VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

तोड़ती पत्थर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह किया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर वाली मजदूरिन एक साँवली कसे बदन वाली युवती है। वह चिलचिलाती गर्मी की धूप में हथौड़े से इलाहाबाद की सड़क के किनार एक छायाहीन वृक्ष के नीच पत्थर तोड़ रही है। उसके माथे से पसीने की बूंदे दुलक रही हैं। मजदूरिन अपने श्रम-साध्य काम में पूर्ण तन्मयता से व्यस्त है।

प्रश्न 2.
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन’
निराला ने पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का ऐसा अंकन क्यों किया है? आपके विचार से ऐसा लिखने की क्या सार्थकता है?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में एक मजदूरनी के रूप एवं कार्य का चित्रण किया है, जो साँवली और जवान है तथा आँखे नीचे झुकाए पूर्ण तन्मयता एवं निष्ठा से अपने कार्य में व्यस्त है।

कवि ने उक्त पत्थर वाली स्त्री के विषय में इस प्रकार चित्र इसलिए प्रस्तुत किया है कि पत्थर तोड़ने जैसे कठिन र्का को सम्पादित करने के लिए सुगठित स्वस्थ शरीर को होना नितान्त आवश्यक है तथा सुगठित शरीर ही श्रमसाध्य कार्य हेतु सक्षम होता है। साथ ही तीक्ष्ण धूप में शरीर का साँवला होना स्वाभाविक है। कवि ने कार्य में उसकी पूर्ण तन्मयता का भी सुन्दर चित्रण किया है। मेरे विचार से ऐसा लिखना सर्वथा उचित है।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

प्रश्न 3.
स्त्री अपने गुरू हथौड़े से किस पर प्रहार कर रही है।
उत्तर-
स्त्री (मजदूरिन) अपने बड़े हथौड़े से समाज की आर्थिक विषमता पर प्रहार कर रही है। वह धूप की झुलसाने वाली भीषण गर्मी के कष्टदायक परिवेश मे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करने वाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। एक ओर उस स्त्री के मार्मिक तथा कठोर संघर्ष की व्यथा-कथा है, दूसरी ओर अमीरों की विशाल अट्टालिकाओं एवं सुखसुविधाओं का चित्रण है।

इस प्रकार प्रस्तुत पंक्ति देश की आर्थिक विषमता का सजीव चित्रण है। इसके साथ ही इस विषमता पर एक चुभता व्यंग्य भी है।

प्रश्न 4.
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है, ऐसा क्यों?
उत्तर-
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है। वह पत्थर तोड़ना बंद कर देती है। वह सामने खड़े विशाल भवन की ओर देखने लगती है। ऐसा कर वह समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता की ओर संकेत करती है। कवि उसके भाव को समझ जाता है।

प्रश्न 5.
‘छिन्नतार’ का क्या अर्थ है? कविता के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी की मार्मिक एवं दारुण स्थिति का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि को एक क्षण के लिए देखती है। वह सामने के भव्य भवन को भी देख लेती है और फिर अपने कार्य में लग जाती है। उसकी विवशता ऐसी है मानों कोई व्यक्ति मार खाकर भी न रोए। वह चाहकर भी अपनी व्यथा और विवशता कवि की हृदय-वीणा के तार को छिन्न-भिन्न कर देती है।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

प्रश्न 6.
‘देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
इन पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ महाप्राण “निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता से उद्धत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती हुई पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी का मार्मिक स्थिति को वर्णन किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी पर सहानुभूति पूर्ण नजर डालता है। वह भी एक क्षणिक दृष्टि से कवि की ओर देखकर अपने काम में इस प्रकार मग्न हो जाती है जैसे उसने कवि को देखा ही नहीं।

वह सामने विशाल अट्टालिका पर भी नजर डालकर समाज में व्याप्त अमीरी-गरीबी की खाई से भी कवि को रू-बरू कराती है। उसकी नजरों में संघर्षपूर्ण दीन-हीन जीवन का अक्स सहज ही दृष्टि गोचर होता है। उसकी विवशता ऐसी है मानो कोई मार खाकर भी न रोए। सामाजिक विषमता का दंश मूक होकर सहने को गरीब मजदूरनी अभिशप्त है।

प्रश्न 7.
सजा सहज सितार सुनी मैंने वह नही जो थी सुनी झंकार’ यहाँ किस सितार की ओर संकेत है? इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर ‘निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता की हैं। कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह भी विवश दृष्टि से कवि को एक क्षण के लिए चुपचाप देख लेती है। फिर, अपने कार्य में लग जाती है। वह कुछ बोलती नहीं, फिर भी कवि उसके हृदय सितार से झंकृत वेदना की मार्मिकता को समझ ही लेता है।

