खबरों को बेहतर बनाने में हमारी मदद करें।खबर में दी गई जानकारी और सूचना से आप संतुष्ट हैं? Show खबर की भाषा और शीर्षक से आप संतुष्ट हैं? खबर के प्रस्तुतिकरण से आप संतुष्ट हैं? खबर में और अधिक सुधार की आवश्यकता है? हिन्दू धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। जयंती देवी शक्ति पीठ भारत के मेघालय राज्य में नाॅरटियांग नामक स्थान पर है। भगवान शिव माता सती को ले जाते हुए पुराणों के अनुसार[1] सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह अंतर्कथा है कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए इधर-उधर घूमने लगे। तदनंतर सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया। तदनंतर वे टुकड़े 52 जगहों पर गिरे। वे ५२ स्थान शक्तिपीठ कहलाए। सती ने दूसरे जन्म में हिमालयपुत्री पार्वती के रूप में शंकर जी से विवाह किया। पुराण ग्रंथों, तंत्र साहित्य एवं तंत्र चूड़ामणि में जिन बावन शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वे निम्नांकित हैं। निम्नलिखित सूची 'तंत्र चूड़ामणि' में वर्णित इक्यावन शक्ति पीठों की है। बावनवाँ शक्तिपीठ अन्य ग्रंथों के आधार पर है। इन बावन शक्तिपीठों के अतिरिक्त अनेकानेक मंदिर देश-विदेश में विद्यमान हैं। हिमाचल प्रदेश में नयना देवी का पीठ (बिलासपुर) भी विख्यात है। गुफा में प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है कि यह भी शक्तिपीठ है और सती का एक नयन यहाँ गिरा था। इसी प्रकार उत्तराखंड के पर्यटन स्थल मसूरी के पास सुरकंडा देवी का मंदिर (धनौल्टी में) है। यह भी शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर सती का सिर धड़ से अलग होकर गिरा था। माता सती के अंग भूमि पर गिरने का कारण भगवान श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती माता के समस्तांग विछेदित करना था।ऐसी भी मान्यता है कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के निकट एक अति प्राचीन शक्तिपीठ क्षेत्र मे माता का शीश गिरा था जिस कारण वहाँ देवी को दुर्गमासुर संहारिणी शाकम्भरी कहा गया। यहाँ भैरव भूरादेव के नाम से प्रथम पुजा पाते हैं। यह शाकम्भरी पीठ अत्यंत जाग्रत क्षेत्र है।
शक्तिपीठों की संख्या इक्यावन कही गई है। ये भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तृत हैं। यहां पूरी शक्तिपीठों की सूची दी गई है। पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे एक विशेष कथा है, बताते हैं कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने जान-बूझकर अपने जमाता भगवान भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकर जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और भोलेनाथ के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने शिव जी को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे भयंकर तांडव करने के लिए उद्यत हो गए। भगवान के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। शंकर जी ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हो कर पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव करने लगे। तब सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया। वे टुकड़े जिन जगहों पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। ये हैं शक्तिपीठों की सूची इन शक्तिपीठों की संख्या इक्यावन कही गई है। ये पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। आइये जानें इनके स्थान, वहां स्थापित देवी के नाम और कौनसा अंग या आभूषण वहां गिरा उसके बारे में। 1- हिंगुल या हिंगलाज, कराची, पाकिस्तान से लगभग 125 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है यहां देवी का ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा। यहां देवी कोट्टरी नाम से स्थापित हैं। 2- शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट मज्ञैजूद है वैसे इसे नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर में भी बताया जाता है। यहां देवी की आंख गिरी थी और वे महिष मर्दिनी कहलाती हैं। 3- सुगंध, बांग्लादेश में शिकारपुर, बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे गिरी देवी की नासिका और उनका नाम है सुनंदा। 4- अमरनाथ, पहलगांव, काश्मीर के पास देवी का गला गिरा था और वे यहां महामाया के रूप में स्थापित हैं। 5- ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हैं जहां देवी की जीभ गिरी थी उनका नाम पड़ा सिधिदा या अंबिका। 6- जालंधर, पंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब में उनका बांया वक्ष गिरा और वे त्रिपुरमालिनी नाम से स्थापित हुईं। 7- अम्बाजी मंदिर, गुजरात में देवी का हृदय गिरा था और वे अम्बाजी कहलाईं। 8- गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, में पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही है जहां देवी के दोनों घुटने गिरे बताये जाते हैं। यहां देवी का नाम महाशिरा है। 9- मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर, में तिब्ब्त के निकट एक पाषाण शिला के रूप में मौजूद हैं देवी। यहां उनका दायां हाथ गिरा और वे दाक्षायनी कहलाईं। 10- बिराज, उत्कल, उड़ीसा में देवी की नाभि गिरी और वे विमला बनीं। 11- गंडकी नदी के तट पर, पोखरा, नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर में देवी का मस्तक गिरा और वे गंडकी चंडी कहलाईं। 12- बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिला, में पश्चिम बंगाल से 8 किमी दूर बहुला देवी हैं जहां देवी का बायां हाथ गिरा था। 13- उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में दायीं कलाई गिरी और मंगल चंद्रिका देवी की स्थापना हुई। 14- माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाव, उदरपुर, त्रिपुरा में दायां पैर गिरा और देवी त्रिपुर सुंदरी बनीं। 15- छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, चिट्टागौंग जिला, बांग्लादेश में गिरी दांयी भुजा और नाम पड़ा भवानी। 16- त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गांव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी, पश्चिम बंगाल में मां का बायां पैर गिरा और वे भ्रामरी देवी कहलाईं। 17- कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम में उनकी योनि गिरी और वे कामाख्या रूप में प्रसिद्ध हुईं। 18- जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में दायें पैर का अंगूठा गिरा और नाम मिला जुगाड्या। 19- वहीं कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता में दायें पैर का अंगूठा गिरा और वे मां कालिका बनीं। 20- प्रयाग, संगम, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में मां ललिता के हाथ की अंगुली गिरी। 21- जयंती नाम से स्थापित है कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला, बांग्लादेश में देवी जहां उनकी बायीं जंघा गिरी। 22- किरीट नाम से ही स्पष्ट है कि किरीटकोण ग्राम, मुर्शीदाबाद जिला, पश्चिम बंगालमें देवी का मुकुट गिरा और वे विमला कहलाईं। 23- मणिकर्णिका घाट, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में उनकी मणिकर्णिका गिरी और वे विशालाक्षी और मणिकर्णी रूप में प्रसिद्ध हुईं। 24- कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिर, तमिल नाडु में देवी की पीठ गिरी और वे श्रवणी कहलाईं। 25- कुरुक्षेत्र, हरियाणा में गिरी एड़ी और माता सावित्री का मंदिर स्थापित हुआ। 26- मणिबंध, गायत्री पर्वत, पुष्कर, अजमेर में देवी की दो पहुंचियां गिरी थीं। यहां देवी का नाम है गायत्री। 27- श्री शैल, जैनपुर गांव, के पास सिल्हैट टाउन, बांग्लादेश में देवी का गला गिरा, यहां उनका नाम महालक्ष्मी है। 28- कांची, कोपई नदी तट पर पश्चिम बंगाल में देवी की अस्थि गिरी और वे देवगर्भ रूप में स्थापित हैं। 29- मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कमलाधव नाम के स्थान पर शोन नदी के किनारे एक गुफा में, मां काली स्थापित हैं जहां उनका बायां नितंब गिरा। 30- शोन्देश, अमरकंटक, मध्य प्रदेश में उनका दायां नितंब गिरा और नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण देवी नर्मदा कहलाईं। 31- रामगिरि, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश में दायां वक्ष गिरा नाम पड़ा शिवानी। 32- वृंदावन, भूतेश्वर महादेव मंदिर के पास उत्तर प्रदेश में दवी के केशों का गुच्छ और चूड़ामणि गिरी। वे यहां उमा नाम से प्रसिद्ध हुईं। 33- शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर के पास कन्याकुमारी, तमिल नाडु में ऊपरी दाढ़ गिरी नाम पड़ा नारायणी। 34- वहीं पंचसागर में उनकी निचली दाढ़ गिरी नाम पड़ा वाराही। 35- बांग्लादेश के करतोयतत, भवानीपुर गांव में उनकी बायीं पायल गिरी और वे अर्पण नाम से जानी गई। 36- श्रीशैलम, कुर्नूल जिला आंध्र प्रदेश में दायीं पायल गिरी और स्थापित हुईं देवी श्री सुंदरी। 37- पश्चिम बंगाल के विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिला में देवी कपालिनी (भीमरूप) की बायीं एड़ी गिरी। 38- प्रभास, जूनागढ़ जिला, गुजरात में देवी चंद्रभागा का आमाशय गिरा। 39- भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी, मध्य प्रदेश में देवी के ऊपरी होंठ गिरे यहां वे अवंति नाम से जानी जाती हैं। 40- जनस्थान, नासिक, महाराष्ट्र में ठोड़ी गिरी और देवी भ्रामरी रूप में स्थापित हुईं। 41- सर्वशैल राजमहेंद्री, आंध्र प्रदेश में उनके गाल गिरे और देवी को नाम मिला राकिनी या विश्वेश्वरी। 42- बिरात, राजस्थान में उनके बायें पैर की उंगुली गिरी। देवी कहलाईं अंबिका। 43- रत्नावली, हुगली, पश्चिम बंगाल में देवी का दायां कंघा गिरा और उनका नाम है कुमारी। 44- मिथिला, भारत-नेपाल सीमा पर देवी उम का बायां कंधा गिरा था। 45- नलहाटी, बीरभूम, पश्चिम बंगाल में पैर की हड्डी गिरी और देवी का नाम पड़ा कलिका देवी। 46- कर्नाट में देवी जय दुर्गा के दोनों कान गिरे। 47- वक्रेश्वर पश्चिम बंगाल में भ्रूमध्य गिरा और वे कहलाईं महिषमर्दिनी। 48- यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेश हाथ एवं पैर यशोरेश्वरी 49- अट्टहास, पश्चिम बंगाल में फुल्लारा देवी के होंठ गिरे। 50- नंदीपुर, पश्चिम बंगाल में मां नंदनी के गले का हार गिरा था। 51- लंका में अज्ञात स्थान पर, (एक मतानुसार, मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है और महज एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है) देवी की पायल गिरी यहां वे इंद्रक्षी कहलाती हैं। वैष्णो देवी में माता का कौन सा अंग गिरा था?यहां देवी सती की आंख गिरी थी यहां देवी महिष मर्दिनी कहलाती हैं. देवी सती की नासिका गिरी थी सुगंध बांग्लादेश में शिकारपुर बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे. यहां देवी सुनंदा कहलाती हैं.
माता सती के कितने टुकड़े हुए थे?पुराणों की ही मानें तो जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र और गहने गिरे, वहां-वहां मां के शक्तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।
सती की मृत्यु कैसे हुई?माता सती के शव को लेकर मचाया था तांडव
जब श्रीहरि ने शिवजी के इस क्रोध को देखा तो उन्होंने जल्द से जल्द हल निकालने की कोशिश की. अंतत: उन्होंने भगवान शिव की पत्नी के मृत शरीर को स्पर्श कर भस्म में बदल दिया. हाथों में माता सती का भस्म देखकर महादेव और परेशान हो गए. उन्हें लगा कि वे अपनी पत्नी को हमेशा के लिए खो चुके हैं.
सती के कितने नाम हैं?हिंदू इतिहास अनुसार इस संसार में पांच सती हुई है, जो क्रमश: इस प्रकार है 1. अनुसूया (ऋषि अत्रि की पत्नी), 2. द्रौपदी (पांडवों की पत्नी), 3. सुलक्षणा (रावण पुत्र मेघनाद की पत्नी), 4.
|