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जब
किसी काव्य की पंक्तियों को पढ़कर मन में जो भाव जाग्रत होते हैं जिससे एक प्रकार की अनुभूति होती है तो ये मन के भाव ही रस कहलाते हैं। उदाहरण– भज मन चरण कँवल अविनासी। रस के अंग – काव्य शास्त्रियों के अनुसार रस के चार अंग होते हैं। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। चार अवयव–1. स्थायी भाव- सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से निवास करते हैं, स्थायी भाव कहलाते हैं। इन्हें अनुकूल या प्रतिकूल किसी प्रकार के भाव दबा नहीं पाते। 2. संचारी भाव – स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जो भाव उत्पन्न होकर पुनः लुप्त हो जाते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनकी संख्या 33 मानी गई है। निर्वेद, शंका, ग्लानि, हर्ष, आवेग आदि प्रमुख संचारी भाव हैं। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। 3. विभाव– स्थायी भावों को जाग्रत करने वाले कारक विभाव कहलाते हैं। रस की निष्पत्ति–हृदय में स्थित स्थायी भाव का जब
अनुभाव, विभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है। उपर्युक्त उदाहरण में रस के चारों अंगों की निष्पत्ति इस प्रकार हुई है– इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। वात्सल्य रसजिन पंक्तियों को पढ़कर मन में ममता के भाव, वात्सल्य के भाव आएँ वहाँ वात्सल्य रस होता है। इसका स्थायी भाव वत्सल है। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। श्रृंगार रस की उत्पत्तिसहृदय के हृदय में विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट हुआ 'रति' स्थायी भाव जब अपनी परिपक्वता को प्राप्त कर लेता है तब श्रृंगार रस की उत्पत्ति होती है। इसे 'रसराज' भी कहा जाता है। इसके दो भेद हैं– उक्त पंक्तियों में– इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। I hope the above
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Watch related information below विभाव अनुभव और संचारी भावों की सहायता से क्या रस के रूप में परिणत हो जाते हैं?(क) परिभाषा-जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से 'रति' नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत होता है तो उसे शृंगार रस कहते हैं। स्थायी भाव--रति।
स्थायी भाव विभाव अनुभाव और संचारी भाव रस के क्या है?भरतमुनि ने लिखा है विभावानुभावव्यभिचारी संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव । प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है। स्थायी भावों की संख्या तक पहुँच जाती है और तदनुरूप रसों की संख्या भी तक पहुँच जाती है।
रस के कितने संचारी भाव होते हैं?संचारी भावों की संख्या 33 है। कुछ प्रमुख संचारी भाव- दैन्य, मद, जड़ता विषाद, निद्रा, मोह, उग्रता, शंका, चपलता आदि हैं।
व्यभिचारी भाव को संचारी भाव क्यों कहा जाता है?व्यभिचारी भाव को संचारी भाव इसलिए कहते हैं क्योंकि ये भाव एक जगह स्थिर नही रहते तथा पानी के बुलबुले के समान चंचल होते हैं और यहाँ-वहाँ संचार करते रहते हैं।
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