भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

भारत विभाजन का प्रभाव

First Published: October 31, 2021

भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

भारत के विभाजन ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। भारत के विभाजन का प्रभाव काफी चिंताजनक था। विभाजन का तात्कालिक परिणाम हिंसा था। पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसने जीवन और धन को नष्ट कर दिया। मुस्लिम लीग द्वारा ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के दौरान कलकत्ता में काफी हत्याएं हुईं। उसके बाद नोआखाली में दंगे भड़के। बिहार और पंजाब के इलाकों और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में भी तनाव व्याप्त हुआ। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रक्तपात और आगजनी हुई। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार भारत की रियासतों को यह चुनने के लिए छोड़ दिया गया था कि वे भारत में शामिल हों या पाकिस्तान या बाहर रहें। जम्मू और कश्मीर ने आखिरी वक्त तक फैसला नहीं किया।
विभाजन से दोनों समुदायों में दुश्मनी बढ़ गई। इस तरह की सांप्रदायिक दुश्मनी को देखते हुए गांधीजी और जिन्ना दोनों ने लॉर्ड माउंटबेटन से एक संयुक्त अपील जारी की। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान में 12 मिलियन से 15 मिलियन लोग विस्थापित हुए। विभाजन विनाशकारी दंगों का कारण बना। माउंटबेटन योजना की घोषणा और राजनीतिक नेताओं द्वारा इसकी स्वीकृति ने अस्थायी रूप से सांप्रदायिक शत्रुता को समाप्त करने का प्रयास किया। लेकिन पंजाब क्षेत्र में मुस्लिम लीग ने घोषणा की कि वह प्रांत के विभाजन में किसी भी बदलाव का विरोध करेगी। इसने फिर से भारत के विभाजन के प्रभाव सहित एक खतरनाक स्थिति पैदा कर दी। गांधीजी और कांग्रेस नेताओं ने पाकिस्तान क्षेत्रों में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों से उन क्षेत्रों की स्थिति का बहादुरी से सामना करने और अपने-अपने घरों में रहने की अपील की। लेकिन 17 अगस्त को रैडक्लिफ पुरस्कार तेल की घोषणा के बाद पूरे पश्चिमी पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत से हिंदुओं और सिखों को बाहर निकालने के लिए एक अभियान शुरू किया गया था। इसके अलावा, लाहौर, शेखूपुरा, सियालकोट और गुजरांवाला जिलों में गंभीर अशांति विभाजन के बाद विकसित होने लगी। नरसंहार के बाद अमृतसर में एक हिंसक मुस्लिम विरोधी प्रतिक्रिया हुई।
भारत के विभाजन के प्रभाव ने भी शरणार्थियों की समस्या को जन्म दिया। पश्चिमी पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों ने सबसे छोटे मार्गों से भारतीय सीमा में प्रवेश किया। पश्चिमी पाकिस्तान में व्यापक विनाश का प्रभाव पूर्वी पंजाब में भी पड़ा। यह समस्या पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के क्षेत्रों में संयुक्त प्रांत के पश्चिमी जिलों, विशेषकर मेरठ और सहारनपुर तक फैलती रही। भरतपुर, अलवर और दिल्ली राज्यों ने भी समस्या देखी। इन क्षेत्रों के मुसलमानों ने अब पाकिस्तान की सीमा पर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू कर दिया। दिल्ली को भी बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा। शहर में व्यवस्था बनाए रखने के प्रयास में दिल्ली के जिलाधिकारी ने 28 अगस्त की दोपहर से 1 सितंबर तक विस्तारित कर्फ्यू लगा दिया। दिल्ली के करोलबाग में एक हिंदू इलाके में एक बम का विस्फोट क्षेत्र में दंगे के गंभीर प्रकोप का पहला संकेत था। इसके अलावा अक्सर आगजनी और लूटपाट की घटनाएं होती रहीं। राजधानी में घबराहट और आशंका का माहौल हुआ। शहर के कई हिस्सों में संगठित दंगे और लगातार आगजनी की घटनाओं ने दिल्ली में स्थिति को और खराब कर दिया। हिंदू बहुल इलाकों में स्थित मुस्लिम दुकानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। दिल्ली को इस अराजकता से बचाने के लिए पंद्रह सदस्यों वाली एक आपातकालीन समिति का गठन किया गया था। आपातकालीन समिति का मुख्य उद्देश्य शहर में बिगड़ती स्थिति से निपटने के तरीके और साधन खोजना था। केंद्रीय आपात समिति ने औपचारिक रूप से विशेष समिति की स्थापना की, जिसमें भाभा अध्यक्ष और एचएम पटेल उपाध्यक्ष थे। अंत में दिल्ली इमरजेंसी कमेटी अस्तित्व में आई। समिति ने शांति बहाल करने और राजधानी को निरंतर अराजकता से बचाने की कोशिश करके काम किया। इस प्रकार समिति के प्रयास से दो सप्ताह के भीतर शहर में सामान्य स्थिति बहाल हो गई थी। भारत के विभाजन के प्रभाव के परिणामस्वरूप पूर्वी बंगाल से सांप्रदायिक प्रवास भी हुआ। पूर्वी बंगाल के हिंदुओं को भारी विनाश और विपत्ति से गुजरना पड़ा। पश्चिम पाकिस्तान के अधिकारियों की नीति पूर्वी बंगाल से हिंदुओं के बड़े पैमाने पर पलायन के लिए जिम्मेदार थी।

