विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला का क्या महत्व है? - vigyaan shikshan mein prayogashaala ka kya mahatv hai?

प्रयोगशाला विधि जीव विज्ञान की शिक्षा प्रयोगशाला के बिना अपूर्ण हैं इस विधि के माध्यम से छात्र विषय वस्तु को सरलता से ग्रहण करते हैं। माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक विद्यालय में प्रयोगशाला अनिवार्य हैं यह विधि जीव विज्ञान शिक्षण की सरलतम विधि हैं। यह विधि शिक्षक के संरक्षण में चलने वाली पद्धति हैं। इसके लिये प्रत्येक विद्यालय में एक प्रयोगशाला होती हैं, जहां छात्र अध्यापक के नेतृत्व में प्रयोग करते हैं।

इस विधि में छात्रों को स्वयं प्रयोगशाला में प्रयोग करनें का अवसर मिलता हैं छात्रों को शिक्षक आवश्यक निर्देश देकर प्रयोग हैंत ु उपकरण तथा सामग्री देते हैं जिनकी सहायता से छात्र स्वयं निरीक्षण करते हैं परीक्षण करते हैं अथवा Dissection करते हैं जीव विज्ञान विषय में मुख्य रूप से जन्तुओं का Dissection, हड्डियों का अध्ययन, स्लाइड तैयार करना, पौधे तथा जन्तुओं को सुरक्षित काटना तथा उनको रंगना, शरीर क्रिया सम्बन्धी प्रयोग, पौधे तथा जन्तुओं को सुरक्षित रखना तथा जड़ना आदि कार्य किया जाता हैं। 

यह सभी कार्य छात्र शिक्षक के संरक्षण में प्रयोगशाला में करते हैं प्रयोग करने के बाद निरीक्षण, चित्र खींचना, प्रयोग सम्बन्धी निष्कर्ष तथा विवरण छात्र अपनी प्रयोगात्मक पुस्तिका में करते हैं इसके उपरान्त शिक्षक इसका मूल्यांकन करता हैं। इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता हैं तथा शिक्षक निरीक्षण करते हैं इसके द्वारा छात्रों में प्रयोगात्मक योग्यता का विकास होता हैं। प्रयोगशाला में ही यह विधि नहीं समाप्त हो जाती बल्कि तालाब, नदियां, झील, उद्यान, पहाड़, जंगलों कृषि क्षेत्र जैव -संग्रहालय आदि भी प्रयोगशाला के अंग हैं।

इस विधि द्वारा खोज की प्रवृति भी जाग्रत होती हैं। उचित विधि के द्वारा किसी समस्या या प्रयोग के परिणाम पर पहुँचना ओर खोज द्वारा प्राप्त तथ्यों का उल्लेख करना इसी विधि के अंग हैं।

प्रयोगशाला विधि के दोष

  1. अनेक प्रयोग वास्तविक कार्य नहीं होते हैं, इसलिये प्रायोगिक कार्य नीरस हो जाता हैं। 
  2. नकल की सम्भावना अधिक हो जाती हैं, अतः छात्रों के परिणाम एवं निष्कर्षो पर निगरानी रखना आवश्यक हैं। 
  3. यह निश्चित नहीं कि वैज्ञानिक विधियों से समस्या का हल करना सीखा जाये, अतः बाद के जीवन में इसकी उपयोगिता संदिग्ध हैं। 
  4. कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं, जिन्हें प्रदर्शन विधि द्वारा अच्छी प्रकार समझाया जा सकता हैं। 
  5. छात्रों की सक्रियता न हो तो यह विधि असफल होती हैं। 
  6. नाजुक उपकरणों का छात्रों द्वारा ट ूटने का भय रहता हैं। 
  7. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की प्राप्ति इस पद्धति द्वारा सम्भव नहीं हैं। 
  8. जीव विज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष पर कम बल दिया जाता हैं। 
  9. उन प्रकरणों के लिये उपयोगी नहीं हैं। भावी जीवन में भी अधिकांश बालकों के लिये इसका कोई उपयोग नहीं रह पाता। 
  10. यह विधि व्यक्ति सापेक्ष हैं अतः इसके द्वारा विज्ञान शिक्षण की सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती। 
  11. छात्रों के लिये योजना बनाने, व्यक्तिगत रूप से उनके कार्य का निरीक्षण करने एवं उपकरण की देखभाल करने से व्यर्थ में ही अध्यापक का बहुत सा समय नष्ट हो जाता हैं।

