वर्तमान में महिलाओं की स्थिति क्या है? - vartamaan mein mahilaon kee sthiti kya hai?

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Published in Journal

Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education [JASRAE] (Vol:15/ Issue: 1)
DOI: 10.29070/JASRAE
Authors:
Bala Devi*,
Subjects:
Multidisciplinary Academic Research

Year: Apr, 2018
Volume: 15 / Issue: 1
Pages: 137 - 142 (6)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/57110
Published On: Apr, 2018

Article Details

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति की, वैदिक तथा मध्यकाल की स्थिति की तुलनात्मक सामाजिक विवेचना | Original Article

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भारत में महिलाओं की स्थिति

  • 20 Aug 2022
  • 19 min read

कार्य का रूप एवं सीमा, राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकायों में प्रतिनिधित्व, संपत्ति तक पहुँच आदि कुछ प्रासंगिक संकेतक हैं, जो समाज में व्यक्तिगत सदस्यों की स्थिति को प्रकट करते हैं। हालाँकि समाज के सभी सदस्यों की, विशेष रूप से महिलाओं की उन कारकों तक एकसमान पहुँच नहीं रही है, जो स्थिति के इन संकेतकों का गठन करते हैं।

पितृसत्तात्मक मानदंड भारतीय महिलाओं के शिक्षा एवं रोज़गार विकल्पों को—जिनमें शिक्षा प्राप्त करने के विकल्प से लेकर कार्यबल में प्रवेश और कार्य की प्रकृति तक सब शामिल हैं, को सीमित या प्रतिबंधित करते हैं।

इस परिदृश्य में देश की लगभग आधी आबादी और नागरिकता की हिस्सेदार महिलाओं की स्थिति पर विचार करना प्रासंगिक होगा कि वर्तमान में स्वतंत्रता, गरिमा, समानता और प्रतिनिधित्व के संघर्ष में वे कहाँ खड़ी हैं।

महिला सशक्तीकरण के बारे में संविधान क्या कहता है?

  • लैंगिक समानता (gender equality) का सिद्धांत भारतीय संविधान में निहित है।
    • संविधान न केवल महिलाओं को समानता की गारंटी देता है, बल्कि राज्य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान करता है ताकि उनके संचयी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक अलाभ की स्थिति को कम किया जा सके।
  • महिलाओं को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किये जाने (अनुच्छेद 15) और विधि के समक्ष समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) का मूल अधिकार प्राप्त है।
  • संविधान में प्रत्येक नागरिक के लिये यह मूल कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वह महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध प्रचलित अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करे।

भारत में वे कौन-से क्षेत्र हैं जहाँ महिलाओं ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है?

  • वर्षों से महिलाओं ने समाज के अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है। लेकिन आज बदलते समय के साथ उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली है, उन्होंने लैंगिक रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ दिया है और अपने सपनों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मज़बूती से खड़ी हैं। उदाहरण के लिये हम कुछ महिलाओं और उनकी हाल की उपलब्धियों को देख सकते हैं:
    • सामाजिक कार्यकर्त्ता:
      • सिंधुताई सपकाळ(पद्म श्री 2021) – अनाथ बच्चों की परवरिश
    • पर्यावरणविद्:
      • तुलसी गौड़ा(पद्म श्री 2021) – वे ‘वन विश्वकोश’ (Encyclopaedia of Forest) पुकारी जाती हैं
    • रक्षा क्षेत्र:
      • अवनी चतुर्वेदी – एकल रूप से लड़ाकू विमान (मिग-21 बाइसन) का उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला
    • खेल क्षेत्र:
      • मैरी कॉम – ओलिंपिक में बॉक्सिंग में मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला।
      • पीवी सिंधु – दो ओलंपिक पदक (कांस्य- टोक्यो 2020) और (रजत- रियो 2016) जीतने वाली पहली भारतीय महिला।
      • भारतीय महिला क्रिकेट टीम – फाइनलिस्ट (सिल्वर मेडल), राष्ट्रमंडल खेल 2022
    • अंतर्राष्ट्रीय संगठन में:
      • गीता गोपीनाथ – अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री।
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी:
      • टेसी थॉमस मिसाइल वुमन ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रतिष्ठित (अग्नि-V मिसाइल परियोजना से संबद्ध)
    • शिक्षा क्षेत्र:
      • शकुंतला देवी – सबसे तेज़ मानव संगणना का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड।
      • शानन ढाका – राष्ट्रीय रक्षा अकादमी प्रवेश परीक्षा (NDA का पहला महिला बैच) में AIR 1
      • UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2021 में शीर्ष 3 अखिल भारतीय रैंक महिला उम्मीदवारों द्वारा हासिल की गई।