कवि मजदूरनी के हृदय सितार से झंकृत वेदना जो सामाजिक विषमता की कहानी कहती हुई प्रतीत होती है, को दर्शाना चाहता है। कवि सहज अपने हृदय के वीणा के तारों से उस शोषण की प्रतिमूर्ति मजदूरनी के हृदय के तारों से जोड़कर उसके दारूण-व्यथा की अनुभूति कर लेता है।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

प्रश्न 8.
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधार, [Board Model 2009(A)]
दुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों, कहा
‘मैं तोड़ती पत्थर।’
इन पंक्तियां की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हिन्दी के मुक्तछंद के प्रथम प्रयोक्ता, छायावाद के उन्नायक कवि शिरोमणि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचित ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। इस कविता में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती ‘ मानवता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह बिना छायावाले एक पेड़ के नीचे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही थी। उसके सामने वृक्षों के समूह और विशाल अट्टालिकाएँ और प्राचीर थे। तेज और तीखी धूप से धरती रूई की तरह जल रही थी। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि पर एक नजर डालकर सामने के भव्य भावना को भी देख लेती है। वह मजदूरनी एक क्षण के लिए सिहर उठती है। उसके माथे से पसीने की बूंदे गिर पड़ती हैं। वह फिर अपने कार्य में चुपचाप लग जाती है और मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है।

प्रश्न 9.
कविता की अंतिम पंक्ति है- ‘मौ तोड़ती पत्थर’ उससे पूर्व तीन बार ‘वह तोड़ती पत्थर’ का प्रयोग हुआ है। इस अंतिम पंक्ति का वैशिष्ट्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि शिरामणि निराला ने अपनी बहुचर्चित कविता ‘तोड़ती पत्थर’ में एक गरीब मजदूरनी की विवश वेदना और व्यथा का चित्रण किया है। कवि ने इलाहाबाद के जनपथ पर गर्मी की झुलसती लू और धूप में वह मजदूरनी हथौड़े पत्थर से तोड़ती रहती है। कवि उसे सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह मजदूरनी कवि को एक क्षण के लिए देखकर भी नहीं देखती और पसीने से लथपथ होकर पत्थर तोड़ती रहती है।

गरीब मजदूरनी अंतिम पंक्ति में मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है। उसने परोक्ष रूप से हमारी शोषणपूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था पर व्यंग की करारी चोट भी की है और हमें यह संदेश दिया है कि इस आर्थिक विषमताजन्य स्थिति और परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में सही सोच का परिचय दें। सही सोच से ही समतामूलक अर्थव्यवस्था पर आधारित समाज प्रगति के सोपान पर निरन्तर अग्रसर हो सकता है। मजदूरनी की वे सांकेतिक वैचारिक बिन्दु सचमुच बिन्दु सचमुच सराहनीय है।

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प्रश्न 10.
कविता का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविवर निराला रचित एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में कवि ने एक गरीब मजदूरिन की विवशता और कठोर श्रम-साधना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। कवि एक दिन इलाहाबाद के एक राजपथ पर एक पेड़ के नीचे एक दीन-हीन संघर्षरत मजदूरिन को पत्थर तोड़ते देखता है। वह जिस पेड़ के नीचे बैठी है वह छायादार नहीं है। गर्मी के ताप-भरे दिन है। चढ़ती धूप काफी तेज है। दिन का स्वरूप गर्मी से तमतमाया लगता है। लू की झुलसानेवाली लपटे काफी गर्म हैं। भीषण गर्मी में जमीन रूई की तरह जल रही है।

इस कष्टदायक परिवेश में वह बेचारी पत्थर तोड़ने का श्रमसाध्य कार्य कर रही है। वह मजदूरिन श्यामवर्ण युवती है। वह चुपचाप नतनयन हो पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करनेवाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। कवि उस मजदूरिन को सहानुभूति भरी दृष्टि से देखता है। वह मजदूरिन भी एक क्षण के लिए उस सहज मूक दृष्टि से देख लेती है। .

