सब्सक्राइब करे youtube चैनल Market structure in hindi meaning definition बाजार संरचना क्या है | बाजार संरचना की परिभाषा किसे कहते है अर्थ मतलब ? बाजार संरचना की प्रकृति बाजार
संरचना की परिभाषा परम्परागत रूप से बाजार संरचना के तीन मुख्य आयामों की पहचान की गई है जो निम्नलिखित हैं: (क) विक्रेता केन्द्रीकरण की मात्रा, (ख) उत्पाद विभेदीकरण का विस्तार, और (ग) प्रवेश शर्तों की प्रकृति। इनमें क्रेता केन्द्रीकरण की मात्रा और एक्जिट दशाओं को भी जोड़ा जा सकता है।
क) विक्रेता केन्द्रीकरण की मात्रा: इसका अभिप्राय एक विशेष प्रकार के निर्गत का उत्पादन करने वाली फर्म की संख्या और आकार वितरण से है। इसे अधिक उचित
रूप से बाजार केन्द्रीकरण के मात्रा के रूप में परिभाषित किया जाता है। ग) प्रवेश की दशाएँ: किसी विशेष बाजार में प्रवेश की दशाओं का अर्थ वह सुगमता है जिससे एक नया उत्पाद स्वयं को लाभप्रद तरीके से बाजार में स्थापित कर सकता है। एक बाजार जिसमें प्रवेश करना पूर्णतः सुगम है मूल्य, दीर्घावधि में, उत्पादन के औसत लागत से अधिक नहीं हो सकता। जहाँ प्रवेश को प्रतिबंधित करने में बाधाएँ प्रभावी हैं, अंतराल मूल्य और औसत लागत के बीच उत्पन्न हो सकता है – अंतराल की सीमा ‘‘प्रतिबंध‘‘ की सीमा को दर्शाता है। बाजार संरचना के प्रकार उपरोक्त विभिन्न विशेषताओं के आधार पर, हम विभिन्न बाजार संरचनाओं में भेद कर सकते हैं। आप इन बाजार संरचनाओं के संबंध में ई.ई.सी.-11 में पहले ही विस्तारपूर्वक पढ़ चुके हैं। हालाँकि, हम एक बार पुनः निम्नलिखित मुख्य बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे: क) बाजार में बड़ी संख्या में क्रेता और विक्रेता होते हैं, इनमें से प्रत्येक का व्यक्तिगत रूप से बाजार मूल्य और उत्पाद की मात्रा पर खास प्रभाव नहीं होता है। प्प्प्) एकाधिकारी प्रतियोगिता: एकाधिकार और पूर्ण प्रतियोगिता बाजार संरचना की चरम सीमाएँ हैं। इनके बीच, एकाधिकार अथवा प्रतियोगिता की मात्रा अथवा कुछ अन्य विशेषताओं में परिवर्तन पर निर्भर कतिपय महत्त्वपूर्ण स्वरूप हैं। एकाधिकारवादी प्रतियोगिता इनमें से एक है। इस बाजार संरचना में, फर्मों की संख्या प्रतिस्पर्धी दशाओं के सृजन के लिए पर्याप्त है किंतु साथ ही उनके उत्पाद सदृश नहीं हैं, हालाँकि प्रत्येक का निकट स्थानापन्न है जो उन्हें कुछ एकाधिकारी शक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार इस प्रणाली के अन्तर्गत एकाधिकार और प्रतियोगिता साथ-साथ रहते हैं। यह उत्पाद विभेदीकरण ही है जो इस बाजार संरचना को पूर्ण प्रतियोगिता से अलग करता है। प्ट) अल्पाधिकार और अन्य बाजार संरचना: अल्पाधिकारी बाजार में अनेक विक्रेता होते हैं जो पर्याप्त रूप से छोटे होते हैं ताकि किसी भी एक विक्रेता की कार्रवाइयों का उसके प्रतिद्वंदियों पर पता चलने योग्य प्रभाव पड़े। अल्पाधिकार के सीमाकारी मामले को द्वयाधिकार कहा जाता है जब बाजार में सिर्फ दो विक्रेता सक्रिय रहते हैं। ऐसी स्थिति में जब विक्रेता का उत्पाद सजातीय होता है हम इसे ‘‘शुद्ध अल्पाधिकार‘‘ कहते हैं किंतु जब उत्पाद अलग-अलग होते हैं इसे ‘‘विभेदीकृत अल्पाधिकार‘‘ कहते हैं। मुख्य विशेषता जो अल्पाधिकार को अन्य बाजार संरचना से अलग करती है, विक्रेताओं के निर्णयों की परस्पर अन्तर्निभरता को मान्यता प्रदान करना है। बाजार संरचना और मूल्य निर्धारण
