आधुनिक काल में योग का विकास कैसे हुआ? - aadhunik kaal mein yog ka vikaas kaise hua?

1. आधुनिक जीवन शैली ने मन-शरीर के संबंधों में सामजंस्य खो दिया है जिससे उच्च रक्तचाप, कोरोनरी हृदय रोग और कैंसर जैसी कई तनाव-आधारित बीमारियां हो गई हैं। इन बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने के प्रयास ने बेहतर जीवन शैली और बेहतर रणनीतियों की खोज को गति दी, जो कि योग जैसे प्राचीन विषयों की पनुर्खोज में परिवर्तित हो गए, जीवन शैली को स्थायी मानसिक शांति के लिए शक्तिशाली अचकू नुस्खे के साथ जोड़ना जैसा कि नैदानिक अध्ययनों द्वारा पुष्टि की गई है।योग आधुनिक जीवन जीने का, सही जीवन जीने का विज्ञान है और इसे हमारे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह सप्ताह में एक बार सिर्फ दो घंटे की हॉबी क्लास नहीं है। योग में दिमाग को शांत करने, लचीलापन बनाए रखने, शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का दोहन करने और एक एकीकृत व्यक्तित्व विकसित करने में मदद करने के लिए तकनीकी प्रणालियां हैं। यह भावनाओं को संतुलित करने और मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक तरीका है। एक व्यक्ति अपनी जीवन शैली के अनुसार योग के कई मार्गों – हठ, भक्ति , राज, ज्ञान और कर्म योग में से एक या दो या अधिक के संयोजन को चुन सकता है। व्यक्ति प्राणायाम, आसन, विश्राम, ध्यान और प्रत्याहार तकनीकों का अभ्यास कर सकता है, साथ ही जहां संभव हो व्यक्तिगत और सामाजिक विषयों का पालन कर सकता है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह यह पता करे कि उसकी आवश्यकताओं, जीवन शैली और व्यक्तित्व के लिए कौन सा मार्ग सबसे उपयुक्त है। एक सामान्य जीवन शैली का नेतृत्व करते हुए योग का अभ्यास किया जा सकता है, लेकिन विभिन्न आकांक्षाओं, मानसिकता और स्वयं के प्रति दृष्टिकोण और जीवन में बातचीत के साथ।योग का अभ्यास करने की कला व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह एक शांतिपूर्ण शरीर और मन को प्राप्त करने के लिए शारीरिक और मानसिक विषयों को एक साथ लाता है, तनाव और चिंता को प्रबंधित करने में मदद करता है और आपको तनावमुक्त रखता है। यह लचीलेपन, मांसपेशियों की ताकत और बॉडी टोन को बढ़ाने में भी मदद करता है। यह श्वसन, ऊर्जा और जीवन शक्ति में सुधार करता है। योग का अभ्यास करना सिर्फ स्ट्रेचिंग जैसा लग सकता है, लेकिन यह आपके शरीर के लिए आपके महसूस करने, देखने और चलने के तरीके से बहुत कुछ कर सकता है।