प्रयोगशाला विधि में ध्यान रखने योग्य बातें

छात्र जिस जन्तु, पौधे (तने, जड़, पती) की चीर फाड, पहचान करना, प्रयोग आदि कार्य करें उसकी जानकारी तथा तैयारी प्रारम्भ में ही कर लें।

छात्रों को प्रयोगशाला के कार्यों को प्रयोगशाला में ही ईमानदारी से समाप्त करना चाहिए।

अपनी समस्या के समाधान के लिये छात्रों को भी प्रयोग के सुझाव देने चाहिए तथा इन प्रयोगों को विधिवत सावधानी के साथ ओर ठीक ठीक करना चाहिए। सरल ओर अप्रत्ययी प्रयोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए ओर इनका प्रयोगात्मक महत्व दैनिक जीवन से संबंधित परिस्थितियों द्वारा समझाना चाहिए।

प्रयोगात्मक कार्य करने के उपरान्त छात्रों को संबंधित सामग्री तथा उपकरणों को सावधानी पूर्वक यथा स्थान रख देना चाहिए। मेज इत्यादि साफ कर देनी चाहिए, ताकि छात्रों के अगले समूह को कठिनाई न हो।

प्रयोगशाला में बातचीत न करें तथा संबंधित समस्या को अध्यापक से पूछे इससे शांतिपूर्ण वातावरण रहेगा तथा छात्रों की एकाग्रता बनी रहेंगी।

चीर फाड करने के उपरान्त जन्तु अथवा पेड़ पौधों को कूड़ादान या उचित स्थान पर फेंके, ताकि प्रयोगशाला स्वच्छ रहें।

इस विधि की सफलता के लिये प्रयोग कार्य की उत्तम योजना, प्रयोगों की विविधता, उपकरणों एवं यन्त्रों (सामग्री) की यथोचित मात्रा एवं क्रियाशीलता आवश्यक हैं प्रयोग सम्बन्धी सहायक पुस्तकें एवं अध्यापक का सहयोग, निर्देशन एवं पथ प्रदर्शन भी इस विधि की सफलता के लिये आवश्यक हैं।

प्रयोगशाला विधि के गुण

  1. इस विधि द्वारा दिया गया ज्ञान रूचिकर तथा स्थायी होता हैं, साथ ही विद्यार्थी यर्थाथता से परिचित होकर स्वयं करके सीखता हैं। 
  2. यह समस्या हल करने की उत्तम विधि हैं समस्या का हल प्रयोगों के आधार पर किया जाता हैं। 
  3. छात्रों में निर्णय शक्ति, तर्क, निरीक्षण आदि गुणों का विकास होता हैं। 
  4. सीखने के उत्तम अवसर छात्र को प्राप्त होते हैं। 
  5. छात्र क्रियाशील रहता हैं तथा उसमें आत्मविश्वास पैदा होता हैं।
  6. छात्र विभिन्न उपकरणों का स्वयं प्रयोग करते हैं इसमें उन्हें यंत्रों की क्रियाविधि का प्रत्यक्ष ज्ञान होता हैं इसके अतिरिक्त छात्रों में प्रयोग कोशल का विकास भी होता हैं।
  7. इससे विद्यार्थी में वैज्ञानिक प्रवृति उत्पन्न होती हैं छात्र निरीक्षण करने, तर्क करने प्रयोग करने, स्वतंत्र चिन्तन करने में दक्षता प्राप्त करना हैं।

