भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?

धर्मनिरपेक्षता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जॉर्ज जैकब हॉलीडेक द्वारा 19वीं शताब्दी में किया गया। उसने लैटिन भाषा के शब्द Seculum शब्द से इस शब्द को ग्रहण किया जिसका अर्थ है यह वर्तमान स्थिति वास्तव में इस शब्द का प्रयोग सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों की प्रणाली के संदर्भ में किया था। उसकी इस मूल्य प्रणाली के आधार निम्नलिखित सिद्धांत थे।

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  1. मनुष्य की भौतिक तथा सांस्कृतिक उन्नति को विशेष महत्त्व
  2. उसके द्वारा सत्य की खोज पर बल
  3. वर्तमान युग या विश्व की उन्नति से संबंध
  4. तार्किक नैतिकता पर बल

हम जानते हैं कि भारत एक बहु धर्मावलंबी बहु भाषा एवं संस्कृत वाला देश है। लोकतंत्र यहां की शासन प्रणाली का आधार है। इस आसन में आवश्यक है कि सभी नागरिकों के प्रति समान व्यवहार हो, चाहे किसी भी धर्म की आस्था को ना रखते हो? अर्थात् सर्वधर्म संभाव लोकतंत्र का आदर्श होना चाहिए।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?
भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?

Contents

  • धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा
  • धर्मनिरपेक्षता के लक्षण
  • धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं
    • धर्म का प्रभाव न्यूनतम
    • बुद्धिवाद का महत्व
    • विभेदीकरण की प्रक्रिया
  • धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताएं
  • धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक
    • 1. पश्चिमीकरण
    • 2. नगरीकरण एवं औद्योगीकरण
    • 3. यातायात एवं संचार के साधन
    • 4. आधुनिक शिक्षा पद्धति
    • 5. धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन
    • 6. सरकारी प्रयत्न
    • 7. राजनीतिक दल
    • 8. स्वतंत्रता आंदोलन
    • 9. धार्मिक भिन्नता

धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा

धर्मनिरपेक्षता वह विश्वास है जो राज्य नैतिकता शिक्षा आदि को धर्म से स्वतंत्र रखता है।

हम सभी धर्मों एवं विश्वासों को सामान आदान प्रदान करना चाहते हैं अर्थात हम सर्वधर्म समभाव में आस्था रखते हैं।

धर्मनिरपेक्षता हुआ विश्वास है जो धर्म कथा पर अलौकिक बातों को राज्य के कार्य क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने देता।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता में मानव व्यवहार की व्याख्या धर्म के आधार पर नहीं वरन तार्किक आधार पर की जाती है तथा घटनाओं को कार्य कारण संबंध के आधार पर समझा जाता है। इसके साथ ही भावात्मक तथा आत्मकथा का स्थान वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठता ले लेती है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?
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धर्मनिरपेक्षता के लक्षण

वास्तव में धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी नागरिकों को अन्य धर्मों का आधार पर किए बिना अपने धर्म का पालन करने और उसके प्रचार-प्रसार करने को सदस्यता दी जाती है ऐसे राज्य में प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़ने एवं नागरिक विकास करने के सवार अवसर और अधिकार प्राप्त होते हैं तथा धर्म किसी के विकास में बाधा नहीं मन करता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य के लक्षण निम्न है-

  1. राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा
  2. धर्म के आधार पर राज्य किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा
  3. कविता भी बिना किसी धार्मिक भेदभाव के सरकारी सेवा में प्रवेश कर सकेंगे।
  4. राज्य किसी विशेष हैं उनके अनुयायियों को प्राथमिकता नहीं देगा।
  5. धार्मिक शिक्षा देना परिवार और धार्मिक समस्याओं का काम होगा।
  6. नैतिक शिक्षा फैंसी कपड़ों का अस्तित्व अंग होगी।

धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं

धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं निम्न है।

धर्म का प्रभाव न्यूनतम

धर्मनिरपेक्षता के कारण धर्म का प्रभाव कम होता है तथा मानवीय व्यवहार एवं सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करने में धर्म के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाता है। व्यक्ति की सामाजिक निष्ठा का निर्धारण धर्म के अनुसार पर नहीं होता।

बुद्धिवाद का महत्व

धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत प्रत्येक मानवीय व्यवहार एवं समानता पर तर्क के आधार पर विचार किया जाता है धार्मिक आधार पर नहीं। 15 साल सारी घटना की व्याख्या तर्क तथा कार्य कारण संबंधों के आधार पर की जाती है अर्थात वर्तमान वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर समस्याओं का समाधान किया जाता है जिससे पीछे धार्मिक एवं कारणों को स्वीकृत किया जाता है।

विभेदीकरण की प्रक्रिया

धर्मनिरपेक्षता में विरोधी करण की प्रक्रिया पर बल दिया जाता है अर्थात धार्मिक आर्थिक सामाजिक राजनीतिक व नैतिक पक्ष एक दूसरे से पृथक पृथक होते हैं जीवन से संबंधित विभिन्न पदों की जानकारी इसी से मिलती है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?
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धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताएं

धर्मनिरपेक्ष वादी शिक्षा की विशेषताएं निम्न है-

  1. नैतिकता का विकास-धर्मनिरपेक्षता वादी शिक्षा से बालकों में नैतिक दृष्टिकोण का विकास होता है। नैतिक शिक्षा सभी अर्थों में उनके चारित्रिक और नैतिक विकास की आधारशिला होती है। इस शिक्षा के माध्यम से उनमें सत्य साईं सरिता इमानदारी नम्रता सहानुभूति मानवता सेवा व त्याग आदि गुणों का विकास होता है और इन गुणों के परिणाम स्वरूप उनके चरित्र एवं व्यक्तित्व में निखार आता है।
  2. विशाल दृष्टिकोण का विकास- धर्मनिरपेक्षता वादी व्यक्ति को गतिशील एवं समस्या उन्मुक्त बनाती हैं यह शिक्षा उनमें जीवन के प्रति ऐसे दृष्टिकोण का विकास करती हैं जिसमें वह अपने स्वार्थों को त्याग कर समाज सेवा में रुचि लेने लगता है यह शिक्षा उसे जीवन की समस्याओं का दृढ़ता पूर्वक सामना करने में न केवल प्रेरित करती है वरन उनका उचित समाधान ढूंढने में भी मदद करती है।
  3. स्वस्थ बहुलवादी उधर चकोर का विकास होता है या दृष्टिकोण कला विज्ञान दर्शन तथा धर्म के विकास में भी सहायक है और यह बहुलवादी दृष्टिकोण प्रजातंत्र का आधार ही है।
  4. धर्मनिरपेक्षवादी शिक्षा बालकों में स्वतंत्रता समानता भाईचारा तथा सहयोगी जीवन जैसे प्रजातांत्रिक मूल्यों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह शिक्षा प्रजातंत्रीय प्रक्रिया के आधार पर व्यक्तित्व के विकास पर पर्याप्त बल देती है।
  5. धर्मनिरपेक्षवादी शिक्षा बालको में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती हैं, जिससे वे अपने को अंधविश्वास और कुरीतियों एवं रूढ़ियों से पृथक रखते हैं। या शिक्षा उनमें तारीख शीलता विवेक तथा वस्तुनिष्ठता के गुण विकसित करती है वह इसके परिणाम स्वरूप सभी तथ्यों पर तार्किक ढंग से विचार करने में सक्षम होते हैं तथा उन्हें मानवतावादी भावनाओं का उदय होने लगता है।
  6. धर्मनिरपेक्षवादी शिक्षा व्यक्ति को न केवल अपने भौतिक मांगो एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील करती हैं वाराणसी उदार आध्यात्मिक मूल्यों को ग्रहण करने और उन्हें व्यवहार में अपनाने पर भी बल देती हैं। इस शिक्षा के अंतर्गत विज्ञान को केवल भौतिक उन्नति का साधन ही नहीं माना जाता या सत्य एवं प्रकृति से सामंजस्य का प्रतीक है।
  7. या शिक्षा बालकों में सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण एवं मानव मातृभूमि के प्रति सम्मान के भाव जागृत करती है। या शिक्षा बालकों में प्रेम आत्मज्ञान आत्मबल दाने एवं हिंसा आदि गुणों को जन्म देती है जिससे भविष्य में उनका दृष्टिकोण सब कुछ अल्लाह होकर विस्तृत हो जाता है और वह अपने जीवन में सदैव मानवता के प्रति समर्पित रहते हैं।