भारत में महिलाओं से संबंधित चिंता के वर्तमान क्षेत्र

  • पुरुष महिला साक्षरता दर में अंतर: हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये शिक्षा के अवसर की समानता सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में महिलाओं की साक्षरता दर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी बदतर है।
    • ग्रामीण भारत में विद्यालय दूर स्थित हैं और सुदृढ़ स्थानीय कानून व्यवस्था के अभाव में बालिकाओं के लिये स्कूली शिक्षा के लिये लंबी दूरी की यात्रा करना असुरक्षित लगता है।
    • कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और बाल विवाह जैसी पारंपरिक प्रथाओं ने भी समस्या में योगदान दिया है जहाँ कई परिवारों को बालिकाओं को शिक्षित करना आर्थिक रूप से अव्यवहारिक लगता है।
  • लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता: अभी भी भारतीय समाज का एक बड़ा तबका यह मानता है कि वित्तीय ज़िम्मेदारियाँ निभाने और बाहर जाकर कार्य करने की भूमिका पुरुषों की है।
    • लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता ने आमतौर पर महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव को जन्म दिया है।
      • उदाहरण के लिये, महिलाओं को बच्चों के पालन-पोषण संबंधी उनके कार्यों के कारण कर्मियों/श्रमिकों के रूप में कम विश्वसनीय माना जाता है।
  • समाजीकरण प्रक्रिया में अंतर: भारत के कई भागों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरुषों और महिलाओं के लिये अभी भी समाजीकरण के मानदंड अलग-अलग हैं।
    • महिलाओं से मृदुभाषी, शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनसे निश्चित तरीके से चलने, बात करने, बैठने और व्यवहार करने की अपेक्षा होती है। इसकी तुलना में पुरुष अपनी इच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है।
  • विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: पूरे भारत में विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है।
    • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU) और संयुक्त राष्ट्र- महिला (UN Women) की एक रिपोर्ट के अनुसार, संसद में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या के मामले भारत 193 देशों के बीच 148वें स्थान पर था।
  • सुरक्षा संबंधी चिंता: भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के बावजूद महिलाओं को भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी  जबरन वेश्यावृत्ति, ऑनर किलिंग, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी विभिन्न स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
  • पीरियड पॉवर्टी’ (Period Poverty): पीरियड पॉवर्टी विश्व के कई देशों, विशेष रूप से भारत में गंभीर चिंता का विषय है. पीरियड पॉवर्टी मासिक धर्म को ठीक से प्रबंधित करने के लिये आवश्यक स्वच्छता उत्पादों, मासिक धर्म शिक्षा और स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई सुविधाओं तक पहुँच की कमी को इंगित करती है।
    • वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) द्वारा किये गए एक अध्ययन से प्रकट हुआ कि भारत में केवल 13% बालिकाओं को पहले मासिक धर्म से गुज़रने के पूर्व से इसके बारे में पता था।
  • ‘ग्लास सीलिंग’: न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में महिलाओं को एक सामाजिक बाधा का सामना करना पड़ता है जो उन्हें प्रबंधन क्षेत्र में शीर्ष नौकरियों तक पदोन्नत होने से रोकता है।

महिला सशक्तीकरण से संबंधित प्रमुख सरकारी योजनाएँ

  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
  • उज्ज्वला योजना
  • स्वाधार गृह
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
  • प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना
  • वन स्टॉप सेंटर