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  • दक्षिण एशिया तथा
भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास
भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

पाषाण युग (७०००–३००० ई.पू.)

  • निम्न पुरापाषाण (२० लाख वर्ष पूर्व)
  • मध्य पुरापाषाण (८० हजार वर्ष पूर्व)
  • मध्य पाषाण (१२ हजार वर्ष पूर्व)
  • (नवपाषाण)
  •  – मेहरगढ़ संस्कृति (७०००–३३०० ई.पू.)
  • ताम्रपाषाण (६००० ई.पू.)

कांस्य युग (३०००–१३०० ई.पू.)

  • सिन्धु घाटी सभ्यता (३३००–१३०० ई.पू.)
  •  – प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति (३३००–२६०० ई.पू.)
  •  – परिपक्व हड़प्पा संस्कृति (२६००–१९०० ई.पू.)
  •  – गत हड़प्पा संस्कृति (१७००–१३०० ई.पू.)
  • गेरूए रंग के मिट्टी के बर्तनों संस्कृति (२००० ई.पू. से)
  • गांधार कब्र संस्कृति (१६००–५०० ई.पू.)

लौह युग (१२००–२६ ई.पू.)

  • वैदिक सभ्यता (२०००–५०० ई.पू.)
  •  – जनपद (१५००-६०० ई.पू.)
  •  – काले और लाल बर्तन की संस्कृति (१३००–१००० ई.पू.)
  •  – धूसर रंग के बर्तन की संस्कृति (१२००–६०० ई.पू.)
  •  – उत्तरी काले रंग के तराशे बर्तन (७००–२०० ई.पू.)
  •  – मगध महाजनपद (५००–३२१ ई.पू.)
  • प्रद्योत वंश (७९९–६८४ ई.पू.)
  • हर्यक राज्य (६८४–४२४ ई.पू.)
  • तीन अभिषिक्त साम्राज्य (६०० ई.पू.-१६०० ई.)
  • महाजनपद (६००–३०० ई.पू.)
  • रोर राज्य (४५० ई.पू.–४८९ ईसवी)
  • शिशुनागा राज्य (४१३–३४५ ई.पू.)
  • नंद साम्राज्य (४२४–३२१ ई.पू.)
  • मौर्य साम्राज्य (३२१–१८४ ई.पू.)
  • पाण्ड्य साम्राज्य (३०० ई.पू.–१३४५ ईसवी)
  • चेर राज्य (३०० ई.पू.–११०२ ईसवी)
  • चोल साम्राज्य (३०० ई.पू.–१२७९ ईसवी)
  • पल्लव साम्राज्य (२५० ई.पू.–८०० ईसवी)
  • महा-मेघा-वाहन राजवंश (२५० ई.पू.–४०० ईसवी)

मध्य साम्राज्य (२३० ई.पू.–१२०६ ईसवी)

