नर और मादा कोयल की पहचान कैसे की जा सकती है? - nar aur maada koyal kee pahachaan kaise kee ja sakatee hai?

कोयल की पहचान कैसे करे

दोस्तों कोयल की आवाज तो लगभग सभी ने सुनी होगी वैसे तो यह पक्षी किसी की पहचान का मोहताज नहीं है। कुछ लोग समझते है कि कोयल और कोवा एक ही है तथा कौए की मादा कोयल होती है। पर ऐसा नहीं है कोवा अलग होता है और कोयल अलग होती है। कोयल भूरे रंग और सफ़ेद बिंदियो एवं धरियो से भरी होती है जबकि इसके विपरीत नर बिलकुल काला होता है। इससे कुछ मिलते जुलते पक्षी भी होते है जिनमे श्याम, कोकिल, कोइली आदि पक्षी भी शामिल है। इसकी कुहू कुहू जैसी बोली से हम सभी परिचित है। यह घने जंगल, बाग़, बगीचों, पेड़ो आदि पर रहती है। ये जमीन पर नहीं उतरती है। यह पेड़ो की पत्तियों में छिपकर बैठी रहती है इसलिए ये हमें कम ही दिखाई देती है। इसका मुख्य भोजन फल तथा कीट पतंगे होते है।

कोयल का निवास स्थान और परिवार

यह पुरे भारत में पाई जाने वाली चिड़िया है। ये भारत के लगभग सभी स्थानों में पाई जाती है। ये ज्यादा उचाई पर नहीं रहती है बल्कि घने जंगल झाड़ियों पेड़ो आदि में रहती है। यह भारत की स्थाई चिड़िया है। कोयल के परिवार में प्राय 9 प्रकार के पक्षियों को शामिल किया गया है जिसमे फुपू , काफल पाक्को, पपीहा, वन कोकिल, चातक, कोयल, मालकोहा, सिरकीर और महोख है।

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क्या कोयल अपना घोंसला बनती है

कोयल अपना घोंसल कभी नहीं बनाती बल्कि अपने अंडो को कौए के घोंसले में देती है। जब इसके अंडे देने का समय आता है तब इसका नर कौए के घोंसले के पास घूमना शुरू कर देता है जब कौए उसको भागने के लिए अपने घोंसले से निकलते है तब मादा कोयल उनके घोंसले में अंडे दे देती है। चूँकि दोनों के अंडो का रंग और साइज लगभग एक जैसा होता है जिससे कौए को पता ही नहीं चल पाता के ये अंडे उसके है या कोयल के।

मादा कोवा अपने अंडो के साथ साथ उसके अंडो को भी सेने लग जाती है जब उनमे से बच्चे निकलने लगते है तब कोयल के बच्चे कौए के बच्चो को घोंसले से नीचे गिरा देते है और घोंसले पर अपना अधिकार ज़माने लगते है।जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगते है तब कौए को पता चलता है के ये उसके बच्चे नहीं है। तब वो उनको अपने घंसले से भगा देते है परन्तु तब तक वो बच्चे उड़ना सीख जाते है।

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कोयल का वर्गीकरण

किंगडम        : एनिमिया
संघ               : कॉर्डेटा
वर्ग                : एवेस
गण               : क्यूकलिफोर्मेस
परिवार          : कुकुलिडे
उपपरिवार     : कुकुलिनए
जीनस            : यूडायनेमिस

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कोयल के बारे में रोचक जानकारियां

  • कोयल कभी अपने लिए घोंसला नहीं बनती वह कौए के घोंसले में ही अंडे देती है।
  • यह जून महा में अपने अंडे देने की शुरुआत करती है।
  • कौए भी अपने अंडे जून महा में ही देता है।
  • इसके पंखो में चिट्टिया और सफ़ेद रंग की धारियां होती है।
  • इसकी आँखों की पुतली चटकीले लाल रंग की होती है।
  • चोंच गंदे हरे रंग की तथा टंगे गड़े सलेटी रंग की होती है।
  • कोयल के अंडे मादा कौए द्वारा सेये जाते है।
  • इसकी लम्बाई लगभग 17 इंच की होती है।
  • कोयल के अंडो का आकर और रंग एवं कौए के अंडो का आकर और रंग लगभग एक जैसा ही होता है।
  • इसके अंडे हलके हरे या पत्थर के रंग जैसे होते है जिन पर जैतूनी भूरी लाल भूरी और बैंगनी चित्तियाँ होती है।

