विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन हैं? - vikaas ko prabhaavit karane vaale kaarak kaun kaun hain?

विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन हैं? - vikaas ko prabhaavit karane vaale kaarak kaun kaun hain?


विकास को प्रभावित करने वाले कारक Factors Influencing Development

विकास को प्रभावित करने वाले कारकों या तत्व को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:- 

1. अनुवांशिक कारक:- अनुवांशिक कारकों के अंतर्गत जन्म से प्राप्त शारीरिक संरचना आकार, प्रकार तथा बुद्धि आदि बालकों के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं | अनुवांशिक गुणों के लिए पीटरसन ने कहा है "किसी व्यक्ति को माता-पिता के माध्यम से उसके पूर्वजों के गुण प्राप्त होते हैं उन्हें अनुवांशिकता कहा जाता है"|

इस प्रकार निम्नलिखित जन्मजात अथवा जैविक विशेषताएं मानव के विकास को प्रभावित करते हैं :-

(a) शारीरिक संरचना:- शारीरिक संरचना के अंतर्गत शरीर की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, भार, चेहरा आदि आते हैं | जो लोग शरीर से लंबे, वरिष्ठ, सुंदर तथा आकर्षक होते हैं, वे प्राय खेलकूद, बयान, जिमनास्टिक, मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में सफल रहते हैं | इसी तरह बहुत नाटे या मोटे लोग भी अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चयन कर तदनुसार अपना विकास करते हैं |

(b) लिंग भेद:- शारीरिक और मानसिक विकास पर लिंग भेद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है | लड़कियों का शारीरिक विकास लड़कों की अपेक्षा शीघ्र होता है और वे एक परिपक्व हो जाती हैं | बालिकाओं का मानसिक विकास लड़कों की अपेक्षा से शीघ्र  होती है |

(c) संवेगात्मक विशेषताएं:- प्रत्येक व्यक्ति में मूल प्रवृत्तियां और  संवेग जन्म से ही अधिक मात्रा में पाए जाते हैं | उदाहरण के रूप में कुछ बालक जन्म से ही क्रोधी होते हैं तथा कुछ जन्म से ही विनम्र तथा सहृदय होते हैं | दोनों के व्यक्तित्व के विकास में उनकी मूल प्रवृत्तियों का प्रभाव देखने को मिलता है |

(d) बुद्धि:-  बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में बुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है | अनुभव के आधार पर यह पाया गया है कि अधिक बुद्धि वाले बालको का विकास तीव्र गति से होता है |

(e) वंश या प्रजाति:-  मानवशास्त्र का अध्ययन करने वालों ने बताया है कि विभिन्न देशों की प्रजातियों का विकास विभिन्न मात्रा में पाया जाता है | उदाहरण के लिए नीग्रो लोगों के बच्चों की प्रोड़ता शुरू के वर्षों में श्वेत वर्ण वालों के बच्चों की पूर्णता से 80% अधिक होती है |

(f) आंतरिक संरचना:-  शरीर के बाहर की संरचना के साथ-साथ इतनी अतिरिक्त संरचना भी व्यक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | इसके अंतर्गत हड्डियों की बनावट मस्तिष्क की संरचना पीनियल थायराइड तथा पैरा थायराइड ग्रंथि एवं यकृत अग्नाशय ह्रदय आदि की क्रिया प्रणाली का विशेष योगदान रहता है | यह समस्त आंतरिक अंग व्यक्ति के शारीरिक मानसिक और चारित्रिक विकास के लिए उत्तरदाई होते हैं |

2. वातावरण:- अनुवांशिक कारकों के बाद वातावरण से संबंधित अनेक कारक व्यक्ति के विकास में सहायक होते हैं | जहां तक शारीरिक विकास की बात है उस पर वातावरण का बहुत कम प्रभाव पड़ता है किंतु मानसिक विकास पर वातावरण का पर्याप्त प्रभाव देखने को मिलता है | परिवेश का यह प्रभाव बाल्यवस्था से लेकर वृद्धावस्था और जीवन के अंतिम क्षण तक पढ़ता रहता है | वातावरण के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में एक तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है वातावरण मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में अपना कोई मौलिक योगदान नहीं करता बल्कि जो गुण और विशेषताएं उसे आनुवंशिकता से प्राप्त होती हैं उनका पूर्ण विकास करने में यह बहुत अधिक सहायक होता है | प्राय ऐसा देखने में आता है कि व्यक्ति के अनेक ऐसे गुण जिनका विकास होना उसके सफल जीवन के लिए बहुत आवश्यक है होता है समुचित वातावरण और परिस्थितियां ना मिल पाने के कारण दबकर अविकसित रह जाते हैं |

Boring, Weld and Langfield ने वातावरण के प्रभाव को इस तरह व्यक्त किया है "The environment is everything that affects the individual except his genes." 