(1) छात्रों की संख्या; (2) प्रत्येक छात्र के लिए आवश्यक स्थान; (3) प्रयोगशाला में प्रयुक्त विभिन्न उपकरण।

जीव-विज्ञान प्रयोगशाला में मुख्य प्रयोगशाला के साथ ही स्टोर तथा तैयारी कक्ष का होना जरूरी है। इसके साथ ही प्रयोगशाला में इस तरह की व्यवस्था भी जरूरी है जिससे जरूरत पड़ने पर कक्ष को फिल्म एवं स्लाइड प्रोजेक्टर के उपयोग के लिए कमरे में अँधेरा करके डार्क रूम की तरह प्रयुक्त किया जा सके।

नियोजन :

जीव-विज्ञान प्रयोगशाला के निर्माण की रूपरेखा तैयार करने हेतु जीव-विज्ञान-शिक्षक, शिक्षाधिकारी, प्राचार्यों तथा वास्तुकलाविद के पारस्परिक विचार-विनिमय के समय निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-

1. जीव-विज्ञान प्रयोगशाला के पास अन्य शिक्षण-कक्षाएँ नहीं होनी चाहिए जिससे कक्षाओं के खाली रहने या बदलने के समय होने वाले शोर से प्रयोगशाला में व्यवधान हो।

2. जहाँ तक सम्भव हो, प्रयोगशालाएँ शिक्षण-कक्षों के समूह से दूर होनी चाहिए।

3. प्रयोगशाला क्रीडा-स्थल से दूर होनी चाहिए।

4. जीव-विज्ञान प्रयोगशाला के साथ ही स्टोर कक्ष, तैयारी कक्ष, ग्रीन हाउस आदि का निर्माण भी करना चाहिए।

5. प्रयोगशाला का निर्माण एवं सज्जा कार्य इस तरह हो कि प्रयोगशाला में कम-से-कम शोर हो।

जीव-विज्ञान प्रयोगशाला व्यवस्था :

प्राय: 30 छात्रों के लिए हम प्रयोगशाला का निर्माण निम्न तरह से करेंगे-

विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला का क्या महत्व है? - vigyaan shikshan mein prayogashaala ka kya mahatv hai?

S = फर्श तल से 2'-6" की ऊँचाई पर क्रंकीट का 2'-0" चौड़ा स्लैब।

A = स्बैल से 1'-0' की ऊँचाई पर बनी 10” गहरी दीवार अलमारी

काँच के सरकने वाले दरवाजों सहित

FA मत्स्यालय हेतु स्थान

W काँच की खिड़की 3'0" x 4'-6"

D = दरवाजा 4-0" x 7-0"

स्थिति- जहाँ तक सम्भव हो, प्रयोगशाला ग्राउण्ड फ्लोर पर होनी चाहिए जहाँ कि इसके विस्तार की व्यवस्था भी उपलब्ध हो। प्रयोगशाला की स्थिति इस तरह हो कि प्रकाश तथा धूप प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो।

ले-आउट-व्यवस्था- 12 मीटर लम्बे एवं 7 मीटर चौड़े प्रयोगशाला कक्ष में लगभग 40 छात्र एक साथ कार्य कर सकते हैं। इसमें प्रयोगशाला के तीन तरफ फर्श तल से 22-6" की ऊँचाई पर 2'-0” चौड़ा क्रंकीट का स्लैब निकला रहता है। इस स्लैब का उपयोग एक्वेरियम, वाइवेरियम एवं प्राणि तथा वनस्पति विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों को व्यवस्थित करने में किया जा सके। कक्ष की दीवारें एवं फर्श प्लास्टर युक्त हो।

