शिक्षण कौशल के एकीकरण से आप क्या समझते हैं - shikshan kaushal ke ekeekaran se aap kya samajhate hain

EK-VIDHYALAY-VISHAY-KA-SHIKSHAN-2

Q.59: शिक्षण कौशलों के एकीकरण से आपका क्या अभिप्राय है? एकीकरण की आवश्यकता और उद्देश्य पर चर्चा करें।

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उत्तर : अध्यापक किसी एक शिक्षण परिस्थिति में सभी प्रकार के कौशलों को किसी न किसी रूप में अवश्य ही प्रयोग करें, यह आवश्यक नहीं है। परन्तु मुख्य बात यह है कि अध्यापक अपने शिक्षण काल के दौरान यह तय कर लें कि उसे कौन – कौनसे शिक्षण कौशलों का प्रयोग करना है। अध्यापक को चयन करते समय अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए । इसलिए शिक्षण कौशलों के चयन, संगठन और प्रयोग सम्बन्धी प्रक्रिया को शिक्षण कौशलों का एकीकरण कहा जाता है।

एकीकरण की आवश्यकता – सूक्ष्म शिक्षण का सैद्धान्तिक आधार शिक्षण का विश्लेषणात्मक स्वरूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षण कार्य को पहले बहुत छोटे – छोटे शिक्षण कौशलों में बाँट दिया जाता है और फिर इन कौशलों को अति सूक्ष्म शिक्षण व्यवहारों को अर्जित करके इन कौशलों में प्रवीणता प्राप्त की जाती है और एक सफल अध्यापक बना जा सकता है । कक्षा में भिन्न – भिन्न स्थितियों में इन शिक्षण कौशलों का उपयोग समन्वित ढंग से किया जाता है। यह आवश्यक हो जाता है कि अलग – अलग अर्जित किए हुए शिक्षण कोशलो को एकीकृत या समन्वित करके एक पूर्ण शिक्षण कला के रूप में प्रयोग कराने का अभ्यास कराया जाता है । इन कौशलों को एकीकृत करने की प्रक्रिया द्वारा यह कार्य ठीक से हो सकता है |

इन कौशलों को एकीकृत करने का उद्देश्य सूक्ष्म शिक्षण परिस्थितियों में किए हुए शिक्षण कौशल अभ्यास को वास्तविक शिक्षण परिस्थितियों में स्थानान्तरण करने में सहायता करता है और साथ ही एक शिक्षण परिस्थिति और अनुदेशात्मक उद्देश्यों के संदर्भ में विभिन्न शिक्षण कौशलों को एकीकृत करने का अभ्यास भी कराता है।


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This question was previously asked in

UPTET 2016 Paper 2 Maths & Science (Hindi - English/Sanskrit)

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  1. एक पाठ में सभी शिक्षण कौशलों का उपयोग करना
  2. एक पाठ में उचित शिक्षण कौशल का चयन करना
  3. एक पाठ में अधिक शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग करना
  4. उपरोक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : एक पाठ में उचित शिक्षण कौशल का चयन करना

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10 Questions 10 Marks 10 Mins

कौशल का होना किसी भी पेशे की एक अनिवार्य विशेषता है। कौशल पेशेवरों को सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहार में लाने का एक साधन प्रदान करते हैं। प्रभावी शिक्षकों के पास ऐसे कौशल और क्षमता होनी चाहिए जो उन्हें न केवल गैर-पेशेवर, अर्थात गैर-शिक्षकों से बल्कि अप्रभावी शिक्षकों से भी अलग करते हैं।

  • हमें जिन शिक्षकों की आवश्यकता है, उन्हें उचित शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • उनके द्वारा आवश्यक कौशल सिखाया जा सकता है, अभ्यास किया जा सकता है, मूल्यांकन किया जा सकता है, पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है।

शिक्षण कौशल के एकीकरण से आप क्या समझते हैं - shikshan kaushal ke ekeekaran se aap kya samajhate hain
Key Points