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धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक

धर्मनिरपेक्षता की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले महत्वपूर्ण कारक निम्न है

  1. पश्चिमीकरण
  2. नगरीकरण एवं औद्योगिकरण
  3. यातायात एवं संचार के साधन
  4. आधुनिक शिक्षा पद्धति
  5. धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन
  6. सरकारी प्रयत्न
  7. राजनीतिक दल
  8. स्वतंत्रता आंदोलन
  9. धार्मिक भिन्नता

1. पश्चिमीकरण

भारत में धर्मनिरपेक्षता के विचारों को प्रोत्साहित करने में पश्चिमीकरण का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों के भारत में लंबे शासनकाल में भारत में नवीन प्रौद्योगिकी संचार, यातायात, डाक, तार, रेल, शिक्षा, व्यवस्था नवीन ज्ञान व मूल्यों का सूत्रपात हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति भादवा भौतिकवाद को बढ़ावा मिला तथा धर्म का भाव धीरे-धीरे कम होता गया।

2. नगरीकरण एवं औद्योगीकरण

धर्मनिरपेक्षता की सोच विशेष रूप से नागरिकों में अधिक प्रभावी रही है क्योंकि शिक्षा संचार यातायात आदि की सुविधा नगरों में ही अधिक पाई जाती है विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधे एवं व्यवसाय भी नगरों में पाए जाते हैं इन मैचों की विभिन्न जातियों धर्मों संप्रदायों का भाषा से संबंधित व्यक्ति साथ साथ काम करते हैं अच्छा धार्मिक कट्टरता समाप्त हो जाती है तथा उनमें धार्मिक सहिष्णुता एवं सह अस्तित्व के भाव उत्पन्न होते हैं इससे उनमें तार्किक वैज्ञानिकता हुआ मानवतावाद के भावों का भी संचार होता है।

3. यातायात एवं संचार के साधन

प्राचीन समय में चौकी यातायात एवं संचार के साधनों का अभाव था इसलिए व्यक्तियों में गतिशीलता का अभाव था तथा व अन्य धर्मों के संपर्क में नहीं आ पाए और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझने के कारण उन्हें धार्मिक कट्टरता पनपती गई किंतु वर्तमान समय में यातायात एवं संचार के गतिशील परिणामों के विकास होने के कारण लोगों में गतिशीलता बड़ी है। परस्पर एक दूसरे के संपर्क में आने के कारण उनमें समानता के विचार आए हैं धार्मिक संकीर्णता समाप्त हुई है तथा छुआछूत भेदभाव कम हुए हैं।

4. आधुनिक शिक्षा पद्धति

प्राचीन काल में शिक्षा धार्मिक थी और वह भी केवल दूध जातियों तक सीमित थी किंतु वर्तमान समय में शिक्षा में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करने से लोगों में तार्किक एवं बौद्धिक गुणों का विकास हुआ है वर्तमान काल में शिक्षा मात्र कुछ जातियों व वर्गों तक सीमित ना होकर लोगों को प्रदान की जाती है। इससे उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है उनमें स्वतंत्रता समानता तथा तार्किकता का विकास हुआ है।

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भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?
धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक

5. धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन

भारतीय समाज एवं धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए देश के अनेक नेताओं और महापुरुषों ने अनेक सुधार कार्यक्रमों व आंदोलनों का सूत्रपात किया। ब्रह्म समाज प्रार्थना समाज रामकृष्ण मिशन आर्य समाज थियोसोफिकल सोसायटी आज संगठनों की भी स्थापना हुई। इन सभी के प्रयत्नों के कारण धार्मिक अंधविश्वास नष्ट हुए तथा भारतीयों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों की ओर झुकाव बड़ा इससे भी धर्मनिरपेक्षता की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला।

6. सरकारी प्रयत्न

देश में नवीन संस्थान द्वारा देश के सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। भारतीय संविधान के 15 अनुच्छेद में उल्लेख है कि राज्य लिंग जन्मजात प्रजाति धर्म वंश एवं जन्म आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा। इसके साथ ही भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है इसके अतिरिक्त सरकार ने अनेक विद्वानों व समाज कल्याण के परिजनों द्वारा भी निम्न व पिछड़ी जातियों को ऊंचा उठाने के लिए अनेक प्रयत्न व योजनाएं बनाई हैं इन सबसे भारत में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा मिला है।

7. राजनीतिक दल

देश में विभिन्न राजनीतिक दलों में भी धर्मनिरपेक्षता के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को दल की नीति के रूप में स्वीकार किया। कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने श्रीमती इंदिरा गांधी आदि धर्मनिरपेक्षता के विचारों के समर्थक रहे हैं। कांग्रेस के अतिरिक्त समाजवादी तथा साम्यवादी दलों को नेताओं ने भी धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया है

भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?
भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? - bhaarat mein dharmanirapekshata ka kya arth hai?

8. स्वतंत्रता आंदोलन

भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में सभी धर्मों के लोगों ने भरपूर सहयोग दिया उन्होंने इस संघर्ष के लिए प्राय अपने सभी धार्मिक एवं जाति भेदभाव भुला दिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया और जिसका उद्देश्य विभिन्न धर्मा अनुयायी यों को देश की प्रगति में समान रूप से भागीदार बनाना एवं सहयोग प्राप्त करना था। इस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन ने धर्म निरपेक्ष करण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया।

9. धार्मिक भिन्नता

धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के प्रोत्साहन में भारत में विभिन्न धर्मों का पाया जाना भी एक महत्वपूर्ण कारण रहा है। भारत में चूंकि विभिन्न धर्मों के अनुयाई साथ साथ रहते हैं, आता है राज्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह सभी धर्मों के प्रति समानता का व्यवहार करें और सब को विकास के समान अवसर प्रदान करें।

धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है भारत?

भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके लिए समान धार्मिक स्वतंत्रता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।

धर्मनिरपेक्षता क्या है उत्तर बताइए?

'धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपक्षता या सेक्युलरवाद धार्मिक संस्थानों व धार्मिक उच्चपदधारियों से सरकारी संस्थानों व राज्य का प्रतिनिधित्व करने हेतु शासनादेशित लोगों के पृथक्करण का सिद्धान्त है। यह एक आधुनिक राजनैतिक एवं संविधानी सिद्धान्त है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता के कारण क्या हैं?

धर्मनिरपेक्ष शब्द, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बयालीसवें संशोधन (1976) द्वारा डाला गया था। भारत का इसलिए एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। हर व्यक्ति को उपदेश, अभ्यास और किसी भी धर्म के चुनाव प्रचार करने का अधिकार है। सरकार के पक्ष में या किसी भी धर्म के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहिए।

धर्म निरपेक्ष राज्य का क्या अर्थ है?

एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्मनिरपेक्षता से संबंधित एक विचार है, जिसके द्वारा एक राज्य, धर्म के मामलों में आधिकारिक तौर पर तटस्थ होने का दावा करता है, न तो धर्म और न ही अधर्म का समर्थन करता है।