साज-सज्जा-प्रयोगशाला में अध्यापक की मेज लगभग 6' x 4' x 3' की होनी चाहिए। इसके अलावा प्रकाश को उन्मुक्त करती हुई 6' x 4' x 2½ की मेज होनी चाहिए। इन मेजों पर छात्र जीव-विज्ञान का प्रायोगिक कार्य; जैसे-नमूनों का अध्ययन, विच्छेदन, स्लाइड बनाना आदि सुमगता से कर सकें। कक्ष में संग्रहालय सामग्री रखने एवं विभिन्न कार्यों के लिए उपकरण तथा एक्वेरियम आदि रखने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।

कक्ष में स्लैब से 1 फीट की ऊंचाई पर बनी 10” गहरी दीवार अलमारी काँच के सरकने वाले दरवाजों सहित बनी होनी चाहिए। इस अलमारी का उपयोग संग्रहालय सामग्री रखने हेतु किया जा सकता है।

प्रकाश, पानी तथा निकास की व्यवस्था- जीव-विज्ञान प्रयोगशाला में उचित प्रकाश, पानी तथा निकास की पर्याप्त व्यवस्था जरूरी है। दरवाजे, खिड़कियाँ एवं रोशनदान इस तरह व्यवस्थित हों कि अवरोधमुक्त प्रकाश कमरे में आ सके। प्राकृतिक प्रकाश के अभाव में अप्राकृतिक प्रकाश जरूरी है। कक्ष में 3' x 4 - 6" आकार की खिड़कियों के माध्यम से प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था हो जाती है। 4' x 0" x 7' x 0” के दरवाजे चित्र D से प्रदर्शित हैं।

कक्षा में जल के निकास हेतु 4 सिंक पर्याप्त हैं जिनका आकार 15" x 11" x 8" हो एवं दीवार के साथ लगे हों। पानी के निकास की भी पर्याप्त व्यवस्था जरूरी है।

श्यामपट- अध्यापक मंच के पीछे एक बड़ा श्यामपट 5' x 3' आवश्यक है, जिसका उपयोग छात्रों को विभिन्न कठिन स्थलों के स्पष्टीकरण, चित्र बनाने तथा विभिन्न निर्देशों के लेखन के लिए किया जा सकता है।

कक्ष में प्रकाश आने के सभी स्थलों; जैसे-खिड़कियों, दरवाजों तथा रोशनदानों पर काले परदों की व्यवस्था रहनी चाहिए जिससे जरूरत पड़ने पर कक्ष को डार्क रूम में परिवर्तित करके प्रोजेक्टर के माध्यम से विषय के स्पष्टीकरण के लिए स्लाइड का उपयोग किया जा सके।

स्टोर कक्ष- प्रयोगशाला में विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों, रसायनों तथा आवश्यक सामग्री के लिए आवश्यकतानुसार स्टोर कक्ष जरूरी है।

तैयारी कक्ष- व्याख्यान एवं अध्यापन हेतु जरूरी सामग्री को एकत्र करने के लिए इस कक्ष को प्रयोग में लाते हैं। कभी-कभी दर्शनीय प्रयोग को पहले से करके देख लिया जाता है जिससे उपकरणों की त्रुटियों का निराकरण किया जा सके।

जीव-विज्ञान-उपकरण तथा उनका रख-रखाव- भारत एक विकासशील देश है। यहाँ के वर्तमान संसाधनों को देखते हुए हर विद्यालय में जीव-विज्ञान-शिक्षण हेतु जरूरी समस्त उपकरणों को प्रदान करना सम्भव नहीं है। ऐसी परिस्थिति में उपलब्ध सामग्री का रख-रखाव एवं उपयोग कार्य-कुशलता के उच्चतम स्तर पर होना चाहिए। अतः जरूरी है कि जीव-विज्ञान अध्यापक को जरूरत के क्रम से उपकरणों की खरीद, उनके रख-रखाव तथा विभिन्न आवश्यक प्रयोगशाला तकनीकों का ज्ञान हो।