कवि को लगता है कि उसने देखकर भी उसे न देखा हो। कवि उसके टूटे दिल की वीणा की झंकार को सुन लेता है। वह क्षण भर के लिए कांप-सी उठती है। श्रम-लथ उस मजदूरिन के माथे से पसीने की बूंद टपक पड़ती हैं। पसीने की वे बूंदे उसे कठोर श्रम और संघर्ष साधना का परिचय देती है और यह बताती है कि उस गरीब मजदूरिन का यह संघर्ष कितना मार्मिक और कितना कठोर है। संपूर्ण कतिवा हमारे देश की आर्थिक विषमता पर एक चूमता हुआ व्यंग्य है।

तोड़ती पत्थर भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें पथ, पेड़, दिवा, भू, पत्थर, गर्द, सुधार
उत्तर-
पथ-मार्ग, पेड़-वृक्ष, दिवा-दिन भू-पृथ्वी, पत्थर-शिला, गदै-मैला, सुधार-सुरम्य।

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प्रश्न 2.
‘देखा मुझे उस दृष्टि से यहाँ ‘दृष्टि’ संज्ञा है या विशेषण।
उत्तर-
संज्ञा।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से विशेष्य, विशेषण अलग करे श्याम तन, नत नयन, गम हथौड़ा, सहज सितार
उत्तर-

  • विशेष्य – विशेषण
  • तन – श्याम
  • नयन – नत
  • हथौड़ा – गुरू
  • सितार – सहज

प्रश्न 4.
कविता से सर्वनाम पदों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
जिन पदों का संज्ञा के स्थान पर होता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में निम्नलिखित सर्वनाम आये हैं- वह, उसे, मैंने, जिसके, कोई, मुझे, उस और जो।

प्रश्न 5.
‘एक क्षण के बाद वह कॉपी सुधर’ यहाँ सुघर क्या है?
उत्तर-
यहाँ इस पंक्ति में प्रयुक्त सुधर, जिसका अर्थ सुगठित, चतुर, होशियार, सुन्दर, संडोल आदि है। यहाँ प्रयुक्त सुघर शब्द, पत्थर तोड़ती स्त्री के ‘विशेषण’ के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

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प्रश्न 6.
कविता से अनुप्रास, रूपक और उपमा और अलंकारों के उदाहरण चुनकर लिखें।
उत्तर-

  • तोड़ती पत्थर – अनुप्रास
  • श्याम तन – रूपक, उपमा (दोनो)
  • तरु मालिका अट्टालिका प्राकार – अनुप्रास
  • लू-रूई ज्यों – उपमा
  • सजा सहज सितार – अनुप्रास

प्रश्न 7.
कविता एक प्रगीत है। गीत और प्रगीत में क्या अन्तर है?
उत्तर-
शास्त्रीय दृष्टिकोण से गेय पद गीत कहलाते हैं। इनमें शब्द-योजना संगीत के स्वर विधान के अनुरूप होती है। गीतों में मसृण भावों की अभिव्यक्ति होती है। आधुनिक काल में निरालाजी की कृपा से छंदबन्ध टूटने के बाद गीत लिखने का प्रचलन बढ़ गया किन्तु गेयता शून्य हो गयी। प्रगीत गीत की अपेक्षा कुछ विशिष्टता लिये होता है। इसमें किसी समस्या को, विचार को, सशक्त ढंग से संकेतो के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

गीत और प्रगीत दोनों में तुक का आग्रह होता है। क्योंकि बिना तुक के गेयता संभव नहीं है। गीत जहाँ हृदय को राहत पहुँचाते हैं। प्रगीत हृदय को उद्वेलित करते हैं। मनकों मथ डालते हैं।

गीतों और प्रगीतों के कलेवर की लम्बाई वर्णित विषय की गम्भीरता पर निर्भर है।

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अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

तोड़ती पत्थर लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तोड़ती पत्थर में प्रकृति या ग्रीष्म का रूप बतायें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता में प्रकृति वर्णन की दृष्टि से ग्रीष्म का वर्णन है। मजदूरनी पत्थर तोड़ती है। धीरे-धीरे दोपहरी हो आती है। प्रचण्ड धूप के कारण दिन का रूप क्रोध में तमतमाये व्यक्ति के समान अनुभव होता है। झुलसाने वाली लू चलने लगती है। धरती रूई की तरह जलती प्रतीत होती है। हवा की झोंकों के कारण उड़ने वाली धूप आग की चिनगारी की तरह तप्त हो जाती है। ऐसी दोपहरी में भी बेचारी मजदूरनी पत्थर तोड़ती रहती है।

