शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। उसके पिता शिवभक्त थे। सुबह नहला-धुला कर वे उसे अपने पास पूजा में बिठा लेते समीप बिठाकर वे उसके ललाट पर भभूत लगाकर त्रिपुंडाकार का तिलक लगा देते। लम्बी जटाएं होने के कारण वह खासा यमभोला प्रतीत होता पिताजी शिशु से कहते कि
बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर नाम हो गया भोलानाथ। Mata ka Anchal Question Answer | माता का आँचल प्रश्न-उत्तर | NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Question Answerआज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-1 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-1) के माता का आँचल पाठ का प्रश्न-उत्तर (Mata ka Anchal Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है जो कि शिवपूजन सहाय (Shivpujan Sahay) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं। Mata ka Anchal Question Answer | माता का आँचल प्रश्न-उत्तरपाठ्य-पुस्तक से
उत्तर: बच्चे को पिता से अधिक लगाव था क्योंकी उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं , बल्की उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। उसके प्रत्येक खेल में शामिल होने का प्रयास करते थे। उसे किसी न किसी प्रकार अधिकतर समय अपने साथ रखते थे, इसलिए बच्चे का अपने पिता के प्रति अधिक स्नेह होना स्वाभाविक था। माँ से बच्चे का लगाव दिल का है। माँ का स्नेह दिल को छूने वाला है। उसे जो शान्ति व प्रेम की छाया अपनी माँ से मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि आपदा के दौरान, बच्चा पिता के पास नहीं जाता है और माँ के पास जाता है। माँ की बाहों में बच्चा खुद को सुरक्षा के साथ स्नेह से भरा हुआ महसूस करता है।
उत्तर : अपने स्वाभाविक आदतों के अनुसार शिशु अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेल कूद में रुचि लेता है। उनके साथ खेलना उन्हें अच्छा लगता है। अपनी उम्र के बच्चों के साथ जिस रुचि से वो खेलता है वह रुचि उसे बड़ों बच्चों के साथ खेलने में नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है क्योंकि बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने में या रोने में हीनता का अनुभव होता है। शिशु भोलानाथ को उसकी माँ जबरदस्ती पकड़ कर सिर में तेल डालकर उसकी इच्छा के विरुद्ध उबटन करती है तो वह सिसकने लगता है। पिता की गोद पाकर भी उसका सिसकना बन्द नहीं होता है, परंतु जैसे ही साथियों के बीच में जाता है तो स्वभावतः सिसकियों को बन्द करता है, छिपाने की कोशिश करता है। यही कारण हैं की बच्चा भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है ।
उत्तर : तुकबन्दियाँ
बनफूले बंगाले।
चोर भाग गया पल्ली पार।।
उतर: भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से और हमारे खेल और खेलने की सामग्रियों में कल्पना से भी अधिक अन्तर है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक में आत्मीय सम्बन्ध थे, जिसके कारण खेलों में स्वतंत्रता थी । बाहरी घटनाओं-अपहरण आदि का कोई डर नहीं था। खेलों की सामग्री बच्चों द्वारा स्वयं बनाई जाती थी, और घर का बेकार सामान उनके लिए खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी भी तरह से नुकसान की संभावना नहीं थी। धूल और मिट्टी से खेलने में पूरा आनंद था। न कोई बंधन, न कोई भय, न किसी का निर्देशन। वह सब सामूहिक बुद्धिमत्ता की उपज थी। आज, भोलानाथ के विपरीत खेल और खेल सामग्री, और ऊपर से बड़ों की दिशा और सुरक्षा, हर समय सिर पर हावी है। आज, खेल के सामान स्व-निर्मित के बजाय बाजार से खरीदे जाते हैं। खेलने की सीमा भी निर्धारित की जाती है। इसलिए, कोई स्वतंत्रता नहीं है। वे धूल और मिट्टी से परिचित नहीं होता है। यह भी पढ़े – माता का आँचल पाठ का सारांश NCERT / CBSE Solution for Class 9 (HINDI)