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कोयल देखने में शर्मीले सीधे-साधे स्वाभाव की लगते हैं लेकिन असल जिंदगी में ये बहुत चालाक होते है। वास्तव में कोयल ना तो कभी अपना घोंसला बनाती है और ना ही अपने बच्चों को पालने का का स्वयं करती है इसके लिए वे केबल कौवो का ही नहीं बल्कि अपने से छोटे आकार की तमाम पक्षियों जैसी रीड वर्बल और अन्य  पक्षियों का इस्तेमाल करती है। कोयल की किस गुण को नीड परजीविता कहते है।  इसका मतलब है अपने बच्चों का देखभाल स्वयं न करके दूसरे से करवाना।

कोयल पक्षियों में नीड़ परजीविता तथा  इसमें और इसके  बच्चों में चलाकी दुर्दशा और बर्बरता जैसी सहज प्रवृत्तियां जैव  विकास के दौरान क्यों और कैसे विकसित हुई अभी भी वैज्ञानिक खोज का विषय है। यह सभी गुण इस जाति के संरक्षण का एक वजह भी हो सकता है या यह गुण अनुवांशिक भी हो सकता है। आइए हम जानते हैं कि कोयल पक्षी पर नीड़परजीविता पर अभी तक क्या-क्या वैज्ञानिक खोज हुए हैं।

 विश्व में कोयल  की लगभग 135 प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमें से 21  प्रजाति है केवल भारत में बसर करती हैं। नर कोयल मादा कोयल की तुलना में ज्यादा खूबसूरत आकर्षक  चमकदार तथा काले रंग की होती हैं इनकी आंख सुंदर लाल रंग की होती है इनकी आवाज काफी कर्णप्रिय सुरीली मधुर होती है अपनी मधुर आवाज से मादा कोयल को ये प्रणय  के लिए आकर्षित करती हैं ताकि ये वंश वृद्धि करके अपनी जाति के अस्तित्व को बनाए रखें।

मादा कोयल  देखने में कम आकर्षक धब्बेदार तथा चितकबरी होती है तथा इसकी आवाज भी कर्कश होती है मादा  कोयल अपनी पूरी जीवन में कई नर गोयल के साथ अपने संबंध बनाती है अर्थात यह बहुपति होती है।

कोयल झारखंड प्रदेश का राजकीय पक्षी हैजैसा  कि आपको पहले बताया जा चुका है कि कोयल में नीड़परजीविता  का अद्भुत गुण होता है नींड का मतलब होता है घोंसला और परजीवी का मतलब होता है दो जिव जातियों के बीच ऐसा  संबंध जिसमें आश्रित जीव  जैसे कोयल लाभान्वित होता है तथा पोषक जीव जैसे कौवा को इस  सम्बन्ध से हानि होता है.

 वैज्ञानिकों की मानें तो कोयल बहुत ही आलसी और कामचोर होते हैंऔर इसी कारण यह अपना घोंसला या नहीं बनाते हैं बल्कि दूसरी पक्षियों को डरा धमका करके उनसे अपने अंडों और बच्चों का पालन पोषण कर आते हैं।

प्रजनन काल में नर कोयल बार-बार व जोर-जोर से अपनी आवाज निकाल कर मादा कोयल को प्रणय के लिए  तैयार करता है और दोनों में आपसी सहमति होने पर ही इनमे  प्रजनन होता है। मई-जून के आसपास नर और मादा कोयल उन पक्षियों को तलाशते हैं जिन्होंने अपना घोंसला बना लिया हो तथा जो अपने अंडे को से रहे हो तथा जिनके अंडे कोयल के अंडे से  मिलते जुलते हो जैसे रीड वरवाल के अंडे या जो कोयल के अंडे को पहचानने में असमर्थ हो जैसे कौवा या क्रो।

जब मादा कोयल अंडे से रही होती है तब नर कोयल कौवे पर बार-बार हमला करके इस को डरा धमका के घोसले छोड़ने पर विवश कर देता है और इसी  समय कौवे के  घोसले  के आसपास छिपी मादा  कोयल इस अवसर का लाभ उठाकर बड़ी चालाकी से अपने एक अंडे को मुंह में दबाए हुए आती हैं और कौवे के घोसले में अपनी अंडे  को रख देती है इस प्रक्रिया में कोयल के अंडे फूट न जाए इस कारण इस के अंडों की सुरक्षा के लिए प्रकृति ने इसके ऊपर खोल को अन्य पक्षों की अंडों की अपेक्षा काफी मजबूत बनाया है। यह बहुत विचित्र घटना इस पक्षी के साथ देखि गयी है कौवे के  घोसले में अपना एक अंडा रखने के बाद मादा कोयल बहुत चालाकी और बेरहमी से की कौवे को इसकी भनक न लगे | इसीलिए कौवे के  एक अंडे को अपनी चोंच में दबाकर दूर फेंक आती है। क्योंकि मादा कौवे को अपने अंडों की गिनती तो आती है परंतु कोयल के अंडे को या पहचान नहीं पाती है इसके बाद मादा कोयल इस घोसले  की तरफ कभी  देखने नहीं आती है तथा अपने अन्यअंडो को इसी प्रकार दूसरे अन्य घोसलो में रख आती है।