प्रयोगशाला में उपकरणों की मात्रा छात्रों की वैयक्तिक आवश्यकता, प्रदर्शन सामग्री, उपलब्धि धनराशि तथा पाठ्यक्रम की जरूरत पर निर्भर है।

उपकरणों के खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें- जीव-विज्ञान उपकरण अच्छी गुणवत्ता का खरीदना चाहिए। कम मात्रा में उपयोग में आने वाले उपकरण एवं प्रदर्शन के उपकरण विशेष रूप से अच्छी क्वालिटी के हों। प्रदर्शन उपकरणों का आकार यथासम्भव बड़े से बड़ा होना चाहिये। रबर के सामान के स्थान पर स्टक का सामान ज्यादा उपयोगी है। काँच के प्रस्तुत सामान को भी क्रमशः प्लास्टिक के सामान से बदला जा सकता है। जीव-विज्ञान-शिक्षण में नमूनों के परीक्षण हेतु मूल्यवान सर्जीकल डिश तथा पैट्री डिश के स्थान पर सस्ती चीनी मिट्टी की प्लेट ज्यादा उपयोगी है।

जीव-विज्ञान का सामान खरीदने से पहले अध्यापक को हर उपकरण एवं अन्य सामान की मात्रा का अनुमान कुशलता के साथ करना चाहिए। विभिन्न सूची पत्रों तथा जीव-विज्ञान उपकरणों के विक्रेताओं के शो-रूम में उपलब्ध सामग्री के परीक्षण के बाद ही क्रय किये जाने वाले सामान की सूची तैयार करनी चाहिए।

छात्रों के उपयोग के लिए सूक्ष्मदर्शी अच्छी क्वालिटी के एवं विभिन्न आवर्धन क्षमता के लेने चाहिए। साथ ही प्रदर्शन माइक्रोस्कोप भी होना चाहिए जिसमें संकेतक, आईपीस, आई एमरसन लैंस एवं यान्त्रिक यन्त्र भी जरूरी हैं।

विच्छेदन हेतु सिर्फ आवश्यक सामान ही खरीदा जाय। विच्छेदन बक्स में उपलब्ध सारा सामान प्रायः छात्रों के लिए उपयोगी नहीं होता।

माइक्रोस्कोपिक स्लाइडों का प्रयोगशाला में अच्छा संग्रह होना चाहिए। ये स्लाइडें अच्छी कम्पनी की तथा अच्छी क्वालिटी की हों जिससे छात्रों को समुचित तथा स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिले। इसी तरह स्थायी स्लाइड बनाने हेतु जरूरी रसायन प्रयोगशाला में उपलब्ध होने चाहिये।

वाइबेरिया, एक्वेरिया, फ्लोवर पाट्स, सीट आदि भी प्रयोगशाला में होने चाहिए। माउण्टैड स्केलेटन एवं हड्डियाँ वास्तविक होनी चाहिए क्योंकि प्लास्टर की हड्डियाँ वास्तविक हड्डी की तुलना में अनुपयोगी होती हैं।

विभिन्न पौधों, जीव-जन्तुओं तथा जैविक प्रक्रियाओं के चार्ट, मॉडल एवं डाइग्राम के अलावा अगर स्लाइड और फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर एवं फिल्म प्रोजेक्टर की व्यवस्था हो सके तो ज्यादा उपयोगी है। ऐसा होने पर शैक्षणिक स्तर तथा बोधगम्यता में विशेष प्रगति होती है।

जीव-विज्ञान के प्रयोगात्मक कार्य हेतु निम्न सामग्री वांछनीय है। यह सामग्री पाठ्यक्रम की आवश्यकतानुसार एकत्रित की जानी चाहिए जिससे कि शिक्षण विधिवत एवं सुचारु रुप से हो सके-