2.११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। योग की परिभाषा हमारे ग्रंथों में अलग अलग है परंतु इसका सीधा संबंध मानव शरीर के स्वास्थ्य से ही जुडा है योग हमें प्रकृति से जोडता है।योग हर वर्ष अब मनाया जाता है क्योंकि योग मानव के लिए एक सहारे का कार्य करेगा, यह आधुनिक जीवन जहां अचानक से मौसम बदल रहे है वनस्पति कम हो रही है, पर्यावरण दूषित हो रहा है तो ऐसे में मानव शरीर का नुकसान होना समझ में आता है, मानव शरीर को सुरक्षित रखने के उपायों में से एक योग है।आधुनिक जीवन में लोगो के पास समय कम कार्य ज्यादा है और बीमारियां बढ़ रही है जिसका तुरन्त निवारण नही है लोग तनावों से घिर रहे है, इस आधुनिक युग में मस्तिष्क का कार्य बहुत बढ़ गया है आबादी बढ़ने से दुर्घटना स्तर का बढ़ना और तनाव स्तर का बढ़ना मामूली बात है। ऐसे में मस्तिष्क संबंधी बीमारी भी बढ़ रही है, ज्यादातर बाहरी देशों में मस्तिष्क संबंधी बीमारी या डिसऑर्डर मिलते है जिनका जीवन बहुत तनावपूर्ण होता है इसीलिए योग को आज इतनी बडी महत्ता दी जा रही है क्योंकि स्नायु विज्ञान अभी बाल्यावस्था में है अर्थात स्नायु विज्ञान अभी भी शोध के अवस्था में हैं, इसलिए स्नायु संबंधी बीमारी वाले मानव को डॉक्टर हमेशा योग की सलाह जरूर देता है क्योंकि योग हमारी नाडियों (तंत्रिका) को सुधारता है और उन्हें जगाता है जिसकी फिलहाल अभी तक कोई दवा नहीं है जो नुकसान हुई न्यूरॉन्स को एकदम से सही कर सके।योग हमारे मन की स्थिति को स्थिर रखता है, जब हम मंत्र योग करते है तो जो उच्चारण होता है वह ११० हर्ट्ज की ध्वनि उत्पन्न करता है जिससे एक कंपन का अनुभव होता है अर्थात हमारे न्यूरॉन को मसाज का अनुभव सा होता है, और हमारा मस्तिष्क इस समय शांत और एकाग्र हो जाता है इसीलिए सुबह सुबह ॐ उच्चारण ११० हर्ट्ज की ध्वनि में करने से मस्तिष्क रोग काबू में आता है, उदहारण के लिए हम माइग्रेन जैसी बीमारियों से मुक्त हो जाते है और इस समय में माइग्रेन जैसी बीमारी को कोई दवा पूर्ण रूप से सही नही कर सकती केवल योग के सिवा। भारत योगों का घर है यहााँ तंत्र मंत्र योग से कर्म योग, ज्ञान योग हठ योग आदि आदि प्रकार के योग मौजूद है जिनका हमारे जीवन में अलग अलग रूप से महत्व है। लोग इस आधुनिक जीवन में बहुत व्यस्त है, जब मस्तिष्क को आराम नही मिलता तो यह योग ही हमारे मस्तिष्क को 8 घंटे की नींद जितना आराम देता है, योग द्वारा कई प्रकार की न्यूरो बीमारियों को ठीक होते देखा गया है, और आजकल के युग में न्यूरो बीमारियों से ग्रसित लोग योग को ज्यादा महत्व देते है क्योंकि योग उन्हें एक प्रकार से बीमारी से सुकून प्राप्त करवाता है। योग में बताए गए आसन हमारे शरीर की सभी नसों और तंत्रिकाओं को खींचती है जिनसे हमारी नसें सही रूप से कार्य कर सके योग में अलग अलग आसन मस्तिष्क के अलग अलग तंत्रिकाओं को सक्रिय करती है और उन्हें ठीक करती है। और यह एक बहुत सटीक कारण है की अन्य देशों में योग को क्यों एकदम से अपना लिया। क्योंकि वो यह जानते है की योग बहुत कारगर है मानव शरीर को स्वस्थ रखने हेतु। इसीलिए योग आधुनिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।

[ये 2 अलग-अलग ब्लॉग हैं जिन्हें हमारे माईगव इंटर्न ऋषिकेश कुमार सिंह और शक्ति राव द्वारा लिखा गया है।]

योग भारतीय संस्कृति का एक आधार स्तम्भ हैं । जो प्राचीन काल से आधुनिक काल तक हमारे काल से जुडा हुआ है । इस योग का महत्व प्राचीन काल से भी था तथा आधुनिक काल में भी इसका महत्व और अधिक बडा है। 

योग का महत्व

भौतिक एवं विज्ञान की दृष्टि से आज का मानव अत्यंत समृद्ध हैं। लेकिन आध्यात्मिक, नैतिक, धार्मिक आदि दृष्टि से उसका विकास रुका है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह की समस्याएं निर्मित हो रही है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखे तो आज जीवन में कई प्रकार के भयावह शारीरिक, मानसिक, मनोकायिक आदि अनेकों विकृतियाॅं आक्रमण कर रही है ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति ऐसा बहुप्रभावित समाधान का उपाय ढ़ंूढ़ रहे है। ऐसे में योग निर्विकल्प प्रणाली के रूप में प्रयुक्त हो रही है।

1. योग का शारीरिक महत्व

योग में सन्निहित विभिन्न योगासन प्रणायाम आदि क्रियायें व्यक्ति को समग्र स्वास्थ्य प्रदान करता है। इनके अभ्यास से तन सुगठित, स्फूर्तिवान एवं क्षमतावान होता है। योगाभ्यास के फलस्वरूप शरीर में हल्कापन, श्रम करने की क्षमता स्थिरता, दुःख, कष्ट को सहने की क्षमता में वृद्धि होती है। शरीर दोषों का क्षेय होता है। योगाभ्यास करने वाले के शरीर में न तो रोग होता है न बुढ़ापा आता है। 

