1971 के युद्ध में पाकिस्तान का जनरल कौन था? - 1971 ke yuddh mein paakistaan ka janaral kaun tha?

पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने रियाटरमेंट से पहले उस सच को छिपाने की कोशिश की जो पाकिस्तान आर्मी की सबसे नाजुक और दुखती हुई रग है. ये रग है 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की कमरतोड़ हार. वही हार जिसमें पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया था. इस लड़ाई में मात खाने के बाद जनरल नियाजी की सरेंडर डॉक्युमेंट पर हस्ताक्षर करती तस्वीरें वो रिकॉर्ड है जिसे कोई पाकिस्तानी नहीं देखना चाहता है. 

बांग्लादेश का जन्म 1971 की जंग में पाकिस्तान की हार का सबसे बड़ा सबूत है. अब इस तथ्य से पाकिस्तान मुंह तो चुरा नहीं सकता. लेकिन वह तथ्यों को अक्सर तोड़ना मरोड़ता रहता है. इसी सिलसिले में रावलपिंडी में एक कार्यक्रम में जनरल बाजवा ने फिर से 50 साल पुरानी हार से मुंह चुराने की कोशिश की. 

 बाजवा ने 71 की जंग पर क्या कहा?

जनरल बाजवा के कार्यकाल के 5 दिन ही रह गए हैं. 29 नवंबर को वे रिटायर हो जाएंगे. इससे पहले बुधवार को उन्होंने रावलपिंडी में एक कार्यक्रम में बांग्लादेश युद्ध से जुड़ी सच्चाइयों पर पर्दा डालने की कोशिश की. 

बाजवा ने कहा, "मैं आपके सामने वैसे मुद्दे पर बात करना चाहता हूं जिस पर लोग बात करने से गुरेज करते हैं, और बात 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर हुई लड़ाई से जुड़ी है. मैं यहां कुछ तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूं, पूर्वी पाकिस्तान का बनना एक राजनीतिक नाकामी थी ना कि सैन्य नाकामी. इस जंग में सरेंडर करने वाले फौजों की तादाद 92 हजार नहीं बल्कि सिर्फ 34 हजार थी. बाकी लोग सरकार के दूसरे डिपार्टमेंट से जुड़े थे."

आर्मी चीफ ने झूठ पर झूठ बोलते हुए कहा कि इन 34 हजार पाकिस्तानी सेनाओं का मुकाबला भारत की 2.5 लाख सेनाओं और मुक्ति वाहिनी के 2 लाख ट्रेंड सदस्यों से हुआ. 

सच्चाई क्या है?

बांग्लादेश बनने के 50 साल बाद बाजवा भले ही ऐतिहासिक सच को झूठ का जामा पहनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनके हर बयान और उसकी वास्तविक सच्चाई हम आपको बताते हैं. 

राजनीतिक ही नहीं सैन्य नाकामी भी थी 1971 की जंग

बाजवा ने कहा कि 1971 की जंग राजनीतिक नाकामी थी. यानी कि बावजा अपने देश को बताना चाहते हैं कि ऐसा पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व की वजह से हुआ और सेना ने अपना काम सही किया. 

1971 के युद्ध में पाकिस्तान का जनरल कौन था? - 1971 ke yuddh mein paakistaan ka janaral kaun tha?

1971 की जंग में ढाका की ओर मार्च करती इंडियन आर्मी (फाइल फोटो)

लेकिन सच्चाई यह है कि बांग्लादेश का बनना राजनीतिक नाकामी तो थी ही, पाकिस्तान की सेना भी इसमें बुरी तरह हारी थी. हालांकि बांग्लादेश आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने अत्याचार की पराकाष्ठा पार कर कर दी थी. 

सबसे पहले तो दिसंबर 1970 में हुए चुनाव में 313 में से 167 सीटें जीतने के बाद भी शेख मुजीबुर्ररहमान की आवामी लीग को पाकिस्तान में सरकार बनाने नहीं दिया गया. इसके बाद शेख मुजीबुर्ररहमान को गिरफ्तार कर लिया गया है और पूर्वी पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया गया. इसके बाद मौजूदा बांग्लादेश में विद्रोह की आग भड़क उठी. ये तो पाकिस्तान की राजनीतिक नाकामी थी. 

सैन्य नाकामी की बात करें तो पहले तो पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बनें लेफ्टिनेंट जनरल टिक्‍का खां ने खूब अत्याचार मचाया.  

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. इसके बाद इंदिरा के नेतृत्व में भारत ने जवाबी कार्रवाई शुरू की. कायर पाकिस्तान सेना जंग लड़ने की बजाय बांग्ला बोलने वाली महिलाओं के साथ सामूहिक रेप करने लगे. एक आंकड़े  के अनुसार पाकिस्तान सेना ने रेप को हथियार की तरह इस्तेमाल किया. एक आंकड़े के अनुसार तीन 3 लाख बांग्ला बोलने वाली महिलाओं के साथ रेप किया गया.  

