भारत और पाकिस्तान के बीच की रेखा को क्या कहा जाता है? - bhaarat aur paakistaan ke beech kee rekha ko kya kaha jaata hai?

हर देश का अपना बॉर्डर होता है। इन सीमाओं को बनाने के पीछे कोई इतिहास, कोई युद्ध या अन्य कारण हो सकता है। अक्सर ये सीमाएं विवादों का कारण भी बनती हैं और सदियों तक इनका विवाद चलता ही रहता है। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद काफी पुराना है। अक्सर पाकिस्तान भारत की सेमा में घुसपैठ करने की कोशिश करता है। आइए इस लेख के माध्यम से ये जानने का प्रयास करें कि LOC और LAC दो महत्वपूर्ण रेखाएं क्या हैं और इन रेखाओं के पीछे क्या कारण है।

लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC)
भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई रेखाओं में सबसे महत्वपूर्ण रेखा हैं जिसे LOC या लाइन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है। LOC एक लाइव लाइन है जिसमें फायरिंग और फेस टू फेस इंटरेक्शन तक का सामना करना पड़ता है और यह सीमा स्पष्ट रूप से मिलिट्री द्वारा सीमांकित है।

लाइन ऑफ कंट्रोल भारत और पाकिस्तान के मध्य खींची गई 740 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। 1947 में खींची नियंत्रण रेखा पिछले 50 वर्षों से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण बनी हुई है। जब कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हुआ तब भारतीए सेना ने आगे आकर कश्मीर का बचाव किया और भारतीय सेना ने आगे बढ़कर पाकिस्तानी सेना को कारगिल सेक्टर से पीछे श्रीनगर-लेह राजमार्ग तक पछाड़ दिया। पाकिस्तान इस हार से व्यथित होकर 1965 में फिर आक्रमण करता है और युद्द में गतिरोध के कारण 1971 तक यह स्थिति बनी रही।

LOC का भारतीय भाग (दक्षिणी और पूर्वी भाग) जम्मू और कश्मीर के रूप में जाना जाता है जो कश्मीर का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा है। यदि LOC की अवस्थिति की बात की जाए तो कश्मीर के तीन क्षेत्र (आज़ाद कश्मीर, गिलगिट और बलिस्तान) पाकिस्तान के कब्जे में हैं और दो तिहाई, जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी, भारत द्वारा प्रशासित है।

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC)

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल भारत और चीन के बीच एक वास्तविक रेखा है। यह रेखा 4,057 किलोमीटर लंबी है और यह जम्मू-कश्मीर में भारत अधिकृत क्षेत्र और चीन अधिकृत क्षेत्र अक्साई चीन को अलग करती है। यह रेखा भी LOC की तरह ही एक प्रकार की युद्ध विराम रेखा है क्योंकि 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद दोनों देशों की सेनाएं जहां तैनात थी, उसे ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) मान लिया गया।

यह सीमा रेखा जम्मू-कश्मीर में भारत अधिकृत क्षेत्र और चीन अधिकृत क्षेत्र अक्साई चीन को अलग करती है। यह लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। यह भी एक प्रकार की सीज फायर क्षेत्र ही है। हालांकि चीन और भारत के बीच कभी भी कोई आधिकारिक सीमा नहीं हुई थी, भारत सरकार 1865 की जॉनसन लाइन के समान पश्चिमी क्षेत्र में एक सीमा का दावा करती है, जबकि पीआरसी सरकार 1899 की मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन के समान एक सीमा मानती है।

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जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

  • वंदना
  • बीबीसी संवाददाता, लंदन

10 दिसंबर 2013

अपडेटेड 26 दिसंबर 2013

साल 1947 का वो समय जब आनन फानन में ब्रिटेन से बुलाए गए सिरील रेडक्लिफ से कहा गया था कि भारत के दो टुकड़े करने है.... रेडक्लिफ न कभी भारत आए थे, न यहाँ की संस्कृति की समझ थी, बस भारत को बांटने का ज़िम्मा उन्हें सौंप दिया गया था. क्या गुज़रा होगा रेडक्लिफ़ के दिलो-दिमाग़ में.. इसी की कल्पना पर आधारित नाटक 'ड्राइंग द लाइन' लंदन में चर्चा में है.

नाटक के लेखक हॉवर्ड ब्रेंटन कुछ साल पहले भारत आए थे. वहाँ केरल में उनकी मुलाक़ात एक युवक से हुई जिसके पास पाकिस्तान में उनके पुश्तैनी घर की चाबियाँ आज भी हैं.

ये किस्सा सुनने के बाद हॉवर्ड के मन में भारत के बंटवारे को लेकर कई सवाल उठे और ख़ासकर उस शख़्स को लेकर जिसे विभाजन रेखा खींचने का ज़िम्मा सौंपा गया था.

कहते हैं कि रेडक्लिफ़ ने वो सब दस्तावेज़ और नक्शे जला दिए थे जो बंटवारे के गवाह थे और इस बारे में ज़्यादा बात नहीं की. इतिहासकारों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान में हुई सांप्रादियक हिंसा के कारण लाखों लोगों की मौत हो गई थी.

क्या रेडक्लिफ़ को इस पूरी घटनाक्रम को लेकर ग्लानि थी, क्या वे ख़ौफ़ज़दा या नाराज़ थे? इन्हीं काल्पनिक सवालों का जवाब ढूँढने की कोशिश इस नाटक में की गई है.

ये नाटक भले ही इतिहास की एक त्रासदी को दर्शाता है जिसमें बंटवारे की रेखा अपने साथ ग़ुस्सा, बेबसी, कटुता का सैलाब लेकर आई. लेकिन नाटक में कई मुश्किल परिस्थितियों को भी कभी कभी तंज़ और व्यंग्य के पुट में दिखाया गया है.