उत्तर : पाठ के सभी प्रसंग बचपन की याद दिलाते हैं। कहानीकार के सभी प्रसंग अपने जीवन की कहानी प्रतीत होते हैं। जैसे –
उत्तर : आज के समय की ग्रामीण रहन-सहन को देखकर और इस उपन्यास के पाठ को पढ़कर ऐसा लगता है कि कितनी अच्छी रही होगी वह समूह-संस्कृति, जो आपसी स्नेह और समूह में रहने का बोध कराती थी। आजकल इस प्रकार के दृश्य दिखना मुश्किल हैं। पुरुषों की भी समूह में कार्य करने की प्रथा समाप्त हो गई है। अतः अभी के ग्रामीण संस्कृति में आए परिवर्तन के कारण वे सभी मनमोहक दृश्य नहीं दिखाई देते हैं जो तीस के दशक में रहे होंगे-
7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए। उत्तर : आदरणीय पिता या माता जी यद्यपि दोनों ही आज साथ नहीं हैं फिर भी उनके बीच शैशव काल की कुछ घटनाएँ बहुत याद आ जाती हैं। बचपन में कुँए की रहट पर खेलते हुए रहट के चक्कर में सिर फँस कर फट गया था, मैं रो रहा था सारा शरीर खून से लथपथ था। पिताजी ने अपनी धोती फाड़कर मेरा सिर बाँध कन्धे पर बैठाकर घेर (फार्म हाऊस) से डॉक्टर के पास ले गए। मरहम-पट्टी कराकर दवा दिलवाई। मेरे ठीक होने तक मेरे साथ रह कर मेरी सभी जरूरत का ध्यान रखते थे। इसके साथ ही एक-दूसरी घटना भी याद आ गई जब हम माँ के साथ आम के पेड़ के नीचे खड़े थे। साथ में मेरा छोटा भाई और सभी महिलाएँ थीं। वेग से वर्षा होने लगी, जोर से बिजली कड़की और माँ ने अपने पल्लू से यकायक ऐसे ढका मानों बिजली से वह पल्लू रक्षा कर लेगा। छोटा-भाई यतीश और मैं माँ के स्नेह से हैरान रह गए।
उत्तर : पिताजी का अपने साथ शिशु को भी नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर भभूत लगाना फिर कागज में राम-राम लिख कर आटे की गोलियाँ बनाना, उसके बाद लेखक को कन्धे पर बैठा कर गंगाजी तक ले जाना और वापस आते समय पेड़ पर बैठा कर झूला झुलाना, यह सब कितना सुंदर दृश्य उत्पन्न करता है। लेखक का अपने पिता जी के साथ कुश्ती लड़ना, पिताजी का बच्चे के गालों में चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा मूँछे पकड़ने पर पिताजी का बनावटी रोना रोने का नाटक करना और शिशु का उस पर हँस पड़ना, यह सब अत्यंत जीवंत लगता है। माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खिलाना, उबटना, शिशु का शृंगार करना और शिशु का सिसक-सिसक कर रोना, बच्चों की टोली को खेलते देखकर सिसकना बन्द कर तरह-तरह के खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि। ये सभी अद्भुत दृश्य पाठ में उभारे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव अवस्था की याद दिलाते हैं।