प्रश्न 2.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात का चित्रण हुआ है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित प्रगतिवादी कविता है। इस कविता के द्वारा कवि ने शोषित वर्ग का मर्मस्पर्शी चित्रण प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही साथ आर्थिक वर्ग-वैषम्य का भी हृदयग्राही चित्र खींचा है। समाज की अर्थव्यवस्था के आधार पर दो वर्ग हुए हैं-शोषित और शोषक। यहाँ दोनों वर्गों का बड़ा सजीव चित्र निराला ने खींचा है। निराला ने निरीह शोषित वर्ग के प्रति अपनी सारी सहानुभूति उड़ेल दी है। मजदूरिन को प्रचंड गर्मी में पत्थर तोड़ते देख कवि मौन नहीं रह पाता। वह अपनी सारी करुणा और संवेदना प्रस्तुत कविता में प्रकट कर देता है।

तोड़ती पत्थर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली को कहाँ देखा था?
उत्तर-
इलाहाबाद के किसी पथ पर।

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प्रश्न 2.
मजदूरनी की शारीरिक बनावट कैसी थी?

प्रश्न 3.
मजदूरनी को कवि ने कब देखा था?
उत्तर-
निराला जी मजदूरनी को ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में (झुलसाने वाली लू के समय) देखा था।

प्रश्न 4.
मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम क्यों करती थी।
उत्तर-
पेट की भूख मिटाने के लिए मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम कर रही थी।

प्रश्न 5.
मजदूरनी जहाँ पत्थर तोड़ रही थी वहा कवि ने और क्या देखा?
उत्तर-
कविता ने वहाँ एक विशाल भवन को देखा। इस समय कवि ने देश की खराब आर्थिक स्थिति का अनुभव किया। वह देश की जनता की निर्धनता की प्रति बहुत चिंतित हुआ।

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प्रश्न 6.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में प्रगतिवादी चेतना को अभिव्यक्ति हुयी है।

प्रश्न 7.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में वर्णित मजदूरिन पत्थर कहाँ तोड़ती है?
उत्तर-
कविता में वर्णित मजदूरिन इलाहाबाद की सड़क पर पत्थर तोड़ती है।

प्रश्न 8.
मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से कविता में किस बात पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से अर्थजन्य सामाजिक विषमता और आर्थिक बदहाली पर प्रकाश डाला गया है।

तोड़ती पत्थर वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
तोड़ती पत्थर के कवि हैं?
(क) त्रिलोच
(ख) दिनकर
(ग) सुमित्रानन्दन पंत
(घ) निराला
उत्तर-
(घ)

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प्रश्न 2.
‘निराला’ का जन्म कब हुआ था?
(क) 1897 ई.
(ख) 1890 ई.
(ग) 1880 ई.
(घ) 1885 ई.
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
‘निराला’ का जन्मस्थान था?
(क) बंगाल
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) मध्यप्रदेश
(घ) दिल्ली
उत्तर-
(क)

प्रश्न 4.
‘निराला के पिता का नाम था
(क) रामानुज त्रिपाठी
(ख) केदारनाथ त्रिपाठी
(ग) पं० रामसहाय त्रिपाठी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(घ)

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प्रश्न 5.
‘निराला’ की विशेष अभिरुचि थी
(क) संगीत में
(ख) कुश्ती में
(ग) सितारवादक में
(घ) तबला बादन में
उत्तर-
(क और ख)

प्रश्न 6.
“निराला’ की पहली कविता है?
(क) जूही की कली
(ख) तोड़ती पत्थर
(ग) सड़क पर मौत
(घ) कोई नहीं
उत्तर-
(क)

प्रश्न 7.
पत्थर तोड़ती मजदूरनी को कवि ने कहाँ देखा था?
(क) इलाहाबाद के पथ पर
(ख) इलाजाबाद की अट्टालिकाओं में
(ग) इलाहाबाद की सड़कों पर
(घ) इलाहाबाद की गलियों में
उत्तर-
(क)

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

प्रश्न 1.
निराला रचनावली ………….. दिल्ली से आठ खंडों में प्रकाशित है।
उत्तर-
राजकमल प्रकाशन।

प्रश्न 2.
कवि निराल की तोड़ती पत्थर एक गरीब मजदूरनी की …………. का दर्पण है।
उत्तर-
व्यथा-कथा

प्रश्न 3.
मजदूरीन अपने ……………. काम में पूर्णतन्मयता से व्यस्त है।
उत्तर-
श्रम-साध्य।

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प्रश्न 4.
कवि ने तोड़ती पत्थर में मजदूरीन का सुन्दर …………….. प्रस्तुत किया है।
उत्तर-
चित्रण।

प्रश्न 5.
तोड़ती पत्थर में …………… का सजीव चित्रण है।
उत्तर-
आर्थिक विषमता।

प्रश्न 6.
निराला मुख्यतः ……………. के कवि हैं।
उत्तर-
छायावाद।

प्रश्न 7.
निराला ने शोषकों के अत्याचार को ……………….. किया है।
उत्तर-
उजागर।

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प्रश्न 8.
तोड़ती पत्थर में मजदूरिन की ……………… का वर्णन किया गया है।
उत्तर-
मार्मिक स्थिति।