  • शिक्षण कौशल को शिक्षण कृत्यों या व्यवहारों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका उद्देश्य छात्रों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधिगम में सुविधा प्रदान करना है। यह दैनिक शिक्षण में व्यापक रूप से कार्यरत है।
  • एकीकरण का अर्थ चीजों को मिलाना या उन्हें समग्र बनाना है। शिक्षण कौशल का एकीकरण एक पाठ में उचित शिक्षण कौशल का चयन करना है
    • यदि शिक्षक व्याख्यान में अपने सभी कौशल को एकीकृत करते है, तो वह एक प्रयास में पूरे विषय को संक्षेप में प्रस्तुत करने में सक्षम होगे।
    • शिक्षक बड़ी सटीकता और ज्ञान के साथ शिक्षण देगे यदि वह सभी शिक्षण कौशल को एकीकृत करते है।

इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि शिक्षण कौशल के एकीकरण का अर्थ एक पाठ में उचित शिक्षण कौशल का चयन करना है।

Last updated on Nov 24, 2022

The Uttar Pradesh Basic Education Board (UPBEB) has released the UPTET Final Result for the 2021 recruitment cycle. The UPTET exam was conducted on 23rd January 2022. The UPBEB going to release the official notification for the UPTET 2022 soon on its official website. The selection of the candidates depends on the scores obtained by them in the written examination. The candidates who will be qualified for the written test will receive an eligibility certificate that will be valid for a lifetime.

शिक्षण कौशल क्या हैं – अर्थ,परिभाषा | शिक्षण कौशल का वर्गीकरण | पाठ प्रस्तावना कौशल  – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए शिक्षण कौशल क्या हैं – अर्थ,परिभाषा | शिक्षण कौशल का वर्गीकरण | पाठ प्रस्तावना कौशल  लेकर आया है।

Contents

  • 1 शिक्षण कौशल क्या हैं – अर्थ,परिभाषा | शिक्षण कौशल का वर्गीकरण | पाठ प्रस्तावना कौशल
    • 1.1 पाठ प्रस्तावना कौशल | शिक्षण कौशल क्या हैं – अर्थ,परिभाषा | शिक्षण कौशल का वर्गीकरण |
  • 2 शिक्षण कौशल (परिचय )
  • 3 कौशल की परिभाषा
  • 4 शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण | शिक्षण कौशल के प्रकार
    • 4.1 (1) एन. एल. दोसाज द्वारा शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण
    • 4.2 (2) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान परिषद् द्वारा वर्गीकरण
    • 4.3 (3) एलेन एवं रेयान के अनुसार वर्गीकरण
    • 4.4 (4) डॉ. बी. के. पासी के अनुसार वर्गीकरण
    • 4.5 (5) कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण
    • 4.6 (6) निर्धारित मुख्य शिक्षण कौशल
  • 5 (1) पाठ प्रस्तावना कौशल
    • 5.1 प्रस्तावना का अर्थ (Meaning of Introduction)
    • 5.2 प्रस्तावना का प्रयोग क्यों और कैसे
  • 6 (2) प्रश्नीकरण कौशल
    • 6.1 प्रश्नीकरण का अर्थ एवं परिभाषा
    • 6.2 प्रश्नीकरण कौशल के घटक
  • 7 (3) व्याख्या कौशल
  • 8 (4) श्यामपट्ट लेख कौशल
  • 9 आपको यह भी पढ़ना चाहिए।

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पाठ प्रस्तावना कौशल | शिक्षण कौशल क्या हैं – अर्थ,परिभाषा | शिक्षण कौशल का वर्गीकरण |

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शिक्षण कौशल (परिचय )