उत्तर : भोलानाथ का अधिकांश समय पिता के समीप में बीतता है। प्रातः उठकर नहलाना-धुलाना, पूजा में बैठाना, गंगा तक कन्धे पर ले जाना। यहाँ तक बच्चे के हर खेल में खेल के अन्त में शिशु के साथ पिता की उपस्थिति रही है। ऐसा लगता है कि पिता भोलानाथ का सम्बन्ध शिशु से व्यक्ति और छाया का है। भोलानाथ का माँ के साथ सम्बन्ध दूध पीने तक का रह गया है। अन्त में साँप से डरा हुआ बालक भोलानाथ पिता को हुक्का गुड़गुड़ाता पहले देखकर भी माता की शरण में जाता है और अद्भुत रक्षा और शान्ति का अनुभव करता है। यहाँ भोलानाथ पिता को अनदेखा कर देता है जबकि अधिकांश समय पिता के सान्निध्य में रहता है। इस आधार पर ‘माता का आँचल’ सटीक शीर्षक है। दूसरे और भी शीर्षक हो सकते हैं जैसे-
10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? उत्तर :
इस प्रकार माता और पिता के प्रति बच्चे के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना बहुत ही मुश्किल होता है।
उत्तर : इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। पाठ में तीस या चालीस के दशक के आस-पास का वर्णन है। ग्रामीण परिवेश में चारों ओर उगी फसलें उनके दूधभरे दाने चुगती चिड़ियाँ, बच्चों द्वारा उन्हें पकड़ने का प्रयास करना, उन्हें उड़ाना, माता द्वारा बल-पूर्वक बच्चे को तेल लगाना, बच्चे की चोटी बाँधना, काजल लगाकर कन्हैया बनाना, साथियों के साथ मस्तीपूर्वक खेलना, आम के बगीचे में बारिश में भीगना, उस बारिश में बिच्छुओं का निकलना, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, चूहे के बिल में पानी डालने पर साँप का निकल आना सब कुछ हमारे बचपन से पूर्णतया भिन्न है। आज तीन वर्ष की उम्र होते ही बच्चों को नर्सरी या प्रीपेरेटरी कक्षाओं में भर्ती करा दिया जाता है। उनके खेलों के सभी सामान दुकान से खरीदे गए होते हैं। बच्चे क्रिकेट, वॉलीबॉल, कम्प्यूटर गेम, वीडियो गेम, लूडो आदि खेलते हैं। जिस धूल में खेलकर ग्रामीण बच्चे बड़े होते हैं तथा मजबूत बनते हैं। उससे इन बच्चों का कोई मतलब नहीं होता है। आज माता-पिता के पास बच्चों के लिए भी समय नहीं है, ऐसे में बच्चे टी.वी. वीडियो देखकर अपनी शाम तथा समय बिताते हैं।
उत्तर
कुछ और प्रश्नMata ka Anchal Extra Question Answer
उत्तर : भोलानाथ को पूजा में बैठाने के निम्न कारण हो सकते थे-
प्रश्न 2 : शिशु का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा? . उत्तर : शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। अपने समीप बैठा कर शिशु के माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुण्डाकार में तिलक लगाकर, लम्बी जटाओं के साथ शिशु से कहने लगते कि बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे-धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर हो गया भोलानाथ। प्रश्न 3 : भोलानाथ पूजा-पाठ में पिताजी के पास बैठा क्या करता रहता था? उत्तर : पिताजी पूजा-पाठ करते, रामायण का पाठ करते तो उनकी बगल में बैठा भोलानाथ आइने में अपने मुँह निहारा करता था। पिताजी जब भोलानाथ की ओर देखने लगते तो शिशु भोलानाथ लजाकर और कुछ मुस्करा कर आइना को नीचे रख देता था। ऐसा करने पर पिताजी मुस्कुरा पड़ते थे।
उत्तर : भोलानाथ के पिताजी की पूजा के चार अंग थे
5. भोलानाथ माँ के साथ कितना नाता रखता था। वह अपने माता-पिता से क्या कहता था? उत्तर : भोलानाथ का माता के साथ दूध पीने तक नाता था। इसके अतिरिक्त माँ के पास वह जबरदस्ती रहता था क्योंकि माता भोलानाथ के न चाहते हुए जबरदस्ती तेल लगाना तथा उबटन करती थी। जिससे भोलानाथ को माँ के पास रहना पसन्द नहीं था। भोलानाथ अपनी माता को मइयाँ और पिताजी को बाबूजी कहता था। 6 : भोलानाथ के गोरस-भात खा चुकने के बाद माता और खिलाती थी। क्यों? उत्तर : भोलानाथ को पिताजी गोरस भात सानकर थोड़ा-थोड़ा करके खिला देते थे, फिर भी माता उसे भर-भर कौर खिलाती थी। कभी तोता के नाम का कौर कभी मैना के नाम का कौर। माँ कहती थी कि बच्चे को मर्दे क्या खिलाना जानें । थोड़ा-थोड़ा खिलाने से बच्चे को लगता है कि बहुत खा चुका और बिना पेट भरे ही खाना बन्द कर देता है।