मिसाल के तौर पर नाटक के एक दृश्य पर नज़र डालिए

पहला व्यक्ति (रेडक्लिफ़ से)- नक्शे पर आपने जो लकीर खींची है वो फिरोज़पुर की रेलवे लाइन है. आपने रेलवे लाइन के बीचों बीच सीमारेखा खींच दी है. एक रेल भारत में हो जाएगी और दूसरी पाकिस्तान में.

रेडक्लिफ़ (नक्शे पर खींची रेखा मिटाते हुए)- तो हम सीमारेखा को थोड़ा दक्षिण की ओर कर देते हैं. पहला व्यक्ति- लेकिन यहाँ तो हिंदुओं के खेत हैं रेडक्लिफ़- तो सीमारेखा को उत्तर की ओर कर देते हैं.

कैसे पाकिस्तान को मिला लाहौर

भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर विभाजन के समय सियालकोट में रहते थे. वे उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने बाद में रेडक्लिफ़ से लंदन में मुलाक़ात की थी.

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बंटवारे की फाइल फोटो

रेडक्लिफ़ से जुड़े अपने अनुभव बाँटते हुए कुलदीप नय्यर ने बताया, “मैं जानना चाहता था कि कैसे उन्होंने विभाजन की लाइन खींची. उन्होंने कोई बात मुझसे छिपाई नहीं.”

बकौल कुलदीव नय्यर रेडक्लिफ़ ने आपबीती सुनाते हुए कहा था, “मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए. उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया. न ही ज़िलों के नक्शे थे मेरे पास. मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है. लेकिन मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर ही नहीं था. मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया. अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी. पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें ख़ुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया.”

बंटवारे के कारण लाखों लोगों की जान गई. क्या रेडक्लिफ़ को इसे लेकर अफ़सोस था. कुलदीप नय्यर ने बताया कि इस बारे में रेडक्लिफ़ से कोई सीधी बात नहीं हुई लेकिन उन्हें बातचीत से ऐसा लगा कि रेडक्लिफ़ संवेदनशील इंसान थे और उन्हें काफ़ी ग्लानि महसूस हुई.

रेडक्लिफ़ कभी भारत नहीं लौटे

नाटक 'ड्राइंग द लाइन' में रेडक्लिफ़ का किरादर निभाने वाले ब्रितानी अभिनेता टॉम बियर्ड का भी मानना है कि वे शालीन और बिना पक्षपात करने वाले इंसान थे लेकिन अंतत वो शायद अपने काम को ठीक से अंजाम दे नहीं पाए.

नाटक की रिहर्सल के दौरान टॉम ने बताया, "मेरे ख़्याल से रेडक्लिफ़ पूरा काम सही तरीके से करना चाहते थे. उन्हें बहुत ही जटिल काम में झोंक दिया गया था, समय बहुत ही कम था उनके पास. रेडक्लिफ़ न्यायपूर्ण काम करना चाहते थे. पर वो कर नहीं पाए. वो इससे टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं. दरअसल शुरू में उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि ये कितना बड़ा काम है और इसका मानवीय-राजनीतिक असर क्या हो सकता है."

नाटक में काम करने वाले कलाकार मानते हैं कि 60 से भी ज़्यादा साल पहले हुए बंटवारे का खमियाज़ा आज की पीढ़ियाँ भी झेल रही हैं. भारतीय मूल के पॉल बेज़ली ने जिन्ना का किरदार निभाया है.

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बंटवारे की फाइल फोटो

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "विभाजन की औपनेविशक विरासत का बोझ आज भी लोग उठा रहे हैं. कश्मीर को देखिए, वो आज युद्धक्षेत्र जैसा है. पाकिस्तान और भारत कई युद्ध लड़ चुके हैं. हज़ारों लोग दो ऐसे देशों की लड़ाई में मारे जा चुके हैं जो दो पीढ़ी पहले तक एक थे. जहाँ भी औपविेशवाद होता है, वो अपने निशां छोड़ ही जाता है. बस उस ताकत की जगह कोई नई शक्ति ले लेती है."

भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए ये नाटक इसलिए अहम है क्योंकि रेडिक्लिफ़ ही वो शख़्स थे जिनकी खींची एक रेखा ने रातों रात एक देश के दो टुकड़े कर दिए जबकि ब्रितानियों के लिए ये नाटक इतिहास की सबक की तरह है कि कैसे एक घटना लाखों लोगों की जान जाने की वजह बन गई.

बंटवारे के बाद लाखों की संख्या लोग अपना घर छोड़ सीमा के आर-पार जाने को मजूबर हुए लेकिन इस बीच सिरील रेडक्लिफ़ कभी भारत लौटकर नहीं आए.

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भारत और पाकिस्तान की बीच की रेखा का क्या नाम है?

सही उत्‍तर रेडक्लिफ रेखा है। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा सीमांकन रेखा को रेडक्लिफ रेखा के रूप में जाना जाता है और यह 17 अगस्त 1947 को लागू हुई।

भारत में कुल कितने बॉर्डर है?

भारत की स्थलीय सीमा 7 देशों से मिलती है इनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भूटान ,नेपाल, चीन म्यांमार,बांग्लादेश शामिल हैं |

रेडक्लिफ लाइन कब बनी?

रेडक्लिफ रेखा 17 अगस्त, 1947 को प्रकाशित हुई थी। ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ ने दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण किया था। विभाजन के साथ ही हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ था।

भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा को क्या कहते हैं?

मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत एवं भारत अधिकृत क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है। यही सीमा-रेखा 1962 के भारत-चीन युद्ध का केन्द्र एवं कारण थी।