आज भी संस्कृत भाषा का महत्व क्यों है? - aaj bhee sanskrt bhaasha ka mahatv kyon hai?

रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के कई देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत और वेद के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए जुटे हैं। हमारे देश में तो इंग्लिश बोलना शान की बात मानी जाती है। इंग्लिश नहीं आने पर लोग आत्मग्लानि अनुभव करते हैं जिस कारण जगह-जगह इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स चल रहे हैं।

संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत भाषा के व्याकरण में विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है। उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कम्प्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है, लेकिन इस भाषा को वे कभी भी कम्प्यूटर की भाषा नहीं बनने देंगे।

कहते हैं कि किसी देश की जाति, संस्कृति, धर्म और इतिहास को नष्ट करना है तो उसकी भाषा को सबसे पहले नष्ट किया जाए। मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम 'अष्टाध्यायी' है।

1100 ईसवीं तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जोड़ने की प्रमुख कड़ी थी। अरबों और अंग्रेजों ने सबसे पहले ही इसी भाषा को खत्म किया और भारत पर अरबी और रोमन लिपि और भाषा को लादा गया। भारत की कई भाषाओं की लिपि देवनागरी थी लेकिन उसे बदलकर अरबी कर दिया गया, तो कुछ को नष्ट ही कर दिया गया। वर्तमान में हिन्दी की लिपि को रोमन में बदलने का छद्म कार्य शुरू हो चला है।

यदि संस्कृत व्यापक पैमाने पर नहीं बोली जाती तो व्याकरण लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती। भारत में आज जितनी भी भाषाएं बोली जाती है वे सभी संस्कृत से जन्मी हैं जिनका इतिहास मात्र 1500 से 2000 वर्ष पुराना है। उन सभी से पहले संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था।

आदिकाल में भाषा नहीं थी, ध्वनि संकेत थे। ध्वनि संकेतों से मानव समझता था कि कोई व्यक्ति क्या कहना चाहता है। फिर चित्रलिपियों का प्रयोग किया जाने लगा। प्रारंभिक मनुष्यों ने भाषा की रचना अपनी विशेष बौद्धिक प्रतिभा के बल पर नहीं की। उन्होंने अपने-अपने ध्वनि संकेतों को चित्र रूप और फिर विशेष आकृति के रूप देना शुरू किया। इस तरह भाषा का क्रमश: विकास हुआ। इसमें किसी भी प्रकार की बौद्धिक और वैज्ञानिक क्षमता का उपयोग नहीं किया गया।

संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो। इस भाषा की खोज की गई है। भारत में पहली बार उन लोगों ने सोचा-समझा और जाना कि मानव के पास अपनी कोई एक लिपियुक्त और मुकम्मल भाषा होना चाहिए जिसके माध्यम से वह संप्रेषण और विचार-विमर्श ही नहीं कर सके बल्कि जिसका कोई वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार भी हो। ये वे लोग थे, जो हिमालय के आसपास रहते थे।

उन्होंने ऐसी भाषा को बोलना शुरू किया, जो प्रकृतिसम्मत थी। पहली दफे सोच-समझकर किसी भाषा का आविष्कार हुआ था तो वो संस्कृत थी। चूंकि इसका आविष्कार करने वाले देवलोक के देवता थे तो इसे देववाणी कहा जाने लगा। संस्कृत को देवनागरी में लिखा जाता है। देवता लोग हिमालय के उत्तर में रहते थे।

संस्कृत भाषा : भारतीय संस्कृति की पहचान एवं विरासत | Sanskrit Language | History Of Sanskrit | Sanskrit Bhasha Ka Mahatva | Sanskrit Bhasha ka itihas |

1.1. संस्कृत भाषा : भारतीय संस्कृति की पहचान एवं विरासत | Sanskrit Language | Importance of Sanskrit

1.1.1. संस्कृत का दायरा | SCOPE OF SANSKRIT | SCOPE OF SANSKRIT LANGUAGE | Sanskrit Language

1.1.2. संस्कृति का प्रतीक संस्कृत | SANSKRIT : SYMBOL OF CULTURE

1.1.3. संस्कृत में शिक्षा एवं उच्च शिक्षा | संस्कृत शिक्षा | SANSKRIT SIKSHA | SANSKRIT EDUCATION

1.1.3.1. संस्कृत शिक्षा के लिए सरकार के प्रयास | GOVERNMENT EFFORTS FOR SANSKRIT EDUCATION :