उत्तर : भोलानाथ बाग में अपने दोस्तों की टोली के साथ था। आकाश में बादल आए, बालकों ने शोर मचाया। वर्षा शुरू हुई और थोड़ी देर में ही मूसलाधार वर्षा हुई। बालक पेड़ों के नीचे पेड़ों से चिपक गए। जैसे ही वर्षा थमी, बाग में बिच्छू निकल आए। उनसे डरकर बच्चे भागे। उस भय से डरा हुआ बालक भोलानाथ भी बाग से भागा।
उत्तर : भोलानाथ भय से सिसकता हुआ, भय से प्रकम्पित भागा-भागा माँ की गोद में छिपा तो माँ भी स्नेहवश डर गई और डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर जोर से रो पड़ी। सब काम छोड़ अधीर होकर भोलानाथ से भय का कारण पूछने लगी। कभी अंग भरकर दबाने लगी और अंगों को अपने आँचल से पोंछकर चूमने लगी। झटपट हल्दी पीसकर घावों पर लगा दी गई। माँ बार-बार निहारती, रोती और बड़े लाड़-प्यार से उसे गले लगा लेती।
उत्तर भोलानाथ साँप के भय से मुक्त नहीं हो पा रहा था। अपने हुक्का-गुड़गुड़ाते पिताजी की पुकार को भी अनसुनी कर घर की ओर भाग कर आया। उसकी सिसकियाँ नहीं रुक रही थीं। साँ-साँ करते हुए माँ के आँचल में छिपा जा रहा था। सारा शरीर काँप रहा था। रोंगटे खड़े हो रहे थे। आँखें खोलने पर नहीं खुल रही थीं।
उत्तर : लेखक बताता है कि बचपन में हम बच्चों की टोली किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई ओहारदार पालकी देख लेते तो खूब जोर से चिल्लाते थे रहरी में रहरी पुरान रहरी। डोला के कनिया हमार मेहरी। एक बार ऐसा कहने पर बूढ़े वर ने बड़ी दूर तक खदेड़ कर ढेलों से मारा था। उस खूसट-खब्बीस की सूरत को लेखक नहीं भुला पाया। उसे याद कर लेखक कहता था कि न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूंढ़ निकाला था। वैसा घोड़मुँहा आदमी कभी नहीं देखा।
उत्तर : बच्चे बाग में खेल रहे थे, वर्षा हुई तो बाग में बिच्छू निकल आए और बच्चे डरकर भाग उठे। बच्चों की मण्डली में बैजू बालक ढीठ था। संयोग से रास्ते में मूसन-तिवारी मिल गए, जिन्हें कम सूझता था, बैजू ने उन्हें चिढ़ाया ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’ बैजू के सुर में सबने सुर मिलाया और चिल्लाना शुरू कर दिया। तब मूसन तिवारी ने बच्चों को खदेड़ा।
उत्तर : मूसन तिवारी हमारे चिढ़ाने पर सीधे पाठशाला शिकायत करने चले गए। वहाँ से गुरुजी ने भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए चार लड़के भेजे। जैसे ही हम घर पहुँचे वैसे ही चारों लड़के घर पहुँचे और भोलानाथ को दबोच लिया और बैजू नौ-दो ग्यारह हो गया और गुरुजी ने भोलानाथ की खबर ली।
उत्तर : गुरुजी ने मूसन तिवारी को चिढ़ाने की सजा दी। पिताजी को पता चला तो पाठशाला आए। गोद में उठाकर पुचकारन दुलारने लगे। भोलानाथ ने रोते-रोते पिताजी का कन्धा आँसुओं से तर कर दिया। पिताजी बालक को गुरुजी से चिरोरी कर घर ले जा रहे थे। रास्ते में साथियों का झुण्ड मिल गया। वे जोर-जोर से नाच-गा रहे थे- माई पकाई गरर-गरर पूआ, हम खाइब पूआ, ना खेलब जुआ। बालक भोलानाथ उन्हें देखकर रोना-धोना यकायक भूल गया और हठ करके बाबूजी की गोद से उतर गया और लड़कों की मण्डली में मिलकर वही तान-सुर अलापने लगा।
