बाल्यावस्था वास्तव में मानव जीवन का वह स्वर्णिम समय है जिसमें उसका सर्वांगीण विकास होता है शैशव अवस्था के बाद 5 से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था के नाम से पुकारा जाता है मनोवैज्ञानिक ने इस अवस्था को मानव विकास का अनोखा काल कहा है इस अवस्था को समझ पाना बहुत कठिन होता है क्योंकि विक दृष्टि से यह एक जटिल अवस्था है इस अवस्था में विभिन्न
प्रकार के शारीरिक मानसिक सामाजिक तथा भौतिक परिवर्तन बालक में आते हैं फ्रॉड वह उनके समर्थकों ने इस अवस्था को विशेष महत्व दिया है इस अवस्था में बालक पहले 3 वर्षों में बड़ी तेजी से बढ़ता है आउट उसके बाद 6 वर्ष में धीमी गति से बढ़ता है आस्था के भी दो स्तर होते हैं पूर्व बाल्यावस्था तथा उत्तर बाल्यवस्था । पूर्व बाल्यकाल में बालक बहुत तेजी के साथ बढ़ता है जबकि उत्तर बाल्यावस्था में विकास की गति धीमी हो जाती है के अनुसार इस अवस्था में बालक में तनाव की स्थिति समाप्त हो जाती है तथा वह बाहर की दुनिया को
समझने लगता है यह अवस्था बालक के व्यक्तित्व के निर्माण की होती है बालक में इस अवस्था में विभिन्न आदतों व्यवहार रुचि एवं इच्छाओं के प्रति रूपों का निर्माण होता है। ब्लेयर , जॉन्स , सिंपसन ने लिखा है “बाल्यावस्था वह समय है जब व्यक्ति के आधारभूत दृष्टिकोण मूल्यों और आदर्शों का बहुत सीमा तक निर्माण होता है” कॉल एवं ब्रूस अनुसार बाल्यावस्था को जीवन का अनोखा काल बताते हुए लिखा है वास्तव में माता-पिता के लिए बाल विकास की इस अवस्था को समझना कठिन है. बाल्यावस्था की मुख्य विशेषताएं: -
बाल्यावस्था को 6 से 12 वर्ष तक माना गया है । हरलोक ने इसे से लेकर 12 वर्ष तक के बीच का समय माना है इस अवस्था में यह विशेषताएं विकसित होती है पहला नंबर 1. शारीरिक व मानसिक स्थिरता: - 7 वर्ष की आयु के बाद बालक के शारीरिक और मानसिक विकास में स्थिरता आ जाती है। व स्थिरता उसकी शारीरिक व मानसिक शक्तियों को दृढ़ता प्रदान करती है फल स्वरुप उसका मस्तिष्क परिपक्व सा और वह समय व्यस्त सा जान पड़ता है इसलिए रोशनी बाल्यावस्था को मिथ्या परिपक्वता का क्या लिखा है और मानसिक स्थिरता बाल्यावस्था की
सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है । 2. मानसिक योग्यता ओं में वृद्धि: - बाल्यावस्था में बालक की मानसिक योग्यता ओं में निरंतर वृद्धि होती है उसकी संवेदना और प्रत्यक्षीकरण की शक्तियों में वृद्धि होती है। वह विभिन्न बातों के बारे में तर्क प्यार करने लगता है। वह साधारण बातों पर अधिक देर तक अपने ध्यान को केंद्रित कर सकता है। उसमें पूर्व अनुभवों को स्मरण रखने की योग्यता उत्पन्न हो जाती है। 3 . जिज्ञासा की प्रबलता: - बालक की जिज्ञासा विशेष रूप से प्रबल होती है। वह जिन वस्तुओं के
संपर्क में आता है उनके बारे में प्रश्न पूछ कर हर तरह की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। शैशवावस्था के साधारण प्रश्नों से भिन्न होते हैं। के समान या नहीं पूछता है वह क्या है यह पूछता है कि यह ऐसे क्यों है यह कैसे हुआ है । 4. वास्तविक जगत के संपर्क में: - इस अवस्था में बालक शिष्य अवस्था के काल्पनिक जगत का परित्याग करके वास्तविक जगत में प्रवेश करता है। वह उसकी प्रत्येक वस्तु से होकर उसका ज्ञान प्राप्त चाहता है। स्टिंग के शब्दों में नेको अति विशाल संसार में पाता है और उसके बारे में जल्दी
से जल्दी जानकारी प्राप्त करना चाहता है । 5. रचनात्मक कार्यों में आनंद: - बालक को रचनात्मक कार्यों में विशेष आनंद आता है वह साधारण था और किसी प्रकार का कार्य करना चाहता है जैसे बगीचे में काम करना या उजालों से लकड़ी की वस्तुएं बनाना । उसके विपरीत बालिका घर में ही कोई ना कोई कार्य करना चाहती है जैसे सीना या कढ़ाई करना। 6. सामाजिक गुणों का विकास: - बालक विद्यालय के छात्रों और अपने समूह के सदस्यों के साथ पर्याप्त समय व्यतीत करता है उसमें अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है जैसे