अनजान कौवे केबल  इसे अपना अंडा समझ कर सेती  हैं बल्कि अंडे से निकली चूजों  का बखूबी पालन पोषण भी करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार कोयल के अंडे की हैचिंग पोषक पक्षियों जैसे कौवे या रीदवारवाल पक्षी के अंडों से पहले ही हो जाती है मतलब कोयल के अंडे से जल्दी ही बच्चे निकल आते हैं और इसकी एक दो दिन बाद पोषक पक्षी  के बच्चे निकलते हैं। कोयल के बच्चे पैदाइशी ही  हत्यारा और बर्बर प्रवृत्ति के होते हैं। यह अपने साथ दूसरे बच्चे के अंडे और बच्चों को बिल्कुल ही बर्दाश्त नहीं करती हैं यह बच्चे अपनी पोशक जैसे रीदबारबल के  अंडों को अपनी पीठ तथा पिछले पैरों की सहायता से बारी-बारी से ऊपर की ओर धकेल कर बाहर फेंक देते हैं। 

यही काम ही पोषक बच्चे के अंडे में से निकले बच्चों के साथ भी करते हैं तथा उन्हें भी बड़ी निर्ममता  और बेरहमी से धक्का मार मार के घोसले के बाहर फेंक देते हैं।  क्योंकि रीदबारबर पक्षी की चूजे कोयल की चूजों  से छोटे होते हैं इस कारण इनको बाहर फेकने  में इसको कोई दिक्कत नहीं होती है। जबकि कौवे के चूजे कोयल के चूजों की अपेक्षा बड़ी होते हैं। इसकारन ये कौवे के बच्चे को घोसले के बाहर नहीं फेक पाते हैं। लेकिन यदि अभी चूजे कौवे के अंडे से नहीं निकले हैं तो उनको ये घोसलो के बाहर फेकने  में देरी नहीं करते हैं। कोयल के बच्चे पोषक पक्षी के द्वारा पौष्टिक आहार भरपूर मिलने के कारण तेजी से बड़ी हो जाती हैं तथा इनकी असलियत का पता ना लगे इसीलिए  पहले ही कोयल के बच्चेघोसले  को छोड़कर भाग जाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार कोयल का नीड़परजीविता का एक मुख्य कारण इनका फलाहारी प्रकृति होना है क्योंकि वयस्क कोयल भोजन के रूप में प्रमुख रूप से फलो का सेवन करते हैं जब भी कोयल  सहित लगभग सभी पक्षियों के  छोटे-छोटे बच्चों के विकास के लिए प्रचुर मात्रा में प्रोटीन चाइये जो  केवल मांसाहार से ही प्राप्त हो सकता है और वयस्क कोयल अपने बच्चो को मांसाहार उपलब्ध कराने में असमर्थ होते हैं। इस कारण अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए उस पक्षी को चुनते हैं जो मांसाहारी होते हैं। अन्य पक्षियों की अपेक्षा कौवे में कोयल के अंडे को पहचानने की क्षमता कम होती है और वे कोयल के अंडो को भी अपना समझकर पालन-पोषण करते हैं।

इस प्रकार कोयल में नीड़परजीविता का गुण विकसित हुआ। 

 दूसरी तरफ अभी हाल ही में एक नए शोध के द्वारा यह पता चला है कि कौवे के वे घोसले  जिसमें कोयल का बच्चा भी होता है शिकारी चिडियो और शिकारी पशु  से ज्यादा सुरक्षित होता है  क्योंकि शिकारी जंतुओं का हमला होने पर उनके बच्चों के द्वारा काले रंग का एक चिपचिपा विषैला पदार्थ स्त्रावित  होने लगता है जिसके कारण को शिकारी उसे छोड़कर भाग जाते हैं।

 उनके इस व्यवहार के कारण आप यह कहना मुश्किल हो जाता है कि कोयल की इस प्रजाति का कौवे के साथ पर परजीवी  संबंध है य सह संबंध है। पर बात  कुछ भी हो कोयल की आवाज का जादू कितना गहरा होता है कि बाकी की सारी बातें बेमानी सिद्ध हो जाती है |