1.1.4. संस्कृत का इतिहास | HISTORY OF SANSKRIT

1.1.4.1. READ ALSO (यह भी पढ़े) :

संस्कृत भाषा : भारतीय संस्कृति की पहचान एवं विरासत | Sanskrit Language | History Of Sanskrit | Sanskrit Bhasha Ka Mahatva | Sanskrit Bhasha ka itihas | 

 

 

Sanskrit Language

आज दुनिया के कई देश संस्कृत के प्रचार प्रसार की कोशिश में लगे हुए हैं। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में संस्कृत का महाकुंभ आयोजित किया गया था। आज इस लेख के माध्यम से हम संस्कृत भाषा की दशा और दिशा के बारे में बात करेंगे। इस लेख के माध्यम से संस्कृत भाषा के इतिहास के बारे में और भारतीय संस्कृति में संस्कृत की महत्ता को बताने का प्रयास किया गया है।

संस्कृत को संसार की सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है। संस्कृत भारतीय संस्कृति और सभ्यता की संवाहक भाषा भी मानी जाती है। लेकिन संस्कृत भाषा नई पीढ़ी के बीच अपनी लोकप्रियता खोती जा रही है। दुनिया के तमाम देश आज संस्कृत की ओर लौट रहे हैं, लेकिन भारत में यही भाषा उपेक्षा का शिकार हो रही है।

आज इस लेख के माध्यम से हम संस्कृत भाषा के बारे में जानेंगे कि क्यों यह वर्तमान पीढ़ी में अपनी पहचान खो चुकी है। Sanskrit Language

 

 

 

संस्कृत भाषा : भारतीय संस्कृति की पहचान एवं विरासत | Sanskrit Language | Importance of Sanskrit

 

 

एक जमाने में ज्ञान के समस्त अनुशासनों में जिस भाषा का डंका बजता था, वह आज बेहद कमजोर पड़ गई है। देश के भीतर संस्कृत बोलने वालों की तादाद लगातार कम होती जा रही है। लेकिन आज भी कई ऐसे इलाके हैं जो संस्कृत को लेकर उम्मीद की एक नई किरण जगा रहे हैं।

कर्नाटक के शिमोगा जिले के मत्तूरु गांव के साधारण जीवन शैली वाले लोग संस्कृत में ही बात करते हैं। लगभग गांव का प्रत्येक व्यक्ति संस्कृत भाषा में ही बात करता है। दक्षिण भारत में कर्नाटक का ये गांव देश में एकलौता गांव नहीं है।  राजस्थान के बांसवाड़ा का कनौदा गांव, मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले का झिरी गांव और ओड़िसा के केओंझार जिले का श्याम सुंदरपुर गांव भी इसी परंपरा में आते हैं। संस्कृत को जिंदा रखने में इन गांवो का अहम योगदान है। Sanskrit Language

 

हमारे देश का कड़वा सच यह है कि संस्कृत भाषा मात्र कुछ गांवों तक ही सीमित रह गई है। बड़ी आबादी ने इस भाषा से दूरी बना ली या यूं कहें कि समय के साथ-साथ संस्कृत से दूरी बनती गई। आलम यह है कि 2001 की जनगणना में मात्र 14,135 लोगों ने ही पहली भाषा के तौर पर संस्कृत का नाम लिया। कुल आबादी का यह मात्र नगण्य हिस्सा है।

अक्टूबर 2012 में सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत गोस्वामी ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर संस्कृत को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा देने की मांग की। जाहिर है हालात बहुत अच्छे नहीं है, हालांकि  उत्तराखंड राज्य में संस्कृत को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा हासिल है। और संविधान की आठवीं अनुसूची में बिल्कुल शुरुआत में जिन 14 भाषाओं को दर्ज किया गया है, उनमें संस्कृत भी शामिल है। लेकिन चिंता का दायरा बीते कुछ सालों में बड़ा है।

मंत्र में संस्कृत है, पूजा पाठ में संस्कृत है, धर्म-कर्म में संस्कृत है, लेकिन आम जुबान से संस्कृत गायब है।  सरकार ने इसे बढ़ावा देने की कई कोशिश की लेकिन भाषा में रवानगी नहीं मिल पाई लेकिन उम्मीद की जा रही है कि संस्कृत भाषा को ज्ञान और सामान्य जनमानस के बातचीत की भाषा में तब्दील करने की कोशिश रंग लाएगी।

