1971 के आपातकाल के समय राष्ट्रपति कौन थे? - 1971 ke aapaatakaal ke samay raashtrapati kaun the?

फर्स्ट आपातकाल के समय राष्ट्रपति कौन थे?...


1971 के आपातकाल के समय राष्ट्रपति कौन थे? - 1971 ke aapaatakaal ke samay raashtrapati kaun the?

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भारत में आपातकालीन इमरजेंसी जो लगाई जाती है वह आर्टिकल 352 के हिसाब से लगाई जाती है और जो इमरजेंसी होती है वह दो तरीके की होती है एक बाहरी खतरों के लिए और दूसरे आंतरिक खतरों के लिए तो जो पहली इमरजेंसी लगाई गई थी भारत में वह बाहरी खतरों के लिए लगाई गई थी 1962 में जो चीन के साथ हमारा युद्ध हुआ था उस युद्ध की वजह से 26 अक्टूबर 1962 को वह मिली थी लगाई गई थी और 10 जनवरी 1968 तक कितने लंबे समय तक वह इमरजेंसी लागू रही थी जब इमरजेंसी पहली वाली शुरू हुई थी उस समय जो राष्ट्रपति थे वह सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे और जो प्रधानमंत्री थे उस समय वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस अमर गिनती के दौरान ही पंडित जवाहरलाल नेहरू मृत्यु हुई उनकी मृत्यु के पश्चात गुलजारी लाल नंदा जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने उनकी मृत के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री जी निमित्त प्रधानमंत्री बने फिर लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात 11 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी हालांकि उसके पहले एक बार फिर गुलजारी लाल नंदा जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने थे पर इंदिरा गांधी ने ही उसको पहली इमरजेंसी को 10 जनवरी 1968 को समाप्त किया और उस समय जो जब जे इमरजेंसी समाप्त हुई तब जो राष्ट्रपति थे वह डॉक्टर जाकिर हुसैन थे दूसरी बार जो इमरजेंसी लगी वह बांग्लादेश युद्ध जो हुआ था 1971 में तो वह छोटी इमरजेंसी थी 3 दिसंबर से 17 दिसंबर 1971 के लिए थी उस समय जो राष्ट्रपति थे वह वीवी गिरी थे और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जो तीसरी इमरजेंसी लगी वह आंतरिक सुरक्षा के वजह से लगाई थी इंदिरा गांधी ने वह 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक रही जब यह अमर जनती शुरू हुई थी तो उस समय जो राष्ट्रपति थे फखरुद्दीन अली अहमद थे पर उनकी पद पर रहते हुए ही 11 फरवरी 1977 को मृत्यु हो गई थी उसके बाद जो उपराष्ट्रपति से पीड़ित व्यक्ति वह राष्ट्रपति बने और उनके कार्यकाल उनके कार्यकाल में यह हमर जयंती समाप्त हुई किस मार्च 1977 को धन्यवाद

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1 जवाब

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आज से करीब 43 साल पहले इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। 25 जून, 1975 को लगा आपातकाल 21 महीनों तक यानी 21 मार्च, 1977 तक देश पर थोपा गया। 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना, 'भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।' आइये आज आपातकाल से जुड़ी 10 बड़ी बातें जानते हैं...नेताओं की गिरफ्तरियां
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जेलों में जगह नहीं बची। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई। प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। यह सब तब थम सका, जब 23 जनवरी, 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई।

पृष्ठभूमि
लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद देश की प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी का कुछ कारणों से न्यायपालिका से टकराव शुरू हो गया था। यही टकराव आपातकाल की पृष्ठभूमि बना। आपातकाल के लिए 27 फरवरी, 1967 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बड़ी पृष्ठभूमि तैयार की। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सुब्बाराव के नेतृत्व वाली एक खंडपीठ ने सात बनाम छह जजों के बहुतम से से सुनाए गए फैसले में यह कहा कि संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ भी किसी संविधान संशोधन के जरिये मूलभूत अधिकारों के प्रावधान को न तो खत्म किया जा सकता है और न ही इन्हें सीमित किया जा सकता है।

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प्रमुख कारण
1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को जबर्दस्त जीत दिलाई थी और खुद भी बड़े मार्जिन से जीती थीं। खुद इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इंदिरा गांधी के सामने रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है। मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया। इस फैसले से आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लगाने का फैसला लिया।

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आपातकाल की घोषणा
इस फैसले से इंदिरा गांधी इतना क्रोधित हो गईं कि अगले दिन ही उन्होंने बिना कैबिनेट की औपचारिक बैठक के आपातकाल लगाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर डाली, जिस पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में ही अपने हस्ताक्षर कर डाले और इस तरह देश में पहला आपातकाल लागू हो गया।

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इमर्जेंसी में हर कदम पर संजय के साथ थीं मेनका: आर के धवन
इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे आर.के. धवन ने कहा है कि सोनिया और राजीव गांधी के मन में इमर्जेंसी को लेकर किसी तरह का संदेह या पछतावा नहीं था। और तो और, मेनका गांधी को इमर्जेंसी से जुड़ी सारी बातें पता थीं और वह हर कदम पर पति संजय गांधी के साथ थीं। वह मासूम या अनजान होने का दावा नहीं कर सकतीं। आर.के.धवन ने यह खुलासा एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में किया था।