2. योग का मानसिक महत्व

तरह-तरह की मानसिक बीमारियां व्यक्ति के विकास में अवरोध उत्पन्न करती है। साथ ही उसके व्यक्तित्व को कुण्ठित करती है। योग शास्त्रों में भी ऐसे अनेकों अवरोध है जिन्हें क्लेशों के नाम से जाना जाता है। इस समस्याओं का निराकरण केवल यौगिक प्रक्रियाओं पर ही सन्निहित है। ध्यान, प्रत्याहार, धरणा, योगनिद्रा, प्राणायाम इन क्रियाओं के माध्यम से हर एक व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न रह सकता है।

3. योग का भावानात्मक महत्व 

मानव के भीतर जितने भी अच्छे सद्गुण तथा विशेषताएं हैं उनका विकास भाव संवेदना के बिना अधूरा रह जाता है। यदि भाव तल पर कोई आघात तथा अवरोध आ जाये तो व्यक्ति का जीवन ही तहस-नहस हो जाता है। इस विपत्ति से यदि कोई व्यक्ति बचना चाहे और भावनात्मक स्वास्थ्य की प्राप्ति करना चाहे तो उसके लिये योग ही एक आज उपयोगी साधन है। मानव चेतना के मर्मज्ञ कहते हें सभी सद्गुण भाव संवेदना के ही प्रतिफलन है।

जब तक व्यक्ति योग में बताये गये मार्ग ध्यान उपासना, प्रार्थना, धारणा जैसी क्रियायें नहीं करता हैं तब तक ये आन्तरिक विशेषतायें जीवन व्यवहार में अभिव्यक्त नहीं हो सकती। अतः योग ही वह सर्व समर्थ साधन है जो मनुष्य भावसंदेदना से सम्पन्न बन सकता है। आज के आधुनिक परिवेश में मनुष्य के अन्दर बढ़ रहीं निष्ठुरता, निर्दयता, स्वार्थपरता, कठोरता, आदि संवेदनाहीन प्रवृत्तियों को एक मात्रा निदान योग है।

4. योग का आध्यात्मिक महत्व

आध्यात्मिकता जीवन में अवतरित होती है तो जीवन उत्कृष्टता तथा देवत्व की ओर अग्रसर होने लगता है यह सम्भावना केवल योगजनित विद्याओं द्वारा ही संभव है। मनुष्य चाहता तो है आत्मिक मार्ग में आग परन्तु उसे उसके चित्त के कर्मबीज अच्छे-बुरे संस्कार तथा अज्ञान जनित कारक तत्व बाधक के रूप में खड़े हो जाते हैं। उसे इस मार्ग में आगे बढ़ने से रोक देते हैं। ऐसी विषमता पूर्ण कारण का समाधान यदि कोई है तो वह योग है। योगाभ्यास करने वाला साधक निःसन्देह आध्यात्मिक क्षमताओं से सम्पन्न हो जाता है। आन्तरिक सभी आत्मिक क्षमताओं का जागरण करने के लिये जो यौगिक उपायों का अवलंबन करेगा वह निश्चय ही जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा, इसलिये योग की मोक्ष साधन, मुक्ति साधन तथा कल्याण का साधन बताया गया है। 


कहा गया है - योग लक्ष्य से बढ़कर जीवन में दूसरा कोई लाभ नहीं है।

5. योग का पारिवारिक महत्व

वर्तमान सन्दर्भ में देखें तो परिवार संस्था के अन्दर कई प्रकार की समस्याएं पनप रही है। असमायोजन, असहनशीलता, संवेदनहीनता, स्वार्थपरता, एकांकीपन जैसी दुष्प्रवृत्तियाॅं परिवार की धूरी को कमजोर कर रही है। ऐसे में व्यक्ति योग प्रतिपादित उपायों का अवलंबन करें तो समस्याएॅं सवयं दूर हो जायेंगी। हमारी शास्त्रीय मान्यता के अनुसार गृहस्थ आश्रम भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। गृहस्थ को सबसे बड़ा योग गृहस्थ योग कहा गया है जो इस योग धर्म को अपना तो है उसका जीवन वास्तव में सार्थक बन जाता है सनातन संस्कृति में वर्णित अन्य ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ सन्यास आश्रम का निर्वाहन भी गृहस्थ आश्रम पर ही निर्भर होता है।

6. योग का सामाजिक महत्व

समाज में फैली हिंसा, आतंक, अविश्वास, भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति के विकास में तथा समाज के उत्थान में बाधा उत्पन्न होती है। यौगिक-जैसे कर्मयोग, हठयोग, यम-नियम, भक्तियोग, ज्ञानयोग, मन्त्रायोग आदि साधनाएॅं समाज के उत्थान तथा उसे परिष्कृत करने में सहायक सिद्ध होती है।