आकाशवाणी और दूरदर्शन में संस्कृत पर समाचार बुलेटिन के अलावा देश में कई पत्र-पत्रिकाएं इस भाषा में छपती है। अनुमान के मुताबिक इस वक्त 90 पत्रिकाएं संस्कृत भाषा में प्रकाशित होती है। कोशिश की जा रही है की संस्कृत भाषा को बदलते जमाने के रंगों के साथ जोड़ा जाएगा। Sanskrit Language

 

 

संस्कृत का दायरा | SCOPE OF SANSKRIT | SCOPE OF SANSKRIT LANGUAGE | Sanskrit Language

 

भाषा वैज्ञानिकों के मुताबिक 179 भाषाओं और 544 बोलियों का जन्म संस्कृत से हुआ है। लिहाजा बड़े भौगोलिक इलाकों में संस्कृत को जानने समझने वाले आज भी मिल जाते हैं। दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में संस्कृत की पढ़ाई आज भी हो रही है।

संस्कृत भाषा को भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। एक भाषा के रूप में संस्कृत की वैज्ञानिकता प्रमाणिक है। और इतना ही नहीं ज्ञान-विज्ञान की विरासत से भी संस्कृत समृद्ध है। दुनिया की तमाम भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव भी दिखता है क्योंकि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं बल्कि ज्ञान की सुविकसित प्रणाली भी है।

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।

अर्थात केवल स्वयं के विषय में सोचना काफी छोटी सोच है, जिनका हृदय विशाल होता है उनके लिए पूरा विश्व ही एक परिवार है।

पहली बार संस्कृत ने ही वसुधैव कुटुंबकम का संदेश पूरी दुनिया को दिया। केवल शब्दों में नहीं संस्कृत ने मानवीय एकता के इस भाव को अतीत में भी चरितार्थ किया। शायद यही वजह रही कि अतीत में भारत आने वाले दुनिया के कई विद्वानों ने संस्कृत को अपनाने में रुचि दिखाई।

संस्कृत उच्च कोटि के माननीय मूल्यों और आदर्शों का आधार भी रही। जिसने पिछले 5000 साल से भारत के अस्तित्व को कायम करने में अहम योगदान दिया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा था :

” संस्कृत भाषा और साहित्य की महान निधि है, जो भारत के पास है। यह एक शानदार विरासत है। “

संस्कृत को भारतीय संस्कृति की आत्मा भी कहा जाता है। वेदों को प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है। संस्कृत वेदों की भाषा रही है इसलिए इस लिहाज से भाषा के रूप में संस्कृत को सबसे पुरानी भाषा माना जाता है।  संस्कृत हिंदी-यूरोपीय भाषा परिवार की मुख्य शाखा हिंदी-ईरानी भाषा की हिंदी-आर्य उपशाखा की मुख्य भाषा है। इससे कई आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी, सिंधी, पंजाबी, बंगला आदि का जन्म हुआ है। इतना ही नहीं यूरोपीय खानाबदोशों की रोमानी भाषा का उद्गम भी संस्कृत से ही हुआ। व्याकरण के आधार पर संस्कृत दुनिया की सबसे ज्यादा वैज्ञानिक भाषा भी है।

 

 

संस्कृति का प्रतीक संस्कृत | SANSKRIT : SYMBOL OF CULTURE

 

जानकारी के लिहाज से भी संस्कृत एक बेजोड़ भाषा है। इसमें आध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, गणित, खगोल-शास्त्र, रसायन, वनस्पति-शास्त्र, साहित्य, शरीर, स्वास्थ्य जैसे व्यापक विषयों पर कई रचनाएं और ग्रंथ मौजूद हैं। संस्कृत को केवल पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांडों की भाषा मानना दरअसल केवल एक गलत अवधारणा है। संस्कृत केवल भाषा ना होकर पूर्ण ज्ञान के प्रणाली भी है। ऋषि-मुनियों विद्वानों ने अपने शोध के विस्तृत अध्ययन के जरिए संस्कृत को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है।

दरअसल संस्कृत ज्ञान की वह परंपरा एवं भाषा है जो समूची दुनिया को ” तमसो मा ज्योर्तिगमय “ यानी अंधकार से प्रकाश की ओर चलने का संदेश देती है।

वैसे तो संस्कृत आम बोलचाल की भाषा के रूप में इस्तेमाल नहीं होती लेकिन सभ्यता, संस्कृति और इतिहास जानने के लिए संस्कृत हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। ऐसा केवल हम ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देश भी मानते हैं। और यही वजह है कि यूनेस्को (UNESCO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन भी संस्कृत को पूरे विश्व समुदाय की अमूल्य धरोहर मानते हैं।