(1) जन्तु-विज्ञान के विभिन्न वर्गों से संबंधित जीव-जन्तुओं के मॉडल तथा नमूने।

(2) वनस्पति-विज्ञान से संबंधित नमूने तथा मॉडल।

(3) जीव-विज्ञान के विभिन्न विषयों से संबंधित चार्टस, जैसे-पत्तियों के प्रकार, मॉस का जीवन-वृत्त, मेंढक का जीवन-चक्र।

(4) सूक्ष्मदर्शी यन्त्र।

(5) विभिन्न स्लाइड्स।

(6) अति सूक्ष्म जन्तुओं के जीवन-वृत्त के चार्ट।

(7) प्रकाश-संश्लेषण, श्वसन-क्रिया आदि प्रक्रियाओं के जरूरी अंगों के प्रदर्शन से संबंधित उपकरण।

(8) एक्वेरियम, टैरियम एवं वाइवेरियम आदि की व्यवस्था।

(9) विभन्न स्लाइड्स तैयार करने, विभिन्न नमूनों को सुरक्षित रखने एवं टैक्सीडर्मी में संबंधित विभिन्न रसायन

जीव विज्ञान प्रयोगशाला के लिए उपकरण तथा अन्य सामग्री :

विशेष उपकरण-

हालांकि इन उपकरणों का होना अनिवार्य नहीं है, पर इनकी उपलब्धता प्रयोगशाला प्रक्रियाओं को पर्याप्त सुगम बना देती है।

(1) रेफ्रीजरेटर- अगर क्रमिक विच्छेदन हो तो अगली बार विच्छेदन करने हेतु, संरक्षित करने हेतु इसका प्रयोग किया जा सकता है। फार्मलीन में सुरक्षित रखने की बजाय रेफ्रीजरेटर का प्रयोग अच्छा रहता है। इसी तरह कुछ रंजक जैसे A.T.P के संग्रहण के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।

(2) अभिकेन्द्रक- इसका उपयोग जलीय सूक्ष्म जीवियों के संवर्धन की सान्द्रता बढ़ाने हेतु, पक्षाभियोग तथा कशाभियुक्त को अचेत करने हेतु किया जाता है।

(3) ऊष्मा नियन्त्रित ओवन- इसका उपयोग जीवाणु तथा फफूंद संवर्धन को Incubation हेतु शुष्क तोल हेतु सामग्री को सुखाने हेतु (मृदा न्यादर्श), ड्रोसोफिलिया के Incubation के लिये, अण्डों के Incubation आदि हेतु किया जाता है

(4) ऊष्मा नियन्त्रित वाटर बाथ- इनका उपोग एन्जाइम प्रतिक्रिया प्रयोगों में, जीवाणु निशेष से पूर्व अंगार मिडिया न्यूट्रियेन्ट निर्माण करने के लिए, इथोहनोल युक्त पर्ण रहित निकालने के लिए किया जा सकता है।

(5) विद्युत ब्लेन्डर- अभिकेन्द्रक में पृथक करने से पहले उत्तकों का गूदा बनाने के लिए, विलयन निर्माण के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।

(6) प्रेशर कुकर- इसका उपयोग सूक्ष्म जीव सम्वर्धक निर्माण के लिए उपकरणों को जीवाणु रहित करने हेतु किया जाता है।

(7) डी-आइओनाइजर- इसका उपयोग आसुत जल निर्माण के लिए किया जाता है।

जीव विज्ञान प्रयोगशाला का संगठन तथा प्रशासन :

किसी भी जीव विज्ञान शिक्षक हेतु प्रयोशाला संगठन तथा प्रशासन का ज्ञान होना जरूरी है। इसी ज्ञान के आधार पर वह उपलब्ध साधनों, उपकरणों तथा यन्त्रों का प्रभावशाली उपयोग करने में सक्षम हो सकेगा।

प्रयोगशाला के सुचारु संचालन के लिए शिक्षक को निम्न सावधानियाँ दृष्टिगत रखनी चाहियें-