7. योग का चिकित्सकीय महत्व

योग चिकित्सा पद्धति आज सभी प्रकार के चिकित्सा संस्थान तथा हाॅस्पीटल आदि केन्द्रों में प्रवेश पा चुका है। असाध्य प्रकृति के शारीरिक व मानसिक बीमारियों के उपचार में आज आधुनिक विज्ञान के चिकित्सक भी योग को मान्यता देने लगे हैं। योग में वर्णित कई प्रक्रिया चिकित्सात्मक मूल्य से भी प्रभावकारी मानी गई है। जो इस प्रकार है - आसन, प्राणायाम, शुद्धि क्रियाएं, बन्ध, मुद्रा, योग निद्रा, प्रत्याहार आदि। इन प्रक्रियाओं के चिकित्सकीय प्रभाव को दर्शाने वाले विभिन्न सन्दर्भ हठयोग के ग्रन्थों में उपलब्ध है।

8. योग का नैतिक महत्व

योग साधना की आधारशिला ही नैतिकता पर टिकी हुई है। आज के भौतिक वादी युग में अनैनिकता, चरित्रहीनता, अनुशासनहीनता जैसी पशुवत प्रवृत्त्यिाॅं चहु ओर सिर उठाए हुई है। वातावरण एवं परिस्थिति में भी अविश्वास, धोखाधड़ी की हवायें संव्याप्त नजर आती है। ऐसी विषम घड़ी में योग के गर्भ में ही समाधान बचा हुआ है। आज की शिक्षा प्रणाली की बच्चों एवं किशोरों में अच्छे संस्कार शिष्टता, सभ्यता, मानवीयता जैसी नैतिक मूल्यों का विकास अवरूद्ध हुआ है। 


विश्व के विशिष्ट चिन्तक मनोवैज्ञानिक को मानना है कि जब तक शिक्षा प्रणाली में योग विद्या का समावेश न किया जाये तब तक शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य में वृद्धि नहीं होगी। आज के समय में जितनी भी समस्याएं प्रकट होती हैं उन सबकी जड़ में चरित्र नामक कारक का प्रतिफल है अगर योग में सन्निहित मूल्य और नर्म व्यक्ति अपने जीवन में अंगीकार कर सके तो उसकी चरित्र की जड़ अवश्य मजबूत होगी।

9. योग का आर्थिक महत्व

योगाभ्यास के माध्यम से जैसे ही हमारा आत्म विश्वास, श्रमशीतलता, पुरूषार्थ परायणता, लगनशीलता बढ़ने लगती है। वैसे ही जीवन की आर्थिक विपित्तयाॅं समाप्त होने लगती हैं। आज के समय में अनेकों व्यक्ति योग को अपनी आजीविका का साधन बनाये हुये हैं। योग के नाम पर विशाल राशि का आदान-प्रदान चहुॅं ओर हो रहा है। जिससे स्पष्ट होता है कि योग अब एक प्रतिष्ठित जीविकोपार्जन तथा आत्मविकास उपयोगी साधन बन रहा है। देश-विदेश को ख्याति प्राप्त कई संघ, संस्थाओं में व्यापारिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों में शैक्षिक संस्थाओं में चिकित्सा संस्थानों में योग अपना प्रभावशाली स्थान बना रहा है। 

आधुनिक काल में योग का विकास कैसे हो रहा है?

1700 - 1900 ईसवी के बीच की अवधि को आधुनिक काल के रूप में माना जाता है जिसमें महान योगाचार्यों - रमन महर्षि, रामकृष्‍ण परमहंस, परमहंस योगानंद, विवेकानंद आदि ने राज योग के विकास में योगदान दिया है। यह ऐसी अवधि है जिसमें वेदांत, भक्ति योग, नाथ योग या हठ योग फला - फूला।

आधुनिक योग की शुरुआत कब हुई?

आधुनिक समय में स्वामी विवेकानंद जी ने साल 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित धर्म सम्मेलन में विश्व को योग और योग के फायदे से परिचित कराया। इसके बाद, परमहंस योगानंद महाराज समेत कई अन्य धर्म गुरुओं ने योग को विश्व तक पहुंचाया।

आधुनिक युग में योग का महत्व क्यों बढ़ गया है?

योग का अभ्यास करने की कला व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह एक शांतिपूर्ण शरीर और मन को प्राप्त करने के लिए शारीरिक और मानसिक विषयों को एक साथ लाता है, तनाव और चिंता को प्रबंधित करने में मदद करता है और आपको तनावमुक्त रखता है

योग का विकास कैसे हुआ?

योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और इसकी उत्‍पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात प्राचीनतम धर्मों या आस्‍थाओं (faiths) के जन्‍म लेने से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव को "आदि योगी" तथा "आदि गुरू" माना जाता है।