नीति हम पहले ही विभिन्न बाजार संरचनाओं में भेद कर चुके हैं। अब हम विभिन्न बाजार संरचनाओं में मूल्य निर्धारण निर्णय किस प्रकार लिए जाते हैं, के बारे में संक्षेप में पढ़ेंगे। विस्तृत विवरण के लिए कृपया ई ई सी -11 देखिए । क) एक ओर पूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचना है, जिसमें बड़ी संख्या में फर्म विद्यमान हैं, वे सभी सजातीय उत्पाद का उत्पादन कर रही हैं। इस प्रकार की बाजार संरचना में किसी एक फर्म का बाजार पूर्ति अथवा बाजार माँग पर कोई प्रभाव नहीं होता है। परिणामस्वरूप, पूर्ण प्रतियोगी फर्म का उस मूल्य पर कोई नियंत्रण नहीं होता है जिस पर वह अपना उत्पाद बाजार में बेचेगी। बाजार मूल्य का निर्धारण उद्योग की माँग और उद्योग की पूर्ति पर निर्भर करता है। वह मूल्य जिस पर उद्योग की माँग और उद्योग की पूर्ति बराबर हो जाती है उसे संतुलन मूल्य कहते हैं। प्रत्येक फर्म अपना निर्गत संतुलन मूल्य पर बेच सकती है, अर्थात् एक फर्म का माँग वक्र पूर्ण लोचदार होता है। दूसरे शब्दों में, पूर्ण प्रतियोगी फर्म प्रचलित-मूल्य स्वीकार करने वाली होती है। उद्योग मूल्य निर्धारित करता है; प्रत्येक फर्म द्वारा इसे स्वीकार किया जाता है। प्रचलित मूल्य स्वीकार करने वाली फर्म का मूल्य पर कोई नियंत्रण नहीं होता है, किंतु यह निर्गत का स्तर जो यह बेचना चाहेगा के बारे में निर्णय कर सकती है। अर्थात् प्रत्येक फर्म को सिर्फ निर्गत के स्तर और न कि मूल्य के बारे में निर्णय लेना है। ख) कोई भी बाजार जो पूर्ण नहीं है को अपूर्ण बाजार की श्रेणी में रखा जाता है, जैसे,
एकाधिकार, बोध प्रश्न 2 बाजार क्या है इसकी विशेषताओं की व्याख्या कीजिए?Bazar ka arth paribhasha visheshtaye;सामान्य अर्थ मे "बाजार" शब्द से तात्पर्य एक ऐसे स्थान या केन्द्र से होता है, जहां पर वस्तु के क्रेता और विक्रेता भौतिक रूप से उपस्थित होकर क्रय-विक्रय का कार्य करते है। उदाहरण के लिए शहरों मे स्थापित व्यापारिक केन्द्र जैसे कपड़ा बाजार या गाँव मे लगने वाले हाट।
बाजार क्या है बाजार के प्रकार बताइए?(i) पूर्ण प्रतियोगिता (ii) एकाधिकार (iii) अपूर्ण प्रतियोगिता। (i) अति अल्पकालीन बाजार (ii) अल्पकालीन बाजार (iii)दीर्घकालीन बाजार (iv) अति दीर्घकालीन बाजार। (i) स्थानीय बाजार (ii) प्रदेशिक बाजार (iii)राष्ट्रीय बाजार (iv) और अंतर्राष्ट्रीय बाजार।
बाजार किसे कहते हैं और यह कितने प्रकार के होते हैं?सामान्य बोलचाल की भाषा में, बाज़ार का अर्थ (bazar ka arth) उस स्थान विशेष से लगाया जाता है, जहाँ पर किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता एकत्रित होकर वस्तुओं के क्रय-विक्रय का कार्य करते हैं। जैसे- सब्ज़ी मंडी, कपड़ा बाज़ार या अनाज मंडी आदि।
पूर्ण बाजार क्या है इसकी मुख्य विशेषताओं पर चर्चा करें?purn pratiyogita ki visheshta;पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमे एक वस्तु के बहुत अधिक क्रेता तथा विक्रेता होते है व वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए उनमे परस्पर इतनी प्रतिस्पर्धा होती है कि संपूर्ण बाजार मे वस्तु का एक ही मूल्य प्रचलित रहता है।
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