वन संरक्षण के लिए क्या महत्वपूर्ण है? - van sanrakshan ke lie kya mahatvapoorn hai?

वन संरक्षण के लिए क्या महत्वपूर्ण है? - van sanrakshan ke lie kya mahatvapoorn hai?

वन/वन संरक्षण पर निबंध

वन/वन संरक्षण पर निबंध – वन प्राणियों के लिए कितने आवश्यक हैं, ये सभी को पता है। कहा भी गया है कि वन ही जीवन है। इतना समझने के बावजूद भी दिन-प्रतिदिन वनों की अंधाधुंध कटाई होती है। यह समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इस लेख में हम इसी गंभीर समस्या पर निबंध ले कर आए हैं। आशा करते हैं कि यह निबंध जितना आपकी परीक्षाओं में सहायक होगा, उतना ही आपको वनों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने में भी प्रेरक सिद्ध होगा।

वन संरक्षण के लिए क्या महत्वपूर्ण है? - van sanrakshan ke lie kya mahatvapoorn hai?

संकेत बिंदु  – (Content)

प्रस्तावना
वन शब्द की उत्पत्ति
वनों के प्रकार
वनों का महत्त्व
वनों की सार्वकालिक उपयोगिता
वनों से मानव को लाभ (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष)
वनों की कटाई की समस्या
भारत में वनों की स्थिति
वन संरक्षण आवश्यक
उपसंहार

 
प्रस्तावना
जंगल मूल रूप से भूमि का एक टुकड़ा है जिसमें बड़ी संख्या में वृक्ष और पौधों की विभिन्न किस्में शामिल हैं। प्रकृति की ये खूबसूरत रचनाएँ जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के लिए घर का काम करती हैं। घने पेड़ों, झाड़ियों, श्लेष्मों और विभिन्न प्रकार के पौधों द्वारा कवर किया गया, एक विशाल भूमि क्षेत्र को वन के रूप में जाना जाता है। दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के वन हैं। ये अपने-अपने प्रकार की मिट्टी, पेड़ों और वनस्पतियों और जीवों की अन्य प्रजातियों के आधार पर वर्गीकृत किए गए हैं। जंगल पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। वे ग्रह की जलवायु को बनाए रखने में मदद करते हैं, वातावरण को शुद्ध करते हैं, वाटरशेड की रक्षा करते हैं। वे जानवरों के लिए एक प्राकृतिक आवास और लकड़ी के एक प्रमुख स्रोत हैं जो कि हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन में उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों के उत्पादन के लिए उपयोग की जाती है। वन पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखता है और इस प्रकार वन ग्रह पर एक स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

वन शब्द की उत्पत्ति

वन शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द से हुई है जिसका मतलब है कि बड़े पैमाने पर पेड़ों और पौधों का प्रभुत्व होना। इसे अंग्रेजी के एक ऐसे शब्द के रूप में पेश किया गया था जो कि जंगली भूमि को संदर्भित करता है जिसको लोगों ने शिकार के लिए खोजा था। इस भूमि पर पेड़ों द्वारा कब्जा हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता। कुछ लोगों ने दावा किया कि जंगल शब्द मध्यकालीन लैटिन शब्द ‘फोरेस्टा’ से लिया गया था जिसका अर्थ था खुली लकड़ी। मध्यकालीन लैटिन में यह शब्द विशेष रूप से राजा के शाही शिकार के लिए प्रयुक्त मैदानों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

वनों के प्रकार

दुनिया भर के वनों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। यहाँ विभिन्न प्रकार के वनों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है, जिससे आपको इन वनों के बारे में मूल जानकारी प्राप्त हो सके। ये वन पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र का एक हिस्सा बनाते हैं –
(1) ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन –
ये बेहद घने जंगल हैं और इनमें बड़े पैमाने पर सदाबहार वृक्ष शामिल होते हैं, जो हर साल हरे भरे रहते हैं। इन वनों में वर्ष भर में बहुत अधिक बारिश होती है लेकिन फिर भी तापमान यहाँ अधिक है क्योंकि ये भू-मध्य रेखा के निकट स्थित हैं।
(2) उप-उष्णकटिबंधीय वन –
ये जंगल उष्णकटिबंधीय जंगलों के उत्तर और दक्षिण में स्थित हैं। ये जंगल ज्यादातर सूखा जैसी स्थिति का अनुभव करते हैं। यहाँ के पेड़ और पौधें गर्मियों में सूखे के अनुकूल होते हैं।
(3) पर्णपाती वन –
ये जंगल मुख्य रूप से उन पेड़ों के घर हैं, जो हर साल अपने पत्ते खो देते हैं। पर्णपाती वन ज्यादातर उन क्षेत्रों में हैं, जो हल्की सर्दियों और गर्मियों को अनुभव करते हैं। ये यूरोप, उत्तरी अमेरिका, न्यूजीलैंड, एशिया और ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पाए जा सकते हैं। वालनट, ओक, मेपल, हिकॉरी और चेस्टनट पेड़ अधिकतर यहाँ पाए जाते हैं।
(4) टेम्पेरेट वन –
टेम्पेरेट वनों में पर्णपाती और शंकुधारी सदाबहार पेड़ों का विकास होता है। पूर्वोत्तर एशिया, पूर्वी उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी पूर्वी यूरोप में स्थित इन जंगलों में पर्याप्त वर्षा होती है।
(5) मोंटेन वन –
ये बादल वनों के रूप में जाने जाते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि इन जंगलों में अधिकतर बारिश धुंध से होती है, जो निचले इलाकों से होती है। ये ज्यादातर उष्णकटिबंधीय, उप उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में स्थित हैं। इन जंगलों में ठंड के मौसम के साथ-साथ गहन धूप का अनुभव होता है। इन वनों के बड़े भाग पर कोनीफर्स का कब्जा है।
(6) बागान वन –
ये मूल रूप से बड़े खेत हैं, जो कॉफी, चाय, गन्ना, तेल हथेलियों, कपास और तेल के बीज जैसे नकदी फसलों का उत्पादन करते हैं। बागान वन के जंगलों में लगभग 40% औद्योगिक लकड़ी का उत्पादन होता है। ये टिकाऊ लकड़ी और फाइबर के उत्पादन के लिए विशेष रूप से जानी जाती हैं।
(7) भूमध्य वन –
ये जंगल भूमध्यसागरीय, चिली, कैलिफ़ोर्निया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट के आसपास स्थित हैं। इनमें सॉफ्टवुड और दृढ़ लकड़ी के पेड़ों का मिश्रण है और लगभग सभी पेड़ सदाबहार हैं।
(8) शंकुधारी वन –
ये जंगल ध्रुवों ​​के पास पाए जाते हैं, मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध और वर्ष भर में ठंड और हवा के मौसम का अनुभव करते हैं। ये दृढ़ लकड़ी और शंकुवृक्ष के पेड़ों के विकास का अनुभव करते हैं। पाइंस, फर, हेमलॉक्स और स्प्रूस का विकास यहाँ एक आम दृश्य है। शंकुवृक्ष के पेड़ सदैव सदाबहार होते हैं और यहाँ सूखे जैसी स्थिति को अच्छी तरह से अनुकूलित किया जाता है।

वनों का महत्त्व

कहा जाता है कि प्रकृति और मानव-सृष्टि के सन्तुलन का मूल आधार वन ही हैं। वन पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जंगलों को संरक्षित करने और अधिक पेड़ों का विकास करने की आवश्यकता पर अक्सर जोर दिया जाता है। ऐसा करने के कुछ प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं –
(i) वन तरह-तरह के फल-फूलों, वनस्पतियों, वनौषधियों और जड़ी-बूटियों की प्राप्ति का स्थल तो हैं ही, धरती पर जो प्राण-वायु का संचार हो रहा है उसके समग्र स्रोत भी वन ही हैं।
(ii) वन धरती और पहाड़ों का क्षरण रोकते हैं। नदियों को बहाव और गतिशीलता प्रदान करते हैं।
(iii) वन बादलों और वर्षा का कारण हैं।
(iv) तरह-तरह के पशु-पक्षियों की उत्पत्ति, निवास और आश्रय स्थल हैं।
(v) छाया के मूल स्रोत हैं।
(vi) इमारती लकड़ी के आगार हैं।
(vii) मनुष्य की ईंधन की आवश्यकता की भी बहुत कुछ पूर्ति करने वाले हैं।
(viii) अनेक दुर्लभ मानव और पशु-पक्षियों आदि की जातियाँ-प्रजातियाँ आज भी वनों की सघनता में अपने बचे-खुचे रूप में पाई जाती हैं।
(ix) यह सामान्य सा ज्ञान है कि पौधे ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। वे अन्य ग्रीनहाउस गैसों को भी अवशोषित करते हैं जो वातावरण के लिए हानिकारक होती हैं।
(x) पेड़ और जंगल हमें पूरी हवा के साथ-साथ वातावरण की भी सफ़ाई करने के लिए मदद करते हैं।
(xi) वृक्ष जंगलों से निकल रही नदियों और झीलों पर छाया का निर्माण करते हैं और उन्हें सूखने से बचाए रखते हैं।
(xii) लकड़ी के अन्य सामानों में टेबल, कुर्सियां और बिस्तरों के साथ फर्नीचर के विभिन्न टुकड़े बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। वन विभिन्न प्रकार के जंगल के स्रोत के रूप में सेवा करते हैं।
(xiii) दुनिया भर के लाखों लोग सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। वनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए लगभग 10 मिलियन लोग प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं।
इस प्रकार वनों के और भी अनेक जीवन्त महत्त्व एवं उपयोग गिनाए जा सकते हैं।

सार्वकालिक उपयोगिता

यह स्पष्ट है कि आरम्भ से लेकर आज तक तो वनों की आवश्यकता-उपयोगिता बनी ही रही है, आगे भी बनी रहेगी, किन्तु मानव शिक्षित, ज्ञानी होते हुए भी लगातार वनों को काट कर प्रकृति का, धरती का, सारी मानवता का सन्तुलन बिगाड़ कर सभी कुछ तहस-नहस करके रख देना चाहता है। अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति में मग्न होकर, हम यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वनों का निरन्तर कटाव जारी रखकर हम वनों को उचित संरक्षण एवं संवर्द्धन न देकर प्रकृति और मानवता का तथा अपनी ही आने वाली पीढ़ियों का कितना बड़ा अहित कर रहे हैं।
जीवन को अमृत पिलाने में समर्थ धरती को रूखा-सूखा और बेजान बना देना चाहते हैं। वन बने रहें, तभी धरती पर उचित मात्रा में वर्षा होगी, नदियों की धारा प्रवाहित रहेगी, पहाड़ों और धरती का क्षरण नहीं होगा। सूखा या बाढ़ और भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा होती रहेगी। आवश्यक प्राण-वायु और प्राण-रक्षक औषधियाँ-वनस्पतियाँ आदि निरन्तर प्राप्त होती रहेंगी। अनेक खनिज प्राप्त हो रहे हैं, वे भी होते रहेंगे, अन्यथा उनके स्रोत भी बन्द हो जाएँगे। वनों की उपयोगिता जैसी सदियों पहले थी आज भी वैसे ही है और आने वाले प्रत्येक वर्ष में ऐसी ही रहेगी।

वनों से मानव को लाभ

प्राचीन काल से ही वनों की उपयोगिता के बारे में सभी जानते हैं। वनों से मिलने वाले लाभों से भी सभी वाकिफ़ हैं। वनों के कुछ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं। प्रत्यक्ष लाभ तो सभी को सामने दिखाई देते हैं परन्तु अप्रत्यक्ष लाभ के बारे में किसी-किसी को ज्ञान होता है।
वनों से प्रत्यक्ष लाभ –
प्रारम्भ में वन मानव को भोजन, वस्त्र, घर सब कुछ प्रदान करते थे। फिर भी मानव ने वनों का कटान कर अपनी खेती, व बस्ती बनाई। लेकिन मानव को वनों से भोजन पकाने के लिए तथा घर बनाने के लिए लकड़ी व खाने के लिए फल मिलते रहे। मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए वनों पर आधारित अनेक उद्योग-धन्धे खोल लिए हैं।
रबर, लाख, गोद, दियासलाई, कागज, पैकिग बोर्ड, भलाई, रेलवे आदि उद्योग वनों पर आधारित है। फर्नीचर बनाने के कारखाने वनों से ही चलते हैं। वनों के पेड़ों का सुन (गोद व लीसा) निकाल कर मानव अपनी स्वार्थ-सिद्धि करता है।
वनों से अप्रत्यक्ष लाभ –
वन मानव को जीवन प्रदान करते हैं। वन तो प्राणीमात्र के ऐसे सच्चे मित्र हैं कि वे उनके खतरों को स्वयं ग्रहण कर उन्हें लाभ प्रदान करते हैं। श्वास जीव मात्र का जीवन है। जब हम श्वास लेते हैं तो ओक्सीजन वायु हमारे हृदय में जाती है और हम में प्राण धारण करती है और जब हम अपने श्वास बाहर छोड़ते हैं उस समय कार्बन-डाइऑक्साइड गैस को बाहर निकालते हैं। इस श्वास प्रक्रिया में पेड़ हमारी बड़ी सहायता करते हैं। पेड़ जीवों की रक्षा के लिए ऑक्सीजन छोड़ते है और कार्बन डाइआंकसाइड को ग्रहण करते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड मानव के लिए हानिकारक है। पेड़ के न होने से वायु में उसकी मात्रा बढ़ती जाती है, जिससे जीवमात्र के लिए खतरा पैदा हो जाता है।
पेड़ों के अभाव में ऑक्सीजन का अभाव भी होने लगेगा जिससे जीवमात्र का अस्तित्व भी मिटने लगेगा। पेड़ों के द्वारा वर्षा अधिक होती है। पेड़ बादलो को अपनी ओर खींचते हैं। पेड़ हमे प्रदूषण से बचाते है। प्रदूषण से कई प्रकार के रोग पैदा होते है, वायुमण्डल दूषित हो जाता है, ओंक्सीजन नष्ट हो जाती है। पेड़ इस प्रदूषण को मिटा देते है, वे दूषित वायु को स्वयं ग्रहण कर स्वच्छ वायु हमें प्रदान करते हैं। इस स्थिति  में  पेड़ से बढ्‌कर हमारा मित्र और कौन हो सकता है। इसलिए पेड़ों की रक्षा करना हमारा धर्म है।

वनों की कटाई की समस्या

वनों की कटाई की समस्या किसी एक की समस्या नहीं है अपितु सम्पूर्ण प्राणी जगत की समस्या है। यदि इस समस्या से निपटने के लिए कुछ नहीं किया गया तो पूरा प्राणी जगत समाप्त हो जायगा।
वनों की कटाई जंगल के बड़े हिस्से में इमारतों के निर्माण जैसे उद्देश्यों के लिए पेड़ों को काटने की प्रक्रिया है। इस जमीन पर फिर से पेड़ों को लगाया नहीं जाता। आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक युग के विकास के बाद से दुनिया भर के लगभग आधे जंगलों को नष्ट कर दिया गया है। आने वाले समय में यह संख्या बढ़ने की संभावना है क्योंकि उद्योगपति लगातार निजी लाभ के लिए वन भूमि का उपयोग कर रहे हैं। लकड़ी और वृक्षों की अन्य घटकों से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए बड़ी संख्या में वृक्षों को भी काटा जाता है। वनों की कटाई के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन्हीं कारणों से मिट्टी का क्षरण, जल चक्र का विघटन, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान होता है। वनों की कटाई की ओर यदि कोई ध्यान नहीं दिया गया तो यह बहुत विकराल रूप धारण कर लेगा। वन जीवन के लिए बहुत ही अहम् है जब तक हम सभी इस बात को नहीं समझ लेते वनों की कटाई रुकना असंभव है। हम वनों को काट कर अपना ही नहीं अपनी आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी खतरे में डाल रहे हैं।
प्राय: वनों के समाप्त होने का मुख्य कारण इनका अंधाधुंध काटा जाना है। बढ़ती हुई जनसंख्या की उदरपूर्ति के लिए कृषि हेतु अधिक भूमि उपलब्ध कराने के लिए वनों का काटा जाना बहुत ही साधारण बात है। वनों को इस प्रकार नष्ट करने से कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, स्वस्थ वातावरण (पर्यावरण) के लिए 33 प्रतिशत भूमि पर वन होने चाहिए। इससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है। दुःख और चिंता का विषय है कि भारत में सरकारी आँकड़ों के अनुसार मात्र 19.5 प्रतिशत क्षेत्र में ही वन हैं । गैर-सरकारी सूत्र केवल 10 से 15 प्रतिशत वन क्षेत्र बताते हैं। हम यदि सरकारी आँकड़े को ही सही मान लें तो भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। चिंता का विषय यह है कि वनों के समाप्त होने की गति वनरोपण की अपेक्षा काफी तेज है। इन सारी स्थितियों को ममझने के वाद हमें कारगर उपायों पर विचार करना होगा।

भारत में वनों की स्थिति

भारत ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, कनाडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, रूसी संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनेशिया और सूडान के साथ दुनिया के शीर्ष दस वन-समृद्ध देशों में से एक है। भारत के साथ ये देश दुनिया के कुल वन क्षेत्र का लगभग 67% हिस्सा है। अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र उन राज्यों में से हैं जिनके पास भारत में सबसे बड़ी वन क्षेत्र भूमि है।
भारत में वानिकी एक प्रमुख ग्रामीण उद्योग है। यह बड़ी संख्या में लोगों के लिए आजीविका का एक साधन है। भारत संसाधित वन उत्पादों की एक विशाल श्रृंखला का उत्पादन करने के लिए जाना जाता है। इनमें केवल लकड़ी से बने उत्पाद शामिल नहीं होते बल्कि गैर-लकड़ी के उत्पादों की पर्याप्त मात्रा भी शामिल होती हैं। गैर-लकड़ी के उत्पादों में आवश्यक तेल, औषधीय जड़ी-बूटियों, रेजिन, फ्लेवर, सुगंध और सुगंध रसायन, गम्स, लेटेक्स, हस्तशिल्प, अगरबत्तियां और विभिन्न सामग्री शामिल है।

वन संरक्षण आवश्यक

हमारे शास्त्रों में पेड़ लगाने को बड़ा पुण्य कार्य बताया गया है। एक पेड़ लगाना एक यज्ञ करने के बराबर है। वनों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभों को देखकर उनका संरक्षण करना हमारा कर्त्तव्य है। इस शताब्दी में वनों के विनाश के कारण होने वाले खतरो को भी विज्ञान समझ गया है, इसलिए आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रत्येक सरकार को वनों के संरक्षण की सलाह दी है। इसलिए संसार की प्रत्येक सरकारो ने अपने यहाँ वन संरक्षण की नीति बनाई है। अत्यावश्यक कार्यो के लिए हमें वनों का उपभोग करना चाहिए।
वनों की कटाई से जहाँ प्रत्यक्ष लाभ होता है वहाँ अप्रत्यक्ष हानि होती है। वनों से प्रत्यक्ष लाभ कुछ ही व्यक्तियों को होता है लेकिन अप्रत्यक्ष हानि सारे जीव-जगत को होती है। इसलिए वनों का संरक्षण अत्यावश्यक है। वनों के संरक्षण के लिए सरकार भी उत्तरदायी है। क्योंकि वनों के अस्तित्व का सार्वकालिक महत्त्व एवं आवश्यकता है, इसलिए हर प्रकार से उनका संरक्षण होते रहना भी परमावश्यक है। केवल संरक्षण ही नहीं, क्योंकि कम-अधिक हम उन्हें काट कर उनका उपयोग करने को भी बाध्य हैं। इस कारण उन का नव-रोपण और परिवर्द्धन करते रहना भी बहुत जरूरी है। प्रकृति ने जहाँ जैसी मिट्टी है, जहाँ की जैसी आवश्यकता है, वहाँ वैसे ही वन लगा रखे हैं। हमें भी इन बातों का ध्यान रख कर ही नव वक्षारोपण एवं सम्वर्द्धन करते रहना है ताकि हमारी धरती, हमारे जीवन का सन्तुलन एवं शोभा बनी रहे। हमारी वे सारी आवश्यकताएँ युग-युगान्तरों तक पूरी होती रहें जिनका आधार वन हैं। इनकी रक्षा और जीविका भी आवश्यक थी, जो वनों को संरक्षित करके ही संभव एवं सुलभ हो सकती थी। आज भी वस्तु स्थिति उसमे बहुत अधिक भिन्न नहीं है। स्थितियों में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन तो अवश्य माना जा सकता है। पर जो वस्तु जहाँ की है, वह वास्तविक शोभा और जीवन शक्ति वहीं से प्राप्त कर सकती है। इस कारण वन संरक्षण की आवश्यकता आज भी पहले के समय से ही ज्यों की त्यों बनी हुई है।
इस सारे विवेचन-विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि वन संरक्षण कितना आवश्यक, कितना महत्त्वपूर्ण और मानव-सृष्टि के हक में कितना उपयोगी है या हो सकता है। लोभ-लालच में पड़कर अभी तक वनों को काट कर जितनी हानि पहुँचा चुके हैं। जितनी जल्दी उसकी क्षतिपूर्ति कर दी जाए, उतना ही मानवता के हित में रहेगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।

उपसंहार

वन मानव जाति के लिए एक वरदान है। वन प्रकृति का एक सुंदर सृजन हैं। भारत को विशेष रूप से कुछ सुंदर जंगलों का आशीष मिला है जो पक्षियों और जानवरों की कई दुर्लभ प्रजातियों के लिए घर हैं। वनों के महत्व को पहचाना जाना चाहिए और सरकार को वनों की कटाई के मुद्दे पर नियंत्रण के लिए उपाय करना चाहिए। पेड़ लगाने के बराबर संसार में कोई पुण्य कार्य नहीं है, क्योंकि पेड़ से अनेकों जीवो का उद्धार होता है, दुश्मन को भी वह उतना ही लाभ पहुँचाते है।  वन पर्यावरण का एक अनिवार्य हिस्सा है। हालांकि दुर्भाग्य से मनुष्य विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पेड़ों को काट रहा है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। पेड़ों और जंगलों को बचाने की आवश्यकता को और अधिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस प्रकार मानव जाति के अस्तित्व के लिए वन महत्वपूर्ण हैं। ताजा हवा से लेकर लकड़ी तक जिसका इस्तेमाल हम सोने के लिए बिस्तर के रूप में करते हैं – यह सब कुछ जंगलों से प्राप्त होता है। इसलिए मानव को रोगों से, प्रदूषण से बचाने के लिए पेड़ों की सख्या बढ़ानी चाहिए। हमारी सरकार को भी वनों की सुरक्षा करनी चाहिए और उनकी वृद्धि के लिए नए पेड़ लगाने चाहिए। जीव जगत की वृद्धि के साथ पेड़ों की भी वृद्धि होनी चाहिए।

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