2 परदे पर कौन कुर्बान हो रहे हैं? - 2 parade par kaun kurbaan ho rahe hain?

नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?


प्रेमचंद ने सामाजिक बुराइयों को अपनाना तो दूर उनकी तरफ देखा भी नहीं। प्रेमचंद गलत वस्तु या व्यक्ति को हाथ से नहीं पैर से ही सम्बोधित करना उचित समझते है। अर्थात लेखक गलत वस्तु या व्यक्ति को इस लायक नहीं समझते थे कि उनके लिए अपने हाथ का प्रयोग करके हाथ के महत्व को कम करें।

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हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?


प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ -
1. प्रेमचंद के विचार बहुत ही उच्च थे वे सामाजिक बुराइयों से दूर रहे।
2. प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे।
3. प्रेमचंद को समझौता करना मंजूर न था।
4. प्रेमचंद बहुत ही सीधा-सादा जीवन जीते थे वे गांधी जी की तरह सादा जीवन जीते थे।
5. वे हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला करते थे।

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सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए अथवा सही उत्तर लिखिए: 
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?


लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। (✓)

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नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -
जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।


व्यंग्य-यहाँ पर जूते का आशय समृद्धि से है तथा टोपी मान, मर्यादा तथा इज्जत का प्रतीक है। वैसे तो इज्जत का महत्त्व सम्पत्ति से अधिक हैं। परन्तु आज  समाज के समृद्ध एवं प्रतिष्ठित लोग अपने सामर्थ्य के बल अनेक टोपियाँ (सम्मानित एवं गुणी व्यक्तियों) को अपने जूते पर झुकने को विवश कर देते हैं।

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नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -तुम परदे का महत्व नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।


यहाँ परदे का सम्बन्ध इज़्जत से है। जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त महत्वहीन है।

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विषयसूची

  • 1 पर्दे पर कौन कुर्बान हो रहा है?
  • 2 प्रेमचंद के व्यक्तित्व को परसाई जी ने कैसे उभारा हैं?
  • 3 प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में लेखक ने लोगों पर क्या व्यंग्य किया है?
  • 4 पाठ में उपस्थित कथन टीलो से भी तो समझौता हो जाता है यहां टीलो का क्या अर्थ है?
  • 5 हरिशंकर परसाई जी ने प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण बताया है?
  • 6 कौन परदे का महत्व नहीं जानता?
  • 7 17 सोने का पिंजरा रहने पर भी पक्षी खुश क्यों नहीं हैं?

पर्दे पर कौन कुर्बान हो रहा है?

इसे सुनेंरोकें(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं। (ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो? उत्तर: (क) व्यंग्य-जूते का स्थान पाँवों में अर्थात् नीचे है यह सामर्थ्य अथवा ताकत का प्रतीक माना जाता है।

प्रेमचंद के व्यक्तित्व को परसाई जी ने कैसे उभारा हैं?

1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

  • प्रेमचंद बहुत ही सीधा-सादा जीवन जीते थे वे गांधी जी की तरह सादा जीवन जीते थे।
  • प्रेमचंद के विचार बहुत ही उच्च थे वे सामाजिक बुराइयों से दूर रहे।
  • प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे।

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में लेखक ने लोगों पर क्या व्यंग्य किया है?

इसे सुनेंरोकेंइसमें लेखक ने प्रेमचंद के फटे हुए जूते एवं उनके साधारण कपड़े जिसमें वे फोटो खिंचवाने भी चले जाते हैं, का वर्णन किया है। लेखक ने प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में फैली दिखावे की परंपरा पर व्यंग किया है। अपने मनपसंद के कपड़े पहनना सबकी अपनी पसंद होती है।

जूते पर टोपियाँ न्योछावर होने का तात्पर्य क्या है *?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. जूते पर टोपिया न्योछावर होने का तात्पर्य यह है कि आज के युग में जूते का कीमत बढ़ गई है। यहां पर जूते को समृद्धि का प्रतीक बताया गया है जबकि टोपी को मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक बनाया गया है। आज के युग में धन और समृद्धि की कीमत अधिक बढ़ गई है और उसके आगे मान प्रतिष्ठा को इतना महत्व नहीं दिया जाता।

जूते पर कितनी टोपियाँ न्योछावर होती हैं?

इसे सुनेंरोकेंअब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। व्यंग्य-यहाँ पर जूते का आशय समृद्धि से है तथा टोपी मान, मर्यादा तथा इज्जत का प्रतीक है। वैसे तो इज्जत का महत्त्व सम्पत्ति से अधिक हैं।

पाठ में उपस्थित कथन टीलो से भी तो समझौता हो जाता है यहां टीलो का क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकें✎… टीलों से समझौता भी हो जाता है। यहाँ टीलों का अर्थ हमारे समाज में फैली हुई उन रूढ़ियों से है, जिनके बंधन में हमारा समाज आज भी जकड़ा हुआ है। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के आधार पर कहे तो लेखक ने टीलों का संदर्भ उन्हीं रूढ़ियों के लिए दिया है।

हरिशंकर परसाई जी ने प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण बताया है?

इसे सुनेंरोकें➲ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के लेखक द्वारा जूते फटने का कारण समाज का पाखंड और समाज विडंबना को बताया जिसके कारण प्रेमचंद जैसे महान लेखक को अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ा और वह अपने लिये ढंग के जूते तक नही खरीद पाये।

कौन परदे का महत्व नहीं जानता?

इसे सुनेंरोकेंतुम परदे का महत्व नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं। यहाँ परदे का सम्बन्ध इज़्जत से है। जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त महत्वहीन है।

पिंजरे में बंद होने से पक्षी क्या क्या नहीं कर पाते हैं?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- पक्षी उन्मुक्त रहकर बहते हए जल को पीना, कड़वे निबौरी के फल को खाना, पेड़ के सबसे ऊँची टहनी पर झूलना, खुले आसमान में उड़ना, क्षितिज के अंत तक उड़ने की इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं। पास पंख है, वे आसमान में उड़ना चाहते हैं। वे प्रकृति के छाँव में खुलकर रहना चाहते हैं ना कि हमारे बंद पिंजरों में।

इसे सुनेंरोकेंजूते पर टोपिया न्योछावर होने का तात्पर्य यह है कि आज के युग में जूते का कीमत बढ़ गई है। यहां पर जूते को समृद्धि का प्रतीक बताया गया है जबकि टोपी को मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक बनाया गया है। आज के युग में धन और समृद्धि की कीमत अधिक बढ़ गई है और उसके आगे मान प्रतिष्ठा को इतना महत्व नहीं दिया जाता।

1 पशु पंछियों को पिंजरे में बंद करना चाहिए कि नहीं क्यों?

इसे सुनेंरोकेंपिंजरे में बंद पक्षी अपशकुन का प्रतीक होते हैं। वास्तुशास्त्र के मुताबिक, पक्षियों को पिंजरे में रखना विभिन्न प्रकार की परेशानियों को दावत देना है। अतः पक्षियों को पिंजरे में बंद करके कभी नहीं पालना चाहिए। उनकी जगह आकाश में है, उन्हें प्राकृतिक रूप से विचरण करने दें।

17 सोने का पिंजरा रहने पर भी पक्षी खुश क्यों नहीं हैं?

इसे सुनेंरोकेंपिंजरे में बंद पक्षी खुश इसलिए नहीं है क्योंकि वे पिंजरे के अंदर कैद नहीं रहना चाहते हैं वे स्वतंत्र होकर कड़वी निबोरी खाना चाहते है और नदी का पानी पीना चाहते है।