  • सातवाहन साम्राज्य (२३० ई.पू.–२२० ईसवी)
  • कूनिंदा राज्य (२०० ई.पू.–३०० ईसवी)
  • मित्रा राजवंश (१५० ई.पू.-५० ई.पू.)
  • शुंग साम्राज्य (१८५–७३ ई.पू.)
  • हिन्द-यवन राज्य (१८० ई.पू.–१० ईसवी)
  • कानवा राजवंश (७५–२६ ई.पू.)
  • हिन्द-स्क्य्थिंस राज्य (२०० ई.पू.–४०० ईसवी)
  • हिंद-पार्थियन राज्य (२१–१३० ईसवी)
  • पश्चिमी क्षत्रप साम्राज्य (३५–४०५ ईसवी)
  • कुषाण साम्राज्य (६०–२४० ईसवी)
  • भारशिव राजवंश (१७०-३५० ईसवी)
  • पद्मावती के नागवंश (२१०-३४० ईसवी)
  • हिंद-सासनिद् राज्य (२३०–३६० ईसवी)
  • वाकाटक साम्राज्य (२५०–५०० ईसवी)
  • कालाब्रा राज्य (२५०–६०० ईसवी)
  • गुप्त साम्राज्य (२८०–५५० ईसवी)
  • कदंब राज्य (३४५–५२५ ईसवी)
  • पश्चिम गंग राज्य (३५०–१००० ईसवी)
  • कामरूप राज्य (३५०–११०० ईसवी)
  • विष्णुकुंड राज्य (४२०–६२४ ईसवी)
  • मैत्रक राजवंश (४७५–७६७ ईसवी)
  • हुन राज्य (४७५–५७६ ईसवी)
  • राय राज्य (४८९–६३२ ईसवी)
  • चालुक्य साम्राज्य (५४३–७५३ ईसवी)
  • शाही साम्राज्य (५००–१०२६ ईसवी)
  • मौखरी राज्य (५५०–७०० ईसवी)
  • हर्षवर्धन साम्राज्य (५९०–६४७ ईसवी)
  • तिब्बती साम्राज्य (६१८-८४१ ईसवी)
  • पूर्वी चालुक्यों राज्य (६२४–१०७५ ईसवी)
  • गुर्जर-प्रतिहार राज्य (६५०–१०३६ ईसवी)
  • पाल साम्राज्य (७५०–११७४ ईसवी)
  • राष्ट्रकूट साम्राज्य (७५३–९८२ ईसवी)
  • परमार राज्य (८००–१३२७ ईसवी)
  • यादवों राज्य (८५०–१३३४ ईसवी)
  • सोलंकी राज्य (९४२–१२४४ ईसवी)
  • प्रतीच्य चालुक्य राज्य (९७३–११८९ ईसवी)
  • लोहारा राज्य (१००३-१३२० ईसवी)
  • होयसल राज्य (१०४०–१३४६ ईसवी)
  • सेन राज्य (१०७०–१२३० ईसवी)
  • पूर्वी गंगा राज्य (१०७८–१४३४ ईसवी)
  • काकतीय राज्य (१०८३–१३२३ ईसवी)
  • ज़मोरीन राज्य (११०२-१७६६ ईसवी)
  • कलचुरी राज्य (११३०–११८४ ईसवी)
  • शुतीया राजवंश (११८७-१६७३ ईसवी)
  • देव राजवंश (१२००-१३०० ईसवी)

देर मध्ययुगीन युग (१२०६–१५९६ ईसवी)