एक शिक्षक कक्षा में जाता है और शिक्षण कार्य करता है । इस समय वह जो भी  व्यवहार करता है। उस शिक्षक का वह व्यवहार ही शिक्षण कौशल कहलाता है। एक शिक्षण कौशल समान व्यवहारों का समूह है तथा विभिन्न शिक्षण कौशल मिलकर एक शिक्षण प्रक्रिया का निर्माण करते हैं। अर्थात् शिक्षण कई कौशलों को मिलकर बना है । शिक्षण कौशल ही किसी शिक्षक के उत्तम शिक्षण और अनुपयुक्त शिक्षण का निर्माण करते हैं ।

इनके माध्यम से ही अधिगम की प्रक्रिया प्रभावित होनी होती है । जब किसी शिक्षक को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है । अर्थात् जब छात्राध्यापक को प्रशिक्षण के समय उसमें अनेकों प्रकार के कौशलों का विकास करके उसके व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है । जिससे उसके द्वारा कक्षा-कक्ष में अध्ययन के समय किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना करने में सक्षम हो।

शिक्षण प्रक्रिया को कौशलों के समूह के रूप में सबसे पहले देखने का कार्य स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षक-प्रशिक्षक कार्यक्रम में किया गया था और उसी विवेचन के उपरान्त ही शिक्षण – कौशलों पर आधारित समझा जाने लगा । सूक्ष्म अध्ययन की नींव शिक्षण प्रक्रिया को विभिन्न घटक कौशल पर आधारित मानने तथा एक-एक कौशल का अलग अभ्यास करने की क्षमता पर आधारित है। पहले इनका
प्रयोग एक इकाई-योजना में एक कौशल का प्रयोग करने व्यवहार में लाने का प्रयास किया जाता है । तथा इसके बार वृहद् पाठ-योजना में सभी कौशलों का यथास्थान प्रयोग किया जाता है।

कौशल की परिभाषा

कौशलों के विषय में शिक्षाशास्त्रियों की अलग धारणा है कि शिक्षण कौशल कौन-कौन से होने चाहिए तथा उनका प्रयोग कैसे और कब करना चाहिए । इनमें से कुछ शिक्षाशास्त्रियों के विचार निम्नवत् हैं

(1) क्लार्क (Clarke) के अनुसार–“सन् 1970 में क्लार्क ने ‘कौशल’ को परिभाषित करते हुए कहा, “शिक्षण कौशल उन क्रियाओं पर आधारित है जो छात्र व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नियोजित एवं क्रियान्वित किया जाये”।

(2) कामीसार के अनुसार–कामीसार ने सन् 1966 में शिक्षण कौशलों को तथा परिभाषित करते हुए लिखा है, “शिक्षण कौशल वह हैं जो शिक्षण में विभिन्न विशिष्ट क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं; जैसे प्रारम्भ, प्रदर्शन, आवेदन, अन्दाज करना, पुष्टि करना, तुलना, व्याख्या, प्रश्न आदि।”

(3) एशियाई संस्थान द्वारा सन् 1972 में शिक्षण के कौशलों को परिभाषित करते हुए कहा है, “विशिष्टतया अध्यापन की वे क्रियाएँ जो छात्रों में इच्छिन परिवर्तन लाने में प्रभावशाली हैं अर्थात् अध्यापक द्वारा किसी भी एक व्यवहार घटक का प्रदर्शन करने से निश्चित लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती।”

(4) अलैन के अनुसार- “अलैन ने विचार देते हुए कहा, “विभिन्न प्रतिनिधि अध्यापन कौशल की पहचान और इन छोटे-छोटे कौशलों पर अध्यापक प्रशिक्षण में ध्यान व समय देने से अध्यापक केवल इन्हीं कौशलों का नहीं बल्कि साधारण शिक्षण योग्यता का भी विकास
करता है।”

(5) ब्राउन–सन् 1975 में ब्राउन ने अपने विचार देते हुए कहा था कि, “शिक्षण बहुपक्षीय क्रिया-प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक के द्वारा विभिन्न क्रिया-प्रश्न पूछना, सुनना, छात्रों के उत्तर जानना तथा प्रतिफल देना, पुनर्बलन देने तथा अन्य क्रिया करना है।

शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण | शिक्षण कौशल के प्रकार

उपरोक्त विवरण के उपरान्त यह प्रश्न उठता है कि शिक्षण के प्रमुख कौन-कौन से कौशल होने चाहिए इसके विषय में विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत प्रस्तुत किये हैं। लेकिन इनकी विवेचना करने पर यह पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है कि कुल कौशल कितने होते हैं । इनमें कुछ विद्वानों के विचार निम्नवत् हैं-

(1) एन. एल. दोसाज द्वारा शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण

एन. एल. दोसाज ने अपनी पुस्तक में कौशलों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें पन्द्रह भागों में विभाजित किया है, जो निम्नवत् हैं-

1. प्रश्न पूछना
2. प्रश्न पूछना
3. उत्तरों के साथ व्यवहार करना
4. उद्दीपकों में परिवर्तन
5. श्यामपट का उपयोग
6. शिक्षण सामग्री तथा सहायक उपकरणों का प्रयोग
7.अशाब्दिक संकेत
8. पुनर्वलन
9. उदाहरणों का उपयोग
10. व्याख्यान
11. स्पष्टीकरण
12. नियोजित दुहराना
13. कक्षा प्रबन्धका कौशल
14. समापन का कौशल
15. छात्रों की सहभागिता बढ़ाने का कौशल ।

(2) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान परिषद् द्वारा वर्गीकरण

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान परिषद् ने सन् 1979 में शिक्षक-शिक्षा-पाठ्यक्रम (Teacher-Education-Curriclum) पर कार्य किया जिसने विश्लेषण के उपरान्त निम्नलिखित कौशल बताय, जो अग्रवत् हैं-

(i) मानसिक कौशल (Mental Skills)
(ii) क्रियात्मक कौशल (Active Skills)
(iIi) प्रश्न कौशल (Questioning Skills)
(iv) लघु वर्ग एवं व्यक्तिगत अनुदेशन कौशल (Skills of Small Group and Individual Instruction)
(v) छात्र विकास चिन्तन कौशल (Developing Pupil Thinking Skills)
(vi) कक्षा कक्ष प्रबन्ध एवं अनुशासन कौशल (Skills of Classroom Management and Discipline)
(vii) मूल्यांकन कौशल (Evaluation Skills)।

(3) एलेन एवं रेयान के अनुसार वर्गीकरण

ऐलन एवं रेयान ने सन् 1969 में शिक्षण अभ्यास का अध्ययन करके शिक्षण कौशलों को 14 भागों में विभाजित किया है, जो निम्नवत् हैं-

(i) उद्दीपन परिवर्तन
(ii) प्रस्तावना
(iii) मौन एवं अशाब्दिक संकेत
(iv) छात्र सहभाग को पुनर्बल देना
(v) प्रश्न प्रवाह
(vi) अनुशीलन प्रश्न
(vii) उच्च स्तरीय प्रश्न
(viii) अपसारी प्रश्न
(ix) अबन्धात्मक व्यवहार प्रश्न
(x) स्पष्टीकरण एवं उदाहरण का प्रयोग
(xi) अभिव्यक्ति पूर्णता
(xii) व्याख्यान
(xiii) नियोजित पुनरावृत्ति
(xiv) समापन।

(4) डॉ. बी. के. पासी के अनुसार वर्गीकरण

डॉ. बी. के. पासी ने सन् 1976 में अपनी पुस्तक (Bi-coming better teacher : A micro teaching approach) में शिक्षण कौशलों की समीक्षा करते हुए 13 भागों में विभाजित किया है-

(i) अनुदेशीय उद्देश्य लेखन
(ii) पाठ प्रस्तावित करना
(iii) उद्दीपन परिवर्तन
(iv) दृष्टान्त
(v) व्याख्यान
(vi) प्रश्न प्रवाह
(vii) अनुशीलन प्रश्न
(viii) मौन तथा अशाब्दिक संकेत
(ix) पुनर्बलन
(x) छात्र सहभाग में वृद्धि
(xi) श्यामपट्ट प्रयोग
(xii) अवधानात्मक व्यवहार पहचानना
(xiii) समापन ।