प्रश्न 9.
सामाजिक विषमता का दंश मूक होकर रहने को गरीब मजदूरिन ……………. है।
उत्तर-
अभिशप्त।

तोड़ती पत्थर कवि परिचय – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (1897-1961)

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1899 ई. में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल राज्य में हुआ था। इनके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी महिषादल राज्य के कर्मचारी थे। तीन वर्ष की आयु में ही निराला जी की माता का देहांत हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगाल में हुई। बंगाल में रहते हुए ही उन्होंने संस्कृत, बंगला, संगीत और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया। 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ, किंतु उनका पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा।

1918 ई. में उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया और उसके बाद पिता, चाचा और चचेरे भाई भी एक-एक करके उन्हें छोड़कर इस दुनिया से चल बसे। उनकी प्रिय पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो उनके हृदय के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस प्रकार निराला जीवन-भर क्रूर परिस्थितियों से संघर्ष करते रहे। 15 अक्टूबर, 1961 ई. को इनका स्वर्गवास हो गया – रचनाएँ-निराला का रचना संसार बहुत विस्तृत है। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों ही विधओं में लिखा है। उनकी रचनाएँ निराला रचनावली के आठ खंडों में प्रकाशित हैं। निराला अपनी कुछ कविताओं के कारण बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कवि हो गए हैं।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘तुलसीदास’ उनकी प्रबंधात्मक कविताएँ हैं, जिनका साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘सरोज-स्मृति’ हिन्दी की अकेली कविता है जो किसी पिता ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी है। निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज। इन ग्रन्थों में अनेक ऐसी कविताएँ हैं जो निराला को जन कवि बना देती हैं। जिनकी लोगों ने अपने कंठ में स्थान दिया है। यथा-जूही की कली, तोड़ती पत्थर, कुकुरमुत्ता, भिक्षुक, मै अकेला, बादल-राग आदि।

भाषा-शैली-काव्य की पुरानी परम्पराओं को त्याग कर काव्य-शिल्प के स्तर पर भी विद्राही। तेवर अपनाते हुए निराला जी ने काव्य-शैली को नई दिशा प्रदान की। उनके.काव्य में भाषा का कसाव, शब्दों की मितव्ययिता एवं अर्थ की प्रधानता है। संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के साथ ही संधि-सामसयुक्त शब्दों का भी प्रयोग निराला जी ने किया है।

काव्यगत विशेषताएँ-निराला छायावाद के महत्त्वपूर्ण चार कवियों में से एक हैं। उनकी छायावादी कविताओं में प्रेम, प्रकृति-चित्रण तथा रहस्यवाद जैसी प्रवृत्तियों को मिलती हैं। बाद में निराला प्रगतिवाद की ओर झुक गए थे ! प्रगतिवादी विचारधारा के अनुसार उन्होंने शोषकों के विरोध और शोषितों के पक्ष में अनेक कविताएँ लिखी हैं, जिनमें, ‘विधवा’, “भिक्षुक’ और ‘तोड़ती पत्थर’ जैसी कविताओं में शोषितों के प्रति सहानुभूति है, तो ‘जागो फिर एक बार’ जैसी कविताओं में कवि दबे-कुचलों को जगाने का आह्मन करता है-

जागो फिर एक बार।
सिंह की गोद से
दीनता रे शिशु कौन?
मौन भी क्या रहती वह
रहते प्राण? रे अंजान।
एक मेषमाता ही
रहती है निर्निमेष
दुर्बल वह

इन पंक्तियों से कवि राष्ट्रीयता को भी अभिव्यक्त करता है। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता के पत्थर तोड़ने वाली की कार्य करने की परिस्थिति को देखकर किसका हृदय-द्रवीभूत नहीं हो जाएगा।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

निराला की प्रकृति संबंधी कविताएँ भी प्रकृति के मनोरम रूप प्रस्तुत करती हैं। उनकी ‘संध्या-सुंदरी’ कविता प्रकृति के मनोहर रूप प्रस्तुत करती है। बादल राग में भी प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन करता है।

‘खुला आसमान’ कविता में प्रकृति की बहुत सरल भाषा में ऐसा वर्णन है, मानो दृश्यावली की रील चल रही हो।

सब मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के गायक हैं, किंतु वे रूढ़ियों के विरोधी हैं और समय के साथ चलने में विश्वास रखते हैं।