  • दिल्ली सल्तनत (१२०६–१५२६ ईसवी)
  •  – ग़ुलाम सल्तनत (१२०६–१२९० ईसवी)
  •  – ख़िलजी सल्तनत (१२९०–१३२० ईसवी)
  •  – तुग़लक़ सल्तनत (१३२०–१४१४ ईसवी)
  •  – सय्यद सल्तनत (१४१४–१४५१ ईसवी)
  •  – लोदी सल्तनत (१४५१–१५२६ ईसवी)
  • आहोम राज्य (१२२८–१८२६ ईसवी)
  • चित्रदुर्ग राज्य (१३००-१७७९ ईसवी)
  • रेड्डी राज्य (१३२५–१४४८ ईसवी)
  • विजयनगर साम्राज्य (१३३६–१६४६ ईसवी)
  • बंगाल सल्तनत (१३५२-१५७६ ईसवी)
  • गढ़वाल राज्य (१३५८-१८०३ ईसवी)
  • मैसूर राज्य (१३९९–१९४७ ईसवी)
  • गजपति राज्य (१४३४–१५४१ ईसवी)
  • दक्खिन के सल्तनत (१४९०–१५९६ ईसवी)
  •  – अहमदनगर सल्तनत (१४९०-१६३६ ईसवी)
  •  – बेरार सल्तनत (१४९०-१५७४ ईसवी)
  •  – बीदर सल्तनत (१४९२-१६९९ ईसवी)
  •  – बीजापुर सल्तनत (१४९२-१६८६ ईसवी)
  •  – गोलकुंडा सल्तनत (१५१८-१६८७ ईसवी)
  • केलाड़ी राज्य (१४९९–१७६३)
  • कोच राजवंश (१५१५–१९४७ ईसवी)

प्रारंभिक आधुनिक काल (१५२६–१८५८ ईसवी)

  • मुग़ल साम्राज्य (१५२६–१८५८ ईसवी)
  • सूरी साम्राज्य (१५४०–१५५६ ईसवी)
  • मदुरै नायक राजवंश (१५५९–१७३६ ईसवी)
  • तंजावुर राज्य (१५७२–१९१८ ईसवी)
  • बंगाल सूबा (१५७६-१७५७ ईसवी)
  • मारवा राज्य (१६००-१७५० ईसवी)
  • तोंडाइमन राज्य (१६५०-१९४८ ईसवी)
  • मराठा साम्राज्य (१६७४–१८१८ ईसवी)
  • सिक्खों की मिसलें (१७०७-१७९९ ईसवी)
  • दुर्रानी साम्राज्य (१७४७–१८२३ ईसवी)
  • त्रवनकोर राज्य (१७२९–१९४७ ईसवी)
  • सिख साम्राज्य (१७९९–१८४९ ईसवी)

औपनिवेशिक काल (१५०५–१९६१ ईसवी)

  • पुर्तगाली भारत (१५१०–१९६१ ईसवी)
  • डच भारत (१६०५–१८२५ ईसवी)
  • डेनिश भारत (१६२०–१८६९ ईसवी)
  • फ्रांसीसी भारत (१७५९–१९५४ ईसवी)
  • कंपनी राज (१७५७–१८५८ ईसवी)
  • ब्रिटिश राज (१८५८–१९४७ ईसवी)
  • भारत का विभाजन (१९४७ ईसवी)

श्रीलंका के राज्य

  • टैमबापन्नी के राज्य (५४३–५०५ ई.पू.)
  • उपाटिस्सा नुवारा का साम्राज्य (५०५–३७७ ई.पू.)
  • अनुराधापुरा के राज्य (३७७ ई.पू.–१०१७ ईसवी)
  • रोहुन के राज्य (२०० ईसवी)
  • पोलोनारोहवा राज्य (३००–१३१० ईसवी)
  • दम्बदेनिय के राज्य (१२२०–१२७२ ईसवी)
  • यपहुव के राज्य (१२७२–१२९३ ईसवी)
  • कुरुनेगाल के राज्य (१२९३–१३४१ ईसवी)
  • गामपोला के राज्य (१३४१–१३४७ ईसवी)
  • रायगामा के राज्य (१३४७–१४१२ ईसवी)
  • कोटि के राज्य (१४१२–१५९७ ईसवी)
  • सीतावाखा के राज्य (१५२१–१५९४ ईसवी)
  • कैंडी के राज्य (१४६९–१८१५ ईसवी)
  • पुर्तगाली सीलोन (१५०५–१६५८ ईसवी)
  • डच सीलोन (१६५६–१७९६ ईसवी)
  • ब्रिटिश सीलोन (१८१५–१९४८ ईसवी)

राष्ट्र इतिहास

  • अफ़्गानिस्तान
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क्षेत्रीय इतिहास

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विशेष इतिहास

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  • राजवंशों
  • आर्थिक
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  • साहित्य
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  • विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी
  • समयचक्र

