1969 में कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे? - 1969 mein kaangres mein phoot ke kya kaaran the?

होम /न्यूज /नॉलेज /कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को आज ही के दिन पार्टी से निकाला तो उन्होंने नई कांग्रेस बना ली

1969 में कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे? - 1969 mein kaangres mein phoot ke kya kaaran the?

इंदिरा गांधी की जयंती आज

इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को आज ही के दिन उस कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने अनुशासनहीनता के आरोप में निकाल दिया लेकिन इससे इंदिरा और मजबूत हो गईं. उन्होंने ना केवल नई कांग्रेस बनाई बल्कि अपनी अल्पमत सरकार भी बचा ली. इसके बाद उनका कद बढ़ता चला गया

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  • News18Hindi
  • Last Updated : November 12, 2020, 11:08 IST

12 नवंबर 1969 के दिन कांग्रेस के मजबूत सिंडिकेट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया. उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने पार्टी के अनुशासन को भंग किया है. बदले में इंदिरा ने केवल नई कांग्रेस ही नहीं बनाई बल्कि आने वाले समय में इसे ही असली कांग्रेस साबित कर दिया. इसे उनकी सियासी चतुराई ही कहा जाएगा कि उन्होंने ना केवल कांग्रेस के सिंडिकेट को ठिकाने लगा दिया बल्कि प्रधानमंत्री के अपने पद को बरकरार रखते हुए अपनी सरकार भी बचाई.

दरअसल इस सारे खेल की शुरुआत एक साल पहले ही हो चुकी थी जबकि कांग्रेस सिंडिकेट के सदस्यों ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के पद से हटाने के लिए कमर कस ली थी.

इंदिरा गांधी को कांग्रेस सिंडिकेट ने ही 1966 में प्रधानमंत्री बनाया था लेकिन तब वो ना तो अनुभवी थीं और ना ही सांगठनिक तौर पर मजबूत. लेकिन 1967 के चुनावों ने काफी हद को इंदिरा को राहत दी. उन्होंने अपनी सरकार पर कुछ हद तक नियंत्रण स्थापित कर लिया.

1967 में जब कामराज ने पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अवकाश लिया तो ये पद रूढिवादी निजलिंगप्पा को मिला. जो सिंडिकेट के शुरुआती सदस्य थे. इंदिरा को अपने लोगों को कांग्रेस की नई कार्यसमिति में शामिल कराने में सफलता नहीं मिली. पार्टी संगठन में उनकी स्थिति लगातार कमजोर बनी हुई थी.

सिंडिकेट इंदिरा को पीएम पद से हटाने की योजना बना रहा था
1968-69 के दौरान सिंडिकेट के सदस्य इंदिरा गांधी को गद्दी से उतारने की योजना बनाना शुरू कर चुके थे. 12 मार्च 1969 को निजलिंगप्पा ने अपनी डायरी में लिखा, मुझे ऐसा नहीं लगता कि वह (इंदिरा गांधी) प्रधानमंत्री के रूप में बने रहने के काबिल हैं. शायद बहुत जल्दी मुकाबला होगा. 25 मार्च को उन्होंने लिखा कि मोरारजी देसाई ने उनसे प्रधानमंत्री को हटाए जाने की जरूरत पर चर्चा की.

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इंदिरा को मालूम था कि क्या चल रहा है
हालांकि सिंडिकेट के इन दबावों और कुचक्रों के प्रति इंदिरा गांधी भी उतनी ही सचेत थीं. हालांकि अब भी वो पार्टी की एकता और अपने सरकार के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालना चाहती थीं. वो जी-तोड़ कोशिश में लगी थीं कि खुलेआम संघर्ष और विभाजन को टाला जाए. लेकिन प्रधानमंत्री पद की अपनी सर्वोच्च ताकत से किसी भी तरह समझौता नहीं करना चाहती थीं.

1969 में कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे? - 1969 mein kaangres mein phoot ke kya kaaran the?

कांग्रेस सिंडिकेट इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटाने की योजना बना रहा था. मोरारजी देसाई की इस पद पर ताजपोशी की तैयारी चल रही थी.

राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन से इस टकराव को बढ़ाया
कांग्रेस में जिस टकराव की भूमिका बहुत पहले से बांधी जा रही थी, वो मई 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु से अचानक आ गई. सिंडिकेट के लोग राष्ट्रपति के पद पर अपने किसी आदमी पर बिठाना चाहते थे. इंदिरा के विरोध के बाद भी सिंडिकेट के प्रमुख सदस्य नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार मनोनीत कर दिया गया.

इंदिरा खुलकर मैदान में आ गईं
अब इंदिरा को लग गया कि उन्हें खुलकर मैदान में आना ही होगा. उन्होंने पहले तो मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय छीना. फिर 14 प्रमुख बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी. इसके बाद राजाओं के प्रिवीपर्स को बंद करने की घोषणा की. उनकी दोनों घोषणाओं का जनता के बीच सकारात्मक असर हुआ. लोकप्रियता आसमान को छूने लगी.

1969 में कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे? - 1969 mein kaangres mein phoot ke kya kaaran the?

इंदिरा गांधी खुलेआम तौर पर टकराव के मैदान में उतर आईं. उन्होंने कांग्रेस के आधिकारिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की जगह वीवी गिरी को अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की.

वीवी गिरी राष्ट्रपति पद के निर्दलीय उम्मीदवार थे
राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर निर्दलीय के तौर पर उप राष्ट्रपति वीवी गिरी खड़े थे. जिन्हें वामदलों, डीएमके, अकाली दल और मुस्लिम लीग का समर्थन हासिल था. इंदिरा चाहती यही थीं कि वीवी गिरी को समर्थन दिया जाए लेकिन कैसे ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था. इसका मौका कांग्रेस के अध्यक्ष निंजलिगप्पा ने खुद ही दे दिया. उन्होंने रेड्डी की जीत को सुनिश्चित करने के लिए जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के नेताओं से मुलाकात की.

अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने की अपील की
बस अब तो इंदिरा ने खुलकर सिंडिकेट के नेताओं पर वार किया कि वो रेड्डी की जीत के लिए सांप्रदायिक और प्रतिक्रियावादियों से मिलकर उन्हें सत्ता से हटाने की साजिश रच रहे हैं. उन्होंने अब संसद में कांग्रेस के सदस्यों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने को कहा.वीवी गिरी 20 अगस्त को बहुत कम वोटों से चुन लिए गए.

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इंदिरा को अनुशासनहीनता के आरोप में निकाला तो क्या हुआ
ये कांग्रेस सिंडिकेट की तगड़ी हार थी. अब कांग्रेस खुलेतौर बंटी दिखने लगी थी. कांग्रेस ने पहले तो इंदिरा गांधी पर व्यक्तिगत हितों को ऊपर रखने का आरोप लगाया और फिर 12 नवंबर 1969 को उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया. इंदिरा गांधी ने तुरंत अलग प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस संगठन बनाया, जिसे नाम दिया गया कांग्रेस (आर) यानि रिक्विजिशनिस्ट. सिंडिकेट के प्रभुत्व वाली कांग्रेस का नाम पड़ा कांग्रेस (ओ) यानि ऑर्गनाइजेशन.

शक्ति प्रदर्शन कामयाब रहा
इंदिरा गांधी का शक्ति प्रदर्शऩ कामयाब रहा. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 705 सदस्यों में 446 ने इंदिरा गांधी खेमे यानि कांग्रेस (आऱ) के अधिवेशन में हिस्सा लिया जबकि दोनों सदनों के 429 कांग्रेसी सांसदों में 310 प्रधानमंत्री के गुट में शामिल हो गए. इसमें 220 लोकसभा सांसद थे. कांग्रेस (आर) को लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए 45 सांसद कम पड़ रहे थे. इसे पूरा करने के लिए इंदिरा ने कम्युनिस्ट पार्टी और निर्दलियों से समर्थन मांगा, जो उन्हें आराम से मिल गया. इस तरह इंदिरा गांधी ने सिंडिकेट के कांग्रेसी नेताओं का कांटा हमेशा हमेशा के लिए निकाल फेंका.

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Tags: Congress, Indira Gandhi

FIRST PUBLISHED : November 12, 2020, 11:08 IST