(5) कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण

इसी प्रकार सन् 1970 में 18 कौशलो की खोज की तथा कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में अध्ययन के उपरान्त 18 कौशल बताये तथा बड़ोदा विश्वविद्यालय में शिक्षा के उच्च शिक्षा केन्द्र ने भारतीय परिवेश में शिक्षण कौशल 21 बताये, जो निम्नवत् हैं

1. पाठ्य पुस्तकों का उचित चुनाव,
2.  विषय-वस्तु का चुनाव
3. विषय-वस्तु का उपयुक्त गठन,
4. प्रश्नों द्वारा छात्रों की तर्क शक्ति का विकास,
5. उपयुक्त दृश्यश्रव्य सामग्री का चुनाव,
6. प्रभावशाली प्रस्तावना,
7. उपयुक्त प्रश्नों का चुनाव,
8. सम्प्रत्ययों तथा सिद्धान्ता का उपयुक्त उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण,
9. छात्रों के ध्यानाकर्षण का प्रयास,
10. मौन एवं अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग,
11. छात्र सहभाग प्रोत्साहन,
12. छात्र उपलब्ध मापन,
13. छात्र काठिन्य निवारण,
14. व्याख्या एवं अध्यापक कथन में उपयुक्त गीत का प्रयोग,
15. छात्रों को गृहकार्य प्रदान करना,
16. कक्षा में सजग छात्रों को पुरस्कार प्रदान करना,
17. अनुशासन,
18. समापन,
19. मूल्यांकन करना,
20. उद्दीपन परिवर्तन,
21. व्याख्या उपयुक्तता।

(6) निर्धारित मुख्य शिक्षण कौशल

उपरोक्त विवरण में प्राप्त होने वाले कौशलों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने के उपरान्त निम्नलिखित शिक्षण कौशल देखने को मिलते हैं जिनके माध्यम से उच्च शिक्षा प्रक्रिया स्थापित हो सकती है, वे शिक्षण कौशल निम्नवत् हैं-

1. शिक्षण उद्देश्य लेखन (writing of Teaching Objectives),
2.विन्यास प्रेरण (Set Intudction),
3. दृष्टान्त कला (Illustraing with Examples),
4.मौन एवं अशाब्दिक संकेत (Silence and Non-Verbal Paints),
5. पाठ गीत (Pacing Lesson),
6. दृश्य श्रव्य साधनों का प्रयोग (Using of Audio-video Aids),
7. प्रश्न प्रवाहता (Fluncy in Questioning),
8. उद्दीपन परिवर्तन (Stimulus Variation),
9. श्यामपट्ट का प्रयोग (Using of Black-board),
10. व्याख्या कौशल (Skill of Explaining),
11.खोजपूर्ण प्रश्न (Probing Questioning),
12. पुनर्वलन (Reinforcement),
13. व्याख्या (Lecturing),
14.छात्र सम्भाविता विस्तार (Increasing Pupil Participation),
15. छात्र व्यवहार अभिज्ञान (Recognising attending Behaviour of Students).
16. उच्च स्तरीय प्रश्न (Higher Order Question),
17. विभक्ति प्रश्न (Divergent Question),
18. पाठ समापन (Achieving Closure),
19. पुनरावृत्ति (Repitition),
20. कक्षा प्रबन्ध (Class Management),
21. सम्प्रेषणपूर्णता (Compliements of Communication),
22. गृहकार्य (Home Assignment),
23. काठिन्य निवारण (Word Meaning),
24. आदर्श पाठ (Model Reading),
25. उच्चारण करना (Pronuniation)|

