निधि खरे ने कहा कि जो ये भ्रांतियां फैलायी जा रही है कि इससे उनके जमीन पर स्वामित्व खत्म हो जायेगा, वे गलत कर रहे है, पूर्णतः भ्रांति फैला रहे है। इस संशोधन से किसी भी रैयती के जमीन पर स्वामित्व के उसके अधिकार को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, बल्कि इससे उनके स्वामित्व का सही आर्थिक लाभ रैयतों को प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए वे जितना हिस्सा गैर कृषि कार्यों के लिये करेंगे, उतनी ही भूमि के बाजार मूल्य के अधिकतम एक प्रतिशत के बराबर ही उन्हें गैर कृषि लगान देना होगा। इससे रैयतों के अधिकार एवं स्वामित्व को और मजबूती मिलेगी।

रैयत को कानूनी संरक्षण भी प्राप्त होगा

निधि खरे के अनुसार अगर कोई रैयत द्वारा ऐसे भूखंड पर गैर कृषि कार्य किया जा रहा है तो उसे नियमित भी किया जा सकेगा। जिससे रैयत भविष्य में होनेवाले कानूनी झंझट से भी बच जायेंगे, साथ ही कानूनी संरक्षण भी उन्हें प्राप्त हो जायेगा। निधि खरे ने कहा कि अगर भविष्य में भूमि के विधि सम्मत स्वरूप परिवर्तन होने के फलस्वरूप उनकी जमीन का यदि भविष्य में अर्जन भी होता है तो उन्हें उनकी जमीन का अधिक मूल्य प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि धारा 49 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम में भी संशोधन प्रस्तावित है। चूंकि राज्य में चल रहे रेलवे, सड़क, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, विभिन्न प्रकार की जनोपयोगी परियोजनाओं के लिए जमीन की आवश्यकता होती है। अतः उक्त आवश्यकताओं को देखते हुए इसमें भी बदलाव की आवश्यकता है, जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं के लिये कोई भी रैयत उपायुक्त से अनुमति प्राप्त कर अपनी भूमि जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए हस्तांतरित कर सकता है।

राज्य सरकार ने जो संशोधन प्रस्ताव रखे है, वे पूर्णतः जनहित में

इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भूमि हस्तांतरित होगी, उनका कार्यान्वयन 5 वर्षों के अंदर करना होगा, अन्यथा संबंद्ध रैयतों को पूर्व में हस्तांतरण की गई राशि बिना वापस किये उनकी भूमि उन्हें लौटा दी जायेगी। निधि खरे ने बताया कि राज्य सरकार ने जो संशोधन प्रस्ताव रखे है, वे पूर्णतः जनहित में है, पर कुछ लोगों ने इस बारे में गलत भ्रांतियां फैला दी, जिसका वे जवाब दे रही है। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता को तनिक भी संदेह में नहीं रहना चाहिए।

संशोधनों से आदिवासियों का हित सधेगा

निधि खरे के अनुसार धारा 71 ए में भी संशोधन प्रस्तावित है। पूर्व में राज्य के आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तांतरित भूमि को उन्हें एसएआर कोर्ट द्वारा वापस करने का प्रावधान है। धारा 71 ए के द्वितीय और तृतीय की आड़ में बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियमन अधिनियम 1969 में प्रावधानित नियमों के विपरीत 30 वर्षों के बाद भी एसएआर कोर्ट द्वारा कंपनसेशन का आदेश जमीन माफिया/जमीन दलाल प्राप्त कर आदिवासियों की जमीन हड़पने में सफल होते रहे है। धारा 71 ए में कंपनसेशन का प्रावधान ही हटा दिया गया है तथा 6 महीने के अंदर आदिवासियों की जमीन उन्हें वापस करने का प्रावधान कर दिया गया है। ऐसे में ये कहना कि इन संशोधनों से आदिवासियों का अहित होगा, वह पूर्णतः गलत है, सच्चाई यह है कि इससे आदिवासियों का ही हित सधेगा।

संवाददाता सम्मेलन में राजस्व विभाग के सचिव केके सोन एवं सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक अवधेश कुमार पांडेय भी मौजूद थे।

फोटो : पवन कुमार।

काश्तकारी अधिनियम कब आया था?

(Chotanagpur Tenancy Act, 1908) आदिवासियों के खिलाफ शोषण और भेदभाव के खिलाफ बिरसा मुंडा द्वारा किये गए संघर्ष के फलस्वरूप वर्ष 1908 में छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों के लिये पारित होने को प्रतिबंधित किया।

काश्तकारी अधिनियम 1955 क्या है?

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955, 15 अक्टूबर 1955 से लागू हुआ। तहसील आबू, अजमेर एवं सुनेल में यह अधिनियम 15 जून 1958 से लागू किया गया। इस अधिनियम के अधीन बिचौलिये पूर्णतया समाप्त कर दिये गये एवं अब राजस्थान में सभी काश्तकार भूमि पर सिर्फ राज्य के अन्तर्गत अपना हक रखते है। राज्य सभी भूमि का स्वामी माना जाता है।

छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1960 क्या है?

छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम, 1908, एक भूमि अधिकार कानून है जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित झारखंड की आदिवासी आबादी के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। सीएनटी अधिनियम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह सामुदायिक स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए गैर-आदिवासियों को भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।

काश्तकारी अधिनियम 1822 क्या है?

1822 में बंगाल में रैयत के अधिकारों की सुरक्षा हेतु बंगाल काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया. बंगाल काश्तकारी अधिनियम में यह व्यवस्था थी कि यदि रैयत अपना निश्चित किराया देती रहे तो उसे विस्थापित नहीं किया जाएगा साथ ही विशेष परिस्थितियों को छोड़कर किराया भी नहीं बढ़ाया जाएगा.