उत्तर : लड़कों की मण्डली खेत में दाने चुग रही चिड़ियों के झुण्ड को देखकर दौड़-दौड़ कर पकड़ने लगी। एक भी चिड़िया हाथ नहीं आई थी। भोलानाथ खेत से अलग होकर गा रहा था – राम जी की चिरई, राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट। बाबूजी और गाँव के लोग तमाशा देख हँस रहे थे कह रहे थे कि चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना। यह दृश्य देखकर उन्होंने कहा था-“लड़के और बन्दर सचमुच पराई पीर नहीं समझते।”
उत्तर : बाल-स्वभाव में कोई भी सुख-दुख स्थायी नहीं होता है। बच्चे अपने मन के अनुकूल स्थितियों को देख बड़े से बड़े दुख को भूल कर सामान्य हो जाते हैं। वे खेल प्रिय होते हैं। वे मात्र अनुकूल स्नेह को पहचानते हैं। भोलानाथ माता के उबटने पर सिसकता है, ऐसे ही गुरु के खबर लेने पर रोता है परंतु तुरन्त ही बालकों की टोली देख उसके सिसकने में एकदम ठहराव आ जाता है और सामान्य होकर खेलने में ऐसे मस्त हो जाता है कि लगता ही नहीं की थोड़ी देर पहले कुछ हुआ हो। अतः बाल-स्वभाव में अन्तर्मन निर्द्वन्द्व, निश्छल होता है। माता का आँचल पाठ का सारांश | Mata ka Anchal Summaryइस पाठ के सार में लेखक ने शैशव-काल के शैशवीय क्रिया-कलापों को रेखांकित किया है, Read More इस पोस्ट के माध्यम से हम कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-1 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-1) के माता का आँचल पाठ का प्रश्न-उत्तर (Mata ka Anchal Question Answer) के बारे में जाने जो कि शिवपूजन सहाय (Shivpujan Sahay) द्वारा लिखित हैं । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे। आपको यह सभी पोस्ट Video के रूप में भी हमारे YouTube चैनल Education 4 India पर भी मिल जाएगी। djaiswal4uhttps://educationforindia.com Educationforindia.com share all about science, maths, english, biography, general knowledge,festival,education, speech,current affairs, technology, breaking news, job, business idea, education etc. शिशु का नाम तारकेश्वर नाथ से भोलानाथ कैसे पड़ा स्पष्ट कीजिए?उत्तर : शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। अपने समीप बैठा कर शिशु के माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुण्डाकार में तिलक लगाकर, लम्बी जटाओं के साथ शिशु से कहने लगते कि बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे-धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर हो गया भोलानाथ।
तारकेश्वर नाथ का असली नाम क्या था?उत्तर- भोलानाथ का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ है। तारकेश्वर नाथ को पिताजी बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते थे।
भोलानाथ का मूल नाम क्या है?पिता जी हमें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारा करते । पर असल में हमारा नाम था 'तारकेश्वरनाथ'।
इस पाठ में बालक का वास्तविक नाम क्या था उसका नाम भोलानाथ क्यों पड़ा?'माता का आँचल' पाठ में भोलेनाथ का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ था, लेकिन उनको सब भोलेनाथ कहकर पुकारते थे। उनका भोलेनाथ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि भोलेनाथ के पिता उन्हें बचपन में सुबह नहला-धुला कर अपने साथ पूजा-पाठ करते समय बैठा लेते थे।
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