इस प्रकार वातावरण निम्न कारकों के माध्यम से मानव विकास को प्रभावित करते हैं:-

(a) जीवन की आवश्यक सुविधाएं:- मनुष्य के भौतिक एवं सामाजिक जीवन से जुड़ी हुई मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति विकास में बहुत अधिक सहायक होती है | रोटी, कपड़ा, मकान, विद्यालय, पौष्टिक तथा संतुलित भोजन शुद्ध वायु एवं प्रकाश आदि कुछ ऐसे सुविधाएं हैं जो व्यक्ति के समुचित विकास के लिए बहुत आवश्यक है | यह सुविधाएं जितनी उत्तम कोटि की होगी मनुष्य का विकास भी उतना ही श्रेष्ठ कोटि का होगा | शिक्षा द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बालको को किसी आयु में कौन-कौन सी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए |

(b) समाज और संस्कृति:- विकास पर समाज और संस्कृति का भी प्रभाव पड़ता है | बालक के विकास पर उसके समाज तथा भौतिक एवं अभौतिक दोनों प्रकार की संस्कृतियों का प्रभाव पड़ता है | समाज में प्रचलित रीति, रिवाज, मान्यताएं और नैतिक मूल्य विकास की गति और दिशा का निर्धारण करते हैं | सामाजिक संस्थाएं भी अनेक प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा व्यक्ति के विकास में सहयोग प्रदान करती हैं |

(c) रोग तथा चोट:- बालक के विकास को रोग और चोट भी प्रभावित करते हैं | इसी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक चोट बालक के विकास को रोक देती है या उचित दिशा में विकास नहीं होने देती | विषैली दवाओं के प्रभाव से भी विकास रुक जाता है |  शैशव अवस्था या बाल्यावस्था में गंभीर रोग हो जाने पर कभी-कभी उसका प्रभाव बालक के विकास को अवरुद्ध कर देती है |

(d) पारिवारिक पृष्ठभूमि:- पारिवारिक वातावरण और परिवार में स्थान बालक के विकास को काफी प्रभावित करता है | यदि परिवार आर्थिक रूप से संपन्न और खुले विचारों वाला है तो उसके बालक भी स्वस्थ खुले विचारों के होंगे | परिवार में बालक का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है | परिवार में द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ बच्चे का विकास प्रथम बच्चे की अपेक्षा त्रिविता से होती है क्योंकि बाद में उत्पन्न बच्चों को विकसित वातावरण प्राप्त होता है तथा उन्हें बड़े भाई-बहनों के अनुकरण करने का अधिक अवसर मिलता है |

(e) विद्यालय:- बालक के विकास में विद्यालय के वातावरण, अध्यापक तथा शिक्षा के साधनों की  निर्णायक भूमिका होती है | जिन विद्यालयों में कक्षा शिक्षण के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है, वहां बालको को अपनी प्रतिभा के विकास के अवसर मिलते हैं | जिन विद्यालयों में बालकों के लिए निर्देश परामर्श सेवाएं एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होती हैं, वहां के बालकों को अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता मिलती है | अध्यापकों का व्यवहार भी बालको के विकास पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालता है |

विकास को प्रभावित करने वाले कौन से कारक हैं?

विकास को प्रभावित करने वाले कारक - factors affecting growth.
जन्म से पूर्व परिवेश की परिस्थितियाँ ... .
पोषण ... .
शारीरिक विकार तथा रोग ... .
बुद्धि ... .
अंतःस्त्रावी ग्रन्थियाँ ... .
भौतिक पर्यावरण ... .
अभिप्रेरणा ... .
परिवार की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति.

विकास के विभिन्न कारक क्या है?

जो बालक नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करते हैं तथा उनकी व्यायाम करने में रुचि है, ऐसे बालकों का विकास तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत जो बालक शारीरिक व्यायाम नहीं करते उनका शारीरिक विकास मन्द गति से होता है। इसके परिणामस्वरूप गत्यात्मक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।