यशद लेपन में लोहे पर कौन सी परत चढ़ाई जाती है? - yashad lepan mein lohe par kaun see parat chadhaee jaatee hai?

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इसे सुनेंरोकेंजिंक परत लोहे से बने सामान को हवा में उपस्थित पानी तथा ऑक्सीजन के संपर्क में आने से रोकती हैं, जिससे जंग नहीं लग पता है.

संक्षारण क्या है इसे रोकने के उपाय बताइए?

धातुओं के संक्षारण निवारण में विभिन्न रीतियों का उपयोग होता है, जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं :

  1. (1) संक्षारण उत्पन्न करने वाले बाह्य कारकों का नियंत्रण,
  2. (2) विद्युत्-रासायनिक-रीतियों द्वारा निवारण (जैसे [सक्रिय कैथोडी रक्षण]] द्वारा) ,
  3. (3) संक्षारण निवारक धातु एवं मिश्रधातु के उपयोग,

संक्षारण से आप क्या समझते हैं वर्णन कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंसंक्षारण की परिभाषा : जब धातु पानी (नमी) और वायुमंडल (ऑक्सीजन) के संपर्क में आती है तो धातुएँ धीरे धीरे अवांछित पदार्थों जैसे ऑक्साइड , हाइड्रोक्साइड कार्बोनेट आदि मे परिवर्तित होने लगती है , धातुओं का अवांछित यौगिकों में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को ही संक्षारण कहते है।

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लोहे पर किसकी परत चढ़ाई जा सकती है?

इसे सुनेंरोकेंMg, Cu,Ag. Fe की ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति Cu तथा Ag से अधिक प्रबल है। अत: Fe पर Cu तथा Ag की परत चढ़ा सकते हैं।

यशद लेपन के लिए लोहे पर धातु की कौन सी परत चढ़ाई जाती है?

इसे सुनेंरोकेंयशद लेपन के लिए लोहे पर जस्ते के धातु की परत को चढ़ाया जाता है। इस पर का मुख्य उद्देश्य लोहे को जंग एवं प्रदूषण से बचाना जिससे कि लोहे को किसी प्रकार की हनी से बचाया जा सके। जस्ते की परत को जब हम लोहे की परत पर लगाते हैं, तो लो आप पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाता है, उसमें किसी भी प्रकार का प्रदूषण या हानि नहीं होती हैं।

लोहे को जंग से बचाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंलोहे की पाइपों को जंग से बचाने के लिए अक्सर उन पर जस्ते की एक परत चढ़ा दी जाती है इस प्रक्रिया को जस्तीकरण या गैल्वेनाइजेशन कहते है तथा इस तरह लेपित लोहे को जस्तेदार लोहा कहते हैं।

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निम्न में से कौन सी परिस्थिति लोहे पर जंग लगने का कारण है?

इसे सुनेंरोकेंअर्थात जब लोहा वायुमंडल (ऑक्सीजन) और नमी (पानी) के संपर्क में आता है तो लोहा इनके साथ क्रिया करके कुछ अवांछित यौगिक बना लेता है और लोहे का क्षय होने लगता है और इसी कारण इसका रंग भी बदल जाता है, इसे लोहे पर जंग लगना कहते है।

धातु की कुल संख्या कितनी है?

इसे सुनेंरोकेंआवर्त सारणी में लगभग 118 में से 91 तत्व धातु हैं बाकी गैर-धातु (non-metals ) और मैटालॉयडस (metalloids) हैं।

यशदीकरण (अंग्रेजी:Galvanization) या गैल्वानीकरण या यशदलेपन एक धातुकार्मिक प्रक्रम है जिसमें इस्पात या लोहे के उपर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है। इससे इन धातुओं का क्षरण (विशेषत: जंग लगना) रूक जाता है। यद्यपि यशदीकरण की प्रक्रिया स्वयं एक गैर-विद्युतरासायनिक प्रक्रिया है किन्तु फिर भी यह प्रक्रिया एक विद्युतरासायनिक उद्देश्य की पूर्ति करती है। यह प्रकिया अधिकांश यूरोपीय भाषाओं मे गैल्वेनाइजेशन कहलाती है और इसका यह नाम इतालवी वैज्ञानिक लुईगी गैल्वानी के नाम पर पड़ा है।