तोड़ती पत्थर कविता का सारांश

मार्क्सवादी चेतना का संस्पर्श लिये प्रगतिवाद की प्रतिनिधि रचना है “वह तोड़ती पत्थर”, जिसके रचनाकार हैं सचमुच के भावुक कवि महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’।

कविता ‘वह’ से आरम्भ होती है और ‘मै’ से समाप्त होती है पर से स्व की यात्रा ही यह रचना है। जिस देश में “नारी की पूजा होती है वहाँ बसते हैं देव” जैसी महत् भावना कभी वास्तविकता थी। उसी देश में एक गरीब मजदूर स्त्री जेठ मास की चिलचिलाती धूप में बिना किसी छाया के पत्थर तोड़ रही है। यह दृश्य भले ही कवि को इलाहाबाद (प्रयाग) के पथ पर कहीं देखने को मिला किन्तु आज देश का हर कोना इस मामले में इलाहाबाद ही है। अमीरी गरीबी के बीच बड़ी चौड़ी अपाट्य खायी है।

इसे कवि ने पत्थर तोड़ती कर्मरत वयस्क नारी के माध्यम से व्यक्त किया है। नियति विरुद्ध है। वरन् नारी के कोमल हाथों में भारी हथौड़ा क्यों होता जो बार-बार उठता है और गिरकर पत्थर को चकनाचूर करता है। उसके ठीक सामने पेड़ों की कतार है, ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, बड़ी-बड़ी दीवारी है अर्थात् सुख-वैभव वहाँ संरक्षित है, यह साँवली भरे बदन वाली युवती आँखें नीची किये अपने इसी पत्थर तोड़ने के प्रिय कर्म में मनोयोग से लगी है।

देखते-देखते दोपहर हुई। सूर्य प्रचंडती हुए। देह को झुलसा देने वाली लू चलने लगी धूल के बवंडर उठे धरती रूई की तरह जल रही है। किन्तु इस विषम परिस्थिति में भी उसका पत्थर तोड़ना जारी रहा। जब उसने देखा कि मैं (कवि) उसे देख रहा हूँ तो उसने पहले सामने मानचुम्बी भवन को देखा फिर एक अजब दृष्टि से जिसमें, व्यंग्य, निराश, कटाक्ष, आक्रोश, नियतिवाद, जैसे भाव एक साथ समाजित थे, मुझे देखा। मुझे ऐसा लगता जैसे किसी को मार पड़ी हो किन्तु किसी विवशतावश वह रो नहीं पाया हो, वह भाव आँखों से व्यक्त हो रहा था।

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इसके बाद कवि जाग्रत स्वप्नावस्था में चला गया। उसने देखा कि एक सितार साधा जा चुका है और उसके तारों से एक अनसुनी झंकार निकल रही है। स्वप्न टूटा, एक क्षण के लिए मरत स्त्री काँप गयी। गर्मी की अतिशयता से माथे से पसीने की बुन्दें दुलक पड़ी। उसे अपनी पति स्वीकार है, वह पुनः कर्म में लीन हो गयी। कवि को सुनाई पड़ा जैसे उसने कहा हो-मैं तोड़ती पत्थर। वास्तव में इस कविता में कवि ने सड़क के किनारे पत्थर तोड़ने वाली एक गरीब जिदरिन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है।

तोड़ती पत्थर कठिन शब्दों का अर्थ

पथ-रास्ता। श्याम तन-साँवला शरीर। नत नयन-झुकी आँखें। कर्म-रत-मन-काम में लीन मन। गुरू-बड़ा। तरु मालिका-पेड़ों की पंक्ति। अट्टालिका-ऊँचा बहुमंजिला भवन। . प्रकार-चहारदीवारी, परकोटा। दिवा-दिन। भू-धरती। गर्द-धूल। चिनगी-चिनगारी। सुघर-सुगठित। सीकर-पसीना। छिन्नतार-टूटी निरंतरता।

तोड़ती पत्थर काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. श्याम तन ……………. कर्म-रत मन।
व्याख्या-
निराला रचित कविता ‘तोड़ती पत्थर’ से गृहीत प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस पत्थर तोड़नेवाली मजदूरनी के रूप-रंग का वर्णन किया है जिसे उसने इलाहाबाद के पथ पर देखा था। कवि के अनुसार उसका शरीर साँवला है। वह युवती है। उसका शरीर भरा हुआ तथा बँधा हुआ है अर्थात् वह गठीले शरीर वाली है और शरीर मांसल है। अर्थात् उसमें यौवन अपनी पूर्णता में विकसित है। वह आँख नीचे किये अपने काम में तल्लीन है।