 

 

 

संस्कृत में  शिक्षा एवं उच्च शिक्षा | संस्कृत शिक्षा | SANSKRIT SIKSHA | SANSKRIT EDUCATION

 

 

संस्कृति एक जटिल भाषा है या सरल भाषा यह एक बहस का विषय हो सकता है। आम बोलचाल में संस्कृत का इस्तेमाल भी बेहद कम ही होता है लेकिन इससे संस्कृत का महत्व कम नहीं हो सकता। संस्कृत हमारी संस्कृति की आत्मा है। यह हमारे अतीत और वर्तमान की अहम कड़ी भी है। सभी केंद्रीय विद्यालय में कक्षा छठवीं से आठवीं तक छात्र अनिवार्य विषय के रूप में संस्कृत पढ़ते हैं। वही देश के कई राज्यों में तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ाई जाती है। कुछ राज्यों में संस्कृत दूसरी भाषा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल की गई है। कई राज्यों में छठवीं से दसवीं तक संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। जबकि छात्र 11वीं में से इसे ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ सकते हैं।

संस्कृत में उच्च शिक्षा के लिए देश में 3 डीम्ड विश्वविद्यालय है। 21 आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, चार शोध संस्थान, राष्ट्रीय केंद्रीय संस्कृत संस्थान के 11 कैंपस और 73 वैदिक पाठशालाएं हैं। देश में संस्कृत के करीब 750 कॉलेज है। संस्कृत के ज्ञान को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के लिए जनवरी 2014 में दूसरे संस्कृत आयोग का गठन किया गया। संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वानों को सम्मानित करने के लिए सम्मान प्रमाण पत्र और युवा जानकारों के सम्मान के लिए महर्षि बाद्रायण व्यास सम्मान दिया जाता है। इस योजना में अनिवासी भारतीय और विदेशी विद्वानों को दिए जाने वाला सम्मान भी है। जानकारों के अनुसार संस्कृत को आम बोलचाल की भाषा बनाने के लिए अभी और कदम उठाने की जरूरत है।

 

 

संस्कृत शिक्षा के लिए सरकार के प्रयास | GOVERNMENT EFFORTS FOR SANSKRIT EDUCATION  :

 

देश में वैदिक संस्थानों और पाठशालाओं की सहायता के लिए 1987 में महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान (राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान) बनाया गया। संस्कृत भाषा के संरक्षण के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 1987-88 में जहां 73 लाख 94 हजार रुपए का आवंटन किया था, वही 2014-15 में यह बढ़कर 2500 करोड़ रुपए हो गया है।

हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि संस्कृत उपेक्षा का शिकार भी हो रही है। देश में कक्षा ग्यारहवीं के बाद संस्कृत पढ़ने वालों की की तादाद घट रही है। संस्कृत सीखने में छात्रों की घटती अभिरुचि कैसे बढ़े, इसके लिए ध्यान देने की दरकार है। वहीं संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों को पी बढ़ावा देना जरूरी है को भी बढ़ावा देना जरूरी है। Sanskrit Language

 

 

संस्कृत का इतिहास | HISTORY OF SANSKRIT

 

संस्कृत का इतिहास काफी पुराना है। जानकार इसका इतिहास करीब 5000 साल पुराना मानते हैं। भारत में इसे आर्य-भाषा माना जाता है, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण, व्यापक और संपन्न रूप में मौजूद है। और इसी के जरिए प्रतिभा, महत्वपूर्ण चिंतन, मनन, रचनात्मकता और विचार का प्रसार हुआ है।

भारत में आज भी वैदिक संस्कार, पूजा-पाठ संस्कृत में ही होते हैं। यही वजह है कि ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मित भाषाओं से संस्कृत की स्थिति अलग है। इसे अमर भाषा का दर्जा हासिल है।

भारतीय परंपरा के मुताबिक संस्कृत भाषा पहले अव्याकृत थी यानी उसकी प्रकृति और प्रत्यय का विवेचन नहीं हुआ था। देवराज इंद्र ने प्रकृति और प्रत्यय के विश्लेषण का उपाय दिया। इसी संस्कार की वजह से भारत की प्राचीनतम आर्य भाषा का नाम संस्कृत पड़ा। जानकार ऋग्वेद की भाषा को संस्कृत का प्राचीन उपलब्ध रूप मानते हैं।