  • दे
  • वा
  • सं

भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जायेंगें ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी।[1] स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। नेपाल और भूटान इस दौरान स्वतन्त्र राज्य थे और इस बँटवारे से प्रभावित नहीं हुए।

15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतन्त्र राष्ट्र बने।[2] लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराॅय लुइस माउण्टबैटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतन्त्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया गया।

भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख[3] लोग मारे गए और करीब 1.46 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत सम्प्रदाय वाले देश में शरण ली।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।

सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।[तथ्य वांछित] 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा।[तथ्य वांछित] इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं। उन्होंने कहा:

"हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।"

हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था - आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।[4] कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिए। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया।

उन्होंने कहा: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।"[तथ्य वांछित] बहुत सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न जाएं और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।

अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।

विभाजन की प्रक्रिया[संपादित करें]

भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ (देखें भारत का राजनैतिक एकीकरण)। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।[5]

संपत्ति का बंटवारा[संपादित करें]

ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा।२२ अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गांधी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।[तथ्य वांछित]

दंगे[संपादित करें]

बहुत से विद्वानों का मत है कि ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया को ठीक से नहीं संभाला। क्योंकि स्वतन्त्रता की घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, देश में शान्ति कायम रखने की जिम्मेवारी भारत और पाकिस्तान की नयी सरकारों के सर पर आई। किसी ने यह नहीं सोचा था कि बहुत से लोग इधर से उधर जायेंगे। लोगों का विचार था कि दोनों देशों में अल्पमत सम्प्रदाय के लोगों के लिए सुरक्षा का प्रबन्ध किया जायेगा। लेकिन दोनों देशों की नयी सरकारों के पास हिंसा और अपराध से निपटने के लिए आवश्यक प्रबन्ध नहीं था। फलस्वरूप दंगा हुआ और बहुत से लोगों की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस दौरान लगभग 5 लाख से 30 लाख लोग मारे गये, कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की मुश्किलों से।

आलोचकों का मत है कि आजादी के समय हुए नरसंहार व अशान्ति के लिये अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तान्तरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता उत्तरदायी थी।[6]

जन स्थानान्तरण[संपादित करें]

भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

विभाजन के दौरान पंजाब में एक ट्रेन पर शरणार्थी

विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नये देशों के बीच विशाल जन स्थानांतरण हुआ। पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बलात् बेघर कर दिया गया। लेकिन भारत में गांधीजी ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि मुसलमान अगर चाहें तो भारत में रह सकें। सीमा रेखाएं तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने हिंसा के डर से सीमा पार करके बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।[तथ्य वांछित] इसमें से 78 प्रतिशत स्थानांतरण पश्चिम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।

भारत विभाजन का प्रभाव क्या है? - bhaarat vibhaajan ka prabhaav kya hai?

यह सामान वाहक तारावती नामक एक महिला का था जो अविभाजित औपनिवेशिक भारत में गुजरात में रहती थी

अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विभाजन[संपादित करें]

अगस्त, 1947 में भारत और पाकिस्तान में सत्ता का हस्तान्तरण ब्रिटेन द्वारा उपनिवेशवादी शासन को खत्म करने की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसके साथ उसकी अन्तरराष्ट्रीय शक्ति के दूरगामी परिणाम जुड़े थे।

भारत का यह विभाजन अठारहवीं सदी में यूरोप, एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में किए गए अनेक विभाजनों में से एक है। प्रायः अधिकांश विभाजनों में जिस तरह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच जितनी हिंसा हुई, उससे कहीं अधिक हिंसा इस विभाजन में हुई। साम्राज्यशाही ब्रिटेन द्वारा किया गया भारत का यह विभाजन उसके द्वारा किए गए चार विभाजनों में से एक है। उसने आयरलैंड, फिलिस्तीन और साइप्रस के भी विभाजन कराए। उसने इन विभाजनों का कारण यह बताया कि अलग-अलग समुदायों के लोग एक साथ मिलकर नहीं रह सकते। जबकि इन विभाजनों के पीछे केवल धार्मिक और नस्ली कारण नहीं थे, बल्कि ब्रिटेन के सामरिक और राजनीतिक हित भी शामिल थे, जिनके आधार पर समझौतों के समय उसने अपनी रणनीति बनाई और चालें चलकर विभाजन कराए। वस्तुतः, ब्रिटेन की इन्हीं चालों की वजह से ये चारों विभाजन हुए।