(1) प्रयोगशाला कार्य की एक विस्तृत रूप-रेखा अग्रिम रूप से निर्मित कर लेनी चाहिये। यह रूप-रेखा पूरे सत्र की, तत्पश्चात पूरे माह की, फिर पूरे सप्ताह की बना लेनी चाहिये। उस के अनुसार उपकरण तथा अन्य सामग्री प्रयोग के लिए तैयार कर लेनी चाहिये।

(2) प्रयोगशाला के कर्मचारियों को हर दिन की जाने वाली क्रियायें पूर्णतया स्पष्ट होनी चाहियें। उसी के अनुसार एक चेक-लिस्ट बनाकर, संबंधित सामग्री अग्रिम रूप से तैयार कर लेनी चाहिये।

(3) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में किसी भी दिन हेतु निर्धारित कार्य,(कितने भी सतर्क नियोजन के बाद) कभी-कभी उसी दिन करना सम्भव नहीं होता है। इस कारण हमेशा वैकल्पिक कार्य हेतु तत्पर रहना चाहिये।

(4) बाह्य पर्यटन आयोजित करने से पूर्व, सम्भावित मौसम की जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिये।

(5) प्रयोगशाला संबंधित सभी अभिलेख जैसे, स्टॉक रजिस्टर, ईशु रजिस्टर, टूट-फूट से संबंधित रजिस्टर आदि उचित तरह से संरक्षित रहने चाहिये।

(6) प्रयोगशाला के सामान का प्रतिवर्ष भौतिक सत्यापन होना चाहिये।

(7) विषों तथा खतरनाक रसायनों को उचित तरह अंकित करके बन्द अलमारी में रखना चाहिये।

(8) विद्युत कम वोल्टेज की हो, तथा विद्युत उपकरण पूर्णतया सुरक्षित हों।

(9) कम से कम एक अग्नि शमनक, प्रयोगशाला में हमेशा उपलब्ध होना चाहिये।

(10) प्राथमिक उपचार का सामान होना चाहिये।

अगर उपरोक्त सावधानियों को सतर्कतापूर्वक रखा जाये तो प्रयोगशाला के प्रभावशाली उपयोग की सम्भावनायें काफी मात्रा में बढ़ सकती हैं।

प्रयोगशाला कार्य के लक्ष्य तथा उद्देश्य :

जीव विज्ञान शिक्षण में सैद्धान्तिक तथा प्रायोगिक कार्यों के लक्ष्य और उद्देश्यों को पृथक रूप में नहीं देखना चाहिये। यथार्थ में यह एक दूसरे के पूरक होते हैं। इस कारण इनका समन्वित प्रयोग वांछनीय है। सिद्धान्त तथा प्रयोग के मध्य इसी खाई ने यूनेस्को को पारम्परिक प्रयोगशालाओं के स्थान पर अध्ययन कक्ष के सुझाव देने को बाध्य किया। फिर भी विज्ञान प्रयोगशाला को निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जा सकता है-

(1) अमूर्त वैज्ञानिक अवबोध को मूर्त रूप देने हेतु।

(2) वैज्ञानिक प्रत्यय तथा सिद्धान्तों के विकास हेतु।

(3) वैज्ञानिक कौशल, अभिरुचि तथा रुचि के विकास हेतु।

(4) वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण हेतु।

(5) वातावरण के प्रति चेतना तथा जिज्ञासा के विकास हेतु।

जीव विज्ञान प्रयोगशाला का महत्व :

जीव विज्ञान प्रयोगशाला के अभाव में जीव विज्ञान का प्रभावशाली ढंग से शिक्षण सम्भव नहीं है। जीव विज्ञान शिक्षण के अनुकूल वातावरण तैयार करने में प्रयोगशाला का बहुत महत्व है क्योंकि जीव विज्ञान के विभिन्न उपकरणों को देखने से छात्र के भीतर जिज्ञासा पैदा होती है एवं वे उनको प्रयोग करने के लिए उत्साहित हो उठते हैं। छात्रों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाने में प्रयोगशाला का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक तथ्यों, नियमों, सामान्य सिद्धान्तों के सत्यापन हेतु जीव विज्ञान प्रयोगशाला में कार्य अनिवार्य सा होता है।