रिक संहिता कालीन साधु भाषा और ब्राह्मण आरण्यक दशोंपनिषद नामक ग्रंथों की साहित्यिक वैदिक भाषा का निरंतर विकास हुआ। जो लौकिक संस्कृत या पाणीनिय संस्कृत कहलाया। इसी भाषा को संस्कृत, संस्कृत भाषा या साहित्यिक संस्कृत के नामों से जाना जाता है। सबसे पहले पाणिनि ने संस्कृत भाषा का व्याकरण अष्टाध्यायी लिखा। करीब 600 ईसा पूर्व के इस ग्रंथ को उपलब्ध प्राचीन व्याकरण माना जाता है। दुनिया में इसकी तुलना किसी और ग्रंथ से नहीं की जा सकती। अमेरिका के भाषा शास्त्री अष्टाध्यायी को दुनिया में का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ मानते हैं।

माना जाता है कि प्राचीन भाषाओं में संस्कृत सबसे ज्यादा व्यवस्थित वैज्ञानिक और संपन्न भाषा है। आचार्य पतंजलि के व्याकरणमहाभाष्य नामक मशहूर ग्रंथ में वैदिक भाषा और लौकिक भाषा के शब्दों का उल्लेख है। उस वक्त तक संस्कृत लगभग आम बोलचाल की भाषा बन गई थी।

कई जानकारों का मानना है कि भाषा के लिए संस्कृत शब्द का इस्तेमाल पहली बार वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में किया गया। विद्वानों ने विकास की दृष्टि से संस्कृत भाषा का ऐतिहासिक काल विभाजन किया है :

 

4500 ईसा पूर्व से 800 ईसा पूर्व को आदिकाल यानी वेद संहिताओं और वांमान्य का काल माना गया है।

820 ईसा पूर्व से 800 ईसवी तक को मध्यकाल कहा जाता है। इसी दौरान शास्त्रों, दर्शनसूत्रों, वेदांग-ग्रंथों, काव्यों और कुछ प्रमुख साहित्यिक ग्रंथों की रचना हुई।

800 से 16०0 ईसवी तक के आधुनिक काल को परवर्ती काल कहा गया है। संस्कृत का ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं के साथ पारिवारिक और निकट संबंध है। भारत-ईरानी वर्ग की भाषाओं यानी अवस्था, पहलवीं, फारसी, ईरानी, पश्तो आदि प्राचीन नवीन भाषा संस्कृत के सबसे ज्यादा निकट रहे हैं।

१७वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में यूरोप, पश्चिमी देशों का संस्कृत से परिचय हुआ। धीरे-धीरे पश्चिम ही नहीं पूरी दुनिया में संस्कृत का प्रचार हुआ। जर्मन, अंग्रेज, फ्रांसीसी, अमेरिकी और यूरोप के अनेक छोटे-छोटे देश के विद्वानों ने संस्कृत के अध्ययन को लोकप्रिय बनाया। Sanskrit Language

 

 

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आज की दुनिया में संस्कृत भाषा का क्या महत्व है?

संस्कृत भाषा देववाणी कहलाती है। यह न केवल भारत की ही महत्त्व पूर्ण भाषा है। अपितु विश्व की प्राचीनतम व श्रेष्ठतम भाषा मानी जाती है। कुछ समय पहले कुछ पाश्चात्य विद्वानों द्व्रारा मिश्र देश के साहित्य को प्राचीनतम माना जाता था परन्तु अब सभी विद्वान् एक मत से संस्कृत के प्रथम ग्रंथ वेद ( ऋग्वेद ) को सबसे प्राचीन मानते है।

आधुनिक युग में संस्कृत भाषा का क्या महत्व है लिखिए?

इस भाषा की वैज्ञानिकता का अध्ययन करके ही अनुसंधान संस्था नासा ने 1987 ई. में ही संस्कृत को कंप्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा घोषित कर दिया था, जिस कारण आज उस संस्था के द्वारा संस्कृत में सतत शोध किए जा रहे हैं। पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिकों ने पाणिनि-व्याकरण को मानवीय-बुद्धिमत्ता की सर्वोत्कृष्ट रचना कहा है।

संस्कृत बहुत महत्वपूर्ण क्यों है?

(१) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है। (२) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। (३) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।

आज के युग में संस्कृत भाषा की आवश्यकता तथा उपयोगिता क्यों हैं?

(१) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है। (२) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। (३) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।