इस्पात को पिघले हुए जस्ते में डुबाकर संरक्षित करने की प्रक्रिया १५० वर्ष से भी अधिक पुरानी है। इस प्रक्रिया का आविष्कार सन १८३७ में पेरिस के मोसियर स्तैनिस्लास सोरेल (Monsieur Stanislas Sorel) ने किया था।

सादे इस्पात के बने हुए पतले तारों और चादरों को संक्षरण (corrosion) से बचाने के लिये इसे किसी संक्षरणरोधी धातु की पतली परत से ढका जाता है। इस कार्य के लिये जो धातुएँ उपयोग में आती हैं उनमें जस्ता और वंग (टिन) मुख्य हैं। जस्ता सबसे सस्ती धातु पड़ती है।

इस्पात पर जस्ता चढ़ाने की चार विधियाँ हैं :

1-उष्ण निमज्जन प्रक्रिया (Hot Dip process);

2-विद्युत-अपघटनी यशदलेपन (Electrolytic Zinc Plating);

3-शेरार्डीकरण (Sherardising)

4-उष्ण धातु की फुहार (Spraying of Hot Metal)।

उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण देखें।

कुछ किस्म के पदार्थों पर जस्ता चढ़ाने के लिये शीतक या विद्युत्मुलम्मा प्रक्रिया आजकल काम में आती है। इस विधि के लाभ ये हैं :

1. जस्ते के उपयोग में मितव्ययिता;

2. लेप की वांछित मोटाई पर एक सीमा तक नियंत्रण;

3. शुद्ध जस्ते के लेप का चढ़ना;

4. इस्पात की कमानी जैसी वस्तुओं के लिये, जो उष्ण विधि में पिछले जस्ते के ताप से प्रभावित हो सकती है, इसकी उपयुक्तता तथा

5. सपाट सतह के लेप में विकृत और टेढ़ा मेढ़ा होने का अभाव, जैसा उष्ण विधि में देखा जाता है।

इस विधि के दोष ये हैं:

1. उष्ण विधि की अपेक्षा अधिक समय का लगना,

2. मोटे अस्पंजीय लेप प्राप्त करने में कठिनता,

3. उष्ण मुलम्मे की तरह लेप का चमकदार न होना,

4. ठीक ठीक लेप प्राप्त करने में उष्ण विधि की अपेक्षा अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता और अधिक कठिनाइयों का सामना पड़ना तथा 5. जलाभेद्य बर्तनों के निर्माण में विद्युद्विश्लेष्य विधि का झलाई में उतना प्रभावशाली न होना जितना उष्ण विधि का। सभी विद्युद्विश्लेषिक विलयनों का आधार ज़िंकसल्फेट है।

इस विधि में लेप की जानेवाली वस्तु को धातु के ड्रम या बक्स में जस्ताचूर्ण से घेर कर, जिसमें धात्विक जस्ता रहता है, गरम करते हैं। यह विधि विशेष रूप से उन वस्तुओं के लिये उपयुक्त है जिनपर संरक्षण के लिये बहुत पतला लेप आवश्यक होता है और जहाँ पात्रों पर नक्काशी, प्रतिरूप एवं रूपांकन को ज्यों का त्यों रखना होता है। इसमें यही दोष है कि छोटी मोटी वस्तुओं पर ही इससे जस्ता चढ़ाया जा सकता है।

इस विधि में पहले से स्वच्छ किए हुए उष्ण इस्पात पर पिघले जस्ते की हल्की फुहार एक विशेष प्रकार की धातु की पिचकारी से की जाती है। बड़े बड़े पात्रों पर जस्ता चढ़ाने के लिये यह सुगम विधि है। इस लेप से इस्पात के साथ मिश्रधातु नहीं बनती।