आगे की राह

  • शिक्षा के बेहतर अवसर: महिलाओं को शिक्षा देने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा प्रदान करना। महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने में शिक्षा अहम भूमिका निभाती है।
    • यह समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने का भी अवसर देती है। शिक्षा बेहतर तरीके से निर्णय लेने में सक्षम बनाती है और आत्मविश्वास जगाती है।
    • बालिकाओं के लिये शिक्षा के अधिकार की पुष्टि करने और शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव से मुक्त रहने के उनके अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा नीति को और अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता है।
      • इसके साथ ही, शिक्षा नीति को युवाओं और बालकों को लक्षित करना चाहिये कि बालिकाओं और महिलाओं के प्रति उनके दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आए।
  • स्किलिंग और माइक्रो फाइनेंसिंग: कौशल निर्माण या स्किलिंग और सूक्ष्म वित्तपोषण या माइक्रो फाइनेंसिंग से महिलाएँ आर्थिक रूप से स्थिर बन सकती हैं और इस प्रकार वे समाज के दूसरे लोगों पर निर्भर नहीं बनी रहेंगी।
    • महिलाओं को बाज़ार की मांग के अनुरूप गैर-पारंपरिक कौशल में प्रशिक्षण देना और महिलाओं के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में वृहत रोज़गार सृजित करना वित्तीय सशक्तीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • महिलाओं की सुरक्षा: देश भर में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान सरकार की पहल और तंत्र के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाने हेतु एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति तैयार की जानी चाहिये।
    • ‘पैनिक बटन’, ‘निर्भया पुलिस स्क्वॉड’ महिला सुरक्षा की दिशा में कुछ सराहनीय कदम हैं।
    • महिलाओं का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013’ को महिलाओं के लिये सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने और महिलाओं के स्थिति और अवसर की समानता के अधिकार का सम्मान करने वाले एक सक्षम वातावरण का निर्माण करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • शासन के निम्नतम स्तर पर निर्दिष्ट कार्य: शासन में अधिक समावेशीता लाने और भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिये शासन के निम्नतम स्तर पर परियोजनाओं को तैयार करने, समर्थन करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये:
    • स्वागतम् नंदिनी (कटनी, मध्य प्रदेश): यह पहल बालिकाओं के जन्म का उत्सव मनाने के उद्देश्य से की गई है।
      • लाडली लक्ष्मी योजना’ के तहत बेटी के जन्म का जश्न मनाने के लिये एक छोटे से आयोजन के साथ नवजात बच्चियों के माता-पिता को बेबी किट प्रदान किया जाता है।
    • नन्हे चिन्ह (पंचकुला, हरियाणा): आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWWs) द्वारा प्रोत्साहित इस कार्यक्रम के तहत बच्चियों को उनके परिवारों द्वारा स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्रों में लाया जाता है।
      • उनके पैरों के निशान एक चार्ट पेपर पर अंकित किये जाते हैं और आंगनवाड़ी केंद्र की दीवार पर माँ और बच्चियों के नाम के साथ लगाए जाते हैं।
  • शिक्षा में प्रोत्साहन: बालिकाओं के उच्च ड्रॉपआउट दर पर अंकुश के लिये उच्च शिक्षा हेतु अपेक्षाकृत उच्च वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • शिक्षा, सूचना और संचार अभियानों के माध्यम से समान बाल लिंगानुपात प्राप्त करने में सक्षम होने वाले ग्रामों/ज़िलों को पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
    • ई-गवर्नेंस पर अतिरिक्त बल दिया जाना चाहिये ताकि छात्राओं हेतु छात्रवृत्ति के लिये केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जारी किये जाने वाले परिव्यय की समयबद्ध जाँच हो सके।
  • ग्रामीण स्तर पर बुनियादी सुविधाओं में सुधार: बुनियादी ढाँचे में सुधार से घरेलू कार्य का बोझ कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, ग्रामीण महिलाओं के घरेलू कार्यों में प्रायः पानी और ईंधन की लकड़ी लाने जैसे कठिन कार्य शामिल होते हैं। पाइप से पेयजल की आपूर्ति और स्वच्छ प्राकृतिक गैस (जिसमें सुधार आ भी रहा है) इस भार को कम करेगा।
  • महिला विकास से महिला नेतृत्वकारी विकास की ओर: महिलाओं को भारत की प्रगति और विकास के वास्तुकार की भूमिका सौंपी जानी चाहिये, बजाय इसके कि वे विकास के फल की निष्क्रिय प्राप्तकर्ता भर बनी रहें।
    • महिला नेतृत्वकारी विकास का शृंखला प्रभाव निर्विवाद है क्योंकि एक शिक्षित और सशक्त महिला आने वाली पीढ़ियों के लिये शिक्षा और सशक्तीकरण सुनिश्चित करेगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में कौन-सी बाधाएँ मौजूद हैं? महिला सशक्तीकरण से संबंधित कुछ प्रमुख सरकारी पहलों पर प्रकाश डालें।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्रारंभिक परीक्षा 

