You are here: Home / एकेडमिक / इतिहास / आधुनिक भारत / उपभोक्ता संस्कृति क्या होता है, जानें विकसित होने का कारण और प्रभाव Show उपभोग जीवन की एक आधारभूत पहलू है। हमारे दैनिक जीवन में उपयोग आने वाले सभी संसाधन को उपभोग की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। ऐसे में यदि हम विचार करें तो यह केवल मानव ही नहीं अपितु सभी प्राणियों के लिए अपरिहार्य आवश्यकता जान पड़ती है। उपभोग का वास्तविक जड़ जरूरत या आवश्यकता से मिलती है लेकिन यह आवश्यकता बहुत अधिक अथवा काम चलाऊ भी हो सकती है और यह भी हो सकता है कि यह बिल्कुल दिखावा प्रदत्त हो| ऐसी वस्तुएं जो मानव के लिए ख़ास आवश्यक न होते हुए भी व्यवसायिक प्रचार प्रसार आदि के द्वारा जब महत्वपूर्ण दिखाया जाता है तो इसे उपभोक्ता संस्कृति कहा जाता है। यह भी पढ़ें:
उपभोक्ता संस्कृति के विकास का कारणब्रांडीकरण: मशीनी और पूंजी प्रवाह के दौर में व्यक्तियों को ब्रांड के रूप में रूपांतरण किया गया। उनकी पहचान उनके नागरिक होने के गुण के आधार पर न करते हुए कौन व्यक्ति किस प्रकार के ब्रांडेड वस्तुओं का उपयोग करता है इस आधार पर किया जाने लगा। इससे उपभोक्ता संस्कृति को बल मिला| सूचना प्रचार की भूमिका: मीडिया विज्ञापन आदी के माध्यम से उपभोग की वस्तुओं के प्रति आकर्षण पैदा किया गया। यदि सुंदर दिखना है तो क्रीम का प्रयोग करना चाहिए| लड़कों के लिए अलग क्रीम, लड़कियों के लिए अलग क्रीम| इस तरह की विज्ञापन ने लोगों को उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने हेतु प्रेरित किया| इस तरह उपभोक्ता संस्कृति फली फुली। कॉरोपोरेटवाद की भूमिका: बड़े-बड़े कॉरोपोरेट घरानों द्वारा बड़ी बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किया गया। इससे उपभोक्ता वस्तुओं की सहज उपलब्धि सुनिश्चित हो पाई। इससे उपभोक्ता संस्कृति को बल मिला। सामंती मानसिकता का पुनर्विकास: हालिया आधुनिक युग सामंती प्रवृति की पुनर्विकास की ओर बढ़ा है। व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते है। बड़ी-बड़ी गाडियां, महंगी वस्तुएं, होटल आदी में जाना एक सांस्कृतिक पहचान माना जाने लगा। इससे उपभोक्ता संस्कृति को बल मिला। उपभोक्ता संस्कृति का प्रभावउपभोक्ता संस्कृति के नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों प्रभाव देखने को मिलते हैं| इनकी अलग-अलग चर्चा किया जाना प्रासंगिक होगा| नकारात्मक प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
मूल्यांकन उपभोक्ता संस्कृति के जहां कुछ सकारात्मक पहलु है वहीं कुछ नकारात्मक पहुलुएँ भी हैं, ऐसे में कुछ बातों पर गौर किया जाना काफी आवश्यक हो जाता है| उपयोग मूल्य पर ध्यान दिए जाने के साथ ही उपभोग के दौरान आवश्यक और अनावश्यक उपभोग की पहचान होनी चाहिए| आधुनिक तड़क-भड़क जीवन शैली के बजाय सरल जीवन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए| विकास तथा पर्यावरण संतुलन के बीच उचित तालमेल होना चाहिए और इनके लिए सतत विकास को ध्यान में रखकर उपयोग करना चाहिए| इस संदर्भ में गांधी जी का कथन प्रासंगिक है कि पृथ्वी के सारे संसाधन सभी मनुष्यों का पेट भर सकते हैं लेकिन किसी एक लालची व्यक्ति के लिए कम पड़ जाएंगे। इस लेख में आपने उपभोक्ता संस्कृति के विकास का कारण एवं प्रभाव के बारे में पढ़ा| इससे संबंधित विचार आप कमेंट के माध्यम से साझा कर सकते है| Subscribe Our Email Feed for latest update on Email These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति. पाठ्य-पुस्तक के