धवन ने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी जबरन नसबंदी और तुर्कमान गेट पर बुलडोजर चलवाने जैसी इमर्जेंसी की ज्यादतियों से अनजान थीं। इन सबके लिए केवल संजय ही जिम्मेदार थे। इंदिरा को तो यह भी नहीं पता था कि संजय अपने मारुति प्रॉजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे थे। धवन के मुताबिक इस प्रॉजेक्ट में उन्होंने ही संजय की मदद की थी, और इसमें कुछ भी गलत नहीं था।

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बंगाल के सीएम एस.एस.राय ने दी थी आपातकाल लगाने की सलाह
धवन ने बताया कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। इमर्जेंसी की योजना तो काफी पहले से ही बन गई थी। धवन ने बताया कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह तो इसके लिए तुरंत तैयार हो गए थे। धवन ने यह भी बताया कि किस तरह आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उन्हें निर्देश दिया गया था कि आरएसएस के उन सदस्यों और विपक्ष के नेताओं की लिस्ट तैयार कर ली जाए, जिन्हें अरेस्ट किया जाना है। इसी तरह की तैयारियां दिल्ली में भी की गई थीं।

इस्तीफा देने को तैयार थीं इंदिरा
धवन ने कहा कि आपातकाल इंदिरा के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए नहीं लागू किया गया था, बल्कि वह तो खुद ही इस्तीफा देने को तैयार थीं। जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी और उन्होंने अपना त्यागपत्र लिखवाया था। उन्होंने कहा कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए।

आईबी की रिपोर्ट और 1977 का चुनाव
धवन ने कहा कि इंदिरा ने 1977 के चुनाव इसलिए करवाए थे, क्योंकि आईबी ने उनको बताया था कि वह 340 सीटें जीतेंगी। उनके प्रधान सचिव पीएन धर ने उन्हें यह रिपोर्ट दी थी, जिस पर उन्होंने भरोसा कर लिया था। लेकिन, उन चुनावों में मिली करारी हार के बावजूद भी वह दुखी नहीं थीं। धवन ने कहा, 'इंदिरा रात का भोजन कर रही थीं तभी मैंने उन्हें बताया कि वह हार गई हैं। उनके चेहरे पर राहत का भाव था। उनके चेहरे पर कोई दुख या शिकन नहीं थी। उन्होंने कहा था भगवान का शुक्र है, मेरे पास अपने लिए समय होगा।' धवन ने दावा किया कि इतिहास इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर रहा है और नेता अपने स्वार्थ के चलते उन्हें बदनाम करते हैं। वह राष्ट्रवादी थीं और अपने देश के लोगों से उन्हें बहुत प्यार था।

इमर्जेंसी के दौरान इंदिरा के घर में था अमेरिकी जासूस: विकिलीक्स
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घर में 1975 से 1977 के दौरान एक अमेरिकी भेदिया था, जो उनके हर पॉलिटिकल मूव की खबर अमेरिका को दे रहा था। यह खुलासा विकिलीक्स ने कुछ साल पहले अमेरिकी केबल्स के हवाले से किया था। विकिलीक्स के मुताबिक, इमर्जेंसी के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घर में मौजूद इस भेदिए की उनके हर राजनीतिक कदम पर नजर थी। वह सारी जानकारी अमेरिकी दूतावास को मुहैया करा रहा था। केबल्स में इस भेदिए के नाम का खुलासा नहीं किया गया है।

26 जून 1975 को इंदिरा गांधी के देश में इमर्जेंसी घोषित करने के एक दिन बाद अमेरिकी दूतावास के केबल में कहा गया कि इस फैसले पर वह अपने बेटे संजय गांधी और सेक्रेटरी आरके धवन के प्रभाव में थीं। केबल में लिखा है, 'पीएम के घर में मौजूद 'करीबी' ने यह कन्फर्म किया है कि दोनों किसी भी तरह इंदिरा गांधी को सत्ता में बनाए रखना चाहते थे।' यहां दोनों का मतलब संजय गांधी और धवन से है।

आपातकाल और पीएम मोदी
आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई थी। आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता छीनी जा चुकी थी। कई पत्रकारों को मीसा और डीआईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। सरकार की कोशिश थी कि लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचे। उस कठिन समय में नरेंद्र मोदी और आरएसएस के कुछ प्रचारकों ने सूचना के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठा ली। इसके लिए उन्होंने अनोखा तरीका अपनाया। संविधान, कानून, कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों के बारे में जानकारी देने वाले साहित्य गुजरात से दूसरे राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में रखे गए। यह एक जोखिम भरा काम था क्योंकि रेलवे पुलिस बल को संदिग्ध लोगों को गोली मारने का निर्देश दिया गया था। लेकिन नरेंद्र मोदी और अन्य प्रचारकों द्वारा इस्तेमाल की गई तकनीक कारगर रही।

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75 में आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे?

सही उत्तर फखरुद्दीन अली अहमद है। भारत के राष्ट्रपति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत एक राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। भारत के राष्ट्रपति कैबिनेट से लिखित सिफारिश प्राप्त करने के बाद ही राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। फखरुद्दीन अली अहमद 1975 में आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति थे

प्रथम आपातकाल के दौरान भारत के राष्ट्रपति कौन थे?

1975 में आपातकाल से समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे ? राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद उस समय जब काँग्रेस सत्ता में थी और आंतरिक सुरक्षा के बहाने पूरे देश में जून 1975 को आपातकाल लागू किया गया था।

वर्ष 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के दौरान भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?

Solution : भारत में, "आपातकाल" 1975 से 1977 तक 19 महीने की अवधि तक था जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देश भर में आपातकाल को लागु किया था।