शिक्षण कौशलों का विकास उपरोक्त विवरण से हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि छात्राध्यापक में कौशलों का होना क्यों आवश्यक है और उसमें कौशलों का विकास किया जाए । अब पाठ्यक्रम के अनुसार कुछ शिक्षण कौशलों का व्यापक वर्णन निम्नवत् हैं-

(1) पाठ प्रस्तावना कौशल

प्रस्तावना का अर्थ (Meaning of Introduction)

प्रस्तावना अंग्रेजी के Introduct का हिन्दी रूपान्तरण है । जिसका अभिप्राय होता है परिचय करना, अर्थात् शिक्षक द्वारा छात्रों के पूर्व ज्ञान का परिचय करके छात्रों को पाठ्यवस्तु (शीर्षक) से परिचय करना है । अंग्रेजी में एक कहावत है कि जो काम आरम्भ में अच्छा हो तो मान
लीजिये कि आपका आधा काम बन गया। प्रस्तावना भी शिक्षण का प्रथम बिन्दु है ।

जिस पर अध्यापक के शिक्षण की सफलता और असफलता निर्भर करती है । इस कौशल से छात्र नई सामग्री को सीखने के लिए अपने आपको अपने पूर्वज्ञान से जोड़कर तैयार करते हैं तथा शिक्षक दोनों के बीच में तारतम्यता लाने का कार्य करता है। तथा पाठ के प्रति उनकी रुचि बढ़ जाती है। छात्रों का ध्यान अधिगम के लिए केन्द्रित हो जाता है अतः एक अच्छी प्रस्तावना निकालना एक कला है । और वह शिक्षक जो प्रस्तावना निकालता, है वह एक अच्छा कलाकार माना जाता है । पाठ प्रस्तावना प्रश्न निकलवाने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है ।

कहानी, मॉडल द्वारा, प्रश्न पूछकर, उदाहरण के माध्यम, मॉडल के द्वारा विषय की व्याख्या करके, कविता सुनाकर तथा चित्र आदि दिखाकर प्रस्तावना निकलवायी जा सकती है। प्रस्तावना निकलवाते समय शिक्षक को दो बातों का विशिष्ट ध्यान देना चाहिए-एक, तो प्रस्तावना पूर्व ज्ञान पर निर्भर हो तथा दूसरा, प्रश्न एक-दूसरे से सुव्यवस्थित होने चाहिए।

प्रस्तावना का प्रयोग क्यों और कैसे

प्रस्तावना प्रश्न छात्रों के नवीन विषय पढ़ने को तैयार करने, ध्यान केन्द्रित करने, छात्रों को अधिगम के लिए तैयार करने, पाठ के पूर्व ज्ञान को जानने तथा नवी पाठ्य-वस्तु से जोड़ने में प्रस्तावना का प्रयोग किया है । प्रस्तावना का प्रयोग ऐसे समय पर करना चाहिए तथा जब छात्रों को ध्यान कक्षा कक्ष में केन्द्रित हों तथा पढ़ने को तैयार हों । इसके लिए अध्यापक सरल एवं सुगम बनाने के लिए विभिन्न विधियों का।प्रयोग करना चाहिए ।

जैसे—कहानी सुनना, उदाहरण देना, मॉडल दिखाना, चित्र या नक्शा (Map) दिखाना, कविता सुनाना, सम्बन्धित शीर्षक से जुड़ी हुई घटना याद दिलाना तथा वस्तु आदि । इन सभी का प्रयोग करते समय यह विशिष्ट रूप से याद रखना चाहिए कि।आपके प्रस्तावना प्रश्न रोचक होने चाहिए तथा उद्देश्य से सम्बन्धित होने चाहिए । अतः शिक्षक के द्वारा उन्हीं युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए जिससे प्रस्तावना सुलभता से प्राप्त हो सके।

