vastu shastra kya hai ? ghar ka vastu shastra kya hota hai ? घर का वास्तु शास्त्र क्या होता है ? भारत में वास्तु शास्त्र बहुत पहले से ही मौजूद था । वास्तु शास्त्र अपने आप में ही एक विज्ञान है। इस विज्ञान का जन्म एवं विकास प्राचीन काल में ही हुआ था। इसे उस समय ताड़ पत्रों पर लिखा जाता था। और विद्यालयों और गुरुकुलओं के पुस्तकालयों में रखा जाता था । जिससे समय के साथ नष्ट हो गए। Show
वर्तमान में यह एक शिक्षण का विषय बन गया । इसके इतिहास के संदर्भ में यह कहा जाता है कि इस विद्या पर उस समय विशेष रूप से खोज की गई जिस समय भारत में आर्यों का आगमन हुआ है। ऋग्वेद से इस बात की जानकारी मिलते हैं। कि हजारों वर्ष पहले भारत में खगोल व ज्योतिष शास्त्र की खोज एवं अध्ययन किया गया था। What is Vastu Shastra? vastu shastra ka prayog kaise kiya jata hai ? आदिकाल से ही भारतीय ऋषि मुनियों ने सिद्धांत निवेश एवं संगीत पर गंभीर अध्ययन किया था। इन लोगों ने फलित ज्योतिष को विभिन्न भागों में बांटा था। जिनमें एक वास्तुशास्त्र भी मुख्य है। वास्तु शास्त्र का अर्थ वास्तु शब्द ‘वस्तु’ से बना है और इस संसार में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य के लिए वस्तु की आवश्यकता होती है। जो वास्तु के अंतर्गत आती है । ऋग्वेद में वास्तु का संबंध मकान निर्माण के लिए बताया गया है। वास्तु शास्त्र का उदय एवं संरचना तत्व के पंचभूत आत्म सिद्धांत पर आधारित है। कठोपनिषद में लिखा है कि इस संसार में निर्मित कोई भी वस्तु चाहे वह छोटी हो या बड़ी हो उसका निर्माण पंचतत्व से ही हुआ है वास्तुशास्त्र में बताया गया है कि मकान का निर्माण आकाश ,वायु, अग्नि ,जल और पृथ्वी तत्व को प्राकृतिक स्रोतों से उपलब्ध कराया जाए। भगवत गीता में लिखा है कि संपूर्ण कर्म वास्तव में प्रकृति के गुणों के द्वारा ही संपादित होते हैं। वास्तु शास्त्र का ऋग्वेद में मकान निर्माण के संबंध में उत्तम आदेशों का वर्णन मिलता है। एक स्थान पर सहस्त्र स्थलों के मकान का उल्लेख है । ईसा पूर्व से 150 ईसवी के लगभग हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के नगरों की खोज से नगरों के अवशेष मिले हैं । उन से पता लगता है कि नगर के मकान कितने व्यवस्थित तरीके से बनाए गए थे | कनिष्क कालीन बौद्ध स्तूप भी पाए गए हैं जो अपने आप मे महत्वपूर्ण एवं गौरव शाली है। बाल्मीकि रामायण में अयोध्या नगर के बारे में मिली जानकारी से हमें वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति के बारे में पता चलता है । मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त द्वारा निर्मित पाटिल पुत्र तथा इस में स्थित राज महल की विशालता और सुंदरता का कोई सानी नहीं था। महाभारत में देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए राजमहल का वास्तुशास्त्र अद्भुत उदाहरण है । मुगलकालीन ताजमहल वास्तु शास्त्र का अनुपम उदाहरण है । दक्षिण भारत में स्थित भगवान वेंकटेश्वर तिरुपति का मंदिर वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों पर ही आधारित है । इस का प्रवेश द्वार पूर्व में एवं पानी का स्रोत उत्तर पूर्व में है| यह मंदिर भारत के सबसे वैभवशाली मंदिरो मे एक माना जाता है । भारत और अन्य देशों में वास्तु शास्त्र का क्या प्रभाव है ? What is the effect of Vastu Shastra in India and other countries ?भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में वास्तु शास्त्र को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तथा भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार उनके अध्ययन से हमें यह आभास अवश्य मिलता है कि वायुमंडल में न दिखने वाली जो सूक्ष्म ऊर्जा है उसका ज्ञान इन सभी विद्वानों ने प्राप्त किया था। तथा भवन निर्माण में प्रयोग किया । हर देश की भौगोलिक स्थितियां अलग अलग होती हैं इन्हीं में से एक देश चीन हैं जिसका सांस्कृतिक इतिहास भी बहुत पुराना है। हजारों साल पहले इस बात की खोज की गई थी कि वायुमंडल में ऐसी तरंगे हैं। जो इंसानी जीवन को प्रभावित करते हैं । इन तरंगों में सकारात्मकता तथा नकारात्मकता उजागर होती है। डेढ़ हजार साल पहले भारत पर लगातार विदेशियों के आक्रमण होते रहे | जिससे लोगो का जीवन त्रस्त हुआ। साथ ही साथ आक्रांताओं ने अपनी पहचान बनाए रखने में अधिक रुचि दिखाई तथा वास्तु कला पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। जिसके परिणाम स्वरूप प्राचीन विधाओ को लोग भूलते गए। मजबूर होकर भारतीयों ने उनकी कलाओं भाषा और संस्कृति को अपनाने के लिए विवश होते गए । परंतु भारतीय भी सुदृढ़ मानसिक शक्ति वाले थे। उन्होंने आक्रांताओं की संस्कृति को भी अपने रंग में रंग लिया तथा एक मिली-जुली सभ्यता को जन्म दिया । यह भी पढ़े :
20 वीं सदी का वास्तु शास्त्र क्या होता है ? What is Vastu Shastra of 20th century ?बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में कुछ पश्चिमी विद्वानों का ध्यान भारतीय वास्तुशास्त्रकी ओर गया तो वे दंग रह गए । तब उन्हें ज्ञात हुआ कि वास्तु शास्त्र और शिल्प की जितनी जानकारी भारतीय ग्रंथों में है उतनी कहीं नहीं। जब उन्होंने भारतीय वास्तुशास्त्र की विशेषता अपनानी शुरू की तब भारतीय वास्तुकला की ओर अभिमुख हुए। इसके बाद वास्तुशास्त्र भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया । वास्तु शास्त्र के सिद्धांत क्या होते है ? What is the principle of Vastu Shastra ?वास्तु के कुछ आधारभूत स्तंभ हैं जो कि स्वतः ही स्पष्ट हो जाते हैं। वास्तु शास्त्र में वास्तु पुरुष का बहुत महत्व है। आधारभूत संकल्पना के अनुसार वास्तु शास्त्र में दिशाओं का भी बहुत बड़ा महत्व है। वास्तु शास्त्र भारत की प्राचीनतम विद्या है और इसका संबंध दिशाओं और ऊर्जा से है । दिशाओं का आधार बनाकर आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। ताकि नकारात्मक ऊर्जा मानव जीवन पर अपना प्रभाव न डाल सके। वास्तु के अंतर्गत घर ,ऑफिस ,भूमि की बनावट में कुछ बदलाव करके या कुछ अन्य उपाय जैसे- घर , ऑफिस के मेन दरवाजे पर कांच लगाना, स्वास्तिक लिखना ,ओम लिखना या घर ऑफिस में फेंगशुई रखना जैसे कछुआ, कुबेर इत्यादि चीजें रखना | जिससे कि निश्चित ही वहां की नकारात्मक ऊर्जा बाधित हो और मानव को उन्नति प्राप्त हो। जिन स्त्रोतो को हम नग्न आंखों से नहीं देख सकते , ऊर्जा में परिवर्तित करके उन्हें मानव जीवन को सरल एवं सहज बनाना ही वास्तुशास्त्र है । पुराने समय में बनाए जाने वाले भवन , मंदिर एवं दार्शनिक स्थल वास्तु सिद्धांत के अनुरूप ही होते थे | वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व है। पूर्व , पश्चिम , उत्तर, दक्षिण । मूलतः यह चार दिशाएं होती हैं। परंतु वास्तुशास्त्र में कुल 10 दिशाओं का वर्णन किया गया है | जिसमें आकाश , पाताल व चार मूल दिशाओं के मध्य के चार दिशाएं ईशान , अग्नि, नैऋत्य और वायव्य शामिल हैं जिन्हें विदिशा कहा गया है। इस तरह आकाश-पाताल चार मूल दिशाएं व चार विदिशाएं भी शामिल हैं। पूर्व दिशा से सूर्य उदय होता है, इसलिए घर या भवन के निर्माण के समय इस दिशा को खुला रखना चाहिए । जिससे उगते सूर्य की किरणें घर के अंदर प्रवेश करें । यह दिशा वास्तु के अनुकूल होने से परिवार के सभी सदस्य ऊर्जावान रहते हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने से परिवार में बीमारियों का वास रहता है। मानसिक तनाव रहता है। इस दिशा के स्वामी इंद्र को माना जाता है