सहयोग सद्भावना सहनशीलता आज्ञाकारी सा इत्यादि। 7. नैतिक गुणों का विकास: - आस्था के आरंभ में ही बालक में नैतिक गुणों का विकास होने लगता है। सिंह के मतानुसार 6 और 8 वर्ष के बालकों में अच्छे बुरे के ज्ञान का नया पूर्ण व्यवहार इमानदारी और सामाजिक मूल्यों की भावना का विकास होने लगता है। 8. बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास: - सिरसी अवस्था में बालक का व्यक्तित्व अंतर्मुखी होता है क्योंकि वह एकांत प्रिय और केवल अपने में रुचि लेने वाला होता है। इसके विपरीत बालक में उसका
व्यक्तित्व बहिर्मुखी हो जाता है क्योंकि बहाड़े जगत में उसकी रुचि उत्पन्न हो जाती है। वह अन्य व्यक्तियों वस्तुओं और गाड़ियों का अधिक से अधिक परिचय प्राप्त करना चाहता है। 9. संवेग का दमन और प्रदर्शन: - अपने संवेग को पर अधिकार रखना एवं अच्छी और बुरी भावनाओं में अंतर करना जान सकता है। वह उन भावनाओं का दमन करता है जिनको उसके माता-पिता और बड़े लोग पसंद नहीं करते हैं जैसे काम संबंधी भावनाएं। 10. संग्रह करने की प्रवृत्ति: - बाल्यावस्था में बालक और बालिकाओं में सोने की
प्रवृत्ति बहुत ज्यादा पाई जाती है। बालक विशेष रूप से कंस की गोलियों ईनो के भागों और पत्थर के टुकड़ों का संचय करते हैं पूर्ण नाम बालिकाओं में चित्रों खिलौनों गोलियों और कपड़ों के टुकड़ों का संग्रह करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। 11. भ्रमण की प्रवृत्ति: - लक में बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर घूमने की प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है। मनोवैज्ञानिक बट ने अपने अध्ययन ओके अनुसार बताया कि लगभग 9 वर्ष के बालकों में हमारा घूमने छुट्टी के लिए विद्यालय से भागने और आलस्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने
की आदतें सामान्य रूप से पाई जाती है । 12. सामूहिक प्रवृत्ति की प्रबलता: - बालक में सामूहिक प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है। वह अपना अधिक से अधिक समय दूसरे बालकों के साथ व्यतीत करने का प्रयास करता है। अनुसार बालक पराया अनिवार्य रूप से किसी ना किसी समूह का सदस्य हो जाता है जो अच्छे खेल खेलने और ऐसे खिलाड़ी करने के लिए नियमित रूप से एकत्र होते हैं जिनके बारे में बड़ी आयु के लोगो को कुछ नहीं बताया जाता है। 13. रुचिओं में परिवर्तन: - बालक की रूचि ओं में निरंतर
परिवर्तन होता रहता है। वे अस्थाई रूप धारण ना कर के वातावरण में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती है। बाल्यावस्था से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए?बाल्यावस्था Childhood बालकों की वह अवस्था हैं, जिसमे छात्रों की स्मरण चेतना का विकास होता हैं। बाल्यावस्था को 6 से 12 वर्ष तक माना जाता हैं, जिसमें छात्र नवीन वस्तुओं के संबंध में जानने हेतु जिज्ञासु होते हैं। यह विकास की वह अवस्था होती है जिसमें बालक के व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास तीव्र गति से होता हैं।
बाल्यावस्था की प्रमुख विशेषताएं क्या है?मानसिक योग्यताओं में वृद्धि – बाल्यावस्था में बालक की मानसिक योग्यताओं में निरन्तर वृद्धि होती है। उसकी संवेदना और प्रत्यक्षीकरण की शक्तियों में वृद्धि होती है। वह विभिन्न बातों के बारे में तर्क और विचार लगने लगता है। वह साधारण बातों पर अधिक देर तक अपने ध्यान को केन्द्रित कर सकता है।
बाल्यावस्था की विकासात्मक विशेषताएं क्या है?बाल्यावस्था में बालक में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है, जैसे- सहयोग, सदभावना, सहनशीलता, आज्ञाकारिता आदि। बाल्यावस्था के आरम्भ में ही बालक में नैतिक गुणों का विकास होने लगता है। बालक में न्यायपूर्ण व्यवहार, ईमानदारी और सामाजिक मूल्यों की समझ का विकास होने लगता है।
बाल्यावस्था कितने प्रकार के होते हैं?बाल्यावस्था का काल 6 से 12 वर्ष को आयु का माना जाता है। बाल्यावस्था को दो भागों में बांटा गया है। प्रथम 6 से 9 वर्ष तक की अवस्था को पूर्व बाल्यावस्था तथा 9 से 12 वर्ष तक की अवस्था को उत्तर बाल्यावस्था कहा गया है।
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