(2) प्रश्नीकरण कौशल

शिक्षण में प्रश्नोत्तर कौशल की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है इसके माध्य से ही शिक्षक अपने द्वारा लिये गये ज्ञान तथा छात्रों के पूर्व ज्ञान तथा उनकी आधार स्वरूप जानकारी का पता लगाता है यह प्रश्नीकरण प्राचीन काल से प्रयोग में लाया जा रहा है । जब गुरु छात्रों
को पेड़ के नीचे या आश्रम में अध्ययन कराते थे।

एक महान् दार्शनिक सुकरात ने शिक्षण को उत्तम बनाने की दृष्टि से प्रश्नोत्तर विधि का प्रादुर्भाव किया तथा अव्यवस्थित ज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रदान करने का रास्ता निर्देशित किया ।

इसके सम्बन्ध में एक स्थान पर रेमण्ड’ (Raymond) ने लिखा है – ” किसी भी अध्यापक का शिक्षण कैसा है यह उसके द्वारा की जाने वाली प्रश्न-प्रक्रिया पर निर्भर करता है । इसके माध्यम से ही वह छात्रों को प्रेरित करता है तथा छात्र भी उत्साहित होकर शिक्षण प्रक्रिया से अपने को अलग नहीं रख पाते हैं।”

प्रश्नीकरण का अर्थ एवं परिभाषा

प्रश्नीकरण क्या है इसके विषय में अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं जो इस प्रकार हैं-

1. कोलविन (Colwin) ने प्रश्नीकरण के विषय में लिखा है-“प्रश्न सबसे अच्छा उत्तेजक है और यह शिक्षक को शीघ्र उपलब्ध हो जाता है।” अर्थात् प्रश्न के माध्यम से छात्रों को ज्ञान आसानी से प्रदान किया जाता है तथा शिक्षक छात्रों को अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

2. रायबर्न (Rayburn) के अनुसार “शिक्षण में प्रश्न का बहुत बड़ा महत्त्व है यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी सामान्य पाठ या विशिष्ट शिक्षण में किसी शिक्षक की सफलता उसके भलीभाँति प्रश्न पूछने की क्षमता पर या योग्यता पर निर्भर करते हैं।”

प्रश्नीकरण कौशल के घटक

प्रश्नीकरण के घटकों को क्रमशः तीन भागों में विभक्त किया है तथा उनके अन्य पदों में बाँटा गया है-

(1) प्रश्नों की संरचना-
1. व्यावहारिक शुद्धता,
2. प्रासंगिकता,
3. संक्षिप्तता,
4.स्पष्टता,
5. प्रश्नों का उत्तर।

(2) प्रस्तुतीकरण-

6. प्रश्न पूछने की गति,
7. शिक्षक की वाणी,
8. शिक्षक द्वारा प्रश्न दोहराना,
9. छात्र द्वारा उत्तर दोहराना ।

(3) वितरण

10. उत्सुक छात्रों से प्रश्न पूछना,
11. अनुत्सुक छात्रों से प्रश्न पूछना,
12. कक्षा-कक्ष के विभिन्न भागों से प्रश्न पूछना ।

(3) व्याख्या कौशल

व्याख्या कौशल का अर्थ (Meaning of Explaination)—व्याख्या का अर्थ के विषय में कुछ विद्वानों ने अपने विचार दिये हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-“व्याख्या एक ऐसी युक्ति है जिससे किसी शब्द या कथन को सरल बनाकर बालकों को समझाया जाता है व्याख्या में कठिन शब्दों की जगह सरल शब्द बनाये जाते हैं और जटिल विचारों को
छात्रों के अनुभूत भावों से प्रस्तुत किया जाता है तथा सभी कठिनाइयों को सरलतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है।”
“व्याख्या का अर्थ प्रत्येक पाठ को सुलझाने और उनके भावों को अलग-अलग करके सरल रूप में बालकों के सम्मुख प्रस्तुत करने से है जिससे बालकों को समझने में कोई कठिनाई न हो और उसके ज्ञान में वृद्धि हा सके ।