साहित्य और सिनेमा में भारत का विभाजन[संपादित करें]

भारत के विभाजन और उसके साथ हुए दंगे-फ़साद पर कई लेखकों ने उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें से मुख्य हैं,

  • झूठा सच- यशपाल
  • तमस - भीष्म साहनी
  • पिंजर - अमृता प्रीतम
  • ट्रेन टु पाकिस्तान- खुशवंत सिंह
  • मिडनाइट्स चिल्ड्रन (आधी रात की सन्तानें)- सलमान रुशदी

कितने पाकिस्तान (कमलेश्वर) पिंजर को फिल्म और तमस को प्रसिद्ध दूरदर्शन धारावाहिक के रूप में रूपांतरित किया गया है। इसके अलावा गरम हवा, दीपा महता की अर्थ (ज़मीन), कमल हसन की हे राम और 'गदर - एक प्रेम कथा' भी भारत के विभाजन पर आधारित हैं।

इन्हें भी देखे[संपादित करें]

  • माउण्टबैटन योजना
  • पाकिस्तान का विभाजन
  • कश्मीर समस्या
  • भारत का राजनीतिक एकीकरण
  • वृहद भारत

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. सुभाष कश्यप-भारत का संविधान पृ-22
  2. "भारत विभाजन के लिए मुसलमान दोषी नहीं, तो फिर कौन?". मूल से 27 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 दिसंबर 2018.
  3. "TIME Essay HURRYING MIDNIGHT". मूल से 17 अगस्त 2000 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जुलाई 2007.
  4. V.D. Savarkar, Samagra Savarkar Wangmaya Hindu Rasthra Darshan (Collected works of V.D.Savarkar) Vol VI, Maharashtra Prantik Hindusabha, Poona, 1963, पृष्ठ 296
  5. टॉमस आरगीसी, Nations, States, and Secession: Lessons from the Former Yugoslavia, मेडटरेनियन क्वॉटरली, Volume 5 Number 4 Fall 1994, पृ. 40–65, ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस
  6. "अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तांतरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता आजादी के समय हुए नरसंहार व अशांति के लिये उत्तरदायी थी". मूल से 19 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2018.

टीका-टिप्पणी[संपादित करें]

ग्रन्थ और निबंधसूची[संपादित करें]

  • Select Research Bibliography on the Partition of India, Compiled by Vinay Lal, Department of History, UCLA; University of California at Los Angeles list
  • A select list of Indian Publications on the Partition of India (Punjab & Bengal); University of Virginia list
  • South Asian History: Colonial India — University of California, Berkeley Collection of documents on colonial India, Independence, and Partition
  • Indian Nationalism — Fordham University archive of relevant public-domain documents

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भारत विभाजन के प्रमुख कारण
  • भारत विभाजन की त्रासदी

भारत के विभाजन का देश पर क्या प्रभाव पड़ा?

भारत के विभाजन ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। भारत के विभाजन का प्रभाव काफी चिंताजनक था। विभाजन का तात्कालिक परिणाम हिंसा था। पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसने जीवन और धन को नष्ट कर दिया।

भारत विभाजन के क्या परिणाम है?

भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुएविभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए और करीब 1.46 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत सम्प्रदाय वाले देश में शरण ली।

भारत के विभाजन से आप क्या समझते हैं?

भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में काहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जायेंगें और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी।

1947 में भारत के विभाजन के परिणाम क्या थे?

जिन इलाकों में अधिकतर हिन्दू अथवा सिक्ख आबादी थी, उन इलाकों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी प्रकार मुस्लिम-बहुल आबादी वाले इलाकों से हिन्दू और सिक्ख भी नहीं गुजरते थे। 2. घर-परिवार छोड़ने के लिए विवश होना-विभाजन के फलस्वरूप लोग अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए।