भारत में नारीवाद, भारतीय महिलाओं के लिए समान राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को परिभाषित करने, स्थापित करने, समान अवसर प्रदान करने और उनका बचाव करने के उद्देश्य से आंदोलनों का एक समूह है। यह भारत के समाज के भीतर महिलाओं के अधिकारों की संकल्पना है। दुनिया भर में अपने नारीवादी समकक्षों की तरह, भारत में नारीवादी: लैंगिक समानता, समान मजदूरी के लिए काम करने का अधिकार, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए समान पहुंच का अधिकार और समान राजनीतिक अधिकार चाहते हैं।[1] भारतीय नारीवादियों ने भारत के पितृसत्तात्मक समाज के भीतर संस्कृति-विशिष्ट मुद्दों जैसे कि वंशानुगत कानून और सती जैसी प्रथा के खिलाफ भी लड़ाईयाँ लड़ी है। भारत में नारीवाद के इतिहास को तीन चरणों में देखा जा सकता है: पहला चरण, 19वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ, जब यूरोपीय उपनिवेशवादी, सती की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बोलने लगे;[2] दूसरा चरण, 1915 से, जब भारतीय स्वतंत्रता के लिये गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और कई स्वतंत्र महिला संगठन उभरने लगे;[3] और अंत में, तीसरा चरण, स्वतंत्रता के बाद, जहाँ शादी के बाद ससुराल में, कार्यस्थल में और राजनीतिक समानता के अधिकार में महिलाओं के निष्पक्ष व्यवहार पर ध्यान केंद्रित किया गया है।[3] भारतीय नारीवादी आंदोलनों द्वारा की गई प्रगति के बावजूद, आधुनिक भारत में रहने वाली महिलाओं को अभी भी भेदभाव के कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है। भारत की पितृसत्तात्मक संस्कृति ने भूमि-स्वामित्व के अधिकार प्राप्त करने और शिक्षा तक पहुँच को चुनौतीपूर्ण बना दिया।[4] पिछले दो दशकों में, लिंग-चयनात्मक गर्भपात की प्रवृत्ति भी सामने आई है।[5] भारतीय नारीवादियों के लिए, इसे अन्याय के खिलाफ संघर्ष के रूप में देखा जाता है।[6] जैसा कि पश्चिम में, भारत में नारीवादी आंदोलनों की कुछ आलोचना हुई है। विशेष रूप से पहले से ही विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करने और गरीब या निम्न जाति की महिलाओं की जरूरतों और प्रतिनिधित्व की उपेक्षा करने के लिए उनकी आलोचना की गई। जिसका परिणाम यह हुआ की कई जाति-विशेष के नारीवादी संगठनों और आंदोलनों का उदय हुआ।[7] भारतीय नारीवादी[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
नारीवादी आंदोलन से आप क्या समझते हैं वर्णन करें?नारीवाद, राजनैतिक आन्दोलनों, विचारधाराओं और सामाजिक आंदोलनों की एक श्रेणी है, जो राजनीतिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, सामाजिक और लैंगिक समानता को परिभाषित करने, स्थापित करने और प्राप्त करने के एक लक्ष्य को साझा करते हैं। इसमें महिलाओं के लिए पुरुषों के समान शैक्षिक और पेशेवर अवसर स्थापित करना शामिल है।
नारीवादी आंदोलन की शुरुआत कब हुई?भारत में नारीवाद के इतिहास को तीन चरणों में देखा जा सकता है: पहला चरण, 19वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ, जब यूरोपीय उपनिवेशवादी, सती की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बोलने लगे; दूसरा चरण, 1915 से, जब भारतीय स्वतंत्रता के लिये गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और कई स्वतंत्र महिला संगठन ...
नारीवाद कितने प्रकार के होते हैं? उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism). उग्रवादी नारीवाद (Radical Feminism). समाजवादी / मार्क्सवादी नारीवाद (Socialist/Marxist Feminism). उत्तरआधुनिक नारीवाद (Post Modernist). सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism). पर्यावरणीय नारीवाद (Eco-Feminism). नारीवादी आंदोलन का उद्देश्य क्या है?आज नारीवादी विचारकों का उद्देश्य स्त्रियों को पुरुष के समान बनाना नहीं बल्कि प्राकृतिक अंतर को स्वीकार करते हुए उनकी सामर्थ्य का संपूर्ण उपभोग करने तथा समाज के द्वारा स्थापित कृत्रिम असमानताओं को दूर करने का प्रयास करना है क्योंकि स्त्री-पुरुष समानता स्थापित करके ही किसी भी समाज का संपूर्ण विकास संभव है।
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