अत: स्पष्ट है कि सरल कठिन विषय-वस्तु को सरलता से प्राप्त करने को व्याख्या कहते हैं। अत: कहा जा सकता है कि व्याख्या कौशल के माध्यम से एक शिक्षक अपने शिक्षण को सरल, सरस तथा छात्रों द्वारा ग्रहणीय रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिससे अधिकतम प्रक्रिया में स्थापित करने में सहायता मिलती है। इसके द्वारा शिक्षक किसी घटना के विविध तथ्यों, साधारणीकरण क्रिया के कारणों तथा भावों की गम्भीरता को स्पष्ट करने में सहायता प्राप्त करता है । व्याख्या कौशल का प्रयोग साहित्य तथा भाषा विज्ञान में शब्द व्याख्या, भाषण, व्याख्या आदि के लिए किया जाता है।

(4) श्यामपट्ट लेख कौशल

शिक्षण प्रक्रिया का महत्वपूर्ण योगदान है। श्यामपट्ट के अभाव में कक्षा-कक्ष को पूर्णरूप प्रदान नहीं किया जाता है। क्योंकि इसके प्रयोग की शिक्षक को कदम-कदम पर आवश्यकता होती है। शिक्षण शिक्षण में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों का समाधान या अधिगम को अधिक प्रभावी बनाने हेतु श्यामपट्ट की आवश्यकता है ।

श्यामपट्ट के माध्यम से प्राप्त ज्ञान स्थायी तथा प्रभावशाली होता है क्योंकि इसमे ज्ञानेन्द्रियाँ- (श्रवणेन्द्रियाँ, नेत्रेन्द्रियाँ) दोनों मिलकर ज्ञानार्जन का प्रयास करती हैं तथा स्थायी ज्ञान प्राप्त करती हैं। श्यामपट्ट का प्रयोग प्रत्येक अध्यापक को करना चाहिए जिससे उनके द्वारा स्थापित साधारणीकरण की प्रक्रिया कक्षा में मजबूत हो तथा शिक्षक और छात्र के सम्बन्धों में नजदीकी आती है।

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कौशल के एकीकरण से आप क्या समझते हैं?

अध्यापक को चयन करते समय अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए । इसलिए शिक्षण कौशलों के चयन, संगठन और प्रयोग सम्बन्धी प्रक्रिया को शिक्षण कौशलों का एकीकरण कहा जाता है।

शिक्षण कौशल के एकीकरण का अर्थ क्या है?

शिक्षण कौशल का एकीकरण एक पाठ में उचित शिक्षण कौशल का चयन करना है। यदि शिक्षक व्याख्यान में अपने सभी कौशल को एकीकृत करते है, तो वह एक प्रयास में पूरे विषय को संक्षेप में प्रस्तुत करने में सक्षम होगे। शिक्षक बड़ी सटीकता और ज्ञान के साथ शिक्षण देगे यदि वह सभी शिक्षण कौशल को एकीकृत करते है।

शिक्षण कौशल से आप क्या समझते हैं मुख्य शिक्षण कौशल के बारे में बताएं?

कौशल की परिभाषा देते हुए एन. एल. गेज (1968) ने कहा, “शिक्षण कौशल वह विशिष्ट अनुदेशन प्रक्रिया है, जिसे अध्यापक अपने कक्षा शिक्षण में प्रयोग कर सकता है। यह शिक्षणक्रम की विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित होता है, जिन्हें शिक्षक अपनी कक्षा अन्त:क्रिया में लगातार प्रयक्त करता है।”

शिक्षण के कौशल क्या हैं?

शिक्षण कौशल का अर्थ है - शिक्षण कार्य मेेंं कुशलता। शिक्षण कौशल शिक्षक व्यवहार से संबंधित वह स्वरूप है, जो कक्षा की अंतःक्रिया में उन विशिष्ट परिस्थितियों को उत्पन्न करता है, जो शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होते हैं और छात्रों को सीखने में सुगमता प्रदान करते हैं।