34 हजार नहीं 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने किया था सरेंडर 

पाकिस्तान आर्मी चीफ बाजवा ने अपने भाषण में दावा किया है कि इस जंग में 92 हजार पाकिस्तानी सैनिक नहीं बल्कि 34 हजार सैनिक लड़ रहे थे. लेकिन आंकड़े इस झूठ को बेनकाब करते हैं. भारत के सामने सरेंडर करते जनरल नियाजी की तस्वीर को कौन भूल सकता है. 

16 दिसंबर को पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने जब भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने सरेंडर किया था तो उस समय पाकिस्तान सेना के लगभग 93 हजार सैनिकों को भारत ने युद्धबंदी बनाया था. इनमें से 65 से 81 हजार पाकिस्तान सेना के वर्दीधारी थे. यानी कि ये पाकिस्तान के रेगुलर सैनिक थे. बाकी बचे साढ़े 12 हजार से 28 हजार युद्धबंदी वैसे थे जो सैनिकों के रिश्तेदार थे या फिर ये रजाकर थे जो इस जंग में पाकिस्तानी सैनिकों का साथ दे रहे थे. 

1971 के युद्ध में पाकिस्तान का जनरल कौन था? - 1971 ke yuddh mein paakistaan ka janaral kaun tha?

जंग की योजना पर सैन्य अफसरों के साथ चर्चा करते फील्ड मार्शल मानेकशॉ (फाइल- फोटो)

पाकिस्तान के ये सैनिक लगभग 2 सालों तक भारत की कैद में रहे. बाद में शिमला समझौते की वजह से ही इनकी पाकिस्तान वापसी का रास्ता साफ हुआ.  ये समझौता इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था.

कांपते हाथों से हस्ताक्षर फिर... नियाजी के आंसू 

युद्ध शुरू होने से पहले नियाजी भी खूब शेखी बघारते थे. एक अमेरिकी महिला पत्रकार ने जनरल नियाजी के बारे में लिखा था कि 'जब टाइगर नियाजी के टैंक गरजेंगे, तो भारतीय अपनी जान बचाने के लिए भागते फिरेंगे.' लेकिन जब युद्ध शुरू हुआ तो मात्र 13 दिनों में नियाजी के होश ठिकाने आ गए. 16 दिसंबर को नियाजी ने कांपते हाथों से आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत किया और अपनी पिस्टल जनरल अरोड़ा को सौंप दी फिर फफक-फफककर रोने लगे. इसके बाद नियाजी शब्द पाकिस्तान में गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा.

1971 के युद्ध में पाकिस्तान का जनरल कौन था? - 1971 ke yuddh mein paakistaan ka janaral kaun tha?

सरेंडर के साथ ही जनरल नियाजी ने अपनी पिस्टल भी भारत को सौंप दी थी.

इस हार पर जब पाकिस्तान में बवाल हुआ तो इसकी जांच के लिए एक कमीशन बना. जस्टिस रहमान कमीशन ने हार के लिए नियाजी को ज़िम्मेदार माना. कमीशन ने उनका कोर्ट मार्शल करने की सलाह दी थी. 

पाक फौज की कथित बहादुरी का झूठ

जनरल बाजवा ने कहा कि इस जंग में पाकिस्तान सेना बहादुरी से लड़ी और पाकिस्तान को उनकी बहादुरी पर गर्व है. लेकिन आकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान सेना कितनी बहादुरी से लड़ी. इस जंग में पाकिस्तान के 9 हजार सैनिक मारे गए, जबकि भारत की ओर से शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या ढाई से तीन हजार थी. 

भारतीय नौसेना की कार्रवाई में पीएनएस गाजी समंदर में दफन हो गया. पीएनएस जुल्फिकार खुद पाकिस्तान सेना का निशाना बन गया. जबकि भारत का INS खुखरी पाक आर्मी का शिकार हुआ. 

स्वतंत्र पर्यवेक्षकों के अनुसार इस युद्ध में भारतीय वायु सेना के 45 युद्धक विमान तबाह हुए जबकि पाकिस्तान 75 फाइटर एयरक्राफ्ट मलबे में तब्दील हो गए. भारत ने पाकिस्तान के 200 टैकों को नेस्तानाबूद कर डाला, जबकि भारत 80 टैंकों को नुकसान पहुंचा. 

3 दिसंबर 1971 को शुरू हुए इस जंग में भारत की सेना ने इतनी तेजी से कार्रवाई की कि मात्र 13 दिनों में ही पाकिस्तान घुटनों पर आ गया. 

1971 में पाकिस्तान का शासक कौन था?

1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी।

1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी उस समय कौन से जनरल वहां के राष्ट्रपति थे?

16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था.

1971 में पाकिस्तान कैसे हार गया?

16 दिसंबर 1971 के दिन ही पाकिस्तान की सेना ने भारत के आगे घुटने टेके थे। भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और बांग्लादेश एक नए देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर आया। लेकिन पाकिस्तान के लिए यह सिर्फ हार नहीं थी, भारत ने उसका गुरूर तोड़ा था। कश्मीर पाने के सपने देखने वाले पाकिस्तान का भूगोल अब छोटा हो चुका था।

1971 युद्ध कितने दिन चला?

ये युद्ध केवल 13 दिन तक चला था और इन 13 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। - इस युद्ध में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। - इस युद्ध के परिणाम से नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। - 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 9,851 सैनिक घायल हुए थे।