प्रश्न: स्वाधार और स्वयं सिद्ध महिलाओं के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई दो योजनाएँ हैं। उनके बीच अंतर के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2010) 

  1. स्वयं सिद्ध उन लोगों के लिये है जो प्राकृतिक आपदाओं या आतंकवाद से बची महिलाओं, ज़ेलों से रिहा महिला कैदियों, मानसिक रूप से विकृत महिलाओं आदि जैसी कठिन परिस्थितियों में हैं, जबकि स्वाधार स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के समग्र सशक्तीकरण के लिये है। 
  2. स्वयं सिद्ध स्थानीय स्व-सरकारी निकायों या प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है जबकि स्वाधार राज्यों में स्थापित आईसीडीएस इकाइयों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d) 


मुख्य परीक्षा 

प्रश्न 1: “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (2019) 

प्रश्न 2: भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चर्चा कीजिये? (2015) 

प्रश्न 3: महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013) 

आज के समय में महिलाओं की स्थिति क्या है?

शिक्षा के बेहतर अवसर: महिलाओं को शिक्षा देने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा प्रदान करना। महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने में शिक्षा अहम भूमिका निभाती है। यह समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने का भी अवसर देती है। शिक्षा बेहतर तरीके से निर्णय लेने में सक्षम बनाती है और आत्मविश्वास जगाती है।

वर्तमान में भारत में महिलाओं की स्थिति क्या है?

भारत में महिलाओं की स्थिति सदैव एक समान नही रही है। इसमें युगानुरूप परिवर्तन होते रहे हैं। उनकी स्थिति में वैदिक युग से लेकर आधुनिक काल तक अनेक उतार - चढ़ाव आते रहे हैं तथा उनके अधिकारों में तदनरूप बदलाव भी होते रहे हैं। वैदिक युग में स्त्रियों की स्थिति सुदृढ़ थी , परिवार तथा समाज में उन्हे सम्मान प्राप्त था।

वर्तमान में महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन हुआ है?

महिलाओं की अधिकारों की स्थिति में हाल के दशकों के दौरान अलबत्ता काफ़ी सुधार देखा गया है लेकिन पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता (लिंग भेद) और परिवारो में ही महिलाओं के अन्य बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर मामले अब भी सामने आते हैं.

वर्तमान समय में नारी के जीवन में क्या क्या बदलाव आए हैं उदाहरण सहित लिखिए?

संयुक्त परिवारों के विघटन होने से जैसे-जैसे एकांकी परिवार की संख्या बढ़ी इनमें न केवल महिलाओं को सम्मानित स्थान मिलने लगा बल्कि लड़कियों की शिक्षा को भी एक प्रमुख आवश्यकता के रूप में देखा जाने लगा । वातावरण अधिक समताकारी होने से महिलाओं को अपने वयक्तित्व का विकास करने के अवसर मिलने लगे । महिला शिक्षा समाज का आधार है ।