धन के देवता कुबेर उत्तर दिशा के द्वारपालहैं । इसलिए धन-संपत्ति आदि से जुड़ा कमरा और स्थान उत्तर दिशा में होना चाहिए। ताकि धन के आगमन को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। आग्नेय अग्नि देव को माना जाता है। यानी पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा इस दिशा में वास्तु दोष होने पर घर का वातावरण तनावपूर्ण तथा अशांत रहता है अग्नि से जुड़े कार्यों के लिए यह दिशा सबसे अच्छी होती है घरों में रसोई के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है इस दिशा में वास्तु दोष होने पर मानसिक परेशानियां बनी रहती हैं। दक्षिण दिशा के स्वामी हैं यम देवता है । इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी आती है। और रोजी-रोटी में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है । नैऋत्य दिशा के स्वामी राक्षस है इस दिशा का मतलब है दक्षिण पश्चिम के मध्य की दिशा इस दिशा में वास्तु दोष होने से मानसिक तनाव, रोग ,व्यवहार को दूषित करता है।घर बनाते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। यह दिशा वास्तु दोष मुक्त होने से मनुष्य सेहतमंद एवं स्वस्थ रहते हैं। ईशान दिशा के स्वामी शिव हैं । इस दिशा में पानी का स्थान होता है । इसलिए इस दिशा में नल कुआं पानी की टंकी बनवाने से पानी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। इसलिए यदि इस दिशा में शौचालय बना है, तो परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
वास्तु शास्त्र की कुछ मूल बातें क्या होती है ? What are some basics of Vastu ?वास्तु की मूल बातें काफी व्याख्यात्मक है। उदाहरण के लिए – For example
-: चेतावनी disclaimer :- सभी तांत्रिक साधनाएं एवं क्रियाएँ सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से दी गई हैं, किसी के ऊपर दुरुपयोग न करें एवं साधना किसी गुरु के सानिध्य (संपर्क) में ही करे अन्यथा इसमें त्रुटि से होने वाले किसी भी नुकसान के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे | हमारी वेबसाइट OSir.in का उदेश्य अंधविश्वास को बढ़ावा देना नही है, किन्तु आप तक वह अमूल्य और अब तक अज्ञात जानकारी पहुचाना है, जो Magic (जादू) या Paranormal (परालौकिक) से सम्बन्ध रखती है , इस जानकारी से होने वाले प्रभाव या दुष्प्रभाव के लिए हमारी वेबसाइट की कोई जिम्मेदारी नही होगी , कृपया-कोई भी कदम लेने से पहले अपने स्वा-विवेक का प्रयोग करे ! वास्तु शास्त्र का भगवान कौन है?पौराणिक शास्त्र बताते हैं कि वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होना निश्चित रहता है। वास्तु पुरुष को हर मकान का संरक्षक माना गया है यानी वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है।
वास्तु की उत्पत्ति कैसे हुई?भगवान शिव के पसीने से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव का पसीना धरती पर गिरा तो उससे ही वास्तु पुरुष उत्पन्न होकर जमीन पर गिरा। वास्तु पुरुष को प्रसन्न करने के लिए वास्तु शास्त्र की रचना की गई। वास्तु पुरुष का असर सभी दिशाओं में रहता है।
वास्तु देव के पिता कौन थे?ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वस्तु नामक पत्नी से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। हालांकि पुराणों में वास्तुदेव अर विश्वकर्मा को ब्रह्मा का मानस पुत्र बताया गया है।
वास्तु शास्त्र कितने प्रकार के होते हैं?9- वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का आधार -. त्रिगुण और वास्तु शास्त्र. पंच तत्व और वास्तु शास्त्र. आठ दिशाएं और वास्तु शास्त्र. नौ ग्रह और वास्तु शास्त्र. 16 जोन और वास्तु शास्त्र. 32 पद और वास्तु शास्त्र. 45 उर्जा क्षेत्र. |