साधारण जस्ती लेप वायुमंडलीय तथा द्रव संक्षारण के प्रति खुले रहते हैं और मिट्टी के संक्षारण के प्रति कम मात्रा में खुले रहते हैं। इनका वायुमंडलीय संक्षारण प्रतिरोध हवा के अम्लीय पदार्थों, जैसे औद्योगिक स्थानों पर सल्फर डाइआक्साइड, लवणीय जल की झीलों या समुद्रों के पास सोडियम क्लोराइड, के प्रति संदूषण पर निर्भर है। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक क्षेत्रों की अपेक्षा जस्ती लेप की आयु 4 से लेकर 10 गुना तक अधिक होती है। द्रव में, या द्रव द्वारा, जस्तीकृत चादरों के संक्षारण की मात्रा संक्षारक माध्यम के हाइड्रोजन आयन की सांद्रता पर निर्भर करती है। पीएच 6 और 12 के बीच संरक्षी फिल्म स्थायी होता है। पीएच के 4 और 12.5 हो जाने से चादरें शीघ्रता से आक्रांत होती हैं। प्रबल खनिज अम्लों के कुछ लक्षणों, विशेषत: क्लोराइड और नाइट्रेट वाले लवणों के विलयन में जस्ता शीघ्रता से घुल जाता है।

जस्ती लेप का परीक्षण और उसके दोष[संपादित करें]

जस्ती चादरों के रासायनिक, चुंबकीय, सूक्ष्मदर्शीय तथा भौतिकी परीक्षण किए जाते हैं।

अपलेपन परीक्षण (test) रासायनिक है और यह जस्ती लेप के जस्ते के भार के अंतर पर आधारित है, जो परीक्षण के समय विलीन हो जाने से होता है। बिना वस्तु को नष्ट किए चुंबकीय परीक्षण द्वारा लेप की मोटाई निर्धारित की जाती है। जस्ते का लेप अचुंबकीय होने के कारण चादर के संघनित्र परिपथ (condenser circuit) की चादर के लेप की मोटाई के अनुसार प्रेरणा (induction) में परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन मापा जाता है और उससे गणना कर मोटाई ज्ञात की जाती है। ठीक ठीक निक्षारित आड़ी काट (etched cross section) के सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन से लेप की मोटाई और बनावट प्रकट होती है। भौतिक विधियों में लेप को बिना हटाए चादर में सामान्य रूप में मोड़ने, गोठने (beading), किनारे दबाने और खींचने से जो विरूपता आती हैं, उसका निर्धारण होता है।

बार-बार सामने आनेवाले दोषों में मुख्य दोष फफोला पड़ना है। ये फफोले अत्यंत सूक्ष्म आकार से लेकर बड़े बड़े आकार तक के हो सकते हैं और चादर की सतह पर न्यून स्थान बृहत स्थान तक घेरते हैं। इस्पात की सतह के असातत्य (discontinuities) के कारण हाइड्रोजन एकत्र होता है और उससे फफोले बनते हैं। दूसरा दोष लेप का धूसर होना है। इसमें क्षेत्र धूसर रग का हो जाता है, जिसमें मणिभ या तो बिल्कुल होते नहीं, अथवा सामान्य विस्तार से छोटे होते हैं। इस दोष के निश्चित कारण हैं :

यशदलेपन में किसकी परत चढ़ाई जाती है?

यशदीकरण (अंग्रेजी:Galvanization) या गैल्वानीकरण या यशदलेपन एक धातुकार्मिक प्रक्रम है जिसमें इस्पात या लोहे के उपर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है। इससे इन धातुओं का क्षरण (विशेषत: जंग लगना) रूक जाता है।

यशद लेपन के लिए लोहे पर धातु की कौन सी परत चढ़ाई जाती है?

यशद-लेपन में लोहे पर जिंक (Zn) धातु की परत चढ़ाई जाती है। यशद लेपन एक धातु कार्मिक प्रक्रिया है, जिसे यशदीकरण (Galvanization) भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में इस्पात या लोहे के ऊपर जस्ते की परत चढ़ाई जाती है।

लोहे पर किसकी परत चढ़ाई जा सकती है?

Solution : Fe की ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति Cu तथा Ag से अधिक प्रबल है। अत: Fe पर Cu तथा Ag की परत चढ़ा सकते हैं।

लोहे पर किसकी परत होती है?

गैल्वेनाइज्ड लोहे पर किस धातु की पतली परत चढ़ाई जाती है? व्याख्या-गैल्वेनाइज्ड लोहे पर जस्ते की पतली परत चढ़ाई जाती है। इससे लोहा सुरक्षित रहता है और वायुमण्डलीय गैसों तथा नमी की क्रिया पहले जिंक से होती है