प्रिय कर्मरत मन कहकर कवि यह बताना चाहता है कि उसने मजदूरी को अपनी जीविका का अनिवार्य माध्यम मान लिया है। उसका मन अपने काम में लगता है। अर्थात् वह मन लगाकर प्रेम से काम कर रही है। पत्थर तोड़ने का कार्य उसके लिए न तो बेगारी है और न अनिच्छा से थोपा हुआ कार्य। इस कथन से उसकी कर्मप्रियता और कर्मनिष्ठा दोनों व्यक्त हो रही है।

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समग्रतः वह मजदूरनी भरे हुए यौवन वाली साँवली युवती है और वह मन लगाकर तल्लीन होकर काम कर रही है। कदाचित् इसी तत्लीनता के कारण वह धूप के कड़ेपन का अनुभव नही कर पा रही है।

2. गुरू हथोड़ा हाथ ………….. अट्टालिका, प्राकार।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ महाकवि निराला रचित एक प्रगतिवादी कविता है। इस कविता के व्याख्येय पंक्तियों में कवि ने प्रतीक के सहारे प्रगतिवाद की मूल चेतना “सर्वहारा बनाम पूँजीपति” के संघर्ष को व्यजित किया है।

इलाहाबाद के पथ पर कवि ने जिस मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा है वह पूरी तल्लीनता . के साथ लगातार पत्थर पर भारी हथौड़े से प्रहार कर रही है। सामने वृक्ष-समूह की माला से घिरी हुई एक अट्टालिका यानी हवेली है। वह हवेली प्रकार अर्थात् चहारदीवारी से घिरी है। कवि को अनुभव होता है कि मजदूरनी पत्थर पर नहीं सामने वाले भव्य भवन पर हथौड़े से प्रहार कर रही है।

हम जानते हैं कि हँसिया हथौड़ा मार्क्सवादी पार्टी का चिह्न है। पार्टी मार्क्स के सिद्धातों पर चलती है। मार्क्स के अनुसार समाज में दो ही वर्ग है।
(i) शोषित या सर्वहारा जिसमें किसान-मजदूर आते हैं।
(ii) पूँजीपति, जिनके पास सम्पत्ति है, ऊँचे महल है और सुख-सुविधा के समान है।

सर्वहारा को संगठित कर पूँजीपतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए उनका खात्मा और किसान -मजदूर राज की स्थानापना का मार्क्स का दर्शन है।

उपर्युक्त पंक्तियों में हथौड़ा मजदूर का प्रतीक है और चहारदीवारी से घिरी वृक्ष-समूहों : शीतल छाया में खड़ा विशाल भवन पूँजीपति का प्रतीक है। मजदूरनी मानों पत्थर पर हथोड़, चलाकर इसकी चोट का प्रभाव महल की दीवारों पर अंकित करना चाहती है।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

3. दिवा का तमतमाया रूप ……………………. वह तोड़ती पत्थर।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली के कार्य-परिवेश का वर्णन किया है। इसी के अन्तर्गत मौसम का उल्लेख है। मौसम ग्रीष्म का है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है गर्मी बढ़ती जाती है। कवि कल्पना करता है कि इस अत्यधिक गर्मी के माध्यम से मानो दिन का क्रोधित तमतमाया हुआ रूप व्यक्त हो रहा है।

दिन के तमतमाने का मतलब है अत्यधिक गर्मी। इसके परिणामस्वरूप लू चलने लगी है जो तन को झुलसा रही है। धरती इस तरह जल रही है मानो रूई जल रही हो। हवा के थपेड़ो के कारण चारो तरफ गर्द-गुब्बार का साम्राज्य है। तप्त हवा के कारण यह धूल शरीर से लगती है तब लगता है कि आग की चिनगारी उड़ कर शरीर में लग रही है।

ऐसे विषम और गर्म मौसम में भी बेचारी मजदूरनी छायाविहीन स्थान पर पत्थर तोड़ रही है और दोपहरी के प्रचण्ड ताप में झुलस कर भी काम कर रही है। इन पंक्तियों में ‘रूई ज्यों . जलती’ उपमा अलंकार है और पूरे कथन में उत्प्रेक्षा अलंकार की ध्वनि है।

4. देखते देखा मुझे ……………. मार खा रोई नहीं।
व्याख्या-
निराला रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि पत्थर तोड़ने वाली मजदूरनी के साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापना की चेष्टा करता है। इससे कविता तटस्थ वर्णन के क्षेत्र में निकालकर आत्मीयता की परिधि में आ जाती है।