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 1. प्रश्न 2. अथवा उपभोक्तावादी संस्कृति के क्या दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं? [CBSE] अथवा उपभोक्तावादी संस्कृति से हमें क्या नुकसान हुए हैं? [CBSE]
प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाववश हम अंधानुकरण में कई ऐसी चीजें अपना लेते हैं, जो अत्यंत हास्यास्पद हैं; जैसे अमेरिका में लोग मृत्युपूर्व ही अंतिम क्रियाओं का प्रबंध कर लेते हैं। वे ज्यादा धन देकर हरी घास तथा संगीतमय फव्वारे की चाहत प्रकट कर देते हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसे अंधानुकरण की हँसी उड़ना ही है। रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. भाषा-अध्ययन प्रश्न 9. (क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
उत्तर: (ख) धीरे-धीरे – सुमन धीरे-धीरे मेरे पास आ गई। (ग) 1. निरंतर – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण पाठेतर सक्रियता • ‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद
शैली में लिखिए।
• इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें। विपक्ष में विचार- उपभोक्तावादी संस्कृति सामंती संस्कृति का रूप नहीं है, बल्कि यह उपभोग के साधनों की प्रचुरता का प्रमाण है। पहले जो साधन बड़े-बड़े पूँजीपतियों को उपलब्ध होते थे, वे आज आम आदमी को भी मिलने लगे हैं। पहले राजा-महाराजा ही मोटरकार और हवाई जहाज की यात्रा का सुख ले पाते थे, अब मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी इनका सुख ले रहा है। अतः यह सामंती संस्कृति का विकसित रूप नहीं है, बल्कि जन-जन की समृद्धि का प्रतीक है। •
आप प्रतिदिन टी.वी. पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ जाते हैं।
जूते का विज्ञापन Hope given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. Learn Insta try to provide online tutoring for you. उपभोक्तावाद की संस्कृति क्यों पनप रही है?क्योंकि पहले के लोग सादा जीवन, उच्च विचार का पालन करते थे तथा सामाजिकता एवं नैतिकता के पक्षधर थे। आज उपभोक्तावादी संस्कृति भारतीय संस्कृति की नींव हिला रही थी। इससे हमारी एकता और अखंडता प्रभावित होती है। इसके अलावा यह संस्कृति भोग को बढ़ावा देती है तथा वर्ग-भेद को बढ़ावा देती है।
उपभोक्ता संस्कृति से आप क्या समझते हैं?यह उत्पादन आपके लिए है; आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। 'सुख' की व्याख्या बदल गई है। उपभोग-भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नई स्थिति में उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।
उपभोक्ता संस्कृति के कारण हम कैसे दास्तां स्वीकार करते जा रहे हैं?आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे जीवन पर हावी हो रही है। मनुष्य आधुनिक बनने की होड़ में बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम की संस्कृति का अनुकरण किया जा रहा है। आज उत्पाद को उपभोग की दृष्टि से नहीं बल्कि महज दिखावे के लिए खरीदा जा रहा है। विज्ञापनों के प्रभाव से हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं।
उपभोक्तावाद की संस्कृति की विधा क्या है?उपभोक्तावाद की संस्कृति निबंध बाज़ार की गिरफ्त में आ रहे समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत करता है। लेखक का मानना है कि हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं, हमारी निगाह गुणवत्ता पर नहीं है।
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