जीव विज्ञान शिक्षण सिर्फ पुस्तकों के आधार पर ही नहीं किया जा सकता है, वैज्ञानिक सिद्धान्तों को कसौटी पर कसने हेतु प्रयोगों का भी सहारा लेना चाहिए। इसलिए जीव विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला का महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए जीव विज्ञान शिक्षण में जीव विज्ञान प्रयोगशाला के निम्न महत्व हैं-

(1) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में जीव विज्ञान संबंधी सामान एक ही स्थान पर उचित विभाजन तथा क्रमानुसार रखा जाता है। जब किसी वस्तु की जरूरत होती है तुरन्त मिल जाती है। इससे समय की बहुत बचत होती है।

(2) सभी तरह की जरूरी वैज्ञानिक सामग्री एवं जीव विज्ञान उपकरणों को, जो प्रयोग और निरीक्षण करने के काम में लाये जाते हैं, सुरक्षित एवं सुव्यवस्थित रखे जा सकते हैं।

(3) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में सामूहिक रूप से कार्य करने से छात्रों में सामाजिक दृष्टिकोण का उचित विकास होता है।

(4) विद्यार्थियों में वैज्ञानिक ढंग से ज्ञान ग्रहण करने तथा उनके दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाने में भी जीव विज्ञान प्रयोगशाला से बहुत मदद मिलती है।

(5) जीव विज्ञान के अध्ययन हेतु उचित वातावरण तैयार करने में भी जीव विज्ञान प्रयोगशाला से बहुत मदद मिलती है जिससे छात्रों में उत्साह पैदा होता है।

(6) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में विभिन्न तरह की वैज्ञानिक सामग्री तथा उपकरणों को देखकर छात्रों में जिज्ञासा पैदा होती है।

(7) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में चार्ट एवं रेखाचित्रों को देखकर बहुत-सी बातें छात्र अनायास ही सीख जाते हैं।

जीव विज्ञान का शिक्षण सिर्फ पुस्तकों के आधार पर ही नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धान्तों को कसौटी पर कसने हेतु हमें प्रयोगों का ही सहारा लेना पड़ता है। इसलिए जीव विज्ञान शिक्षण में जीव विज्ञान प्रयोगशाला का अपना विशेष महत्व है।

विज्ञान प्रयोगशाला का क्या महत्व है?

ये वास्तव में प्रयोगात्मक कार्यों के दीर्घकालिक उद्देश्य हैं जो विद्यार्थी द्वारा ज्ञान की रचना के चिन्तन केन्द्र बन जाते हैं। विद्यालयों में विज्ञान प्रयोगशाला वह स्थान है जहाँ उपयुक्त अभिव्यक्ति एवं निर्धारित प्रयोगों के समुच्चय को सुव्यवस्थित ढंग से सम्पन्न करके मूल प्रयोगिक कौशलों को सीखा जाता है।

विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि से आप क्या समझते हैं?

प्रयोगशाला विधि की परिभाषा एक विद्वान ने इस प्रकार दी है, "प्रयोगशाला विधि से हमारा तात्पर्य है कि छात्रों को इस प्रकार सिखाया जाना चाहिए कि छात्रों को स्वयं प्रयोग करने तथा निरीक्षण करने का अवसर मिले। शिक्षक उनकी क्रियाओं का निरीक्षण करें और छात्रों से निरीक्षण के आधार पर लिखित कार्य करवाएं।

प्रयोगशाला से आप क्या समझते है?

प्रयोगशाला वैज्ञानिक प्रयोगों, अनुसंधान, शिक्षण, या रसायनों और औषधियों के निर्माण के लिए सुसज्जित एक कक्ष या भवन है।