कवि को अपनी ओर देखते देखकर वह मजदूरनी भी उसकी ओर मुखाबित होती है। फिर वह एक बार उस विशाल भवन की ओर देखती है। मगर वहाँ उसे जोड़ने वाला कोई तार नहीं दिखता। अर्थात् वहाँ उसकी ओर किसी भी दृष्टि से देखने वाला कोई नहीं है। अतः प्रहार से तार छिन्न हो जाता है, टूट जाता है। कवि ‘छिन्नतार’ शब्द के प्रयोग द्वारा यह कहना चाहता है कि एक मजदूर और एक महल वाले के बीच जोड़ने वाला कोई तार नहीं होता।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

लिहाजा अट्टालिका की ओर से दृष्टि घुमाकर मजदूरनी कवि की ओर देखती है। उसकी दृष्टि में वेदना है जो मार खाकर भी न रोने वाले बच्चे की आँखों में होती है। ऐसी दृष्टि बेहद करुण होती है। यहाँ कवि की दृष्टिमें सहानुभूति है तो मजदूरनी की दृष्टि में विवशता भरी करुणा जो किसी की सहानुभूति पाकर उमड़ पड़ती है।

5. सजा सहज सितार ………………. मैं तोड़ती पत्थर।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में निराला जी ने अपनी भावना और मजदूरनी की यथार्थ स्थिति को मिला दिया है। मजदूरनी जिस “मार खा रोई नहीं” दृष्टि से कवि को देखती है उससे कवि से हृदय रूपी सितार के तार बज उठते हैं। उसमें वे करुणापूर्ण ममत्व की रागिनी झंकृत होने लगती है। ‘सजा सहज सितार’ के द्वारा कवि हृदय में मजदूरनी के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होने की बात कहना चाहता है। उसे वेदना की ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी। इसीलिए वह कहता है-“सुनी मैने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।”

इसके बाद कवि पुनः यथार्थ के बाह्य जगत में लौट आता है। वह देखता है कि एक क्षण के बाद मजदूरनी के शरीर में कम्पन हुआ और उसके माथे पर झलक आयी पसीने की बूंदे लुढ़क पड़ती हैं। वह पुनः कर्म में लीन हो गयी। मानो कह रही हो-मैं तोड़ती पत्थर। इन क्तयों से स्पष्ट है कि मजदूरनी की कातर दृष्टि तथा मौसम की कठोर स्थिति की विषमता ने कवि के मन को उदवेलित किया। उसकी भावना के तार करुण से झंकृत हुए और उसी की परिणति इस कविता की रचना के रूप में हुई। ये पंक्तियाँ इस कविता को प्रेरणा– भूमि समझने की कुंजी ज्ञात होती है।

VII पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है VIII बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना? - vii patthar todane vaalee stree ka parichay kavi ne kis tarah diya hai viii bahut dinon ke baad kavi ne kya dekha aur kya suna?

पत्थर तोड़ने वाली स्त्री कहाँ बैठकर काम कर रही थी और वहाँ किस चीज की कमी थी?

उत्तर: पत्थर तोड़नेवाली स्त्री इलाहाबाद में सड़क के किनारे बैठकर काम कर रही थी और वहाँ छायादार वृक्ष की कमी थी

वह तोड़ती पत्थर में कवि ने मुख्यतः किसका वर्णन किया है?

कवि इलाहाबाद के किसी रास्ते पर उस महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखते है। वह एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठी है, जहा छाया नहीं मिल रही आस पास भी कोई छायादार जगह नहीं हैं। इस प्रकार कवि शोषित समाज की विषमता का वर्णन करते है। ओर बताते है की मजदूर वर्ग अपना काम पूरी लग्न के साथ करते है।

तोड़ती पत्थर कविता में स्त्री पत्थर कैसे तोड़ रही थी?

उत्तर: नारी दुपहर की धूप में पत्थर तोड़ रही थी। प्रश्न 5.

वह तोड़ती पत्थर कविता में निराला क्या संदेश दे रहे हैं स्पष्ट कीजिए?

'वह तोड़ती पत्थर' कविता में भी श्रमिक नारी के जीवन और उसके प्रति समाज की हृदयहीनता का अंकन किया गया है । निराला का अपना जीवन भी कष्ट भोगते हुए बीता । उसमें सुख-आनंद की लहरें कुछ ही दिनों के लिए आईं, जिनकी स्मृति के सहारे ही उन्होंने शेष जीवन बिताया। 'मौन' कविता में कवि अपने प्रिय के साथ कुछ समय चुपचाप बिताना चाहता है ।